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मेरा सच- चरण 1 जहाँ चाह वहाँ राह

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बात उस समय से शुरू करती हूं जब मैं कक्षा 2 मे पढ़ती थी मैं और मेरा छोटा भाई एक ही कक्षा मे पढ़ते थे, पापा बहुत ही  कठोर उसूलो वाले थे, वो हमेशा हम बच्चो को  अव्वल देखना चाहते थे, इसलिए  बहुत व्यस्त रहने के बावजूद हर शाम को हमारी कॉपिया चेक करते थे उनके हिसाब से हर चीज परफेक्ट चाहिए थी, उनकी इसी धाक की वजह से हम डट कर पढ़ाई करते थे। पापा की धाक की वजह से घर का अनुशासन हमेशा बना रहता था।मैं शुरू से बहुत ही भावुक थी हर इंसान से बहुत जल्दी लगाव और प्रेम हो जाता, इसलिए मेरी कक्षा अध्यापिका से मुझे बहुत ही प्रेम था वो जो कुछ भी सिखाते मै हमेशा उसे अमल करती थी। वो कॉपी मे सुलेख लिखाते थे कि सदा सत्य बोलो, अपना काम स्वयं करो, ये सुलेख न केवल कॉपी मे बल्कि मेरे मन और मस्तिष्क मे इस तरह बैठ गए कि वो वाक्य कब मेरे जीवन का हिस्सा बन गए मुझे पता ही न चला।मेरी मम्मी धार्मिक प्रवत्ति की थी इसलिए मुझे भगवान् के भजन सिखाये इसी कारण बचपन से मुझे भगवान् पर विश्वास है। इसी तरह समय बीत रहा था और मैं पांचवी कक्षा मे आ गई।एक दिन की बात है पापा ने कहा कि राधा को तो केव...

सत्य क्या है?

सत्य क्या है?  क्या सत्य बोलना ही असली सत्य है?नही!सत्य वही है जो शरीर और आत्मा दोनो मे समान हो।आत्मा जो बोले वो ही अगर शरीर बोले तो वो ही सत्य कहलाता है।जब आत्मा के विपरीत जाकर हम बोलते है तो वो झूठ कहलाता है,क्योंकि शरीर ही झूठ बोलता है,आत्मा कभी झूठ नहीं बोलती।जब हमारे जीवन मे जैसा चल रहा होता है,वैसा ही हम दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करते है तो वो ही सत्य कहलाता है,लेकिन इस दुनिया मे लोगो के जीवन मे असल मे कुछ चलता है और दुनिया को कुछ और दिखाते है।अंदर से दुःखी इंसान भी दुनिया के सामने हंसता है।कई गरीब होते हुए भी अपने आप को दुनिया के सामने अमीर बताते है और कई अमीर होते हुए भी दुनिया के सामने अपने आप को गरीब बताते है।कई लोग जीवन भर जिससे दुश्मनी रखते है,मनमुटाव रखते है,उसी के मरने पर दुनिया के सामने जोर शोर से रोते है।सत्य कभी दिखावा नहीं करता,सत्य जैसा है ,वैसा ही दिखता है।सत्य को कभी साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती,वो समय आने पर खुद ही साबित हो जाता है।सत्य की भाषा कभी लड़खड़ाती या लंगड़ी नहीं होती,इसके विपरीत झूठ की भाषा लंगड़ाती हुई होती है।सत्य को याद करने की जरूरत नहीं होती,झूठ...