मेरा सच
सत्य क्या है?
क्या सत्य बोलना ही असली सत्य है?नही!सत्य वही है जो शरीर और आत्मा दोनो मे समान हो।आत्मा जो बोले वो ही अगर शरीर बोले तो वो ही सत्य कहलाता है।जब आत्मा के विपरीत जाकर हम बोलते है तो वो झूठ कहलाता है,क्योंकि शरीर ही झूठ बोलता है,आत्मा कभी झूठ नहीं बोलती।जब हमारे जीवन मे जैसा चल रहा होता है,वैसा ही हम दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करते है तो वो ही सत्य कहलाता है,लेकिन इस दुनिया मे लोगो के जीवन मे असल मे कुछ चलता है और दुनिया को कुछ और दिखाते है।अंदर से दुःखी इंसान भी दुनिया के सामने हंसता है।कई गरीब होते हुए भी अपने आप को दुनिया के सामने अमीर बताते है और कई अमीर होते हुए भी दुनिया के सामने अपने आप को गरीब बताते है।कई लोग जीवन भर जिससे दुश्मनी रखते है,मनमुटाव रखते है,उसी के मरने पर दुनिया के सामने जोर शोर से रोते है।सत्य कभी दिखावा नहीं करता,सत्य जैसा है ,वैसा ही दिखता है।सत्य को कभी साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती,वो समय आने पर खुद ही साबित हो जाता है।सत्य की भाषा कभी लड़खड़ाती या लंगड़ी नहीं होती,इसके विपरीत झूठ की भाषा लंगड़ाती हुई होती है।सत्य को याद करने की जरूरत नहीं होती,झूठ को याद रखना पड़ता है,वरना वो बदल भी जाता है।सत्य हमेशा एक रहता है,वो कभी बदलता नही है।इसके विपरीत झूठ के अनेक रूप होते है।झूठ उस आर्टिफिशियल ज़ेवर के बराबर होता है,जो कहीं भी आसानी से मिल जाता है और सत्य उस सोने के गहनों के समान होता है जो किसी को भी मुश्किल से मिल पाता है।सोना उसी को मिलता है,जो उस सोने को पहनने के लायक हो,उसी प्रकार सत्य भी उसी को मिलता है जो सत्य रूपी गहनों की हिफाजत कर सके।जिस प्रकार सोने की परख केवल सुनार ही कर सकता है,उसी प्रकार सत्य की परख भी वो ईश्वर रूपी सुनार ही कर सकता है।सत्य अनेक गुणों सर परिपूर्ण होता है।सत्य का पहला गुण प्रेम है।जो सच्चा होता है,वो प्रेमी होता है।उसका प्रेम इतना गहरा होता है कि उसकी गहराई को नाप पाना इस संसार के बस का तो है ही नहीं।वो प्रेम हनुमान जी ने राम से किया,शबरी ने राम से किया।राम ने सीता से तो सीता ने राम से किया।लक्ष्मण ने राम से किया तो भरत ने राम से किया।राधा ने कृष्ण से किया तो कृष्ण ने राधा से।मीरा ने कृष्ण से किया तो कृष्ण ने मीरा से।कृष्ण ने सुदामा से किया तो सुदामा ने कृष्ण से और इतिहास मे अनेको उदाहरण है,जिसमे सत्य के साथ प्रेम का सामंजस्य है।एक झूठा व्यक्ति कभी किसी से प्रेम नहीं कर सकता,एक सत्यवादी ही सच्चा प्रेमी होता है।लेकिन समय समय पर सत्य ने प्रेमियों की परीक्षा ली है।जहाँ प्रेम सच्चा होता है,वहाँ ये सत्य हमेशा कुछ न कुछ त्याग चाहता है।सीता ने अपने राम के लिए महल त्यागा तो राम ने अपनी सीता के प्रेम मे महल के सुखों का त्याग करके जमीन पर घास पर लेटे।
लेकिन फिर भी आज तक कोई ऐसा युग नहीं आया कि सत्य और सच्चा प्रेम कभी पराजित हुआ हो।सत्य हर हाल मे जीतता ही है।अगर कोई सत्य की परीक्षा देते देते मर भी जाता है तो भी मरने के बाद भी उसका सत्य इतिहास मे अमर हो जाता है,पर हारता कभी नहीं है।
सत्य ईश्वर का ही दूसरा रूप है।मैंने अपने जीवनकाल मे इसी सत्य के साक्षात दर्शन किये है,उस अनुभव को बताने के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है,इतना अद्धभुत है वो दृश्य।इसी दृश्य को मैंने अपने शब्दों मे ,अपने जीवन की कहानी के माध्यम से बताने की कोशिश करी है।मैं आशा करती हूं कि आपको मेरा सच ब्लॉग पसंद आये।इसलिए मेरी कहानी को पूरा पढ़े।
सत्यम शिवम सुंदरम
बात उस समय से शुरू करती हूं जब मैं कक्षा 2 मे पढ़ती थी मैं और मेरा छोटा भाई एक ही कक्षा मे पढ़ते थे, पापा बहुत ही कठोर उसूलो वाले थे, वो हमेशा हम बच्चो को अव्वल देखना चाहते थे, इसलिए बहुत व्यस्त रहने के बावजूद हर शाम को हमारी कॉपिया चेक करते थे उनके हिसाब से हर चीज परफेक्ट चाहिए थी, उनकी इसी धाक की वजह से हम डट कर पढ़ाई करते थे। पापा की धाक की वजह से घर का अनुशासन हमेशा बना रहता था।मैं शुरू से बहुत ही भावुक थी हर इंसान से बहुत जल्दी लगाव और प्रेम हो जाता, इसलिए मेरी कक्षा अध्यापिका से मुझे बहुत ही प्रेम था
वो जो कुछ भी सिखाते मै हमेशा उसे अमल करती थी। वो कॉपी मे सुलेख लिखाते थे कि सदा सत्य बोलो, अपना काम स्वयं करो, ये सुलेख न केवल कॉपी मे बल्कि मेरे मन और मस्तिष्क मे इस तरह बैठ गए कि वो वाक्य कब मेरे जीवन का हिस्सा बन गए मुझे पता ही न चला।मेरी मम्मी धार्मिक प्रवत्ति की थी
इसलिए मुझे भगवान् के भजन सिखाये इसी कारण बचपन से मुझे भगवान् पर विश्वास है। इसी तरह समय बीत रहा था और मैं पांचवी कक्षा मे आ गई।एक दिन की बात है पापा ने कहा कि राधा को तो केवल छठी तक ही पढाई कराते है फिर सिलाई सीखा देंगे वैसे भी लड़कियों को ज्यादा पढ़ा कर क्या करना है,ये बात सुनकर मुझे रोना आ गया, मुझे पढ़ने का बहुत शौक था।लेकिन इस बारे मे पापा से बात करने की मेरी हिम्मत नहीं थी।एक दिन मैंने देखा कि पापा पैसों को लेकर चिंतित थे कुछ ही तनख्वाह मिलती थी जिसमे परिवार का पालन पोषण,दादा दादी की जिम्मेदारी और कुछ पुराने कर्ज थे ।मैं बिना कहे ही उनकी समस्या समझ गई ।हम दोनों भाई बहन जिस स्कूल मे पढ़ते थे वो उस समय के लिए बहुत महंगे थे।
वो जो कुछ भी सिखाते मै हमेशा उसे अमल करती थी। वो कॉपी मे सुलेख लिखाते थे कि सदा सत्य बोलो, अपना काम स्वयं करो, ये सुलेख न केवल कॉपी मे बल्कि मेरे मन और मस्तिष्क मे इस तरह बैठ गए कि वो वाक्य कब मेरे जीवन का हिस्सा बन गए मुझे पता ही न चला।मेरी मम्मी धार्मिक प्रवत्ति की थी
इसलिए मुझे भगवान् के भजन सिखाये इसी कारण बचपन से मुझे भगवान् पर विश्वास है। इसी तरह समय बीत रहा था और मैं पांचवी कक्षा मे आ गई।एक दिन की बात है पापा ने कहा कि राधा को तो केवल छठी तक ही पढाई कराते है फिर सिलाई सीखा देंगे वैसे भी लड़कियों को ज्यादा पढ़ा कर क्या करना है,ये बात सुनकर मुझे रोना आ गया, मुझे पढ़ने का बहुत शौक था।लेकिन इस बारे मे पापा से बात करने की मेरी हिम्मत नहीं थी।एक दिन मैंने देखा कि पापा पैसों को लेकर चिंतित थे कुछ ही तनख्वाह मिलती थी जिसमे परिवार का पालन पोषण,दादा दादी की जिम्मेदारी और कुछ पुराने कर्ज थे ।मैं बिना कहे ही उनकी समस्या समझ गई ।हम दोनों भाई बहन जिस स्कूल मे पढ़ते थे वो उस समय के लिए बहुत महंगे थे।
जैसे ही मैंने 5वी कक्षा उत्तीर्ण करी और छठी मे आई पापा उस प्राइवेट स्कूल से टीसी निकालकर ले आये और मुझे सरकारी स्कूल मे एडमिशन दिला दिया । मैं अपने भाई से बिछुड़ कर दूसरे स्कूल नहीं जाना चाहती थी
पर पापा पर दया भी आती थी कि हम दोनों भाई बहन अगर प्राइवेट मे पढ़ेंगे तो बहुत पैसे लगेंगे इसलिए मै सरकारी मे पढ़ने के लिए राजी हो गई। लेकिन किसी ने कहा है कि जहाँ चाह होती है वहां राह होती है। जिस दिन मेरा नए स्कूल मे पहला दिन था उसी दिन मेरी एक प्रिय सहेली के पापा को पता चला क़ि मेरा सरकारी स्कूल मे दाखिला हो गया है तो उन्हें और मेरी सहेली को बहुत दुःख हुआ ,मेरी सहेली के पापा का खुद का स्कूल था जो बिल्कुल घर के बगल मे था,फिर क्या था अगले ही दिन बिना मेरे पापा से पूछे एक दिन की टीसी निकाल कर ले आये और उनके खुद के स्कूल मे फ्री मे मुझे दाखिला दे दिया।मेरे पापा उनकी बहुत इज्जत करते थे ,वो कुछ कह ही नहीं पाए फिर क्या था मैं बिना फ़ीस के वहां पढ़ने लगी। और मेरी सहेली के पापा का नाम था सत्यनारायण जी,जो बहुत ही नेक इंसान है,और हमेशा से ही लोगो की मदद करते है और मेरी सहेली का नाम गायत्री था।ये दोनों नाम ही सत्य से जुड़े है।और यही वो पहला सबूत था ईश्वर के मेरे साथ होने का।
सत्य नारायण जी अंकल ने न केवल मुझे अपने स्कूल मे पढ़ाया बल्कि हर उस बच्चे को पढ़ाया जो पैसों के कारण पढ़ नहीं पाता था।जहाँ कहीं भी उन्हें कोई जरूरतमंद बच्चा दिखता,वो उसे अपने स्कूल मे लाकर एडमिशन दे देते।वो एक ऐसे नेक इंसान है जो खुद तो आगे बढ़े साथ ही अपने परिवार के कई लोगो को इन्होंने आगे बढ़ाया।जैसा इनका नाम है,वैसा ही इन्होंने जीवन मे कार्य किया।मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती हूं कि मेरे जीवन के पहले ही पड़ाव मे ऐसी महान विभूति से मेरा परिचय हुआ।
पर पापा पर दया भी आती थी कि हम दोनों भाई बहन अगर प्राइवेट मे पढ़ेंगे तो बहुत पैसे लगेंगे इसलिए मै सरकारी मे पढ़ने के लिए राजी हो गई। लेकिन किसी ने कहा है कि जहाँ चाह होती है वहां राह होती है। जिस दिन मेरा नए स्कूल मे पहला दिन था उसी दिन मेरी एक प्रिय सहेली के पापा को पता चला क़ि मेरा सरकारी स्कूल मे दाखिला हो गया है तो उन्हें और मेरी सहेली को बहुत दुःख हुआ ,मेरी सहेली के पापा का खुद का स्कूल था जो बिल्कुल घर के बगल मे था,फिर क्या था अगले ही दिन बिना मेरे पापा से पूछे एक दिन की टीसी निकाल कर ले आये और उनके खुद के स्कूल मे फ्री मे मुझे दाखिला दे दिया।मेरे पापा उनकी बहुत इज्जत करते थे ,वो कुछ कह ही नहीं पाए फिर क्या था मैं बिना फ़ीस के वहां पढ़ने लगी। और मेरी सहेली के पापा का नाम था सत्यनारायण जी,जो बहुत ही नेक इंसान है,और हमेशा से ही लोगो की मदद करते है और मेरी सहेली का नाम गायत्री था।ये दोनों नाम ही सत्य से जुड़े है।और यही वो पहला सबूत था ईश्वर के मेरे साथ होने का।
सत्य नारायण जी अंकल ने न केवल मुझे अपने स्कूल मे पढ़ाया बल्कि हर उस बच्चे को पढ़ाया जो पैसों के कारण पढ़ नहीं पाता था।जहाँ कहीं भी उन्हें कोई जरूरतमंद बच्चा दिखता,वो उसे अपने स्कूल मे लाकर एडमिशन दे देते।वो एक ऐसे नेक इंसान है जो खुद तो आगे बढ़े साथ ही अपने परिवार के कई लोगो को इन्होंने आगे बढ़ाया।जैसा इनका नाम है,वैसा ही इन्होंने जीवन मे कार्य किया।मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती हूं कि मेरे जीवन के पहले ही पड़ाव मे ऐसी महान विभूति से मेरा परिचय हुआ।
मेरा सच चरण 2- मेरे निबंध ने किया गलत का विरोध

मुझे झूठ बिल्कुल पसंद नहीं था।ना झूठ बोलना और ना ही झूठ सुनना पसंद था।गलत चाहे टीचर हो या मित्र किसी का भी बर्दाश्त नहीं करती थी।गलत का विरोध करना मेरी आदत थी।एक बार की बात है जब मैं 7वी कक्षा मे थी,और परीक्षा मे एक निबंध आया था जिसका शीर्षक था -अगर मै प्रधानाध्यापिका होती तो-मैने उस निबंध मे मेरे स्कूल की सब बुराइयां लिख दी।यहाँ तक की हर टीचर की गलतियों को उसमे लिख दिया।मुझे ये नहीं पता था कि मै क्या कर रही हु और इसका नतीजा क्या होगा बस इतना जानती थी की उस निबंध ने मुझे गलत का सामना करने का एक अवसर दिया था जिसे मैं खोना नहीं चाहती थी।जब वो कॉपी जाँची गई तो टीचर भी हैरान रह गई कि वो मुझे नंबर दे या सजा। टीचर ने वो कॉपी प्रिंसिपल के टेबल पर रख दी।पुरे स्कूल मे मेरे इस तरह के निबंध की चर्चा हो रही थी।कई टीचर मुझसे बात ही नहीं कर रहे थे क्योंकि उनकी कमियों को जो मैंने निबंध मे लिख दिया था। एक दिन प्रार्थना सभा मे प्रिंसिपल सर ने आगे बुलाकर मेरी पीठ थपथपाई और मुझे सबके सामने प्रोत्साहित किया कि इस बच्ची ने सच को कहने की हिम्मत दिखाई।सभी ने तालिया बजाई और जो टीचर मुझसे नाराज थे उन्होंने भी मुझे लाड किया।उस दिन के बाद स्कूल का वातावरण ही बदल गया।सब टीचर बहुत अच्छे से अपना उत्तरदायित्व निभाने लगे।स्कूल मे जो कमिया थी वो पूरी होने लगी और पूरा स्कूल अनुशासनबद्ध हो गया। ये एक और सबूत था ईश्वर का सत्य के साथ होने का।
मेरा सच चरण 3- बचपन की सगाई

उस समय हमारा मकान बहुत छोटा था। एक कमरा और एक छोटी सी रसोई थी जिसमे मैं और मेरा छोटा भाई पढाई करते थे।टॉयलेट बाथरूम कुछ नहीं थे।शौच के लिए बाहर जाते थे और नहाने के लिए घर के पीछे एक खाली जगह पर एक पत्थर रखा हुआ था जिस पर बैठ कर नहाते थे।मुझे खुले मे शौच करने मे और बाहर खुले मे नहाने मे बहुत शर्म आती थी इसलिए मैं इसी डर से सुबह जल्दी उठकर शौच और स्नान से निवृत्त हो जाती थी ।मुझे पढ़ने का बहुत शौक था ,पर घर छोटा था,छोटे भाई बहन मस्ती करते थे,आये दिन कोई न कोई गाँव से मेहमान आते थे लेकिन पढ़ने की रूचि के कारण इन सब चीजों का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा।मैं छत पर जाकर एक छोटी हल्की लाइट के उजाले मे पढाई करती थी।मै हमेशा 3 बजे उठकर पढ़ती थी क्योकि उस समय बिल्कुल शांत माहौल होता था। 3 से 5 पढ़ने के बाद मैं 5 बजे शौच के लिए चली जाती थी।हालांकि घर के पास ही शमसान था,पर उस समय पता नहीं क्यों कभी डर ही नहीं लगा।शौच से आने के बाद नहाती और फिर चूल्हा लगाकर खाना बनाती।मैं चाहती थी की मम्मी के उठने से पहले सारा काम हो जाये । मम्मी पापा बहुत मेहनत करते थे तो मुझे उनकी बहुत चिंता थी।पर मैं चाहे कितना ही अच्छा पढ़ लू या घर का सारा काम भी कर लूं फिर भी मुझे वो प्यार नहीं मिलता।पापा बहुत स्ट्रीक थे वो हर बात बात पर मुझे डांटते रहते थे।वो जितना डांटते मैं हर बार उन्हें खुश करने का बार बार प्रयास करती।पापा का डर तो इतना था कि कभी उनकी आँख की तरफ देखकर तो हमने कभी बात ही नहीं करी।पर मेरा यही उद्देश्य था कि मै हमेशा सबको खुश रखु। 7 बजे मैं स्कूल चली जाती।स्कूल मे भी मेरी पूरी जिम्मेदारी होती थी कि प्रार्थना सभा की पूरी तैयारी मै ही करू।कक्षा मे टेबल कुर्सी को व्यवस्थित रखना,टीचर की कुर्सी पर चोक,और डस्टर रखना ये सब मुझे ही करना होता था। 2 बजे स्कूल की छुट्टी होती थी।घर जाने के बाद खाना खाती और फिर थोड़ी देर कॉमिक्स पढ़ती।उसके बाद होम वर्क करती।पढ़ाई का नियम रोज एक जैसा था जो स्कूल मे पढ़ाया वो उसी दिन याद करना मेरा नियम था। शाम को 1 घंटा भगवान् के भजन करती थी।अपने जीवन को बचपन से ही योजनाबद्ध करके चलना भगवान् का उपहार था मेरे लिए। मेरी मम्मी लोगो के घर पानी भरते थे जिसमे एक घड़े के 1 रुपैया लेती थी।
उनकी इस तरह की परिस्थति को देखकर मैंने कभी किसी चीज के लिए ज़िद नहीं करी। मैं बहुत ही भावुक थी ,हर किसी पर मुझे बहुत जल्दी दया आ जाती थी मेरी भावुकता ,मेरा प्रेम ,मेरी समय बद्धत्ता, कार्य के प्रत्ति उत्साह,ईमानदारी ये सब उस ईश्वर की बहुत बड़ी देंन थी जिस पर मुझे अटूट भरोसा था।।
सत्यम शिवम सुंदरम
मेरा सच चरण 4- दादाजी ने किया पढ़ाई का विरोध
हम लोग दिवाली की छुट्टी पर दादा दादी के गाँव जाते थे क्योंकि वो महीना कार्तिक का महीना होता था जिस समय खेतो मे फसलो को काटा जाता था।मम्मी पापा भी दादा दादी की मदद के लिए फसल कटाने गाँव जाते थे।हम लोगो को अकेले उदयपुर छोड़ नहीं सकते थे इसलिए हम भी साथ जाते थे।मेरी पढ़ाई का क्रम न टूटे इसलिए मैं गाँव मे भी अपने साथ अपनी किताबे और कॉपीए साथ ले जाती थी।एक बार की बात है,हमेशा की तरह हम गाँव गए।पापा मम्मी सुबह जल्दी उठकर खेत चले गए ।मै और मेरे भाई बहन दादा जी के साथ घर पर ही रुके।पापा मम्मी और दादी जी के खेत जाने के बाद मैंने सब लोगो का चूल्हे पर खाना बनाया,हेण्डपम्प से लाकर पानी भरा उसके बाद पास के तालाब मे सबके कपडे धोये,भाई बहनों को निलाया।सब कामो से निवृत्त होकर बस पढ़ने ही बैठी कि दादा जी भाषण देने लगे कि लड़कियों को पढ़कर क्या करना है।तुझे तो खेत का कुछ काम ही नहीं आता।पढ़ लिखकर कौनसा चित्तोड़ का किला तोड़ लेगी।दादाजी के कर्कश शब्दों से मेरे स्वाभिमान को इतनी ठेस पहुंची कि मैं गुस्से से उठी और चारा काटने की दंतिनि ली और बिना किसी को बताए खेत के लिए रवाना हो गई।मैं जानती भी नहीं थी की हमारे खेत कहाँ है।गुस्से गुस्से मे चलती गई,रास्ते मे जो कोई मिलता उसे मेरे खेत का पता पूछती रही।रास्ता इतना सुनसान था लेकिन गुस्से की आग इतनी तेज थी की सुनसान रास्ते का कोई डर नहीं लगा।और आखिरकार मै पूछते पूछते अपने दादा जी के खेत पहुंच गई।वहां दूर एक पहाड़ी पर पापा मम्मी चारा काट रहे थे।जैसे ही उन्होंने मुझे देखा,अचंभित रह गए और पूछा कि तू यहाँ तक आई कैसे।मैं उनके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दे पाई और मम्मी को पास मे जाकर बोला कि मुझे चारा काटना है।मम्मी बिना कुछ कहे समझ गए कि जरूर दादाजी ने कुछ कहा है।मैं दंतिनि से चारा काटने की कोशिश करने लगी ,जैसे ही मैं चारा काटने लगी कि मेरी ऊँगली मे कट लग गया।इतना खून बहने लगा पर वहां कोई साधन नहीं था।मम्मी ने तुरंत वहां से एक जड़ी बूटी तोड़ कर मेरी ऊँगली पर लगाईं और खून रुक गए ।अब तो मम्मी पापा ने चारा काटने के लिए बिल्कुल मना कर दिया।पर अपने स्वाभिमान को गिरने नहीं देना चाहती थी जो दादा जी ने जगाया था।मैं कट लगी ऊँगली से फिर से चारा काटने लगी।और लगातार दिन भर चारा काटा।
शाम को घर जाकर दादा जी को बोला कि ये देखो दादा जी मैने इतना चारा अकेले काटा हैं फिर कभी मुझे कमजोर मत समझना और मेरी पढाई की अवहेलना मत करना। मेरी बात सुनकर दादा जी को भी अफ़सोस हुआ कि मेरी बात को ये लड़की इतना गंभीर ले लेगी कभी सोचा नहीं था।मैं खुद भी विश्वास नहीं कर पाई कि कैसे मै खेत पहुँच गई और कैसे चारा काट लिया।लेकिन जब स्वाभिमान जागता है तो इंसान कुछ भी कर सकता है।ईश्वर ने मेरे स्वाभिमान की रक्षा करके उनके साक्षात होने का सच्चा सबूत दिया।। सत्यम शिवम सुंदरम
शाम को घर जाकर दादा जी को बोला कि ये देखो दादा जी मैने इतना चारा अकेले काटा हैं फिर कभी मुझे कमजोर मत समझना और मेरी पढाई की अवहेलना मत करना। मेरी बात सुनकर दादा जी को भी अफ़सोस हुआ कि मेरी बात को ये लड़की इतना गंभीर ले लेगी कभी सोचा नहीं था।मैं खुद भी विश्वास नहीं कर पाई कि कैसे मै खेत पहुँच गई और कैसे चारा काट लिया।लेकिन जब स्वाभिमान जागता है तो इंसान कुछ भी कर सकता है।ईश्वर ने मेरे स्वाभिमान की रक्षा करके उनके साक्षात होने का सच्चा सबूत दिया।। सत्यम शिवम सुंदरम
मेरा सच चरण 5- मेरी चिट्ठी
हर साल वार्षिक परीक्षा खत्म होते ही मैं नाना जो को पोस्टकार्ड मे चिट्टी लिखती थी।। चिट्टी की पंक्तिया इस प्रकार थी- सेवामें,
श्रीमान नानाजी को लिखी उदयपुर से आपकी दोहिती राधा का चरण स्पर्श मालूम होवे।हम सब यहाँ पर राजी ख़ुशी मजे मे है।आशा करती हूँ कि आप सब भी वहाँ मजे मे होंगे।आगे समाचार यह है कि हमारी गर्मी की छुट्टियां पड़ गई है इसलिये आप हमें लेने आ जाये। चिठ्ठी पढ़ते ही तुरंत उदयपुर आ जाये। मुझे आपकी बहुत याद आ रही है।सभी मामा जी और मामी जी को भी मेरा चरण स्पर्श कहना।छोटी मासी को भी धोक देती हूं।चिठ्ठी पढ़ने वाले को भी मेरा नमस्कार।।।
आगे क्या लिखू आप खुद ही समझदार है।।।
"फूल हैं गुलाब का सुगंध तो लिया करो
पत्र है दोहिती का जवाब तो दिया करो"
"गरम गरम हलवा खाया न जाये।
नाना नानी की याद मे रहा न जाए"।
पत्र पढ़ते ही जरूर आ जाना।भूलना मत।।
आपकी दोहिती।
राधा
इस प्रकार मैं नाना जी को चिठ्ठी लिखती थी।। नाना जो को 1 सप्ताह मे चिठ्ठी मिल जाती थी।जैसे ही उनको चिठ्ठी मिलती वो पूरे गाँव मे चिठ्ठी पढ़वाने के लिए घूमते रहते तब जाकर कोई चिठ्ठी पढ़ने वाला मिलता। जैसे ही चिठ्ठी सुनते वो इतने प्रफुलित्त हो जाते कि उस रात मारे ख़ुशी के वो सो नहीं पाते थे।अगले ही दिन नाना जी हमें लेने आ जाते थे।जिस दिन नाना जी आने वाले होते थे उस दिन सुबह से ही कौआ हमारी छत पर काँव काँव करता था।कौवे की काँव काँव से ही हम समझ जाते कि नाना जी आने वाले है।।और वास्तव मे नाना जी आ ही जाते । उस समय कौवे की काँव काँव किसी अतिथि के आने का सच्चा सूचक था। "सत्यम शिवम् सुंदरम" ।।श्रीमान नानाजी को लिखी उदयपुर से आपकी दोहिती राधा का चरण स्पर्श मालूम होवे।हम सब यहाँ पर राजी ख़ुशी मजे मे है।आशा करती हूँ कि आप सब भी वहाँ मजे मे होंगे।आगे समाचार यह है कि हमारी गर्मी की छुट्टियां पड़ गई है इसलिये आप हमें लेने आ जाये। चिठ्ठी पढ़ते ही तुरंत उदयपुर आ जाये। मुझे आपकी बहुत याद आ रही है।सभी मामा जी और मामी जी को भी मेरा चरण स्पर्श कहना।छोटी मासी को भी धोक देती हूं।चिठ्ठी पढ़ने वाले को भी मेरा नमस्कार।।।
आगे क्या लिखू आप खुद ही समझदार है।।।
"फूल हैं गुलाब का सुगंध तो लिया करो
पत्र है दोहिती का जवाब तो दिया करो"
"गरम गरम हलवा खाया न जाये।
पत्र पढ़ते ही जरूर आ जाना।भूलना मत।।
आपकी दोहिती।
राधा
मेरा सच चरण 6- वो निश्छल प्रेम
इस तरह चिठ्ठी पढ़ते ही नाना जी हमें लेने आ जाते। मम्मी हल्दी वाले परांठे साथ मे देकर हमें विदा करती थी।मम्मी की आँखे नम हो जाती थी ,आखिर पुरे 2 महीने के लिए मम्मी से दूर जो जाते थे।पर मुझे और मेरे भाई को ननिहाल जाते हुए इतनी ख़ुशी होती थी कि हमें मम्मी की निराशा भी नहीं दिखती थी।हम तो ऐसे नानाजी के साथ जाते थे जैसे किसी कैदखाने से छूट कर अपने घर जा रहे हो।पापा की रोज रोज की डांट और प्रतिबन्ध से कुछ दिनों के लिए मुक्ति जो मिल रही थी।।उदयपुर से बस मे बैठते और गोगुंदा उतरते थे।गोगुंदा से मेरे ननिहाल जाने के लिए केवल 2 ही बसे थी जो इतनी भरी हुई होती थी कि ऊपर नीचे लोग लटककर जाते थे
।।उस बस की भीड़ देखकर ही हम घबरा जाते थे।इसलिए नाना जी गोगुंदा से हमें पैदल ले जाते थे। मेरे भाई को नाना जी अपने कंधे पर बिठाते थे और एक हाथ से मेरी ऊँगली पकड़कर ले जाते थे।।थोड़ी दूर तक चलते और फिर एक बहुत बड़ा पेड़ आता था,वही पर एक कुआ होता था।हम उस पेड़ की छाया मे बैठते और नाना जी कुए से पानी निकालते।फिर वहीँ बैठकर हल्दी वाले पराठे खाते।। थोड़ी देर विश्राम करके फिर नानाजी हमको पैदल चलाते और हँसाते हँसाते हमें गाँव ले जाते।। वहां गाँव मे नानी जी हमारा बेसब्री से इन्तजार कर रही होती थी।जैसे ही हमें देखती थी ख़ुशी से फूली नहीं समाती थी और मुझे और मेरे भाई को चूम चुम कर लाड़ करती थी।।नाना जी का एक कच्चे केलू का कमरा था जिसमे एक छोटी सी चिमनी का उजाला करा होता था
क्योंकि उस पुरे गाँव मे कही लाइट नहींथी।चिमनी के उजाले मे हम सब खाना खाते थे और ढेर सारी बाते करते करते सो जाते थे। उन अभावो के बीच मे जो निश्छल प्रेम होता था वो अनमोल था।
आज भी उन स्मृतियों को भूल नही पाती हूँ।अब नाना नानी नही रहे,लेकिन दिल के किसी कोने मे वो आज भी मुझे आवाज देते है,जिसे कई बार मैं महसूस करती हूं।अच्छे और सच्चे लोग इस दुनिया मे जाने के बाद भी अमर हो जाते है और यही कारण है कि उनके उस टूटे फूटे जर्जर घर पर आज भी उनके होने का अहसास होता है
,और मुझे ही नहीं बल्कि किसी अनजान शख्स को भी वहाँ ले जाया जाए तो उसे भी कुछ महसूस हो जाता है,क्योंकि सत्य कभी नहीं मरता,वो तो खुशबू बनकर हमेशा जिंदा रहता है।
।।उस बस की भीड़ देखकर ही हम घबरा जाते थे।इसलिए नाना जी गोगुंदा से हमें पैदल ले जाते थे। मेरे भाई को नाना जी अपने कंधे पर बिठाते थे और एक हाथ से मेरी ऊँगली पकड़कर ले जाते थे।।थोड़ी दूर तक चलते और फिर एक बहुत बड़ा पेड़ आता था,वही पर एक कुआ होता था।हम उस पेड़ की छाया मे बैठते और नाना जी कुए से पानी निकालते।फिर वहीँ बैठकर हल्दी वाले पराठे खाते।। थोड़ी देर विश्राम करके फिर नानाजी हमको पैदल चलाते और हँसाते हँसाते हमें गाँव ले जाते।। वहां गाँव मे नानी जी हमारा बेसब्री से इन्तजार कर रही होती थी।जैसे ही हमें देखती थी ख़ुशी से फूली नहीं समाती थी और मुझे और मेरे भाई को चूम चुम कर लाड़ करती थी।।नाना जी का एक कच्चे केलू का कमरा था जिसमे एक छोटी सी चिमनी का उजाला करा होता था
क्योंकि उस पुरे गाँव मे कही लाइट नहींथी।चिमनी के उजाले मे हम सब खाना खाते थे और ढेर सारी बाते करते करते सो जाते थे। उन अभावो के बीच मे जो निश्छल प्रेम होता था वो अनमोल था।
आज भी उन स्मृतियों को भूल नही पाती हूँ।अब नाना नानी नही रहे,लेकिन दिल के किसी कोने मे वो आज भी मुझे आवाज देते है,जिसे कई बार मैं महसूस करती हूं।अच्छे और सच्चे लोग इस दुनिया मे जाने के बाद भी अमर हो जाते है और यही कारण है कि उनके उस टूटे फूटे जर्जर घर पर आज भी उनके होने का अहसास होता है
,और मुझे ही नहीं बल्कि किसी अनजान शख्स को भी वहाँ ले जाया जाए तो उसे भी कुछ महसूस हो जाता है,क्योंकि सत्य कभी नहीं मरता,वो तो खुशबू बनकर हमेशा जिंदा रहता है।
नाना जी माता जी के भक्त थे और उनमें एक दिव्य तेज था,जिनका स्पर्श पाकर बीमार इंसान भी स्वस्थ हो जाता था।
आज भी गाँव के बीचों बीच मेरे नाना नानी की समाधि बनी हुई है,जहाँ आते जाते लोग उन्हें प्रणाम करते है।
आज भी गाँव के बीचों बीच मेरे नाना नानी की समाधि बनी हुई है,जहाँ आते जाते लोग उन्हें प्रणाम करते है।
"गया फूल थारी रह गई रे वासना
रह गयो रे अमर नाम"
मेरा सच चरण 7- भक्ति की शुरुआत
नाना जी के यहाँ 2 महीने की छुट्टियां कब निकल जाती थी पता ही नहीं चलता।रोज सुबह सूर्य उगने से पहले मैं नानाजी के साथ खेत चली जाती थी।
नाना जी के साथ खेत मे उनकी मदद कराती थी।हालांकि खेत मे काम करने की आदत नहीं थी पर नाना नानी का प्यार इतना था कि हमें कभी थकावट नहीं होती थी।पानी की बहुत किल्लत थी,
इसलिए सप्ताह मे एक दिन नहाने को मिलता वो भी नानी जी तालाब या किसी कुँए पर ले जाकर निलाती थी।नानाजी के बिल्कुल घर के सामने देवी माता जी का मंदिर था जिनका नाम पिपलाज माता जी था।बचपन से ही मम्मी के साथ रहकर माताजी की आराधना करते थे।हर शाम नाना नानी के साथ उस मंदिर मे बैठकर भजन गाते थे।भजन के साथ इतनी भावुक हो जाती थी कि वो माता की मूरत केवल मूरत नहीं थी बल्कि मेरे लिए वो एक साक्षात देवी ही थी जिसे मैंने अपने मन और मस्तिष्क मे बिठा दिया था और जिस तरह से मैने उस मूरत को अपने मन मे बिठाया था उसी तरह से वो मूरत भी मुझे हमेशा कोई न कोई साक्षात प्रमाण देती थी ,
ये वो ही पिपलाज माता जी है,जहाँ से मेरी भक्ति की शुरआत हुई और इन्ही माता जी ने मुझे आगे चलकर श्री कृष्ण के दर्शन कराए,जिसे मैं अपनी कहानी मे बताऊंगी। इसलियें कहते है कि आस्था और विश्वास अगर सच्चा है तो पत्थर मे भी भगवान् नजर आते है।
"सत्यम शिवम सुंदरम"।।
मेरा सच चरण 8- पहली बार देखी भक्ति की शक्ति
2 महीने की छुट्टियां बिताकर नानाजी 1 जुलाई को वापस उदयपुर छोड़ने आते थे।आते समय नानाजी हमें पैदल नहीं लाते थे क्योंकि उस समय मै और मेरा भाई इतने भावुक हो जाते थे कि एक एक कदम भी भारी लगता था।ननिहाल के लोगो से बिछड़ कर आना हमारे लिए किसी दुल्हन की विदाई से कम नहीं होता था।नानाजी सुबह की सबसे पहली बस जो 6 बजे आती थी उसमें बैठाते थे।गाँव के कुछ रिश्तेदार भी बस तक छोड़ने आते थे।जैसे ही बस आती कि हमारा रोना फुट पड़ता।
मेरे नानाजी हाथ खींच कर जबर्दस्ती बस मे बिठाते और हम पीछे रह गई हमारी नानी को तब तक देखते रहते थे जब तक वो आँखों से ओजल न हो जाए।पूरी बस के लोग हमारे इस दृश्य को देखकर हैरान हो जाते कि कितना गहरा प्यार है इनका अपने नाना नानी से।। यहाँ तक कि निशानी के तौर पर मै नानाजी के खेत का एक पत्थर या एक लकड़ी का टुकड़ा साथ मे लेकर आती जिसे घर जाकर उसे पॉलीथिन चढ़ाकर रोज उसको छू कर नाना नानी को महसूस करते थे।जैसे ही उदयपुर आ जाता कि मन और मस्तिष्क पर एक सन्नाटा छा जाता।घर पर आने के बाद एक सप्ताह मोन रहते,न किसी से बात करते थे,ना ही किसी मे मन लगता था। बड़ी मुश्किल से 15 से 20 दिन सामान्य होने मे लग जाते।।पिपलाज माता जी की तस्वीर के आगे रोज हाथ जोड़कर विनती करते कि कब नवरात्रि आएगी और हमें नाना नानी के यहाँ जाने का अवसर मिलेगा क्योकि गर्मी की छुट्टियों के बाद नवरात्रि मे एक बार वापस ननिहाल जाने का मौका मिलता था।
एक बार की बात है, जब मै 7वी कक्षा मे थी और मेरा नवरात्रि का व्रत था।मुझे मीठा खाने का बहुत शौक था।पड़ोस मे किसी की शादी थी तो वहां से मीठी बूंदी आई हुई थी।मैं भूल गई कि मेरा व्रत है और चार पांच मुट्ठी खा गई।थोड़ी देर बाद मम्मी ने बोला कि ये क्या किया तूने?व्रत तोड़ दिया!अब तेरी रोटी डूब जायेगी।।रोटी डूबने का मतलब ये था कि व्रत के अंतिम दिन किसी तालाब या कुंड मे एक रोटी बनाकर पानी मे छोड़ते थे।।ऐसा माना जाता था कि जिसने व्रत का अच्छे से पालन किया होगा उसकी रोटी पानी मे तैरेगी और जिसने व्रत भंग किया होगा उसकी रोटी पानी मे डूबेगी।।इस मान्यता के अनुसार ही मम्मी ने मेरे व्रत टूटने पर ,रोटी डूबने वाली बात कही।।। मम्मी की बात सुनकर मै चिंता मे आ गई कि अगर मेरी रोटी डूब गई तो सब हँसेंगे।।उस दिन मेरा नवरात्रि का दूसरा ही व्रत था। मै पूरी नवरात्रि मातारानी के सामने बैठकर यही कहती रही कि मुझे माफ़ कर देना जो मैंने गलती से बूंदी खा ली,पर कृपया मेरी रोटी मत डुबाना।।इस तरह नवरात्रि का अंतिम दिन भी आ गया।।उस दिन पूजा के लिए जा रहे थे तब मन मे कोई ख़ुशी नहीं थी बल्कि रोटी डूबने का डर लग रहा था,पर माता जी को मन ही मन याद कर रही थी। मम्मी ने पूजा करवाई और फिर रोटी लेकर डरते डरते धीरे से पानी मे छोड़ी।।और अटूट आस्था ने चमत्कार दिखाया कि रोटी तब तक नहीं डूबी जब तक वो पानी मे पूरी तरह गल न गई।यहाँ तक कि पानी मे वो रोटी बहुत दूर तक तैरती रही।
वास्तव मे भक्ति मे शक्ति होती है ये मैंने प्रत्यक्ष देखा है।।राम का नाम लेने मात्र से पत्थर पानी मे तैर सकता है तो मेरी रोटी क्यों नहीं ?
मेरे नानाजी हाथ खींच कर जबर्दस्ती बस मे बिठाते और हम पीछे रह गई हमारी नानी को तब तक देखते रहते थे जब तक वो आँखों से ओजल न हो जाए।पूरी बस के लोग हमारे इस दृश्य को देखकर हैरान हो जाते कि कितना गहरा प्यार है इनका अपने नाना नानी से।। यहाँ तक कि निशानी के तौर पर मै नानाजी के खेत का एक पत्थर या एक लकड़ी का टुकड़ा साथ मे लेकर आती जिसे घर जाकर उसे पॉलीथिन चढ़ाकर रोज उसको छू कर नाना नानी को महसूस करते थे।जैसे ही उदयपुर आ जाता कि मन और मस्तिष्क पर एक सन्नाटा छा जाता।घर पर आने के बाद एक सप्ताह मोन रहते,न किसी से बात करते थे,ना ही किसी मे मन लगता था। बड़ी मुश्किल से 15 से 20 दिन सामान्य होने मे लग जाते।।पिपलाज माता जी की तस्वीर के आगे रोज हाथ जोड़कर विनती करते कि कब नवरात्रि आएगी और हमें नाना नानी के यहाँ जाने का अवसर मिलेगा क्योकि गर्मी की छुट्टियों के बाद नवरात्रि मे एक बार वापस ननिहाल जाने का मौका मिलता था।
एक बार की बात है, जब मै 7वी कक्षा मे थी और मेरा नवरात्रि का व्रत था।मुझे मीठा खाने का बहुत शौक था।पड़ोस मे किसी की शादी थी तो वहां से मीठी बूंदी आई हुई थी।मैं भूल गई कि मेरा व्रत है और चार पांच मुट्ठी खा गई।थोड़ी देर बाद मम्मी ने बोला कि ये क्या किया तूने?व्रत तोड़ दिया!अब तेरी रोटी डूब जायेगी।।रोटी डूबने का मतलब ये था कि व्रत के अंतिम दिन किसी तालाब या कुंड मे एक रोटी बनाकर पानी मे छोड़ते थे।।ऐसा माना जाता था कि जिसने व्रत का अच्छे से पालन किया होगा उसकी रोटी पानी मे तैरेगी और जिसने व्रत भंग किया होगा उसकी रोटी पानी मे डूबेगी।।इस मान्यता के अनुसार ही मम्मी ने मेरे व्रत टूटने पर ,रोटी डूबने वाली बात कही।।। मम्मी की बात सुनकर मै चिंता मे आ गई कि अगर मेरी रोटी डूब गई तो सब हँसेंगे।।उस दिन मेरा नवरात्रि का दूसरा ही व्रत था। मै पूरी नवरात्रि मातारानी के सामने बैठकर यही कहती रही कि मुझे माफ़ कर देना जो मैंने गलती से बूंदी खा ली,पर कृपया मेरी रोटी मत डुबाना।।इस तरह नवरात्रि का अंतिम दिन भी आ गया।।उस दिन पूजा के लिए जा रहे थे तब मन मे कोई ख़ुशी नहीं थी बल्कि रोटी डूबने का डर लग रहा था,पर माता जी को मन ही मन याद कर रही थी। मम्मी ने पूजा करवाई और फिर रोटी लेकर डरते डरते धीरे से पानी मे छोड़ी।।और अटूट आस्था ने चमत्कार दिखाया कि रोटी तब तक नहीं डूबी जब तक वो पानी मे पूरी तरह गल न गई।यहाँ तक कि पानी मे वो रोटी बहुत दूर तक तैरती रही।
वास्तव मे भक्ति मे शक्ति होती है ये मैंने प्रत्यक्ष देखा है।।राम का नाम लेने मात्र से पत्थर पानी मे तैर सकता है तो मेरी रोटी क्यों नहीं ?
"सत्यम शिवम्। सुंदरम"।।
मेरा सच चरण 9- ईश्वर के प्रति मेरी नारजगी का अनोखा दृश्य
इस तरह दिन बीतते गए और मै कक्षा 8वी मे आ गई। कक्षा 8वी उस स्कूल मे अंतिम साल था।मुझे पुरे स्कूल मे फर्स्ट आना था इसलिए बहुत मेहनत करनी थी।उस साल मैं कही नहीं गई यहाँ तक कि ननिहाल भी नहीं।पुरे जोर शोर से पढाई चल रही थी।मेरी कक्षा मे 4 लडकिया पढ़ती थी जो मेरे मौहल्ले मे ही रहती थी।
वो सब लडकिया पढ़ने के लिए रात को मेरे घर सोने आती थी। मेरे घर मे जगह नहीं थी,केवल एक कमरा और एक रसोई ही थी।हम 4 लडकिया उस छोटी सी रसोई मे पढ़ती थी।रसोई इतनी छोटी थी कि हमारे पैर भी लंबे नहीं होते थे इसलिए हम लोग पूरी रात सोते नहीं थे।रात भर maths के सवाल करते थे जिससे हमें नींद ही नहीं आती थी। पापा अक्सर मुझे इस बात पर डांटते थे कि कि तूने क्या घर मे स्कूल खोल रखा है? पापा की रोज डॉट सुनती थी पर सहेलियों को घर आने के लिए मना नहीं कर पाती थी
अप्रैल मे वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई।मैने school top करने के उद्देश्य से पूरी मेहनत करी थी,परन्तु रिजल्ट आया तो पाया कि एक लड़का मुझसे 13 नंबर से आगे हो गया और मै स्कूल टॉप से वंचित रह गई।पर पूरे स्कूल मे मेरा दूसरा स्थान था।सभी टीचर मेरी प्रशंसा कर रहे थे पर मुझे बिल्कुल ख़ुशी नहीं हुई क्योकि मेरा सपना स्कूल टॉप का था। उसी दिन स्कूल मे हमारा विदाई का दिन था।एक तरफ स्कूल टॉप न करने का गम था तो दूसरी तरफ स्कूल से विदाई लेने का गम था। सभी टीचर से इतना लगाव और प्रेम हो गया था क़ि उनसे विदा होना भारी लग रहा था। पर सच तो यही था कि आगे की पढाई के लिए स्कूल तो छोड़ना ही था।सबसे आशीर्वाद लिया और विदाई ली। घर जाकर भगवान की तस्वीर के आगे हाथ जोड़े और नाराजगी जताई कि मुझे स्कूल टॉप क्यों नहीं कराया? नाराजगी इतनी गहरी थी कि नासमझी मे आकर भगवान् की सब तस्वीरे नीचे पटक दी।।उस समय मुझे नहीं पता था कि तस्वीरे किन किन देवता की थी।।बाद मे जब गुस्सा ठंडा हुआ तो पता चला कि केवल 9 ग्रह देवता यानि कि शनिदेव की तस्वीर ही फूटी बाकी सारी सही सलामत थी।
वो मेरे जीवन संघर्ष की एक रचना थी जिसे स्वयं ईश्वर ने बड़ी विधि से रचा था। उसी समय से मेरे जीवन की परीक्षा शुरू हो गई थी।शनि का क्रोध ही मेरे सत्य की असली कसौटी थी जिसे मैंने अपने जीवन के अब तक के सफर मे कई बार दी है।लेकिन शनिदेव की इसी रचना ने मुझे 20 साल बाद साक्षात शानिदेवजी के दर्शन कराए जो मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है और उस स्वप्न दृश्य को मैं कई जन्मों तक नहीं भूल सकती।किस तरह शनिदेव जी के दर्शन मुझे प्राप्त हुए,उसकी झांकी का अनुभव मैं आपके साथ अपनी कहानी मे करूँगी।
बस फिर क्या था आये दिन पापा की डांट और ताने मिलते थे। शरारत चाहे भाई बहिन करे पर डॉट हमेशा मैं ही झेलती थी।मैं जितना पापा को खुश करने की कोशिश करती पापा उतना ही क्रोधित होते थे। कितना भी अच्छा खाना बना लु पर पापा को कभी पसंद नहीं आता था।लेकिन भगवान् के प्रति इतनी आस्था थी कि हर छोटी छोटी बात के लिए भगवान् के सामने खड़ी हो जाती
और उनसे इस तरह बात करती जैसे घर के सदस्यों से। जब भी पापा डांटते ,जाकर भगवान् के सामने ही रोती थी ।एक तरफ भगवान मुझे रुलाते तो दूसरी तरफ मेरे खुश होने का कोई न कोई मार्ग भी मेरे सामने ले आते।पापा केवल डांटते ही नही थे बल्कि पिटाई भी करते थे जो मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता था ,लेकिन आश्चर्य की बात ये होती थी कि जिस दिन भी पापा मुझे मारते थे,उसी दिन शाम को कही न कही से सत्संग या रात्रि जागरण का न्योता आ जाता था।हालांकि पापा हम बच्चो को कही जाने नही देते थे,पर फिर भी मै मम्मी से ज़िद करके उनके साथ भजन मे चली जाती थी।मुझे भजन मे नाचना और गाना बहुत अच्छा लगता था।उन भजनों मे इतना मग्न हो जाती कि पापा की करी हुई पिटाई भी भूल जाती थी।
जहाँ एक तरफ पापा की सख्ती के कारण परेशान हो जाती तो दूसरी तरफ भजन रूपी शीतल जल से मै वापस शीतल हो जाती ।इतनी छोटी उम्र मे भजन के प्रति जो लगाव जागा, वो किसी ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं था।
एक दिन की बात है।हम सब शाम को खाना खा रहे थे और पापा ने मुझसे एक प्रश्न किया कि बेटा राधा,बता,तू बाप कर्मी है कि आप कर्मी ।मुझे प्रश्न समझ मे नहीं आया।
पापा ने फिर पूछा कि तुम इतने अच्छे स्कूल मे पढ़ते हो और एक सवाल का जवाब भी नही दे पाए।मैंने बिना सोचे समझे,तुक्के से ही बोल दिया कि मैं आप कर्मी हु।पापा ने कहा कि जवाब तो तैने सही दिया है,पर कैसे होता है आप कर्मी ।मुझे इसका कोई जवाब नही आता था,क्योंकि मैंने तो बिना उस प्रश्न को समझे ही उत्तर दे दिया था।पर पापा ने मुझे एक राजा की कहानी बताई थी,जिसमे बाप कर्मी और आप कर्मी का पूरा अर्थ था।वो कहानी मैं भूल चुकी थी,पर उसका अर्थ मुझे आज अपने जीवन की कहानी से पूरी तरह से मिल गया था।ये भी एक सत्य का चमत्कार ही था कि मैंने बिना प्रश्न को समझे जो उत्तर दिया वो ही सच था और उसी के आधार पर ही मेरे जीवन की रचना थी जिसे आज जाकर मुझे समझ मे आया। और जब आप लोग मेरे सभी ब्लॉग देखेंगे तो आप भी समझ जाएंगे कि मेरा सच क्या है।
"सत्यम शिवम। सुंदरम"।।
अप्रैल मे वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई।मैने school top करने के उद्देश्य से पूरी मेहनत करी थी,परन्तु रिजल्ट आया तो पाया कि एक लड़का मुझसे 13 नंबर से आगे हो गया और मै स्कूल टॉप से वंचित रह गई।पर पूरे स्कूल मे मेरा दूसरा स्थान था।सभी टीचर मेरी प्रशंसा कर रहे थे पर मुझे बिल्कुल ख़ुशी नहीं हुई क्योकि मेरा सपना स्कूल टॉप का था। उसी दिन स्कूल मे हमारा विदाई का दिन था।एक तरफ स्कूल टॉप न करने का गम था तो दूसरी तरफ स्कूल से विदाई लेने का गम था। सभी टीचर से इतना लगाव और प्रेम हो गया था क़ि उनसे विदा होना भारी लग रहा था। पर सच तो यही था कि आगे की पढाई के लिए स्कूल तो छोड़ना ही था।सबसे आशीर्वाद लिया और विदाई ली। घर जाकर भगवान की तस्वीर के आगे हाथ जोड़े और नाराजगी जताई कि मुझे स्कूल टॉप क्यों नहीं कराया? नाराजगी इतनी गहरी थी कि नासमझी मे आकर भगवान् की सब तस्वीरे नीचे पटक दी।।उस समय मुझे नहीं पता था कि तस्वीरे किन किन देवता की थी।।बाद मे जब गुस्सा ठंडा हुआ तो पता चला कि केवल 9 ग्रह देवता यानि कि शनिदेव की तस्वीर ही फूटी बाकी सारी सही सलामत थी।
बस फिर क्या था आये दिन पापा की डांट और ताने मिलते थे। शरारत चाहे भाई बहिन करे पर डॉट हमेशा मैं ही झेलती थी।मैं जितना पापा को खुश करने की कोशिश करती पापा उतना ही क्रोधित होते थे। कितना भी अच्छा खाना बना लु पर पापा को कभी पसंद नहीं आता था।लेकिन भगवान् के प्रति इतनी आस्था थी कि हर छोटी छोटी बात के लिए भगवान् के सामने खड़ी हो जाती
एक दिन की बात है।हम सब शाम को खाना खा रहे थे और पापा ने मुझसे एक प्रश्न किया कि बेटा राधा,बता,तू बाप कर्मी है कि आप कर्मी ।मुझे प्रश्न समझ मे नहीं आया।
"सत्यम शिवम। सुंदरम"।।
मेरा सच-चरण 10 माँ ने जगाया मेरा स्वाभिमान
8वी कक्षा के बाद अब वापस समस्या हो गई कि कौनसे स्कूल मे एडमिशन लिया जाए।पहले तो सहेली के पापा ने फ्री मे अपने स्कूल मे पढ़ा दिया पर अब कहाँ पढ़े?पापा ज्यादा फ़ीस भरके प्राइवेट मे नहीं पढ़ा सकते थे।पापा आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे पर मुझे पढ़ने की इच्छा थी इसलिए मैंने मम्मी से जिद करी कि भले ही मुझे सरकारी मे पढ़ाओ पर मै पढ़ना चाहती हु।मम्मी ने पापा को समझाया और बड़ी मुश्किल से पापा माने।उसी सरकारी स्कूल मे मेरा एडमिशन कराया जहा 3 साल पहले मैंने एक दिन का स्कूल attend करके टीसी ले ली थी।
9वी कक्षा मे आते ही पढाई भी कठिन हो गई।
इसलिए मैंने भी दृढ निश्यय कर लिया कि अब केवल अपनी पढाई पर ही ध्यान देना है।
सब जगह जाना भी छोड़ दिया।अब तो पापा मम्मी के साथ गाँव भी जाना छोड़ दिया।अपनी पढाई के लिए अकेले रहना मंजूर था,पर स्कूल की एक भी छुट्टी मंजूर नहीं थी।।लेकिन कहते है कि जब भी इंसान सही रास्ता चुनता है या कोई संकल्प लेता है तो नियति उसकी परीक्षा लेती ही है।
उस स्कूल की व्यवस्था अच्छी नहीं थी।हर कक्षाओं की दीवारे, छत, फर्श सब टूटे हुए थे।जब भी बारिश आती हम इधर उधर शिफ्ट हो हो कर पढ़ते थे।सर्दी मे खुली छत पर तो गर्मी मे बाहर पेड़ के नीचे।।थोड़े दिन बाद स्कूल वालो ने स्कूल व्यवस्था की मांग को लेकर कलेक्टरी पर धरना देने का प्लान बनाया।।हम सब बच्चो को साथ मे लेकर रैली निकाली।
और पूरे शहर मे नारे लगाते लगाते जाते कि हमारी मांगे पूरी करो।मुझे बहुत शर्म आती थी ये सब करते हुए।मै लाइन मे पीछे पीछे मुँह छिपाते हुए चलती थी,पर क्योकि मेरी आवाज बहुत बुलंद थी इसलिए मुझे ही टीचर आगे आकर नारे लगाने के लिए बोलते थे।मुझे टीचर की बात को मानना पड़ता था।इसलिए सबसे आगे झंडा लेकर चलना पड़ता था और नारे लगाने पड़ते थे।।बहुत बार हम इसी तरह आये दिन रैली निकालते थे।स्कूल की कई लडकिया मुझे लाउड स्पीकर कहकर चिढ़ाती थी।।9वी कक्षा का सफर भी पूरा हुआ और गर्मी की छुट्टियां आ गई। हमेशा की तरह इस बार भी नानाजी को चिठ्ठी लिख रही थी कि उसी समय मम्मी ने एक ताना मार दिया कि तू इतनी बड़ी हो गई है पर तुजे कुछ नहीं आता।इस उम्र मे लडकिया कितना कुछ करती है।कोई सिलाई सीखती है तो कोई घरों मे काम करके पैसा कमाती है।तुजे तो बस पढाई और पढाई से छूटकर नाना जी के यहाँ जाना।इसके अलावा तू करती क्या है? मम्मी के ये कटु वचन सुनकर मैंने चिठ्ठी फाड़ दी और निश्यय किया कि अब मै छुट्टियों मे नाना नानी के यहां नहीं जाउंगी और मम्मी को काम करके बताउंगी।
अगले दिन से मम्मी के साथ साथ गोबर के कंडे बनाती,चूल्हा जलाने के लिए लकड़िया बिन कर लाती, पडोसी के घर पानी भरती और झाड़ू पोछे करती जहाँ मम्मी काम करते थे।।इतना करने के बाद भी मेरा मन शांत नहीं था।रह रह कर मम्मी का ताना दिमाग मे घूम रहा था और मन बार बार यही कह रहा था कि मुझे कुछ सीखना है,पर क्या सीखू ये पता नहीं चल रहा था।सिलाई मे रूचि बिल्कुल नहीं थी ,तो वो मैं करना नहीं चाहती थी।मम्मी ने तो गुस्से गुस्से मे मुझे डॉट दिया पर मेरे दिल मे उनकी बात इतनी गहराई तक उतर गई कि रात को नींद ही नहीं आती थी।शायद ये मेरा स्वभाव ही था कि काम चाहे कितना भी करा लो पर गलत बात बर्दास्त नहीं होती थी।इसी स्वाभिमान ने मुझे जीवन मे वो सब कराया जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था।जब से मम्मी ने मुझे ताना दिया मैं रोज भगवान् के सामने खड़ी होकर प्रार्थना करती कि आप ही मुझे रास्ता दिखाओ।
एक दिन की बात है मेरी एक दूर की भाभी जिसे मैं जानती भी नहीं थी,मेरे घर आई और मम्मी से कहा कि आपकी बेटी अगर फ्री हो तो मेरे ब्यूटी पार्लर भेजना।इसको काम भी सीखा दूंगी और मुझे भी मदद मिल जायेगी। मैं नहीं जानती थी कि ब्यूटी पार्लर क्या होता है पर मैं कुछ नया सीखना चाहती थी तो मैंने मम्मी से जिद करी कि मैं इनके ब्यूटी पार्लर जाना चाहती हु।मम्मी ने हां करी और मैं रोज वहां जाने लगी।उन भाभी से मेरा दोस्त जैसा व्यवहार हो गया और मुझे वो काम पसंद आ गया। अब तो मैं रोज टाइम से घर का काम करके ब्यूटी पार्लर जाने लगी।
9वी कक्षा मे आते ही पढाई भी कठिन हो गई।
सब जगह जाना भी छोड़ दिया।अब तो पापा मम्मी के साथ गाँव भी जाना छोड़ दिया।अपनी पढाई के लिए अकेले रहना मंजूर था,पर स्कूल की एक भी छुट्टी मंजूर नहीं थी।।लेकिन कहते है कि जब भी इंसान सही रास्ता चुनता है या कोई संकल्प लेता है तो नियति उसकी परीक्षा लेती ही है।
उस स्कूल की व्यवस्था अच्छी नहीं थी।हर कक्षाओं की दीवारे, छत, फर्श सब टूटे हुए थे।जब भी बारिश आती हम इधर उधर शिफ्ट हो हो कर पढ़ते थे।सर्दी मे खुली छत पर तो गर्मी मे बाहर पेड़ के नीचे।।थोड़े दिन बाद स्कूल वालो ने स्कूल व्यवस्था की मांग को लेकर कलेक्टरी पर धरना देने का प्लान बनाया।।हम सब बच्चो को साथ मे लेकर रैली निकाली।
एक दिन की बात है मेरी एक दूर की भाभी जिसे मैं जानती भी नहीं थी,मेरे घर आई और मम्मी से कहा कि आपकी बेटी अगर फ्री हो तो मेरे ब्यूटी पार्लर भेजना।इसको काम भी सीखा दूंगी और मुझे भी मदद मिल जायेगी। मैं नहीं जानती थी कि ब्यूटी पार्लर क्या होता है पर मैं कुछ नया सीखना चाहती थी तो मैंने मम्मी से जिद करी कि मैं इनके ब्यूटी पार्लर जाना चाहती हु।मम्मी ने हां करी और मैं रोज वहां जाने लगी।उन भाभी से मेरा दोस्त जैसा व्यवहार हो गया और मुझे वो काम पसंद आ गया। अब तो मैं रोज टाइम से घर का काम करके ब्यूटी पार्लर जाने लगी।
वो भाभी कोई ओर नही हो सकती वो अवश्य मेरी पिपलाज माता ही थी जो मुझे रास्ता दिखाने आई थी, ये मेरा पक्का विश्वास था ।सत्य पर चलने वालों को ईश्वर रास्ता जरूर दिखाता है पर परीक्षा लेना कभी नहीं छोड़ता। काम का रास्ता तो दिखा दिया पर इसके पीछे जो कठिन परीक्षा थी वो मैं आगे की कहानी मे बताउंगी।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम " ।।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम " ।।
मेरा सच-चरण 11 ब्यूटी पार्लर क्षेत्र मे मेरा पहला कदम
अब तो रोज ब्यूटी पार्लर चली जाती और ब्यूटी पार्लर के काम का नॉलेज लेने लगी।लेकिन एक दिन उन भाभी ने बातो बातो मे मुझे indirect ये कह दिया कि ब्यूटी पार्लर का कोर्स करने मे इतने रुपये लगते है तो उनकी इस बात ने फिर से मेरे स्वाभिमान को जगा दिया। फ्री मे किसी से कुछ लेना पसंद नहीं था।मैंने घर जाकर पापा से इस बारे मे बात करी कि मुझे ब्यूटी पार्लर का कोर्स करने के लिए रुपये चाहिए,परन्तु पापा ने साफ़ इंकार कर दिया कि अगर सीखना ही है तो सिलाई सीखो।।इस कोर्स मे क्या रखा है पर मुझे तो ब्यूटी पार्लर वाले काम मे ही intrest आ रहा था।मैंने ठान लिया कि कैसे भी करके ये काम मैं सीखूंगी।गर्मी की छुट्टियां खत्म होने पर भी मैं रोज स्कूल से आने के बाद 2 से 6 तक भाभी के पार्लर जाती थी
।पार्लर की साफ़ सफाई,कांच,पानी भरना,नेपकिन धोना ,इत्यादि बहुत से कार्य मैं ही करती थी।यहाँ तक कि उन भाभी के बच्चो को स्कूल लेने जाना,उनके बच्चो को रखना,शाम को उनके घर जाकर उनके काम मे मदद करना ये सब मेरे रोज का क्रम बन गया था।।रोज शाम को 7 बजे घर आती और उसके बाद थोड़ा घर का काम,फिर अपनी पढ़ाई करती थी।सुबह कब होती और शाम कब होती,पता ही नहीं चलता।उस समय मैं कक्षा 10 वी मे आ गई थी।एक तरफ बोर्ड की पढाई और दूसरी तरफ पार्लर का काम। पार्लर पर भी साथ मे किताबे ले जाती और जब मौका मिलता पढ़ लेती।
एक दिन मैं मेरी सहेली के घर कोई किताब लेने गई तो वहां मेरी सहेली को कोई sir टयूशन पढ़ा रहे थे।
उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा और मेरी सहेली ने मेरा परिचय उनसे करवाया।उन sir ने मेरे सिर पर हाथ रखा और बोला कि तुम्हे पढाई मे कुछ भी दिक्कत हो तो मुझसे बेहिचक पूछने आ सकती हो और अगर रोज मुझसे पढ़ना चाहो तो भी यहाँ आकर पढ़ सकती हो,मैं कोई फ़ीस नहीं लूंगा।इन sir का नाम अजय जी था ये नाम भी एक सत्य से ही जुड़ा है
ये sir केवल मेरी सहेली गायत्री के ट्यूशन sir थे,लेकिन फिर भी एक एक करके हमारे सब पड़ोसी के बच्चे इनसे पढ़ने लगे,लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि कोई बच्चे फीस नहीं देते थे।और ये sir भी इतने दयालु थे कि कभी किसी से फीस की बात नहीं करते थे,बस एक सच्चे गुरु की तरह सबको शिक्षा देते रहते थे।आज के जमाने मे कोई शिक्षक बिना फीस के चार दिन की क्लास नहीं लेते और लाखों रुपये कोचिंग मे देने के बाद भी बच्चा केवल किताबी कीड़ा ही बनकर रह जाता है,इसके विपरीत उस जमाने के शिक्षक गागर मे सागर भरते थे,मतलब थोड़े मे भी बहुत कुछ पढ़ा देते थे जिसे स्टूडेंट अपनी पूरी लाइफ मे नहीं भूल पाते थे।इन sir ने पूरे दिल से सबको पढ़ाया और जिसको भी पढ़ाया,उसने अपने को अव्वल ही पाया।ये सत्यनाराण जी अंकल के बहुत करीबी मित्र थे,जिन्हें मैं अपने जीवन के एक सच्चे गुरु के रूप मे मानती हूं।एक बार मिलते ही गुरु शिष्य जैसी अनुभूति किसी ईश्वर के चमत्कार से कम नहीं थी।।
।पार्लर की साफ़ सफाई,कांच,पानी भरना,नेपकिन धोना ,इत्यादि बहुत से कार्य मैं ही करती थी।यहाँ तक कि उन भाभी के बच्चो को स्कूल लेने जाना,उनके बच्चो को रखना,शाम को उनके घर जाकर उनके काम मे मदद करना ये सब मेरे रोज का क्रम बन गया था।।रोज शाम को 7 बजे घर आती और उसके बाद थोड़ा घर का काम,फिर अपनी पढ़ाई करती थी।सुबह कब होती और शाम कब होती,पता ही नहीं चलता।उस समय मैं कक्षा 10 वी मे आ गई थी।एक तरफ बोर्ड की पढाई और दूसरी तरफ पार्लर का काम। पार्लर पर भी साथ मे किताबे ले जाती और जब मौका मिलता पढ़ लेती।
उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा और मेरी सहेली ने मेरा परिचय उनसे करवाया।उन sir ने मेरे सिर पर हाथ रखा और बोला कि तुम्हे पढाई मे कुछ भी दिक्कत हो तो मुझसे बेहिचक पूछने आ सकती हो और अगर रोज मुझसे पढ़ना चाहो तो भी यहाँ आकर पढ़ सकती हो,मैं कोई फ़ीस नहीं लूंगा।इन sir का नाम अजय जी था ये नाम भी एक सत्य से ही जुड़ा है
ये sir केवल मेरी सहेली गायत्री के ट्यूशन sir थे,लेकिन फिर भी एक एक करके हमारे सब पड़ोसी के बच्चे इनसे पढ़ने लगे,लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि कोई बच्चे फीस नहीं देते थे।और ये sir भी इतने दयालु थे कि कभी किसी से फीस की बात नहीं करते थे,बस एक सच्चे गुरु की तरह सबको शिक्षा देते रहते थे।आज के जमाने मे कोई शिक्षक बिना फीस के चार दिन की क्लास नहीं लेते और लाखों रुपये कोचिंग मे देने के बाद भी बच्चा केवल किताबी कीड़ा ही बनकर रह जाता है,इसके विपरीत उस जमाने के शिक्षक गागर मे सागर भरते थे,मतलब थोड़े मे भी बहुत कुछ पढ़ा देते थे जिसे स्टूडेंट अपनी पूरी लाइफ मे नहीं भूल पाते थे।इन sir ने पूरे दिल से सबको पढ़ाया और जिसको भी पढ़ाया,उसने अपने को अव्वल ही पाया।ये सत्यनाराण जी अंकल के बहुत करीबी मित्र थे,जिन्हें मैं अपने जीवन के एक सच्चे गुरु के रूप मे मानती हूं।एक बार मिलते ही गुरु शिष्य जैसी अनुभूति किसी ईश्वर के चमत्कार से कम नहीं थी।।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु,गुरुदेवो महेश्वरः
गुरु साक्षात परब्रह्म,तस्मे श्री गुरवे नमः
मेरा सच चरण 12- 10 वी की परीक्षा
अब तो रोज शाम को 1 घंटा सहेली के यहाँ उन sir से पढ़ने जाती। वो सर केवल पढ़ाई ही नहीं कराते बल्कि हंसी मजाक भी कराते थे। जॉक्स सुनाते थे।
जॉक्स के साथ साथ बहुत अच्छे से हमें पढ़ाते थे जिससे हमारी पढाई के प्रति रूचि बढ़ती जाती थी। 10वी कक्षा यानि कि बोर्ड की परीक्षा का उस समय बहुत ही खोफ रहता था।इसलिए मैं अपनी सहेली के साथ रोज नियम से पढाई करती थी।कभी वो मेरे घर सोती तो कभी मैं उसके घर सोती थी।रात को देरी तक पढ़ना और सुबह फिर जल्दी उठना हमारे रोज का क्रम था।उस समय 3 या 4 घण्टे की नींद ही हो पाती थी पर 10वी कक्षा अच्छे नंबर से पास होने का जुनून था जो हमें सोने नहीं देता था।मैं और मेरी सहेली को एक दूसरे के घर रात को रुकने के लिए हमारे पापा से न जाने कितनी खुशामद करनी पड़ती थी तब जाकर पापा मानते।।
मार्च 1995 को 10वी बोर्ड की परीक्षा शुरू हुई।। बहुत अच्छे से परीक्षा दी और परीक्षा ख़त्म होते ही वापस ब्यूटी पार्लर जाने लगी।अब तो एक एक दिन बोर्ड के रिजल्ट की प्रतीक्षा थी।
जून के अंतिम सप्ताह मे रिजल्ट आया।मैं पार्लर गई हुई थी कि मेरा छोटा भाई बुलाने आया कि तेरा रिजल्ट आ गया है और सभी पडोसी तेरे रोल नंबर अखबार मे देख रहे है।सुनते ही पार्लर से दौड़ी दौड़ी घर आई।जैसे ही पहुंची कि बाहर से ही किसी पडोसी ने कहा कि राधा,मिठाई खिला ,तू तो फर्स्ट डिवीज़न से पास हुई है।।सुनते ही मैं फूली नहीं समाई और जल्दी से अपनी तसल्ली के लिए फिर से अखबार मे रोल नंबर देखे।
उसमे फर्स्ट डिवीज़न की लाइन मे मेरा नंबर देखकर मेरा मन खुश हो गया। मैंने अपनी गुल्लक फोड़ी और रसगुल्ले लाकर पुरे मौहल्ले मे बाँटे।।सोचा था शाम को पापा ये खबर सुनेंगे तो बहुत खुश होंगे।।शाम को पापा जब आये तो मम्मी ने फर्स्ट डिवीज़न की खबर पापा को सुनाई।मैं दूर खड़ी पापा की शक्ल देख रही थी पर पापा के चेहरे पर कोई ख़ास रिएक्शन नहीं दिखा।।पापा इतने स्ट्रीक थे कि उनके मुह की प्रशंसा सुनना बहुत मुश्किल था। चाहे कितना ही अच्छा काम कर लूं पर तारीफ़ कभी नहीं मिलती थी। उनका प्यार और उनके मुह की प्रशंसा सुनने के लिए मेरा मन तरसता ही रहा।
पर इसके विपरीत स्कूल मे मुझे अपने गुरुजन का बहुत प्रेम और सम्मान मिला। 10वी मे फर्स्ट डिवीज़न से सभी टीचर बहुत खुश हुए और मुझे शाबाशी दी और आगे की अच्छी पढाई की शुभकामना दी।।। सभी पडौसी ने भी बधाई दी,पर मन के किसी कोने मे पापा के प्यार और दुलार की कमी महसूस हो रही थी।।। पर फिर भी मेरा मन उनके अदृश्य प्रेम को महसूस कर रहा था जिसे वो जताना नहीं चाहते थे।
उनके अदृश्य प्रेम को पहली बार तब महसूस किया जब मैं शायद 5 या 6 साल की थी।हम ननिहाल जा रहे थे।पापा स्टेशन पर हमें गाडी मै बैठाने आये।हमें गाडी मे बैठाकर वो पास की दूकान से मेरे लिए टोस्ट लेने गए क्योकि वो जानते थे कि मैं बिना टोस्ट के चाय नहीं पीती थी।अचानक गाडी चल पड़ी,पापा दौड़ते हुए काफी दूर तक गाडी के साथ दौड़ते रहे
और चलती गाड़ी मे खिड़की से मम्मी को टोस्ट का पैकेट दिया था।उस दिन पहली बार उनके अंदर के प्रेम को मैंने महसूस किया।।
"सत्यम शिवम। सुंदरम"।।
जॉक्स के साथ साथ बहुत अच्छे से हमें पढ़ाते थे जिससे हमारी पढाई के प्रति रूचि बढ़ती जाती थी। 10वी कक्षा यानि कि बोर्ड की परीक्षा का उस समय बहुत ही खोफ रहता था।इसलिए मैं अपनी सहेली के साथ रोज नियम से पढाई करती थी।कभी वो मेरे घर सोती तो कभी मैं उसके घर सोती थी।रात को देरी तक पढ़ना और सुबह फिर जल्दी उठना हमारे रोज का क्रम था।उस समय 3 या 4 घण्टे की नींद ही हो पाती थी पर 10वी कक्षा अच्छे नंबर से पास होने का जुनून था जो हमें सोने नहीं देता था।मैं और मेरी सहेली को एक दूसरे के घर रात को रुकने के लिए हमारे पापा से न जाने कितनी खुशामद करनी पड़ती थी तब जाकर पापा मानते।।
मार्च 1995 को 10वी बोर्ड की परीक्षा शुरू हुई।। बहुत अच्छे से परीक्षा दी और परीक्षा ख़त्म होते ही वापस ब्यूटी पार्लर जाने लगी।अब तो एक एक दिन बोर्ड के रिजल्ट की प्रतीक्षा थी।
जून के अंतिम सप्ताह मे रिजल्ट आया।मैं पार्लर गई हुई थी कि मेरा छोटा भाई बुलाने आया कि तेरा रिजल्ट आ गया है और सभी पडोसी तेरे रोल नंबर अखबार मे देख रहे है।सुनते ही पार्लर से दौड़ी दौड़ी घर आई।जैसे ही पहुंची कि बाहर से ही किसी पडोसी ने कहा कि राधा,मिठाई खिला ,तू तो फर्स्ट डिवीज़न से पास हुई है।।सुनते ही मैं फूली नहीं समाई और जल्दी से अपनी तसल्ली के लिए फिर से अखबार मे रोल नंबर देखे।
पर इसके विपरीत स्कूल मे मुझे अपने गुरुजन का बहुत प्रेम और सम्मान मिला। 10वी मे फर्स्ट डिवीज़न से सभी टीचर बहुत खुश हुए और मुझे शाबाशी दी और आगे की अच्छी पढाई की शुभकामना दी।।। सभी पडौसी ने भी बधाई दी,पर मन के किसी कोने मे पापा के प्यार और दुलार की कमी महसूस हो रही थी।।। पर फिर भी मेरा मन उनके अदृश्य प्रेम को महसूस कर रहा था जिसे वो जताना नहीं चाहते थे।
उनके अदृश्य प्रेम को पहली बार तब महसूस किया जब मैं शायद 5 या 6 साल की थी।हम ननिहाल जा रहे थे।पापा स्टेशन पर हमें गाडी मै बैठाने आये।हमें गाडी मे बैठाकर वो पास की दूकान से मेरे लिए टोस्ट लेने गए क्योकि वो जानते थे कि मैं बिना टोस्ट के चाय नहीं पीती थी।अचानक गाडी चल पड़ी,पापा दौड़ते हुए काफी दूर तक गाडी के साथ दौड़ते रहे
"सत्यम शिवम। सुंदरम"।।
मेरा सच- चरण 13 दूसरी बार किया ब्यूटी पार्लर का कोर्स
10वी कक्षा का भी सफर पूरा हुआ और 11वी के लिए फिर से दूसरे स्कूल मे एडमिशन लेना था क्योंकि उस स्कूल मे भी10वी के बाद कक्षाएं नहीं थी।आस पास कोई सीनियर सेकंडरी स्कूल नहीं था,इसलिए घर से दूर सिटी मे रेजीडेंसी नाम से एक स्कूल था,वहां एडमिशन लिया।11वी मे आकर रूचि के अनुसार विषय लेने थे पर निश्चय नहीं कर पा रही थी कि आखिर क्या विषय लिया जाये।। उस समय कोई नॉलेज नहीं था कि कोनसा विषय लेने से कौनसा केरियर बनता है। अपने मन से तीन विषय ले लिए।हिंदी,राजनीति विज्ञान,और संगीत कंठ ले लिया।संगीत मे बहुत रूचि थी पर जब पता चला कि संगीत की असली पढाई क्या होती है तो रोंगटे खड़े हो गए।। मैं तो गाने को ही संगीत समझती थी लेकिन जब संगीत की कक्षा attend करी तो पता चला कि संगीत मे कितनी बारीकियां होती है।शुरु मे संगीत सीखने मे बहुत दिक्कत हुई लेकिन संगीत की अध्यापिका बहुत अच्छी थी,उनके प्रेम ने हमें संगीत केे प्रति के प्रति रुचि पैदा कर दी ।
मेरी सभी सहेलिया इंटरवेल मे केंटीन मे कुछ न कुछ खाती थी पर मै कक्षा मे ही बैठ कर अपना होम वर्क करती थी।कई लड़कियां मुझे किताबी कीड़ा कह कर मेरा मजाक भी बनाती थी
इस तरह 11वी का सफर भी पूरा हुआ और गर्मी की छुट्टियां वापस आ गई।मैं रोज अपने घर के सब काम निपटा कर 9 बजे वापस से पार्लर जाने लगी। अभी कुछ ही दिन हुए थे वापस पार्लर जाते हुए कि एक दिन फिर मम्मी ने गुस्से मे मुझे डॉट लगा दी और कहा कि ब्यूटी पार्लर जाकर कौनसा मुझे निहाल करने वाली है कोई पैसा थोड़े ही कमा रही है। मम्मी के तीखे वचन सुनकर मैंने अपना गुलक निकाला
और उसमें से कुछ पैसे लेकर गुस्से गुस्से मे अकेली ऑटो मे बैठकर उदयपुर चेतक सर्किल पर पहुँच गई।
।वहां पर उदयपुर का बहुत बड़ा ब्यूटी पार्लर था।हिम्मत करके उस पार्लर के अंदर गई और कहा कि मुझे आपके पार्लर मे नोकरी चाहिए। वहां की ब्यूटिशियन ने मुझसे पूछा कि तुम्हे क्या क्या काम आता है?मैंने कहा,मुझे पार्लर का सब काम आता है।उन्होंने मुझे दूसरे दिन से ही आने के लिए बोल दिया।मैं खुश होकर घर गई और मम्मी को बताया कि इतने बड़े पार्लर पर मुझे काम मिल गया है।जब पापा को पता चला तो इतनी दूर जाने के लिए मना कर दिया,पर मैं उस पार्लर वाले दीदी को जुबान देकर आई थी इसलिए किसी भी कीमत पर अगले दिन मुझे जाना ही था। मैं अगले दिन दुगुने उत्साह के साथ घर का सारा काम करके नए पार्लर पर टाइम से पहुँच गई।लेकिन भगवान् ने यहाँ फिर एक परीक्षा ली।जैसे ही मैं उस नए पार्लर पर पहंची कि वहां की ब्यूटिशियन ने मूझसे कहा कि अभी मेरे पार्लर पर स्टाफ की जरुरत नहीं है,जब जरुरत होगी मैं तुमसे कॉन्टेक्ट कर लुंगी।उनकी इस बात को सुनकर मैं एकटक उनको देखती रही कि ऐसा कैसे हो सकता है,कल तक तो इनको जरुरत थी,आज कैसे इन्होंने मना कर दिया?
