मेरा सच- चरण 1 जहाँ चाह वहाँ राह

बात उस समय से शुरू करती हूं जब मैं कक्षा 2 मे पढ़ती थी मैं और मेरा छोटा भाई एक ही कक्षा मे पढ़ते थे, पापा बहुत ही कठोर उसूलो वाले थे, वो हमेशा हम बच्चो को अव्वल देखना चाहते थे, इसलिए बहुत व्यस्त रहने के बावजूद हर शाम को हमारी कॉपिया चेक करते थे उनके हिसाब से हर चीज परफेक्ट चाहिए थी, उनकी इसी धाक की वजह से हम डट कर पढ़ाई करते थे। पापा की धाक की वजह से घर का अनुशासन हमेशा बना रहता था।मैं शुरू से बहुत ही भावुक थी हर इंसान से बहुत जल्दी लगाव और प्रेम हो जाता, इसलिए मेरी कक्षा अध्यापिका से मुझे बहुत ही प्रेम था वो जो कुछ भी सिखाते मै हमेशा उसे अमल करती थी। वो कॉपी मे सुलेख लिखाते थे कि सदा सत्य बोलो, अपना काम स्वयं करो, ये सुलेख न केवल कॉपी मे बल्कि मेरे मन और मस्तिष्क मे इस तरह बैठ गए कि वो वाक्य कब मेरे जीवन का हिस्सा बन गए मुझे पता ही न चला।मेरी मम्मी धार्मिक प्रवत्ति की थी इसलिए मुझे भगवान् के भजन सिखाये इसी कारण बचपन से मुझे भगवान् पर विश्वास है। इसी तरह समय बीत रहा था और मैं पांचवी कक्षा मे आ गई।एक दिन की बात है पापा ने कहा कि राधा को तो केव...