मैंने उन ब्यूटिशियन दीदी से रिक्वेस्ट करी कि प्लीज मुझे यहाँ काम करने दो।।मेरी बात सुनकर उन्होंने मुझे एक दूसरे पार्लर का address दिया कि वहां जाकर contect कर लेना वो तुम्हे काम पर जरूर रख लेंगे।
मैं वो address चिठ्ठी लेकर उस पार्लर पर गई और उन्होंने भी मुझे 1सप्ताह के ट्रायल पर रख दिया।।
अगले दिन भी तैयार होकर टाइम से एक और नए पार्लर पर गई।। आज वो उत्साह नहीं था बल्कि डर था कि कही ये पार्लर वाले भी रिजेक्ट न कर दे। लेकिन ईश्वर की कृपा से नए पार्लर मे पहला दिन बहुत अच्छा निकला ।।पहले और दूसरे दिन वहाँ कुछ काम नहीं किया,तीसरे दिन किसी कस्टमर की वैक्सिंग का काम मुझे दिया,मैंने गलत तरीके से उनकी वैक्स कर दी
वहां की मेडम ने मेरे काम को देखा तो मुझे बहुत डॉट लगाईं और कहा कि तुम्हारा ब्यूटी का कोर्स तो अधूरा है,तुम्हे तो इसकी एबीसीडी भी नहीं आती।सुनकर मन को इतनी ठेस पहुंची और सोचने लगी कि घर वाले को पता चलेगा कि मुझे पूरा काम नहीं आता तो बहुत डॉट मिलेगी कि आखिर मैंने 2 साल क्या सीखा?मैं नहीं जानती थी कि ब्यूटी पार्लर के कोर्स मे क्या क्या होता है?मुझे तो जो भाभी ने बताया वही मैंने सीखा।
अब क्या था उन दीदी ने मुझसे कहा कि 6000 रूपये दे दो मैं पूरा अच्छे से कोर्स करा दूंगी। पर मैं 6000 कहा से लाती?पापा से मांगने की हिम्मत नहीं थी।मैंने उन दीदी से कहा कि मुझे आप कोर्स करा दो मैं इसके बदले आपका कोई भी काम कर दूंगी। वो दीदी मान गए और कहा कि 1 साल तक तुम्हे किसी प्रकार का कोई पेमेंट नहीं मिलेगा चाहे तुम्हे यहाँ कितना ही काम करना पड़े।।मैंने उनकी बात को स्वीकार किया और वापस से नए सिरे से ब्यूटी पार्लर का कोर्स शुरू किया।। इस तरह गर्मी की छुट्टियां भी खत्म हो गई और 12 वी कक्षा मे आ गई। 12वी कक्षा मे भी स्कूल का समय वापस से सुबह 7 से 12:30 हो गया इसलिये 12वीं मे भी स्कूल की छुट्टी के बाद सीधे ही पार्लर चली जाती।
वहां के ब्यूटिशियन दीदी ने मुझे बहुत अच्छे तरीके से ब्यूटी का कोर्स कराया।एक सच्चे गुरु की तरह मेरा ब्यूटी क्षेत्र मे मार्गदर्शन किया
जिस तरह से एक संजोग की तरह मुझे आगे से आगे रास्ते मिल रहे थे वो वास्तव मे ईश्वर की ही देंन थी।।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम" ।।।
अगले दिन भी तैयार होकर टाइम से एक और नए पार्लर पर गई।। आज वो उत्साह नहीं था बल्कि डर था कि कही ये पार्लर वाले भी रिजेक्ट न कर दे। लेकिन ईश्वर की कृपा से नए पार्लर मे पहला दिन बहुत अच्छा निकला ।।पहले और दूसरे दिन वहाँ कुछ काम नहीं किया,तीसरे दिन किसी कस्टमर की वैक्सिंग का काम मुझे दिया,मैंने गलत तरीके से उनकी वैक्स कर दी
अब क्या था उन दीदी ने मुझसे कहा कि 6000 रूपये दे दो मैं पूरा अच्छे से कोर्स करा दूंगी। पर मैं 6000 कहा से लाती?पापा से मांगने की हिम्मत नहीं थी।मैंने उन दीदी से कहा कि मुझे आप कोर्स करा दो मैं इसके बदले आपका कोई भी काम कर दूंगी। वो दीदी मान गए और कहा कि 1 साल तक तुम्हे किसी प्रकार का कोई पेमेंट नहीं मिलेगा चाहे तुम्हे यहाँ कितना ही काम करना पड़े।।मैंने उनकी बात को स्वीकार किया और वापस से नए सिरे से ब्यूटी पार्लर का कोर्स शुरू किया।। इस तरह गर्मी की छुट्टियां भी खत्म हो गई और 12 वी कक्षा मे आ गई। 12वी कक्षा मे भी स्कूल का समय वापस से सुबह 7 से 12:30 हो गया इसलिये 12वीं मे भी स्कूल की छुट्टी के बाद सीधे ही पार्लर चली जाती।
जिस तरह से एक संजोग की तरह मुझे आगे से आगे रास्ते मिल रहे थे वो वास्तव मे ईश्वर की ही देंन थी।।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम" ।।।
मेरा सच-चरण 14 -जीवन की पहली नोकरी ने सिखाया पाठ अनुभव का
इस तरह 12 वीं कक्षा की पढाई और ब्यूटी पार्लर का कोर्स साथ साथ चल रहा था।12वीं मे भी फर्स्ट डिवीज़न की तैयारी कर रही थी,पर घर का काम,ब्यूटी पार्लर का काम,कठिन विषय सब एक साथ होने से मैं 12वीं मे सेकंड डिवीज़न से ही पास हो पाई।12वीं कक्षा पास होते ही एक दिन पापा ने कहा कि एक डेढ़ साल से पार्लर जा रही है,पर वहां से ऑटो किराया तक भी तू नहीं ला पाती है,आखिर कब तक बिना पैसों के वहाँ काम करेगी।अगर वो तुजे पेमेंट देते हैं तो तू पार्लर जा वर्ना कोई जरुरत नहीं है वहां जाने की,और अब तो वैसे भी साल छह महीने मे तेरी शादी करनी है।पापा ने तो अपनी बात कह दी पर मुझे पेमेंट की बात उन ब्यूटिशियन मेडम से कहने मे बहुत जिझक लग रही थी कि जिन दीदी ने मुझे बिना पेमेंट के पूरा कोर्स कराया ,उनसे पैसों की बात कैसे करूँ?तीन चार दिन सोचती रही फिर एक दिन हिम्मत करके उन दीदी से कुछ पेमेंट देने की बात सामने रख दी।जैसे ही मैंने बात बोली कि उन दीदी की नाराजगी निकल गई कि
मैंने तुमसे कोर्स सिखाने के पैसे नहीं मांगे तो तुम यहाँ काम करने के पैसे कैसे मांग सकती हो? एक तरफ पापा का गुस्सा और दूसरी तरफ अपने गुरु की नाराजगी।। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ?लेकिन अंदर ही अंदर मुझे ईश्वर का एक संकेत मिल रहा था अब जीवन का ये पड़ाव शायद खत्म हो रहा है और इस पार्लर को छोड़ने का समय आ गया है।मैंने उन दीदी से चरण छूकर आर्शीवाद लिया
और कहा कि इस डेढ़ साल मे अगर मुझसे कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ़ कर देना और उनसे विदा ली।हालांकि दीदी को मेरा ब्यूटी पार्लर छोड़ना पसंद नहीं आ रहा था और मुझे भी बुरा लग रहा था पर शायद मेरा वहां रहने का समय उतना ही था।उनका एहसान था मुझ पर इसलिये मैंने ये निश्चय किया कि मैं अपने इस कोर्स का सर्टिफिकेट कभी नहीं लुंगी।
अब तो पार्लर छोड़ कर घर पर ही रहती और घर के काम करती।करीबन 15 दिन ही हुए थे कि एक दिन किसी पडोसी ने बताया कि अखबार मे इस्तिहार आया है कि किसी ब्यूटी पार्लर पर हेल्पर की जरुरत है ,मैंने जैसे ही सुना और जल्दी से उस पार्लर पर इंटरव्यू देने चली गई। नियम के मुताबिद 1 सप्ताह के ट्रायल पर मुझे बुला लिया।मैं अगले दिन से एक और नए पार्लर पर जाने लगी। इस बार मेरी
ट्रेंनिंग पहले की तरह अधूरी नहीं थी बल्कि परफेक्ट थी।एक सप्ताह के ट्रायल मे उनको मेरा काम पसंद आ गया और उन्होंने मुझे 600 रूपये महीने की पगार पर रख लिया।मुझे इतनी ख़ुशी हुई ,क्योकि वह मेरी पहली नोकरी थी। अब तो मै वापस से घर से 9 बजे निकल जाती और 5 बजे घर आती। पहली नोकरी का उत्साह इतना था कि एक भी दिन छुट्टी नहीं करी और टाइम से टाइम पहुँच जाती।महीना बीता और मुझे पगार मिलने ही वाली थी कि एक दिन ब्यूटी पार्लर पर काम करते करते एक बहुत बड़ी कांच की कोई मशीन गलती से मेरे हाथ से नीचे गिर गई और टुकड़े टुकड़े हो गए।
मशीन बहुत महँगी थी तो उस पार्लर की मेडम मुझसे बहुत नाराज हुई और कहा कि अब तुम्हे पगार नहीं मिल सकती
बल्कि इतनी महंगी मशीन के नुकसान की भरपाई के लिए तुम्हे तीन महीने की पगार छोड़नी पड़ेगी।जीवन की पहली नोकरी पर कदम रखते ही इतनी बड़ी परीक्षा देनी पड़ी।एक तरफ फ्री मे काम करना और दूसरी तरफ पापा मम्मी की बाते सुनना मेरे लिए किसी कसौटी से कम नहीं था।
थोड़े दिन बाद कॉलेज के फॉर्म भरने लगे,मैंने भी बी ए फर्स्ट ईयर प्राइवेट परीक्षा के लिए फॉर्म भरा।
प्राइवेट करने के लिए मेरा संगीत विषय छोड़ना पड़ा और उसकी जगह इतिहास लेना पड़ा। तीन महीने फ्री मे काम करने के बाद पापा ने वापस से ब्यूटी पार्लर का काम छोड़ने के लिए बोल दिया।नोकरी भी करी लेकिन एक भी पगार की ख़ुशी नहीं मिली,पर उस समय ने मुझे दुनिया की पहचान कराई ,मेहनत की कीमत समझाई, उन तीन महीनो ने जो मुझे अनुभव दिया शायद ही मुझे किसी से मिल पाता।
ईश्वर मुझे किसी न किसी तरह से मजबूत बना रहे थे ये अदृश्य रूप से मुझे नजर आ रहा था।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम।।"
और कहा कि इस डेढ़ साल मे अगर मुझसे कोई भूल हो गई हो तो मुझे माफ़ कर देना और उनसे विदा ली।हालांकि दीदी को मेरा ब्यूटी पार्लर छोड़ना पसंद नहीं आ रहा था और मुझे भी बुरा लग रहा था पर शायद मेरा वहां रहने का समय उतना ही था।उनका एहसान था मुझ पर इसलिये मैंने ये निश्चय किया कि मैं अपने इस कोर्स का सर्टिफिकेट कभी नहीं लुंगी।
अब तो पार्लर छोड़ कर घर पर ही रहती और घर के काम करती।करीबन 15 दिन ही हुए थे कि एक दिन किसी पडोसी ने बताया कि अखबार मे इस्तिहार आया है कि किसी ब्यूटी पार्लर पर हेल्पर की जरुरत है ,मैंने जैसे ही सुना और जल्दी से उस पार्लर पर इंटरव्यू देने चली गई। नियम के मुताबिद 1 सप्ताह के ट्रायल पर मुझे बुला लिया।मैं अगले दिन से एक और नए पार्लर पर जाने लगी। इस बार मेरी
ट्रेंनिंग पहले की तरह अधूरी नहीं थी बल्कि परफेक्ट थी।एक सप्ताह के ट्रायल मे उनको मेरा काम पसंद आ गया और उन्होंने मुझे 600 रूपये महीने की पगार पर रख लिया।मुझे इतनी ख़ुशी हुई ,क्योकि वह मेरी पहली नोकरी थी। अब तो मै वापस से घर से 9 बजे निकल जाती और 5 बजे घर आती। पहली नोकरी का उत्साह इतना था कि एक भी दिन छुट्टी नहीं करी और टाइम से टाइम पहुँच जाती।महीना बीता और मुझे पगार मिलने ही वाली थी कि एक दिन ब्यूटी पार्लर पर काम करते करते एक बहुत बड़ी कांच की कोई मशीन गलती से मेरे हाथ से नीचे गिर गई और टुकड़े टुकड़े हो गए।
थोड़े दिन बाद कॉलेज के फॉर्म भरने लगे,मैंने भी बी ए फर्स्ट ईयर प्राइवेट परीक्षा के लिए फॉर्म भरा।
ईश्वर मुझे किसी न किसी तरह से मजबूत बना रहे थे ये अदृश्य रूप से मुझे नजर आ रहा था।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम।।"
मेरा सच-चरण 15 -मेरी शादी और बी ए प्रथम वर्ष की परीक्षा
बी.ए. फर्स्ट ईयर मे आते ही पापा मम्मी मेरी शादी की योजना बनाने लगे।पंडित जी के पास जाकर शादी का मुहूर्त निकलवाने गए।
अगले दिन 4 मई 1998 को मेरी शादी हुई
मैं पापा के प्रेम की इस कमी को अब अपने नए जीवन मे तलाश रही थी कि मुझे मेरे पति का प्रेम हमेशा मिले पर नियति किसके भाग्य मे क्या लिखती है कोई नहीं जानता। बहुत सारी उम्मीदों को मन मे संजोये हुए सुसराल की सीढ़ी पर पहला कदम रखती हूं।
"सत्यम शिवम। सुंदरम"।।
मेरा सच-चरण 16 -सुसराल की प्रथम सीढ़ी
5 मई 1998 को सुसराल की दहलीज पर पहला कदम था। नए जीवन मे बहुत सी आशाएं थी,
सुसराल मे जाने के अगले दिन से ही मेरे संघर्ष की कहानी शुरू हो गई।मेरे दहेज़ के सामान को खोलकर मेरे मायके वालों का अपमान किया
जैसे तैसे पापा के गुस्से को मम्मी ने शांत किया और दो तीन दिन पीहर रुकी और फिर वापस से मेरे पति मुझे लेने आये। मैं वापस अपने सुसराल आई और रहने लगी।मेरे पति छोटी मोटी हेयर कटिंग की दुकान पर काम करते थे।
शायद ये मेरी सच्चाई और स्वाभिमानी की कठोर परीक्षा थी,कैसे आगे आगे मैं इन परिस्थितियों से लड़ी और कैसे ईश्वर ने मुझे पग पग पर हिम्मत दी,
"सत्यम। शिवम। सुंदरम"।।
मेरा सच-चरण 17 -सुसराल के पहले दो महीने और जीवन की परीक्षा
लगभग 2 महीने ही बीते थे सुसराल मे कि इतना सब कुछ देख लिया उस घर मे जितना लोग बरसो मे देख पाते है।सुबह उठते ही सब लोग दूध तक के लिए लड़ाते थे।सास ससुर मेरे पति का इन्तजार करते और पति मेरे सास ससुर का।।मैं दोनों के बीच की लड़ाइयों को देखती और और सोचती कि कब दूध आये और चाय बने। कभी कभी तो सासुजी मुझे कहते कि जा तेरे पति को बोल कि दूध लाये,इतने जनो के लिए क्या हम ही दूध लाएंगे ।मुझे अच्छी तरह ये समझ आ गया कि वो इतने लोग का जो ताना दिया,वो इशारा मेरे लिए ही था।
मैं अपने पति को कहती कि आप बिना कहे ही दूध लाकर क्यों नहीं रख देते?पर वो भी नहीं सुनते थे और फिर जलते बुनते सास ससुर ही दूध लाते थे।ऐसी स्थिति मे उस घर मे चाय पीना भी मेरे लिए किसी जहर से कम नहीं था,फिर भी घर की बहू होने के नाते मै बड़ी मुश्किल से वहां चाय पी पाती थी।शाम होती और फिर सब्जी के लिए लड़ते थे,तो कभी घर के छोटे मोटे सामान के लिए लड़ते थे।मैं विचार मे पड़ गई कि दूर से सुहाने लगने वाले ढोल कितने फूटे निकले।करीबन 3 महीने ही निकले कि बिजली का बिल आया।
एक दिन सुबह ही सुबह मेरे ससुर जी ने इनको बिल दिया कि इसे जमा करा देना,बिजली का बिल शायद कोई 1000 के लगभग था।मेरे पति ने साफ़ मना कर दिया कि मेरे पास पैसे नहीं है।इस बात को लेकर झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों पिता पुत्र एक दूसरे को धक्का मुक्की करने लग गए
और साथ मे मुझे भी भला बुरा कहने लगे जबकि मेरी इसमें कोई गलती नहीं थी।पडोसी तक जमा हो गए।मैं घबरा कर कमरा बंद करके भगवान् के सामने बहुत रोई और कहने लगी कि हे भगवान् मै अब इस घर का दाना पानी भी कैसे लू जिस घऱ मे पैसों के इतने झगडे होते हो।हे ईश्वर मुझे रास्ता दिखा,अब अगर मै चाय भी पिऊ तो मेरे पैसो से । हे प्रभु मेरे स्वाभिमान की रक्षा करो।इस तरह पुरे दिन भगवान् से विनती करी और उस दिन तो खाना भी नहीं खाया।
एक दो दिन बाद किसी रिश्तेदार ने एक ब्यूटी पार्लर पर काम की जरुरत है,ऐसा कहकर वहाँ का address दिया।मैं एक पल भी गवाए बिना वहां पहुँच गई और उन्होंने मुझे नोकरी दे दी।दो शर्त थी कि या तो महीने के 600 रूपये और या फिर दिन के रोज के रोज 20 रूपये ले जा सकती हो।मैंने सोचा कि रोज के 20 रूपये ले जाउंगी तो कम से कम चाय तो अपने पैसो की पी पाउंगी।इसलिए मैंने 20 रूपये parday के लिए हां कर दी।ब्यूटी पार्लर जाने का टाइम 11 से 6 था।मैं अपना सारा घर का काम निपटा कर 11 बजे नोकरी चली जाती।पहले तो मेरे पति ने मुझे मना कर दिया कि अभी काम नहीं करना पर मैंने जिद करी तो मान गए।20 रूपये दिन की नोकरी पर मेरे सास ससुर ने मेरी हंसी भी उड़ाई पर मेरे लिए उस समय वो 20 रूपये मेरे स्वाभिमान की कीमत थी।इसलिए बिना किसी की परवाह किये मैं रोज अपना काम नियम से करती और शाम को 20 रूपये लेकर घर आती।
उसी 20 रूपये का मैं दूध लाती और चाय पीती।।कई बार मैं 5 दिन के इकठ्ठे 100 रुपये लेती थी।
ईश्वर ने फिर मेरे स्वाभिमान की रक्षा करी और मुझे काम दिला दिया।आगे की कहानी के लिए देखिये मेरा ब्लॉग पोस्ट
ईश्वर ने फिर मेरे स्वाभिमान की रक्षा करी और मुझे काम दिला दिया।आगे की कहानी के लिए देखिये मेरा ब्लॉग पोस्ट
"सत्यम शिवम सुंदरम"।।
मेरा सच-चरण 18 सासु माँ ने ली मेरे आत्म सम्मान की परीक्षा
और इन्ही घरेलू झगड़ो के कारण शादी के तुरंत तीन महीने बाद ही मुझे काम के लिए घर से निकलना पड़ा।इसी दौरान मैं प्रेगनेंट भी हो गई।
घर की परिस्थियों को देखते हुए मैं जल्दी बच्चा नहीं चाहती थी।पर जब डॉक्टर को बताने गईं तो डॉक्टर ने कोई भी रिस्क लेने के लिए मना कर दिया।इसलिए मैंने ईश्वर की मर्जी समझकर स्वीकार किया।उस समय बी ए सेकंड ईयर की पढाई भी कर रही थी।सुसराल के हालात,पढाई और पार्लर की नोकरी साथ साथ चल रही थी।उस पार्लर की मेडम बहुत ही दयालु थी।मेरा बहुत ध्यान रखती,मुझे जूस,फ्रूट बराबर देती और मुझे हिम्मत देती थी। कई बार monthly chekup के लिए भी वो मेडम ही मुझे हॉस्पिटल ले जाती थी।
एक दिन की बात है मेरे पापा और मेरे ससुर की रास्ते मे मुलाक़ात हो गई।पापा ने हालचाल पूछा तो मेरे ससुर ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आपका दामाद घर के खर्चे नहीं उठाता,आप उसे समझा देना।पापा ने अपने उत्तर मे कहा कि वो मेरा दामाद बाद मे है पहले आपका बेटा है,अगर ऐसी बात थी तो आपने शादी से पहले ही कह दिया होता।और दूसरी बात ये कि अभी तो बच्चो के हाथों की मेहंदी ही नहीं उतरी कि आप खर्चे की बात कह रहे हो,अगर मेरी बेटी के कारण आपका खर्चा बढ़ गया है तो कल से मेरी बेटी को वापस मेरे घर भेज देना।पापा की ये बात सुनकर मेरे ससुर इतने भड़क गए और दोनों मे झगड़ा बढ़ गया।
अगले दिन पापा मुझे अपने सुसराल लेने आ गए ।मैं पापा को मना नहीं कर पाई और पीहर चली गई।वहां जाने के बाद पापा ने मेरे सुसराल के बारे मे बहुत कुछ पूछा और मैंने घूंघट से लेकर खर्चे तक की सारी बाते बता दी,क्योकि झूठ बोलने की आदत जो नहीं थी।अब तो पापा इतना गुस्सा हुए कि मुझे सुसराल जाने के लिए मना कर दिया ।उस समय दोनों ही घरों मे कोई फ़ोन नहीं था।मेरा और मेरे पति का कोई कॉन्टेक्ट नहीं हो पाया।मैं अपने पीहर से ही ब्यूटी पार्लर की नोकरी पर जाती थी।एक दिन मेरे पति मुझसे मिलने वहां पार्लर पर आ गए।उन्होंने मुझसे घर चलने के लिए कहा लेकिन पापा की अनुमति के बिना उनके साथ जाने की हिम्मत नहीं थी।कुछ दिन बाद मेरे पति मुझे लेने आये और पापा से बात करी कि अब आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी,मैं इसको मेरी जिम्मेदारी पर ले जाता हूँ।मैं भी वापस जाना चाहती थी,मेरी मम्मी ने भी पापा को समझाया कि सुसराल मे तो छोटी मोटी बाते होती रहेगी इसे जाने दो।बड़ी मुश्किल से पापा मुझे भेजने के लिए माने मैं वापस अपने पति के साथ घर चली गई। घर गई और अगले दिन से फिर से वही तानो का सिलसिला चालु हो गया और मुझे सास ससुर ने कहा कि पीहर गई तो भी आना तो यही पड़ा।इस तरह उस घर मे रोज मेरे साथ मानसिक अत्याचार होते रहे।सास ससुर रोज पति से खर्चा मांगते और पति खर्चा देने को तैयार नहीं। मैं दोनों पासो के बीच पिसती जा रही थी।इस तरह दिन गुजरते गए और मेरा प्रेगनेंसी का छठा महीना लग गया ।एक दिन की बात है,घर मे कुछ कंस्ट्रक्शन काम कराने के लिए सासु जी ने रेती का ट्रैक्टर डलवाया।क्योकि घर के बाहर सड़क पर रेती डलवाने की वजह से आने जाने वाले लोगो के लिए मुश्किल हो रही थी इसलिए रेती को जल्दी से अंदर शिफ्ट करना था।उस दिन मेरे पार्लर की छुट्टी थी,मैं अपनी पढाई की तैयारी कर रही थी कि
सासुजी ने ताने चालु कर दिए कि दोनों टाइम खाना तो खाती है,खर्चा तेरा पति देता नहीं है और काम चोर को काम करना पड़ता है तो किताबे लेकर बैठ जाती है।। उनकी बात सुनते ही मेरे अंदर ऐसी आग लगी कि गुस्से से उठी और उठकर एक तगारी ली और बाहर से रेती भर कर अंदर डालने लग गई और मन ही मन संकल्प लिया कि जब तक ये रेती पूरी अंदर न डाल दु ,पानी तक नहीं पिउंगी। मेरा छठा महीना चल रहा था । गर्मी के कारण गला सुख रहा था और जी मचलाने लग गया।उसके बाद तो सासु जी ने भी मुझे बार बार मना किया कि अब रेती मत डाल, मैं तो ऐसे ही मजाक कर रही थी।
एक दिन की बात है मेरे पापा और मेरे ससुर की रास्ते मे मुलाक़ात हो गई।पापा ने हालचाल पूछा तो मेरे ससुर ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आपका दामाद घर के खर्चे नहीं उठाता,आप उसे समझा देना।पापा ने अपने उत्तर मे कहा कि वो मेरा दामाद बाद मे है पहले आपका बेटा है,अगर ऐसी बात थी तो आपने शादी से पहले ही कह दिया होता।और दूसरी बात ये कि अभी तो बच्चो के हाथों की मेहंदी ही नहीं उतरी कि आप खर्चे की बात कह रहे हो,अगर मेरी बेटी के कारण आपका खर्चा बढ़ गया है तो कल से मेरी बेटी को वापस मेरे घर भेज देना।पापा की ये बात सुनकर मेरे ससुर इतने भड़क गए और दोनों मे झगड़ा बढ़ गया।
अगले दिन पापा मुझे अपने सुसराल लेने आ गए ।मैं पापा को मना नहीं कर पाई और पीहर चली गई।वहां जाने के बाद पापा ने मेरे सुसराल के बारे मे बहुत कुछ पूछा और मैंने घूंघट से लेकर खर्चे तक की सारी बाते बता दी,क्योकि झूठ बोलने की आदत जो नहीं थी।अब तो पापा इतना गुस्सा हुए कि मुझे सुसराल जाने के लिए मना कर दिया ।उस समय दोनों ही घरों मे कोई फ़ोन नहीं था।मेरा और मेरे पति का कोई कॉन्टेक्ट नहीं हो पाया।मैं अपने पीहर से ही ब्यूटी पार्लर की नोकरी पर जाती थी।एक दिन मेरे पति मुझसे मिलने वहां पार्लर पर आ गए।उन्होंने मुझसे घर चलने के लिए कहा लेकिन पापा की अनुमति के बिना उनके साथ जाने की हिम्मत नहीं थी।कुछ दिन बाद मेरे पति मुझे लेने आये और पापा से बात करी कि अब आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी,मैं इसको मेरी जिम्मेदारी पर ले जाता हूँ।मैं भी वापस जाना चाहती थी,मेरी मम्मी ने भी पापा को समझाया कि सुसराल मे तो छोटी मोटी बाते होती रहेगी इसे जाने दो।बड़ी मुश्किल से पापा मुझे भेजने के लिए माने मैं वापस अपने पति के साथ घर चली गई। घर गई और अगले दिन से फिर से वही तानो का सिलसिला चालु हो गया और मुझे सास ससुर ने कहा कि पीहर गई तो भी आना तो यही पड़ा।इस तरह उस घर मे रोज मेरे साथ मानसिक अत्याचार होते रहे।सास ससुर रोज पति से खर्चा मांगते और पति खर्चा देने को तैयार नहीं। मैं दोनों पासो के बीच पिसती जा रही थी।इस तरह दिन गुजरते गए और मेरा प्रेगनेंसी का छठा महीना लग गया ।एक दिन की बात है,घर मे कुछ कंस्ट्रक्शन काम कराने के लिए सासु जी ने रेती का ट्रैक्टर डलवाया।क्योकि घर के बाहर सड़क पर रेती डलवाने की वजह से आने जाने वाले लोगो के लिए मुश्किल हो रही थी इसलिए रेती को जल्दी से अंदर शिफ्ट करना था।उस दिन मेरे पार्लर की छुट्टी थी,मैं अपनी पढाई की तैयारी कर रही थी कि
जब जब कोई भी मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाता है उस समय जो क्रोध मुझे आता है वो क्रोध कब एक शक्ति बनकर काम कर जाता है,मैं खुद भी नहीं समझ पाती।अपने पूरे जीवन मे मैंने कई बार ऐसी शक्ति को महसूस किया और
मेरा सच-चरण 19 -मेरे बेटे का जन्म और बी ए सेकंड ईयर की परीक्षा
सुसराल के मानसिक तनावों को को झेलते हुए ,लड़ते झगड़ते 8 महीने तक पार्लर पर काम किया और प्रेगनेंसी का 9 वा महीना लगा था कि मैंने उस पार्लर की नोकरी भी छोड़ दी । 22 फरवरी 1999 की डॉक्टर ने मेरी डिलेवरी date दी। 15 फरवरी की रात को मेरा दर्द शुरू हो गया।अगले दिन 16 फरवरी को दर्द की हालत मे मेरे सासु जी मुझे पीहर लेकर चले गए और ये कहकर कि अगर डेलिवरी यहाँ हो गई तो खर्चा कौन करेगा,आखिर पहली डिलेवरी कराने का हक़ तो पीहर वालो का होता है।मै 16 फरवरी को पुरे दिन और पूरी रात दर्द से परेशान हो गई,सासु जी नर्स थे इसलिए मम्मी ने उन्हें रोक लिया ताकि डिलेवरी घर पर ही हो जाये।मैं नहीं चाहती थी कि मेरी डिलेवरी घर पर हो।भगवान् ने मेरी सुनी,खूब कोशिश करने के बाद भी बच्चा घर पर न हो सका।17 फरवरी को शाम की 6 बजे तक बराबर दर्द था,सब परेशान हो गए और अंततः मुझे हॉस्पिटल ले जाना ही पड़ा। 6 बजे पापा ऑटो लेकर आये और मम्मी,मैं और मेरी सासुमां हम तीनों ऑटो मे हॉस्पिटल जा रहे थे कि रास्ते मे मेरी सास ने मम्मी को कहा कि ऑटो के पैसे तो आपको ही देने पड़ेंगे,मैं नहीं दूंगी।ऐसी परिस्थिति मे भी सास ने ऑटो किराया जैसी तुच्छ बात कर दी।सुनकर गुस्सा तो मुझे बहुत आया पर दर्द के मारे कुछ कह नहीं पाई।हॉस्पिटल मे भर्ती होते ही करीबन 7:40 पर बच्चा हो गया।
तीन दिन के लगातार दर्द के बाद अब सुकून मिला था।मैं तो इतनी घबरा गई कि मैंने तो कई घंटों तक बच्चे को देखा तक नहीं,दर्द से राहत मिलते ही गहरी नींद मे सो गई।तीन चार घंटे बाद मम्मी ने मुझे जगाया और तब मैंने अपने बच्चे की शक्ल देखी फिर भी किसी प्रकार की कोई ख़ुशी मेरे चेहरे पर नहीं थी।मम्मी और सासुजी दोनों ही रात को मेरे साथ हॉस्पिटल मे ही थे।सुबह जब डॉक्टर राउंड पर आये तो उनके साथ की कुछ नर्सो ने मेरी सासुजी को बधाई दी और कहा कि पोता होने की ख़ुशी मे मिठाई के पैसे तो हमारे बनते है।
जैसे ही नर्स की बात सुनी और सासु जी ने उस नर्स को कहा कि कौनसे मिठाई के पैसे,अगर मिठाई लेनी है तो बच्चे की नानी से मांगो,पहली डिलेवरी का सब खर्चा करने का फर्ज तो इनका है।उनकी बात सुनकर मैं अंदर ही अंदर परेशान हो गई और विचार मे पड़ गई कि एक मिठाई के लिए जो इतना सोच रहे है वो क्या मेरे बच्चे को पालेंगे।मुझे अपना भविष्य आँखों के सामने नजर आ रहा था।
4 दिन बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुई और मम्मी के घर गई।। 9 वे दिन मेरे बेटे का सूरज पूजा
और श पर नाम आया तो मेरी छोटी बहन इंद्रा ने मेरे बेटे का नाम शुभम रखा। 17 फरवरी को बेटा हुआ और 1 मार्च को सेकंड ईयर के exam शुरू होने थे,सब ने मना कर दिया कि इस बार के exam नहीं देगी परन्तु मैं अपना एक भी साल व्यर्थ नहीं जाने देना चाहती थी,इसलिए मैंने एग्जाम देने का निश्चय किया।मेरे बच्चे की और मेरी देखरेख के लिए कुछ महीने मेरी नानीजी मेरे पास आई।
मैं रात को पढ़ाई करती और नानी पूरी रात मेरे बच्चे को देखती रहती।कई बार तो वो रात को बहुत रोता था,कभी मैं उसको गोदी मे लेकर पढ़ती तो कभी झूला देते हुए।
1 मार्च को मेरा पहला पेपर था,शुभम 15 दिन का ही था मैं exam देने गई।हालात ऐसी थी कि exam मे तीन घंटे बैठना भारी हो रहा था फिर भी जैसे तैसे जल्दी से पेपर ख़त्म किया और घर गई।घर पर शुभम भूख के मारे इतना रो रहा था कि मेरी मम्मी और नानी परेशान हो गए। घर आते ही मैंने जैसे ही उसे गोदी मे लिया कि बिल्कुल चुप हो गया,उस दिन अहसास हुआ कि एक माँ और बच्चे का रिश्ता क्या होता है,
कितना अनमोल बनाया है भगवान् ने इस रिश्ते को । 15 दिन के बच्चे को छूते ही माँ का अहसास हो गया।
अदभूत है लीला भगवान् की।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम ।"
4 दिन बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुई और मम्मी के घर गई।। 9 वे दिन मेरे बेटे का सूरज पूजा
और श पर नाम आया तो मेरी छोटी बहन इंद्रा ने मेरे बेटे का नाम शुभम रखा। 17 फरवरी को बेटा हुआ और 1 मार्च को सेकंड ईयर के exam शुरू होने थे,सब ने मना कर दिया कि इस बार के exam नहीं देगी परन्तु मैं अपना एक भी साल व्यर्थ नहीं जाने देना चाहती थी,इसलिए मैंने एग्जाम देने का निश्चय किया।मेरे बच्चे की और मेरी देखरेख के लिए कुछ महीने मेरी नानीजी मेरे पास आई।
1 मार्च को मेरा पहला पेपर था,शुभम 15 दिन का ही था मैं exam देने गई।हालात ऐसी थी कि exam मे तीन घंटे बैठना भारी हो रहा था फिर भी जैसे तैसे जल्दी से पेपर ख़त्म किया और घर गई।घर पर शुभम भूख के मारे इतना रो रहा था कि मेरी मम्मी और नानी परेशान हो गए। घर आते ही मैंने जैसे ही उसे गोदी मे लिया कि बिल्कुल चुप हो गया,उस दिन अहसास हुआ कि एक माँ और बच्चे का रिश्ता क्या होता है,
अदभूत है लीला भगवान् की।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम ।"
मेरा सच-चरण 20 -अपने बच्चे को लेकर जब पहली बार गई सुसराल
17 फरवरी 1999 को बेटा हुआ और 1 मार्च 1999 से जून तक सेकंड इयर के exam चलते रहे।करीबन 5 महीने तक मैं अपने पीहर ही रही क्योकि सुसराल की स्थितियों को देखते हुए पापा मुझे छोटे बच्चे को लेकर जल्दी वहां भेजना नही चाहते थे।5 महीने बाद जुलाई मे मेरे ससुर जी अपने पोते यानी मेरे बेटे से मिलने आये।आते ही मेरी मम्मी ने उनसे कहा-"समधी जी!अपने पोते से मिलने बहुत जल्दी आये आप!"इतनी भी क्या जल्दी थी। थोड़े टाइम ओर रुक जाते तो शायद बच्चा दादाजी कहने जितना बड़ा हो जाता।"मम्मी के व्यंग्य भरी बातो से वो समझ गए थे कि मम्मी क्या कहना चाह रही थी।
मेरे ससुर जी के चेहरे पर पोते की खुशी कम और खर्चे की टेंशन ज्यादा थी।पर फिर भी लोक लाज के भय से पापा को बोल दिया कि" बहु ओर पोते को घर भेज देना। हालांकि पापा मुझे तब तक भेजना नही चाहते थे जब तक मेरे पति मेरी और बच्चे की ज़िमेदारी नही ले लेते। ।मेरे पापा जब भी मेरे पति से इस बारे मे बात करते वो कुछ बोलते ही नही थे और चुपचाप सुनते रहते थे।पापा को लगता था कि लड़का भोला है ,सीधा हैं धीरे धीरे कमाने लग जायेगा तो परिवार मे भी शांति हो जाएगी।मै तो पहले ही अपने पति से बहुत प्रेम करती थी इसलिए उनकी हर कमी को मैं स्वीकार कर चुकी थी।
इसलिए मैंने अब तक उनको कुछ नही कहा।बच्चे को लेकर अपने सुसराल जाने की उत्सुकता मुझे भी थी इसलिए बिना कोई मनमुटाव रखे खुशी खुशी वापस अपने सुसराल चली गई।
जुलाई 1999 को 5 महीने का बच्चा लेकर वापस अपने सुसराल आ गई। कुछ दिन बहुत शांति से सब कुछ अच्छे से चलता है।ससुरजी ही सब सब्जिया दूध और राशन का सामान ला रहे थे,बिल भी जमा करा रहे थे।एक दिन मैंने अपने पति को समझाया कि-"थोड़ा बहुत खर्चा आप भी कर लिया करो
ताकि परिवार मे क्लेश न हो।मेरे पति का कहना था कि मेरे पास पैसे नही है ,मैं कहाँ से दु?
अगर पापा मम्मी करते हैं तो कौनसी बड़ी बात है। इनके पास तो पैसा है,ये खर्च करे या मैं करू बात तो एक ही है।।मैं जो कहना चाहती थी पति समझना ही नही चाहते थे।मुझे हर समय लड़ाई झगड़े की आशंका सताती रहती थी कब यहां घमासान युद्ध हो जाये इसकी कोई गारंटी नही थी।
बच्चे के साथ तीन महीने तो ईश्वर की कृपा से शांति से निकले ,लेकिन थोड़े दिन बाद सास ससुर ने घर का सामान लाना बंद कर दिया। एक एक करके सारे डिब्बे मे से सामान खत्म हो रहा था,मैं राह देखती कि कब ,कौन सामान लाएगा।
घूंघट के कारण ससुरजी से बोल नही पाती थी।
सासु जी सप्ताह ,पंद्रह दिन मे आते थे और पति मेरी बात सुनने को तैयार नही।
एक दिन की बात है,सुबह जब मैं अपने ससुर जी के लिए टिफिन पैक कर रही थी तभी मैंने एक चिट्ठी लिखकर टिफिन मे रख दी।
"चिट्ठी इस प्रकार थी-
आदरणीय पापा जी,
मैं मानती हूं आपका बेटा खर्चा नही करके बहुत बड़ी गलती करते है पर,मैंने भी कई बार इनको समझाया लेकिन ये मेरी बात भी नही सुनते ।मैं क्या करूँ ,आप भी सामान न लाओ और आपका बेटा भी न लाये तो मै खाना कैसे बनाऊ? इसलिए कृपा करके शाम को सामान जरूर लेकर आना।
आपकी बहु
राधा
ससुरजी ने चिट्ठी पढ़ी तो शाम को सामान तो ले आये लेकिन जब 15 दिन बाद सासुजी आये तो उनके सामने उस चिट्ठी का जिक्र करके घर मे क्लेश कर दिया।और मेरे पति को बोला कि-
"तेरी पत्नी मुझे चिट्ठी लिखती है और तुम दोनों मुझे बेवकूफ बनाते हो। बहु!मै अच्छे से समझता हूं तुम दोनों की राय एक है,जरूर तेरे पियर वालो ने सिखाया होगा कि घर मे खर्चा मत करना इसीलिए ये खर्चा नही देता।अब तो मेरे सब्र का बांध टूट पड़ा और मैं बोली कि"पापा मेरे पियर वालो को बीच मे मत लाओ,वो क्यो ऐसा बोलेंगे।इतने मे मेरे सासुजी बोल पड़े, बहु!थोडी लाज शर्म रखा कर,सबके सामने कैसे जवाब दे रही है।इतने मे मेरे पति भी बीच मे आ जाते है,बात इतनी बढ़ जाती है कि दोनों बाप बेटे एक दूसरे से ऐसे भिड़ जाते हैं जैसे कोई बरसो के दुश्मन।
लड़ लड़ के सब अपने अपने काम पर चले गए और मैं रो रो कर अपनी आँखें खराब करती रही।
मेरे ससुर जी के चेहरे पर पोते की खुशी कम और खर्चे की टेंशन ज्यादा थी।पर फिर भी लोक लाज के भय से पापा को बोल दिया कि" बहु ओर पोते को घर भेज देना। हालांकि पापा मुझे तब तक भेजना नही चाहते थे जब तक मेरे पति मेरी और बच्चे की ज़िमेदारी नही ले लेते। ।मेरे पापा जब भी मेरे पति से इस बारे मे बात करते वो कुछ बोलते ही नही थे और चुपचाप सुनते रहते थे।पापा को लगता था कि लड़का भोला है ,सीधा हैं धीरे धीरे कमाने लग जायेगा तो परिवार मे भी शांति हो जाएगी।मै तो पहले ही अपने पति से बहुत प्रेम करती थी इसलिए उनकी हर कमी को मैं स्वीकार कर चुकी थी।
इसलिए मैंने अब तक उनको कुछ नही कहा।बच्चे को लेकर अपने सुसराल जाने की उत्सुकता मुझे भी थी इसलिए बिना कोई मनमुटाव रखे खुशी खुशी वापस अपने सुसराल चली गई।
जुलाई 1999 को 5 महीने का बच्चा लेकर वापस अपने सुसराल आ गई। कुछ दिन बहुत शांति से सब कुछ अच्छे से चलता है।ससुरजी ही सब सब्जिया दूध और राशन का सामान ला रहे थे,बिल भी जमा करा रहे थे।एक दिन मैंने अपने पति को समझाया कि-"थोड़ा बहुत खर्चा आप भी कर लिया करो
अगर पापा मम्मी करते हैं तो कौनसी बड़ी बात है। इनके पास तो पैसा है,ये खर्च करे या मैं करू बात तो एक ही है।।मैं जो कहना चाहती थी पति समझना ही नही चाहते थे।मुझे हर समय लड़ाई झगड़े की आशंका सताती रहती थी कब यहां घमासान युद्ध हो जाये इसकी कोई गारंटी नही थी।
बच्चे के साथ तीन महीने तो ईश्वर की कृपा से शांति से निकले ,लेकिन थोड़े दिन बाद सास ससुर ने घर का सामान लाना बंद कर दिया। एक एक करके सारे डिब्बे मे से सामान खत्म हो रहा था,मैं राह देखती कि कब ,कौन सामान लाएगा।
घूंघट के कारण ससुरजी से बोल नही पाती थी।
एक दिन की बात है,सुबह जब मैं अपने ससुर जी के लिए टिफिन पैक कर रही थी तभी मैंने एक चिट्ठी लिखकर टिफिन मे रख दी।
"चिट्ठी इस प्रकार थी-
आदरणीय पापा जी,
मैं मानती हूं आपका बेटा खर्चा नही करके बहुत बड़ी गलती करते है पर,मैंने भी कई बार इनको समझाया लेकिन ये मेरी बात भी नही सुनते ।मैं क्या करूँ ,आप भी सामान न लाओ और आपका बेटा भी न लाये तो मै खाना कैसे बनाऊ? इसलिए कृपा करके शाम को सामान जरूर लेकर आना।
आपकी बहु
राधा
ससुरजी ने चिट्ठी पढ़ी तो शाम को सामान तो ले आये लेकिन जब 15 दिन बाद सासुजी आये तो उनके सामने उस चिट्ठी का जिक्र करके घर मे क्लेश कर दिया।और मेरे पति को बोला कि-
"तेरी पत्नी मुझे चिट्ठी लिखती है और तुम दोनों मुझे बेवकूफ बनाते हो। बहु!मै अच्छे से समझता हूं तुम दोनों की राय एक है,जरूर तेरे पियर वालो ने सिखाया होगा कि घर मे खर्चा मत करना इसीलिए ये खर्चा नही देता।अब तो मेरे सब्र का बांध टूट पड़ा और मैं बोली कि"पापा मेरे पियर वालो को बीच मे मत लाओ,वो क्यो ऐसा बोलेंगे।इतने मे मेरे सासुजी बोल पड़े, बहु!थोडी लाज शर्म रखा कर,सबके सामने कैसे जवाब दे रही है।इतने मे मेरे पति भी बीच मे आ जाते है,बात इतनी बढ़ जाती है कि दोनों बाप बेटे एक दूसरे से ऐसे भिड़ जाते हैं जैसे कोई बरसो के दुश्मन।
एक ही सहारा था ईश्वर। ईश्वर के सामने जाकर उनसे बाते करने लगी।
अगले दिन फिर उन्ही ब्यूटी पार्लर वाले मेडम से मिलने गई जहा मैंने 20 रुपये दिन की नोकरी करी थी।उन्हें जाकर अपनी समस्या बताई,उन्होंने मुझे वहां काम दे दिया और बच्चे को भी साथ मे लाने के लिए बोल दिया।
अब वापस से मै वहां काम जाने लगी।इस बार उन्होंने मुजे 800 रुपये महीने की पगार पर रख लिया।उन दीदी ने तो मेरी मदद कर दी पर अब बच्चे के साथ वहां काम करने मे बहुत मुश्किल आ रही थी।इधर ग्राहक आते और उसी समय शुभम भी रोने लगता। किसी के यहां काम करो और उसको अच्छे से न कर पाओ,ये मुजे अच्छा नही लग रहा था।अगर किसी की नोकरी अच्छे से न कर सकू तो वहाँ से पगार लेना मेरे लिए अनुचित था। मैंने कुछ ही दिनों मे वापस काम छोड़ दिया।पर मेरा स्वाभिमान मुझे खाली बैठने की इजाजत नही दे रहा था। वही सास ससुर के ताने ओर झगड़े रह रह कर मुजे याद आ रहे थे।अब तो अक्सर मेरी पति से भी लड़ाई हो जाती क्योकि वो न मेरी बात सुनते ओर न घर वालो की,केवल अपनी मनमानी करते थे।
एक दिन मुजे एक उपाय सुझा कि क्यो न मैं बच्चो को ट्यूशन पढ़ा लू ।मैंंने एक बोर्ड बनाया उस पर ट्यूशन सेंटर लिखा और उसे मेरे घर की गली के यहां लगा दिया।लेकिन दुर्भाग्य वश 4 दिन बाद ही उस बोर्ड को कोई उठा कर ले गया।मुझे फिर चिंता हो गई कि अब क्या काम करू?बड़ी विकट परिस्थिति थी कि अपने आत्म सम्मान को कैसे बचाऊ
लेकिन जब जब इंसान अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए बेचैन होता है
ईश्वर कोई न कोई रास्ता अवश्य दिखाता है।एक हाथ से वो परीक्षा लेता है तो दूसरे हाथ से उसका रास्ता भी दिखाता है।
"सत्यम। शिवम। सुंदरम "।।
आगे की कहानी के लिए देखिये मेरा अगला ब्लॉग पोस्ट मेरा सच
अगले दिन फिर उन्ही ब्यूटी पार्लर वाले मेडम से मिलने गई जहा मैंने 20 रुपये दिन की नोकरी करी थी।उन्हें जाकर अपनी समस्या बताई,उन्होंने मुझे वहां काम दे दिया और बच्चे को भी साथ मे लाने के लिए बोल दिया।
अब वापस से मै वहां काम जाने लगी।इस बार उन्होंने मुजे 800 रुपये महीने की पगार पर रख लिया।उन दीदी ने तो मेरी मदद कर दी पर अब बच्चे के साथ वहां काम करने मे बहुत मुश्किल आ रही थी।इधर ग्राहक आते और उसी समय शुभम भी रोने लगता। किसी के यहां काम करो और उसको अच्छे से न कर पाओ,ये मुजे अच्छा नही लग रहा था।अगर किसी की नोकरी अच्छे से न कर सकू तो वहाँ से पगार लेना मेरे लिए अनुचित था। मैंने कुछ ही दिनों मे वापस काम छोड़ दिया।पर मेरा स्वाभिमान मुझे खाली बैठने की इजाजत नही दे रहा था। वही सास ससुर के ताने ओर झगड़े रह रह कर मुजे याद आ रहे थे।अब तो अक्सर मेरी पति से भी लड़ाई हो जाती क्योकि वो न मेरी बात सुनते ओर न घर वालो की,केवल अपनी मनमानी करते थे।
एक दिन मुजे एक उपाय सुझा कि क्यो न मैं बच्चो को ट्यूशन पढ़ा लू ।मैंंने एक बोर्ड बनाया उस पर ट्यूशन सेंटर लिखा और उसे मेरे घर की गली के यहां लगा दिया।लेकिन दुर्भाग्य वश 4 दिन बाद ही उस बोर्ड को कोई उठा कर ले गया।मुझे फिर चिंता हो गई कि अब क्या काम करू?बड़ी विकट परिस्थिति थी कि अपने आत्म सम्मान को कैसे बचाऊ
लेकिन जब जब इंसान अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए बेचैन होता है
"सत्यम। शिवम। सुंदरम "।।
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मेरा सच-चरण -21- दो महान विभूतियों से हुआ मेरा परिचय और मुझे मिली एक सच्ची मित्र
एक दिन उन्ही ब्यूटी पार्लर के मेडम ने मुझे बुलाया और कहा कि-"राधा, मेरे किसी मिलने वाले को गठिया की प्रॉब्लम है,और वो चल फिर नही सकते हैं, क्या तुम सप्ताह मे 2 बार उनकी मसाज कर सकती हो?मैंने कहा कि,एक बार आप मुझे उनसे मिलवा दो,अगर जम गया तो कर दूँगी। मैं उन मेडम के साथ उन ऑन्टी के यहां गई तो मैंने देखा कि उन ऑन्टी के हाथ पैर बिल्कुल मुड़े हुए थे।वो बिल्कुल बिस्तर पर थे।
उन्होंने मुझसे बहुत अच्छे से बात करी, और अगले ही दिन मसाज के लिए आने को बोल दिया।मैंने उनको हाँ तो कर दी पर घर आकर ये सोच सोच कर डर रही थी कि उनकी मसाज करते समय,या उनके कपड़े चेंज करते समय कही मैंने उनको गिरा दिया तो क्या होगा?
इसी डर के कारण मै उनके यहां मसाज के लिए नही गई।उस समय कोई फ़ोन या मोबाइल नही था कि जिससे मैं उनको नही आने की सूचना दे सकू।थोड़े दिन बाद एक दिन फिर मै उस पार्लर पर ऐसे ही मेडम से मिलने गईं तो उन्होंने मुझे डांटा कि तुम वहां मसाज के लिए क्यो नही गई?मैंने उनको साफ कह दिया कि उनके मुड़े हुए हाथ पैरों से मुझे डर लगता है तो मै उनकी मसाज नही कर सकती।उन मेडम ने मुझे समझाया कि तुम एक बार डर निकाल कर उनकी मसाज चालू कर दो,तुम्हे उनकी बहुत दुआए लगेगी,तुम मना मत करो।वहां तुम अपने बच्चे को भी साथ मे ले जा सकती हो।उनके बार बार फ़ोर्स करने पर मैं ईश्वर की इच्छा समझकर उन ऑन्टी के यहां गई।पहली बार खुद अपने हाथ से उनके कपडे चेंज करे और धीरे धीरे हल्के हाथ से उनकी मसाज करी।पहली बार मे ही उनको मेरा काम पसंद आ गया और उन्होंने सप्ताह मे दो दिन मसाज के लिये बांध दिए।25 रुपये एक मसाज पर तय किये । कुछ ही दिनों मे उन ऑन्टी से मेरा दिल का रिश्ता हो गया।
उन ऑन्टी का नाम नाहिद था।नाहिद ऑन्टी दिल के बहुत अच्छे थे,अपने मुड़े हुए हाथो से वो पेंटिंग बनाते थे और उस पैंटिंग को बाजार मे बिकने के लिए भेजते थे।उस पेंटिंग के पैसों से वो अनाथ आश्रम मे बच्चो के लिए कपड़े,किताबे इत्यादि भेजते थे।उनकी इस परोपकारी भावना को देखकर मुझे अपने आप पर शर्म आने लगी कि मैंने इतने अच्छे इंसान की मसाज करने के लिए कैसे मना कर दिया।अब तो मैं नाहिद ऑन्टी के दिल के बहुत करीब हो गई।वो मुझसे बहुत प्यार करने लगी थी।मैं अपने दुख सुख की बात उनसे करती थी।नाहिद ऑन्टी ने उनके सभी रिश्तेदारों को फ़ोन करके बताया कि,"मेरे यहाँ जो राधा मसाज के लिए आती है वो बहुत अच्छी लड़की है और बहुत अच्छी मसाज करती है,इसलिए आप सभी मेरी राधा से एक बार मसाज जरूर कराना।"
इस तरह मेरे काम की पब्लिसिटी करने लगे।थोड़े दिन बाद मुझे और लोग भी मसाज करवाने के लिए बुलाने लगे।
एक मसाज के 25 रुपये लेती थी और eyebrow के 5 रुपये लेती थी।
अब धीरे धीरे मुझे लोगो से बात करना आने लगा और मैं कई बार अपने घर के बाहर खड़ी होकर आने जाने वाले लोगो को अपने ब्यूटी पार्लर के काम के बारे मे बताती जिससे धीरे धीरे आस पास के लोग मुझसे eyebrow, सिर की मेहंदी करवाने लगे थे,जिससे मेरे बच्चे के दूध और थोड़ा बहुत ख़र्चा निकल जाता था।
एक दिन मेरे घर से थोड़ी दूरी पर एक दीदी के सिर मे मेहंदी लगाने गई,और उन दीदी से भी एक ही बार मे दोस्ती हो गई।
अब तो उनके यहां भी हर संडे को मेहंदी लगाने जाती,साथ मे शुभम को भो लेकर जाती थी।उस समय शुभम एक साल का था।उन दीदी के दो लड़के थे जिनको शुभम अपने आप ही मामा कहने लगा।थोड़े समय बाद उन दीदी से इतना गहरा रिश्ता हो गया कि उनके दोनों बच्चो को मैं राखी बांधने लगी
और देखते देखते कब वहां एक रिश्ता जुड़ गया पता ही नही चला।
एक तरफ सुसराल का तनाव भरा वातावरण था तो दूसरी तरफ अनजान लोगो से दिल के रिश्ते जुड़ रहे थे जहाँ जाकर मै सुकून पाती थी।एक नाहिद ऑन्टी का रिश्ता और दूसरा उन दीदी का जिनका नाम कैलाश है जो मेरी बहुत अच्छी सहेली बन गई ।
उनके बेटो को राखी बांधकर कर ईश्वर ने एक अनमोल रिश्ता जोड़ दिया ।कैलाश दीदी ने न केवल मुझे अपनी सहेली माना बल्कि एक माँ की तरह मेरा ध्यान रखा।कैलाश दीदी का मेरे जीवन मे आना ईश्वर का बहुत बड़ा उपहार था।ईश्वर की लीला अपरम्पार है।दुःखो के अथाह सागर मे भी छोटी छोटी खुशियां आये दिन स्वागत करती रहती है,बस हम इंसान ही इन खुशियो को पहचान नहीं पाते है।
एक तरफ अभाव होता है तो दूसरी तरफ उस अभाव को भरने के लिए ईश्वर किसी न किसी को माध्यम बनाकर भेज देता है।लेकिन संघर्ष फिर भी जारी रहता है।
ये ही तो सच है।
इसी डर के कारण मै उनके यहां मसाज के लिए नही गई।उस समय कोई फ़ोन या मोबाइल नही था कि जिससे मैं उनको नही आने की सूचना दे सकू।थोड़े दिन बाद एक दिन फिर मै उस पार्लर पर ऐसे ही मेडम से मिलने गईं तो उन्होंने मुझे डांटा कि तुम वहां मसाज के लिए क्यो नही गई?मैंने उनको साफ कह दिया कि उनके मुड़े हुए हाथ पैरों से मुझे डर लगता है तो मै उनकी मसाज नही कर सकती।उन मेडम ने मुझे समझाया कि तुम एक बार डर निकाल कर उनकी मसाज चालू कर दो,तुम्हे उनकी बहुत दुआए लगेगी,तुम मना मत करो।वहां तुम अपने बच्चे को भी साथ मे ले जा सकती हो।उनके बार बार फ़ोर्स करने पर मैं ईश्वर की इच्छा समझकर उन ऑन्टी के यहां गई।पहली बार खुद अपने हाथ से उनके कपडे चेंज करे और धीरे धीरे हल्के हाथ से उनकी मसाज करी।पहली बार मे ही उनको मेरा काम पसंद आ गया और उन्होंने सप्ताह मे दो दिन मसाज के लिये बांध दिए।25 रुपये एक मसाज पर तय किये । कुछ ही दिनों मे उन ऑन्टी से मेरा दिल का रिश्ता हो गया।
इस तरह मेरे काम की पब्लिसिटी करने लगे।थोड़े दिन बाद मुझे और लोग भी मसाज करवाने के लिए बुलाने लगे।
अब धीरे धीरे मुझे लोगो से बात करना आने लगा और मैं कई बार अपने घर के बाहर खड़ी होकर आने जाने वाले लोगो को अपने ब्यूटी पार्लर के काम के बारे मे बताती जिससे धीरे धीरे आस पास के लोग मुझसे eyebrow, सिर की मेहंदी करवाने लगे थे,जिससे मेरे बच्चे के दूध और थोड़ा बहुत ख़र्चा निकल जाता था।
एक दिन मेरे घर से थोड़ी दूरी पर एक दीदी के सिर मे मेहंदी लगाने गई,और उन दीदी से भी एक ही बार मे दोस्ती हो गई।
अब तो उनके यहां भी हर संडे को मेहंदी लगाने जाती,साथ मे शुभम को भो लेकर जाती थी।उस समय शुभम एक साल का था।उन दीदी के दो लड़के थे जिनको शुभम अपने आप ही मामा कहने लगा।थोड़े समय बाद उन दीदी से इतना गहरा रिश्ता हो गया कि उनके दोनों बच्चो को मैं राखी बांधने लगी
और देखते देखते कब वहां एक रिश्ता जुड़ गया पता ही नही चला।
एक तरफ सुसराल का तनाव भरा वातावरण था तो दूसरी तरफ अनजान लोगो से दिल के रिश्ते जुड़ रहे थे जहाँ जाकर मै सुकून पाती थी।एक नाहिद ऑन्टी का रिश्ता और दूसरा उन दीदी का जिनका नाम कैलाश है जो मेरी बहुत अच्छी सहेली बन गई ।
उनके बेटो को राखी बांधकर कर ईश्वर ने एक अनमोल रिश्ता जोड़ दिया ।कैलाश दीदी ने न केवल मुझे अपनी सहेली माना बल्कि एक माँ की तरह मेरा ध्यान रखा।कैलाश दीदी का मेरे जीवन मे आना ईश्वर का बहुत बड़ा उपहार था।ईश्वर की लीला अपरम्पार है।दुःखो के अथाह सागर मे भी छोटी छोटी खुशियां आये दिन स्वागत करती रहती है,बस हम इंसान ही इन खुशियो को पहचान नहीं पाते है।
एक तरफ अभाव होता है तो दूसरी तरफ उस अभाव को भरने के लिए ईश्वर किसी न किसी को माध्यम बनाकर भेज देता है।लेकिन संघर्ष फिर भी जारी रहता है।
ये ही तो सच है।
मेरा सच-चरण 22 -सासु माँ ने किया परेशान,आधी रात को गई मायके
सत्र 2000 की बात है, जब मेरा बेटा शुभम एक साल का था।
एक रात को मैं, मेरे पति और मेरा बेटा अपने कमरे मे सो रहे थे कि अचानक करीब 12 या साढ़े बारह बजे मेरे सासु जी ने दरवाजा खटखटाया।मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझे कहा कि-मेरे कमरे मे मैं जब चाहू तब कुछ भी लेने आ सकती हूं,इसलिए दरवाजा अंदर से बंद करने की जरूरत नही हैं।इस पर मेरे पति बोल पड़े कि मम्मी आपको कुछ चाहिए था तो पहले ही ले लेते।इस बात से दोनों माँ बेटो मे झगड़ा हो गया और झगड़ा इतना बढ़ गया कि मेरे सासु जी जोर जोर से चिल्लाने लगे और मुझे भला बुरा कहने लगे।कहने लगे कि-अगर कमरा बंद करने का इतना ही शौक है तो अपने बाप को कहती कि मकान साथ मे दे देते।
मुझे भी गुस्सा आया और मैंने भी कह दिया कि -अगर मेरे पापा मकान बना कर देते तो आपके यहाँ क्या लेने आती,वही रह जाती।।मेरी बात से उनका गुस्सा और बढ़ गया और उन्होंने गुस्से गुस्से मे मेरे पलंग पर बिछा हुआ गद्दा छीन कर ले लिया और बोला कि अपने बाप के दिये हुए बिस्तर को बिछा कर सोना,ये मेरे गद्दे है,इस पर सोने की जरूरत नही है।झगड़ा इतना बढ़ गया कि आधी रात को मेरे पति अपने एक मामा को बुला कर लेकर आये।मेरे मामा ससुर ने मेरे सासुजी को इतना समझाया कि तू इन बच्चो के साथ गलत कर रही है,पर वो नही माने बल्कि उनके सामने मुझे बहुत भला बुरा बोला और उतने मे मेरे ससुर जी भी बीच मे आ गए और कहने लगे कि घर का खर्चा तो तुम करते नही और सामने बोल रहे हो।खर्चा तो पति नही करते थे और उनका इशारा मेरी तरफ था।उन्होंने भी गुस्से मे कहा कि - "गेट आउट",उनकी इस अपमानजनक बात को मैं सहन नही कर पा रही थी।मैं रोने लगी और अपने पति से कहने लगी कि इसी समय मुझे अपने मम्मी के घर छोड़ कर आओ वर्ना मैं अकेली कहीं चली जाउंगी ।
मेरे पति ने मेरी जिद को माना और रात को 1 बजे मैं अपने एक साल के बच्चे को लेकर अपने पति के साथ साईकल पर बैठ कर मम्मी के वहा गई।जैसे ही वहाँ पहुंची ,मेरे चेहरे को देखकर मेरे पीहर वाले सारी बात समझ गए।पापा को इतना गुस्सा आया कि वो रात को ही मेरे सुसराल जाने के लिए आतुर हो गए पर मम्मी ने रोक लिया कि बाद मे कल परसो आराम से बात करेंगे।मेरे पति ने सोचा कि बात ठंडी पड़ जाएगी तब मुझे वापस ले जाएंगे और वो मुझे अपने पीहर ही छोड़ कर घर चले गए।
उसके बाद अगले दिन से मेरे पापा ने घर की एक एक बात मुझसे पूँछी। हालांकि मेरी मम्मी ने मुझे मना किया कि-पापा को सुसराल की हर बात मत बताना क्योकि उनका गुस्सा बहुत खराब है।लेकिन पापा ने जब मुझसे पूछा तो मैं झूठ नही बोल पाई और हर बात बता दी
अब क्या था पापा ने साफ मना कर दिया कि जब तक मै न बोलू वापस अपने सुसराल नही जाएगी।
करीबन 5 या 6 दिन बाद मेरे पति मुझे लेने आये तो मैंने मना कर दिया कि जब तक पापा नही भेजेंगे मैं नही आउंगी।मेरे पति भी मुझ पर गुस्सा हो गए और शादी के बाद पहली बार उस दिन हम दोनों के बीच झगड़ा हुआ।
मेरे पापा ने मेरे पति से कहा कि "अगर मेरी बेटी को ले जाना हो तो अपने पापा और अपने रिश्तेदारों को लेकर आना,सबके सामने बात करके ही भेजूंगा।"
मेरे पति नाराज होकर वापस चले गए और फिर 1 महीने तक वापस मेरी कोई खबर नही ली।इसी बीच किसी के थ्रू मुझे एक आफिस मे रिसेप्शनिष्ट की नोकरी मिल गई
।मैं अपने बेटे को मम्मी ओर बहनो के संरक्षण मे रखकर रोज 11 से 7 तक की नोकरी करने लगी।मेरी मम्मी और बहनों ने मेरे बच्चे के पालन पोषण और प्यार मे कोई कमी नहीं रखी।मेरी दोनो बहने तो दिन भर उसी के पीछे घूमती रहती।कभी उसे तैयार करके स्कूल भेजना तो कभी उसे नहलाना,होमवर्क करवाना,उसके सारे कार्य बहुत प्रेम से करती।उनका ये प्यार और सहानुभूति मैं जीवन भर स्मरण रखूँगी।
मम्मी के घर से आफिस बहुत दूर था।मैं वहां से सिटी बस मे बैठकर जाती थी।शाम को आते समय बहुत देर हो जाती थी,पापा बस स्टैंड पर रोज मेरा इंतजार करते थे क्योंकि उन्हें डर लगता था कि मेरी बेटी सुसराल की परेशानी की वजह से कुछ कर न बैठे,पर वो ये भूल रहे थे कि उनकी बेटी सच्चाई और स्वाभिमान की ऐसी परीक्षा दे रही थी जिसमे आत्महत्या जैसे पाप की कोई जगह नही थी।मैंने बचपन से ही ये प्रण लिया था कि चाहे जीवन मे कितनी ही कठिनाई आ जाये पर आत्महत्या जैसी बात का कभी सपने मे भी विचार नही करूँगी और हर समस्या का सामना करूँगी ।
अब तो रोज का यही क्रम हो गया था,11 बजे से 8 बजे तक ऑफिस ओर घर आकर अपने बच्चे को देखती,फिर रात को अपनी पढ़ाई करती ।उस समय नींद मुझे बहुत कम आती थी,
देर रात तक पढ़नाऔर फिर सोते सोते अपनी चिंता मे खो जाती और फिर कब नींद आती पता ही नही चलता था।
दिन गुजरते गए औऱ इस तरह पीहर मे रहते रहते भी तीन महीने बीत गए।एक दिन अचानक मेरे पति,मेरे ससुर जी और मेरे दो मामा ससुर जी घर आये और उन्होंने मेरे पापा से बात करी कि बहु को घर भेज दो।मेरे पापा ने मेरे पति और ससुरजी को खरी खोटी सुनाई ओर मुझे भेजने के लिये मना कर दिया।मेरे ससुर जी ने कहा कि,-"अब मै इन दोनों को अपने साथ मे नही रख सकता,अब ये अपनी रसोई अलग रखेंगे।इस बात को सुनकर पापा और भड़क गए और बोला कि अगर इतनी जल्दी अलग रखना था तो शादी ही मत कराते।इस तरह बहुत सारी बातों से झगड़ा हो गया।साथ मे आये मेरे पति के मामा ने मेरे पापा को समझाया कि इन बच्चो को अलग मत करो,देखो दूर रहकर दोनो ही टेंशन मे है,इसलिए इन बच्चो की तरफ देखकर आप इसी निर्णय पर भेज दो कि अब ये दोनों अपना खाना अलग बना कर खाएंगे।मामाजी ने मेरे पति को बोला कि तुम दोनों को अब अलग रहना हैं तो क्या तुम अपना खर्चा उठा लोगे।मेरे पति ने कहा कि हां ,मैं खर्चा उठा लूंगा।पापा ने कहा कि-क्या अब मुझ तक कोई शिकायत नही आएगी।मेरे पति ने हर चीज के लिए सबके सामने हर बात स्वीकार कर ली।
एक रात को मैं, मेरे पति और मेरा बेटा अपने कमरे मे सो रहे थे कि अचानक करीब 12 या साढ़े बारह बजे मेरे सासु जी ने दरवाजा खटखटाया।मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझे कहा कि-मेरे कमरे मे मैं जब चाहू तब कुछ भी लेने आ सकती हूं,इसलिए दरवाजा अंदर से बंद करने की जरूरत नही हैं।इस पर मेरे पति बोल पड़े कि मम्मी आपको कुछ चाहिए था तो पहले ही ले लेते।इस बात से दोनों माँ बेटो मे झगड़ा हो गया और झगड़ा इतना बढ़ गया कि मेरे सासु जी जोर जोर से चिल्लाने लगे और मुझे भला बुरा कहने लगे।कहने लगे कि-अगर कमरा बंद करने का इतना ही शौक है तो अपने बाप को कहती कि मकान साथ मे दे देते।
मेरे पति ने मेरी जिद को माना और रात को 1 बजे मैं अपने एक साल के बच्चे को लेकर अपने पति के साथ साईकल पर बैठ कर मम्मी के वहा गई।जैसे ही वहाँ पहुंची ,मेरे चेहरे को देखकर मेरे पीहर वाले सारी बात समझ गए।पापा को इतना गुस्सा आया कि वो रात को ही मेरे सुसराल जाने के लिए आतुर हो गए पर मम्मी ने रोक लिया कि बाद मे कल परसो आराम से बात करेंगे।मेरे पति ने सोचा कि बात ठंडी पड़ जाएगी तब मुझे वापस ले जाएंगे और वो मुझे अपने पीहर ही छोड़ कर घर चले गए।
उसके बाद अगले दिन से मेरे पापा ने घर की एक एक बात मुझसे पूँछी। हालांकि मेरी मम्मी ने मुझे मना किया कि-पापा को सुसराल की हर बात मत बताना क्योकि उनका गुस्सा बहुत खराब है।लेकिन पापा ने जब मुझसे पूछा तो मैं झूठ नही बोल पाई और हर बात बता दी
अब क्या था पापा ने साफ मना कर दिया कि जब तक मै न बोलू वापस अपने सुसराल नही जाएगी।
करीबन 5 या 6 दिन बाद मेरे पति मुझे लेने आये तो मैंने मना कर दिया कि जब तक पापा नही भेजेंगे मैं नही आउंगी।मेरे पति भी मुझ पर गुस्सा हो गए और शादी के बाद पहली बार उस दिन हम दोनों के बीच झगड़ा हुआ।
मेरे पति नाराज होकर वापस चले गए और फिर 1 महीने तक वापस मेरी कोई खबर नही ली।इसी बीच किसी के थ्रू मुझे एक आफिस मे रिसेप्शनिष्ट की नोकरी मिल गई
।मैं अपने बेटे को मम्मी ओर बहनो के संरक्षण मे रखकर रोज 11 से 7 तक की नोकरी करने लगी।मेरी मम्मी और बहनों ने मेरे बच्चे के पालन पोषण और प्यार मे कोई कमी नहीं रखी।मेरी दोनो बहने तो दिन भर उसी के पीछे घूमती रहती।कभी उसे तैयार करके स्कूल भेजना तो कभी उसे नहलाना,होमवर्क करवाना,उसके सारे कार्य बहुत प्रेम से करती।उनका ये प्यार और सहानुभूति मैं जीवन भर स्मरण रखूँगी।
मम्मी के घर से आफिस बहुत दूर था।मैं वहां से सिटी बस मे बैठकर जाती थी।शाम को आते समय बहुत देर हो जाती थी,पापा बस स्टैंड पर रोज मेरा इंतजार करते थे क्योंकि उन्हें डर लगता था कि मेरी बेटी सुसराल की परेशानी की वजह से कुछ कर न बैठे,पर वो ये भूल रहे थे कि उनकी बेटी सच्चाई और स्वाभिमान की ऐसी परीक्षा दे रही थी जिसमे आत्महत्या जैसे पाप की कोई जगह नही थी।मैंने बचपन से ही ये प्रण लिया था कि चाहे जीवन मे कितनी ही कठिनाई आ जाये पर आत्महत्या जैसी बात का कभी सपने मे भी विचार नही करूँगी और हर समस्या का सामना करूँगी ।
अब तो रोज का यही क्रम हो गया था,11 बजे से 8 बजे तक ऑफिस ओर घर आकर अपने बच्चे को देखती,फिर रात को अपनी पढ़ाई करती ।उस समय नींद मुझे बहुत कम आती थी,
दिन गुजरते गए औऱ इस तरह पीहर मे रहते रहते भी तीन महीने बीत गए।एक दिन अचानक मेरे पति,मेरे ससुर जी और मेरे दो मामा ससुर जी घर आये और उन्होंने मेरे पापा से बात करी कि बहु को घर भेज दो।मेरे पापा ने मेरे पति और ससुरजी को खरी खोटी सुनाई ओर मुझे भेजने के लिये मना कर दिया।मेरे ससुर जी ने कहा कि,-"अब मै इन दोनों को अपने साथ मे नही रख सकता,अब ये अपनी रसोई अलग रखेंगे।इस बात को सुनकर पापा और भड़क गए और बोला कि अगर इतनी जल्दी अलग रखना था तो शादी ही मत कराते।इस तरह बहुत सारी बातों से झगड़ा हो गया।साथ मे आये मेरे पति के मामा ने मेरे पापा को समझाया कि इन बच्चो को अलग मत करो,देखो दूर रहकर दोनो ही टेंशन मे है,इसलिए इन बच्चो की तरफ देखकर आप इसी निर्णय पर भेज दो कि अब ये दोनों अपना खाना अलग बना कर खाएंगे।मामाजी ने मेरे पति को बोला कि तुम दोनों को अब अलग रहना हैं तो क्या तुम अपना खर्चा उठा लोगे।मेरे पति ने कहा कि हां ,मैं खर्चा उठा लूंगा।पापा ने कहा कि-क्या अब मुझ तक कोई शिकायत नही आएगी।मेरे पति ने हर चीज के लिए सबके सामने हर बात स्वीकार कर ली।
मैंने भी सोचा कि इंसान को अपनी गलती सुधारने का मौका मिलना चाहिए,और दूसरी बात वो मुझे चाहते है तभी तो मुझे लेने आये है,इसलिए मैं अपने पति के साथ वापस जाउंगी।
मेरी इच्छा और मामा जी की बात का मान रखते हुए मेरे पापा ने मुझे अपने सुसराल भेज दिया।
लेकिन मेरी कहानी यहीं खत्म नही होती,आगे और बहुत कुछ घटा है मेरी जिंदगी मे जिसे स्वाभिमान की परीक्षा भी कहा जाए तो गलत नही होगा।जीवन का हर एक मोड़ मुझे किसी सीढ़ी से कम नही लग रहा था।जैसे जैसे एक एक सीढ़ी चढ़ रही थी ऐसा लग रहा था मानो हर सीढ़ी मेरी परीक्षा ले रही हो।
आगे क्या क्या मोड़ मेरी जिंदगी मे आते है,जानने के लिए देखते रहिये -मेरे ब्लॉग पोस्ट
"मेरा सच"
सत्यम शिवम। सुंदरम ।
मेरी इच्छा और मामा जी की बात का मान रखते हुए मेरे पापा ने मुझे अपने सुसराल भेज दिया।
लेकिन मेरी कहानी यहीं खत्म नही होती,आगे और बहुत कुछ घटा है मेरी जिंदगी मे जिसे स्वाभिमान की परीक्षा भी कहा जाए तो गलत नही होगा।जीवन का हर एक मोड़ मुझे किसी सीढ़ी से कम नही लग रहा था।जैसे जैसे एक एक सीढ़ी चढ़ रही थी ऐसा लग रहा था मानो हर सीढ़ी मेरी परीक्षा ले रही हो।
आगे क्या क्या मोड़ मेरी जिंदगी मे आते है,जानने के लिए देखते रहिये -मेरे ब्लॉग पोस्ट
"मेरा सच"
सत्यम शिवम। सुंदरम ।
मेरा सच -चरण 23 - सुसराल ने किया जब पहली बार अलग
अब वापस अपने सुसराल आ गई और ससुरजी की इच्छा के मुताबिद अपने छोटे से कमरे मे एक तरफ रसोई का सामान जमाया।नूतन का स्टोव जो मुझे दहेज मे मिला था
उसे सेट किया ,कुछ सामान मेरी मम्मी ने आते समय दिया ,रसोई के कुछ डिब्बे मेरी सहेली ने दिए और इस तरह मेरी नई रसोई की शुरुआत करी
।ससुरजी ओर देवर को अकेले छोड़ कर खुद के लिए अलग खाना बनाना मुझे बिल्कुल अच्छा नही लग रहा था,पर क्या करती,मन मार कर बना रही थी।क्योंकि सासु जी सप्ताह,पंद्रह दिन मे एक बार आते थे तो देवर या ससुरजी को ही खाना बनाना पड़ता था।एक दिन मेरे देवर अकेले खाना बना रहे थे तो उनको देखकर मुझसे रहा नही गया और मैं ससुरजी के उधर जाकर अपने देवर के हाथ से आटा लिया और रोटी बनाने लगी।अब तो हर रोज शाम को पहले मेरे इधर खाना बनाती उसके बाद ससुरजी के उधर खाना बनाती।बड़ी विकट परिस्थिति थी कि न चाहते हुए भी अलग रहना पड़ा।
इस तरह दिन गुजरते गए ।जैसे तैसे दिन निकाल रहे थे ऑफिस की नोकरी तब भी कर रही थी।सुबह घर की साफ सफाई,
खाना इत्यादि करके शुभम को 10 बजे मम्मी के यहां रखने जाती,फिर वहीं से वापस बस मे बैठकर ऑफिस जाती।शाम को मेरे बेटे को मम्मी के घर से मेरे पति साईकल पर लेकर आते
। कभी कभी तो बेटे को रात को भी मम्मी के यहां ही रहने देते क्योकि रोज लाना ओर छोड़ना मुश्किल था ।एक बार चार दिन लगातार अपने बेटे को मम्मी के यहां छोड़ा हुआ था कि एक रात अचानक मेरी नींद उड़ गई और मेरे बेटे के पास जाने को मन इतना बेचैन हो गयाकि जैसे तैसे रात गुजारी और सुबह उठते ही मैं अपने बेटे से मिलने अपने पीयर चली गई और अपने सोते हुए बेटे को इतना लाड़ किया मानो कई बरसो से उसको नही देखा हो।
एक डेढ़ साल के बच्चे को अपने से दूर रखना मेरी विवशता थी।
कुछ समय निकला,मैंने देखा कि शुरू मे तो मेरे पति रसोई जमाने के लिये राशन का कुछ सामान ले आये और रुचि दिखाई पर फिर धीरे धीरे सामान लाना बंद कर दिया।मै बहुत जोर देकर कहती तो थोड़ा बहुत ले आते।मैंने सोचा कि मै भी थोड़ा बहुत जो कमा रही हु उसी को घर मे खर्च कर दु,क्या फर्क पड़ता है आखिर हम दोनों एक ही गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिये है।मैं कभी दूध ,कभी सब्जी ,कभी घर का सामान कुछ भी खत्म हो जाता ,या तो खुद ले आती या फिर अपने पति को पैसे दे देती।
अब क्या था जब से मैंने घर के खर्चे मे पैसे देने शुरू किए कि मेरे पति जो खर्च करते थे वो भी बंद कर दिया।पर मैं घर मे शांति और प्रेम चाहती थी इसलिए मेरा खर्चा करना मुझे नही दुखता था।मैं अपने पति के साथ प्रेम से रहना चाहती थी चाहे इसके बदले मुझे कितना ही परिश्रम करना पड़े।प्रेम के खातिर मुझसे जितना काम कराओ मैं कर लेती थी।इस तरह मैं जो कुछ भी कमाती वो घर मे खर्च कर देती थी।इस तरह दिन गुजर रहे थे।एक दिन मैंने अपने पति को कुछ रुपये देते हुए बोला कि- इस बार बिजली का बिल आये तो चुपचाप पापा को ये रुपये दे देना पर घर मे झगड़ा मत करना।मेरे पति ने मुझसे झट से रुपये ले लिए।एक दिन सुबह सुबह जब हम नींद से उठे भी नही थे कि ससुरजी ने जोर जोर से आवाज देकर मेरे पति को बाहर बुलाया।मेरे पति ने दरवाजा खोला तो ससुरजी खड़े थे ।बिल देते हुए कहा कि ये जमा करा देना।बिल 1000 रुपये आया,मेरे पति ने अपनी जेब से केवल 250 रुपये ससुरजी को दिए ।इस बात पर ससुरजी बहुत भड़क गए तो मेरे पति ने कहा कि-मेरे तो एक बल्ब और एक पंखा चलता है तो ज्यादा बिल किस बात का दु?
दोनो मे इतनी बहस हुई कि दोनों पिता पुत्र हाथापाई पर आ गए,मैंंने घूंघट ओढ़े हुए दोनों को छुड़ाने की कोशिश की ।धक्का -मुक्की मे मेरा 2 साल का बच्चा शुभम नींद से उठकर जोर जोर से रोने लग गया
ओर दोनो की लड़ाई से बुरी तरह से डर गया कि चुप कराना मुश्किल हो गया।आस पड़ोस के लोग भी अकसर हमारे घर के झगड़ो को देखने आ जाते थे।जैसे तैसे दोनो बाप बेटे शांत होते और फिर अपने अपने काम पर चले जाते,लेकिन मैं वो दृश्य भूल नही पाती थी और काम पर भी जाती तो घंटो सोचती रहती थी।पड़ोसियों के सामने शर्म आती थी,इसलिए आँखे चुराते हुए निकलती थी कि कही कोई मुझे झगड़े के बारे मे कुछ पूछ न ले।
अब धीरे धीरे मुझे अच्छे से समझ आने लगा था कि मेरे सुसराल के सब लोग पक्के कंजूस थे और विशेषतौर पर मेरे पति।कोई एक दूसरे से प्रेम नही करता,केवल पैसों को बचाना ही उनका जीवन था जो सरासर गलत था। उस घर मे आपस मे प्रेम होता तो एक छोटे से बिजली बिल को लेकर इतने झगड़े नही होते।ये लोग झगड़ कर भी वापस अपने आप को नार्मल कर लेते लेकिन मैं बहुत दिनों तक अपने आप को नार्मल नही कर पाती थी।अलग रह कर भी झगड़े कम नही हुए,अब तो हम दोनों पति पत्नी भी अकसर झगड़ जाते थे।बड़े क्लेशपूर्ण वातावरण मे ही दिन गुजार रही थी। थोड़ा समय और निकला और बच्चा भी ढाई साल का हो गया,
और साथ मे मेरा बी.ए. भी हो गया।
बी.ए. के बाद ऐसे माहौल मे पढ़ना अब मेरे लिए मुश्किल हो रहा था फिर भी कुछ मेरे शुभचिंतको ने हिम्मत बंधाई ओर एम. ए प्रीवियस का फॉर्म भरा ।
सत्र 2001 की बात है,मेरे सुसराल मे सासुजी ने कुछ घर मे कंस्ट्रक्शन का काम चलाया।मुझे इस बात का पता ही नही था वर्ना मैं ऑफिस से छुट्टी ले लेती।मैं सुबह अपने घर के काम से फ्री होकरऑफिस के लिए निकली थी कि सासुजी ने तेज चिल्ला कर मुझसे बोला कि-"मेडम बन कर कहाँ जा रही है?यहां घर पर मझदुरो को चाय पानी कौन कराएगा।
मैंने कहा कि-मम्मी जी मुझे आपने बताया थोड़े ही था कि आप ये काम चालू करवा रहे है।मैं अचानक छुट्टी नही ले सकती।पहले बोलना पड़ता है।इस पर सासु जी ने लड़ाई चालू कर दी और गाली गलौच करने लगे।
गुस्से गुस्से मे वो मेरे पियर वालो को गालियां देने लगे और मुझसे कहा कि-"अगर तू मेरे घर मे रही तो तेरे दोनो भाइयो को काट कर खाने के समान होगा यानी तुझे तेरे भाइयो की सौगंध है,मेरे घर से निकल जा।"सासुजी के ये कर्कश वचन सुनकर मुझसे बर्दास्त नही हुआ,और गुस्से से उसी समय अपने पति को कहा कि मैं अब यहां नही रहूंगी,इसी समय मैं किराये का कमरा ढूंढने जा रही हु।पति ने मुजे रोकने की कोशिश करी पर मैंने सोच लिया था कि मैं अब किराये पर ही रहूंगी।गुस्से गुस्से मे और आस पास कई घरों मे पूछा और इत्तफाक से एक जगह कमरा खाली मिल ही गया।मकान मालिक ने 400 रुपये किराया बताया और मैंने बिना सोचे समझे एक ही बार मे हाँ कह दी और कहा कि आज ही शिफ्ट होने आ रही हु।जल्दी से घर गई,और सामान बांधना शुरू किया ।पति की इच्छा नहीं थी पर मेरा स्वाभिमान मुझे वहां से निकलने के लिए जोर दे रहा था।
बस फिर क्या था,पति भी जानते थे कि मुझसे खर्चा तो होता नही,और अकेला भी रह नही पाऊंगा,इसलिये इसके साथ जाना ही सही रहेगा।वो भी मेरे साथ सामान शिफ्ट करने मे लग गए।शाम होते होते सारा सामान किराये के कमरे मे चला गया।
अब क्या था,उस छोटे से किराये के कमरे मे रहने लगे लेकिन वहां भी मेरे पति ने कोई ज़िमेदारी नही उठाई,किराये से लेकर घर का सारा खर्चा मुझे ही उठाना पड़ता था।धीरे धीरे ग्राहक भी बढ़ रहे थे,लेकिन ग्राहक के पास मुझसे कॉन्टैक्ट करने का कोई साधन नही था,पहले ग्राहक मेरे पीहर मे फ़ोन करते,फिर अगले दिन मेरा भाई मुझे कहने आता और फिर उन क्लाइंट को मै किसी std से कॉल करती,तब जाकर मैं क्लाइंट से संपर्क कर पाती और तब तक तीन चार दिन हो जाते और उस बीच किसी को जरूरी होता तो वो कहीं बाहर पार्लर से करा चुकी होती थी,इसलिये बड़ी मुश्किल से कोई क्लाइंट मिल पाती थी।आफिस की नोकरी भी साथ साथ चल रही थी,1200 रुपये वहां से मिलते थे और बाकी छोटा मोटा काम पार्लर का करके घर खर्च चला लेती थी।कभी ऑटो से जाती तो कभी पति अपनी साईकल से छोड़ देते थे।मेरे पति को अपने ही घर मे दादागिरी करके,बिना खर्चा किये ही रहना मंजूर था,इसलिए किराये का कमरा उन्हें अखरता था,इसलिए आये दिन हमारे बीच झगड़े होते रहते थे और झगड़े भी ऐसे होते कि मुझ पर हाथ उठाते थे।
आस पड़ोस के लोग मुझसे अकसर सवाल करते थे कि,"क्या आपके पति शराब पीते है,जो आपको मारते है।"मैं उनके सवालो का जवाब ही नहीं दे पाती थी।
मेरा बच्चा कभी मेरे पास,तो कभी पीहर वालो के पास,तो कभी मेरी सहेली के पास,जैसे तैसे बड़ा हो रहा था।पर ईश्वर पूरी तरह मेरी हिम्मत बनकर मेरा साथ दे रहे थे क्योंकि सच का साथ केवल ईश्वर ही दे सकता है।
" सत्यम। शिवम। सुंदरम।"
इस तरह दिन गुजरते गए ।जैसे तैसे दिन निकाल रहे थे ऑफिस की नोकरी तब भी कर रही थी।सुबह घर की साफ सफाई,
एक डेढ़ साल के बच्चे को अपने से दूर रखना मेरी विवशता थी।
कुछ समय निकला,मैंने देखा कि शुरू मे तो मेरे पति रसोई जमाने के लिये राशन का कुछ सामान ले आये और रुचि दिखाई पर फिर धीरे धीरे सामान लाना बंद कर दिया।मै बहुत जोर देकर कहती तो थोड़ा बहुत ले आते।मैंने सोचा कि मै भी थोड़ा बहुत जो कमा रही हु उसी को घर मे खर्च कर दु,क्या फर्क पड़ता है आखिर हम दोनों एक ही गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिये है।मैं कभी दूध ,कभी सब्जी ,कभी घर का सामान कुछ भी खत्म हो जाता ,या तो खुद ले आती या फिर अपने पति को पैसे दे देती।
अब क्या था जब से मैंने घर के खर्चे मे पैसे देने शुरू किए कि मेरे पति जो खर्च करते थे वो भी बंद कर दिया।पर मैं घर मे शांति और प्रेम चाहती थी इसलिए मेरा खर्चा करना मुझे नही दुखता था।मैं अपने पति के साथ प्रेम से रहना चाहती थी चाहे इसके बदले मुझे कितना ही परिश्रम करना पड़े।प्रेम के खातिर मुझसे जितना काम कराओ मैं कर लेती थी।इस तरह मैं जो कुछ भी कमाती वो घर मे खर्च कर देती थी।इस तरह दिन गुजर रहे थे।एक दिन मैंने अपने पति को कुछ रुपये देते हुए बोला कि- इस बार बिजली का बिल आये तो चुपचाप पापा को ये रुपये दे देना पर घर मे झगड़ा मत करना।मेरे पति ने मुझसे झट से रुपये ले लिए।एक दिन सुबह सुबह जब हम नींद से उठे भी नही थे कि ससुरजी ने जोर जोर से आवाज देकर मेरे पति को बाहर बुलाया।मेरे पति ने दरवाजा खोला तो ससुरजी खड़े थे ।बिल देते हुए कहा कि ये जमा करा देना।बिल 1000 रुपये आया,मेरे पति ने अपनी जेब से केवल 250 रुपये ससुरजी को दिए ।इस बात पर ससुरजी बहुत भड़क गए तो मेरे पति ने कहा कि-मेरे तो एक बल्ब और एक पंखा चलता है तो ज्यादा बिल किस बात का दु?
दोनो मे इतनी बहस हुई कि दोनों पिता पुत्र हाथापाई पर आ गए,मैंंने घूंघट ओढ़े हुए दोनों को छुड़ाने की कोशिश की ।धक्का -मुक्की मे मेरा 2 साल का बच्चा शुभम नींद से उठकर जोर जोर से रोने लग गया
अब धीरे धीरे मुझे अच्छे से समझ आने लगा था कि मेरे सुसराल के सब लोग पक्के कंजूस थे और विशेषतौर पर मेरे पति।कोई एक दूसरे से प्रेम नही करता,केवल पैसों को बचाना ही उनका जीवन था जो सरासर गलत था। उस घर मे आपस मे प्रेम होता तो एक छोटे से बिजली बिल को लेकर इतने झगड़े नही होते।ये लोग झगड़ कर भी वापस अपने आप को नार्मल कर लेते लेकिन मैं बहुत दिनों तक अपने आप को नार्मल नही कर पाती थी।अलग रह कर भी झगड़े कम नही हुए,अब तो हम दोनों पति पत्नी भी अकसर झगड़ जाते थे।बड़े क्लेशपूर्ण वातावरण मे ही दिन गुजार रही थी। थोड़ा समय और निकला और बच्चा भी ढाई साल का हो गया,
और साथ मे मेरा बी.ए. भी हो गया।
बी.ए. के बाद ऐसे माहौल मे पढ़ना अब मेरे लिए मुश्किल हो रहा था फिर भी कुछ मेरे शुभचिंतको ने हिम्मत बंधाई ओर एम. ए प्रीवियस का फॉर्म भरा ।
सत्र 2001 की बात है,मेरे सुसराल मे सासुजी ने कुछ घर मे कंस्ट्रक्शन का काम चलाया।मुझे इस बात का पता ही नही था वर्ना मैं ऑफिस से छुट्टी ले लेती।मैं सुबह अपने घर के काम से फ्री होकरऑफिस के लिए निकली थी कि सासुजी ने तेज चिल्ला कर मुझसे बोला कि-"मेडम बन कर कहाँ जा रही है?यहां घर पर मझदुरो को चाय पानी कौन कराएगा।
गुस्से गुस्से मे वो मेरे पियर वालो को गालियां देने लगे और मुझसे कहा कि-"अगर तू मेरे घर मे रही तो तेरे दोनो भाइयो को काट कर खाने के समान होगा यानी तुझे तेरे भाइयो की सौगंध है,मेरे घर से निकल जा।"सासुजी के ये कर्कश वचन सुनकर मुझसे बर्दास्त नही हुआ,और गुस्से से उसी समय अपने पति को कहा कि मैं अब यहां नही रहूंगी,इसी समय मैं किराये का कमरा ढूंढने जा रही हु।पति ने मुजे रोकने की कोशिश करी पर मैंने सोच लिया था कि मैं अब किराये पर ही रहूंगी।गुस्से गुस्से मे और आस पास कई घरों मे पूछा और इत्तफाक से एक जगह कमरा खाली मिल ही गया।मकान मालिक ने 400 रुपये किराया बताया और मैंने बिना सोचे समझे एक ही बार मे हाँ कह दी और कहा कि आज ही शिफ्ट होने आ रही हु।जल्दी से घर गई,और सामान बांधना शुरू किया ।पति की इच्छा नहीं थी पर मेरा स्वाभिमान मुझे वहां से निकलने के लिए जोर दे रहा था।
अब क्या था,उस छोटे से किराये के कमरे मे रहने लगे लेकिन वहां भी मेरे पति ने कोई ज़िमेदारी नही उठाई,किराये से लेकर घर का सारा खर्चा मुझे ही उठाना पड़ता था।धीरे धीरे ग्राहक भी बढ़ रहे थे,लेकिन ग्राहक के पास मुझसे कॉन्टैक्ट करने का कोई साधन नही था,पहले ग्राहक मेरे पीहर मे फ़ोन करते,फिर अगले दिन मेरा भाई मुझे कहने आता और फिर उन क्लाइंट को मै किसी std से कॉल करती,तब जाकर मैं क्लाइंट से संपर्क कर पाती और तब तक तीन चार दिन हो जाते और उस बीच किसी को जरूरी होता तो वो कहीं बाहर पार्लर से करा चुकी होती थी,इसलिये बड़ी मुश्किल से कोई क्लाइंट मिल पाती थी।आफिस की नोकरी भी साथ साथ चल रही थी,1200 रुपये वहां से मिलते थे और बाकी छोटा मोटा काम पार्लर का करके घर खर्च चला लेती थी।कभी ऑटो से जाती तो कभी पति अपनी साईकल से छोड़ देते थे।मेरे पति को अपने ही घर मे दादागिरी करके,बिना खर्चा किये ही रहना मंजूर था,इसलिए किराये का कमरा उन्हें अखरता था,इसलिए आये दिन हमारे बीच झगड़े होते रहते थे और झगड़े भी ऐसे होते कि मुझ पर हाथ उठाते थे।
मेरा बच्चा कभी मेरे पास,तो कभी पीहर वालो के पास,तो कभी मेरी सहेली के पास,जैसे तैसे बड़ा हो रहा था।पर ईश्वर पूरी तरह मेरी हिम्मत बनकर मेरा साथ दे रहे थे क्योंकि सच का साथ केवल ईश्वर ही दे सकता है।
" सत्यम। शिवम। सुंदरम।"
मेरा सच -चरण 24 -कड़ी परीक्षा
जुलाई 2001 मे जब मेरा बेटा ढाई साल का हुआ ,उसे मेरे मम्मी के घर के पास ही एक प्राइवेट स्कूल मे एडमिशन कराया।
अब तो शुभम को रोज अपने साथ नही रख पाती थी।केवल शनिवार को अपने पास लेकर आती और रविवार शाम को वापस मम्मी के घर भेज देती।मेरी दोनो बहनो ने मेरे बच्चे को बहुत अच्छे से संभाला
उसे तैयार करके स्कूल भेजना,उसका टिफिन बनाना,उसे होम वर्क कराना, सब काम बहुत अच्छे से करती थी।
इसी तरह कठिन संघर्ष के साथ दिन बीत रहे थे। फरवरी 2002 मे मेरे छोटे भाई की शादी तय हो गई और मेरे दुःखी जीवन मे खुशी के कुछ पल आये | अब तो मैं अपने भाई की शादी की तैयारी मे लग गई| अपने भाई बहनो मे सबसे बड़ी होने के कारण मेरी उस परिवार मे पूरी ज़िमेदारी थी, इसलिये मैने घर के काम से लेकर बाजार के सारे कामो मे अपने मम्मी पापा का पूरा हाथ बढ़ाया लेकिन ये बात मेरे पति को बर्दास्त नहीं हुई और कई बार शादी के माहौल मे भी कुछ उल्टा सीधा बोल कर मुजे रुला देते थे| खुशी के माहौल मे कोई ग़म की छाया न पड़े इसलिए पति के कटु वचन सुनकर कही छुप कर रो लेती और फिर वापस सबके सामने हंसती रहती|
बड़ी धूमधाम से 15 फरवरी 2002 को मेरे भाई की शादी हो गई
और 17 फरवरी को रिसेप्शन हुआ |
19 फरवरी के दिन मैं घर के बिखरे काम को समेटने मे अपनी मम्मी की मदद कर रही थी कि मेरे पति गुस्से मे, ऊँची आवाज मे मुझसे बोले कि - '' क्या जीवन भर इनके ही काम करने है.सारे मेहमान चले गए और तू अभी तक अपना समय खराब कर रही है |
'इस बात को लेकर हम दोनो मे बहुत बहस हो गई , बुझे मन से शाम को अपना सामान पेक किया और पति के साथ घर चली गईं।खुशी के माहौल मे सबके साथ रहने के बाद जब घर जा रही थी तो ऐसा लग रहा था मानो आज ही मेरी विदाई हुई है| शुभम के स्कूल था तो उसे भी साथ मे नही ले जा पाई| रास्ते मे मेरे पति ने बहुत झगड़ा किया,और गुस्से मे आकर मेरे पति ने चलती साईकल पर पीछे मुड़कर मुझे थप्पड़ मार दी
और मैं चलती साईकल से गिर गई।
सड़क पर लोग देखने लग गए,मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ।पति के साथ घर जाने की इच्छा नहीं थी ,एक मन कह रहा था कि वापस अपने मम्मी के घर चली जाऊ, लेकिन भाई की नई नई शादी हई थी और वहां जाती तो सबको चिंता हो जाती,यहीं सोचकर थोड़ी देर सड़क पर बैठी रही और फिर अपनी गलती न होते हुए भी पति से सॉरी बोला ताकि पति का मूड शांत हो जाये,उसके बाद दोनों बिना बातचीत किये चुपचाप अपने उसी छोटे से किराये के कमरे पर पहुंचे। कुछ दिन हम दोनों की बातचीत बंद रही और वापस अपने रोज के काम पर लग गई।रह रह कर भाई की शादी के वो खुशियो के पल,जो सबके साथ बिताए थे याद आ रहे थे।
कुछ दिनो बाद अपने भाई और नई भाभी को अपने कमरे पर खाने के लिए आमंत्रित किया,तब जाकर थोड़ा मेरा उदास मन शांत हुआ।
थोड़े दिन बाद दशामाता पूजने का त्यौहार आया और एक बार फिर मैंं पुरानी बातों को भूलकर अपने सुसराल वालों से मिलने गई।सास ससुर से आशीर्वाद लिया और साथ मे खाना बना कर खाया।सभी अच्छे से बोले तो मेरा मन पिघल गया और थोड़े दिन बाद वापस अपना कमरा खाली करके सुसराल रहने चली गई।
थोड़े दिन बाद मेरे देवर की शादी भी तय हो गई ,इसी बहाने मुझे फिर से अपने सास ससुर और देवर के साथ संयुक्त परिवार मे रहने का सुनहरा अवसर मिला।जिस तरह मैंने अपने भाई की शादी की तैयारी करी वैसे ही मैं अपने देवर की शादी की तैयारी मे लग गई।दिन भर आफिस की नोकरी करने के बाद शाम को सबका खाना बनाती
और फिर रात को शादी के खाने के लिए गेंहू, चावल और दाले साफ करती थी।सासुजी नोकरी से कभी कभी फ़ोन करते तो बड़े अच्छे से बात करते थे तो मैं प्रेम की दीवानी इतनी बावली हो जाती कि फिर चाहे मुझसे कितना ही काम करा लो मुजे कभी थकान नही होती थी।
लेकिन मुझ जैसी पागल को ये बात उस समय कभी समझ नही आई कि ये उनका प्रेम नही,केवल कुछ ही दिनों का स्वार्थ था।
22 मई 2003 को मेरे भाई के लड़की हुई
और अगले ही महीने 8 जून 2003 को मेरे देवर की शादी हुई।दोनो ही खुशी मेरे लिए बहुत बड़ी थी।अपने देवर की शादी मे पागलो की तरह अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखे बिना दिन रात दौड़ती रही,और खुशी से नाचते गाते अपने देवर की बारात को विदा किया।बारात विदा करके घर आई और उसी रात मुझे बहुत तेज बुखार आ गया।घर की कुछ औरतो को छोड़कर बाकी सब बारात मे गए हुए थे।मैं बुखार के कारण अपने बिस्तर से उठ ही नही पा रही थी लेकिन बड़े अफसोस की बात थी कि मेरे सासुजी जो कल तक मुझसे अच्छे से बात कर रहे थे आज मुझे बुखार की हालत मे दवाई तक के लिए नही पूछा।बड़ी मुश्किल से हिम्मत करके उठी,और हाथ पैर धोकर अपने लिए चाय बनाई फिर एक बुखार की गोली ली।ईश्वर की कृपा से अगले दिन मेरी तबियत बिल्कुल अच्छी हो गई। नई देवरानी के आने की खुशी मे वापस सासुजी के गलत व्यवहार को भी भूल गई और खुशी खुशी उनका स्वागत किया ।नई देवरानी को आये अभी 5 या 6 दिन ही मुश्किल से हुए थे और मैं खाना बना रही थी कि अचानक सासुजी ने मुझसे कहा कि,-अब तो अपना खाना अलग बनाओ,रोज रोज तुम्हारा खर्चा कौन उठाएगा?इस बात को लेकर मेरे पति और सास ससुर बहुत देर तक झगड़ते रहे,और मैं चुपचाप अपने कमरे मे गई और अपना वही नूतन स्टोव जलाया और अलग अपना खाना बनाया। मन मे अनेक प्रश्न उठ रहे थे कि आखिर ये लोग क्यो मेरे प्रेम को समझ नही पाते?,क्यो प्रेम की तुलना धन से करते है?लेकिन उन स्वार्थी लोगो के सामने मेरे मन के इन
प्रश्नों का कोई मोल नही इसलिए ईश्वर की मर्जी समझ कर एक ही घर मे पड़ोसी की तरह रहने लगे।
इस बात का बड़ा अफसोस था कि नई देवरानी के साथ 1 महीना भी साथ मे नहीं रह पाई।फिर भी मैं सबके साथ प्रेम से रहना चाहती थी तो अलग कमरे मे रहने के बावजूद भी जब मौका पड़ता,मैं उन सबके साथ उठने बैठने की कोशिश करती रहती थी। इस तरह दिन गुजरते गए,और जुलाई 2004 को मेरी देवरानी को बेटी हुई।मैं उसे अपनी बेटी समझकर प्यार करती
,उसे गोद मे खेलाती, लेकिन देवरानी कई बार मुझे देखकर उसे कमरे मे बंद रखती ताकि मैं उसे अपने पास न बुला सकू।
2005 की बात है,एक दिन मैं नहा धोकर अपने कमरे के बाहर अखबार पढ़ रही थी कि मेरे सासुजी मुझे बिजली का बिल देते हुए बोले कि ये जमा करा देना।मैंने उनकी तरफ देखा और कहा कि-"मम्मीजी !ये बिल आप मुझे क्यो दे रहे हो,सीधे अपने बेटे को दो,मैं कहाँ से बिल के पैसे लाऊ।मैं तो पहले ही घर के खर्चे,बच्चे के फीस मे दे देती हूं।इस बात पर सासुजी ने मुझसे बोला कि"-बहु होकर जुबान चलाती है,और गुस्से मे आकर मेरे बाल पकड़कर मुझे दीवार पर धक्का दे दिया।
मैं जोर से चिल्लाई तो पड़ोसी इकट्ठे हो गए।मैं कुछ बोल पाऊ इससे पहले सासुजी मुझ पर सामने हाथ करने का इल्जाम लगा दिया।पड़ोसी हम दोनों को अपने अपने नजरिये से समझा कर चले गए।उसके बाद मेरे सासुजी ने मेरे कमरे को बाहर से बंद कर दिया और थोड़ी देर बाद घर के सभी सदय,ताले लगाकर कही चले गए।मैं वहीँ रोती रही,पति घर पर नही थे इसलिए उन्हें कुछ पता नही था।उस समय मेरे पास न कोई फ़ोन था न ही कोई मोबाइल।सुबह 10 बजे से दिन को 3 बजे तक मैं अकेली कमरे मे रोती रही।
3 बजे मेरे पति घर आये तो मैंने उन्हें बताया।लेकिन सासु जी तो वापस अपनी सर्विस पर चले गए।सासु जी की इस बात के लिए शाम को मेरे पति ने ससुरजी से लड़ाई कर दी।दोनो बाप बेटो मे भयंकर झगड़ा हो गया।मैं दोनो को छुड़ाने गई तो दोनों हो मुझे धक्का देने लगे और ससुरजी तो मुझे ही भला बुरा कहने लगे। मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ।एक तरफ पति का घर पर खर्चा ,और बिजली बिल के पैसे न देने की बहुत बड़ी भूल थी तो दूसरी तरफ अपने पति से प्रेम होने के नाते कुछ भी कह नहीं पा रही थी।एक तराजू मे पति की गलतियां थी तो दूसरी तराजू मे मेरा पति के प्रति प्रेम। मैंने अपने प्रेम के पलड़े को ऊपर रखा और मन ही मन निश्चय किया कि अब मैं जितना हो सकेगा,खुद ही खर्चा करूँगी पर घर मे लड़ाई नही होने दूँगी।
अब मैं धीरे धीरे हर खर्चा खुद ही करने लगी,दिन भर कड़ी मेहनत करती जहाँ कही भी कोई काम मिलता मैं मना नही करती थी
एक एक eyebrow और एक एक बॉडी मसाज के लिए घूमती रहती थी।
उसे तैयार करके स्कूल भेजना,उसका टिफिन बनाना,उसे होम वर्क कराना, सब काम बहुत अच्छे से करती थी।
इसी तरह कठिन संघर्ष के साथ दिन बीत रहे थे। फरवरी 2002 मे मेरे छोटे भाई की शादी तय हो गई और मेरे दुःखी जीवन मे खुशी के कुछ पल आये | अब तो मैं अपने भाई की शादी की तैयारी मे लग गई| अपने भाई बहनो मे सबसे बड़ी होने के कारण मेरी उस परिवार मे पूरी ज़िमेदारी थी, इसलिये मैने घर के काम से लेकर बाजार के सारे कामो मे अपने मम्मी पापा का पूरा हाथ बढ़ाया लेकिन ये बात मेरे पति को बर्दास्त नहीं हुई और कई बार शादी के माहौल मे भी कुछ उल्टा सीधा बोल कर मुजे रुला देते थे| खुशी के माहौल मे कोई ग़म की छाया न पड़े इसलिए पति के कटु वचन सुनकर कही छुप कर रो लेती और फिर वापस सबके सामने हंसती रहती|
बड़ी धूमधाम से 15 फरवरी 2002 को मेरे भाई की शादी हो गई
और 17 फरवरी को रिसेप्शन हुआ |
19 फरवरी के दिन मैं घर के बिखरे काम को समेटने मे अपनी मम्मी की मदद कर रही थी कि मेरे पति गुस्से मे, ऊँची आवाज मे मुझसे बोले कि - '' क्या जीवन भर इनके ही काम करने है.सारे मेहमान चले गए और तू अभी तक अपना समय खराब कर रही है |
सड़क पर लोग देखने लग गए,मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ।पति के साथ घर जाने की इच्छा नहीं थी ,एक मन कह रहा था कि वापस अपने मम्मी के घर चली जाऊ, लेकिन भाई की नई नई शादी हई थी और वहां जाती तो सबको चिंता हो जाती,यहीं सोचकर थोड़ी देर सड़क पर बैठी रही और फिर अपनी गलती न होते हुए भी पति से सॉरी बोला ताकि पति का मूड शांत हो जाये,उसके बाद दोनों बिना बातचीत किये चुपचाप अपने उसी छोटे से किराये के कमरे पर पहुंचे। कुछ दिन हम दोनों की बातचीत बंद रही और वापस अपने रोज के काम पर लग गई।रह रह कर भाई की शादी के वो खुशियो के पल,जो सबके साथ बिताए थे याद आ रहे थे।
थोड़े दिन बाद दशामाता पूजने का त्यौहार आया और एक बार फिर मैंं पुरानी बातों को भूलकर अपने सुसराल वालों से मिलने गई।सास ससुर से आशीर्वाद लिया और साथ मे खाना बना कर खाया।सभी अच्छे से बोले तो मेरा मन पिघल गया और थोड़े दिन बाद वापस अपना कमरा खाली करके सुसराल रहने चली गई।
थोड़े दिन बाद मेरे देवर की शादी भी तय हो गई ,इसी बहाने मुझे फिर से अपने सास ससुर और देवर के साथ संयुक्त परिवार मे रहने का सुनहरा अवसर मिला।जिस तरह मैंने अपने भाई की शादी की तैयारी करी वैसे ही मैं अपने देवर की शादी की तैयारी मे लग गई।दिन भर आफिस की नोकरी करने के बाद शाम को सबका खाना बनाती
लेकिन मुझ जैसी पागल को ये बात उस समय कभी समझ नही आई कि ये उनका प्रेम नही,केवल कुछ ही दिनों का स्वार्थ था।
22 मई 2003 को मेरे भाई के लड़की हुई
और अगले ही महीने 8 जून 2003 को मेरे देवर की शादी हुई।दोनो ही खुशी मेरे लिए बहुत बड़ी थी।अपने देवर की शादी मे पागलो की तरह अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखे बिना दिन रात दौड़ती रही,और खुशी से नाचते गाते अपने देवर की बारात को विदा किया।बारात विदा करके घर आई और उसी रात मुझे बहुत तेज बुखार आ गया।घर की कुछ औरतो को छोड़कर बाकी सब बारात मे गए हुए थे।मैं बुखार के कारण अपने बिस्तर से उठ ही नही पा रही थी लेकिन बड़े अफसोस की बात थी कि मेरे सासुजी जो कल तक मुझसे अच्छे से बात कर रहे थे आज मुझे बुखार की हालत मे दवाई तक के लिए नही पूछा।बड़ी मुश्किल से हिम्मत करके उठी,और हाथ पैर धोकर अपने लिए चाय बनाई फिर एक बुखार की गोली ली।ईश्वर की कृपा से अगले दिन मेरी तबियत बिल्कुल अच्छी हो गई। नई देवरानी के आने की खुशी मे वापस सासुजी के गलत व्यवहार को भी भूल गई और खुशी खुशी उनका स्वागत किया ।नई देवरानी को आये अभी 5 या 6 दिन ही मुश्किल से हुए थे और मैं खाना बना रही थी कि अचानक सासुजी ने मुझसे कहा कि,-अब तो अपना खाना अलग बनाओ,रोज रोज तुम्हारा खर्चा कौन उठाएगा?इस बात को लेकर मेरे पति और सास ससुर बहुत देर तक झगड़ते रहे,और मैं चुपचाप अपने कमरे मे गई और अपना वही नूतन स्टोव जलाया और अलग अपना खाना बनाया। मन मे अनेक प्रश्न उठ रहे थे कि आखिर ये लोग क्यो मेरे प्रेम को समझ नही पाते?,क्यो प्रेम की तुलना धन से करते है?लेकिन उन स्वार्थी लोगो के सामने मेरे मन के इन
प्रश्नों का कोई मोल नही इसलिए ईश्वर की मर्जी समझ कर एक ही घर मे पड़ोसी की तरह रहने लगे।
इस बात का बड़ा अफसोस था कि नई देवरानी के साथ 1 महीना भी साथ मे नहीं रह पाई।फिर भी मैं सबके साथ प्रेम से रहना चाहती थी तो अलग कमरे मे रहने के बावजूद भी जब मौका पड़ता,मैं उन सबके साथ उठने बैठने की कोशिश करती रहती थी। इस तरह दिन गुजरते गए,और जुलाई 2004 को मेरी देवरानी को बेटी हुई।मैं उसे अपनी बेटी समझकर प्यार करती
2005 की बात है,एक दिन मैं नहा धोकर अपने कमरे के बाहर अखबार पढ़ रही थी कि मेरे सासुजी मुझे बिजली का बिल देते हुए बोले कि ये जमा करा देना।मैंने उनकी तरफ देखा और कहा कि-"मम्मीजी !ये बिल आप मुझे क्यो दे रहे हो,सीधे अपने बेटे को दो,मैं कहाँ से बिल के पैसे लाऊ।मैं तो पहले ही घर के खर्चे,बच्चे के फीस मे दे देती हूं।इस बात पर सासुजी ने मुझसे बोला कि"-बहु होकर जुबान चलाती है,और गुस्से मे आकर मेरे बाल पकड़कर मुझे दीवार पर धक्का दे दिया।
अब मैं धीरे धीरे हर खर्चा खुद ही करने लगी,दिन भर कड़ी मेहनत करती जहाँ कही भी कोई काम मिलता मैं मना नही करती थी
एक एक eyebrow और एक एक बॉडी मसाज के लिए घूमती रहती थी।
पर जब जब जितनी बार मैंने कोई ज़िमेदारी ली,नियति मेरी परीक्षा लेने खड़ी हो जाती।
कुछ समय बाद ही मेरे आफिस के सर ने कहा कि-"अब ये आफिस बंद हो रहा है,तुम कहीं और नोकरी ढूंढ लेना।जैसे ही मैंने सुना,मैं चिन्तित हो गई कि अब एकदम से कहाँ काम मिलेगा।1200 रुपये की एक पूरी बंधी तन्ख्वाह बंद हो गई।अब तो छोटी मोटी मसाज के ही काम रह गए पर उससे सारे खर्चे कैसे निकले।मेरे पति सब कुछ देखते रहते पर कभी भी एक तसल्ली नही दी कि-"तू चिंता मत कर मैं हु! मैं एक ऐसे इंसान से प्रेम करती थी जिसके दिल मे प्रेम नाम की कोई इज्जत नहीं थी।
मैं न लड़ाई चाहती थी और न ही अपने पति से दूरी।आफिस की नोकरी छोड़ने के बाद 15 दिन मैं चिंता के कारण बीमार हो गई।अखबार मे रोज देखती रहती कि कही कुछ काम मिल जाये।उसके एक महीने बाद ही अखबार के थ्रू एक ब्यूटी पार्लर पर काम मिल गया।1500 रुपये पगार थी,मैंने एक ही बार मे हाँ कर दी और अगले ही दिन जोइंड कर लिया।पार्लर का नाम लावेला ब्यूटी पार्लर था।
11 से 5 पार्लर जाती और सुबह शाम अपने स्वयं के छोटे मोटे ग्राहक को निपटाती।
लेकिन ये नोकरी मुझे समझ नही आई,क्योकि पार्लर की मेडम बहुत ही उग्र स्वभाव की थी ,न किसी से बात करने देती,न फ्री बैठने देती।ग्राहक न होते तो भी कुछ न कुछ काम बराबर कराती रहती।बात बात पर डांटती रहती थी।उसके चिड़चिड़े स्वभाव के कारण मैंने एक महीने के अंदर ही काम छोड़ दिया।जल्दी काम छोड़ने के कारण वो मेडम मुझसे इतनी नाराज थी कि उसने उस एक महीने की तनखाह भी नही दी।अब वापस वही हालात हो गई कि कहाँ काम करू?क्योंकि पैसे के बिना मेरा उस घर मे मरण था,फिर वहीँ बिजली का बिल,
लड़ाई झगड़े,सब आँखों मे घूमने लगते तो डर जाती थी।
मेरी प्रिय सहेली कैलाश दीदी को अपनी
कुछ समय बाद ही मेरे आफिस के सर ने कहा कि-"अब ये आफिस बंद हो रहा है,तुम कहीं और नोकरी ढूंढ लेना।जैसे ही मैंने सुना,मैं चिन्तित हो गई कि अब एकदम से कहाँ काम मिलेगा।1200 रुपये की एक पूरी बंधी तन्ख्वाह बंद हो गई।अब तो छोटी मोटी मसाज के ही काम रह गए पर उससे सारे खर्चे कैसे निकले।मेरे पति सब कुछ देखते रहते पर कभी भी एक तसल्ली नही दी कि-"तू चिंता मत कर मैं हु! मैं एक ऐसे इंसान से प्रेम करती थी जिसके दिल मे प्रेम नाम की कोई इज्जत नहीं थी।
मैं न लड़ाई चाहती थी और न ही अपने पति से दूरी।आफिस की नोकरी छोड़ने के बाद 15 दिन मैं चिंता के कारण बीमार हो गई।अखबार मे रोज देखती रहती कि कही कुछ काम मिल जाये।उसके एक महीने बाद ही अखबार के थ्रू एक ब्यूटी पार्लर पर काम मिल गया।1500 रुपये पगार थी,मैंने एक ही बार मे हाँ कर दी और अगले ही दिन जोइंड कर लिया।पार्लर का नाम लावेला ब्यूटी पार्लर था।
11 से 5 पार्लर जाती और सुबह शाम अपने स्वयं के छोटे मोटे ग्राहक को निपटाती।
लेकिन ये नोकरी मुझे समझ नही आई,क्योकि पार्लर की मेडम बहुत ही उग्र स्वभाव की थी ,न किसी से बात करने देती,न फ्री बैठने देती।ग्राहक न होते तो भी कुछ न कुछ काम बराबर कराती रहती।बात बात पर डांटती रहती थी।उसके चिड़चिड़े स्वभाव के कारण मैंने एक महीने के अंदर ही काम छोड़ दिया।जल्दी काम छोड़ने के कारण वो मेडम मुझसे इतनी नाराज थी कि उसने उस एक महीने की तनखाह भी नही दी।अब वापस वही हालात हो गई कि कहाँ काम करू?क्योंकि पैसे के बिना मेरा उस घर मे मरण था,फिर वहीँ बिजली का बिल,
लड़ाई झगड़े,सब आँखों मे घूमने लगते तो डर जाती थी।
मेरी प्रिय सहेली कैलाश दीदी को अपनी
, समस्या बताई ।
वो भी मेरे लिए काम ढूंढने लग गए।जहाँ जो मिलता,सबको बोलती रहती।एक दिन पड़ोस मे रहने वाली एक लड़की ने कहीं काम बताया,लेकिन वो काम झाड़ू पोछे, और बर्तन का था।मैं बिना कुछ सोचे उस लड़की के साथ काम की बात करने चली गई।और 1000 रुपये मे 5 कमरों का झाड़ू,पोछा,डस्टिंग,बाथरूम की सफाई और बर्तन करने थे।
मैंने उन्हें हाँ कर दी।शाम को 3 से 7 का टाइम था तो ये फायदा हो गया कि 3 से पहले के टाइम पर अपना पार्लर का काम भी हो जाता था।कुछ समय बाद मैंने अपने पति का दुकान पर जाना छुड़वा दिया और समझा बुझाकर एक पुराना स्कूटर ले लिया।
अब मेरे पति ही मुझे सब जगह छोड़ने और लेने आने लगे ताकि ऑटो मे समय खराब न हो और कम समय मे मैं ज्यादा काम कर सकु।
जिनके यहां मै झाड़ू पोछे करने जाती थी,वो भी मेडम बहुत ही स्ट्रीक थी।बहुत ही बारीकी से वो सब जगह सफाई कराती,यहाँ तक कि एक एक सीढ़ी को भी सर्फ के कपड़े से साफ कराती।मैं वहाँ से जब घर जाती तो थक कर बुरा हाल हो जाता।मेरे और मेरे पति के अलावा किसी को भी ये पता नही था कि मैं झाड़ू पोछे करने जाती हु । जब मैं अपने बेटे को लेने मम्मी के यहां जाती तो मेरी हालत देखकर पापा मम्मी अक्सर पूछते कि तेरी कौनसी नोकरी है जो तू इतनी कमजोर हो रही है।मैं छुपा कर कहती कि किसी आफिस मे छोटी मोटी लिखापढ़ी का काम है।
इस तरह कठिन संघर्ष के साथ दिन बीत रहे थे।थोड़े दिन बाद मेरी दोनो बहनो की शादी हो गई।
बहनो की शादी के बाद मैं अपने बेटे को पीहर नहीं रखना चाहती थी,इसलिए उसे अपने पास बुला लिया और दूसरे स्कूल मे डाल दिया।
शुभम को मेरे पास लाने के बाद मैंने वो झाड़ू पोछे का काम छोड़ दिया और केवल ब्यूटी पार्लर की होम सर्विस ही करने लगी।
धीरे धीरे ईश्वर ने साथ दिया और क्लाइंट बढ़ते गए।मुझे इस बात की कोई शिकायत नहीं थी कि पति के स्थान पर मैं घर चला रही थी।मैं तो कैसे भी करके अपने परिवार मे शांति और प्रेम चाहती थी।लेकिन ये दुनिया किसी का प्रेम और शांति कहाँ बर्दास्त कर पाती थी।पहले लाइट बिल को लेकर घर के लोग शांति भंग करते थे और अब उन्हें इस बात की भी तकलीफ होने लगी कि औरत कमा रही है और आदमी इसके पीछे पीछे छोड़ने लेने जाता है।कई बार सुसराल वाले इस बात का ताना देते रहते थे।मुझे समझ ही नही आता था कि आखिर ये लोग चाहते क्या है
?जब उनका बेटा लाइट बिल नहीं देता था तो घर मे रोज झगड़ा करते थे और आज मैंने अपनी समझ से सुलझा दिया है,तब भी तकलीफ हो रही है।उस समय तक मुझे थोड़ा थोड़ा ये समझ आने लगा था कि ये लोग न तो खुद खुश रहना चाहते है न ही किसी को खुश देखना चाहते है।उस समय तक मैंने ये जान लिया कि मेरे सुसराल वाले अपने पैसो को कंजूसी करके बचाना,उन्हें न अपने लिए खर्च करना और न ही बच्चो के लिए खर्च करना यही उनकी बुरी आदत बन चुकी थी और यही कारण था कि उन्होंने अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा नहीं दी,अच्छा खिलाया नही,अच्छा पहनाया नही।
मैं समझ गई कि मेरे पति की परवरिश मे ही खोट है,इन्हें अच्छा वातावरण नही मिला,इसलिए वो ऐसे है।
मैंने ये सोचकर भविष्य पर छोड़ दिया कि एक दिन मैं अपने प्रेम से अपने पति को बदल दूँगी
और इसी कोशिश के साथ मेरा संघर्ष चलता रहा।
जून 2006 की बात है,मेरे पापा को ब्रेन ऐमरेज हो गया था इसलिए राइट साइट से पैरालाइज हो गए थे।
उस समय मेरी दोनो बहने और भाभी प्रेग्नेंट थे।मेरे पापा को उदयपुर के एक सरकारी अस्पताल मे एडमिट कराया। 15 दिन एडमिट होने के बाद पापा अच्छे भी हो गए थे लेकिन थोड़े दिन बाद वापस उनकी तबियत खराब होने की वजह से उन्हें अहमदाबाद एडमिट कराया।मेरी मम्मी और भाई पापा के साथ अहमदाबाद गए हुए थे।अब मेरी ज़िमेदारी दुगुनी हो गई थी।एक बार सुसराल आती,बच्चे को स्कूल भेजती,फिर काम जाती और रात को वापस मम्मी के यहां सोने जाती।
एक दिन मम्मी के यहां पापा की चिंता करते करते भगवान के सामने खड़ी थी और मन ही मन पापा को ठीक करने की प्रार्थना कर ही रही थी कि जलता हुआ दीपक बुझ गया।
।अब तक तो केवल ऐसा फिल्मो मे ही देखा था पर पहली बार ऐसा सीन देेख कर हैरान रह गई।मैंने दीपक के पास जाकर देखा तो उसमें घी भी पूरा था और बाती भी सही थी,और न ही पंखा चला ,और न ही कोई हवा चली।अब तो ये संकेत किसी अनहोनी घटना की सूचना था।मुझे समझ आ गया कि अब पापा नहीं बचेंगे।
मेरी चिंता और बढ़ गई।एक तरफ पीहर मे माहौल ऐसा हो गया और दूसरी तरफ सुसराल वाले मुझे तंग करने से बाज नही आ रहे थे।सुसराल मे इस बार मैं बिल के पैसे नहीं दे पाई तो उन्होंने मेरे कमरे के बाहर से तार काट दिए और लाइट काट दी।मैं जब भी सुसराल जाती अंधरे मे ही काम करती।थोड़े दिन बाद पापा को अहमदाबाद से घर लेकर आ गए।लेकिन उनकी तबियत नाजुक ही थी।उनकी बोली भी चली गई थी।एक दिन मेरे सासुजी मेरे पापा से मिलने आये।उन्होंने ऐसे नाजुक समय मे भी पापा से घर के डिसकशन किये,वो मुँह से बोल नहीं पा रहे थे लेकिन उनका मन मेरे दुःखो से बहुत घबरा रहा था।
इस तरह तीन महीने बिना लाइटों के मैंने सुसराल मे निकाले लेकिन किसी का भी मन नहीं पिघला हमे अंधरे मे रखकर।अब मेरा सुसराल से मन हट गया था।मैं अपने आप को बहुत अपमानित महसूस कर रही थी।मैंने निश्चय कर लिया कि अब इस घर मे मैं नहीं रहूंगी।
मैंने अपने पति से कहा कि -"अब हम किराये का घर ढूंढते है,पर पति ने मना कर दिया।मेरे पति न तो अपने घर मे पैसा खर्च करना चाहते थे और न ही किराये रहना चाहते थे।मैं ठहरी स्वाभिमानी,
इतना अपमान होने के बाद वहाँ रहना नहीं चाहती थी।मैंने जिद करी की मैं तो अब किराये पर ही रहूंगी तो पति ने जिद मानी और मेरे साथ किराये का घर ढूंढने साथ मे आ गए।किस्मत से थोड़ी दूरी पर,खारोल कॉलोनी मे एक घर के बाहर tolet लिखा हुआ था।मैंने अंदर जाकर पूछा तो अंदर ग्राउंड मे 2 कमरे ,रसोई और साथ मैं टॉयलट बाथरूम भी थे।मुजे घर और लोग दोनों पसंद आ गए थे।
1500 रुपये किराया बताया।मैंने हाँ कर दी और 500 रुपये एडवांस दे दिए।फिर मैंने जरूरी जरूरी सामान बांधा और स्कूटर पर ही थोड़ा थोड़ा लेकर गए।कुछ सामान सुसराल ही रहने दिया।ये दूसरी बार था कि मैं वापस सुसराल से निकली । पापा की हालत के कारण उनसे ये बात छिपानी पड़ी।नया नया मोहल्ला था,थोड़े दिन तो मन ही नहीं लगता था।लेकिन फिर दिन भर काम की व्यस्तता के कारण समय निकल जाता था पता ही नहीं चलता था।करीबन एक महीना ही वहाँ रहते हुए हुआ था कि एक दिन मेरे पापा की तबियत बहुत खराब हो गई थी।मैं उस दिन पापा के घर ही थी।मुझे पार्लर के काम से जाना था पर जैसे ही पापा को देखती मेरे कदम फिर पीछे हो जाते और अचानक मेरे मन से ये आवाज आई कि अगर पापा की जगह मेरी हालत ऐसी होती तो क्या मेरे मम्मी पापा मुझे छोड़ कर जाते?तो फिर मैं ऐसी हालत मे कैसे जा सकती हूंये सोच कर अपना पार्लर का बैग रख दिया ओर उनके पास ही बैठी रही और उसी दिन शाम को करीबन 6 बजे पापा की death हो गई
मेरे पीहर मे दुःखो का पहाड़ टूट गया मम्मी की रो रो कर हालत खराब हो गई थी।उस समय मेरी एक बहन के 15 दिन का बेटा था,भाभी के 1 महीने का बेटा था और एक और बहन को मिसकैरेज हो गया था।अब तो वापस से मेरी ज़िमेदारी बढ़ गई थी।मेरा 6 महीने तक मम्मी के घर आना जाना लगा रहता था।6 महीने बाद जब सब थोड़े नॉर्मल हुए तो मैं वापस अपने काम और बच्चे पर ध्यान देने लगी।
एक बार की बात है मेरे शादियों का सीजन चल रहा था ।मैं देर तक कहीं काम कर रही थी।मेरे पति मुझे 8 बजे लेने आये। मेरा बच्चा शुभम उस समय 8 साल का था और घर पर अकेला था।मैं जब काम से घर पर आई तो देखा कि मेरा बेटा एक तरफ कोने में दुबक कर सोया हुआ था,ठंड से ठिठुर रहा था,और उसके चारों तरफ खिलोने बिखरे हुए थे।वो भूखा ही सो गया था
मैंने उसे लाख जगाने की कोशिश करी पर वो नहीं जागा।मैंने भी उस दिन बुझे मन से खाना बनाया,अपने पति को रखा पर मेरा मन अपने बच्चे को खिलाएं बिना कैसे खा सकता था।मैने भी खाना नहीं खाया।
इतना कठिन संघर्ष करने के बाद भी पति को कभी दया नहीं आई कि किसी दिन ये कह दे कि तू चिंता मत कर,मै तेरे साथ हु।मैं भी हार मानने वालों मे से नहीं थी।
मुझसे जितनी मेहनत भगवान करवा रहे थे,जितनी परीक्षा ले रहे थे,साथ साथ मदद भी कर रहे थे।जितना खर्चा मेरे घर का था उतना ही बराबर भगवान मुझे दे रहे थे,न उससे कम और न ज्यादा।मेरे पति चाहे कोई फर्ज नहीं निभा रहे थे फिर भी मैंने अपने पति से कभी एक रुपया नहीं छिपाया।जितना खर्चा होता वो भी बता देती और जो बचता वो भी पति के खाते मे जमा कर देती।मुझे मेरे पीहर वाले बहुत डांटते कि कम से कम अपना खाता तो खुलवा और कुछ पैसे छुपा कर तो रख,क्यो ऐसे पति को हर चीज सही सही बताती है।पर मेरा उसूल था कि कोई मुझसे बेईमानी करे तो करे पर मुझे ईमानदारी ही रखनी है।एक दिन की बात हैं ,शीतला सप्तमी का त्योहार आया,मैंने अपने पति से कुछ सामान खरीद कर लाने के लिए बोला,इस बात पर इतना झगड़ा हो गया कि मेरे साथ पति ने मारपीट करी
।मैंने अपने भाई और अपनी मम्मी को ये बात बताई। मेरे भाई ने मेरा एक खाता खुलवाया और बोला कि आज के बाद अपने पति को अपनी कमाई मत देना।उस दिन से मैंने घर के खर्चे के बाद जो भी पैसा बचता उसे मैं अपने खाते मे जमा करती थी।
कुछ दिनों बाद हमारा स्कूटर खराब हो गया ,बार बार ठीक कराया लेकिन पेट्रोल भी ज्यादा जलने लगा।मैंने फिर अपने पति से कहा कि एक नई मोटरसाइकिल ले लेते है,कुछ पैसे आप दे दो कुछ मैं दे दूँगी,पर मेरे पति ने इंकार कर दिया कि मेरे पास तो पैसे नहीं है,ऐसा कर हर महीने 3000 रुपये अलग इक्कठे कर ले फिर ले आएंगे गाड़ी।मुझे अच्छे से पता था कि ये काम भी मुझे ही करना है ,मैंने थोड़े थोड़े पैसे इक्कठे किये और फिर नई मोटरसाइकिल ली।अब मैं दिन भर काम करती और पति मुझे हर जगह लेने छोड़ने आते थे और इस तरह अपने जीवन का निर्वाह कर रही थी।
कुछ दिनों बाद राखी का त्योहार आया,मेरा मन नहीं माना और मैंने अपने पति से कहा कि,घर पर दीदी आये होंगे,हम आज घर चलते है,त्योहार मना कर वापस आ जायँगे।मेरे पति ने तो साफ मना कर दिया कि मुझे नहीं जाना आज।पर मैंने जिद करि तो वो मान गए और हम तीनों ससुराल गए।वहां मेरे ननंदजी को देखकर सासुजी से मिलकर सब पुरानी बात भुल गई औऱ खुशी से सबके साथ राखी मनाई ।मैंने अपने मन मे ये संतोष कर लिया कि दूर रहने से अगर प्रेम रह रहा है तो मैं अब दूर रह कर ही रिश्ता निभाऊंगी। अब तो जब मन करता मै अपने देवर के बच्चो से मिलने जाती,सबसे प्रेम से बाते करती और वापस अपने किराये के घर पर आ जाती।
मार्च 2008 की बात है ,एक दिन मेरा बेटा शुभम अचानक स्कूल मे ही चक्कर खाकर गिर गया,स्कूल की मेडम ने फ़ोन किया और हम उसको स्कूल लेने गए।घर लेकर आये उसे निम्बू पानी पिलाया,पर उसने तो बोलना बंद कर दिया और धुजने लग गया,हम तुरंत उसको हॉस्पिटल लेकर गए और उसे एडमिट कर दिया।
सुबह 11 बजे उसे एडमिट कराया और उसी दिन दिन को 3 बजे उसी हॉस्पिटल मे मेरी एक और प्रेग्नेंट बहन मंजू को एडमिट कराया।मेरा एक पाँव अपने बेटे के वार्ड मे तो दूसरा पाँव अपनी बहन के वार्ड मे।दिन रात एक वार्ड से दूसरे वार्ड तक चक्कर लगाते लगाते इतनी थक गई कि हॉस्पिटल की सीढ़ियों पर बैठ कर रोने लग गई और ईश्वर को याद करके कहने लगी कि-"है ईश्वर अब इस परीक्षा से मुक्ति दो।जैसे ही प्राथना करि कि मेरी बहन के वार्ड से सूचना आई कि बेटा हुआ है।
मैं दौड़ी दौड़ी अपनी बहन से मिलने गई, और बहन से मिलने के बाद अपने बच्चे के वार्ड मे आई तो पता चला कि मेरा बेटा एकदम सही हो गया है और डॉक्टर ने भी छुट्टी दे दी है।एक बात मुझे अच्छे से समझ आ रही थी कि ये केवल मेरी परीक्षा ही थी जो एक साथ आई और एक साथ निपटा भी ।ईश्वर को धन्यवाद दिया और कहा कि परीक्षा चाहे कितनी भी ले लो पर साथ कभी मत छोड़ना।
कुछ दिनों बाद पति ने फिर झगड़ा किया,मारपीट की।मैं दो तीन दिन तक काम पर नही गई और अपने पति से बात भी नही करी।पर मेरे पति को किसी चीज का कोई फर्क नही पड़ता था,क्योकि घर चलाना, किराया देना,बच्चे की फीस भरना,सब मेरी चिंता थी।इसलिए न चाहते हुए भी अपने पति को कहना पड़ता था कि मुझे काम पर छोड़ दो।मझबूरिवश मुझे उनके साथ गाड़ी पर बैठकर जाना पड़ता था।
कुछ दिनों बाद मेरी मम्मी और भाई ने राय दी कि तू कहीं पार्लर खोल दे ताकि रोज रोज इनको छोड़ने लाने का टेंशन ही खत्म हो जाये।मेरी मम्मी ने कहा कि हमारी तरफ से तेरे कोई रकम या गहने नही है तो तू रकम की जगह हमसे पैसे ले ले और ब्यूटी पार्लर खोल दे।मुझे भी ये बात समझ आ गई और मैंने निश्चय कर लिया कि अब मैं ब्यूटी पार्लर खोल दु।
मैंने एक जगह एक तीन कमरों का घर देखा और वहाँ पूरा घर ही किराये पर ले लिया ताकि रहने का भी हो जाय और पार्लर भी खुल जाए।4000 किराया था और 1000 रुपये लाइट के थे।मैंने 2 साल तक वहाँ पार्लर चलाया । भगवान के नाम को एक पल के लिए भी अपने से दूर न करते हुए,उनके नाम को याद करते हुए काम कर रही थी।।मेरे पति तब भी वैसे के वैसे थे।मैं दिन भर ब्यूटी पार्लर मे काम करती और मेरे पति दूसरे कमरे मे घंटो तक सोते रहते थे।
मेरे यहाँ जो भी ग्राहक आते ,वो मेरे पति के बारे मे पूछते और मुझे कुछ न कुछ बहाने से उस बात को टालना पड़ता था।2 साल तक मै अकेली पार्लर चलाती,पूरा खर्चा खुद उठाती पर पति ने कभी मेरे किसी चीज मे मेरा साथ नही दिया।फिर भी दुनिया के सामने अपने पति की इज्जत करती रही।2 साल पार्लर चलाने के बाद कुछ भी मुनाफा नहीं हुआ ।एक रात को मुझे सपना आया
कि मैं अपना पार्लर का बैग लेकर घर घर जाकर काम कर रही हु और सपने मे 8 ,10 औरते मुझसे कह रही है कि राधा,-"क्या अब तू वापस घर घर जाकर काम करेगी।और फिर सपना टूट जाता है।मुझे भगवान का संकेत मिल चुका था कि अब मुझे वापस ये पार्लर बंद करना पड़ेगा।थोड़े दिन बाद काम भी बंद हो गया और last मे तो किराया भी मुझे अपनी बचाई हुई saving से भरना पड़ा।मैंने भगवान को कहा कि शायद यही तेरी मर्जी है।मैंने ब्यूटी पार्लर बंद करने का निश्चय किया और वापस पुराने मकान मालिक को फ़ोन करके पूछा कि घर खाली है कि नही।किस्मत से घर खाली ही था।मैने धीरे धीरे सामान की पैकिंग करना शुरू किया कि एक एक दिन घर मे कुछ चमत्कार दिख रहे थे।एक रात को ब्यूटी पार्लर का काउंटर अपने आप खुल कर नीचे आ जाता है,और दूसरी रात को पर्दे खुल कर अपने आप नीचे गिर जाते है। शायद ये सब ईश्वर की मरझी से ही हो रहा था।
मई 2009 मे हम वापस खारोल कॉलोनी मे किराये पर रहे।वापस वही घर घर जा कर लोगो के पार्लर का काम करने लगी।
वो भी मेरे लिए काम ढूंढने लग गए।जहाँ जो मिलता,सबको बोलती रहती।एक दिन पड़ोस मे रहने वाली एक लड़की ने कहीं काम बताया,लेकिन वो काम झाड़ू पोछे, और बर्तन का था।मैं बिना कुछ सोचे उस लड़की के साथ काम की बात करने चली गई।और 1000 रुपये मे 5 कमरों का झाड़ू,पोछा,डस्टिंग,बाथरूम की सफाई और बर्तन करने थे।
अब मेरे पति ही मुझे सब जगह छोड़ने और लेने आने लगे ताकि ऑटो मे समय खराब न हो और कम समय मे मैं ज्यादा काम कर सकु।
जिनके यहां मै झाड़ू पोछे करने जाती थी,वो भी मेडम बहुत ही स्ट्रीक थी।बहुत ही बारीकी से वो सब जगह सफाई कराती,यहाँ तक कि एक एक सीढ़ी को भी सर्फ के कपड़े से साफ कराती।मैं वहाँ से जब घर जाती तो थक कर बुरा हाल हो जाता।मेरे और मेरे पति के अलावा किसी को भी ये पता नही था कि मैं झाड़ू पोछे करने जाती हु । जब मैं अपने बेटे को लेने मम्मी के यहां जाती तो मेरी हालत देखकर पापा मम्मी अक्सर पूछते कि तेरी कौनसी नोकरी है जो तू इतनी कमजोर हो रही है।मैं छुपा कर कहती कि किसी आफिस मे छोटी मोटी लिखापढ़ी का काम है।
इस तरह कठिन संघर्ष के साथ दिन बीत रहे थे।थोड़े दिन बाद मेरी दोनो बहनो की शादी हो गई।
बहनो की शादी के बाद मैं अपने बेटे को पीहर नहीं रखना चाहती थी,इसलिए उसे अपने पास बुला लिया और दूसरे स्कूल मे डाल दिया।
शुभम को मेरे पास लाने के बाद मैंने वो झाड़ू पोछे का काम छोड़ दिया और केवल ब्यूटी पार्लर की होम सर्विस ही करने लगी।
धीरे धीरे ईश्वर ने साथ दिया और क्लाइंट बढ़ते गए।मुझे इस बात की कोई शिकायत नहीं थी कि पति के स्थान पर मैं घर चला रही थी।मैं तो कैसे भी करके अपने परिवार मे शांति और प्रेम चाहती थी।लेकिन ये दुनिया किसी का प्रेम और शांति कहाँ बर्दास्त कर पाती थी।पहले लाइट बिल को लेकर घर के लोग शांति भंग करते थे और अब उन्हें इस बात की भी तकलीफ होने लगी कि औरत कमा रही है और आदमी इसके पीछे पीछे छोड़ने लेने जाता है।कई बार सुसराल वाले इस बात का ताना देते रहते थे।मुझे समझ ही नही आता था कि आखिर ये लोग चाहते क्या है
मैं समझ गई कि मेरे पति की परवरिश मे ही खोट है,इन्हें अच्छा वातावरण नही मिला,इसलिए वो ऐसे है।
मैंने ये सोचकर भविष्य पर छोड़ दिया कि एक दिन मैं अपने प्रेम से अपने पति को बदल दूँगी
और इसी कोशिश के साथ मेरा संघर्ष चलता रहा।
जून 2006 की बात है,मेरे पापा को ब्रेन ऐमरेज हो गया था इसलिए राइट साइट से पैरालाइज हो गए थे।
एक दिन मम्मी के यहां पापा की चिंता करते करते भगवान के सामने खड़ी थी और मन ही मन पापा को ठीक करने की प्रार्थना कर ही रही थी कि जलता हुआ दीपक बुझ गया।
मेरी चिंता और बढ़ गई।एक तरफ पीहर मे माहौल ऐसा हो गया और दूसरी तरफ सुसराल वाले मुझे तंग करने से बाज नही आ रहे थे।सुसराल मे इस बार मैं बिल के पैसे नहीं दे पाई तो उन्होंने मेरे कमरे के बाहर से तार काट दिए और लाइट काट दी।मैं जब भी सुसराल जाती अंधरे मे ही काम करती।थोड़े दिन बाद पापा को अहमदाबाद से घर लेकर आ गए।लेकिन उनकी तबियत नाजुक ही थी।उनकी बोली भी चली गई थी।एक दिन मेरे सासुजी मेरे पापा से मिलने आये।उन्होंने ऐसे नाजुक समय मे भी पापा से घर के डिसकशन किये,वो मुँह से बोल नहीं पा रहे थे लेकिन उनका मन मेरे दुःखो से बहुत घबरा रहा था।
इस तरह तीन महीने बिना लाइटों के मैंने सुसराल मे निकाले लेकिन किसी का भी मन नहीं पिघला हमे अंधरे मे रखकर।अब मेरा सुसराल से मन हट गया था।मैं अपने आप को बहुत अपमानित महसूस कर रही थी।मैंने निश्चय कर लिया कि अब इस घर मे मैं नहीं रहूंगी।
मैंने अपने पति से कहा कि -"अब हम किराये का घर ढूंढते है,पर पति ने मना कर दिया।मेरे पति न तो अपने घर मे पैसा खर्च करना चाहते थे और न ही किराये रहना चाहते थे।मैं ठहरी स्वाभिमानी,
इतना अपमान होने के बाद वहाँ रहना नहीं चाहती थी।मैंने जिद करी की मैं तो अब किराये पर ही रहूंगी तो पति ने जिद मानी और मेरे साथ किराये का घर ढूंढने साथ मे आ गए।किस्मत से थोड़ी दूरी पर,खारोल कॉलोनी मे एक घर के बाहर tolet लिखा हुआ था।मैंने अंदर जाकर पूछा तो अंदर ग्राउंड मे 2 कमरे ,रसोई और साथ मैं टॉयलट बाथरूम भी थे।मुजे घर और लोग दोनों पसंद आ गए थे।
1500 रुपये किराया बताया।मैंने हाँ कर दी और 500 रुपये एडवांस दे दिए।फिर मैंने जरूरी जरूरी सामान बांधा और स्कूटर पर ही थोड़ा थोड़ा लेकर गए।कुछ सामान सुसराल ही रहने दिया।ये दूसरी बार था कि मैं वापस सुसराल से निकली । पापा की हालत के कारण उनसे ये बात छिपानी पड़ी।नया नया मोहल्ला था,थोड़े दिन तो मन ही नहीं लगता था।लेकिन फिर दिन भर काम की व्यस्तता के कारण समय निकल जाता था पता ही नहीं चलता था।करीबन एक महीना ही वहाँ रहते हुए हुआ था कि एक दिन मेरे पापा की तबियत बहुत खराब हो गई थी।मैं उस दिन पापा के घर ही थी।मुझे पार्लर के काम से जाना था पर जैसे ही पापा को देखती मेरे कदम फिर पीछे हो जाते और अचानक मेरे मन से ये आवाज आई कि अगर पापा की जगह मेरी हालत ऐसी होती तो क्या मेरे मम्मी पापा मुझे छोड़ कर जाते?तो फिर मैं ऐसी हालत मे कैसे जा सकती हूंये सोच कर अपना पार्लर का बैग रख दिया ओर उनके पास ही बैठी रही और उसी दिन शाम को करीबन 6 बजे पापा की death हो गई
मेरे पीहर मे दुःखो का पहाड़ टूट गया मम्मी की रो रो कर हालत खराब हो गई थी।उस समय मेरी एक बहन के 15 दिन का बेटा था,भाभी के 1 महीने का बेटा था और एक और बहन को मिसकैरेज हो गया था।अब तो वापस से मेरी ज़िमेदारी बढ़ गई थी।मेरा 6 महीने तक मम्मी के घर आना जाना लगा रहता था।6 महीने बाद जब सब थोड़े नॉर्मल हुए तो मैं वापस अपने काम और बच्चे पर ध्यान देने लगी।
एक बार की बात है मेरे शादियों का सीजन चल रहा था ।मैं देर तक कहीं काम कर रही थी।मेरे पति मुझे 8 बजे लेने आये। मेरा बच्चा शुभम उस समय 8 साल का था और घर पर अकेला था।मैं जब काम से घर पर आई तो देखा कि मेरा बेटा एक तरफ कोने में दुबक कर सोया हुआ था,ठंड से ठिठुर रहा था,और उसके चारों तरफ खिलोने बिखरे हुए थे।वो भूखा ही सो गया था
इतना कठिन संघर्ष करने के बाद भी पति को कभी दया नहीं आई कि किसी दिन ये कह दे कि तू चिंता मत कर,मै तेरे साथ हु।मैं भी हार मानने वालों मे से नहीं थी।
मुझसे जितनी मेहनत भगवान करवा रहे थे,जितनी परीक्षा ले रहे थे,साथ साथ मदद भी कर रहे थे।जितना खर्चा मेरे घर का था उतना ही बराबर भगवान मुझे दे रहे थे,न उससे कम और न ज्यादा।मेरे पति चाहे कोई फर्ज नहीं निभा रहे थे फिर भी मैंने अपने पति से कभी एक रुपया नहीं छिपाया।जितना खर्चा होता वो भी बता देती और जो बचता वो भी पति के खाते मे जमा कर देती।मुझे मेरे पीहर वाले बहुत डांटते कि कम से कम अपना खाता तो खुलवा और कुछ पैसे छुपा कर तो रख,क्यो ऐसे पति को हर चीज सही सही बताती है।पर मेरा उसूल था कि कोई मुझसे बेईमानी करे तो करे पर मुझे ईमानदारी ही रखनी है।एक दिन की बात हैं ,शीतला सप्तमी का त्योहार आया,मैंने अपने पति से कुछ सामान खरीद कर लाने के लिए बोला,इस बात पर इतना झगड़ा हो गया कि मेरे साथ पति ने मारपीट करी
कुछ दिनों बाद हमारा स्कूटर खराब हो गया ,बार बार ठीक कराया लेकिन पेट्रोल भी ज्यादा जलने लगा।मैंने फिर अपने पति से कहा कि एक नई मोटरसाइकिल ले लेते है,कुछ पैसे आप दे दो कुछ मैं दे दूँगी,पर मेरे पति ने इंकार कर दिया कि मेरे पास तो पैसे नहीं है,ऐसा कर हर महीने 3000 रुपये अलग इक्कठे कर ले फिर ले आएंगे गाड़ी।मुझे अच्छे से पता था कि ये काम भी मुझे ही करना है ,मैंने थोड़े थोड़े पैसे इक्कठे किये और फिर नई मोटरसाइकिल ली।अब मैं दिन भर काम करती और पति मुझे हर जगह लेने छोड़ने आते थे और इस तरह अपने जीवन का निर्वाह कर रही थी।
कुछ दिनों बाद राखी का त्योहार आया,मेरा मन नहीं माना और मैंने अपने पति से कहा कि,घर पर दीदी आये होंगे,हम आज घर चलते है,त्योहार मना कर वापस आ जायँगे।मेरे पति ने तो साफ मना कर दिया कि मुझे नहीं जाना आज।पर मैंने जिद करि तो वो मान गए और हम तीनों ससुराल गए।वहां मेरे ननंदजी को देखकर सासुजी से मिलकर सब पुरानी बात भुल गई औऱ खुशी से सबके साथ राखी मनाई ।मैंने अपने मन मे ये संतोष कर लिया कि दूर रहने से अगर प्रेम रह रहा है तो मैं अब दूर रह कर ही रिश्ता निभाऊंगी। अब तो जब मन करता मै अपने देवर के बच्चो से मिलने जाती,सबसे प्रेम से बाते करती और वापस अपने किराये के घर पर आ जाती।
मार्च 2008 की बात है ,एक दिन मेरा बेटा शुभम अचानक स्कूल मे ही चक्कर खाकर गिर गया,स्कूल की मेडम ने फ़ोन किया और हम उसको स्कूल लेने गए।घर लेकर आये उसे निम्बू पानी पिलाया,पर उसने तो बोलना बंद कर दिया और धुजने लग गया,हम तुरंत उसको हॉस्पिटल लेकर गए और उसे एडमिट कर दिया।
कुछ दिनों बाद पति ने फिर झगड़ा किया,मारपीट की।मैं दो तीन दिन तक काम पर नही गई और अपने पति से बात भी नही करी।पर मेरे पति को किसी चीज का कोई फर्क नही पड़ता था,क्योकि घर चलाना, किराया देना,बच्चे की फीस भरना,सब मेरी चिंता थी।इसलिए न चाहते हुए भी अपने पति को कहना पड़ता था कि मुझे काम पर छोड़ दो।मझबूरिवश मुझे उनके साथ गाड़ी पर बैठकर जाना पड़ता था।
कुछ दिनों बाद मेरी मम्मी और भाई ने राय दी कि तू कहीं पार्लर खोल दे ताकि रोज रोज इनको छोड़ने लाने का टेंशन ही खत्म हो जाये।मेरी मम्मी ने कहा कि हमारी तरफ से तेरे कोई रकम या गहने नही है तो तू रकम की जगह हमसे पैसे ले ले और ब्यूटी पार्लर खोल दे।मुझे भी ये बात समझ आ गई और मैंने निश्चय कर लिया कि अब मैं ब्यूटी पार्लर खोल दु।
मैंने एक जगह एक तीन कमरों का घर देखा और वहाँ पूरा घर ही किराये पर ले लिया ताकि रहने का भी हो जाय और पार्लर भी खुल जाए।4000 किराया था और 1000 रुपये लाइट के थे।मैंने 2 साल तक वहाँ पार्लर चलाया । भगवान के नाम को एक पल के लिए भी अपने से दूर न करते हुए,उनके नाम को याद करते हुए काम कर रही थी।।मेरे पति तब भी वैसे के वैसे थे।मैं दिन भर ब्यूटी पार्लर मे काम करती और मेरे पति दूसरे कमरे मे घंटो तक सोते रहते थे।
मई 2009 मे हम वापस खारोल कॉलोनी मे किराये पर रहे।वापस वही घर घर जा कर लोगो के पार्लर का काम करने लगी।
लेकिन पति की तरफ से कोई शांति नहीं मिली,लड़ाई झगड़े कम नहीं हुए।कही भी छोड़ने आते तो रास्ते मे ही लड़ाई करने लग जाते,इसलिये कभी कभी पैदल ही आ जाती।एक दिन की बात है,मेरे पति ने मुझे मारा तो मुझे इतना गुस्सा आया और भगवान को कह दिया कि अब मैं आपका नाम लेकर पैदल आ जाउंगी,ऑटो मे आ जाउंगी पर पति को फ़ोन नहीं करूंगी।कई दिनों तक हाथ मे 20 किलो का बोझ उठाकर भगवान के भजन गाती गाती चलती गई।
पर मैंने भी पति को फ़ोन नही किया।एक दिन ऐसे ही भगवान के भजन गाती गाती चल रही थी कि रास्ते मे एक राडाजी बावजी का स्थान आया,मैंने वहाँ बेग रखा और उनको प्रणाम किया और कहा कि-"हे प्रभु मुझसे अब पैदल नही चला जाता।अब आप ही कुछ करना, अब तो मै इस रास्ते से तभी निकलूंगी जब मै गाड़ी चला सकु।ये कह कर तो मैं वहाँ से चली गई। उसके बाद मेरी सहेली,जो मेरी धर्म की माता है,उन्होंने मुझे बताया कि कोई औरत हैं जो गाड़ी चलाना सिखाती है।
मैंने एक बार तो उनको मना कर दिया कि मैं गाड़ी नहीं चला सकती,मुझे बहुत डर लगता है।लेकिन फिर मैं और मेरी सहेली हिम्मत करके उस औरत से बात करने गए।उसने हमसे कहा कि वो 8 दिन मे गाड़ी सीखा देगी पर 800 रुपये जो उसकी फीस थी वो एडवांस लेती है।हमने उसे 800 रुपये एडवांस दे दिए।अगले दिन उसके बताये स्थान पर ठीक समय पर गाड़ी सीखने चली गई।पहले दिन उसने बहुत अच्छे से बात करी और स्कूटी चलाने के और ट्राफिक के नियम बताए। अगले दिन फिर उसी समय पर जब मैं वहाँ पहुंची तो वो औरत उस दिन नहीं आई।मैंने उसे फ़ोन किया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ था।मैंने सोचा शायद कोई एमरजेंसी आ गई होगी तो कहीं बाहर चली गई होगी।उसके बाद कम से कम 15 दिन तक मैं फ़ोन लगाती रही।कभी वो उठाती नहीं और कभी बंद आता था।एक दिन मैंने और मेरी सहेली ने उसका एड्रेस पता किया तो पता चला कि वो किसी शोरूम मे काम करती है।हम उसके शोरूम मे उससे बात करने गए तो वो बहाने बनाने लग गई।मैंने उससे 800 रुपये मांगे तो उसने देने से इंकार कर दिया।इस पर हमारी उससे बहुत बहस हो गई ओर फिर हम घर आ गए।घर आकर मैं इतना रोई और अपनी किस्मत को दोष देने लग गई कि अब मैं गाड़ी कभी नहीं सिख सकती।
मुझे रोते हुए देखकर मेरे धर्म का भाई विशाल मुझसे बोला कि-"दीदी आप क्यों चिंता करते हो,मैं आपको 9 दिन मे गाड़ी सीखा दूंगा ।मैंने उससे कहा कि-'मुझे अब कोई गाड़ी नहीं सीखनी,तुम सब मुझे कहना बंद कर दो।
थोड़े दिन बाद एक दिन मुझे सपना आता है,और सपने मे मैं गाड़ी चलाती हु और मेरे पीछे मेरी मासी बैठती है और कहती है कि-"राधा !तू डर मत और गाड़ी चला,मैं तेरे पीछे बैठी हु।
सुबह जब उठी तो मैंने सोचा कि ये मेरा वहम है,लेकिन कुछ दिनों बाद फिर यहीं सपना आया।ऐसा सपना 3 बार मुझे आया तो मुझे लगा कि जरूर ये माँ जगदम्बा है जो मुझे गाड़ी सीखा रही है।लेकिन मैंने इस सपने की बात किसी से नहीं कही।
एक दिन नवरात्रि का पहला दिन था,और सुबह 5 बजे अचानक मेरा धर्म का भाई विशाल घर के बाहर आकर आवाज देता है,और कहता है दीदी!जल्दी उठो मैं आज आपको गाड़ी चलाना सिखाकर रहूंगा।
मैं हैरान रह गई कि इतनी जल्दी अचानक ये कैसे आ गया।मैंने एक बार तो बहाने बनाये कि नवरात्रि के व्रत मे कहीं चोट लग गई तो क्या होगा?पर मेरा भाई विशाल नहीं माना, उसकी जिद के आगे मैं हार गई और उसके साथ गाड़ी सीखने चली गई।नवरात्रि मे मैं पैरों मे चप्पल नही पहनती थी,बिना चप्पल के उस दिन मैंने पहली बार गाड़ी को धीरे धीरे रेस दी,पीछे मेरा भाई विशाल बैठा था,जो हाथ पकड़ कर मुझे सीखा रहा था।इस तरह नवरात्रि के 9 दिनों तक रोज वो मुझे सुबह 5 बजे गाड़ी चलवाता।और भगवान का ऐसा चमत्कार हुआ कि 9 दिन मे मैं बिना गिरे गाड़ी चलाना सिख गई।
मैंने अपने भाई को धन्यवाद दिया और उसे अपना गुरु माना जिसने एक डरपोक बहन को गाड़ी सिखाकर असंभव काम को संभव कर दिया।
जैसे ही मैं गाड़ी सिख गई और उसके अगले दिन ही मेरे भाई विशाल का होटल मैनजमेंट की पढ़ाई के लिए बाहर नम्बर आ गया और उसे जाना पड़ा। कैसा अजीब इत्तफाक था कि जाते जाते वो मुझे बहुत कुछ दे गया,उसके बाद तो वो अपनी पढ़ाई मे इतना busy हो गया कि अब तो वो चाह कर भी मुझे गाड़ी नहीं सीखा पाता।सही समय पर अचानक हुए इस असंभव कार्य को मैं किसी चमत्कार से कम नहीं समझती।पग पग पर ईश्वर मेरी मदद कर रहे थे।
कुछ समय बाद मेरा भाई विशाल एक दो दिन की छुट्टी के लिए उदयपुर आया तो मैंने उससे कहा कि अब मुझे अपने लिए नई स्कूटी लेनी है,अगर मैं बराबर नहीं चलाऊंगी तो भूल जाउंगी।हम एक शोरूम मे स्कूटी देखने गए
दो दिन बाद मेरा भाई विशाल वापस बाहर चला गया।मेरी नई स्कूटी 15 दिन तक ऐसे ही पड़ी रही पर डर के मारे हाथ नहीं लगाया कि कहीं गिर गई तो।
एक दिन की बात है,मुझे पार्लर के काम से जाना था और पति ने अचानक किसी बात को लेकर झगड़ा किया और मुझ पर हाथ उठाया। इस बात पर मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने गुस्से गुस्से मे गाड़ी उठाई और गुस्से में ही अकेली निकल गई।उस दिन पूरा दिन मैंने अकेले गाड़ी चलाई,और शाम को घर आई तो मैंने विचार किया कि ये चमत्कार कैसे हो गया?वो गुस्सा मेरा ऐसा काम कर गया कि मेरा सारा डर निकाल दिया।मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि है प्रभु!तेरी लीला अपरम्पार है।
उसके बाद अब मै रोज भजन गाती गाती गाड़ी चलाती और काम पर जाती थी।करीब एक वर्ष बाद मुझे सपना आया कि मैं किसी बरगद के पेड़ से नीचे गिर गई हुु।
उसी रात को सपना आया कि आवरी माता जी मेरा हाथ पकड़कर मुझे चला रहे थे।मुझे अब थोड़ा विश्वास आ गया कि शायद अब मै ठीक हो जाउंगी।लेकिन मेरा पैर तो एकदम लकड़ी हो गया था,बिल्कुल हिल भी नहीं रहा था। एक दिन मेरी मौसी मुझसे मिलने आई, और उन्होंने मुझे डॉट कर कहा कि -कब तक ऐसे ही पैर लेकर बैठी रहेगी?थोड़ा इस पैर को चलाने की कोशिश कर,
इतनी जल्दी हिम्मत हार गई हैं क्या?उनकी बातें सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे कोई दैवीय शक्ति मुझे जगा रही है।उस दिन से मैं धीरे धीरे पैर को उठाने को कोशिश करने लगी,और कोशिश करते करते मेरा पैर कुछ दिनों मे काफी हद तक हिलने लगा था।उसके बाद रोज 3 महीने तक एक्सरसाइज करी और ऐसा चमत्कार हुआ कि मैं दीवार के सहारे सहारे चलने लगी।मैं समझ गई कि ये चमत्कार आवरा माताजी ने ही किया है।मैंने अपने घर वालो को बोला कि मुझे जल्दी से जल्दी आवरा माताजी के दर्शन करने हैं।मेरा पैर पूरी तरह से ठीक नही हुआ था,इसलिये मम्मी ने आवरा माता जी जाने के लिए मना कर दिया था,
पर मैं जिद पर अड़ गई तो मुझे मेरी मम्मी और मेरी सहेली कैलाश दीदी आवरा माताजी लेकर गए।
आवरा माताजी से वापस आने के बाद ऐसा चमत्कार हुआ कि मेरा पैर काफ़ी हद तक ठीक हो गया।
अक्टूबर 2011 मे मैं वापस अपने किराये के घर खारोल कॉलनी आ गई,हालांकि मम्मी अभी मुझे भेजना नहीं चाहते थे पर मेरे बेटे की पढ़ाई का loss हो रहा था ।वापस आई तो मकानमालिक को तीन महीने का किराया देना पड़ा।मेरे पति ने ऐसी परिस्थिति मे भी खर्चा नहीं किया,पर क्या करती, रोज रोज लड़ाई करना मेरे वश मे नही था।मैंने अपने कुछ पैसे बचाये थे,उसी से किराया चुकाया।
नवंबर महीना था,दीवाली का त्योहार आया ।मेरे मन मे सुसराल जाने की इच्छा हुई,हालांकि मेरे एक्सीडेंट होने पर कोई मुझसे मिलने नहीं आया फिर भी सबकुछ भूलकर मैं उन सबसे मिलना चाहती थी।मैं अपने पति और बच्चे के साथ सुसराल गई,वहाँ मेरे ननंद और ननंदोई जी भी थे।हम सब ने इतने टाइम बाद खुशी से साथ मे खाना खाया।मेरे ननंदोई जी ने मेरे सास ससुर जी से बात करी कि पुरानी बातों को भूलकर सब साथ मे रहो और हमको वापस साथ मे रहने के लिए बोला।मैं तो सुनकर खुश हो गई,क्योकि मै तो अपने परिवार से शुरू से ही प्यार करती थी लेकिन पैसो के झगड़ो के कारण दूर रह रही थी।सब लोग खुश थे तो मैंने सोचा कि,अब सब बदल गए है,मैं भी पुरानी बातें भूल जाती हूं और वापस अपने घर आ जाती हूं।
5 साल किराये रहने के बाद वापस अपने घर जा रही थी तो पहले मैंने पूरे घर मे color कराया,सफाइयां कराई,उसके बाद मैं वापस अपने सुसराल शिफ्ट हुई।इस बार मैंने अपने आप से प्रण किया कि मैं अपनी तरफ से इस घर के वातावरण को प्रेम से भरने की पूरी कोशिश करूँगी।मैंंने एक बार फिर से सुसराल मे सबके साथ रहने की कोशिश करी।
इतनी जल्दी हिम्मत हार गई हैं क्या?उनकी बातें सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे कोई दैवीय शक्ति मुझे जगा रही है।उस दिन से मैं धीरे धीरे पैर को उठाने को कोशिश करने लगी,और कोशिश करते करते मेरा पैर कुछ दिनों मे काफी हद तक हिलने लगा था।उसके बाद रोज 3 महीने तक एक्सरसाइज करी और ऐसा चमत्कार हुआ कि मैं दीवार के सहारे सहारे चलने लगी।मैं समझ गई कि ये चमत्कार आवरा माताजी ने ही किया है।मैंने अपने घर वालो को बोला कि मुझे जल्दी से जल्दी आवरा माताजी के दर्शन करने हैं।मेरा पैर पूरी तरह से ठीक नही हुआ था,इसलिये मम्मी ने आवरा माता जी जाने के लिए मना कर दिया था,
पर मैं जिद पर अड़ गई तो मुझे मेरी मम्मी और मेरी सहेली कैलाश दीदी आवरा माताजी लेकर गए।
अक्टूबर 2011 मे मैं वापस अपने किराये के घर खारोल कॉलनी आ गई,हालांकि मम्मी अभी मुझे भेजना नहीं चाहते थे पर मेरे बेटे की पढ़ाई का loss हो रहा था ।वापस आई तो मकानमालिक को तीन महीने का किराया देना पड़ा।मेरे पति ने ऐसी परिस्थिति मे भी खर्चा नहीं किया,पर क्या करती, रोज रोज लड़ाई करना मेरे वश मे नही था।मैंने अपने कुछ पैसे बचाये थे,उसी से किराया चुकाया।
नवंबर महीना था,दीवाली का त्योहार आया ।मेरे मन मे सुसराल जाने की इच्छा हुई,हालांकि मेरे एक्सीडेंट होने पर कोई मुझसे मिलने नहीं आया फिर भी सबकुछ भूलकर मैं उन सबसे मिलना चाहती थी।मैं अपने पति और बच्चे के साथ सुसराल गई,वहाँ मेरे ननंद और ननंदोई जी भी थे।हम सब ने इतने टाइम बाद खुशी से साथ मे खाना खाया।मेरे ननंदोई जी ने मेरे सास ससुर जी से बात करी कि पुरानी बातों को भूलकर सब साथ मे रहो और हमको वापस साथ मे रहने के लिए बोला।मैं तो सुनकर खुश हो गई,क्योकि मै तो अपने परिवार से शुरू से ही प्यार करती थी लेकिन पैसो के झगड़ो के कारण दूर रह रही थी।सब लोग खुश थे तो मैंने सोचा कि,अब सब बदल गए है,मैं भी पुरानी बातें भूल जाती हूं और वापस अपने घर आ जाती हूं।
5 साल किराये रहने के बाद वापस अपने घर जा रही थी तो पहले मैंने पूरे घर मे color कराया,सफाइयां कराई,उसके बाद मैं वापस अपने सुसराल शिफ्ट हुई।इस बार मैंने अपने आप से प्रण किया कि मैं अपनी तरफ से इस घर के वातावरण को प्रेम से भरने की पूरी कोशिश करूँगी।मैंंने एक बार फिर से सुसराल मे सबके साथ रहने की कोशिश करी।
क्या मेरी ये कोशिश कामयाब होती है?या नहीं?मैं आपको अपनी आगे की कहानी मे बताउंगी।
मेरा सच-चरण 25 -सुसराल मे प्रेम स्थापित करने का एक और किया प्रयास ,पर फिर रही असफल
नवंबर 2012 मे वापस सुसराल शिफ्ट होते ही मैंने भेरूजी जागरण का एक कार्यक्रम रखा।
सब रिश्तेदारों को बुलाया और ईश्वर की कृपा से बहुत अच्छा कार्यक्रम रहा।शाम को सब मेहमान अपने अपने घर चले गए,और मैं भी इस बात से बहुत खुश थी कि अब भगवान का अच्छा कार्यक्रम हो गया है,
अब घर मे हम सब शांति से और खुशी से रहेंगे।लेकिन ईश्वर की परीक्षा कहाँ खत्म होती है,उसी रात को किसी बात को लेकर मेरे पति और ससुर जी मे बहुत तेज झगड़ा हो जाता है,और झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि पड़ोसी तक सुन लेते है।अब मुझे इतना रोना आये कि अभी अभी घर मे खुशी का कार्यक्रम हुआ और इतनी जल्दी झगड़ा हो गया।मेरे पति तो लड़ झगड़ कर सो गए पर मैं रात भर बैठी बैठी रोती रही
और भेरूजी से शिकायत करती रही कि क्यो हर समय मेरे जीवन मे कोई न कोई दुख आता रहता है।ऐसे ही मन ही मन भगवान से बाते करते करते बैठे बैठे ही आँख लग गई कि सपना आया।सपने मे एक काले घोड़े पर बड़ी बड़ी मुछो वाला,सिर पर पगड़ी बांधे,एक आदमी घुंघरू की आवाज के साथ आता है
और और कहता है कि तू चिंता मत कर,तुझे मैंने अपने रंग मे रंग दिया है।ऐसा कह कर सपना टूट जाता है।मुझे विश्वास हो गया कि वो कोई और नहीं साक्षात भेरूजी ही थे।अब मुझे कुछ हिम्मत आई और मैंने लड़ाई की बात को भुला दिया और नई सुबह के साथ वापस जीने लगी।
लेकिन घर के लोग मुझे किसी न किसी तरह से आये दिन परेशान करते ही रहते थे।एक दिन की बात है,लाइट का बिल आया,मेरे सासुजी बिल लेकर आये मैंने अपने समिटर की रीडिंग से जो भी आया मैंने उन्हें पैसे दे दिए।लेकिन इस बार उनका कहना था कि तू प्रेस और फ्रीज जलाती है तो तुझे आधा बिल देना पड़ेगा।किसी भी तरह घर की शांति भंग न हो इसलिए उसी समय आधा बिल दे दिया।
एक दिन की बात है,मैं अपने ब्यूटी पार्लर के काम से निकल ही रही थी कि मेरी देवरानी की 9 साल की बेटी नल का बिल देकर कहती है,कि पापा ने दिया है।मैंने बिल देखा तो हँसी भी आई और गुस्सा भी आया क्योंकि बिल था केवल 165 रुपये।उसी समय मैंने वो 165 दे दिए लेकिन मैं विचार करने लगी कि कुल मिलाकर इन लोगो को मुझे परेशान ही करना हैं।
अब घर मे हम सब शांति से और खुशी से रहेंगे।लेकिन ईश्वर की परीक्षा कहाँ खत्म होती है,उसी रात को किसी बात को लेकर मेरे पति और ससुर जी मे बहुत तेज झगड़ा हो जाता है,और झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि पड़ोसी तक सुन लेते है।अब मुझे इतना रोना आये कि अभी अभी घर मे खुशी का कार्यक्रम हुआ और इतनी जल्दी झगड़ा हो गया।मेरे पति तो लड़ झगड़ कर सो गए पर मैं रात भर बैठी बैठी रोती रही
लेकिन घर के लोग मुझे किसी न किसी तरह से आये दिन परेशान करते ही रहते थे।एक दिन की बात है,लाइट का बिल आया,मेरे सासुजी बिल लेकर आये मैंने अपने समिटर की रीडिंग से जो भी आया मैंने उन्हें पैसे दे दिए।लेकिन इस बार उनका कहना था कि तू प्रेस और फ्रीज जलाती है तो तुझे आधा बिल देना पड़ेगा।किसी भी तरह घर की शांति भंग न हो इसलिए उसी समय आधा बिल दे दिया।
एक दिन की बात है,मैं अपने ब्यूटी पार्लर के काम से निकल ही रही थी कि मेरी देवरानी की 9 साल की बेटी नल का बिल देकर कहती है,कि पापा ने दिया है।मैंने बिल देखा तो हँसी भी आई और गुस्सा भी आया क्योंकि बिल था केवल 165 रुपये।उसी समय मैंने वो 165 दे दिए लेकिन मैं विचार करने लगी कि कुल मिलाकर इन लोगो को मुझे परेशान ही करना हैं।
2 साल बाद
मार्च 2014
जैसे तैसे समय निकाल रही थी।एक दिन मैं ब्यूटी पार्लर के काम से गई हुई थी।मेरे पति और बच्चा घर पर अकेले थे।एक ही कमरा था,मेरा बच्चा पढ़ रहा था,और वहीं पर मेरे पति टी वी देख रहे थे।मेरे बच्चे ने अपने पापा से टी वी बंद करने को कहा तो वो बच्चे से लड़ने लग गए ऒर कहा कि तुझे पढ़ना है तो सीढ़ियों मे या रसोई मे जाकर पढ़,मै तो यहीं टी वी देखूंगा।मेरा बेटा भी जिद करने लगा और खुद ही टी वी बंद कर दी।इस बात से गुस्सा होकर मेरे पति ने बच्चे को इतना मारा , कि उसने अपने आप को कमरे मे बंद कर दिया और मुझे फ़ोन लगाया।फ़ोन पर मेरा बेटा बोले कुछ नहीं, और लंबी लंबी सांसो के साथ रों रहा था।मैंने पूछा कि,बेटा-क्या हुआ तू रो क्यो रहा है।बेटे ने कांपती हुई आवाज मे कहा कि-"मम्मी आप घर जल्दी आ जाओ,मैंने कमरा अंदर से बंद कर दिया है,पापा मुझे मार रहे हैं।मेरे बेटे की आवाज सुनकर मुझे रोना आ गया।जिन ऑन्टी के मैंं फेसिअल कर रही थी उन्होंने मुझे कहा कि-"राधा,तुम जल्दी से घर जाओ,इस वक्त बेटे को तुम्हारी जरूरत है,उन्होंने अपना काम भी पूरा नहीं करवाया और मुझे घर भेज दिया।मैं घर आई,तो दरवाजे पर ही पति गुस्से से लालपिले होकर खड़े थे।मैं पहले चुपचाप कमरे मे गई,और अपने सहमे हुए बच्चे को लाड़ किया।मैं भी उसे गले लगाकर खूब रोइ।बच्चे को शांत किया और फिर पति से बात करी कि-"कब तक आप हमें परेशान करोगे,
न तो तुम कहीं काम करते हो ,ऊपर से मुझे भी शांति से काम नहीं करने देते हो।लेकिन वो अपनी ही लगाते रहे और झगड़ा इतना बढ़ गया कि फिर कई महीनों तक हम आपस मे बिना बोले रहने लगे ।
सुसराल के सभी लोग बारी बारी से परेशान करने लगे तो एक दिन मैंने सोचा कि शायद इस घर मे रहने के मेरे संजोग ही नही है,इसीलिए बार बार कुछ न कुछ होता रहता है ।अब बेटा 9 वी मे आ गया था,
अब उसके पढ़ने के लिए उसे एकांत चाहिए था।ऊपर से इसी उम्र मे बच्चा अच्छा बुरा सीखता है,और मैं ऐसे लड़ाई झगड़े वाले माहौल मे उसे नहीं रखना चाहती थी।पर मै क्या करूँ,ये समझ नही आ रहा था,क्योंकि इससे पहले भी मै 2 बार घर खाली करके जा चुकी थी।मैं रोज ईश्वर से प्रार्थना करती रहती कि अब तू ही कुछ उपाय करना।कुछ दिनों बाद मेरी ननद की बेटी की शादी तय हो गई थी।मैं वापस अपना दुःख भूलकर उसकी तैयारी करने लगी।अपने लिए,पति के लिए और बच्चे के लिए खुशी से ड्रेसेस बनवाई और शादी मे खूब एन्जॉय किया।शादी मे सुसराल के सभी लोग अच्छे से बात कर रहे थे,मेरी देवरानी भी मुझसे अच्छे से बात करने लगी तो मुझे ऐसा लगा कि अब सब अच्छे से रहेंगे,अब मैं घर छोड़ने का विचार छोड़ देती हूं।लेकिन जैसे ही शादी से फ्री होकर घर आये तो सभी जनों का वापस बिना किसी वजह से बोलना बंद हो गया।मैंने अपनी देवरानी से पूछा कि-"तू शादी मे तो अच्छे से बोल रही थी,और अचानक घर आते ही तेरा व्यवहार बदल कैसे गया ,वो बोली कि शादी मे तो लोगो के सामने अच्छा ही बोलना पड़ता है।मैं धीरे धीरे समझने लगी कि प्रेम और दिखावे मे कितना फर्क होता है।मैं एक निश्चल प्रेम की आस मे बैठी थी जो मुझे कभी वहाँ मिलने वाला नही था।
एक दिन मैं सुबह अपने काम से निकल रही थी।मुझे स्कूटी पर 20 किलो का बेग रोज carry करना पड़ता था,इसलिये मुझे मजबूरन सलवार कमीज पहन कर ही जाना पड़ता था
।उस दिन भी सलवार सूट पहन कर मैं अपना बैग गाड़ी पर रख ही रही थी कि मेरे ससुर जी मुझे देखकर बोले कि -"कैसी खानदान की आई है,सलवार सूट पहन कर गाड़ी लेकर जाती है,हमारी नाक कटवा दी है।मैं इतनी परेशान हो गई कि एक तरफ पति खर्चा नहीं करते ।ऊपर से घर वालो के ताने , मन बड़ा उदास था।रोज शाम को भगवान के सामने रोती।
दो चार दिन बाद मैं किसी ऑन्टी के फेसिअल करने गई।उस दिन मैं बहुत उदास थी तो उन ऑन्टी ने मुझसे पूछा कि-"राधा,तुम्हे क्या परेशानी है,तुम बहुत दुःखी लग रही हो।उनकी बात सुनकर मुझे रोना आ गया,
और रोते रोते मैंने उन्हें अपनी परेशानी बताई।उन ऑन्टी ने मुझसे कहा कि राधा,मेरे एक खाली फ्लैट पड़ा हुआ है,वैसे तो बड़ा है,इसलिये किराया ज्यादा है,पर तेरे हिसाब से कम मे किराये पर दे दूँगी।अगर तेरे बच्चे की पढ़ाई का सवाल है तो थोड़ा रिस्क तो उठाना ही पड़ेगा,आखिर उसके लिए तुझे हिम्मत दिखानी पड़ेगी।उनकी बात मुझे ऐसी लग रही थी मानो ईश्वर मुझे संकेत दे रहा हो कि उस घर के माहौल से निकलना ही मेरे लिए सही कदम था।मैंने उसे ईश्वर का संकेत समझकर हाँ कर दी,और 6000 किराया फिक्स कर दिया।मेरे लिए 6000 ज्यादा ही था पर फ्लैट काफी बड़ा होने के कारण 6000 सही थे।घर आकर मैंने अपने पति से कहा कि मैंने फ्लैट फिक्स कर दिया है तो पति गुस्सा हो गए।मैंने उन्हें कह दिया कि मैं ये रिस्क उठा कर ही रहूंगी।चाहे तुम साथ दो या नही दो।अगले दिन मैंने उन ऑन्टी से फ्लैट की चाबी ली और मैंने और बेटे ने मिलकर फ्लैट की सफाई करी।मुझे थोड़ा अंदर से डर लग रहा था ,क्योकि इससे पहले भी मैं अपने सुसराल से दो बार निकल चुकी थी,और ये तीसरा चांस था,लेकिन मैं भी हार मानने वाली नहीं थी।अगले दिन मैं ओर मेरा बेटा ,हम दोनों नाथद्वारा गए,श्री नाथ जी के दर्शन करे और वहां से कृष्ण जी की मूर्ति खरीदी
और कहा कि है कृष्ण। !मैं आपको अपने साथ लेकर जा रही हु ।और तीसरी बार घर छोड़ रही हु,मेरे साथ रहना ओर सदा मेरी मदद करना।ये कहकर मैं मूर्ति लेकर घर आई।उसी रात को मुझे सपना आया कि
मेरा धर्म का भाई कुणाल,जो कृष्ण के वेश मे आया और मुझे बोला कि दीदी-"मैं आपके साथ हु।
"सुबह जब नींद खुली तो एक शक्ति सी महसूस हो रही थी।मुझे उस सपने ने एक हौसला दे दिया था।ये वो तीसरा मौका था जब तीसरी बार मैंने अपने सुसराल के घर को छोडा था।हर बार मैं सुसराल के मोह जाल मे फंस जाती,और बार बार किराये के मकान से खाली करके वापस सुसराल आ जाती ।पर अब बहुत हो गया।मैंने इस बार कड़ा निश्चय कर लिया कि जहाँ बार बार अपमान का घूंट पिया है,वहाँ अब कभी नहीं आउंगी।और ईश्वर से प्रार्थना करी कि मेरे इस निश्चय को सफल बनाने मे मेरा साथ देना।इस बार मैं अकेली नही थी,श्री कृष्ण जी को साथ लेकर सुसराल की दहलीज को पार किया।
न तो तुम कहीं काम करते हो ,ऊपर से मुझे भी शांति से काम नहीं करने देते हो।लेकिन वो अपनी ही लगाते रहे और झगड़ा इतना बढ़ गया कि फिर कई महीनों तक हम आपस मे बिना बोले रहने लगे ।
अब उसके पढ़ने के लिए उसे एकांत चाहिए था।ऊपर से इसी उम्र मे बच्चा अच्छा बुरा सीखता है,और मैं ऐसे लड़ाई झगड़े वाले माहौल मे उसे नहीं रखना चाहती थी।पर मै क्या करूँ,ये समझ नही आ रहा था,क्योंकि इससे पहले भी मै 2 बार घर खाली करके जा चुकी थी।मैं रोज ईश्वर से प्रार्थना करती रहती कि अब तू ही कुछ उपाय करना।कुछ दिनों बाद मेरी ननद की बेटी की शादी तय हो गई थी।मैं वापस अपना दुःख भूलकर उसकी तैयारी करने लगी।अपने लिए,पति के लिए और बच्चे के लिए खुशी से ड्रेसेस बनवाई और शादी मे खूब एन्जॉय किया।शादी मे सुसराल के सभी लोग अच्छे से बात कर रहे थे,मेरी देवरानी भी मुझसे अच्छे से बात करने लगी तो मुझे ऐसा लगा कि अब सब अच्छे से रहेंगे,अब मैं घर छोड़ने का विचार छोड़ देती हूं।लेकिन जैसे ही शादी से फ्री होकर घर आये तो सभी जनों का वापस बिना किसी वजह से बोलना बंद हो गया।मैंने अपनी देवरानी से पूछा कि-"तू शादी मे तो अच्छे से बोल रही थी,और अचानक घर आते ही तेरा व्यवहार बदल कैसे गया ,वो बोली कि शादी मे तो लोगो के सामने अच्छा ही बोलना पड़ता है।मैं धीरे धीरे समझने लगी कि प्रेम और दिखावे मे कितना फर्क होता है।मैं एक निश्चल प्रेम की आस मे बैठी थी जो मुझे कभी वहाँ मिलने वाला नही था।
एक दिन मैं सुबह अपने काम से निकल रही थी।मुझे स्कूटी पर 20 किलो का बेग रोज carry करना पड़ता था,इसलिये मुझे मजबूरन सलवार कमीज पहन कर ही जाना पड़ता था
।उस दिन भी सलवार सूट पहन कर मैं अपना बैग गाड़ी पर रख ही रही थी कि मेरे ससुर जी मुझे देखकर बोले कि -"कैसी खानदान की आई है,सलवार सूट पहन कर गाड़ी लेकर जाती है,हमारी नाक कटवा दी है।मैं इतनी परेशान हो गई कि एक तरफ पति खर्चा नहीं करते ।ऊपर से घर वालो के ताने , मन बड़ा उदास था।रोज शाम को भगवान के सामने रोती।
और कहा कि है कृष्ण। !मैं आपको अपने साथ लेकर जा रही हु ।और तीसरी बार घर छोड़ रही हु,मेरे साथ रहना ओर सदा मेरी मदद करना।ये कहकर मैं मूर्ति लेकर घर आई।उसी रात को मुझे सपना आया कि
"सुबह जब नींद खुली तो एक शक्ति सी महसूस हो रही थी।मुझे उस सपने ने एक हौसला दे दिया था।ये वो तीसरा मौका था जब तीसरी बार मैंने अपने सुसराल के घर को छोडा था।हर बार मैं सुसराल के मोह जाल मे फंस जाती,और बार बार किराये के मकान से खाली करके वापस सुसराल आ जाती ।पर अब बहुत हो गया।मैंने इस बार कड़ा निश्चय कर लिया कि जहाँ बार बार अपमान का घूंट पिया है,वहाँ अब कभी नहीं आउंगी।और ईश्वर से प्रार्थना करी कि मेरे इस निश्चय को सफल बनाने मे मेरा साथ देना।इस बार मैं अकेली नही थी,श्री कृष्ण जी को साथ लेकर सुसराल की दहलीज को पार किया।
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
हैं नाथ नारायण वासुदेवायः
मेरा सच-चरण 26 -श्री कृष्ण जी साथ आई फ्लैट मे ,यहाँ मिले कुछ अलौकिक ईश्वरीय संकेत
श्री कृष्ण का इशारा पाते ही मुझे हिम्मत आ गई और एक अच्छा समय देखकर मैं श्री कृष्ण की मूर्ति लेकर नए फ्लैट मे शिफ्ट हो गई।
सारा सामान खाली नहीं किया,क्योंकि पति ने बिल्कुल साथ नहीं दिया।इसलिए मैं और मेरे बेटे ने मिलकर कुछ जरूरी जरूरी सामान,जैसे कि,गैस की टंकी,बच्चे के पढ़ाई की कुछ चीजें,स्कूटी पर ही रखकर ले आये थे।
मैंने अपने पति को फ़ोन करके हमारे साथ रहने के लिए बुलाया लेकिन वो नहीं आये।दस दिन तक मैं और मेरा बेटा अकेले ही फ्लैट में रहे,उसके बाद एक दिन मेरे पति खुद ही हमारे साथ रहने आ गए।मैं खुश हो गई कि कोई बात नहीं देर से ही सही पर आ गए।कुछ महीने मेरे पति शांति से हमारे साथ रहे,लेकिन यहां भी ख़र्चे को लेकर वो बेपरवाह ही रहे,उन्हें कोई मतलब नहीं था कि किराया कितना है,लाइट बिल कितना आ रहा है,या घर के खर्चे क्या हो रहे हैं, लेकिन घर की शांति बनी रहे,इसलिए मैं चुपचाप खुद ही सारे खर्चे उठा रही थी।
दिसम्बर 2014 मे मेरा बेटा शुभम बहुत बीमार हो गया।एक दिन अचानक उसको ठंड लगकर बुखार आया तो मैंने अपने पति से कहा कि,-चलो इसको किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा देते है,लेकिन पति ने डांट कर कह दिया कि,फालतू पैसे खर्च करने की जरूरत नही है,हल्का बुखार है,डिस्पेंसरी पर दिखा देते है।मैंने भी उनकी बात मानकर डिस्पेन्सरी पर दिखा दिया।उन्होंने 5 दिन की दवाई दी।लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और हालात खराब हो गई।मेरा बेटा बिस्तर से उठ ही नहीं रहा था
औऱ खाना न खाने के कारण कमजोर हो गया था।मैं उसकी हालत देखकर डर गई औऱ तुरंत मेरी सहेली कैलाश दीदी को फोन किया और उनके साथ तुरंत शुभम को हॉस्पिटल बताया।डॉक्टर ने जांच लिखी।जांच से पता चला कि शुभम को तो बहुत high पीलिया हो गया था ,डॉक्टर ने भी डाँटा कि अगर और देर हो जाती तो इलाज भी मुश्किल था।मुझे बड़ा अफसोस हुआ कि पहले ही पति को न पूछती और बच्चे को ले आती तो उसका ये हाल नहीं होता।डॉक्टर ने जो भी दवाई लिखी,उसको समय से देती रही और साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करती रही ! कि तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है,
और तुझे ही मेरे बेटे को ठीक करना है।मैं रोज घंटो ईश्वर के सामने बैठ कर उनसे बाते करती रहती।जो कोई भी मेरे बेटे को देखता वो यही कहता कि,ये पीलिया तो ठीक होने मे साल भर लग जायेगा।लेकिन कहते हैं कि विश्वास मे बहुत ताकत होती है।मुझे उस ईश्वर पर विश्वास था,और चमत्कार ये हुआ कि केवल एक महीने मे मेरे बेटे को एकदम से ठीक कर दिया।मैंने कई मंदिरों मे जाकर ईश्वर को धन्यवाद दिया।
फरवरी 2015 की बात है,एक रात को मुझे सपना आया कि मैं किसी मेले मे शनिदेव सहित 9 ग्रह देवता की तस्वीर खरीद रही थी,
और अचानक सपना टूट जाता है।लेकिन उसके एक सप्ताह बाद फिर यही सपना वापस आता है।मैं कुछ समझ नहीं पाई।मार्च 2015 मे मैं और मेरे दीदी कैलाश दीदी के परिवार के साथ आवरी माता के दर्शन के लिए गए।वहां से लौटते वक्त हम सब शनिदेव के दर्शन के लिए गए।जैसे ही मैंने शनिदेव के दर्शन किये और मंदिर से बाहर निकलते ही एक दुकान पर लटक रही तस्वीरों पर मेरी नजर गई और मुझे सपने वाली नव ग्रह देवता की तस्वीर वाली बात याद आ गई।मैंने उस दुकान से वो ही नवग्रह देवता वाली तस्वीर खरीदी।रास्ते मे आते समय गाड़ी मे अचानक मुझे बचपन की एक घटना ऐसे याद आई मानो किसी शक्ति ने मुझे आकर याद दिलाई हो।वो घटना ये थी कि,कक्षा 8वी मे मेरे हाथ से एक नवग्रह देवता की तस्वीर फुट गई थी ,जिसमे जिस स्थान पर शनिदेव की फ़ोटो थी उसी जगह तस्वीर पर क्रेक आया था।ये घटना याद आते ही मैं समझ गई कि उस सपने का संकेत मुझे शनिदेव की परीक्षा की याद दिला रहा था।ये सब संजोग मुझे समझ आ रहे थे पर मैं किसी को एक्सप्लेन नही कर पा रही थी।उस तस्वीर को लेकर मैं घर आई और अभी तो उसका पैकेट भी नही खोला था और भगवान के मंदिर मे रखा ही था कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी।मैंने दरवाजा खोला तो एक भैया थे जो अक्सर पार्लर के सामान की होम डिलीवरी के लिए घर पर आते थे और उनसेे हमारी अच्छी जान पहचान थी।इत्तफाक ऐसा था कि उस दिन उन्होंने अपना पूरा ड्रेस काले कलर का पहन रखा था।शर्ट भी काला और पैंट भी वैसी ही काली।वो आये मैंने उनके लिए चाय बनाई,उन्होंने हमें पूछा कि,क्या बात है ,बहुत थके हुए लग रहे हो कहीं बाहर सेे आए हो क्या?मैंने कहा, हाँ भैया, आवरी माता और शनिदेव जी दर्शन के लिए गए थे।जैसे ही मैंने उनको शनिदेव के दर्शन के लिए कहा और उन्होंने मुझसे कहा कि,अरे भाभी जी,मुझे भी शनिदेव के दर्शन की बहुत साल से इच्छा है
और मुझे वहाँ से एक नव ग्रह देवता की तस्वीर लानी है।उनकी ये बात सुनकर मुझे इतना आश्चर्य हुआ कि ,ये कैसे हो सकता है कि अभी अभी मैं नव ग्रह देवता की तस्वीर लाई और अभी अभी वो भैया भी वही बात कह रहे है।ये सारे संकेत मुझे शनिदेव के चमत्कार लग रहे थे।
करीब एक सप्ताह बाद मुझे फिर एक स्वप्न आया।सपने मे मेरे दरवाजे की घंटी बजती है,और मैं दरवाजा खोलती हु तो देखती हूं कि काले कपड़े पहने हुए अमिताभ बच्चन जी
और उनके साथ आठ आदमी थे।।मैं उनको देखते ही उनके पाँव छूती हु और आश्चर्य से पूछती हु कि आप मेरे घर कैसे?अमिताभ जी ने कहा कि अंदर नहीं बुलाओगी।मैंने आदर से उन्हें अंदर बुलाया।वो हाथ मे लकड़ी लिए लंगड़ाते हुए अंदर आये।मैंने उनसे पूछा कि आपके पैर को क्या हुआ?उन्होंने कहा कि -"बरसो पहले मेरे पैर मे एक चोट लग गई थी,बहुत इलाज कराया पर ठीक नही हो पाया।किसी ने मुझे आपके घर का पता दिया और कहा कि उदयपुर मे एक राधा है जो आपके पैर को सरसों के तेल से मसाज करके ठीक कर देगी।इसीलिये मेरे ये आदमी मुझे यहाँ तक लाये है।क्या आप सरसो के तेल से मसाज करके मेरा पैर ठीक कर दोगी।मैंने कहा कि ये तो मेरा सौभाग्य है कि मैं आपकी सेवा कर सकु।उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा कमरा कहाँ है?मैं उनको कमरे मे लेकर गई और बेड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि आप यहाँ लेट जाइए।उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे बेड पर काली चद्दर बिछा दो ,मै काली चादर पर ही सोता हु।और मैंने काली चादर बिछाई फिर सपना टूट जाता है।सुबह जब उठी तो पूरा सपना आखो के सामने घूम रहा था।मुझे पक्का विश्वास था कि वो अमिताभ बच्चन कोई और नही शनिदेव ही थे।
लेकिन जिस किसी को भी सपना बताया,उन्होंने इसे अंधविश्वास बताया।दुसरो की नजर मे वो अंधविश्वास हो सकता है,पर मुझे साफ साफ लग रहा था कि सपने मे अमिताभ बच्चन जी ने बरसो पहले की जिस चोट की बात कही थी वो चोट बरसो पहले मेरे हाथ से फूटी ,वो शनिदेव की तस्वीर ही थी। खेर जो भी हो ,पर ईश्वरीय चमत्कार तो कही न कही होता ही है।अब मैं हर शनिवार को शनिदेव के मंदिर दर्शन के लिए जाने लगी।
कुछ महीने बीते।एक दिन की बात है।मैं अपने ब्यूटी पार्लर के काम से बाहर थी।पीछे से मेरे पति ने मेरे बेटे को पीटा,जिससे उसके कान का पर्दा फट गया।
मैं उसको हॉस्पिटल लेकर गई तो डॉक्टर ने कहा कि,तुरंत ही ऑपरेशन करना पड़ेगा वर्ना बाद मे कान मे मुश्किल हो जाएगी।डॉक्टर ने ऑपरेशन किया।मैंने अपने पति से इलाज के पैसे देने के लिए कहा तो साफ मना कर दिया कि अभी मेरे पास पैसे नही हैं।उनकी गलती से बच्चे के कान का पर्दा फटा ,लेकिन अपनी गलती मानना तो दूर ऑपरेशन के पैसे देने से भी इंकार कर दिया।हमेशा की तरह यहां भी मैंने डॉक्टर की फीस भरी और फिर बच्चे को थोड़े दिन मेरे पीहर छोड़ दिया।वही मैं भी आती जाती उसकी देखरेख करती रही।लेकिन हमेशा कहाँ ऎसे चलता, उसका कान ठीक होते ही वापस अपने पास लेकर आई,आखिर स्कूल भी तो जाना था।लेकिन अब मेरे बेटे को अपने पिता से पूरी तरफ से नफरत हो चुकी थी।
सारा सामान खाली नहीं किया,क्योंकि पति ने बिल्कुल साथ नहीं दिया।इसलिए मैं और मेरे बेटे ने मिलकर कुछ जरूरी जरूरी सामान,जैसे कि,गैस की टंकी,बच्चे के पढ़ाई की कुछ चीजें,स्कूटी पर ही रखकर ले आये थे।
मैंने अपने पति को फ़ोन करके हमारे साथ रहने के लिए बुलाया लेकिन वो नहीं आये।दस दिन तक मैं और मेरा बेटा अकेले ही फ्लैट में रहे,उसके बाद एक दिन मेरे पति खुद ही हमारे साथ रहने आ गए।मैं खुश हो गई कि कोई बात नहीं देर से ही सही पर आ गए।कुछ महीने मेरे पति शांति से हमारे साथ रहे,लेकिन यहां भी ख़र्चे को लेकर वो बेपरवाह ही रहे,उन्हें कोई मतलब नहीं था कि किराया कितना है,लाइट बिल कितना आ रहा है,या घर के खर्चे क्या हो रहे हैं, लेकिन घर की शांति बनी रहे,इसलिए मैं चुपचाप खुद ही सारे खर्चे उठा रही थी।
दिसम्बर 2014 मे मेरा बेटा शुभम बहुत बीमार हो गया।एक दिन अचानक उसको ठंड लगकर बुखार आया तो मैंने अपने पति से कहा कि,-चलो इसको किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा देते है,लेकिन पति ने डांट कर कह दिया कि,फालतू पैसे खर्च करने की जरूरत नही है,हल्का बुखार है,डिस्पेंसरी पर दिखा देते है।मैंने भी उनकी बात मानकर डिस्पेन्सरी पर दिखा दिया।उन्होंने 5 दिन की दवाई दी।लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और हालात खराब हो गई।मेरा बेटा बिस्तर से उठ ही नहीं रहा था
फरवरी 2015 की बात है,एक रात को मुझे सपना आया कि मैं किसी मेले मे शनिदेव सहित 9 ग्रह देवता की तस्वीर खरीद रही थी,
और अचानक सपना टूट जाता है।लेकिन उसके एक सप्ताह बाद फिर यही सपना वापस आता है।मैं कुछ समझ नहीं पाई।मार्च 2015 मे मैं और मेरे दीदी कैलाश दीदी के परिवार के साथ आवरी माता के दर्शन के लिए गए।वहां से लौटते वक्त हम सब शनिदेव के दर्शन के लिए गए।जैसे ही मैंने शनिदेव के दर्शन किये और मंदिर से बाहर निकलते ही एक दुकान पर लटक रही तस्वीरों पर मेरी नजर गई और मुझे सपने वाली नव ग्रह देवता की तस्वीर वाली बात याद आ गई।मैंने उस दुकान से वो ही नवग्रह देवता वाली तस्वीर खरीदी।रास्ते मे आते समय गाड़ी मे अचानक मुझे बचपन की एक घटना ऐसे याद आई मानो किसी शक्ति ने मुझे आकर याद दिलाई हो।वो घटना ये थी कि,कक्षा 8वी मे मेरे हाथ से एक नवग्रह देवता की तस्वीर फुट गई थी ,जिसमे जिस स्थान पर शनिदेव की फ़ोटो थी उसी जगह तस्वीर पर क्रेक आया था।ये घटना याद आते ही मैं समझ गई कि उस सपने का संकेत मुझे शनिदेव की परीक्षा की याद दिला रहा था।ये सब संजोग मुझे समझ आ रहे थे पर मैं किसी को एक्सप्लेन नही कर पा रही थी।उस तस्वीर को लेकर मैं घर आई और अभी तो उसका पैकेट भी नही खोला था और भगवान के मंदिर मे रखा ही था कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी।मैंने दरवाजा खोला तो एक भैया थे जो अक्सर पार्लर के सामान की होम डिलीवरी के लिए घर पर आते थे और उनसेे हमारी अच्छी जान पहचान थी।इत्तफाक ऐसा था कि उस दिन उन्होंने अपना पूरा ड्रेस काले कलर का पहन रखा था।शर्ट भी काला और पैंट भी वैसी ही काली।वो आये मैंने उनके लिए चाय बनाई,उन्होंने हमें पूछा कि,क्या बात है ,बहुत थके हुए लग रहे हो कहीं बाहर सेे आए हो क्या?मैंने कहा, हाँ भैया, आवरी माता और शनिदेव जी दर्शन के लिए गए थे।जैसे ही मैंने उनको शनिदेव के दर्शन के लिए कहा और उन्होंने मुझसे कहा कि,अरे भाभी जी,मुझे भी शनिदेव के दर्शन की बहुत साल से इच्छा है
करीब एक सप्ताह बाद मुझे फिर एक स्वप्न आया।सपने मे मेरे दरवाजे की घंटी बजती है,और मैं दरवाजा खोलती हु तो देखती हूं कि काले कपड़े पहने हुए अमिताभ बच्चन जी
कुछ महीने बीते।एक दिन की बात है।मैं अपने ब्यूटी पार्लर के काम से बाहर थी।पीछे से मेरे पति ने मेरे बेटे को पीटा,जिससे उसके कान का पर्दा फट गया।
मेरा सच-चरण 27 -कठिन परीक्षा के साथ हुए शनिदेव जी के साक्षात दर्शन और उनसे मिला आदेश सत्य की राह पर चलते रहने का
मेरे पति की हरकतों और गलतियों के कारण अब हमारे बीच दूरियां बढ़ती जा रही थी।जहाँ हम लड़ झगड़ कर भी साथ खाना खाते थे,अब तीनो खाना भी अलग अलग खाने लगे।कई बार झगडो के बावजूद भी मैं खाना साथ लगाती और अपने पति को हमेशा समझाती कि ," छोटी सी जिंदगी है,इसे लड़ाइयों मे व्यर्थ खराब मत करो।आपसे पैसा खर्च न होता है तो मत करो,पर घर मे प्रेम से रहो।
लेकिन मेरे पति पर कोई असर नही हुआ।कुछ दिनों बाद मैंने 23 अप्रैल 2016 को घर मे शनिदेव की पूजा और कथा रखी।मैंने अपने पति को इस पूजा की तैयारी के लिए बोला,लेकिन उन्होंने इसके लिए भी कोई जवाब नहीं दिया।मैंने और मेरे बेटे ने सारी तैयारी अकेले करी।23 अप्रैल 2016 को मैंने पंडित जी को बुलवाकर कथा करवाई।बहुत ही अच्छे से पूरा कार्यक्रम हुआ।कुछ मिलने वालों को भी कथा मे आमंत्रित किया।सबने बहुत एन्जॉय किया ।
कुछ दिन बीते।एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे उसका पासपोर्ट बनवाने के लिए बोला,क्योंकि उसको कहीं जरूरत थी।मैंने अपनी बहन से इस बारे मे बात करी, क्योंकि उसने हाल ही मे पासपोर्ट बनवाया था।मेरी बहन ने किसी एजेंट के नंबर दिए।मैंने एजेंट से बात करी और उन्होंने सारे दस्तावेजों के साथ हमे उनके ऑफिस बुलाया।मेरे पति मुझसे और बच्चे से बात नहीं कर रहे थे फिर भी मैंने अपने बच्चे के खातिर उनसे पासपोर्ट के लिए बात करी।लेकिन वही हुआ जिसका डर था।जैसे ही पासपोर्ट के लिए बोला कि गुस्से से मेरी तरफ देखा और चिल्ला कर बोले कि-कोई पासपोर्ट बनवाने की जरूरत नहीं है।तुम दोनों माँ बेटे के बड़े ऊंचे ऊंचे ख्वाब है।पहले ही इतने मंहगे स्कूल मे पढ़ा रही है।बड़ी रहिसजादी है क्या?इस तरह बेबुनियादी बातें करते रहे जिसका जवाब ही नही था मेरे पास।
अगले दिन मैं और मेरा बेटा दोनो ,सारे कागज लेकर एजेंट के पास पहुंचे ।एजेंट ने सारे दस्तावेज लगा कर पासपोर्ट ऑफिस जाने की तारीख ले ली।15 दिन बाद हमे पासपोर्ट के लिए जोधपुर जाना था।कुछ दस्तावेजो पर पिता के signature चाहिए थे, बड़ी मुश्किल से अपने पति से साइन करवाये।उसके बाद मैंने अपनी बेस्ट फ्रेंड को जोधपुर जाने की बात करी तो उसने मुझे अकेले जाने के लिए मना कर दिया
और कहा कि मैं आउंगी तेरे साथ।उन दिनों मेरी फ्रेंड की तबियत ठीक नहीं चल रही थी फिर भी उसने मुझे अकेले जोधपुर नही जाने दिया।ये बेस्ट फ्रेंड मेरी फ्रेंड ही नहीं बल्कि मेरी बहन और मेरी माँ भी है,ये मेरे से दस साल बड़ी है और इनके दोनो बेटो को मैं राखी बांधती हु,और ये पूरा परिवार मुझे god gift मिला है।
मई 2016 को मैं और मेरा बेटा मेरी best फ्रेंड,यानी मेरे दीदी के साथ जोधपुर गए।सुबह सात बजे की बस ली और करीब साढ़े दस बजे हम जोधपुर पहुँच गए।हमारा अपोरमेंट 2 बजे का था।इसलिये हम किसी रेस्टोरेंट मे बैठे रहे ,वहीं खाना खाया और टाइम पास किया।उस दिन बहुत ही गर्मी थी,पासपोर्ट ऑफिस के बाहर कहीं कोई छाया वाली जगह नही थी।बड़ी मुश्किल से 2 बजे तक का समय निकाला।मेरी दीदी की तबियत बिल्कुल साथ नही दे रही थी,फिर भी उन्होंने अपनी दोस्ती का फर्ज निभाते हुए अपनी हालत को कंट्रोल किया।करीब 2 बजे मैं और मेरा बेटा अंदर गए,क्योकि साथ वाले को बाहर ही खड़ा रहना था तो दीदी अंदर तक नहीं आ सके।हम अंदर चार पांच जगह पर डॉक्यूमेंट चेक कराते रहे।लेकिन अफसोस,मेरे बेटे का फॉर्म कैंसिल हो गया।मेरा बेटा उस समय 17 साल का था,इसलिए पिता का साथ होना जरूरी था।पिता के साथ मे नही आने की वजह से उसका पासपोर्ट कैंसिल हो गया।मैंने वहाँ इतनी request करि कि मेरे पति गेर जिम्मेदार इंसान है तो इसमें हमारी क्या गलती है,जब मैं अपने बच्चे के लिए माता और पिता दोनो का फर्ज निभा रही हु तो मेरी उपस्थिति पर्याप्त क्यो नही है?लेकिन वहाँ किसी ने मेरी नहीं सुनी ।
बड़े बुझे दिल से वापस वहाँ से रवाना हुए।पूरे रास्ते यही सोचती रही कि इस दुनिया मे फॉलमेटी को तो सच माना जाता है और जो असल मे सच होता है वो अपनी सच्चाई की गुहार लगाता रहता है।
एक गैर जिम्मेदार पिता घर पर बैठा रहता है और एक जिम्मेदार माँ अकेली अपने बेटे का पासपोर्ट बनवाने इतनी दूर तक आती है,लेकिन वो गैरजिम्मेदार इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि उसके बिना एक बेटे का पासपोर्ट कैंसिल हो जाता है।
खेर ,ऐसे ही विचार करते करते उदयपुर आ जाते है।उस रात मेरी दीदी के यहां ही रुकी पर पूरी रात नींद नही आई।मेरी फ्रेंड दीदी ने मुझे समझाया कि चिंता मत कर,
अगले साल बेटा 18 का हो जायेगा तो इसका पासपोर्ट बिना पिता की उपस्थिति के बन जायेगा।हम अगले दिन वापस दीदी के यहां से अपने घर आये तो एक दो दिन टेंशन मे ही रही।लेकिन मेरा बेटा शुभम बहुत पॉजिटिव है,उसने मुझे कहा कि मम्मी!मैं तो बहुत खुश हुआ कि मेरा पासपोर्ट नहीं बना।मैं तो ईश्वर को thanks बोलता हूं क्योंकि मेरे पिता तो साँवरिया सेठ है और वो ही मेरा पासपोर्ट बनवाएंगे।
क्या आपको साँवरिया सेठ पर भरोसा नही है।उसकी बात सुनकर मन को ऐसा लगा जैसे ईश्वर खुद उसके माध्यम से मुझे समझा रहे हो।
अब मेरा मन शांत हुआ और मैं उस घटना को भूल गई और वापस अपने काम मे लग गई।
कुछ दिनों बाद एक दिन मेरे पति ने फिर घर मे झगड़ा किया,और हम दोनों के साथ मारपीट करने लगे तो इस बार मेरे बेटे को गुस्सा आया और उसने अपने पापा के कपड़े एक बैग मे भरे और गुस्से से अपने दादा दादी के घर गया और अपने दादा दादी से बोला कि ये आपके बेटे का सामान,आज के बाद आपके बेटे को अपने पास ही रखना।मुझे और मेरी मम्मी को तंग करके रखा हुआ है।18 सालो से मेरी मम्मी झेल रही है।उसकी बात सुनकर उसको दिलासा देने की बजाय उसके दादा जी ने हम पर अधिकार लेने का इल्जाम लगा दिया और मेरे बेटे से कहा कि,लेजा अपने बाप का बैग,road पर फेंक दें, हमे भी जरूरत नही है इस बेटे की।और कहा कि तुम लोग वापस घर मे घुसने के लिए नाटक रच रहे हो।शुभम कुछ जवाब नही दे पाया और बैग छोड़ कर वापस घर आकर मुझे सारी बात बताई।
उस दिन से हमने अपना अधिकार हमेशा के लिए छोड़ने का फैसला कर लिया क्योंकि हमारी सच्चाई किसी ने समझी ही नहीं।हमने केवल प्रेम को ही सच्चा धन समझा लेकिन हमारे प्रेम को समझने वाला ईश्वर के अलावा कोई नहीं था।
उसी दिन फिर मेरे पति ने मेरे बेटे से झगड़ा करा और वापस अपने मां बाप के यहाँ जाकर बैग लेकर आ गए और फिर कई महीनों तक हमें परेशान करते रहें।
वो अपने कमरे मे अकेले घंटो सोते रहते।
उन्हें कोई मतलब नहीं था कि घर मे सामान कैसे आ रहा है,घर कैसे चल रहा है,बच्चे की जरूरतें क्या है,किसी चीज से कोई लेना देना नहीं था।बस एक खाने के समय रसोई मे आते,जो बना होता वो लेकर खा लेते और वापस अपने कमरे मे बैठे रहते।कोई इमोशन,कोई फीलिंग उनमे नही बची।कई सालों तक तो समझा बुझा कर कोम्प्रोमाईज़ करती रही पर अब मैंने भी समझाना बंद कर दिया और मौन रहने लगी।
अब मैं भी फालतू की बहस को छोड़ कर अपने बेटे पर ध्यान देने लगी।
शुभम you tube पर वीडियो बनाता है ,तो कुछ दिनों बाद एक कैमरा खरीदा।शुरू मे मोबाइल कैमरे से बनाता था,फिर डी ऐस एल आर कैमरा लिया जिससे उसकी वीडियो क्लियर आने लगी और उसके subcriber भी बढ़ने लगे।
जून 2016 मे एक रात मुझे फिर एक सपना आया।सपने मे कोई काला बुरखा पहने हुए आया और मेरे हाथ पर कोई लोहे की चीज जोर जोर से घिस रहा था।मैं जोर जोर से चिल्ला रही थी लेकिन उसने मुझे कसकर पकड़ा
लेकिन मेरे पति पर कोई असर नही हुआ।कुछ दिनों बाद मैंने 23 अप्रैल 2016 को घर मे शनिदेव की पूजा और कथा रखी।मैंने अपने पति को इस पूजा की तैयारी के लिए बोला,लेकिन उन्होंने इसके लिए भी कोई जवाब नहीं दिया।मैंने और मेरे बेटे ने सारी तैयारी अकेले करी।23 अप्रैल 2016 को मैंने पंडित जी को बुलवाकर कथा करवाई।बहुत ही अच्छे से पूरा कार्यक्रम हुआ।कुछ मिलने वालों को भी कथा मे आमंत्रित किया।सबने बहुत एन्जॉय किया ।
कुछ दिन बीते।एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे उसका पासपोर्ट बनवाने के लिए बोला,क्योंकि उसको कहीं जरूरत थी।मैंने अपनी बहन से इस बारे मे बात करी, क्योंकि उसने हाल ही मे पासपोर्ट बनवाया था।मेरी बहन ने किसी एजेंट के नंबर दिए।मैंने एजेंट से बात करी और उन्होंने सारे दस्तावेजों के साथ हमे उनके ऑफिस बुलाया।मेरे पति मुझसे और बच्चे से बात नहीं कर रहे थे फिर भी मैंने अपने बच्चे के खातिर उनसे पासपोर्ट के लिए बात करी।लेकिन वही हुआ जिसका डर था।जैसे ही पासपोर्ट के लिए बोला कि गुस्से से मेरी तरफ देखा और चिल्ला कर बोले कि-कोई पासपोर्ट बनवाने की जरूरत नहीं है।तुम दोनों माँ बेटे के बड़े ऊंचे ऊंचे ख्वाब है।पहले ही इतने मंहगे स्कूल मे पढ़ा रही है।बड़ी रहिसजादी है क्या?इस तरह बेबुनियादी बातें करते रहे जिसका जवाब ही नही था मेरे पास।
अगले दिन मैं और मेरा बेटा दोनो ,सारे कागज लेकर एजेंट के पास पहुंचे ।एजेंट ने सारे दस्तावेज लगा कर पासपोर्ट ऑफिस जाने की तारीख ले ली।15 दिन बाद हमे पासपोर्ट के लिए जोधपुर जाना था।कुछ दस्तावेजो पर पिता के signature चाहिए थे, बड़ी मुश्किल से अपने पति से साइन करवाये।उसके बाद मैंने अपनी बेस्ट फ्रेंड को जोधपुर जाने की बात करी तो उसने मुझे अकेले जाने के लिए मना कर दिया
और कहा कि मैं आउंगी तेरे साथ।उन दिनों मेरी फ्रेंड की तबियत ठीक नहीं चल रही थी फिर भी उसने मुझे अकेले जोधपुर नही जाने दिया।ये बेस्ट फ्रेंड मेरी फ्रेंड ही नहीं बल्कि मेरी बहन और मेरी माँ भी है,ये मेरे से दस साल बड़ी है और इनके दोनो बेटो को मैं राखी बांधती हु,और ये पूरा परिवार मुझे god gift मिला है।
मई 2016 को मैं और मेरा बेटा मेरी best फ्रेंड,यानी मेरे दीदी के साथ जोधपुर गए।सुबह सात बजे की बस ली और करीब साढ़े दस बजे हम जोधपुर पहुँच गए।हमारा अपोरमेंट 2 बजे का था।इसलिये हम किसी रेस्टोरेंट मे बैठे रहे ,वहीं खाना खाया और टाइम पास किया।उस दिन बहुत ही गर्मी थी,पासपोर्ट ऑफिस के बाहर कहीं कोई छाया वाली जगह नही थी।बड़ी मुश्किल से 2 बजे तक का समय निकाला।मेरी दीदी की तबियत बिल्कुल साथ नही दे रही थी,फिर भी उन्होंने अपनी दोस्ती का फर्ज निभाते हुए अपनी हालत को कंट्रोल किया।करीब 2 बजे मैं और मेरा बेटा अंदर गए,क्योकि साथ वाले को बाहर ही खड़ा रहना था तो दीदी अंदर तक नहीं आ सके।हम अंदर चार पांच जगह पर डॉक्यूमेंट चेक कराते रहे।लेकिन अफसोस,मेरे बेटे का फॉर्म कैंसिल हो गया।मेरा बेटा उस समय 17 साल का था,इसलिए पिता का साथ होना जरूरी था।पिता के साथ मे नही आने की वजह से उसका पासपोर्ट कैंसिल हो गया।मैंने वहाँ इतनी request करि कि मेरे पति गेर जिम्मेदार इंसान है तो इसमें हमारी क्या गलती है,जब मैं अपने बच्चे के लिए माता और पिता दोनो का फर्ज निभा रही हु तो मेरी उपस्थिति पर्याप्त क्यो नही है?लेकिन वहाँ किसी ने मेरी नहीं सुनी ।
बड़े बुझे दिल से वापस वहाँ से रवाना हुए।पूरे रास्ते यही सोचती रही कि इस दुनिया मे फॉलमेटी को तो सच माना जाता है और जो असल मे सच होता है वो अपनी सच्चाई की गुहार लगाता रहता है।
एक गैर जिम्मेदार पिता घर पर बैठा रहता है और एक जिम्मेदार माँ अकेली अपने बेटे का पासपोर्ट बनवाने इतनी दूर तक आती है,लेकिन वो गैरजिम्मेदार इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि उसके बिना एक बेटे का पासपोर्ट कैंसिल हो जाता है।
खेर ,ऐसे ही विचार करते करते उदयपुर आ जाते है।उस रात मेरी दीदी के यहां ही रुकी पर पूरी रात नींद नही आई।मेरी फ्रेंड दीदी ने मुझे समझाया कि चिंता मत कर,
अगले साल बेटा 18 का हो जायेगा तो इसका पासपोर्ट बिना पिता की उपस्थिति के बन जायेगा।हम अगले दिन वापस दीदी के यहां से अपने घर आये तो एक दो दिन टेंशन मे ही रही।लेकिन मेरा बेटा शुभम बहुत पॉजिटिव है,उसने मुझे कहा कि मम्मी!मैं तो बहुत खुश हुआ कि मेरा पासपोर्ट नहीं बना।मैं तो ईश्वर को thanks बोलता हूं क्योंकि मेरे पिता तो साँवरिया सेठ है और वो ही मेरा पासपोर्ट बनवाएंगे।
क्या आपको साँवरिया सेठ पर भरोसा नही है।उसकी बात सुनकर मन को ऐसा लगा जैसे ईश्वर खुद उसके माध्यम से मुझे समझा रहे हो।
अब मेरा मन शांत हुआ और मैं उस घटना को भूल गई और वापस अपने काम मे लग गई।
कुछ दिनों बाद एक दिन मेरे पति ने फिर घर मे झगड़ा किया,और हम दोनों के साथ मारपीट करने लगे तो इस बार मेरे बेटे को गुस्सा आया और उसने अपने पापा के कपड़े एक बैग मे भरे और गुस्से से अपने दादा दादी के घर गया और अपने दादा दादी से बोला कि ये आपके बेटे का सामान,आज के बाद आपके बेटे को अपने पास ही रखना।मुझे और मेरी मम्मी को तंग करके रखा हुआ है।18 सालो से मेरी मम्मी झेल रही है।उसकी बात सुनकर उसको दिलासा देने की बजाय उसके दादा जी ने हम पर अधिकार लेने का इल्जाम लगा दिया और मेरे बेटे से कहा कि,लेजा अपने बाप का बैग,road पर फेंक दें, हमे भी जरूरत नही है इस बेटे की।और कहा कि तुम लोग वापस घर मे घुसने के लिए नाटक रच रहे हो।शुभम कुछ जवाब नही दे पाया और बैग छोड़ कर वापस घर आकर मुझे सारी बात बताई।
उस दिन से हमने अपना अधिकार हमेशा के लिए छोड़ने का फैसला कर लिया क्योंकि हमारी सच्चाई किसी ने समझी ही नहीं।हमने केवल प्रेम को ही सच्चा धन समझा लेकिन हमारे प्रेम को समझने वाला ईश्वर के अलावा कोई नहीं था।
उसी दिन फिर मेरे पति ने मेरे बेटे से झगड़ा करा और वापस अपने मां बाप के यहाँ जाकर बैग लेकर आ गए और फिर कई महीनों तक हमें परेशान करते रहें।
वो अपने कमरे मे अकेले घंटो सोते रहते।
अब मैं भी फालतू की बहस को छोड़ कर अपने बेटे पर ध्यान देने लगी।
शुभम you tube पर वीडियो बनाता है ,तो कुछ दिनों बाद एक कैमरा खरीदा।शुरू मे मोबाइल कैमरे से बनाता था,फिर डी ऐस एल आर कैमरा लिया जिससे उसकी वीडियो क्लियर आने लगी और उसके subcriber भी बढ़ने लगे।
जून 2016 मे एक रात मुझे फिर एक सपना आया।सपने मे कोई काला बुरखा पहने हुए आया और मेरे हाथ पर कोई लोहे की चीज जोर जोर से घिस रहा था।मैं जोर जोर से चिल्ला रही थी लेकिन उसने मुझे कसकर पकड़ा
हुआ था।जैसे जैसे वो लोहा घिस रहा था वैसे वैसे मेरी हथेली मे आग निकल रही थी।
उसके बाद काले बुरखे वाले ने मुझसे कहा कि,"जो सच की आग मैंने तेरे अंदर लगाई है वो किसी भी परिस्थिति में कम नहीं पड़नी चाहिए।"मैंने उस बुरखे वाले से पूछा कि ,"आप कौन हो?"मुझे अपनी शक्ल तो बताओ।लेकिन उसने अपने घूंघट वाले हिस्से को कस कर पकड़ लिया और कहा कि,मैं तुझे अपनी शक्ल नहीं बता सकता।लेकिन मैं बार बार उनसे जबरदस्ती करके घूंघट हटाने के लिए कहती रही तो उन्होंने अपना घूंघट उठाया तो देखा कि काले कोयले जैसा उनका मुँह था और खून जैसी लाल उनकी आँखें थी।
जैसे ही मैंने ये दृश्य देखा कि मेरा स्वप्न टूट गया और मेरी नींद खुली तो रात की साढ़े 3 बज रहे थे।मुझे बड़ा डर लग रहा था।उसी दिन शनिवार था,मुझे पक्का विश्वास हो गया कि वो कोई और नही साक्षात शनिदेव थे। शनिदेव के दर्शन पाकर मैं धन्य हो गई।
" ॐ शं शनैश्चराय नमः"।
उसके बाद काले बुरखे वाले ने मुझसे कहा कि,"जो सच की आग मैंने तेरे अंदर लगाई है वो किसी भी परिस्थिति में कम नहीं पड़नी चाहिए।"मैंने उस बुरखे वाले से पूछा कि ,"आप कौन हो?"मुझे अपनी शक्ल तो बताओ।लेकिन उसने अपने घूंघट वाले हिस्से को कस कर पकड़ लिया और कहा कि,मैं तुझे अपनी शक्ल नहीं बता सकता।लेकिन मैं बार बार उनसे जबरदस्ती करके घूंघट हटाने के लिए कहती रही तो उन्होंने अपना घूंघट उठाया तो देखा कि काले कोयले जैसा उनका मुँह था और खून जैसी लाल उनकी आँखें थी।
" ॐ शं शनैश्चराय नमः"।
मेरा सच -28 -श्री कृष्ण से हुआ साक्षात्कार और भागवत गीता का हुआ मेरे जीवन मे आगमन
जून 2016 की बात है।मैं ब्यूटी पार्लर के काम से होम सर्विस पर गई हुई थी।एक दिन अचानक मेरे हाथ पैरो का बैलेंस बिगड़ने लगा।मुझे लगा शायद कमजोरी है।लेकिन ऐसा अक्सर होने लगा।कभी खड़े खड़े गिरने जैसी हो जाती तो कभी हाथो से चीजे छूटने लगती।जब आये दिन ऐसा होने लगा तो मैंने डॉक्टर को दिखाया।
डॉक्टर ने जांचे लिखी।मैंने सभी टेस्ट करवाये तो पता चला कि मुझे माइग्रेन है और मेरे नरवर सिस्टम बिगड़ गए है।डॉक्टर ने मेडिसिन लिखी और साथ ही मुझे ये कहा कि जब तक तुम दवाई लोगी, तब तक ये बीमारी कंट्रोल रहेगी लेकिन पूरी तरह से ठीक तभी होगी जब तुम डिप्रेशन से बाहर आओगी।
मुझे खुद को पता ही नहीं चला कब मैं घर की परिस्थितयों को सोचते सोचते डिप्रेशन का शिकार हो गई।डॉक्टर ने मुझे किसी भी तरह के इमोशनल वातावरण से दूर रहने की सलाह दी।अब मैं इतना डर गई कि अब मैं धीरे धीरे खाने पीने का भी ध्यान रखने लगी।कुछ योगा ध्यान भी करने लगी
लेकिन ये मन बड़ा विचित्र होता है ,कब ये जाकर दुःखती नस पर अटैक करता है पता ही नहीं चलता।शुभम मुझे रोज अच्छी अच्छी बातें बता कर पोजेटिव करने का प्रयास करता और इस तरह समय निकल रहा था
कुछ समय बाद मुझे कुछ चमत्कारिक घटनाएं दिखने लगी।एक दिन की बात है,मैं स्कूटी से घर आ रही थी कि एक चौराहे पर पुलिस की चेकिंग चल रही थी।मेरे पास हेलमेट और लाइसेंस दोनो नही थे।मैं डर गई,कि अब क्या होगा।लेकिन उसी समय मेरी नजर उस चौराहे पर एक राडा जी के मंदिर पर पड़ी।मैंने मन मे ही उनसे विनती करी कि है प्रभु आज मुझे बचा लेना।अगर मेरी गाड़ी पकड़ ली तो कौन छुड़वायेगा, मेरा तो तेरे सिवा कोई है ही नहीं।जैसे ही पुलिस वाले मेरे पास आये और मेरे ब्यूटी care के सामान की ओर इशारा करते हुए तेज स्वर मे बोले कि, इस बैग मे क्या ले जा रही हो।मैंने भी हिम्मत करके तेज स्वर मे बोला कि ,sir, आपके पास चेक करने की मशीन है,खुद ही चेक कर लीजिए।वहाँ तीन चार पुलिसकर्मी थे ।उनमेंसे से एक ने मेरा बैग खोला ।अचानक वो पुलिसकर्मी दूसरे पुलिसकर्मी से चिल्ला कर बोला कि इन मैडम को जाने दो।उसने डरते हुए मेरे बैग की चेन बंद करी और इसके अलावा मुझसे कोई प्रश्न नहीं किया।मुझे भी ताज्जुब हुआ कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि पुलिस वाले ने मुझे न हेलमेट के लिए बोला और न ही लाइसेंस के लिए।मैं घर आ गई लेकिन ये प्रश्न मेरे मन मे कई दिनों तक चलता रहा।मेरा मन यही कह रहा था कि ये ईश्चर का ही कोई चमत्कार था।
जुलाई 2016 की बात है,एक दिन मेरी मम्मी मेरे घर आये।उस दिन मम्मी का एकादशी का उपवास था मम्मी कुछ खा नहीं रहे थे।मैंने मम्मी पर गुस्सा करते हुए कहा कि ,जब आपकी तबियत ठीक नही रहती तो क्यों उपवास करते हो।मम्मी ने मुझसे कहा कि,एकादशी का उपवास मैं नहीं छोड़ सकती,ये तो काया के सुधार के लिए ही किया जाता है।और हर इंसान को कम से कम महीने मे एक दिन निराहार रहना चाहिए।मुझे उनकी ये बात अच्छी लगी
और अब मैंने भी संकल्प लिया कि अब मैं भी एकादशी जरूर करूँगी।मम्मी तो अगले दिन वापस अपने घर चले गए।पर मुझे एकादशी के प्रति रुचि जगा गए।अब तो मैं अगली एकादशी का इंतजार करने लगी।15 दिन बाद दशमी की रात को सपना आया।सपने मे देखती हूं कि एकदम सोने जैसा पीले रंग का पूरा महल था।उस महल की हर एक चीज सोने की थी ।वहां जो परदे लगे हुए थे वो भी सोने के थे।अचानक तेज हवाएं चलती है और वो पर्दे जोर जोर से उड़ने लगते है।उस पर्दे के पीछे श्री कृष्ण बांसुरी हाथ मे लिए खड़े थे
।एक बार पर्दे के पीछे छिप जाते है तो एक बार दिख जाते है।ऐसे चार पांच बार हुआ और फिर अचानक सामने आ जाते है।मैं उनको देखते ही आश्चर्य चकित हो जाती हु और उनके पास जाकर धीमे स्वर मे पूछती हु कि क्या आप ही श्री कृष्ण है?भगवान ने कहा ,हाँ मैं वही हु जिसकी तू तलाश कर रही है।
मैंने उनके चरण छुए और उन्होंने मुझसे बोला कि ,जा तू मेरे नाम का और तेरी कहानी का प्रचार कर।इतना कहा कि सपना टूट जाता है।उस समय सुबह के 5 बज रहे थे।उसी दिन एकादशी थी।मैं बहुत खुश थी कि मैंने साक्षात ईश्वर के दर्शन किये और वो भी एकादशी के दिन।उस दिन से ही मुझे कृष्ण जी से इतना लगाव हो गया कि जहाँ मैं कभी अलग अलग देवता की पूजा किया करती थी आज लग रहा था मानो मैंने हर रूप मे बरसो से इन्ही को पूजा हो।
अब मुझे हर देवता मे केवल कृष्ण ही नजर आने लगे ।अब तो जो कोई मिलता,उससे जय श्री कृष्णा बोलकर ही बात की शुरुवात करती फिर चाहे वो बच्चा हो या बड़ा।कई लोगो को अपने सपने के बारे मे बताती तो कोई तो विश्वास करता और कोई मजाक बनाता कि ईश्वर के दर्शन कल युग मे कहाँ होते है।मेरे सच को केवल ईश्वर के अलावा कोई नही समझ सकता था।
मैं अब श्री कृष्ण की दीवानी हो चुकी थी।यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा सच था कि मैंने साक्षात श्री कृष्ण जी को देखा जिसका अनुभव रूपी पान मैं आप सबको कराना चाहती हु।और कृष्ण जी के आदेश से आप तक ये संदेश पहुचाना चाहती हु कि कृष्ण जी कल युग मे बहुत जल्दी दर्शन देते है,बस जरूरत है केवल अटल विश्वास की ।भागवत कथा के माध्य्म से हम कृष्ण जी तक पहुंच सकते है।चारो युगों मे से केवल कल युग ही एक सरल माध्य्म है ईश्वर तक पहुंचने का,बाकी के तीनों युगों मे कठिन तपस्या के बाद भी एक जन्म मे भगवान मिल जाये,इसकी कोई गारंटी नहीं।पर कल युग मे अगर इंसान केवल सत्य की राह पर चले तो उसको इसी जन्म मे भगवान मिल जाते है,ये पक्का है।हम इंसान इस सांसारिक बंधनो में इस तरह खो जाते है कि हम हमारे असली उद्देश्य को भूल जाते है,जिसके लिये हमने जन्म लिया है।इंसान की योनि मे जन्म लेने का मुख्य उद्देश्य केवल और केवल ईश्वर की प्राप्ति है।कल युग मे भगवान को पाने के लिए कोई तप या कोई एक जगह बैठकर माला जपने की जरूरत नहीं है,केवल चलते फिरते,उठते बैठते उनको याद करके ही हम उनको प्राप्त कर सकते है।लेकिन निरंतर याद करके ही हम उन्हें पा सकते है न कि केवल दुःख मे याद करके।सुख मे भी पल पल उनको धन्यवाद देते हुए हर पल जो उन्हें स्मरण रखता है,उसे स्वयं भगवान भी याद रखते है,और वो दयानिधान हमे शीघ्र दर्शन देते है।
मैने इसी सत्य रूपी ईश्वर के दर्शन के अनुभव को आप तक पहुंचाने का एक छोटा सा प्रयास अपनी कहानी के माध्यम से किया है।मेरे इस प्रयास से जितने अधिक लोगो को भगवान के दर्शन होंगे,मैं उतनी अपने आप को धन्य समझूँगी।जिसको हो गए है,वो दुसरो को भी ईश्वर के दर्शन का मार्ग बताकर अपना कल्याण करे।यही मेरा सभी से निवेदन है।और मेरे जीवन का प्रमुख उद्देश्य मुझे प्राप्त हुआ।यही मेरा सच है।
।श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी,है नाथ नारायण वासुदेवाय
मुझे खुद को पता ही नहीं चला कब मैं घर की परिस्थितयों को सोचते सोचते डिप्रेशन का शिकार हो गई।डॉक्टर ने मुझे किसी भी तरह के इमोशनल वातावरण से दूर रहने की सलाह दी।अब मैं इतना डर गई कि अब मैं धीरे धीरे खाने पीने का भी ध्यान रखने लगी।कुछ योगा ध्यान भी करने लगी
कुछ समय बाद मुझे कुछ चमत्कारिक घटनाएं दिखने लगी।एक दिन की बात है,मैं स्कूटी से घर आ रही थी कि एक चौराहे पर पुलिस की चेकिंग चल रही थी।मेरे पास हेलमेट और लाइसेंस दोनो नही थे।मैं डर गई,कि अब क्या होगा।लेकिन उसी समय मेरी नजर उस चौराहे पर एक राडा जी के मंदिर पर पड़ी।मैंने मन मे ही उनसे विनती करी कि है प्रभु आज मुझे बचा लेना।अगर मेरी गाड़ी पकड़ ली तो कौन छुड़वायेगा, मेरा तो तेरे सिवा कोई है ही नहीं।जैसे ही पुलिस वाले मेरे पास आये और मेरे ब्यूटी care के सामान की ओर इशारा करते हुए तेज स्वर मे बोले कि, इस बैग मे क्या ले जा रही हो।मैंने भी हिम्मत करके तेज स्वर मे बोला कि ,sir, आपके पास चेक करने की मशीन है,खुद ही चेक कर लीजिए।वहाँ तीन चार पुलिसकर्मी थे ।उनमेंसे से एक ने मेरा बैग खोला ।अचानक वो पुलिसकर्मी दूसरे पुलिसकर्मी से चिल्ला कर बोला कि इन मैडम को जाने दो।उसने डरते हुए मेरे बैग की चेन बंद करी और इसके अलावा मुझसे कोई प्रश्न नहीं किया।मुझे भी ताज्जुब हुआ कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि पुलिस वाले ने मुझे न हेलमेट के लिए बोला और न ही लाइसेंस के लिए।मैं घर आ गई लेकिन ये प्रश्न मेरे मन मे कई दिनों तक चलता रहा।मेरा मन यही कह रहा था कि ये ईश्चर का ही कोई चमत्कार था।
जुलाई 2016 की बात है,एक दिन मेरी मम्मी मेरे घर आये।उस दिन मम्मी का एकादशी का उपवास था मम्मी कुछ खा नहीं रहे थे।मैंने मम्मी पर गुस्सा करते हुए कहा कि ,जब आपकी तबियत ठीक नही रहती तो क्यों उपवास करते हो।मम्मी ने मुझसे कहा कि,एकादशी का उपवास मैं नहीं छोड़ सकती,ये तो काया के सुधार के लिए ही किया जाता है।और हर इंसान को कम से कम महीने मे एक दिन निराहार रहना चाहिए।मुझे उनकी ये बात अच्छी लगी
और अब मैंने भी संकल्प लिया कि अब मैं भी एकादशी जरूर करूँगी।मम्मी तो अगले दिन वापस अपने घर चले गए।पर मुझे एकादशी के प्रति रुचि जगा गए।अब तो मैं अगली एकादशी का इंतजार करने लगी।15 दिन बाद दशमी की रात को सपना आया।सपने मे देखती हूं कि एकदम सोने जैसा पीले रंग का पूरा महल था।उस महल की हर एक चीज सोने की थी ।वहां जो परदे लगे हुए थे वो भी सोने के थे।अचानक तेज हवाएं चलती है और वो पर्दे जोर जोर से उड़ने लगते है।उस पर्दे के पीछे श्री कृष्ण बांसुरी हाथ मे लिए खड़े थे
अब मुझे हर देवता मे केवल कृष्ण ही नजर आने लगे ।अब तो जो कोई मिलता,उससे जय श्री कृष्णा बोलकर ही बात की शुरुवात करती फिर चाहे वो बच्चा हो या बड़ा।कई लोगो को अपने सपने के बारे मे बताती तो कोई तो विश्वास करता और कोई मजाक बनाता कि ईश्वर के दर्शन कल युग मे कहाँ होते है।मेरे सच को केवल ईश्वर के अलावा कोई नही समझ सकता था।
मैं अब श्री कृष्ण की दीवानी हो चुकी थी।यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा सच था कि मैंने साक्षात श्री कृष्ण जी को देखा जिसका अनुभव रूपी पान मैं आप सबको कराना चाहती हु।और कृष्ण जी के आदेश से आप तक ये संदेश पहुचाना चाहती हु कि कृष्ण जी कल युग मे बहुत जल्दी दर्शन देते है,बस जरूरत है केवल अटल विश्वास की ।भागवत कथा के माध्य्म से हम कृष्ण जी तक पहुंच सकते है।चारो युगों मे से केवल कल युग ही एक सरल माध्य्म है ईश्वर तक पहुंचने का,बाकी के तीनों युगों मे कठिन तपस्या के बाद भी एक जन्म मे भगवान मिल जाये,इसकी कोई गारंटी नहीं।पर कल युग मे अगर इंसान केवल सत्य की राह पर चले तो उसको इसी जन्म मे भगवान मिल जाते है,ये पक्का है।हम इंसान इस सांसारिक बंधनो में इस तरह खो जाते है कि हम हमारे असली उद्देश्य को भूल जाते है,जिसके लिये हमने जन्म लिया है।इंसान की योनि मे जन्म लेने का मुख्य उद्देश्य केवल और केवल ईश्वर की प्राप्ति है।कल युग मे भगवान को पाने के लिए कोई तप या कोई एक जगह बैठकर माला जपने की जरूरत नहीं है,केवल चलते फिरते,उठते बैठते उनको याद करके ही हम उनको प्राप्त कर सकते है।लेकिन निरंतर याद करके ही हम उन्हें पा सकते है न कि केवल दुःख मे याद करके।सुख मे भी पल पल उनको धन्यवाद देते हुए हर पल जो उन्हें स्मरण रखता है,उसे स्वयं भगवान भी याद रखते है,और वो दयानिधान हमे शीघ्र दर्शन देते है।
मैने इसी सत्य रूपी ईश्वर के दर्शन के अनुभव को आप तक पहुंचाने का एक छोटा सा प्रयास अपनी कहानी के माध्यम से किया है।मेरे इस प्रयास से जितने अधिक लोगो को भगवान के दर्शन होंगे,मैं उतनी अपने आप को धन्य समझूँगी।जिसको हो गए है,वो दुसरो को भी ईश्वर के दर्शन का मार्ग बताकर अपना कल्याण करे।यही मेरा सभी से निवेदन है।और मेरे जीवन का प्रमुख उद्देश्य मुझे प्राप्त हुआ।यही मेरा सच है।
।श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी,है नाथ नारायण वासुदेवाय
कुछ दिन बाद फिर एक दिन पति के बुरे व्यवहार को याद करके मन ही मन बहुत उदास थी।किसी काम मे मन नहीं लग रहा था।मैं और मेरा बेटा शाम को पास के एक हनुमान मंदिर मे जाकर बैठे।वहां जाते ही उनकी प्रतिमा को हाथ जोड़ते ही मेरे आँसू निकल पड़े ,कि उसी समय हनुमान जी प्रतिमा पर चढ़े हुए गुलाब के फूल एक के बाद गिरते गए।वहां मंदिर के पुजारी ने हमें वो फूल दिए और कहा कि आज हनुमान जी बहुत खुश है।
"कौनसा संकट है जग मे
कपि संकट मोचन नाम तिहारो"।
एक दिन की बात है,मैं अपने ब्यूटी पार्लर के काम से क्लाइंट के यहाँ गई हुई थी।अचानक मेरी गाड़ी मे कुछ प्रॉब्लम हो गई तो चालू नहीं हो पा रही थी।मैं बार बार स्कूटी की किक लगाती रही पर स्टार्ट ही नहीं हो रही थी।मेरा पैर गाड़ी की किक पर ही था ,और मैंने इतना ही कहा कि है प्रभु,मेरी मदद करो कि अचानक मेरे पैर पर जोर से झटका आता है और गाड़ी अपने आप चालु हो जाती है
।मैं आश्चर्य चकित हो गई कि मेरे पैर पर झटका कैसे आया।मैंने किक नहीं लगाई तो ये किक कैसे लगी?मुझे लग गया कि किसी शक्ति ने आकर मेरी गाड़ी स्टार्ट करी है।मैं वहाँ से रवाना हुई,लेकिन पुरे रास्ते मे उस चमत्कार के बारे मे सोचती रही।घर जाकर शुभम को बताया तो शुभम ने भी आश्चर्य किया।उसके बाद मैंने अपने मिलने वालो को सबको बताया पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था।कई लोगो ने मुझे पागल कहा तो कई लोगो ने अंधविश्वास।दुनिया चाहे उस चमत्कार को अंधविश्वास समझे पर मुझे जिस चमत्कार की अनुभूति हुई उसे मैअन्धविश्वास कैसे मान सकती थी।
थोड़े दिन बीते,और एक दिन मुझे एक चमत्कार दिखा।एक दिन मैं हिरन मंगरी सेक्टर 5 मैं एक शादी का काम कर रही थी।उस दिन पता नहीं क्यों मैं अंदर ही अंदर बहुत अपसेट हो रही थी।काम करते करते भी मन मे मेरे जीवन की बातो को लेकर कई विचार चल रहे थे।कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।मैं करीब 5 बजे वहाँ से फ्री हुई।रास्ते मे भी स्कूटी चलाते चलाते मन ही मन बाते कर रही थी और अपने आप से ही पूछ रही थी कि आखिर क्यों मैंने सच्चाई और स्वाभिमान का रास्ता अपनाया।इस रास्ते मे तो पग पग पर केवल कठिनाइयां है।ये रास्ता तो अकेलेपन का बोध कराता है।न्याय का रास्ता अपनाकर और गलत का विरोध करते करते तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं कोई युद्ध लड़ रही हूं।ऐसी ही कई बातें मन मे करते करते कब मेरे आंसू गले तक पहुँच गए,पता ही नहीं चला।
।मैं वो गीता की पुस्तक घर लेकर आई,उसे भगवान् के मंदिर मे रखी।अगले दिन से मैंने उसे पढ़ना चालु कर दिया।इससे पहले मेरे घर मे दो गीता रखी हुई थी पर मैंने कभी खोलकर भी नहीं देखा।लेकिन इस बार मैंने गीता को पूरा पढ़ा।इसमें भी अर्जुन जब अपने भाइयों से युद्ध करता है तब उसी तरह उदास और कमजोर पड़ जाता है जिस तरह मैं रास्ते मे चलते हुए पड़ रही थी।तब श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते है कि,है अर्जुन!जब भी अन्याय और अनीति हावी हो जाती है तब नीति और सत्य को अन्याय के खिलाफ लड़ना पड़ता है,फिर चाहे वो हमारा रिश्तेदार ही क्यों न हो।तब जाकर अर्जुन को हिम्मत आती है।जब मैंने गीता पढ़ी तो समझ आया कि वो किताब देने वाले पंडित कोई और नहीं श्री कृष्ण ही थे।
मेरे मन को बहुत ही शांति मिली कि मैं जो गलत का सामना करने की लड़ाई लड़ रही हु वो गलत नहीं है,क्योंकि गीता यह भी कहती है कि अन्याय को चुपचाप सहन करना सबसे बड़ा पाप है।गीता के अनुसार मेरी राह सही थी,बस कठिन थी।
करीब 2 से 3 महीने मैंने गीता को पढ़ा।एक दिन की बात है,नियम के अनुसार मैं शनिवार के दिन शनिदेव के मंदिर गई हुई थी।शनिदेव को तेल चढ़ाकर मैं पास के ही एक ठाकुर जी के मंदिर मे गई।उस दिन वहाँ अन्नकूट हुआ था।
मुझे इतनी ख़ुशी हुई और वो फूल लेकर खूब उसको चूमा।मेरा विश्वास बढ़ता ही जा रहा था।
एक दिन फिर मैं और मेरा पुत्र शुभम,हम दिनों घूमते घूमते फतहसागर के पास एक गिरधर गोपाल का मंदिर है,जो बहुत ही प्राचीन है,वहाँ ऐसे ही चले गए।
उस मंदिर मे हम पहली बार ही गए थे।मेरे बेटे ने कहा कि,मम्मी,एक भजन गाते है।उसने शुरू किया,कि,
कौन कहते है भगवान् आते नहीं
तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं
इस तरह इस भजन को मैंने और शुभम ने पूरा गाया जब उसकी अंतिम पंक्ति चल रही थी कि सबसे पहले उनके मुकुट मे लगा गुलाब का फूल नीचे गिरता है,उसके बाद उनके सीने पर लगा फूल गिरता है,और फिर एक फूल की एक एक पत्ती उनके होठो को छूते हुए ऐसे गिरती है मानो श्री कृष्ण फूलो की बारिश कर रहे हो।
कि,मम्मी,आपके साथ ये है,और इनकी शरण मे जाने पर कोई चिंता नहीं रहती।आप सारी चिंता इनको दे दो।
"ॐ भगवते वासुदेवाय नमः"।
मेरा सच-चरण 29 - पूर्वजो के दर्शन की प्राप्ति और पति का मेरे जीवन से जाना ।
2016 का पूरा साल मुझे कुछ न कुछ चमत्कारिक घटनाएं दिखती रही,और साथ साथ मुझे अंदर से एक शक्ति भी महसूस हो रही थी।इस तरह हिम्मत रखते रखते 2016 भी ख़त्म हो गया।
2017 प्रारम्भ हो गया।2017 मे हर रात मुझे एक स्वप्न्न आता था और हर स्वप्न्न मुझे ईश्वर के साथ होने का संकेत देता था।एक रात को सपना आया कि की मूर्ति के चारो तरफ नाग देवता का झुण्ड था
और बीच मे शिव जी की मूर्ति थी और उनकी मूर्ति से फूल गिर रहे थे।
फिर एक रात सपना आया कि मैं अकेली नदी पार कर रही हु,लेकिन मैं पानी से डर रही थी,इसलिए बार बार अपना पैर पीछे ले रही थी,उतने मे मेरी प्रिय सहेली कैलाश दीदी कुछ पत्थर उस पानी मे रख रही थी।सारे पत्थर पानी मे तैर रहे थे।
उसके बाद मेरी सहेली हाथ पकड़कर मुझे वो नदी पार करा रही थी।
जब नदी का अंतिम छोर आया तो मेरी सहेली गायब हो गई और वहां पर शेषनाग का फन आ गया
और मैंने उस शेषनाग के फन पर पैर रखा और सपना टूट गया।
एक रात फिर एक सपना आया।साक्षात देवी माँ एक चांदी के सिंहासन पर बैठे हुए थे।उनके पास मेरे स्वर्गीय पिता जी भी बैठे हुए थे।मेरे पिताजी ने मुझसे कहा कि,राधा,तू क्यों चिंता करती है।
तू जिन उसूलो और सच्चाई पर चल रही है,उस रास्ते मे ये देवी माँ तेरे साथ चल रही है।ये कहकर वो गायब हो जाते है और फिर सपना टूट जाता है।फिर एक दिन सपने मे मेरे स्वर्गीय दादा जी आते है और आशीर्वाद देते है।फिर एक दिन मेरे स्वर्गीय नाना जी और स्वर्गीय नानी जी आते है।एक के बाद एक मरे हुए पूर्वज आते है और मुझे आशीर्वाद देकर गायब हो जाते है।
चाहे मेरा जीवन बहुत कठिन रहा लेकिन मेरे साथ बहुत सारी शक्तियां काम कर रही थी।
8 दिसम्बर 2017 की बात थी।मैं और मेरा बेटा रात को सो रहे थे कि सुबह के 5 बजे मेरे फ़ोन पर घंटी बजी।मैने पहले तो नींद मे अलार्म समझ कर फ़ोन काट दिया ।लेकिन फिर वापस फ़ोन आया तो मैंने हाथ मे लिया तो देखा मेरे पति के नंबर से फ़ोन आ रहा था मैं चोंक गई कि मेरे पति दूसरे कमरे मे सो रहे है तो फ़ोन क्यों आया।मैंने पहले उठ कर उनके कमरे मे झांक कर देखा तो वो नहीं थे और मैन दरवाजा भी खुला था।मैंने झट से उनका फ़ोन उठाया तो पता चला कि वो हॉस्पिटल में थे।मेरे सासुजी को हार्ड प्रॉब्लम हो गई थी तो उनको एडमिट कराया था।कुछ ही देर मे वापस फ़ोन आया कि उनकी death हो गई।मैंने भी सुना तो shoked हो गई और मन मे अजीब सा डर लगने लगा।मैंने तुरंत अपने बेटे को जगाया और दोनों ने बहुत सोचा कि हमें वहां जाना चाहिए या नहीं।क्योकि एक तरफ मेरा बरसो का युद्ध था जो मैं अपने पति और सुसराल वालो से लड़ रही थी तो दूसरी तरफ लोक लाज का भय था।मुझे और मेरे बेटे को कोई भी नकली दिखावा पसंद नहीं था।जहाँ बरसो तक मुझे और मेरे बेटे को सम्मान नहीं मिला,हमें जिस आदमी से प्रेम नहीं मिला उसके साथ झूठा रोना कैसे रोए।मेरी सास के जाने का दुःख मुझे और मेरे बेटे को बहुत हुआ,इसलिये नहीं कि वो मेरी सास और मेरे बेटे की दादी थी,बल्कि इसलिए दुःख हुआ कि एक अच्छी जिंदगी को वो अच्छे से जी नहीं पाए।जीवन भर कंजुसी करते रहे और अंत मे सब कंजुसी का बचाया हुआ यहीं छोड़कर दुनिया से चले गए।मेरे पति और मेरे सुसराल वालों को केवल उनके पैसों से मतलब था लेकिन मुझे और मेरे बेटे को केवल प्रेम से मतलब था जो हमें मिल न पाया।अब अगर चले भी जाते तो कोई मतलब नहीं था।इसलिये हमने निश्चय किया कि हम मात्र 12 दिन का दिखावा करने नहीं जायेंगे।इसलिए मैं और मेरा बेटा वहां नहीं गए।ये निर्णय हमने अपने दिल पर पत्थर रख कर लिया,लेकिन इस निर्णय से पूरे समाज को हमारी कहानी का पता चल गया जो अब तक लोगो से अनजान थी।आखिर सच्चाई तो सामने लानी ही थी जो अपने आप सामने आ गई।कई लोगो ने मुझे कहा कि ये अच्छा नहीं किया,आखिर मरने पर तो सब जाते है।मैं उनको यही कहती रही कि जीते जी अगर प्रेम न होतो मरने के बाद किसको दिखाने जाते है।मेरी बात सच्चाई के हिसाब से बिल्कुल सही थी पर दुनिया के हिसाब से बहुत गलत थी। मैं भी 12 दिन तक मन पर बोझ लेकर घूमती रही ।लेकिन क्या करूँ,अपने आप से वादा जो किया था कि गलत के सामने कभी नहीं झुकूँगी।अन्याय का सामना करुँगी।इसलिए ये सब तो होना ही था।जैसे ही उनके 12 दिन पूरे हुए कि एक रात मुझे फिर एक सपना आया।सपने मे मै सुखदेवी माता के मंदिर मे दर्शन करने जा रही थी।
उस समय बहुत तेज बारिश हो रही थी,मैं मंदिर मे प्रवेश कर ही रही थी कि पीछे से मुझे एक आवाज सुनाई दी कि ए राधा!मैं तुझे कब से आवाज लगा रही हु तू सुन नहीं रही है।मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मेरे सासुजी एकदम जवान रूप मे, गुलाबी साड़ी पहने हुए,लाल लिप्सिटिक लगी हुई,लंबे काले खुले बाल मे खड़े थे।
मुझे उन्होंने अपने पास बुलाया और गले लगाकर बहुत रोए,और मुझसे कहा कि,राधा ,मुझे माफ़ कर दे।मै तुझे समझ नहीं पाई,तू तो प्रेम चाहती थी,पर मैंने पैसों को ही सबकुछ समझा।मैं अपनीआदत के कारण अपना जीवन अच्छे से नहीं जी पाई।आज मुझे पता चला कि प्रेम से बड़ा कोई धन नहीं होता।अब जो होना था वो तो हो गया,पर मेरी बात मानकर तू वापस उस घर पर चली जा,मैं अपने बेटे को भी समझा दूंगी।ये सब बातें उन्होंने मुझसे कही तो मैंने उनको कहा कि अब उस घर मे मैं वापस कभी नहीं जाउंगी।मुझे संपति का कोई लालच नहीं,मुझे तो सच्चा प्रेम चाहिए था जो न आपने दिया न आपके बेटे ने।इस पर मेरी सासुजी बोले कि तू बड़ी जिद्दी हैमैंने उनसे कहा कि हाँ मैं जिद्दी तो बहुत हु।इस पर वो बोले कि भले ही तू जिद्दी है पर तू मन की सच्ची है,तेरी हर बात मे सच्चाई है,इसलिये तू जहाँ कही भी रहेगी मेरा आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ रहेगा।ये कहकर उन्होंने अपना हाथ मेरे सिर पर रखा और वो गायब हो गए।तभी सपना टूट गया,उठकर घड़ी देखी तो सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे।कहते है सुबह के सपने हमेशा सच होते है।स्वप्न में उनका इस तरह से बात करने से मेरे मन का पूरा बोझ उतर गया।
2017 प्रारम्भ हो गया।2017 मे हर रात मुझे एक स्वप्न्न आता था और हर स्वप्न्न मुझे ईश्वर के साथ होने का संकेत देता था।एक रात को सपना आया कि की मूर्ति के चारो तरफ नाग देवता का झुण्ड था
और बीच मे शिव जी की मूर्ति थी और उनकी मूर्ति से फूल गिर रहे थे।
फिर एक रात सपना आया कि मैं अकेली नदी पार कर रही हु,लेकिन मैं पानी से डर रही थी,इसलिए बार बार अपना पैर पीछे ले रही थी,उतने मे मेरी प्रिय सहेली कैलाश दीदी कुछ पत्थर उस पानी मे रख रही थी।सारे पत्थर पानी मे तैर रहे थे।
जब नदी का अंतिम छोर आया तो मेरी सहेली गायब हो गई और वहां पर शेषनाग का फन आ गया
एक रात फिर एक सपना आया।साक्षात देवी माँ एक चांदी के सिंहासन पर बैठे हुए थे।उनके पास मेरे स्वर्गीय पिता जी भी बैठे हुए थे।मेरे पिताजी ने मुझसे कहा कि,राधा,तू क्यों चिंता करती है।
तू जिन उसूलो और सच्चाई पर चल रही है,उस रास्ते मे ये देवी माँ तेरे साथ चल रही है।ये कहकर वो गायब हो जाते है और फिर सपना टूट जाता है।फिर एक दिन सपने मे मेरे स्वर्गीय दादा जी आते है और आशीर्वाद देते है।फिर एक दिन मेरे स्वर्गीय नाना जी और स्वर्गीय नानी जी आते है।एक के बाद एक मरे हुए पूर्वज आते है और मुझे आशीर्वाद देकर गायब हो जाते है।
चाहे मेरा जीवन बहुत कठिन रहा लेकिन मेरे साथ बहुत सारी शक्तियां काम कर रही थी।
8 दिसम्बर 2017 की बात थी।मैं और मेरा बेटा रात को सो रहे थे कि सुबह के 5 बजे मेरे फ़ोन पर घंटी बजी।मैने पहले तो नींद मे अलार्म समझ कर फ़ोन काट दिया ।लेकिन फिर वापस फ़ोन आया तो मैंने हाथ मे लिया तो देखा मेरे पति के नंबर से फ़ोन आ रहा था मैं चोंक गई कि मेरे पति दूसरे कमरे मे सो रहे है तो फ़ोन क्यों आया।मैंने पहले उठ कर उनके कमरे मे झांक कर देखा तो वो नहीं थे और मैन दरवाजा भी खुला था।मैंने झट से उनका फ़ोन उठाया तो पता चला कि वो हॉस्पिटल में थे।मेरे सासुजी को हार्ड प्रॉब्लम हो गई थी तो उनको एडमिट कराया था।कुछ ही देर मे वापस फ़ोन आया कि उनकी death हो गई।मैंने भी सुना तो shoked हो गई और मन मे अजीब सा डर लगने लगा।मैंने तुरंत अपने बेटे को जगाया और दोनों ने बहुत सोचा कि हमें वहां जाना चाहिए या नहीं।क्योकि एक तरफ मेरा बरसो का युद्ध था जो मैं अपने पति और सुसराल वालो से लड़ रही थी तो दूसरी तरफ लोक लाज का भय था।मुझे और मेरे बेटे को कोई भी नकली दिखावा पसंद नहीं था।जहाँ बरसो तक मुझे और मेरे बेटे को सम्मान नहीं मिला,हमें जिस आदमी से प्रेम नहीं मिला उसके साथ झूठा रोना कैसे रोए।मेरी सास के जाने का दुःख मुझे और मेरे बेटे को बहुत हुआ,इसलिये नहीं कि वो मेरी सास और मेरे बेटे की दादी थी,बल्कि इसलिए दुःख हुआ कि एक अच्छी जिंदगी को वो अच्छे से जी नहीं पाए।जीवन भर कंजुसी करते रहे और अंत मे सब कंजुसी का बचाया हुआ यहीं छोड़कर दुनिया से चले गए।मेरे पति और मेरे सुसराल वालों को केवल उनके पैसों से मतलब था लेकिन मुझे और मेरे बेटे को केवल प्रेम से मतलब था जो हमें मिल न पाया।अब अगर चले भी जाते तो कोई मतलब नहीं था।इसलिये हमने निश्चय किया कि हम मात्र 12 दिन का दिखावा करने नहीं जायेंगे।इसलिए मैं और मेरा बेटा वहां नहीं गए।ये निर्णय हमने अपने दिल पर पत्थर रख कर लिया,लेकिन इस निर्णय से पूरे समाज को हमारी कहानी का पता चल गया जो अब तक लोगो से अनजान थी।आखिर सच्चाई तो सामने लानी ही थी जो अपने आप सामने आ गई।कई लोगो ने मुझे कहा कि ये अच्छा नहीं किया,आखिर मरने पर तो सब जाते है।मैं उनको यही कहती रही कि जीते जी अगर प्रेम न होतो मरने के बाद किसको दिखाने जाते है।मेरी बात सच्चाई के हिसाब से बिल्कुल सही थी पर दुनिया के हिसाब से बहुत गलत थी। मैं भी 12 दिन तक मन पर बोझ लेकर घूमती रही ।लेकिन क्या करूँ,अपने आप से वादा जो किया था कि गलत के सामने कभी नहीं झुकूँगी।अन्याय का सामना करुँगी।इसलिए ये सब तो होना ही था।जैसे ही उनके 12 दिन पूरे हुए कि एक रात मुझे फिर एक सपना आया।सपने मे मै सुखदेवी माता के मंदिर मे दर्शन करने जा रही थी।
सच्चा प्रेम कभी मरता नहीं है,इसीलिए जीते जी मेरे सासुजी मेरे प्रेम को समझ नहीं पाए फिर भी मरने के बाद अपने आत्म स्वरूप मे मुझे दर्शन दिए और प्रेम के सामने नतमस्तक हुए।
प्रेम कभी हारता नहीं है।इंसान के मरने के बाद भी जीत प्रेम की ही होती है।यही अटल सत्य है।
मेरे सासु जी के जाने के बाद मेरे पति वापस मेरे साथ रहने नहीं आये ।क्योंकि उन्हें किसी भी कीमत पर उनके माता पिता के घर मे हक चाहिए था और मुझे बिना प्रेम का एक रुपया भी नहीं चाहिए था।वो अपनी संपत्ति लेने वहीं रुक गए और मैं अपने सत्य के साथ यहीं रुक गई।दोनो अलग अलग दिशाओ मे हो गए
जब 6 महीने से ऊपर हो गए,वो नहीं आये तो मैंने भी अपने दिल को कठोर करके उन्हें भूलने की कोशिश की
और अपने पुत्र शुभम के साथ अकेले रहने की आदत डाल दी।क्योंकि
जब 6 महीने से ऊपर हो गए,वो नहीं आये तो मैंने भी अपने दिल को कठोर करके उन्हें भूलने की कोशिश की
और अपने पुत्र शुभम के साथ अकेले रहने की आदत डाल दी।क्योंकि
सत्य अकेला हो सकता है,निराश हो सकता है,अपमानित हो सकता है,पर कभी हार नही सकता।यही सत्य की पहचान है।
मेरा सच चरण 30 -सत्य अकेला ही होता है।
ढाई साल हो गए मेरे पति को घर से गये हुए।इन ढाई साल मे उन्होंने कभी भी मुझसे और मेरे बच्चे से संपर्क तक नही किया और न ही कोई फ़ोन किया।लेकिन इन ढाई साल मे कोई दिन ऐसा नही गया जिसमें मैंने उनको याद नही किया होगा।
हालांकि उन्होंने मुझसे और मेरे बच्चे से जो व्यवहार किया,उसके हिसाब से मेरा उनको भूल जाना ही सही था,पर फिर भी मै नही भूल पाई।इन ढाई साल मे मुझे दुनिया के कई तरह के अनुभव प्राप्त हुए।
मै पहले सोचती थी कि दुनिया वैसा ही सोचती है जैसा मैं सोचती हूं।मेरी नजर मे हर इंसान सच्चा और ईमानदार दिखता था,लेकिन जैसा मैंने सोचा वैसा कुछ नही था।ये दुनिया तो बड़ी रंगीन है।यहां सच का साथ कोई नही देता।यहाँ हर आदमी दिखावे मे जीता है।समाज मे अपने को अच्छा दिखाने के लिए गलत को भी स्वीकार कर लेता है।यहाँ लोग दुनिया को दिखाने के लिए झूठा रो भी लेते है,और झूठा हंस भी लेते है।
मेरे कुछ रिश्तेदार ऐसे थे जिनसे मेरा बहुत अच्छा रिश्ता था,और वो लोग मेरे बारे मे सब कुछ जानते थे।मैंने सोचा कि ये सब मेरे अपने है जो हमेशा मेरे सच की लड़ाई मे मेरा साथ देंगे।लेकिन ऐसा कुछ नही था।किसी ने भी मुझे प्रोत्साहित नही किया कि तूने बिल्कुल सही किया है,और गलत का विरोध करना ही चाहिए।बल्कि कई लोग तो मुझ पर शक करने लगे।कई तरह की बाते समाज मे होने लगी।यहाँ तक कि कई लोग तो ये कहने लगे कि,मैं सुसराल मे अपना हक लेने के लिए अपने पति के साथ मिलकर कोई नाटक खेल रही हु,जबकि मेरा सुसराल के घर और उनकी संपत्ति से कोई लेना देना नही था।मैं तो सिवाय प्रेम के कुछ चाहती ही नही थी।कई लोगो ने तो ये भी विश्वास नही किया कि मेरे पति मेरे साथ अब नही रहते है ,कई लोग मुझसे पूछते थे कि क्या तुमने अपने पति से तलाक ले लिया है।तलाक शब्द सुनते ही ऐसा तीर चुभता था जैसे एक पंछी को घायल कर दिया हो।मैं ऐसे लोगो को कैसे समझाऊ कि ,अंतरात्मा मे बैठे हुए इंसान को क्या कागज के एक टुकड़े से दूर कर सकते है।कैसे समझाऊ कि मैने जिससे प्रेम किया है,मैंने उसी के खिलाफ युद्ध लड़ा है।खेर मेरी बातों को किसी को समझाना मेरे बस मे नही था।जब इस तरह लोगो से तरह तरह की बाते सुनती थी तो बहुत पीड़ा होती थी,कई बार तो मैं हर एक को अपनी कहानी बताती थी तो कई बार लोगो से बहस भी करती थी।लेकिन दुनिया को सच समझ मे ही नही आता था।धीरे धीरे मुझे एहसास हुआ कि ये दुनिया तो बरसो से ही ऐसी थी,जब सीता और मीरा का समय था,तब कौनसा इस दुनिया ने उनकी सच्चाई पर विश्वास किया जो वो अब मेरी सच्चाई पर विश्वास कर लेंगे।
मैं अजीब सी उलझन मे थी,कभी लगता किसी के यहाँ न जाऊ, किसी से रिश्ता न रखु, लेकिन फिर सोचा कि मैं दुनिया से डर कर क्यों भागू जबकि मैंने कुछ गलत नही किया।गलत तो मेरे पति ने किया है,अपने आप के साथ,अपने परिवार के साथ,डरे तो वो डरे।मैं हिम्मत करके दुनिया का सामना करने लगी और सामाजिक कार्य मे जाने लगी।लेकिन जब भी मैं किसी के कार्यक्रम मे जाती,लोग मुझे इस तरह देखते जैसे मैं कोई अलग ही दुनिया से आई हूं।बहुत अजीब महसूस होता था लेकिन फिर अपने आप को समझाती कि ,मैंने जो रास्ता अपनाया है वो सच्चाई का है और इस रास्ते मे जो चलता है वो दुनिया से अलग ही तो दिखेगा यही सच की कठोर परीक्षा है।
समय बीतता जा रहा था,एक उम्मीद हमेशा रहती थी कि कभी तो मेरे पति को सदबुद्धि आएगी और वो सही रास्ता अपना लेंगे।लेकिन वो उम्मीद भविष्य मे कितनी सच होगी,ये मै नही जानती थी ।अब तो इस रास्ते को काफी हद तक पार कर चुकी थी,इसका परिणाम तो केवल ईश्वर के हाथ मे था।लेकिन एक बात का द्रढ़ निश्चय कर चुकी थी कि चाहे अब मेरी गृहस्थी वापस जुड़े या ना जुड़े,लेकिन अब हार नही मानूँगी,
और मरते दम तक गलत का साथ नही दूंगी।
एक दिन की बात है,मैं पार्लर के काम से जा रही थी,अचानक रास्ते मे मैंने अपने पति को जाते हुए देखा,एक झलक ही मैंने उनकी देखी थी,कि उनकी हालत देखकर मेरे हाथ पांव ढीले पड़ गए।ऐसी शक्ल बना रखी थी ,बाल बढ़े हुए थे,वो ही पुराना गंदा सा शर्ट पहन रखा था,ऐसा लग रहा था मानो वो मांग मांग कर खाते हो।पैसों के लालच और मोह ने उन्हें इतना अंधा बना दिया था कि वो अपने आप को ही भूल गए थे कि वो क्या है,उनका जीवन क्या है।मैने एक जगह अपनी स्कूटी रोकी और अपने आंसू पोंछे।और वापस अपने आप को हिम्मत दी कि जो स्थिति अपने हाथ मे नही है,उस पर विचार करना व्यर्थ है।मेरे पति अगर समझते तो इतने साल साथ रहकर ही समझ जाते।यही सोचकर वापस अपने काम की और चल पड़ी।
दिन गुजरते जा रहे थे,मै अपना ध्यान अपने कार्य मे लगा कर ,अपने बच्चे के लिए जीवन को खुशी से जी रही थी क्योंकि मेरा बेटा पूरी तरह से सकारात्मक सोचता था
और मुझे भी सकारात्मक सोचने के लिये बोलता था।वो हर परिस्थिति को ईश्वर की मरझी समझकर उसको स्वीकार करने मे ही अपनी खुशी मानता था।वो खुद तो अच्छा सोचता है और मुझे भी सिखाता है,ऐसा लगता है मानो ईश्वर ने मुझे प्रेरित करने के लिए ही मेरे जीवन मे उसे भेजा है।फिर भी एक औरत का दिल तो बड़ा ही नाजुक होता है,वो रिश्तों को आसानी से भूल नही पाती है।मैं फिर भी कई बार अपने सुसराल वालो को याद करके अकेले मे रोती थी।पर क्या करूँ,अपने आप को वचन जो दिया था कि गलत का साथ कभी नही दूंगी।इसलिए सुसराल वालो को और अपने पति को धीरे धीरे भुलाने की आदत डालने लगी।
दूसरी तरफ अपने पीहर वालो से भी मुझे बहुत प्यार है।अपने भाई बहनों और अपने माता पिता के प्रति शुरु से ही मुझे लगाव है।और पापा के जाने के बाद कई बार स्वप्न मे आकर पापा बोलते थे कि ,राधा,तू घर मे सबसे बड़ी है,इसलिए अपनी मम्मी और भाई बहनों का हमेशा ध्यान रखना और मेरे घर की सुव्यवस्था को हमेशा बनाये रखना।सपने मे कहे उनके वाक्य मेरे लिए किसी ईश्वर के आदेश से कम नही थे,इसलिए मैंने उनकी बात को हमेशा ध्यान मे रखते हुए हमेशा अपने भाई बहनों का ध्यान ही नही रखा बल्कि अपने दिल से भी कभी दूर नही किया।
मैंने सच्चे दिल से अपने भाई बहनों से प्रेम किया और इसी कारण कई बार उनको हक से डांट भी देती थी।लेकिन धीरे धीरे मेरे सच और उसूलों के कारण मेरे भाई बहन भी मुझसे परेशान हो गए।वो जानते थे कि मै जो कुछ भी कहती हूं या करती हूं,वो एकदम सही है,पर उसे स्वीकार करना उनके लिए बोझ था।वो चाहते थे कि मैं भी दुनिया की तरह ही चलू।किसी को खुश करने लिए झूठ मुठ का प्रेम भी दिखा दु और किसी के मरने पर झूठा दिखावा भी कर लूं,पर ये मेरे बस का नही था।मैं तो वो ही करती जो असल मे चल रहा होता है।सही को सही और गलत को गलत कहना ही मेरा नियम था,और ऐसा नियम निभाने मे अगर किसी के दिल को चोट लगती है तो मैं उससे क्षमा याचना भी कर लेती हूं पर सच को बोले बिना नही रहा जाता।
मेरी इसी सच्चाई के कारण एक बार पीहर मे भाभी ने मेरी एक बात का इतना इशू बना दिया कि घर मे झगड़ा हो गया।हालांकि मेरे सभी भाई बहन को मेरी बात और सच्चाई पर पूरा भरोसा था,फिर भी उनकी शिकायत ये थी कि मैं किसी को कुछ न कहु चाहे बात कितनी भी सच्ची हो,बस चुप रहू।उस दिन के बाद मेरा मन बहुत दुखी हुआ और घर आकर ईश्वर के सामने बैठकर बहुत रोई और उनसे पूछा कि क्या इस दुनिया मे सच के साथ चलना और बोलना गुनाह है?थोड़ी देर रोने के बाद मेरी नजर सामने पड़ी गीता की किताब पर पड़ी,और मुझे याद आया कि सत्य तो दुनिया मे अकेला ही होता है,अगर कोई सच के साथ होता है तो वो केवल कृष्ण ही होता है,वो केवल नारायण ही होता है।उस दिन के बाद मैने सोच लिया कि चाहे सारी दुनिया,सारे रिश्ते नाते छूट जाए तो गम नही,सत्य कभी ना छुटे।जैसे जैसे रिश्ते छूटते जा रहे थे मैं ईश्वर के और करीब महसूस कर रही थी।
मैंने अपने आप को गीता की उन पंक्तियों के साथ समझाया कि,जो हुआ अच्छा हुआ,जो हो रहा है अच्छा हो रहा है और जो होगा वो भी अच्छा ही होगा।
मै पहले सोचती थी कि दुनिया वैसा ही सोचती है जैसा मैं सोचती हूं।मेरी नजर मे हर इंसान सच्चा और ईमानदार दिखता था,लेकिन जैसा मैंने सोचा वैसा कुछ नही था।ये दुनिया तो बड़ी रंगीन है।यहां सच का साथ कोई नही देता।यहाँ हर आदमी दिखावे मे जीता है।समाज मे अपने को अच्छा दिखाने के लिए गलत को भी स्वीकार कर लेता है।यहाँ लोग दुनिया को दिखाने के लिए झूठा रो भी लेते है,और झूठा हंस भी लेते है।
मेरे कुछ रिश्तेदार ऐसे थे जिनसे मेरा बहुत अच्छा रिश्ता था,और वो लोग मेरे बारे मे सब कुछ जानते थे।मैंने सोचा कि ये सब मेरे अपने है जो हमेशा मेरे सच की लड़ाई मे मेरा साथ देंगे।लेकिन ऐसा कुछ नही था।किसी ने भी मुझे प्रोत्साहित नही किया कि तूने बिल्कुल सही किया है,और गलत का विरोध करना ही चाहिए।बल्कि कई लोग तो मुझ पर शक करने लगे।कई तरह की बाते समाज मे होने लगी।यहाँ तक कि कई लोग तो ये कहने लगे कि,मैं सुसराल मे अपना हक लेने के लिए अपने पति के साथ मिलकर कोई नाटक खेल रही हु,जबकि मेरा सुसराल के घर और उनकी संपत्ति से कोई लेना देना नही था।मैं तो सिवाय प्रेम के कुछ चाहती ही नही थी।कई लोगो ने तो ये भी विश्वास नही किया कि मेरे पति मेरे साथ अब नही रहते है ,कई लोग मुझसे पूछते थे कि क्या तुमने अपने पति से तलाक ले लिया है।तलाक शब्द सुनते ही ऐसा तीर चुभता था जैसे एक पंछी को घायल कर दिया हो।मैं ऐसे लोगो को कैसे समझाऊ कि ,अंतरात्मा मे बैठे हुए इंसान को क्या कागज के एक टुकड़े से दूर कर सकते है।कैसे समझाऊ कि मैने जिससे प्रेम किया है,मैंने उसी के खिलाफ युद्ध लड़ा है।खेर मेरी बातों को किसी को समझाना मेरे बस मे नही था।जब इस तरह लोगो से तरह तरह की बाते सुनती थी तो बहुत पीड़ा होती थी,कई बार तो मैं हर एक को अपनी कहानी बताती थी तो कई बार लोगो से बहस भी करती थी।लेकिन दुनिया को सच समझ मे ही नही आता था।धीरे धीरे मुझे एहसास हुआ कि ये दुनिया तो बरसो से ही ऐसी थी,जब सीता और मीरा का समय था,तब कौनसा इस दुनिया ने उनकी सच्चाई पर विश्वास किया जो वो अब मेरी सच्चाई पर विश्वास कर लेंगे।
मैं अजीब सी उलझन मे थी,कभी लगता किसी के यहाँ न जाऊ, किसी से रिश्ता न रखु, लेकिन फिर सोचा कि मैं दुनिया से डर कर क्यों भागू जबकि मैंने कुछ गलत नही किया।गलत तो मेरे पति ने किया है,अपने आप के साथ,अपने परिवार के साथ,डरे तो वो डरे।मैं हिम्मत करके दुनिया का सामना करने लगी और सामाजिक कार्य मे जाने लगी।लेकिन जब भी मैं किसी के कार्यक्रम मे जाती,लोग मुझे इस तरह देखते जैसे मैं कोई अलग ही दुनिया से आई हूं।बहुत अजीब महसूस होता था लेकिन फिर अपने आप को समझाती कि ,मैंने जो रास्ता अपनाया है वो सच्चाई का है और इस रास्ते मे जो चलता है वो दुनिया से अलग ही तो दिखेगा यही सच की कठोर परीक्षा है।
समय बीतता जा रहा था,एक उम्मीद हमेशा रहती थी कि कभी तो मेरे पति को सदबुद्धि आएगी और वो सही रास्ता अपना लेंगे।लेकिन वो उम्मीद भविष्य मे कितनी सच होगी,ये मै नही जानती थी ।अब तो इस रास्ते को काफी हद तक पार कर चुकी थी,इसका परिणाम तो केवल ईश्वर के हाथ मे था।लेकिन एक बात का द्रढ़ निश्चय कर चुकी थी कि चाहे अब मेरी गृहस्थी वापस जुड़े या ना जुड़े,लेकिन अब हार नही मानूँगी,
और मरते दम तक गलत का साथ नही दूंगी।
एक दिन की बात है,मैं पार्लर के काम से जा रही थी,अचानक रास्ते मे मैंने अपने पति को जाते हुए देखा,एक झलक ही मैंने उनकी देखी थी,कि उनकी हालत देखकर मेरे हाथ पांव ढीले पड़ गए।ऐसी शक्ल बना रखी थी ,बाल बढ़े हुए थे,वो ही पुराना गंदा सा शर्ट पहन रखा था,ऐसा लग रहा था मानो वो मांग मांग कर खाते हो।पैसों के लालच और मोह ने उन्हें इतना अंधा बना दिया था कि वो अपने आप को ही भूल गए थे कि वो क्या है,उनका जीवन क्या है।मैने एक जगह अपनी स्कूटी रोकी और अपने आंसू पोंछे।और वापस अपने आप को हिम्मत दी कि जो स्थिति अपने हाथ मे नही है,उस पर विचार करना व्यर्थ है।मेरे पति अगर समझते तो इतने साल साथ रहकर ही समझ जाते।यही सोचकर वापस अपने काम की और चल पड़ी।
दिन गुजरते जा रहे थे,मै अपना ध्यान अपने कार्य मे लगा कर ,अपने बच्चे के लिए जीवन को खुशी से जी रही थी क्योंकि मेरा बेटा पूरी तरह से सकारात्मक सोचता था
और मुझे भी सकारात्मक सोचने के लिये बोलता था।वो हर परिस्थिति को ईश्वर की मरझी समझकर उसको स्वीकार करने मे ही अपनी खुशी मानता था।वो खुद तो अच्छा सोचता है और मुझे भी सिखाता है,ऐसा लगता है मानो ईश्वर ने मुझे प्रेरित करने के लिए ही मेरे जीवन मे उसे भेजा है।फिर भी एक औरत का दिल तो बड़ा ही नाजुक होता है,वो रिश्तों को आसानी से भूल नही पाती है।मैं फिर भी कई बार अपने सुसराल वालो को याद करके अकेले मे रोती थी।पर क्या करूँ,अपने आप को वचन जो दिया था कि गलत का साथ कभी नही दूंगी।इसलिए सुसराल वालो को और अपने पति को धीरे धीरे भुलाने की आदत डालने लगी।
दूसरी तरफ अपने पीहर वालो से भी मुझे बहुत प्यार है।अपने भाई बहनों और अपने माता पिता के प्रति शुरु से ही मुझे लगाव है।और पापा के जाने के बाद कई बार स्वप्न मे आकर पापा बोलते थे कि ,राधा,तू घर मे सबसे बड़ी है,इसलिए अपनी मम्मी और भाई बहनों का हमेशा ध्यान रखना और मेरे घर की सुव्यवस्था को हमेशा बनाये रखना।सपने मे कहे उनके वाक्य मेरे लिए किसी ईश्वर के आदेश से कम नही थे,इसलिए मैंने उनकी बात को हमेशा ध्यान मे रखते हुए हमेशा अपने भाई बहनों का ध्यान ही नही रखा बल्कि अपने दिल से भी कभी दूर नही किया।
मैंने सच्चे दिल से अपने भाई बहनों से प्रेम किया और इसी कारण कई बार उनको हक से डांट भी देती थी।लेकिन धीरे धीरे मेरे सच और उसूलों के कारण मेरे भाई बहन भी मुझसे परेशान हो गए।वो जानते थे कि मै जो कुछ भी कहती हूं या करती हूं,वो एकदम सही है,पर उसे स्वीकार करना उनके लिए बोझ था।वो चाहते थे कि मैं भी दुनिया की तरह ही चलू।किसी को खुश करने लिए झूठ मुठ का प्रेम भी दिखा दु और किसी के मरने पर झूठा दिखावा भी कर लूं,पर ये मेरे बस का नही था।मैं तो वो ही करती जो असल मे चल रहा होता है।सही को सही और गलत को गलत कहना ही मेरा नियम था,और ऐसा नियम निभाने मे अगर किसी के दिल को चोट लगती है तो मैं उससे क्षमा याचना भी कर लेती हूं पर सच को बोले बिना नही रहा जाता।
मेरी इसी सच्चाई के कारण एक बार पीहर मे भाभी ने मेरी एक बात का इतना इशू बना दिया कि घर मे झगड़ा हो गया।हालांकि मेरे सभी भाई बहन को मेरी बात और सच्चाई पर पूरा भरोसा था,फिर भी उनकी शिकायत ये थी कि मैं किसी को कुछ न कहु चाहे बात कितनी भी सच्ची हो,बस चुप रहू।उस दिन के बाद मेरा मन बहुत दुखी हुआ और घर आकर ईश्वर के सामने बैठकर बहुत रोई और उनसे पूछा कि क्या इस दुनिया मे सच के साथ चलना और बोलना गुनाह है?थोड़ी देर रोने के बाद मेरी नजर सामने पड़ी गीता की किताब पर पड़ी,और मुझे याद आया कि सत्य तो दुनिया मे अकेला ही होता है,अगर कोई सच के साथ होता है तो वो केवल कृष्ण ही होता है,वो केवल नारायण ही होता है।उस दिन के बाद मैने सोच लिया कि चाहे सारी दुनिया,सारे रिश्ते नाते छूट जाए तो गम नही,सत्य कभी ना छुटे।जैसे जैसे रिश्ते छूटते जा रहे थे मैं ईश्वर के और करीब महसूस कर रही थी।
मैंने अपने आप को गीता की उन पंक्तियों के साथ समझाया कि,जो हुआ अच्छा हुआ,जो हो रहा है अच्छा हो रहा है और जो होगा वो भी अच्छा ही होगा।
मेरा सच,चरण 31- सत्य और गीता से हुआ गहरा परिचय
गीता की एक और बात मेरे जीवन को पूरी तरह से प्रभावित कर चुकी थी।
समय परिवर्तनशील है।जो आज तुम्हारा है वो कल किसी और का होगा।जिसे तुम अपना समझ रहे हो वो ही तुम्हारे दुःख का कारण है।
वास्तव मे मैंने जिसे अपना समझा,जिनसे अत्यधिक प्रेम किया,वो सब ही मेरे दुःख का कारण बने।
गीता का एक और श्लोक कहता है कि किसी से अपेक्षा मत रखो यानी उम्मीद मत रखो।कर्म करो,उसके फल की आशा मत रखो।तुम क्या लाये थे जो तुमने खो दिया।मान, अपमान,अपना पराया,सब भूल कर केवल वर्तमान मे रहकर अपना कार्य करो।
आज ईश्वर को तहे दिल से लाख लाख धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे मेरे ही जीवन से अनुभव करा कर मुझे पूरी गीता समझा दी।
बस फिर क्या था,अब तो मेरे जीवन का चक्र ही बदल गया।मैंने लोगो से,अपनो से उम्मीद करना छोड़ दिया,पीठ पीछे किसी की बात करना बंद कर दिया।अपना फर्ज और प्रेम निभाती पर वापस बदले मे प्रेम की आशा रखना बंद कर दिया।धीरे धीरे मैं निंदा और बुराइयों से मुक्त होती जा रही थी।मुझे बहुत हल्का महसूस होने लगा।अब तो मैंने अपने दिनचर्या को भी व्यवस्थित कर लिया।
सुबह जल्दी उठकर योगा,प्राणायाम और मेडिटेशन से अपने दिन की शुरुवात करने लगी।अपने हर एक क्षण का उपयोग करने लगी।जिससे मुझे अब बहुत ही अच्छा लगने लगे गया।किसी से कोई शिकवा नही,जो भी होता,अच्छा या बुरा,उसे ईश्वर की मरझी समझकर स्वीकार करने लगी।
अगस्त 2019 की बात है।
एक रात मुझे सपना आया।सपने मे मैं और मेरा पुत्र शुभम, हम दोनों किसी मंदिर मे दर्शन के लिए गए।वहाँ पर कृष्ण जी की एक बहुत बड़ी मूर्ति थी।मूर्ति के ऊपर तक की ही छत थी और बाकी का पूरा पांडाल खुला था,जिस पर छत नही थी।मैं और शुभम उस पांडाल से दूर से दर्शन कर रहे थे,क्योंकि बहुत भीड़ थी।फिर सारे लोग उस पांडाल मे नीचे बैठ गए क्योंकि वहाँ सत्संग चालू होने वाला था।हम भी नीचे बैठ गए।मेरे बिल्कुल बगल मे मेरे स्वर्गवासी सासुजी बैठी हुई थी और बहुत प्यार से मेरी और देख रही थी।थोड़ी देर मे मैंने देखा कि मूर्ति से बहुत सारे फूल गिर रहे थे।मैंने ध्यान से देखा कि आखिर ये फूल कैसे गिर रहे है,तो मुझे नजर आया कि मूर्ति के ऊपर बहुत सारे छोटे बच्चो के हाथ निकल रहे थे जो मूर्ति से फूल नीचे गिरा रहे थे।मैने भगवान से मन ही मन बात करी और गुस्सा किया कि,है भगवान ये तो आपके मंदिर की चालाकी है,जो मुझ जैसे भोले लोगो को बेवकूफ बनाते है।मैं तो इतने समय से यही समझती थी कि,आप सच मे फूल देते हो पर आज पता चल गया कि ये सब नकली था,और मैं मन ही मन भगवान से नाराज हो गई।
तभी अचानक आकाश से बड़े बड़े फूल आकर मेरी गोदी मे गिरते है।उनमें से एक बड़ा फूल पास ही बैठे मेरे स्वर्गवासी सासुजी मुझे देते है और कहते है कि देख राधा,ये फूल आकाश से गिर रहे है,यानी सीधे भगवान के घर से आ रहे है।ये सब असली है,सच्चे है।
उनकी बात सुनकर मेरी और शुभम की आंखों से आंसू बहने लगे।वहाँ बैठे सभी भक्तजन भी रोने लगते है।सभी साँवरिया सेठ की जय बोलते है और तभी मेरे सासुजी अचानक गायब हो जाते है और मेरा सपना भी टूट जाता है।
जब मेरा सपना टूटा और मेरी आँख खुली तो असली मे मेरी आंखे गीली थी और ,मैंने उठकर भगवान को प्रणाम किया और इतने सुंदर सपने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया ।आज तक मुझे
जितने भी चमत्कारिक सपने आये,वो सभी सपने सुबह के 4 से 5 के बीच ही आये।और माना जाता है कि सुबह के सपनो का कोई न कोई महत्व जरूर होता है और मुझे वो सारे सपने ईश्वर के साथ होने का प्रमाण दे रहे थे।वो सत्य रूपी ईश्वर मेरे सत्य मे मेरे साथ था।एक पल के लिए भी ईश्वर ने मुझे नहीं छोड़ा और एक पल के लिए भी मैंने ईश्वर को नहीं छोड़ा।चाहे सुख आया हो चाहे दुःख, उनके नाम का स्मरण उठते बैठते,जागते सोते,चलते फिरते,हर समय चलता रहता था।
यहाँ तक कि स्कूटी चलाते समय भी कई बार मैं उनकी स्मृतियों मे इस कदर खो जाती कि मुझे स्वयं को नहीं पता होता कि मैं किस रास्ते से घर तक आई हूं।कई बार तो मुझे लगता कि मेरा शरीर अलग है और उसके अंदर की आत्मा अलग है।सारे कार्य वो अप्रत्यक्ष आत्मा ही कर रही थी जिसे मैं अगर अपने अनुभवों से ईश्वर कहु तो भी कोई गलत नहीं।
समय परिवर्तनशील है।जो आज तुम्हारा है वो कल किसी और का होगा।जिसे तुम अपना समझ रहे हो वो ही तुम्हारे दुःख का कारण है।
वास्तव मे मैंने जिसे अपना समझा,जिनसे अत्यधिक प्रेम किया,वो सब ही मेरे दुःख का कारण बने।
गीता का एक और श्लोक कहता है कि किसी से अपेक्षा मत रखो यानी उम्मीद मत रखो।कर्म करो,उसके फल की आशा मत रखो।तुम क्या लाये थे जो तुमने खो दिया।मान, अपमान,अपना पराया,सब भूल कर केवल वर्तमान मे रहकर अपना कार्य करो।
आज ईश्वर को तहे दिल से लाख लाख धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे मेरे ही जीवन से अनुभव करा कर मुझे पूरी गीता समझा दी।
बस फिर क्या था,अब तो मेरे जीवन का चक्र ही बदल गया।मैंने लोगो से,अपनो से उम्मीद करना छोड़ दिया,पीठ पीछे किसी की बात करना बंद कर दिया।अपना फर्ज और प्रेम निभाती पर वापस बदले मे प्रेम की आशा रखना बंद कर दिया।धीरे धीरे मैं निंदा और बुराइयों से मुक्त होती जा रही थी।मुझे बहुत हल्का महसूस होने लगा।अब तो मैंने अपने दिनचर्या को भी व्यवस्थित कर लिया।
सुबह जल्दी उठकर योगा,प्राणायाम और मेडिटेशन से अपने दिन की शुरुवात करने लगी।अपने हर एक क्षण का उपयोग करने लगी।जिससे मुझे अब बहुत ही अच्छा लगने लगे गया।किसी से कोई शिकवा नही,जो भी होता,अच्छा या बुरा,उसे ईश्वर की मरझी समझकर स्वीकार करने लगी।
अगस्त 2019 की बात है।
एक रात मुझे सपना आया।सपने मे मैं और मेरा पुत्र शुभम, हम दोनों किसी मंदिर मे दर्शन के लिए गए।वहाँ पर कृष्ण जी की एक बहुत बड़ी मूर्ति थी।मूर्ति के ऊपर तक की ही छत थी और बाकी का पूरा पांडाल खुला था,जिस पर छत नही थी।मैं और शुभम उस पांडाल से दूर से दर्शन कर रहे थे,क्योंकि बहुत भीड़ थी।फिर सारे लोग उस पांडाल मे नीचे बैठ गए क्योंकि वहाँ सत्संग चालू होने वाला था।हम भी नीचे बैठ गए।मेरे बिल्कुल बगल मे मेरे स्वर्गवासी सासुजी बैठी हुई थी और बहुत प्यार से मेरी और देख रही थी।थोड़ी देर मे मैंने देखा कि मूर्ति से बहुत सारे फूल गिर रहे थे।मैंने ध्यान से देखा कि आखिर ये फूल कैसे गिर रहे है,तो मुझे नजर आया कि मूर्ति के ऊपर बहुत सारे छोटे बच्चो के हाथ निकल रहे थे जो मूर्ति से फूल नीचे गिरा रहे थे।मैने भगवान से मन ही मन बात करी और गुस्सा किया कि,है भगवान ये तो आपके मंदिर की चालाकी है,जो मुझ जैसे भोले लोगो को बेवकूफ बनाते है।मैं तो इतने समय से यही समझती थी कि,आप सच मे फूल देते हो पर आज पता चल गया कि ये सब नकली था,और मैं मन ही मन भगवान से नाराज हो गई।
तभी अचानक आकाश से बड़े बड़े फूल आकर मेरी गोदी मे गिरते है।उनमें से एक बड़ा फूल पास ही बैठे मेरे स्वर्गवासी सासुजी मुझे देते है और कहते है कि देख राधा,ये फूल आकाश से गिर रहे है,यानी सीधे भगवान के घर से आ रहे है।ये सब असली है,सच्चे है।
उनकी बात सुनकर मेरी और शुभम की आंखों से आंसू बहने लगे।वहाँ बैठे सभी भक्तजन भी रोने लगते है।सभी साँवरिया सेठ की जय बोलते है और तभी मेरे सासुजी अचानक गायब हो जाते है और मेरा सपना भी टूट जाता है।
जब मेरा सपना टूटा और मेरी आँख खुली तो असली मे मेरी आंखे गीली थी और ,मैंने उठकर भगवान को प्रणाम किया और इतने सुंदर सपने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया ।आज तक मुझे
जितने भी चमत्कारिक सपने आये,वो सभी सपने सुबह के 4 से 5 के बीच ही आये।और माना जाता है कि सुबह के सपनो का कोई न कोई महत्व जरूर होता है और मुझे वो सारे सपने ईश्वर के साथ होने का प्रमाण दे रहे थे।वो सत्य रूपी ईश्वर मेरे सत्य मे मेरे साथ था।एक पल के लिए भी ईश्वर ने मुझे नहीं छोड़ा और एक पल के लिए भी मैंने ईश्वर को नहीं छोड़ा।चाहे सुख आया हो चाहे दुःख, उनके नाम का स्मरण उठते बैठते,जागते सोते,चलते फिरते,हर समय चलता रहता था।
यहाँ तक कि स्कूटी चलाते समय भी कई बार मैं उनकी स्मृतियों मे इस कदर खो जाती कि मुझे स्वयं को नहीं पता होता कि मैं किस रास्ते से घर तक आई हूं।कई बार तो मुझे लगता कि मेरा शरीर अलग है और उसके अंदर की आत्मा अलग है।सारे कार्य वो अप्रत्यक्ष आत्मा ही कर रही थी जिसे मैं अगर अपने अनुभवों से ईश्वर कहु तो भी कोई गलत नहीं।
मेरा सच चरण 32 - सत्य और शांति की प्राप्ति
इस तरह मैंंनेे अपने अब तक केे जीवन की कहानी को अभिव्यक्त किया।आगे और मेरे जीवन मे क्या क्या परिवर्तन होता है,जिसे मैं लिखती रहूंगी।
।मेरे जीवन का यही सच था कि जिससे प्रेम किया,वो ही गलत निकला और उसी के विरुद्ध लड़ना पड़ा।पर ईश्वर की असीम कृपा से मैं अन्याय का विरोध करने मे सक्षम रही,गलत का सामना करने का सामर्थ्य प्राप्त हुआ।भले ही मेरे जीवन मे मुझे कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ा यहाँ तक कि विवाह के 20 साल बाद पति भी मुझे छोड़ कर चले गए,फिर भी मुझे मेरे सत्य की राह पर चलने का कोई गम नहीं है,क्योंकि मैंने सत्य और उसूलो पर चलते हुए भी अपनो का साथ नहीं छोड़ा।बार बार अपमानित होने के बावजूद भी बार बार सुसराल जाती रही,इसी विश्वास के साथ कि कभी तो ये लोग बदलेंगे।पति के अत्याचार सहते हुए भी मैंने 19 साल उनके साथ इसी विश्वास के साथ गुजारे कि कभी तो मेरे पति सही रास्ता अपना लेंगे।लेकिन स्वार्थ और प्रेम का मेल कहाँ हो पाता है।स्वार्थ हर हाल मे पाना जानता है और प्रेम अपने हिस्से का भी छोड़ देना जानता है।स्वार्थ केवल लेने का नाम है और प्रेम केवल देने का नाम है।मैंने अपने जीवन मे अपने सभी रिश्तेदारों के साथ अच्छा समय बिताया,
सबको समय दिया।
अपने माता पिता और भाई बहनों के साथ भी भरपूर समय बिताया
भगवान के तीर्थ दर्शन भी खूब किये,
भगवान के भजन भी खूब किये
और जीवन के इन 40 सालो मे किसी न किसी माध्यम से मैंने ईश्वर का हमेशा साथ पाया।
।मैं अब पूरी तरह से इस बात से संतुष्ट हु कि मैंने जो भी किया,अच्छा किया।सच का रास्ता अपनाकर जो संतुष्टि रूपी धन मुझे मिला,वो दुनिया के किसी भी धन से कहीं ऊपर है।
लोग जीवन भर धन कमाते है,घर बनाते है,पर आज की तारीख मे मेरे पास सच के अलावा कुछ भी नही है।मेरे बैंक बैलेंस मे हजारो आशीर्वाद है,हजारो की दुआएं है,ईश्वर का साथ है।और सबसे बड़ा ईश्वर ने जो मुझे उपहार दिया वो मेरा पुत्र शुभम है,जो जीती जागती गीता है,जिसने हमेशा मेरे सच मे मेरा साथ दिया और जब जब मैं निराश होकर हारने लगती,तब तब इसने गीता का अध्याय बनकर मुझे सहारा दिया,
और ये सहारा मुझे कृष्ण रूपी सारथी से कम नही लगा।भगवान ने जितनी तकलीफे मुझे दी,उसके फलस्वरूप कई अनमोल चीजे मुझे उपहार मे दी,
जिसके कारण मैं अब तक का अपना सफर कर पाई।इस जीवन का जो मुख्य उद्देश्य था ,ईश्वर का दर्शन,वो तो मुझे प्राप्त हो चुका था।
।मेरे जीवन का यही सच था कि जिससे प्रेम किया,वो ही गलत निकला और उसी के विरुद्ध लड़ना पड़ा।पर ईश्वर की असीम कृपा से मैं अन्याय का विरोध करने मे सक्षम रही,गलत का सामना करने का सामर्थ्य प्राप्त हुआ।भले ही मेरे जीवन मे मुझे कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ा यहाँ तक कि विवाह के 20 साल बाद पति भी मुझे छोड़ कर चले गए,फिर भी मुझे मेरे सत्य की राह पर चलने का कोई गम नहीं है,क्योंकि मैंने सत्य और उसूलो पर चलते हुए भी अपनो का साथ नहीं छोड़ा।बार बार अपमानित होने के बावजूद भी बार बार सुसराल जाती रही,इसी विश्वास के साथ कि कभी तो ये लोग बदलेंगे।पति के अत्याचार सहते हुए भी मैंने 19 साल उनके साथ इसी विश्वास के साथ गुजारे कि कभी तो मेरे पति सही रास्ता अपना लेंगे।लेकिन स्वार्थ और प्रेम का मेल कहाँ हो पाता है।स्वार्थ हर हाल मे पाना जानता है और प्रेम अपने हिस्से का भी छोड़ देना जानता है।स्वार्थ केवल लेने का नाम है और प्रेम केवल देने का नाम है।मैंने अपने जीवन मे अपने सभी रिश्तेदारों के साथ अच्छा समय बिताया,
सबको समय दिया।
अपने माता पिता और भाई बहनों के साथ भी भरपूर समय बिताया
भगवान के तीर्थ दर्शन भी खूब किये,
भगवान के भजन भी खूब किये
और जीवन के इन 40 सालो मे किसी न किसी माध्यम से मैंने ईश्वर का हमेशा साथ पाया।
।मैं अब पूरी तरह से इस बात से संतुष्ट हु कि मैंने जो भी किया,अच्छा किया।सच का रास्ता अपनाकर जो संतुष्टि रूपी धन मुझे मिला,वो दुनिया के किसी भी धन से कहीं ऊपर है।
लोग जीवन भर धन कमाते है,घर बनाते है,पर आज की तारीख मे मेरे पास सच के अलावा कुछ भी नही है।मेरे बैंक बैलेंस मे हजारो आशीर्वाद है,हजारो की दुआएं है,ईश्वर का साथ है।और सबसे बड़ा ईश्वर ने जो मुझे उपहार दिया वो मेरा पुत्र शुभम है,जो जीती जागती गीता है,जिसने हमेशा मेरे सच मे मेरा साथ दिया और जब जब मैं निराश होकर हारने लगती,तब तब इसने गीता का अध्याय बनकर मुझे सहारा दिया,
और ये सहारा मुझे कृष्ण रूपी सारथी से कम नही लगा।भगवान ने जितनी तकलीफे मुझे दी,उसके फलस्वरूप कई अनमोल चीजे मुझे उपहार मे दी,
जिसके कारण मैं अब तक का अपना सफर कर पाई।इस जीवन का जो मुख्य उद्देश्य था ,ईश्वर का दर्शन,वो तो मुझे प्राप्त हो चुका था।
यही मेरा सबसे बड़ा सच था।
अब तक मैंने अपने जीवन मे जो भी कदम उठाए वो न्याय की दृष्टि से सही थे। आज चाहे मैं पारिवारिक जीवन से बहुत दूर हु,पर मुझे अंदर से किसी बात का कोई पछतावा नहीं है
क्योंकि मैंने जो कुछ भी किया,वो अपने और अपने बच्चे के लिए बहुत सही किया।अगर मैं एक अबला नारी बनकर सुसराल और पति के अन्याय का विरोध नहीं करती तो आज मैं सुसराल रूपी उस लोहे की जंजीर मे बंधी होती जो कभी मुझे ईश्वर के समीप नही आने देती।उस जंजीर को तोड़कर मैंने अपने बच्चे को एक इंसान बनाया,उसमे इंसानियत के वो सारे गुण भरे। सुसराल और पति की जंजीर टूटने के बाद मैंने अपने जीवन मे जो शांति पाई,वो उस पारिवारिक सुख से कई ज्यादा अनमोल और सुखदायी है
।उस लोहे रुपी जंजीर को तोड़कर मैंने ईश्वर का जितना ध्यान किया उतना शायद मैं उस जंजीर मे बंधकर कभी नहीं कर पाती।उसी प्रकार मैं अपने पियर रूपी सोने की जंजीर मे भी नहीं बंधी।क्योंकि अगर मैं हार मानकर उस लोहे की जंजीर से छूटकर सोने की जंजीर पकड़ लेती तो भी मैं अपने आत्मसम्मान की रक्षा कभी न कर पाती।
इसलिए ईश्वर ने हर प्रकार से मेरी सहायता करके मुझे अकेले रहने की जो हिम्मत दी,वो एक अनमोल उपहार है मेरे लिए।
क्योंकि मैंने जो कुछ भी किया,वो अपने और अपने बच्चे के लिए बहुत सही किया।अगर मैं एक अबला नारी बनकर सुसराल और पति के अन्याय का विरोध नहीं करती तो आज मैं सुसराल रूपी उस लोहे की जंजीर मे बंधी होती जो कभी मुझे ईश्वर के समीप नही आने देती।उस जंजीर को तोड़कर मैंने अपने बच्चे को एक इंसान बनाया,उसमे इंसानियत के वो सारे गुण भरे। सुसराल और पति की जंजीर टूटने के बाद मैंने अपने जीवन मे जो शांति पाई,वो उस पारिवारिक सुख से कई ज्यादा अनमोल और सुखदायी है
।उस लोहे रुपी जंजीर को तोड़कर मैंने ईश्वर का जितना ध्यान किया उतना शायद मैं उस जंजीर मे बंधकर कभी नहीं कर पाती।उसी प्रकार मैं अपने पियर रूपी सोने की जंजीर मे भी नहीं बंधी।क्योंकि अगर मैं हार मानकर उस लोहे की जंजीर से छूटकर सोने की जंजीर पकड़ लेती तो भी मैं अपने आत्मसम्मान की रक्षा कभी न कर पाती।
इसलिए ईश्वर ने हर प्रकार से मेरी सहायता करके मुझे अकेले रहने की जो हिम्मत दी,वो एक अनमोल उपहार है मेरे लिए।
जहाँ सत्य है वहीं ईश्वर है।जहाँ ईश्वर है वहीं शांति है और जहाँ शांति है वहीं जीत है।
सत्यमेव जयते।
मेरा सच,चरण 33,सत्यमेव जयते
करीबन साढ़े 3 साल हो चुके थे मेरे पति को हमसे अलग हुए।इस बीच जीवन कई पड़ावों से गुजरा।इसी बीच अप्रैल 2019 में मेरे सबसे छोटे भाई की शादी भी हो गईऔर उसके कुछ महीनो बाद दिसंबर 2019 में मेरा मकान भी दूसरी जगह शिफ्ट हो गया।अचानक से मकान मालिक को फ्लैट की जरूरत थी तो उन्होंने खाली करवा दिया।श्री कृष्ण की असीम कृपा से मुझे और अच्छी जगह पर फ्लैट मिल गया और पूरे ईश्वरीय जोश और श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ नए फ्लैट में शिफ्ट हुए।मेरे भाई बहन और उनके बच्चे ईश्वर के रूप में मेरे सामान को शिफ्ट करने में मेरी पूरी सहायता कर रहे थे।4 जनवरी 2020 को शनिदेव की कथा और भजनों के साथ नए फ्लैट की शुरुआत करी।अभी करीबन ढाई महीने ही हुए होंगे कि अचानक कोरोना बीमारी दुनिया में आई और पूरी दुनिया को उलट पुलट कर दिया।जिस ब्यूटी पार्लर के काम के सहारे मैं अपना और बच्चे का जीवनयापन कर रही थी वो काम अब बंद हो गया।नई जगह पर आते ही एक ऐसा झटका इस बीमारी ने दिया कि आशा भी निराशा में बदल गई।तीन महीने घर में बैठने से पैसों की कमी हो गई और फ्लैट का किराया था दस हजार रुपए।
जैसे तैसे बचाए हुए पैसों से किराया दिया और घर खर्च चलाया।पर फिर भी ईश्वर की ये कृपा रही कि व्यवस्था चलती रही।आज तक किसी से मांगकर लिया नही था इसलिए किसी से मदद लेने की इच्छा नही थी।पर ईश्वर ने एक बार फिर मेरे स्वाभिमान की रक्षा करी और बिना मांगे ही कुछ मेरे अपने कुछ न कुछ भेज रहे थे।जैसे ही तीन महीने बाद लोक डाउन खुला कि एक अच्छा शादी का काम मिला जिसमे मैने 10 दिन के अंदर 35000 का काम किया और उससे मेरे घर का बैलेंस बराबर हो गया।कुल मिलाकर ईश्वर बराबर मेरी मदद कर रहे थे ।
लेकिन कोरोना की ऐसी भयंकर बीमारी में भी मेरे पति ने हमारी कोई खबर नहीं ली और न ही कोई संपर्क किया।हम भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए हिम्मत से अकेले ही आगे बढ़ते रहे ।
करीबन साल डेढ़ साल तक इस कोरोना के कारण व्यवसाय इतना अच्छा नही चल पाया पर फिर शुभम भी अपने ऑनलाइन कार्य से कुछ कमाने लगा और मेरे घर की व्यवस्था चल रही थी।भक्ति फिर भी बढ़ती जा रही थी,चमत्कार होते जा रहे थे।
एक दिन नवंबर 2020 की बात है।अचानक मेरे पति का फोन आया और अपनी दीनहीन अवस्था मुझे बता रहे थे कि ,मेरी हालत बहुत खराब है और मेरी हर गलती की मैं हाथ जोड़कर माफी मांगता हु।एक बार तो उनकी आवाज सुनकर मुझे भी रोना आ गया पर फिर मन पर पत्थर रखकर उनसे बात करी और अपनी नाराज़गी बताई।वो हमारे पास फ्लैट में आने के लिए एड्रेस पूछ रहे थे लेकिन हमने उन्हें नहीं बताया क्योंकि हमे उनकी किसी बात पर भरोसा नहीं था।जो आदमी इतने साल अपनी पत्नी और बच्चे से अलग अकेला रह रहा हो ,उसका एकदम से कैसे भरोसा किया जाए।मैने उन्हे फोन करने के लिए मना कर दिया कि हमारा आपसे कोई रिश्ता नहीं है।आज के बाद फोन मत करना।लेकिन उन्होंने तीन महीने तक लगातार फोन किए और बार बार माफी मांगकर नए सिरे से वापस हमारे साथ रहने के लिए कह रहे थे।
मुझे भी उन पर दया आ गई और मैने भी सोचा कि माफ करना ही इंसान की इंसानियत है और फिर मैं भी प्रेम से गृहस्थी जीना चाहती थी पर मैं इस समझौते को पूरे परिवार के सामने रखना चाहती थी ताकि ये समाज भी मेरे जीवन की सच्चाई को जान सके।इसलिए मैंने अपने सुसराल वालो को एक पत्र लिखा और उन्हें एक प्रोग्राम में आमंत्रित किया।पीहर और सुसराल के सभी लोगो को एक मंदिर में बुलाया और एक प्रशादी का आयोजन किया।परंतु सुसराल के कुछ रिश्तेदार ही वहां आए और घर के खास ससुरजी,देवर देवरानी ननंद कोई नही आए। बस पति ही आए थे।पीहर पक्ष के सभी लोग वहां आए।फिर भी मेरी बात तो सबके सामने रखनी ही थी।मैने अपने जीवन की पूरी कहानी समाज पक्ष के सामने रखी और साथ ही अपने सुसराल का हक हमेशा के लिए त्याग दिया।मेरे बेटे ने भी भविष्य में किसी भी प्रकार का हक लेने के लिए इंकार कर दिया और हमेशा के लिए केवल अपनी मेहनत के बल पर ही जीने का संकल्प लिया।मैने संकल्प लिया कि,मै जीवन में बिना प्रेम और श्रद्धा का किसी का कुछ भी स्वीकार नहीं करूंगी।
मेरे पति की अब तक की हर गलतियों को मैने सबके सामने प्रकट किया ।मेरे पति ने भी अपनी गलती स्वीकार करके नए सिरे से फिर से जीवन शुरू करने का सबके सामने वादा किया।सबने मेरी बात को स्वीकार किया और एक बार फिर से मैने अपने पति के गले में माला डालकर उन्हें अपना पति स्वीकार किया।शुभम ने भी अपने पिता के चरण छूकर आशीर्वाद लिया और फिर से हम नए सिरे से हमारे उसी किराए के फ्लैट में रहने लगे।
लेकिन कहते है कि विधाता की लीला को कोई नही समझ सकता।मेरे पति मुश्किल से एक या दो महीने ही अच्छे से रहे होंगे और वो अपनी कही हुई बात से मुखर गए और फिर से अपनी पुरानी आदत के साथ रहने लगे।न कोई खर्चा और न ही कोई प्रेम पूर्वक व्यवहार।अपने बेटे शुभम से तो वो बात ही नही करते थे और न ही घर पर आए हुए किसी अतिथि से अच्छा व्यवहार कर पाते थे। मैने और मेरे पुत्र शुभम ने हर तरह से मेरे पति को बदलने की कोशिश की।उनको प्रेमपुर्वक समझाया कि ,हमे आपसे कुछ नही चाहिए पर आप जीवन को अच्छे से जियो और प्रेम से रहो।लेकिन मेरे पति को हमारी कोई बात समझ में नही आई।बस एक मुसाफिर की तरह आते,जो बना होता खा लेते और रोज घर से निकल जाते।क्या काम करते है,कितना कमाते है किसके यहां काम करते है,इन सब बातो की हमे कोई जानकारी नहीं थी।मैने अपने पति के साथ सुखी गृहस्थ जीवन जीने के लिए 24 साल तक अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन मेरे पति के स्वभाव में कोई फर्क नहीं आया।लोभ ,लालच और मोहमाया के जाल में वो ऐसे जकड़े हुए थे जिससे वो स्वयं छुटना ही नही चाहते थे।बस कंजूसी करना और स्वयं को सबके सामने दीनहीन बताना ही उनका जीवन बन चुका था।न खुद के लिए खर्च करना,न पत्नी के लिए,न बच्चे के लिए,किसी के प्रति उनकी कोई रुचि नही थी।बस उन्हें एक ठिकाना चाहिए था जहां सुबह शाम आकर वो खाना खाए,नहाए धोए और निकल जाए।दुनिया को दिखाने के लिए एक गृहस्थी का नाम चाहिए था और इसी कारण उन्होंने मुझसे माफी मांगने का झूठा नाटक किया और पूरे समाज के सामने मजबूरी में अपनी गलतियां स्वीकार करी ताकि वो फिर से हमारे साथ रह सके।मेरे सच्चे प्रेम को ,मेरी भावनाओं को उन्होंने फिर से एक धोखा दिया जो मेरे जीवन का सबसे बड़ा धोखा है और इसी धोखे के कारण मेरा श्री कृष्ण के साथ और नजदीक का रिश्ता हो गया।एक धोखे ने मुझे जीवन का वो उपहार दिया जो शायद बिना चोट खाए मैं कभी नहीं पा सकती थी।इसलिए इस चोट को ईश्वर का आशीर्वाद समझकर भक्ति रस में और अधिक गहराई से डूबने लगी। ।कुछ महीनो बाद रक्षाबंधन के त्योहार पर मेरे भाभी ने एक ऐसा नाटक रचा कि मेरे भाई कोमुझसे दूर कर दिया ।मेरे भाई के मन में हम बहनों के खिलाफ इतनी गलतफहमियां भर दी कि,एक संस्कारी भाई का रूप ही बदल गया।जो कल तक अपनी मां के आशीर्वाद से हर कार्य करता था,उसने रक्षाबंधन के त्योहार पर अपनी मां और बहनों के बरसो के प्रेम को अपनी पत्नी की झूठी बातों में आकर चकनाचूर कर दिया क्योंकि बरसो से उसकी पत्नी हम भाई बहनों के प्रेम से ईर्ष्या करती थी जिसको उसने अपनी ईर्ष्या के कारण तोड़ दिया।अब क्या था, एक रिश्ता और मुझसे छूट गया।पर फिर भी मेरे मन में सत्य के प्रति सच्चा विश्वास था कि सत्य अकेला हो सकता है,पर हार नहीं सकता।और इसी विश्वास के कारण एक दिन स्वयं बजरंग बली ने मेरी ओर अपना हाथ बढ़ाया और मैंने उनकी कलाई पर राखी बांधकर उन्हें अपना अमर भाई बना लिया।एक तरफ संसारी रिश्ते छूटते जा रहे थे तो दूसरी तरह दैविक और अलौकिक रिश्ते बनते जा रहे थे।संसारी रिश्ते अपने आप छुटते जा रहे थे।जितना रिश्तों से छुटती जा रही थी,कृष्ण जी के और करीब होती जा रही थी।ऐसा लग रहा था कि जैसे भगवान ने ही मेरी कहानी इस तरह से लिखी है की गृहस्थ में ही वैराग्य आता जा रहा था। ।धीरे धीरे एक समय ऐसा आया जब मैने सभी सामाजिक बंधनों का त्याग कर दिया और तीन वर्ष तक के लिए सबसे दूरियां बनाने का संकल्प ले लिया क्योंकि ये दुनिया मेरे जीवन की रहस्यमय कहानी को समझ ही नही रही थी और सबने मेरी कहानी का मजाक बना दिया था।इसलिए 45 साल के सफर में पहली बार मैं नवरात्रि पर अपनी पिपलाज माता जी के वहां भी नही गई और माता जी को बोल दिया कि,इतने वर्षो तक मैं ही आपसे मिलने आती रही,लेकिन अब लोगो के कारण मैं आना जाना छोड़ रही हु,इसलिए अब यदि मिलना हो तो आप मुझसे मिलने आ जाना।चमत्कार ऐसा हुआ कि,नवरात्रि के कुछ ही दिनों बाद एक दिन मेरे किसी ग्राहक आंटी ने मुझे वैष्णो देवी की मूर्ति उपहार स्वरूप दी।जिस दिन वैष्णो देवी की वो मूर्ति घर आई थी,उस दिन भी तीन दिन तक कोई न कोई चमत्कार ऐसे हुए कि जैसे ,माता जी स्वयं मुझसे कह रहे हो कि,देखा राधा,मैं स्वयं ही तुझसै मिलने आ गई हु।माता जी के आगमन से मेरा मन बहुत प्रसन्न हो गया।कुछ दिनों बाद एक दिन मुझे सपना आया कि,सपने में मेरे घर के दरवाजे की घंटी बजती है।मैने जैसे ही गेट खोला तो देखा कि,बड़े से फन फैलाए शेषनाग जी दरवाजे पर खड़े है।मैने शुभम को पुकारा और हम दोनो ने उनके दर्शन किए कि सपना टूट गया।वो शेषनाग कोई और नहीं साक्षात भेरूजी थे जो मुझे दर्शन देने के लिए आए थे।मैने उनको पहचान लिया।ये मेरे वो शिशोदा भेरू जी थे जिनसे मेरा परिचय 1998 में मेरे सुसराल से हुआ।जहां रही,वहां के हर देवता मेरे मित्र बने, ये बहुत अच्छा संजोग रहा।भेरू जी ने भी मेरे साथ कई लीलाएं करी और जब मैं सुसराल छोड़कर निकली तो उससे कुछ दिन पहले ही भेरू जी ने सपने में साक्षात दर्शन दिए जिसमे भेरू जी काले घोड़े पर बैठकर,पांव में घुंघरू पहने हुए थे और आकर मुझ पर गुलाल डाला और मुझे रंग से भर दिया और कहा कि,राधा।मैने तुझे अपने रंग में रंग लिया है,तुझ पर अब दुनिया का कोई रंग मुझसे दूर नही कर सकता।और उसी समय सपना टूट गया।एक बार फिर से भेरू जी शेषनाग का रूप करके मेरे किराए के फ्लैट में इतने साल बाद वापस मिलने आए।
मेरा मन अति प्रसन्न हो गया।एक के बाद एक देवी देवता अपने दर्शन देकर मुझे धन्य कर रहे थे।।चाहे दुनिया भले ही मेरे जीवन के सत्य को नही समझ रही थी,पर समस्त दैवीय शक्तियां मेरे साथ चल रही थीं।
45 वर्षों के इस जीवन सफर ने मुझे समाज और दुनिया की पहचान करवाई।मुझे अनुभव हुआ कि ये समाज केवल नकली और दिखावे का मात्र जाल है, जिसमें इंसान उलझता ही रहता है। इस नकली समाज में सत्य का कोई मान नहीं,सत्य की रक्षा ये समाज नहीं,केवल ईश्वर ही कर सकता है,इसलिए मैने सभी सामाजिक रिश्तों के साथ अपनी पहचान का त्याग कर दिया ,मैने समाज परिवार के हर तरह के उत्सव,समारोह,शोक सभा,इत्यादि सभी जगहों पर जाना छोड़ दिया जिसके कारण पूरा परिवार मेरे खिलाफ हो गया।सभी लोग मेरे इस फैसले से बहुत नाराज हुए।लेकिन मेरा ये फैसला मेरे अकेले का नही था,समस्त देवी देवता मेरे इस फैसले के साथ थे,मेरे जगत पति श्री कृष्ण इस फैसले में मेरे साथ थे,इसलिए मुझे किसी बात का डर नही था।।मैने निश्चय किया कि,अब से मैं मेरा समाज अलग बनाऊंगी जिसमे वो ही लोग शामिल होंगे जो सच्चे प्रेमी होंगेl
मैने निश्चय किया कि भविष्य में जो लोग मेरे जीवन के सत्य को समझेंगे वो ही मेरे रिश्तेदार होंगे।ईश्वर की कृपा से कई लोग मुझसे जुड़े रहे और कई पीछे छूट गए।जो छूट गए,उसका भी कोई गम नही रहा क्योंकि मैंने उन सभी के साथ इतने वर्ष अपना प्रेम बांटा।इसलिए मेरा प्रेम उन सभी के दिलो में हमेशा रहेगा,इस सच्चाई पर भरोसा था।
पता नहीं जैसे जैसे मोह रूपी ये दुनिया छुटती जा रही थी,अंदर से कुछ शक्ति महसूस होती जा रही थी।ऐसा लग रहा था मानो बरसो से किसी बेड़ियों से बंधी थी जिसको किसी ने काट दिया और मैं आजाद हो गई।कृष्ण की ऐसी लीला होती जा रही थी कि हर बंधन से मुक्त हो गई थी,केवल एक ही बंधन बचा था वो था प्रेम का बंधन जिसमे स्वयं ईश्वर ने मुझे बांध दिया था।और एक दिन उन्ही कृष्ण की कृपा से ऐसी रचना हुई कि अप्रैल 2022 में आखा तीज के दिन मैंने कृष्ण के गले में माला डालकर उन्हें अपना अमर पति स्वीकार कर लिया।तब से मैं श्री कृष्ण को ही अपना पति मानती हु और उन्ही के रंग में नाचती रहती हु।मनुष्य जीवन का मुख्य उद्देश्य मेरा पूरा हो गया था,इस बात की पूरी शांति और संतुष्टि मन में थी।ईश्वर का दर्शन ही मेरे जीवन का सच है जो मुझे प्राप्त हो चुका था।आत्मा और परमात्मा का ये मिलन मेरे जीवन भर की सबसे बड़ी उपलब्धि थी जिसने मेरा जन्म सफल कर दिया।राधा नाम को सार्थक कर दिया।प्रेम को प्रेम से मिला दिया।।
सांवरिया थारी माया रो पायो नही पार
थारो भेद नहीं जानियो रे दयालु दीनानाथ
कुछ समय बाद अगस्त 2022 को मेरी बहन ने अचानक वृंदावन जाने का प्रोग्राम बनाया और मुझे ये स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ जो जगत पति श्री कृष्ण के द्वारा दिया उपहार था मेरे लिए।वृंदावन की यात्रा बहुत ही अच्छी रही।सबसे बड़ा चमत्कार वृंदावन में ये रहा कि,जिस समय परिक्रमा शुरू करी थी, वहीं पर शनिदेव की बहुत बड़ी मूर्ति रखी हुई थी जो इतने समय पहले वहां नहीं थी।कृष्ण धाम की परिक्रमा से पहले शनिदेव के दर्शन मेरे जीवन में किसी चमत्कार से कम नहीं थे क्योंकि मेरा शनिदेव के साथ जीवन के प्रारंभ से ही बहुत गहरा रिश्ता है जो मैने अपने जीवन की पूरी कहानी में लिखा है।शनिदेव को परिक्रमा के शुरुवात में देखकर मैं इतनी खुश हो गई कि वहीं से अपने पांवों में घुंगरू बांधे और पूरी परिक्रमा घुंगरू पहनकर ही करी।उसके बाद कई जगहों पर हम घूमे,नृत्य किया और बहुत आनंद किया।मेरे पुत्र शुभम को मेरी बहन ने कृष्ण वेश धारण करके कृष्ण की लीलाएं करवाई। जब हम वापस वहां से लौट रहे थे तो रास्ते में बहुत से चमत्कार महसूस हुए और हमारी सबकी आंखों में आंसू थे। वहां के प्रेम के बारे में सुना था,पर उस दिन महसूस किया कि,कृष्ण और राधा का प्रेम वाकई में किसी को भी रुला देता है।पूरे रास्ते किशोरी जी का एक गाना चलता रहा और वो गाना हमारे सबके दिल में उतर गया।,
कई दिनों तक वहां की स्मृतियां मन में चलती रही।
कुछ दिनों बाद भगवान श्री कृष्ण ने एक और लीला करी जिससे मेरे संसारी पति को हमे मजबूरन फिर से अपने से दूर करना पड़ा क्योंकि वो न खुद खुश रहते थे,न घर चलाते और न ही हमे खुश रहने देते थे जिससे एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि, मैने और शुभम ने उन्हें अपने जीवन से अलग कर दिया और वो फिर से हमसे दूर हो गए।उन्होंने जीवन में किसी से भी प्रेम किया ही नहीं।बहुत बार उन्हें माफ करके अवसर दिए,लेकिन हर अवसर का उन्होंने दुरुपयोग किया,इसलिए अब मुझे मेरे मन पर पत्थर रखने पड़े क्योंकि सभी कोशिशों के बावजूद भी वो हमारे साथ कभी अच्छे से न रह पाए।इसलिए अब मुझे उन्हें त्यागना ही पड़ा।और वैसे भी अब श्री कृष्ण से पति का नाता जोड़ने के बाद मेरा मन अब संसारी पति के मोह जाल से छूट गया था।इस मोह जाल के कारण ही तो बरसो से इस नकली पति से बंधी हुई थी,अब उस बंधन से श्री कृष्ण ने मुक्त करवा दिया।शायद विधाता की यही इच्छा थी।
कुछ समय तक मन बैचेन रहता था लेकिन ईश्वर की कृपा से अब मैने ये मान लिया था कि संसार में हर इंसान अकेला ही पैदा होता है और अकेला ही मरता है,इसलिए जो छूट गया उसे भूल जाना ही आगे की यात्रा के लिए सही होगा।
अब तो आए दिन कृष्ण की कोई न कोई नई नई लीलाएं हो रही थी।स्वप्न में आ आकर कई देवी देवताए भी लीलाएं कर रहे थे।देवी देवताओं के प्रति बरसो से जो मेरा प्रेम था उसके बदले देवताओं ने मुझे अपने कुछ शस्त्र प्रदान किए , जैसे ,मोर पंखी,घुंघुरू,सांकल इत्यादि।
बार बार कुछ संकेत ऐसे मिल रहे थे जिससे मैने देवताओं के इन तीनो गहनों को पूजा स्थल में लाकर रखा।
और जब ये गहने आए थे तब भी कई तरह की चमत्कारिक लीलाएं हो रही थी जिसे मैं शब्दो में व्यक्त नहीं कर सकती।सबका अर्थ भी ईश्वर मुझे बताते जा रहे थे,लेकिन मैं किसी को ईश्वर की इन लीलाओं को समझा नही पा रही थी।बस महसूस करती जा रही थी।मैने अपने जीवन का हर सच अपने मित्रों,परिवार,अपने आस पास के लोगों को बताया।ईश्वरीय लीलाओं को,चमत्कारों को ,सबके बारे में मैने सबको अवगत कराया,पर इस संसार में लोगों को नकली बाते सुनने की ही रुचि रहती है,मेरे अपने ही लोग जिनसे बरसों तक मैने प्रेम किया,उनकी हर बातो को मैने ईमानदारी से सुना,आज वो ही लोग मेरे जीवन में हो रहे ईश्वरीय चमत्कारों पर विश्वास नहीं कर रहे थे,बल्कि श्री कृष्ण के प्रति मेरा जो रिश्ता बना,उसे मात्र मेरा डिप्रेशन समझ रहे थे,जबकि सच्चाई ये थी कि,मेरा 45 साल का ये सफर श्री कृष्ण तक पहुंचाने के लिए ही था।भगवान एक के बाद एक मेरे साथ लीलाएं कर रहे थे।मैं भी ईश्वर के आदेश के अनुसार आगे बढ़ती जा रही थी।अब मुझे हर इंसान में श्री कृष्ण और देवी देवताओं की छबि नजर आने लगी।जो मुझसे जुड़ रहा था,उसमे भी कृष्ण की लीला दिख रही थी और जो मुझसे छूट रहा था,उसमे भी श्री कृष्ण की ही लीला दिख रही थी। हर एक क्षण को मैने देवी देवताओं की लीला समझ ली और उनके संकेत से ही हर कार्य हो रहे थे।अब तो मैने अपने एक एक पल को ईश्वर की शरण में रख दिया।
जिस तरह भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा के प्रेम पर तीनो लोक वार दिए,उसी प्रकार ईश्वर ने मेरे प्रेम के बदले मुझे देवताओं के ये अनमोल गहने उपहार स्वरूप दिए ।
एक दिन मैंने नवग्रह देवता को अपने घर आमंत्रित किया।मैने अपने बेटे के कुछ मित्रो को खाने पर बुलाया और उन्हें ही देवता के रूप में माना।पहले 11 मित्र आने वाले थे,लेकिन ईश्वर की ये लीला हुई कि दो जने किसी कारण आ नही पाए,इसलिए पूरे 9 ही आए।ये 9 का आंकड़ा मुझे किसी चमत्कार से कम नहीं लग रहा था।सभी मित्रो ने भक्ति के रंग में अपना योगदान दिया और पास के ही एक हनुमान मंदिर में गए, वहां भजन गाए और दर्शन करके सभी घर आए।खाना खाकर सभी ने हनुमान चालीसा पढ़ी और भक्ति रंग में बहुत नृत्य किया।ऐसा लग रहा था मानो आकाश से सभी देवता मेरे आंगन में उतरे हो।मेरा मन बहुत प्रसन्न हो गया।
उसके दो दिन बाद ही फिर शनिदेव ने मुझे अपने साक्षात दर्शन देकर एक लोहे का तीन चाबियों वाला ताला देकर कहा कि,मैं तेरे लिए ये उपहार लाया हु।उनका वो ही काला रूप,बड़ी बड़ी काली मूंछें,पूरा काला पहनावा और पूरे शरीर पर लोहे की चाबियां ,लोहे की चेन और लोहे के चाकू ही चाकू लटक रहे थे।उनके इस रूप के दर्शन पाकर मैं धन्य हो गई।तीसरी बार शनिदेव के दर्शन पाकर मेरा जीवन सफल हो गया।
कुछ महीनो बाद अचानक फिर एक दिन सपने में पीपल के पेड़ का कुछ संकेत दिखा ,ऐसा लग रहा था ,जैसे शनिदेव मुझसे कह रहे हो कि,पीपल के पेड़ के नीचे मैं तेरा इंतजार कर रहा हु।उन्ही का संकेत पाकर 13 मई 2023 को शहर के पास ही गुलाब बाग के अंदर पीपल के पेड़ के नीचे शुभम के कुछ दोस्तो के साथ मैने शनिदेव की कथा का प्रोग्राम रखा।इस प्रोग्राम में एक से एक चमत्कार हुए जिसे शब्दों में बताया नही जा सकता,बस इतना कहूंगी कि इस पूरे प्रोग्राम में साक्षात सभी देवी देवता मौजूद थे।मेरे जीवन की पूरी कहानी देवी देवताओं की परीक्षाओं और उनकी असीम कृपा की एक किताब बन चुकी है ,क्योंकि जीवन का सबसे बड़ा धन प्रेम धन मुझे ईश्वर से प्राप्त हुआ।यही मेरे जीवन का सच है जिसे मेरा सच नाम देकर मैने अपने जीवन की 25 वर्षो की कहानी को शब्दो में उतारने का प्रयास किया जिसे लिखने में सभी देवी देवताओं ने मेरा साथ दिया।
25 वर्षो की अब तक की कहानी को 2023 में अपना 33 वा चरण समाप्त करके ईश्वर के चरणो में समर्पित करती हु।सत्यमेव जयते
मेरा सच कहानी के पात्र
- मुख्य भूमिका-हीरा बाई ( माँ )
हीरा बाई मेरी प्रथम गुरु मेरी माँ का नाम है।माँ की एक बच्चे के जीवन मे जितनी भूमिका होती है,उसे शब्दो मे व्यक्त करना मुश्किल है।जब से मैं इस दुनिया मे बोलना सीखी और समझने लगी तभी माँ ने मुझे भक्ति की राह दिखा दी।मेरी माँ को भगवान के भजन गाना,उन पर अटूट विश्वास करना,उन्हें महसूस करना,सब बहुत अच्छे से आता है।वो जहाँ भी सत्संग मे जाती,मुझे साथ लेकर जाती,इसलिए मुझे भगवान का सानिध्य बचपन से ही मिल गया।मेरी माँ बहुत मेहनती है,वो कभी खाली नही बैठती,अपने समय का भरपूर उपयोग करती है।उन्ही से मैंने मेहनत की प्रेरणा ली।जब हम भाई बहन छोटे थे,तब मम्मी लोगो के घर पानी भरते थे,
बचपन मे जब हम सब भाई बहन नवरात्रि का व्रत करते थे तो मम्मी इतनी चिंता करते थे कि व्रत के नो दिनों के लिए वो बहुत सारी तिल्ली और गुड़ को सेखकर हमारे लिए सेगार तैयार करके रख देती थी।
।और शाम को 4 बजे ही चूल्हा लगाकर हम सब भाई बहनों को एक जैसी पंक्ति मे बैठाकर गर्म गर्म परांठे बनाकर खिलाती थी।
।भले ही मम्मी मुझ पर बहुत सख्ती बरतती थी पर नवरात्रि मे उनका सारा प्यार मुझे नजर आ जाता था।
सख्त अनुशासन के साथ प्रेम के उस सामंजस्य का एक अलग ही मजा है। वो भोली बहुत है,वो किसी से दुश्मनी नही रखती यहाँ तक कि जो लोग उनके साथ गलत व्यवहार करते है,उनके घर भी वो खुशी खुशी चले जाते है।उनकी ये उदारता तो इतनी अनमोल है कि ये गुण तो मैं भी उनका नही सीख पाई।मेरी माँ जवाबदारी भी बहुत चतुराई से कर लेती है।दुनिया की परवाह किये बिना,अपने मन का करती है।दुनिया के गलत रीति रिवाजों के विरुद्ध भी बोल देती है।पापा के जाने के बाद भी दुनिया के गलत रीति रिवाजों को नकार कर एक सुहागिन की तरह ही रहती है,लोगो के कहने पर वो कड़ा जवाब भी दे देती है।पहले लोग बेटियों को आगे बढ़ने के लिए रोकते थे,लेकिन मेरी माँ ने हम बहनों को आगे बढ़ाने मे हमेशा साथ दिया।
एक बार की बात है,मेरी छोटी बहन जो हाथों की मेहंदी बनाने का काम करती है,एक बार वो किसी दुल्हन के मेहंदी बनाकर रात को 12 बजे घर आई थी,तो किसी पड़ोसी ने आकर मेरी माँ से कहा कि,आपकी बेटी इतनी देर तक बाहर रहती है,तो आप कुछ कहते नही।मेरी माँ ने तुरंत जवाब दिया कि,ये मेरी बेटी है,इसकी परवाह आपसे ज्यादा मुझे है,आप चिंता मत करो।माँ के इस जवाब से उस पड़ोसी की बोलती बंद हो गई।अगर उस दिन मेरी माँ पड़ोसी की परवाह करती तो आज मेरी बहन अपने काम मे कभी उपलब्धि हासिल नही कर पाती।मेरी माँ के इसी सपोर्ट के कारण आज मेरी बहन ,मेहंदी के लिए विदेश तक जाकर आ गई।मेरी माँ के सद्व्यवहार का हम सब भाई बहनों के जीवन मे बहुत योगदान रहाविशेषतौर पर मुझे भक्ति की राह दिखाकर मेरा तो जीवन ही सफल कर दिया।
तू कितनी अच्छी है,तू कितनी भोली है
प्यारी प्यारी है ओ माँ ,ओ माँ
- गणेश लाल जी ( पिताजी )
गणेश लाल जी मेरे पापा है।ये 2006 मे स्वर्ग सिधार गए थे,लेकिन हमें दुनिया के अनुभव सीखा कर गए ।
ये स्वभाव से बहुत उग्र थे,छोटी छोटी बातों पर ये बहुत क्रोधित हो जाते थे।इनके उसूल बहुत कड़े थे जिसके कारण घर का वातावरण हमेशा व्यवस्थित रहता था।घर मे हमेशा अनुशासन रहता था पर जहाँ एक और घर अनुशाषित रहता था तो दूसरी तरफ उनके आने पर एक सन्नाटा छाया रहता था।इतना डर कि कोई बोल ही नहीं सकता था।हालांकि वो हम सबसे बहुत प्रेम करते थे पर अपने उग्र स्वभाव के कारण वो अपने प्रेम को कभी जाहिर नहीं कर पाते थे।उनके मुँह से प्यार के दो शब्द सुनने के लिए हमारे कान हमेशा तरसते ही रहते थे।
वो बहुत मेहनती थे और ईमानदार तो इतने कि कभी अपनी नोकरी से छुट्टी नहीं लेते थे।सरकारी नोकरी होने के बावजूद भी कभी गलत फायदा नहीं उठाया।अपने माता पिता और भाई बहनों के लिए बचपन से कर्तव्य बद्ध थे।लेकिन दुर्भाग्य की बात ये थी कि अपने परिवार के लिये जी जान देने वाले को इन्ही के परिवार ने सबसे ज्यादा तकलीफें दी।फिर भी अपने अंत समय तक इन्होंने परिवार का कर्तव्य निभाया।वो हमेशा हम बच्चों को अच्छी अच्छी शिक्षाएं देते रहते थे,वो कहते थे कि जीवन मे हमेशा इंसान को अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलना चाहिए और उसूलों का पक्का होना चाहिए
वो हम सब भाई बहनों को कक्षा मे हमेशा अव्वल देखना चाहते थे और उनके डर के कारण मैं और मेरा भाई पप्पू,हम दोनों बहुत पढ़ाई करते थे और कक्षा मे हमेशा अच्छे नंबर ही लाते थे,लेकिन फिर भी वो कभी तारीफ नहीं करते थे।वो हम सबका इतना ध्यान रखते थे कि कम आमदनी के होते हुए भी हमारी हर जरूरते पूरी करते थे।खुद दो ड्रेस मे ही कई साल निकाल देते थे लेकिन हमें हर चीज दिलाते थे।कोई त्यौहार हो या मेला,हर उत्सव पर मिठाइयां या खिलौने एडवांस मे लाकर रख देते थे।हर साल हरियाली अमावस के मेले मे लेकर जाते थे,उस दिन के लिए पापा अपनी नोकरी से जल्दी आ जाते थे।जब हम नानी के घर रहने जाते तो उतने दिन के लिए खाने के लिए टोस्ट,बिस्किट,हमारी दवाइयां सब साथ मे दे देते थे,क्योंकि उनको पता था कि वहाँ गावँ मे कुछ नहीं मिलेगा तो मेरे बच्चे परेशान न हो।एक तरफ वो हमारी हर आवश्यकता पूरी करते थे तो दूसरी तरफ हर काम सिखाकर हमें मजबूत भी बनाते थे।हर साल दिवाली की छुट्टियों पर गावँ लेकर जाते और साथ साथ मे खेत का काम भी सिखाते थे।किताबें भी साथ लेकर जाते ताकि पढ़ाई का भी नुकसान न हो।उनकी कुछ सिखाई हुई बाते हम इतने बरसो बाद भी नहीं भूल पाए।वो कहते थे कि जीवन मे इंसान को व्यवस्थित होना चाहिए।उसमे चाहे वो वस्तुओं की व्यवस्था हो,चाहे वो काम की व्यवस्था हो हो,चाहे वो समय की व्यवस्था हो।एक व्यवस्थित आदमी जीवन मे कभी धोखा नही खा सकता।अगर हम घर की हो या ऑफिस की,हर वस्तु को उसकी निश्चियत जगह पर रखेंगे तो समय बर्बाद नहीं होगा और समय बर्बाद नहीं होगा तो मन अशांत नहीं होगा।काम को जहाँ का जहाँ निपटा देंगे तो वो फैलेगा नहीं और फैलेगा नहीं तो हम थकेंगे नहीं और ज्यादा से ज्यादा काम कर सकेंगे।वो कहते थे कि चीजों को घर मे इस तरह से रखो कि अंधेरे मे भी हाथ घुमाओ तो चीज मिल जाये।उनके इन तरीकों को अपनाकर हम सब भाई बहन इतने व्यवस्थित हो गए है कि आज भी हम सब भाई बहन अपनी हर वस्तु जहाँ की जहाँ रखते है।बाहर से आते ही गाड़ी की चाबी पहले उसकी जगह पर रखकर ही अगला काम करते है।घर से निकलने पर दो दो बार गेस की टंकी चेक करते है।हर कमरे के पंखे लाइट चेक करते है।नल चेक करते है कि कही से पानी तो नहीं टपक रहा है।सब चेक करने के बाद ही घर से निकलते है।अगर कहीं सफर मे जा रहे है तो अपने सामान का बार बार ध्यान रखते है,विशेषतौर से जो बहुत जरूरी हो।उनकी इसी सीख की वजह से मैं आज भी अपना पर्स हर जगह पर बार बार संभालती हु,चेक करती हूं कि कहीं कोई चाबी या मोबाइल छूट तो नहीं गया,यहाँ तक कि अपने पर्स को कभी गाड़ी की डिक्की मे भी छोड़ कर नहीं आती।मेरे पापा कहते थे एक लापरवाही कई नुकसान करा देती है,इसलिए ये सब जो नहीं करते है,वो लापरवाह इंसान होते है।आज भी उनके ये वाक्य मेरे दिमाग मे इस तरह घूमते है जैसे अभी भी पापा हमें वो ही बाते सीखा रहे है। उस समय उनका इस तरह का कठोरपन हमे बहुत अखरता था,पर आज हमें ये अहसास होता है कि अगर हमारे पापा ने हमे मजबूत न बनाया होता तो आज हम अपने जीवन मे इतनी मेहनत न कर पाते।उनकी कठोरता ने हमें एक चट्टान बना दिया जिसके कारण आज हम अपने जीवन मे हर मुसीबत से लड़ पा रहे है।आज पापा हमारे बीच नहीं है,लेकिन उनके आदेश और उनकी सीख आज भी जीवंत बनकर हमे उनके होने का अहसास कराते है।
धन्य है पापा आप
सत्यम शिवम सुंदरम
ये स्वभाव से बहुत उग्र थे,छोटी छोटी बातों पर ये बहुत क्रोधित हो जाते थे।इनके उसूल बहुत कड़े थे जिसके कारण घर का वातावरण हमेशा व्यवस्थित रहता था।घर मे हमेशा अनुशासन रहता था पर जहाँ एक और घर अनुशाषित रहता था तो दूसरी तरफ उनके आने पर एक सन्नाटा छाया रहता था।इतना डर कि कोई बोल ही नहीं सकता था।हालांकि वो हम सबसे बहुत प्रेम करते थे पर अपने उग्र स्वभाव के कारण वो अपने प्रेम को कभी जाहिर नहीं कर पाते थे।उनके मुँह से प्यार के दो शब्द सुनने के लिए हमारे कान हमेशा तरसते ही रहते थे।
वो बहुत मेहनती थे और ईमानदार तो इतने कि कभी अपनी नोकरी से छुट्टी नहीं लेते थे।सरकारी नोकरी होने के बावजूद भी कभी गलत फायदा नहीं उठाया।अपने माता पिता और भाई बहनों के लिए बचपन से कर्तव्य बद्ध थे।लेकिन दुर्भाग्य की बात ये थी कि अपने परिवार के लिये जी जान देने वाले को इन्ही के परिवार ने सबसे ज्यादा तकलीफें दी।फिर भी अपने अंत समय तक इन्होंने परिवार का कर्तव्य निभाया।वो हमेशा हम बच्चों को अच्छी अच्छी शिक्षाएं देते रहते थे,वो कहते थे कि जीवन मे हमेशा इंसान को अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलना चाहिए और उसूलों का पक्का होना चाहिए
वो हम सब भाई बहनों को कक्षा मे हमेशा अव्वल देखना चाहते थे और उनके डर के कारण मैं और मेरा भाई पप्पू,हम दोनों बहुत पढ़ाई करते थे और कक्षा मे हमेशा अच्छे नंबर ही लाते थे,लेकिन फिर भी वो कभी तारीफ नहीं करते थे।वो हम सबका इतना ध्यान रखते थे कि कम आमदनी के होते हुए भी हमारी हर जरूरते पूरी करते थे।खुद दो ड्रेस मे ही कई साल निकाल देते थे लेकिन हमें हर चीज दिलाते थे।कोई त्यौहार हो या मेला,हर उत्सव पर मिठाइयां या खिलौने एडवांस मे लाकर रख देते थे।हर साल हरियाली अमावस के मेले मे लेकर जाते थे,उस दिन के लिए पापा अपनी नोकरी से जल्दी आ जाते थे।जब हम नानी के घर रहने जाते तो उतने दिन के लिए खाने के लिए टोस्ट,बिस्किट,हमारी दवाइयां सब साथ मे दे देते थे,क्योंकि उनको पता था कि वहाँ गावँ मे कुछ नहीं मिलेगा तो मेरे बच्चे परेशान न हो।एक तरफ वो हमारी हर आवश्यकता पूरी करते थे तो दूसरी तरफ हर काम सिखाकर हमें मजबूत भी बनाते थे।हर साल दिवाली की छुट्टियों पर गावँ लेकर जाते और साथ साथ मे खेत का काम भी सिखाते थे।किताबें भी साथ लेकर जाते ताकि पढ़ाई का भी नुकसान न हो।उनकी कुछ सिखाई हुई बाते हम इतने बरसो बाद भी नहीं भूल पाए।वो कहते थे कि जीवन मे इंसान को व्यवस्थित होना चाहिए।उसमे चाहे वो वस्तुओं की व्यवस्था हो,चाहे वो काम की व्यवस्था हो हो,चाहे वो समय की व्यवस्था हो।एक व्यवस्थित आदमी जीवन मे कभी धोखा नही खा सकता।अगर हम घर की हो या ऑफिस की,हर वस्तु को उसकी निश्चियत जगह पर रखेंगे तो समय बर्बाद नहीं होगा और समय बर्बाद नहीं होगा तो मन अशांत नहीं होगा।काम को जहाँ का जहाँ निपटा देंगे तो वो फैलेगा नहीं और फैलेगा नहीं तो हम थकेंगे नहीं और ज्यादा से ज्यादा काम कर सकेंगे।वो कहते थे कि चीजों को घर मे इस तरह से रखो कि अंधेरे मे भी हाथ घुमाओ तो चीज मिल जाये।उनके इन तरीकों को अपनाकर हम सब भाई बहन इतने व्यवस्थित हो गए है कि आज भी हम सब भाई बहन अपनी हर वस्तु जहाँ की जहाँ रखते है।बाहर से आते ही गाड़ी की चाबी पहले उसकी जगह पर रखकर ही अगला काम करते है।घर से निकलने पर दो दो बार गेस की टंकी चेक करते है।हर कमरे के पंखे लाइट चेक करते है।नल चेक करते है कि कही से पानी तो नहीं टपक रहा है।सब चेक करने के बाद ही घर से निकलते है।अगर कहीं सफर मे जा रहे है तो अपने सामान का बार बार ध्यान रखते है,विशेषतौर से जो बहुत जरूरी हो।उनकी इसी सीख की वजह से मैं आज भी अपना पर्स हर जगह पर बार बार संभालती हु,चेक करती हूं कि कहीं कोई चाबी या मोबाइल छूट तो नहीं गया,यहाँ तक कि अपने पर्स को कभी गाड़ी की डिक्की मे भी छोड़ कर नहीं आती।मेरे पापा कहते थे एक लापरवाही कई नुकसान करा देती है,इसलिए ये सब जो नहीं करते है,वो लापरवाह इंसान होते है।आज भी उनके ये वाक्य मेरे दिमाग मे इस तरह घूमते है जैसे अभी भी पापा हमें वो ही बाते सीखा रहे है। उस समय उनका इस तरह का कठोरपन हमे बहुत अखरता था,पर आज हमें ये अहसास होता है कि अगर हमारे पापा ने हमे मजबूत न बनाया होता तो आज हम अपने जीवन मे इतनी मेहनत न कर पाते।उनकी कठोरता ने हमें एक चट्टान बना दिया जिसके कारण आज हम अपने जीवन मे हर मुसीबत से लड़ पा रहे है।आज पापा हमारे बीच नहीं है,लेकिन उनके आदेश और उनकी सीख आज भी जीवंत बनकर हमे उनके होने का अहसास कराते है।
धन्य है पापा आप
सत्यम शिवम सुंदरम
- आखरी हँसी ( पापा की यादें )
20 मई 2005 का वो दिन -
जीवन मे सबसे पहली बार पापा को खुश देखा था उस दिन जब मेरी दोनो छोटी बहनों की शादी हुई थी।किसको पता था कि ये हंसी पापा की आखरी हंसी होगी।20 मई के दिन मेरी बहनों का लेडीज़ संगीत था।घर के बाहर ही टेंट लगाकर प्रोग्राम किया था लेकिन इतना बढ़िया प्रोग्राम आज तक हम कभी वापस नहीं देख पाए।मेरे पापा के मुंह पर हंसी आना बहुत ही असम्भव था,लेकिन उस दिन हमारे सभी पड़ोसियों ने पापा को कंधे पर उठाकर बहुत नचाया और बहुत हंसी मजाके करी।शायद समय को ये पता चल गया था कि ये उनके जीवन की आखरी हंसी होगी,इसलिए समय ने उस दिन उनको दिल खोलकर हंसायामम्मी पापा पहली बार एक साथ मे इतने आनंदित होकर नाचे थे,फिर जीवन मे वो क्षण कभी नहीं आया।
जो पापा अब तक हर एक चीज के लिए इतना कंट्रोल करते थे,आज मेरी बहनों की हर इच्छा ऐसे पूरी कर रहे थे जैसे वो जानते थे कि मैं अब कभी अपने बच्चो के लिए कुछ न कर पाऊंगा।शादी मे हर एक छोटी से छोटी चीज के लिए वो दिल खोलकर खर्च कर रहे थे।फ़ैशन के मामलों मे वो शुरू से ही गुस्सा करते थे,लेकिन आज मेरी बहनों की हर बात आसानी से मान रहे थे।मेरी बहनों की हर इच्छा को मानकर बड़ी धूमधाम से शादी करवाई।
मेरी सबसे छोटी बहन इंद्रा से तो वो इतना प्यार करते थे कि पहली बार उनको इतना रोते हुए हमने देखा था,जब उनकी विदाई हो रही थी।जिस दिन मेरी बहनों की विदाई हुई थी,उस दिन पूरा दिन पापा रोते रहे और ये कह रहे थे कि,मैंने अपनी बेटियों को बहुत दूर भेज दिया है।
किसको पता था कि एक दिन बेटियों को दूर भेजने का गम मनाने वाले पापा खुद ही सबको छोड़कर बहुत दूर चले जायेंगे।
विधाता की लीला कोई नहीं जानता कि आज की खुशी कितनी देर रहने वाली है।जो पल खुशी के बिताए ,उनको वापस बिताने का मौका ही नहीं मिला।
पापा की इच्छा थी कि उनकी कोई संतान कभी दूर न जाये।ईश्वर ने ऐसे सच्चे इंसान की इच्छा को पूरा किया और आज उनकी कोई संतान दूर नहीं है।अपने पापा के आस पास ही रहती है,फर्क इतना है कि उनका शरीर अदृश्य हो गया है,आत्मा आज भी पूरे परिवार मे बसती है,जिसे हर कोई महसूस कर सकता है
सत्यम शिवम सुंदरम
हमारी प्यारी नानी भी इस दृश्य मे अंतिम बार देखी गई,उसके बाद इन बहनों की शादी के 3 महीने बाद ही वो भी स्वर्ग सिधार गई।शायद अपनी इन दोहितो को आशीर्वाद देने के लिए ही रुकी थी।
बेटी घर बाबुल की,किसी और की अमानत हैछोड़ घर बाबुल का,तुझे घर पिया का सजाना है
पापा मैं छोटी से बड़ी हो गई,पापा की निगाहों मे ,ममता की छावं मे
कुछ दिन और रहती तो क्या बिगड़ जाता
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बाबुल तेरे आँगन की मैं तो एक चिड़िया हु,रात भर बसेरा है,सुबह उड़ जाना है
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धन धन लीला हो पापा थानी जयजय हो
जब जब जन्म लेवा,आप ही वणों पिता बारम्बार
दुनिया के सभी पिता पुत्रियों को समर्पित
- वरदा जी एवं लाली बाई ( नाना - नानी ) ( प्रेम की मिसाल )
वरदा जी मेरे नाना जी और लाली बाई मेरी नानी जी है।इन दोनों के बारे मे तो क्या कहूं, प्रेम के सागर थे ये।मेरे नाना जी पिपलाज माता जी के परम भक्त थे,बचपन से लेकर मरने तक इन्होंने अपने पैरों मे कभी जूते नहीं पहने।इनके तीन बेटियां ही है,बेटा नहीं है,लेकिन फिर भी उस जमाने मे जहाँ लड़को के लिए लोग तरसते थे,तब भी इन्होनें कभी अपने मन पर नकारात्मकता का भाव नहीं आने दिया।लोगो के कहने पर भी शान से कहते थे कि कौन कहता है मेरे बेटा नहीं है,मेरे एक नही तीन बेटे है।जो बेटियां है,वो ही मेरे बेटे है।और वाकई मे जैसा वो कहते थे,वैसा ही हुआ।तीनो बेटियों ने जो अपने माँ बाप को कभी बेटे की कमी महसूस ही नहीं होने दी।शादी के बाद भी तीनो बेटियों ने अपने माँ बाप को कभी अकेला नहीं छोड़ा।बारी बारी से तीनों बेटियां माता पिता को संभालती रही,शायद ये मेरे नानाजी की सकारात्मक सोच का ही परिणाम थी।उनकी वाणी मे इतना तेज था कि बीमार आदमी भी उनके सामने जाता और वो कह देते कि अभी ठीक हो जाएगा तो वो उसी समय ठीक हो जाता था।उनके सामने बड़ी से बड़ी समस्या मैंने हल होते हुए अपनी आंखों से देखी है।इसलिए आये दिन लोग अपनी परेशानियां लेकर उनके पास आते थे।वो आधी रात मे भी लोगो की परेशानियां हल करने उनके घर चले जाते थे।अगर गाँव मे किसी की गाय या भैंस भी बीमार हो जाती और नाना जी जाकर उसके ऊपर हाथ घुमाते तो वो तुरंत ठीक हो जाती और घास खाने लग जाती।ये सब उनकी भक्ति और विश्वास का ही चमत्कार था।
नानी जी भी बहुत प्यारी थी।नानी जी भोली तो थी ही साथ ही शर्मीली इतनी थी कि कभी अपना चेहरा किसी को नहीं दिखाती थी।वो अधिकतर घूंघट मे ही रहती थी।हम बच्चे भी उनकी शक्ल कभी कभार देख पाते थे,लेकिन गाँव के कई लोगो ने तो उनकी शक्ल जीवन भर नही देखी।जब उनका अंतिम संस्कार हुआ था,तब लोगो ने उनका चेहरा देखा था।उनकी बोली मे इतनी मिठास थी कि कोई भी उनका दीवाना हो जाता।बड़ो से लेकर बच्चे तक से वो बहुत प्यार से बात करती थी।जब हम नवरात्रि मे नाना के यहाँ जाते थे तो नानी जी कई दिनों पहले से ही हमारे आने की तैयारिया करती थी,आंगन को गोबर और मिट्टी से लिपकर रखती थी।
एक छोटा सा केलू का कमरा था,जिसमे हम 15 से 20 जने नवरात्रि मे रहते थे।नानी जी हम सबको चिमनी के उजाले मे ही खाना बनाकर खिलाती थी,फिर पूरी पूरी रात जाग जाग कर हमें चादर ओढाती रहती और ध्यान रखती रहती थी।1999 मे जब मेरा बेटा हुआ तो मेरी नानी जी मेरे पास रहने के लिए आई थी,उन दिनों मेरे बी ए सेकंड ईयर की परीक्षा चल रही थी और मेरा बेटा मात्र 15 दिन का ही था।वो रात भर बहुत रोता था और मुझे पढ़ना होता था,इसलिए मेरे नानी रात भर उसको गोदी ले लेकर उसको चुप कराते रहते थे,पर कभी उन्होंने गुस्सा नहीं किया।रात मे बार बार जागने के बावजूद भी वो इतने प्यार से बोलती थी कि जैसे उन्हें कुछ करना ही नहीं पड़ रहा हो।मेरे नाना और नानी दोनो ही गावँ की शोभा थे।वो जब इस दुनिया से गये तो उनको जलाया नहीं, बल्कि उनके घर के पास ही उन्हीं के खेत मे उनको दफनाया गयाऔर आज दोनो की समाधि बनी हुई है,ओर ये काम उनकी तीनों बेटियों ने किया।सारा समाज जहाँ उनके मरण पर जोर जोर से दिखावे और रिवाजो का रोना रो रहा था वहीं उनकी तीनो बेटियां अपने दिल पर पत्थर रखकर,धैर्य के साथ अपने माता पिता को भजन गा कर विदा कर रही थी,क्योंकि मेरे नाना जी ने तीनों बेटियों से वचन लिया था कि उनके मरने पर कोई आंसू न बहाए,इसलिए तीनो बेटियों ने अपने पिता के वचनों का पालन किया।उस जमाने मे जहाँ लोग बेटे के लिए तरसते थे,वहाँ मेरे नाना नानी ने अपनी तीनो बेटियों को बेटा मानकर जो अद्धभुत उदहारण दिया,उसके लिए शब्द नहीं है मेरे पास।और इन तीनो बेटियों ने भी जो फर्ज निभाया अपने माता पिता के लिए वो बेटो से कहीं ज्यादा निभाया।
मेरे नाना जी की कही गई कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात खत्म करती हूं-------
एक छोटा सा केलू का कमरा था,जिसमे हम 15 से 20 जने नवरात्रि मे रहते थे।नानी जी हम सबको चिमनी के उजाले मे ही खाना बनाकर खिलाती थी,फिर पूरी पूरी रात जाग जाग कर हमें चादर ओढाती रहती और ध्यान रखती रहती थी।1999 मे जब मेरा बेटा हुआ तो मेरी नानी जी मेरे पास रहने के लिए आई थी,उन दिनों मेरे बी ए सेकंड ईयर की परीक्षा चल रही थी और मेरा बेटा मात्र 15 दिन का ही था।वो रात भर बहुत रोता था और मुझे पढ़ना होता था,इसलिए मेरे नानी रात भर उसको गोदी ले लेकर उसको चुप कराते रहते थे,पर कभी उन्होंने गुस्सा नहीं किया।रात मे बार बार जागने के बावजूद भी वो इतने प्यार से बोलती थी कि जैसे उन्हें कुछ करना ही नहीं पड़ रहा हो।मेरे नाना और नानी दोनो ही गावँ की शोभा थे।वो जब इस दुनिया से गये तो उनको जलाया नहीं, बल्कि उनके घर के पास ही उन्हीं के खेत मे उनको दफनाया गयाऔर आज दोनो की समाधि बनी हुई है,ओर ये काम उनकी तीनों बेटियों ने किया।सारा समाज जहाँ उनके मरण पर जोर जोर से दिखावे और रिवाजो का रोना रो रहा था वहीं उनकी तीनो बेटियां अपने दिल पर पत्थर रखकर,धैर्य के साथ अपने माता पिता को भजन गा कर विदा कर रही थी,क्योंकि मेरे नाना जी ने तीनों बेटियों से वचन लिया था कि उनके मरने पर कोई आंसू न बहाए,इसलिए तीनो बेटियों ने अपने पिता के वचनों का पालन किया।उस जमाने मे जहाँ लोग बेटे के लिए तरसते थे,वहाँ मेरे नाना नानी ने अपनी तीनो बेटियों को बेटा मानकर जो अद्धभुत उदहारण दिया,उसके लिए शब्द नहीं है मेरे पास।और इन तीनो बेटियों ने भी जो फर्ज निभाया अपने माता पिता के लिए वो बेटो से कहीं ज्यादा निभाया।
जरूरी नहीं की एक पुत्र ही वंश को आगे बढ़ाता है,अगर ऐसी पुत्रिया हो तो केवल वंश ही आगे नहीं बढ़ता बल्कि उस वंश को इतिहास के पन्नो पर ऐसे लिख दिया जाता है ,कि फिर कभी उस वंश का अंत ही नहीं होता,फिर चाहे कोई बेटा पैदा हो या ना हो।उस वंश का नाम ही अमर हो जाता है।
उस जमाने मे मेरे नानाजी की इस सोच को मैं शत शत प्रणाम करती हूं ,जो समाज के उन लोगो के लिए एक उदाहरण है,जो आज भी बेटो के लिए तरसते है।
धन्य है मेरे नाना नानी और उनकी बेटियाँ। मेरे नाना जी की कही गई कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात खत्म करती हूं-------
गया फूल थारी रह गई रे वासना
रह गयो रे अमर नाम
- सोवनी मासी
सोना देवी
ये हीरा देवी की बड़ी बहन यानी मेरी बड़ी मासी है।दोनो बहनों का जैसा नाम है,वैसी ही इनकी जोड़ी है।जिस तरह सोना और हीरा का साथ है उसी तरह इनका साथ है।ये बहने कम, और सहेली ज्यादा है।जहाँ जाती दोनो साथ जाती,और अपने माता पिता के लिए इन दोनों बहनों ने जो किया,वो शायद बेटे भी नही कर पाते।दोनों मे इतना प्रेम कि एक डांटती है तो दूसरी चुप हो जाती है।आज तक ये दोनों कभी एक दूसरे से नाराज नहीं हुई।
मेरी सोना मासी का मेरे जीवन मे बहुत महत्व रहा है।ये पिपलाज माता की भक्त है और माता जी की बहुत सेवा करती है, इसलिए इनकी वाणी मे एक शक्ति सी महसूस होती है।ये जिस किसी को दिल से आशीर्वाद देती है,कभी विफल नहीं जाता।मेरे जीवन मे इनके आशीर्वाद ने अब तक बहुत चमत्कार किये,बल्कि कई बार मैंने इनको देवी मां के रूप मे देखा है।जब मुझे स्कूटी चलानी नही आती थी,तब तीन बार मेरे सपने मे ये मुझे स्कूटी चलाना सिखाती हैऔर वो सपना मेरा उसी साल पूरा हुआ।
इनके आशीर्वाद का मेरे जीवन पर बहुत फर्क पड़ा,हालांकि मेरे कठोर उसूल और सच्चाई का रास्ता कई बार इनको अच्छा नही लगता था,क्योंकि समाज और दुनिया का इन्हें भय बहुत है,पर दिल से इन्हें मुझ पर विश्वास था कि मेरा रास्ता सही है और ईश्वर मेरे साथ है।शायद इनके इसी विश्वास के कारण मै अपने जीवन की राह पर अब तक चल पा रही हु
विश्वास मे वो ताकत है जो असंभव को भी सम्भव कर देती है।
सत्यमेव जयते
ये हीरा देवी की बड़ी बहन यानी मेरी बड़ी मासी है।दोनो बहनों का जैसा नाम है,वैसी ही इनकी जोड़ी है।जिस तरह सोना और हीरा का साथ है उसी तरह इनका साथ है।ये बहने कम, और सहेली ज्यादा है।जहाँ जाती दोनो साथ जाती,और अपने माता पिता के लिए इन दोनों बहनों ने जो किया,वो शायद बेटे भी नही कर पाते।दोनों मे इतना प्रेम कि एक डांटती है तो दूसरी चुप हो जाती है।आज तक ये दोनों कभी एक दूसरे से नाराज नहीं हुई।
मेरी सोना मासी का मेरे जीवन मे बहुत महत्व रहा है।ये पिपलाज माता की भक्त है और माता जी की बहुत सेवा करती है, इसलिए इनकी वाणी मे एक शक्ति सी महसूस होती है।ये जिस किसी को दिल से आशीर्वाद देती है,कभी विफल नहीं जाता।मेरे जीवन मे इनके आशीर्वाद ने अब तक बहुत चमत्कार किये,बल्कि कई बार मैंने इनको देवी मां के रूप मे देखा है।जब मुझे स्कूटी चलानी नही आती थी,तब तीन बार मेरे सपने मे ये मुझे स्कूटी चलाना सिखाती हैऔर वो सपना मेरा उसी साल पूरा हुआ।
इनके आशीर्वाद का मेरे जीवन पर बहुत फर्क पड़ा,हालांकि मेरे कठोर उसूल और सच्चाई का रास्ता कई बार इनको अच्छा नही लगता था,क्योंकि समाज और दुनिया का इन्हें भय बहुत है,पर दिल से इन्हें मुझ पर विश्वास था कि मेरा रास्ता सही है और ईश्वर मेरे साथ है।शायद इनके इसी विश्वास के कारण मै अपने जीवन की राह पर अब तक चल पा रही हु
विश्वास मे वो ताकत है जो असंभव को भी सम्भव कर देती है।
सत्यमेव जयते
- नाती मासी
ये मेरी छोटी मासी है।ये बचपन से मुझे बहुत प्यार करती है।जब मैं छोटी थी,तब इनकी शादी भी नही हुई थी।मैं गर्मी की छुट्टियों मे ननिहाल जाती तो नाती मासी ही मुझे नहलाती,खाना खिलाती,मुझे गोदी मे लेकर घूमती थीं। मैं इनके बिल्कुल चुपककर ही रहती।
बहुत समय बाद मुझे धीरे धीरे समझ आने लगा कि लड़की को शादी के बाद सुसराल जाना पड़ता है।फिर मैंने धीरे धीरे मासी से मोह कम किया।लेकिन मेरे दिल मे मासी के लिए जो प्यार था वो आज भी है और हमेशा रहेगा।
सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था,आज भी है और कल भी रहेगा। सत्यम शिवम सुंदरम
- प्रकाश (भाई)
प्रकाश मेरा छोटा भाई है,ये मुझसे दो साल ही छोटा है,इसलिए बचपन से ही हम एक दूसरे के बहुत साथ रहे।एक ही कक्षा मे पढ़े, इसलिए कक्षा की,स्कूल की हर बात एक दूसरे से शेयर करते थे।लड़ते भी बहुत थे,पर एक दूसरे से बोले बिना नहीं रहते थे।जब हम स्कूल जाते थे तो घर से ही अपने भाई प्रकाश का हाथ पकड़कर स्कूल तक जाती थी,यहाँ तक कि कक्षा मे भी उसका हाथ नहीं छोड़ती थी।कई बार टीचर मजबूरन हमे एक दूसरे से दूर बिठाती थी,लेकिन हम फिर दूसरे दिन साथ मे बैठ जाते थे।हम दोनों भाई बहनों की स्कूल मे भी एक पहचान बन गई थी।क्योंकि स्कूल के हर एक्टिविटी मे हम दोनों भाग लेते थे।वाद विवाद प्रतियोगिता मे हम दोनों भाई बहन एक दूसरे के विपक्ष मे खड़े होते थे।कभी वो जीत जाता तो कभी मैं जीत जाती ।
हम दोनों भाई बहनों मे जहाँ एक दूसरे से इतना गहरा प्यार है,वहीं दूसरी ओर हमारी विचारधारा एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत है।और इसी विपरीत विचारधारा के कारण हम असल जीवन मे भी वाद विवाद करते रहते है।और स्कूल की वाद विवाद प्रतियोगिता की तरह ही आज भी कभी उसकी बात जीत जाती है तो कभी मेरी।विपरीत आचरण और विपरीत विचारधारा के बावजूद भी हमारा प्रेम कभी कम नहीं हुआ।मेरी शादी के बाद जब मेरे जीवन मे परेशानिया आई तो मेरे भाई को बहुत तकलीफ होती थी।वो हमेशा कोशिस करता कि मैं कैसे भी करके खुश रहूं, लेकिन मेरे भाग्य को वो भी कैसे बदल सकता था।वो हमेशा से ही मेरी मदद करने की हर संभव कोशिश करता था,पर मेरा स्वाभिमान मुझे किसी की मदद लेने के लिए मना करता था।मेरी हमेशा से ही यही कोशिश रही है कि मैं अपने जीवन की हर परिस्थिति का अकेले ही सामना करूँ, किसी से मदद लिए बिना अपनी मदद खुद करूँ, और इसी वजह से अपने प्रिय भाई से कभी मदद न ले पाई।पर उसकी मेरे प्रति जो सहानुभूति थी,वो एक शक्ति बनकर,एक अदृश्य मदद बनकर हमेशा मेरे साथ रही।जीवन के उतार चढ़ाव मे कई बार परिस्थितियों ने हमे दूर करने की कोशिश करी,पर कहते है सच्चा प्रेम कभी किसी को दूर नहीं कर सकता।हम दोनों भाई बहनों का प्रेम अंतरात्मा से है,जो हमेशा अमर रहेगा।
मेरा भाई बहुत ही मेहनती है,जिसने अपनी कड़ी मेहनत से अपना एक घर बनाया,जिसका नाम पिपलाज विला रखा ,जो हमारी पिपलाज माता जी के नाम पर रखा गया।
इन्ही पिपलाज माता जी के कारण ही हम दोनों भाई बहनों मे अब तक प्रेम बना रहा।
प्रकाश को प्रेम से हम सब पप्पू के नाम से ही बुलाते है।पप्पू को मेरे पापा की तरह ही परिवार को साथ लेकर चलने मे बहुत खुशी होती है,इसीलिए वो पूरे परिवार का ध्यान रखता है।हर रविवार को समय निकालकर दादी जी से मिलने गाँव जाता है,उनके आवश्यकता की चीजें देकर आता है,उनकी खुशलमंगल पूछ कर आता है।इतना ही नहीं अभी 2018 मे दादी जी के लिए गाँव मे नया मकान बनवाया।मेरी एक छोटी बहन को अपना एक घर दे दिया,हम तीनों बहनों के बच्चों को वो बहुत प्यार करता है ।हम तीनों बहनों के बच्चे भी मामा से बहुत प्यार करते है।मेरा बच्चा जब चौथी क्लास मे था तब एक दिन अचानक उसको मार्केट ले गया और जब वापस घर आया तो एक नई साईकल के साथ आया।
मेरे बेटे ने पहली बार साईकल चलाई और वो भी मामा की दी हुई उपहार स्वरूप साईकल।उसके बाद 2017 मे जब मेरा बेटा18 साल का पूरा ही हुआ था और फिर मेरे भाई पप्पू ने उसके जन्म दिन पर बाइक उपहार मे दी।वो दिन बहुत ही अविस्मरणीय दिन था।
17 फरवरी 2017 का दिन था।उस दिन मेरे बच्चे का जन्म दिन था।16 फरवरी की रात को 12 बजे अचानक दरवाजे की घंटी बजी।मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि मेरे सभी भाई बहन शुभम को हैप्पी बर्थडे बोलते हुए एकदम से अंदर आये।शुभम कंप्यूटर पर उसका कुछ काम कर रहा था,अचानक वो भी चोंक गया।मेरे भाई ने एक अद्धभुत सरप्राइज दिया। उसके हाथ मे एक बड़ा सा कार्टून का बक्सा था,जिसमे सरप्राइज गिफ्ट था।शुभम के साथ उस बॉक्स की पैकिंग खुलवाई ।उस बॉक्स की पैकिंग इतनी अलग थी कि एक के बाद एक बक्सा उसमे से निकल रहा था लेकिन मैं और शुभम समझ ही नही पा रहे थे आखिर इस बक्से मे क्या उपहार हो सकता है।कम से कम 7 या 8 बक्से के बाद अंत मे बहुत सारे फलों के साथ एक छोटी सी डिब्बी थीउस डब्बी को खोलने के लिए सबने उसकी आँखों पर पहले पट्टी बांधी और फिर सब जने उसको मेरे अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर पर लेकर गए।वहाँ जाकर देखा तो एक बाइक पर चद्दर से ढंक रखा थाफिर अचानक शुभम उस डब्बी को खोलता है तो उसमें बाइक की चाबी होती है।और उसकी आँखों के सामने बहुत सारे गुब्बारे लगी हुई बाइक होती है,जिसे देखकर मेरे और शुभम की आंखों मे आंसू आ गए,और मेरे सभी भाई बहन,उनके बच्चे सब भावुक होकर रोने लगे।मेरे भाई ने इतना बड़ा सरप्राइज जो दिया था।फिर सबने बारी बारी से बाइक पर बैठकर फ़ोटो खींचवायेऔर फिर पूरी रात सबने बाते करी,एन्जॉय किया।अगले दिन 17 फरवरी को पूरे दिन उसी बाइक को लेकर कई जगह दर्शन किये और शाम को होटल मे खाना खाया।ये दिन हम सब भाई बहनों के लिए बहुत ही खुशी वाला दिन था,विशेषतौर पर मेरे भाई पप्पू और शुभम के लिए तो बहुत ही खास दिन था,क्योंकि उपहार देने वाला और लेने वाला दोनो को जो खुशी होती है वो बहुत ही अनमोल होती है।
मामा का जो प्यार था वो प्यार पप्पू ने बहुत ही खूबसूरती से निभाया था।
इसी तरह प्रकाश यानी पप्पू ने पूरे परिवार के साथ निभाया।मेरा एक छोटा भाई जो मुझसे 15 साल छोटा है,पापा के जाने के बाद 14 साल से मेरा भाई पप्पू उसको अपने पुत्र की तरह ही रखता हैउसको पढ़ाया,उसका पालन किया,उसकी आवश्यकता की हर वस्तु उसको उपलब्ध करता है।और मेरी मम्मी को भी हर तरह से अच्छा रखता है,उनका ध्यान रखता है।
19 अप्रेल 2019 को उसने मेरे छोटे भाई अरुण की शादी बहुत ही धूमधाम से करी, और पापा का अधूरा सपना पूरा करके अपने कर्तव्य का पालन किया।उसने अपना कर्तव्य निभाने मे किसी प्रकार की कमी नहीं रखी और बहुत खुशी से इस कार्य को पूरा किया।
पर कहते है एक खुशी के साथ एक गम जुड़ा होता है,इस शादी के एक महीने बाद ही पप्पू के ऑफिस को बरसों से संभाल रही एक कार्यकर्ता मेडम का आकस्मिक दुर्घटना मे देहांत हो गया।इस घटना ने मेरे भाई को पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया क्योंकि वो मेडम केवल एक कार्यकर्ता ही नहीं थी बल्कि इतनी ईमानदार ,वफादार और सच्ची थी जिसने प्रकाश के ऑफिस को अपने ऑफिस की तरह रखा,वहाँ के हर कार्य को पूजा समझ कर किया।
इस घटना के बाद मेरे भाई प्रकाश के चेहरे की खुशी ही गायब हो गई जिसका हमारे पूरे परिवार पर असर पड़ा क्योंकि उसके चेहरे की रौनक ही हमारे परिवार की असली दौलत है ।
कहने को वो मेडम एक ऑफिस मे कार्य करने वाली कार्यकर्ता ही थी पर जरूरी नहीं कि रिश्ता केवल खून का हो या किसी रिश्ते मे बंधा हुआ हो।इस दुनिया मे हर अच्छा प्राणी चाहे वो पशु पक्षी ही क्यों न हो,उससे लगाव होना स्वभाविक है।और यही कारण था कि उन मेडम का स्वभाव बहुत ही अच्छा और हँसमुख था और अपने कार्य के प्रति इतनी जागरूकता हर किसी को अपना दीवाना बना देता है।
उन मेडम की जो कमी है,वो हमारा पूरा परिवार जीवन भर उसे महसूस करेगा,उन्हें याद करेगा।
बस ईश्वर से यही दुआ है कि मेरे भाई को जीवन मे हर कठिन पल को लड़ने की हिम्मत मिले और खुशी खुशी ईश्वर के फैसले को स्वीकार करके आगे बढ़े।
मेरे भाई प्रकाश का मेरे साथ शायद कई जन्मों का रिश्ता रहा इसीलिए उसका दुःख मुझे बिल्कुल बरदाश्त नहीं होता,उसकी खुशी ही मुझे सुकून देती है।
सत्यम शिवम सुंदरम
हम दोनों भाई बहनों मे जहाँ एक दूसरे से इतना गहरा प्यार है,वहीं दूसरी ओर हमारी विचारधारा एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत है।और इसी विपरीत विचारधारा के कारण हम असल जीवन मे भी वाद विवाद करते रहते है।और स्कूल की वाद विवाद प्रतियोगिता की तरह ही आज भी कभी उसकी बात जीत जाती है तो कभी मेरी।विपरीत आचरण और विपरीत विचारधारा के बावजूद भी हमारा प्रेम कभी कम नहीं हुआ।मेरी शादी के बाद जब मेरे जीवन मे परेशानिया आई तो मेरे भाई को बहुत तकलीफ होती थी।वो हमेशा कोशिस करता कि मैं कैसे भी करके खुश रहूं, लेकिन मेरे भाग्य को वो भी कैसे बदल सकता था।वो हमेशा से ही मेरी मदद करने की हर संभव कोशिश करता था,पर मेरा स्वाभिमान मुझे किसी की मदद लेने के लिए मना करता था।मेरी हमेशा से ही यही कोशिश रही है कि मैं अपने जीवन की हर परिस्थिति का अकेले ही सामना करूँ, किसी से मदद लिए बिना अपनी मदद खुद करूँ, और इसी वजह से अपने प्रिय भाई से कभी मदद न ले पाई।पर उसकी मेरे प्रति जो सहानुभूति थी,वो एक शक्ति बनकर,एक अदृश्य मदद बनकर हमेशा मेरे साथ रही।जीवन के उतार चढ़ाव मे कई बार परिस्थितियों ने हमे दूर करने की कोशिश करी,पर कहते है सच्चा प्रेम कभी किसी को दूर नहीं कर सकता।हम दोनों भाई बहनों का प्रेम अंतरात्मा से है,जो हमेशा अमर रहेगा।
मेरा भाई बहुत ही मेहनती है,जिसने अपनी कड़ी मेहनत से अपना एक घर बनाया,जिसका नाम पिपलाज विला रखा ,जो हमारी पिपलाज माता जी के नाम पर रखा गया।
इन्ही पिपलाज माता जी के कारण ही हम दोनों भाई बहनों मे अब तक प्रेम बना रहा।
प्रकाश को प्रेम से हम सब पप्पू के नाम से ही बुलाते है।पप्पू को मेरे पापा की तरह ही परिवार को साथ लेकर चलने मे बहुत खुशी होती है,इसीलिए वो पूरे परिवार का ध्यान रखता है।हर रविवार को समय निकालकर दादी जी से मिलने गाँव जाता है,उनके आवश्यकता की चीजें देकर आता है,उनकी खुशलमंगल पूछ कर आता है।इतना ही नहीं अभी 2018 मे दादी जी के लिए गाँव मे नया मकान बनवाया।मेरी एक छोटी बहन को अपना एक घर दे दिया,हम तीनों बहनों के बच्चों को वो बहुत प्यार करता है ।हम तीनों बहनों के बच्चे भी मामा से बहुत प्यार करते है।मेरा बच्चा जब चौथी क्लास मे था तब एक दिन अचानक उसको मार्केट ले गया और जब वापस घर आया तो एक नई साईकल के साथ आया।
17 फरवरी 2017 का दिन था।उस दिन मेरे बच्चे का जन्म दिन था।16 फरवरी की रात को 12 बजे अचानक दरवाजे की घंटी बजी।मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि मेरे सभी भाई बहन शुभम को हैप्पी बर्थडे बोलते हुए एकदम से अंदर आये।शुभम कंप्यूटर पर उसका कुछ काम कर रहा था,अचानक वो भी चोंक गया।मेरे भाई ने एक अद्धभुत सरप्राइज दिया। उसके हाथ मे एक बड़ा सा कार्टून का बक्सा था,जिसमे सरप्राइज गिफ्ट था।शुभम के साथ उस बॉक्स की पैकिंग खुलवाई ।उस बॉक्स की पैकिंग इतनी अलग थी कि एक के बाद एक बक्सा उसमे से निकल रहा था लेकिन मैं और शुभम समझ ही नही पा रहे थे आखिर इस बक्से मे क्या उपहार हो सकता है।कम से कम 7 या 8 बक्से के बाद अंत मे बहुत सारे फलों के साथ एक छोटी सी डिब्बी थीउस डब्बी को खोलने के लिए सबने उसकी आँखों पर पहले पट्टी बांधी और फिर सब जने उसको मेरे अपार्टमेंट के ग्राउंड फ्लोर पर लेकर गए।वहाँ जाकर देखा तो एक बाइक पर चद्दर से ढंक रखा थाफिर अचानक शुभम उस डब्बी को खोलता है तो उसमें बाइक की चाबी होती है।और उसकी आँखों के सामने बहुत सारे गुब्बारे लगी हुई बाइक होती है,जिसे देखकर मेरे और शुभम की आंखों मे आंसू आ गए,और मेरे सभी भाई बहन,उनके बच्चे सब भावुक होकर रोने लगे।मेरे भाई ने इतना बड़ा सरप्राइज जो दिया था।फिर सबने बारी बारी से बाइक पर बैठकर फ़ोटो खींचवायेऔर फिर पूरी रात सबने बाते करी,एन्जॉय किया।अगले दिन 17 फरवरी को पूरे दिन उसी बाइक को लेकर कई जगह दर्शन किये और शाम को होटल मे खाना खाया।ये दिन हम सब भाई बहनों के लिए बहुत ही खुशी वाला दिन था,विशेषतौर पर मेरे भाई पप्पू और शुभम के लिए तो बहुत ही खास दिन था,क्योंकि उपहार देने वाला और लेने वाला दोनो को जो खुशी होती है वो बहुत ही अनमोल होती है।
मामा का जो प्यार था वो प्यार पप्पू ने बहुत ही खूबसूरती से निभाया था।
इसी तरह प्रकाश यानी पप्पू ने पूरे परिवार के साथ निभाया।मेरा एक छोटा भाई जो मुझसे 15 साल छोटा है,पापा के जाने के बाद 14 साल से मेरा भाई पप्पू उसको अपने पुत्र की तरह ही रखता हैउसको पढ़ाया,उसका पालन किया,उसकी आवश्यकता की हर वस्तु उसको उपलब्ध करता है।और मेरी मम्मी को भी हर तरह से अच्छा रखता है,उनका ध्यान रखता है।
19 अप्रेल 2019 को उसने मेरे छोटे भाई अरुण की शादी बहुत ही धूमधाम से करी, और पापा का अधूरा सपना पूरा करके अपने कर्तव्य का पालन किया।उसने अपना कर्तव्य निभाने मे किसी प्रकार की कमी नहीं रखी और बहुत खुशी से इस कार्य को पूरा किया।
पर कहते है एक खुशी के साथ एक गम जुड़ा होता है,इस शादी के एक महीने बाद ही पप्पू के ऑफिस को बरसों से संभाल रही एक कार्यकर्ता मेडम का आकस्मिक दुर्घटना मे देहांत हो गया।इस घटना ने मेरे भाई को पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया क्योंकि वो मेडम केवल एक कार्यकर्ता ही नहीं थी बल्कि इतनी ईमानदार ,वफादार और सच्ची थी जिसने प्रकाश के ऑफिस को अपने ऑफिस की तरह रखा,वहाँ के हर कार्य को पूजा समझ कर किया।
इस घटना के बाद मेरे भाई प्रकाश के चेहरे की खुशी ही गायब हो गई जिसका हमारे पूरे परिवार पर असर पड़ा क्योंकि उसके चेहरे की रौनक ही हमारे परिवार की असली दौलत है ।
कहने को वो मेडम एक ऑफिस मे कार्य करने वाली कार्यकर्ता ही थी पर जरूरी नहीं कि रिश्ता केवल खून का हो या किसी रिश्ते मे बंधा हुआ हो।इस दुनिया मे हर अच्छा प्राणी चाहे वो पशु पक्षी ही क्यों न हो,उससे लगाव होना स्वभाविक है।और यही कारण था कि उन मेडम का स्वभाव बहुत ही अच्छा और हँसमुख था और अपने कार्य के प्रति इतनी जागरूकता हर किसी को अपना दीवाना बना देता है।
उन मेडम की जो कमी है,वो हमारा पूरा परिवार जीवन भर उसे महसूस करेगा,उन्हें याद करेगा।
बस ईश्वर से यही दुआ है कि मेरे भाई को जीवन मे हर कठिन पल को लड़ने की हिम्मत मिले और खुशी खुशी ईश्वर के फैसले को स्वीकार करके आगे बढ़े।
मेरे भाई प्रकाश का मेरे साथ शायद कई जन्मों का रिश्ता रहा इसीलिए उसका दुःख मुझे बिल्कुल बरदाश्त नहीं होता,उसकी खुशी ही मुझे सुकून देती है।
सत्यम शिवम सुंदरम
- प्रकाश ( पप्पू ) ( Birthday special )
24 मई 1980 के दिन की बात है।पप्पू की मम्मी को दिन मे तीन चार बजे के करीब आम खाने का मन करा,क्योंकि वो गर्भवती थी तो उसकी इच्छा पूरी करने के लिए पप्पू के पापा बाजार से आम खरीदने गए और पीछे से साहब पप्पू जी इस दुनिया मे पधारे।पप्पू के पापा जब आम लेकर घर आये तो आस पड़ोस की औरते पप्पू के पापा को घेर कर खड़ी हो गई और बधाई देती हुई मिठाई की मांग करने लगी और कहने लगी कि लड़के का जन्म हुआ है।पप्पू के पापा आश्चर्य से भर गए कि अभी तो वो आम ख़रीदने गए और इतनी जल्दी कैसे बच्चा हो सकता है,लेकिन यही सत्य था।
पप्पू के आने की खुशी से पूरे परिवार का वातावरण आनंदमय हो गया था क्योंकि परिवार का पहला पुत्र जो था।वैसे भी उस जमाने मे पुत्र के होने पर बहुत ही खुशी होती थी।पप्पू के नाना नानी तो इतने खुश हुए जैसे उनकी बरसों की इच्छा पूरी हो गई हो क्योंकि उनके स्वयं के कोई पुत्र नहीं था और अपनी पुत्री के पुत्र होने पर उनकी भी इच्छा पूरी हो गई।
फिर क्या था,अब तो पप्पू पूरे परिवार का लाड़ला बन गया।पप्पू के पापा तो पप्पू को अपनी आंखों से ओझल ही नहीं होने देते थे यहाँ तक कि जब पप्पू की मम्मी पप्पू को उसकी नानी के यहाँ लेकर जाती तो भी वो चिंतित हो जाते।एक बार पप्पू की मम्मी उसके नाना नानी के गावँ पप्पू को लेकर गई लेकिन उसी दौरान अत्यधिक गर्मी के कारण पप्पू के सिर मे बहुत बड़ा फोड़ा हो गया और वो पक गया।जब पप्पू की मम्मी वापस अपने घर आई तो पप्पू के पापा ने पप्पू की मम्मी से बहुत लड़ाई करी जबकि इसमें पप्पू की मम्मी का कोई दोष नहीं था।दोष तो पप्पू के पापा का भी नहीं था,क्योंकि वो पप्पू को प्यार भी इतना करते थे कि उसकी छोटी सी तकलीफ भी वो बर्दास्त नहीं कर पाते थे।उसके बाद तो पप्पू की मम्मी इतना डर गई कि कई महीनों तक वो अपने पियर नहीं गई।
धीरे धीरे पप्पू 4 साल का हुआ और उसको बड़ी बहन राधा के साथ एक प्राइवेट स्कूल मे भर्ती करवाया।दोनो भाई बहन एक ही कक्षा मे पढ़ने लगे।राधा की पूरी ज़िमेदारी होती थी कि अगर पप्पू को किसी प्रकार की खरोंच भी आ जाती तो पापा की पिटाई उसी को पड़ती थी,इसलिए वो अपने भाई का कक्षा मे भी हाथ नहीं छोड़ती थी।दोनो भाई बहनों मे प्रेम भी इतना था कि टीचर जब हाजरी लेते थे तो केवल एक के नाम लेने पर बोलते ही नहीं थे।एक दिन टीचर ने राधा को डांटा कि तुम कक्षा मे उपस्थित हो,फिर भी हाजरी क्यों नही बोलती हो।राधा ने अत्यंत भोलेपन से कहा कि,मेरे भाई का नाम तो लिया ही नहीं तो मैं कैसे बोलू,और यही जवाब पप्पू का भी था कि मेरी बहन का नाम तो आया ही नहीं
कुछ दिन बाद टीचर स्वयं दोनो भाई बहनों का नाम एक साथ बोलकर हाजरी भरते थे तब जाकर दोनो अपनी हाजरी देते थे।दोनो भाई बहन पढ़ने मे बहुत होशियार थे,इसलिए धीरे धीरे वो स्कूल के हर टीचर के फेवरेट बनते जा रहे थे।स्कूल के हर छोटे से छोटे प्रोग्राम मे दोनो भाई बहन साथ साथ हिस्सा लेते थे।इस तरह 4 साल तक लगातार दोनो भाई बहन एक ही कक्षा में पढ़ते रहे और जब कक्षा 2 मे आये तब उनके पापा ने राधा को बड़ी होने के नाते प्रधानाध्यापक जी से बात करके एक कक्षा आगे बढ़ा दिया और यहाँ दोनो भाई बहन पढ़ाई मे एक दूसरे से दूर हो गए।कुछ दिन दोनो अपनी कक्षा मे एक दूसरे की कमी महसूस करने लगे ,फिर धीरे धीरे आदत हो गई।
लेकिन फिर भी दोनो स्कूल मे अपना नाम कमा रहे थे।संगीत,वादविवाद,भाषण,खेलकूद,निबंध प्रतियोगिता,और भी बहुत सी चीजो मे दोनो हिस्सा लेते रहे।एक बार एक वाद विवाद प्रतियोगिता मे दोनो ने पक्ष और विपक्ष मे खड़े होकर हिंदी और अंग्रेजी दोनो विषयो पर वाद विवाद किया।दोनो मे इतनी गहरी प्रतिस्पर्धा हुई कि एक विषय मे राधा ने प्रतियोगिता जीती तो दूसरे विषय मे पप्पू ने प्रतियोगिता जीती।पूरा स्कूल भी हैरान था कि ये दोनों भाई बहन हर जगह अपनी एक जगह बना लेते है,ये सब उनके पापा के संस्कारो का ही प्रभाव था।कक्षा 6 तक तो राधा अपने भाई पप्पू के साथ एक ही स्कूल मे पढ़ती रही लेकिन उसके बाद दोनों के स्कूल अलग हो गए।धीरे धीरे विचारधाराएं भी बदलती गई,पढ़ाई का तरीका भी बदलता गया,लेकिन फिर भी दोनो अपने अपने स्कूल की दिनचर्या को रोज आपस मे शेयर करते रहते थे।
नटखट इतना था कि रात को बिस्तर मे छुपाकर कुछ खाता रहता था,उसके दाँत की कड़कड़ाहट से राधा को पता चलता थालेकिन पूछने पर कहता कि कुछ नहीं है,ऐसे ही दाँत बजा रहा हु।
जैसे जैसे बड़ा होता गया,उसकी शैतानियां भी बढ़ती गई।पूरे दिन दोस्तो के साथ खेलना,मस्ती करना,अपनी मम्मी को तंग करना, ये सब उसके रोज का क्रम बन गया था।लेकिन जैसे ही शाम होती और उसके पापा के आने के समय मासूम बनकर बैठ जाता।अपनी मम्मी को तो इतना पटा कर रखता कि ,लाख तंग करने के बाद भी अपनी मीठी वाणी से मम्मी को भी जीत लेता।
लेकिन कई बार तो उसकी मम्मी उसकी शैतानियों से बहुत परेशान हो जाती थी।एक बार जब वो बहुत शैतानियां कर रहा था तो उसकी मम्मी ने उसको पीटने के लिए जैसे ही लकड़ी उठाई और वो घर के आंगन मे लगे नीम के पेड़ पर चढ़ गया।उसकी मम्मी के गुस्से की आग भी इतनी तेज थी कि मम्मी ने जोर से उस लकड़ी को पप्पू की और फेंका।पप्पू ने अपने आप को बचाने के लिए जैसे ही हाथ सामने की ओर किये कि उस लकड़ी का सीधा निशाना पप्पू के हाथ पर पड़ा और पप्पू रोता हुआ पेड़ से नीचे आ गिरा।उसकी मम्मी का गुस्सा पल मे ही पानी पानी हो गयाऔर अपने रोते हुए बच्चे को अपने गले से लगा लिया और हाथ पर बार बार तेल गरम कर करके लगाया और उसकी मम्मी ने अपनी अश्रु धारा से सारा प्रेम पप्पू पर उड़ेल दिया।
दिन गुजरते गए और पप्पू दसवीं मे आ गया और अब उसकी शैतानियों ने भी विराम ले लिया था।वो अपनी पढ़ाई के प्रति सिंसियर हो गया।अपनी पूरी मेहनत और लगन से 10 वी कक्षा बहुत ही अच्छे नंबर से पास हो गया और अपने पापा का सपना पूरा किया।
पढ़ाई के साथ साथ उसे घर के कई कार्यो मे भी दिलचस्पी थी।वो घर की सफाई भी करता था।घर की कुछ सजावट की चीजें भी बनाता था।
एक बार 10 वी के बाद उसे कुछ काम करने की इच्छा हुई तो उसने किसी अखबार वाले से बात करी और अखबार डालने का कार्य किया।जब मन पर कुछ करने का जुनून सवार होता है तो इंसान कुछ भी कर सकता है।जो पप्पू अब तक घंटो सोया करता था,वो सुबह 4 बजे उठकर अखबार डालने का कार्य करने लगा।साईकल तो उसने बहुत पहले ही सीख ली थी।पापा के ड्यूटी जाने के बाद पापा की साईकल चलाता था।शुरू मे जब उसके पैर साईकल पर पूरे नहीं आते थे तो वो कैंची मारके साईकल चलाता था।
उसके पापा रोज चाबी छुपाकर जाते और वो रोज चाबी ढूंढ लेता था।
इस तरह कुछ दिन अखबार डाले,पर फिर रोज रोज इतनी सुबह जाने के कारण पप्पू के पापा ने अखबार का काम बंद करवा दिया।लेकिन पप्पू को चेन नहीं था।उसके दिमाग मे हर पल एक नया सपना चलता रहता था।कुछ समय बाद उसने एक हेयर कटिंग की दुकान पर बाल काटने का भी कार्य सीखा।बाल काटने का कार्य सीखने के बाद एक एसटीडी की दुकान पर भी काम किया।पढ़ाई के साथ वो काम भी करता गया।क्रिकेट का भी बहुत शौक था तो कई बार अपने दोस्तों से साथ क्रिकेट भी खेलने जाता था,फिर भी इन सब चीजों का उसकी पढ़ाई पर कोई नुकसान नहीं हुआ।वो अपनी पढ़ाई भी अच्छे से करता था।कहते है कि जिसको गागर मे सागर भरना आ गया वो कुछ भी कर सकता है,पप्पू का दिमाग भी वैसा ही था,जो भी पढ़ता था पूरे मन से पढ़ता था।
इस तरह करते करते उसने 12 वी कक्षा भी उत्तीर्ण कर ली,और कॉलेज मे आ गया।अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ साथ वो कई बच्चो को ट्यूशन भी पढ़ाने जाता था।समय गुजरता गया।पप्पू की बहन राधा की भी शादी हो गई और कुछ साल बाद पप्पू की भी शादी हो गई।
शादी के बाद पप्पू ने एक बीएसएनल आफिस मे नोकरी करी और वहाँ अपनी पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाह किया
सपनों के पूरा होने के साथ ही कुछ शक्तियां भी अपना कार्य करके संसार से प्रस्थान कर गई।यही विधाता की लीला है।यही जीवन का अटल सत्य है।
सब कुछ बदल जाता है,जीवन मे एक जगह आकर एक ठहराव सा आ जाता है।फिर भी समय कभी नहीं रुकताएक और नई सुबह होती है और फिर से जीवन के नए चक्र हमारे सामने खड़े होते है,और उसी समय के आधीन होकर इंसान फिर से चलने लगता है।
फिर से नई उम्मीद के साथ,नए सपनों के साथ,अविचल झरनों की तरह।
- इंद्रा ( मेरी छोटी बहन )
छोटी सी प्यारी सी नन्ही सी आई कोई परी, पालने मे ऐसे ही झूलती रहेगाते मुस्कुराते संगीत की तरह,ये तो लगे रामा के गीत की तरह।
हाँ जी ,ये मैं उसी परी की ही बात कर रही हु जो गणेश लाल जी और हीरा बाई के घर मे जन्मी है।आज से 33 साल पहले की बात है।12 अप्रेल 1986 का दिन था।हम तीनो भाई बहन बाहर खेल रहे थे।शाम की करीबन 4 बजे हमारे घर हमारे एक भुआजी आये थे।मम्मी की तबियत ठीक नही थी।पापा भी घर पर थे।पापा बार बार हमें बाहर खेलने के लिए भगा रहे थे।मुझे कुछ आशंका लग रही थी कि आखिर पापा क्यो हम भाई बहनों को बाहर भगा रहे हैं पर फिर भी कुछ समझ नही आ रहा था।वो भुआ जी मम्मी से मिलने कमरे मे गए और बहुत देर तक मम्मी के साथ कमरे मे ही थे और पापा बाहर ही थे।मुझे डर लग रहा था कि आखिर हो क्या रहा है।करीबन घंटे भर बाद पापा ने मुझे आवाज लगाई।मैं घर के अंदर गई तो भुआ जी कमरे से बाहर आये और मुझे उन्होंने पानी गर्म करने के लिए बोला।मैंने पानी गर्म किया और फिर मुझे अंदर कमरे मे बुलाया।मैं अंदर कमरे मे गई तो मेरी आँखें उस दृश्य को देखकर स्तम्भ सी रह गई।मैंने देखा कि फर्श पर एक छोटी सी लड़की लेटी हुई थी और मम्मी एक कोने मे लेटे हुए थे।मैं बस उन दोनों को देख रही थी।कभी मम्मी की तरफ तो कभी उस बच्ची की तरफ।समझ मे नही आ रहा था कि आखिर हमारे घर मे ये बच्ची कहाँ से आई।उन भुआजी ने वापस मुझे कमरे से बाहर भगा दिया।मै वापस बाहर खेलने चली गई और अपने दूसरे भाई बहन को भी ये बात बताई कि हमारे कमरे मे एक छोटी सी बच्ची आई है।कुछ देर बाद वो भुआ जी चले गए।मैं कमरे मे गई और मम्मी से पूछा कि ये लड़की कौन है और यहाँ कैसे आई तो मम्मी ने बताया कि ये भुआ जी लाये है और तेरी छोटी बहन है।पर मैं मम्मी की बात से संतुष्ट नही हो पाई ,लेकिन जब पापा मम्मी से बात कर रहे थे कि मुझे तो लड़के की आशा थी और वापस लड़की हो गई।पापा ने जैसे ही लड़की होने वाली बात कहकर निराशा प्रकट करी और मुझे धीरे धीरे समझ मे आने लगा कि ये लड़की भगवान के घर से आई है ।लेकिन जिस लड़की के लिए पापा मम्मी इतनी निराशा प्रकट कर रहे थे वो ही आगे चलकर परिवार के नाम को रोशन करेगीये कोई नही जानता था।जिसका दुनिया तिरस्कार करती है उसे ईश्वर सम्मान दिलाता है यही उस कृपा निधान भगवान का रहस्य है।
इंद्रा शुरू से ही बहुत ही चंचल और हर कार्य मे होशियार थी।बचपन से ही तैयार होना,अच्छी अच्छी बातें करना उसे बखूबी आता था।जिस इंद्रा के होने पर पापा निराशा प्रकट कर रहे थे वो ही पापा की सबसे लाड़ली बन रही थी।पापा हम चारो भाई बहन मे से सबसे अधिक प्यार इसको ही करते थे।उसके लिए रोज खाने का कुछ न कुछ लेकर ही घर आते थे।रोज रात को तरह तरह के खेल से उसका मनोरंजन करते थे।कभी उसको पांवो पर खड़ा करके करतब करते थे तो कभी हवा मे उछाल कर हाथ मे झेलते ।अब तो ये रोज का क्रम बन गया था।हम तीनों भाई बहन को जहाँ इतना डांटते थे वहीं हमारे हिस्से का सारा प्यार वो ही पा रही थी।उसकी हर हरकत पापा को अच्छी लगती थी।वो अपनी ड्यूटी करके जैसे ही घर आते,आते ही बस पहले उसी को ढूंढते थे।जब पापा नोकरी जाते तो वो तब तक by by करते रहते थे जब तक वो इंद्रा की आँखों से ओझल नहीं हो पाते थे।जितना प्यार पापा करते थे ,मम्मी भी उससे इतना ही प्रेम करती थी,औरयही कारण था कि जब हम गर्मी की छुट्टियों मे ननिहाल जाते थे तो मम्मी पापा कभी उसको हमारे साथ नहीं भेजते थे।मैं भी अपनी बहन इंद्रा से इतना प्यार करती थी किजब हम दो महीनों की छुट्टियो से वापस आते थे तो उसको आते ही दूर से ही दौड़ कर उसे अपने सीने से ऐसे लगातीमानो बरसो से बिछ्ड़ी हुई बहन मिली हो ।वो हम सब भाई बहनों की भी लाड़ली रही।वो शुरू से ही अपनी वाकपटुता से सबको अपना बना लेती हैऔर बात को मनवाना तो उसे बखूभी आता हैं।वो जिद्दी भी बहुत है पर उसकी ज़िद कोई न माने ये तो बहुत ही कम होता है।हाँ इतने पर भी मेरा कठोर अनुशासन हमेशा उसके ऊपर अधिकार की तरह हावी रहता था,और इसी कारण बचपन से ही जहाँ मैं उससे अपार प्यार करती थी उतना ही मैं उसके ऊपर अपना पूरा अधिकार भी रखती थी।उसका स्वभाव बहुत उग्र है,फिर भी वो दिल की बहुत ही सच्ची है और शायद इसी कारण अपनी उग्रता दिखाने के बाद भी पानी के बुलबुले की तरह क्षण भर मे ही क्षमायाचना करके शांत हो जाती हैरोना तो जैसे उसके पास समुंदर की तरह भरा पड़ा है।एक बार की बात है जब इंद्रा कक्षा 5 मे पढ़ती थी।स्कूल मे एक टीचर बहुत ही सख्त स्वभाव की थी।उसके डर के कारण इंद्रा एक बार स्कूल से भाग गई।वो डरते डरते चलती गई,चलती गई और इतनी चली कि वो घर का रास्ता भूलकर कहीं और जगह पहुंच गई।जब काफी दूर तक जाने के बाद भी घर न मिला तो वो रोने लग गई।उसके रोने की आवाज सुनकर एक अनजान औरत ने उसे दिलासा दी और घर का पता पूछकर उसे हमारे घर तक सही सलामत पहुंचा दिया।वो औरत ओर कोई नही हो सकती वो पिपलाज माता ही थी।
ये जब 6 या 7 साल की थी तभी मेहंदी बनाना,पेंटिंग करना,रंगोली बनाना, डांस करनाऔर भी बहुत चीजे सीख ली थी।मेहंदी का तो इतना जुनून था कि हर किसी को बुला बुला कर मेहंदी बनाती थी औरउसके इसी जुनून ने उसको बरसो बाद विदेश तक पहुंचा दिया।सच्चे मन से किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं जाता,उसका फल बरसो बाद मिलता है पर मिलता जरूर है।
इंद्रा को सजने सवरने का भी बहुत शौक है।खुद तो सजती है पर साथ मे सबको भी संवारती है।उसका जीवन हमेशा सजता रहे,सँवरता रहे।यही उसके जन्म दिन की सार्थकता
बार बार दिन ये आये,बार बार दिन ये आये
तुम जियो हजारो साल
ये मेरी है आरजू
- भगवती ( बहन )
ये मेरी मौसी की लड़की है,जो बचपन से मेरे साथ गर्मी की छुट्टियों मे नाना नानी के यहाँ रहने आती थी।इससे मैं बचपन से ही बहुत प्रेम करती हूं।
एक बार गर्मी की छुट्टियों मे भगवती किसी कारणवश नाना नानी के यहाँ रहने नहीं आई तो मेरा मन बहुत दुःखी हुआ।मैं रोज ननिहाल मे पिपलाज माता जी के मंदिर मे जाकर रोती और प्रार्थना करती कि मेरी भगवती को मेरे पास भेज दो।उस समय कोई फ़ोन के साधन नहीं थे कि उससे सूचना दे दी जाए।इसलिए एक दूसरे के साथ समाचार भेज देते थे।मेरे नानी जी ने मुझे दुःखी देखकर कई लोगो के साथ भगवती के गावँ समाचार भेजे पर उसके दादाजी ने उसे ननिहाल जाने के लिए मना कर दिया।मैं रोज उसकी याद मे रोती
।एक दिन की बात है।मैं नानी के साथ खेत पर जा रही थी कि रास्ते मे उसी गावँ की कोई औरत जो मेरी मौसी के गावँ मोड़ी जा रही थी।जैसे ही उसने नानी को कहा कि कोई समाचार कहना हो तो बताओ,मैं मोड़ी जा रही हु और मैने अपनी नानी से उस औरत के साथ जाने के लिए ज़िद पकड़ ली।नानी ने बहुत समझाया कि वो गावँ बहुत दूर है और ये पैदल जा रही है। कोई बस भी नहीं है,इसलिये हम वहाँ नहीं जा सकते,पर फिर भी मैं नहीं मानी और वहीं रास्ते मे ही रोने लग गई और उस औरत से हाथ जोड़कर विनती करने लगी कि मुझे भी अपने साथ ले चलो।मुझे मेरी भगवती को लेने जाना है।मुझे उससे मिलना है।उस औरत को मुझ पर दया आ गई और उसने मेरी नानी से कहा कि इसको मेरे साथ भेज दो।
मैं इसको भगवती से मिलाकर कल वापस साथ मे ले आउंगी।मेरी जिद के आगे नानी हार गई और उसने डरते डरते मुझे उस औरत के साथ भेज दिया।मैं उस औरत के साथ बिना किसी हिचक के,इतना दूर तक कैसे पैदल चल गई मुझे पता भी न चला।जबकि मेरी मौसी का गावँ मेरे ननिहाल से दूर था।वहाँ से हम सुबह से पैदल निकले तो शाम को भगवती के घर पहुंच पाएं।प्यार कितना शक्तिशाली होता है ,वो मुझे उस समय पता चला जब मैं भगवती से मिलने की धुन मे एक अनजान औरत के साथ बिना डर के चलती रही।न मुझे थकावट हुई और न ही किसी प्रकार का डर लगा।उस प्रेम की गहराई को मैं आज महसूस कर रही हूं और आज जब मैं इस विषय पर लिख रही हु तो मुझे ऐसा लग रहा है कि वो अनजान औरत कोई और नही हो सकती,
अवश्य वो मेरी पिपलाज माता ही थी जो मेरी करुण पुकार सुनकर मुझे मेरी बहन भगवती से मिलाने ले गई,शायद यही वजह थी कि मुझे उस औरत के साथ जाने मे तनिक भी डर नहीं लगा।
लेकिन अफसोस तो तब हुआ जब इतनी दूर आने के बाद भी मैं अपनी बहन भगवती को अपने साथ ननिहाल नहीं ला सकी
,क्योंकि भगवती के दादा जी ने उसे मेरे साथ भेजने से इंकार कर दिया।वो क्षण मेरे लिए कितना दुःखदायी था,ये तो एक सच्चा प्रेमी ही समझ सकता है,भगवती के दादाजी जैसे इंसान कहाँ समझ सकते थे।
अगले दिन बुझे मन से उसी औरत के साथ वापस अपने ननिहाल आ गई ।पूरे रास्ते रोती रही।जहाँ जाते समय तनिक भी थकान नहीं हुई,वहीं लौटते वक्त एक एक कदम बोझ सा लग रहा था।
आज भी उस समय को स्मरण करती हूं तो प्रेम के आंसू बह जाते है
।मेरा उसके प्रति जो प्रेम है,वो अटल है।कल भी था,आज भी है और हमेशा रहेगा।जिस बहन से मैंने इतना प्रेम किया,उसका नाम ही सत्य से जुड़ा है।भगवती अपने आप मे एक सत्य का ही नाम है।जितना प्यार भगवती और मेरा है उतना ही प्यार हम दोनों के बेटो को एक दूसरे से है,शायद ये प्यार की गहराई ही है जो हम दोनों के पुत्र मे नए रूप मे उभर कर आई है।तभी ये दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए वैसा ही तड़पते है जैसा हम दोनों बहनें बचपन मे एक दूसरे के लिए तड़पती थी।इन दोनों भाइयों का प्यार देखती हूं तो हमारा बचपन आंखों के सामने घूमने लगता है।दीपक और शुभम मे केवल 15 दिन का ही अंतर है।मेरा पुत्र शुभम 15 दिन बड़ा है,इसलिए ये दोनों इन 15 दिन के अंतर का इतना मजाक बनाते है और लड़ते रहते है।शुभम की मजाक करने की बहुत आदत है,इसलिए ये बार बार दीपक को कहता है,मैं तुझसे 15 दिन बड़ा हु,इसलिए मुझमे 15 दिन का एक्सपीरियंस तुझसे ज्यादा है।इस प्रकार ये दोनो जब मिलते है,रात रात भर सोते ही नहीं है और खूब मस्ती करते है।हम सब इन दोनों को देखकर आश्चर्य हो जाते है कि इन दोनों मे इतना प्यार किसी चमत्कार से कम नही है।शायद ये भगवती और मेरे सच्चे प्रेम की ही ताकत है ।
- कैलाश दीदी ( परम मित्र ) ( ईश्वर का अनमोल उपहार )
कैलाश दीदी मेरी प्रिय सहेली है।ये पहले सहेली बनी और फिर मुझे अपनी बेटी बनाकर एक नया रिश्ता कायम किया।इनके दोनो बेटो को मैं 19 साल से राखी बांध रही हूँ।जब मेरा बेटा मात्र एक साल का था तब कैलाश दीदी से मेरी मुलाकात हुई।मेरे सुसराल के पास ही इनका घर था।कुछ ही दिनों मे मुलाकात एक अटूट रिश्ते मे बंध गईं।इनका मेरे जीवन मे आगमन किसी दैवीय शक्ति से कम नहीं था बल्कि ऐसा लगता है मानो भगवान ने मुझे अपने जीवन के कठिन संघर्ष मे हौंसला बढ़ाने के लिए इन दीदी को भेजा है।
ये मुझसे 10 साल बड़े है।जब मेरी इनसे मुलाकात हुई तब मुझे घर गृहस्थी की बहुत सी चीजें नहीं आती थी।इन्होंने मुझे खाना बनाने से लेकर बच्चे की देखभाल कैसे करते है,हर चीज सिखाई।कई बार जब मैं ब्यूटी पार्लर की होम सर्विस के लिए जाती थी तो मैं अपने बच्चे को इनके संरक्षण मे छोड़ कर जाती थी।ये मेरे बच्चे को बहुत प्यार से रखते थे।उसे खाना खिला देते थे,उसे स्कूल का होम वर्क करवा देते थे।ये नियम के बड़े सख्त है।हर काम को उसके समय पर करना और व्यवस्थित करना उन्हें बहुत अच्छे से आता है।वो खुद तो करते ही है,साथ ही सबको सिखाते थे और आज भी सिखाते है।कैलाश दीदी जिससे प्यार करते थे उसको हक से डाँट देते थे।मैंने और मेरे बेटे ने भी इनकी बहुत डाँट खाई है।लेकिन उनके प्यार भरे सख्त अनुशासन ने मुझे इतना कुछ दिया है कि जिसे मैं अपने शब्दों के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर सकती।
इन्होंने अपने सख्त अनुशासन के द्वारा अपने घर के वातावरण को हमेशा से व्यवस्थित रखा है।इनके दोनो बच्चे ,जो मेरे धर्म के भाई है,वो इतने संस्कारी है कि आज के जमाने मे ऐसे बच्चे बहुत ही मुश्किल से मिलते है।कैलाश दीदी और उनके पति ने एक प्राइवेट नोकरी के बावजूद अपने बच्चो को अच्छी से अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवाई।यहाँ तक कि अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए अपना खुद का घर बेच दिया।इसके बावजूद भी इनकी इतनी महानता कि इन्होंने आज तक अपने बच्चों के सामने इस बात का कभी एहसान नहीं जताया।
और इनकी इसी दरियादिली के कारण आज ईश्वर की इनके ऊपर असीम कृपा है कि इनके घर का वातावरण किसी मंदिर से कम नहीं लगता।आज कैलाश दीदी के दो बहुए और तीन पोते पोती है,फिर भी वो ही प्यार ,वो ही व्यवस्था है जो पहले थी।कोई अनजान भी इनके घर चला जाये तो इनके घर की व्यवस्था की चर्चा किये बिना नहीं रहता होगा।कैलाश दीदी,घर पर अतिथि का दिल से स्वागत करते है।इनके घर की रसोई राम रसोड़ा लगती है।चाहे कैसी भी परिस्थिति हो,अतिथि को प्रेम से भोजन करवाते है,उनका आदर करते है।
उनकी इस महानता के कारण कई रिश्तेदारों ने इनसे ईर्ष्यावश रिश्ता तोड़ दिया,लेकिन ये स्वाभिमानी भी बहुत है।जिस इंसान ने बिना किसी वजह से इनसे रिश्ता तोड़ दिया,ये उनकी तरफ वापस पलट कर भी नही देखते।लेकिन जो इनसे रिश्ता तोड़ देते है,उन्हें सिवाय पछतावे के और कुछ नहीं मिल पाता क्योंकि ऐसे महान व्यक्ति से रिश्ता तोड़ना जो हर किसी की मदद के लिए तैयार रहते है,वो मूर्ख ही हो सकते है।
कैलाश दीदी,हॉस्पिटल मे नोकरी करते है इसलिए इन्होंने इस अवसर का भी फायदा उठाया और कई गरीब मरीजो की भी सहायता करते रहते थे। वो मुझे बेटी मानकर एक मां की तरह उपहार देते रहते थे।ये मुझे ही नहीं बल्कि सबको कुछ न कुछ देते रहते है और उपहार भी इतना दिल से देते है कि हर किसी को पसंद आ जाता है।इनकी सबसे बड़ी महानता ये है कि अगर इनकी जेब मे केवल 100 रुपये ही होंगे और कोई जरूरतमंद इनके सामने आ जाये तो ये बिना कुछ सोचे वो 100 के100 उसे दे देंगें।इतना दिलदार मैंने आज तक इनके सिवा किसी को नहीं देखा।जन्म के माता पिता तो सबको मिलते हैपर धर्म के माता पिता बहुत ही पुण्य कर्मों से मिलते है।मैंने किसी जन्म मे कोई पुण्य किया होगा जिसके फलस्वरूप मुझे कैलाश दीदी जैसी दोस्त मिली।कैलाश दीदी ने न केवल अपनी दोस्त मानाबल्कि अपने परिवार का हिस्सा बनाकर मुझे सम्मान दिया।जिस तरह श्री कृष्ण के मिलने पर सुदामा को सब कुछ प्राप्त हो जाता हैउसी प्रकार कैलाश दीदी के मिलने से मुझे जीवन के मार्ग मिल गए।अगर कैलाश दीदी मेरे जीवन मे न आते तो मैं कभी इस दुनिया के अनुभव नहीं सीख पाती।पग पग पर मेरा मार्गदर्शन करने वाले कैलाश दीदी ईश्वर की किसी कृपा से कम नहीं थे।इनके नाम मे ही एक सत्य छिपा है।कैलाश उस सत्यरूपी शिव जी का ही एक नाम है जो अपने आप मे एक सत्य है और ये नाम मेरे जीवन की कहानी मेरा सच को पूरी तरह से सत्यापित कर रहा था,इसमें कोई शक नही।
कहाँ ऐसा याराना
याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना
मेरे जिंदगी सँवारी
मुझको गले लगाकर
बैठा दिया पलक पर
मुझे खाक से उठाकर
यारा तेरी यारी को
मैंने तो खुदा जानाप्रेम ही दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है।
ये मुझसे 10 साल बड़े है।जब मेरी इनसे मुलाकात हुई तब मुझे घर गृहस्थी की बहुत सी चीजें नहीं आती थी।इन्होंने मुझे खाना बनाने से लेकर बच्चे की देखभाल कैसे करते है,हर चीज सिखाई।कई बार जब मैं ब्यूटी पार्लर की होम सर्विस के लिए जाती थी तो मैं अपने बच्चे को इनके संरक्षण मे छोड़ कर जाती थी।ये मेरे बच्चे को बहुत प्यार से रखते थे।उसे खाना खिला देते थे,उसे स्कूल का होम वर्क करवा देते थे।ये नियम के बड़े सख्त है।हर काम को उसके समय पर करना और व्यवस्थित करना उन्हें बहुत अच्छे से आता है।वो खुद तो करते ही है,साथ ही सबको सिखाते थे और आज भी सिखाते है।कैलाश दीदी जिससे प्यार करते थे उसको हक से डाँट देते थे।मैंने और मेरे बेटे ने भी इनकी बहुत डाँट खाई है।लेकिन उनके प्यार भरे सख्त अनुशासन ने मुझे इतना कुछ दिया है कि जिसे मैं अपने शब्दों के द्वारा अभिव्यक्त नहीं कर सकती।
इन्होंने अपने सख्त अनुशासन के द्वारा अपने घर के वातावरण को हमेशा से व्यवस्थित रखा है।इनके दोनो बच्चे ,जो मेरे धर्म के भाई है,वो इतने संस्कारी है कि आज के जमाने मे ऐसे बच्चे बहुत ही मुश्किल से मिलते है।कैलाश दीदी और उनके पति ने एक प्राइवेट नोकरी के बावजूद अपने बच्चो को अच्छी से अच्छी शिक्षा उपलब्ध करवाई।यहाँ तक कि अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए अपना खुद का घर बेच दिया।इसके बावजूद भी इनकी इतनी महानता कि इन्होंने आज तक अपने बच्चों के सामने इस बात का कभी एहसान नहीं जताया।
और इनकी इसी दरियादिली के कारण आज ईश्वर की इनके ऊपर असीम कृपा है कि इनके घर का वातावरण किसी मंदिर से कम नहीं लगता।आज कैलाश दीदी के दो बहुए और तीन पोते पोती है,फिर भी वो ही प्यार ,वो ही व्यवस्था है जो पहले थी।कोई अनजान भी इनके घर चला जाये तो इनके घर की व्यवस्था की चर्चा किये बिना नहीं रहता होगा।कैलाश दीदी,घर पर अतिथि का दिल से स्वागत करते है।इनके घर की रसोई राम रसोड़ा लगती है।चाहे कैसी भी परिस्थिति हो,अतिथि को प्रेम से भोजन करवाते है,उनका आदर करते है।
उनकी इस महानता के कारण कई रिश्तेदारों ने इनसे ईर्ष्यावश रिश्ता तोड़ दिया,लेकिन ये स्वाभिमानी भी बहुत है।जिस इंसान ने बिना किसी वजह से इनसे रिश्ता तोड़ दिया,ये उनकी तरफ वापस पलट कर भी नही देखते।लेकिन जो इनसे रिश्ता तोड़ देते है,उन्हें सिवाय पछतावे के और कुछ नहीं मिल पाता क्योंकि ऐसे महान व्यक्ति से रिश्ता तोड़ना जो हर किसी की मदद के लिए तैयार रहते है,वो मूर्ख ही हो सकते है।
कैलाश दीदी,हॉस्पिटल मे नोकरी करते है इसलिए इन्होंने इस अवसर का भी फायदा उठाया और कई गरीब मरीजो की भी सहायता करते रहते थे। वो मुझे बेटी मानकर एक मां की तरह उपहार देते रहते थे।ये मुझे ही नहीं बल्कि सबको कुछ न कुछ देते रहते है और उपहार भी इतना दिल से देते है कि हर किसी को पसंद आ जाता है।इनकी सबसे बड़ी महानता ये है कि अगर इनकी जेब मे केवल 100 रुपये ही होंगे और कोई जरूरतमंद इनके सामने आ जाये तो ये बिना कुछ सोचे वो 100 के100 उसे दे देंगें।इतना दिलदार मैंने आज तक इनके सिवा किसी को नहीं देखा।जन्म के माता पिता तो सबको मिलते हैपर धर्म के माता पिता बहुत ही पुण्य कर्मों से मिलते है।मैंने किसी जन्म मे कोई पुण्य किया होगा जिसके फलस्वरूप मुझे कैलाश दीदी जैसी दोस्त मिली।कैलाश दीदी ने न केवल अपनी दोस्त मानाबल्कि अपने परिवार का हिस्सा बनाकर मुझे सम्मान दिया।जिस तरह श्री कृष्ण के मिलने पर सुदामा को सब कुछ प्राप्त हो जाता हैउसी प्रकार कैलाश दीदी के मिलने से मुझे जीवन के मार्ग मिल गए।अगर कैलाश दीदी मेरे जीवन मे न आते तो मैं कभी इस दुनिया के अनुभव नहीं सीख पाती।पग पग पर मेरा मार्गदर्शन करने वाले कैलाश दीदी ईश्वर की किसी कृपा से कम नहीं थे।इनके नाम मे ही एक सत्य छिपा है।कैलाश उस सत्यरूपी शिव जी का ही एक नाम है जो अपने आप मे एक सत्य है और ये नाम मेरे जीवन की कहानी मेरा सच को पूरी तरह से सत्यापित कर रहा था,इसमें कोई शक नही।
जब भी मैं कैलाश दीदी से मिलती ,वो मेरा अपने हाथों से श्रंगार करते।कभी अपनी नई नई साड़ियां मुझे पहनातेतो कभी कानो मे झुमके पहनाकर खुश होते।कई बार तो ऐसा लगता था मानो जगदम्बा स्वयं मुझे श्रृंगार करवा रही हो।इतना अदभुत प्रेम,जिसकी व्याख्या करना ही मेरे बस मे नहीं है।यही तो है मेरा सच।
तेरे जैसा यार कहाँकहाँ ऐसा याराना
याद करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना
मेरे जिंदगी सँवारी
मुझको गले लगाकर
बैठा दिया पलक पर
मुझे खाक से उठाकर
यारा तेरी यारी को
मैंने तो खुदा जानाप्रेम ही दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है।
- विशाल और अंकिता - कुणाल और आरती ( ईश्वर के अनमोल उपहार भाई और भाभी )
विशाल और कुणाल,ये दोनों मेरे धर्म के भाई है।मेरे कैलाश दीदी के बेटे,जिन्हें 19 साल से मैं राखी बांध रही हूँ और ये भी सगे भाई की तरह मेरा ध्यान रखते है।एक बहन को जब कोई भी तकलीफ होती है और भाई को जो दर्द महसूस होता है,वो दर्द इन दोनों भाइयों की आंखों मे मैंने महसूस किया,ये एक सच्चे रिश्ते का सबूत है,एक सच्चे प्रेम का सबूत है।जब मुझे स्कूटी चलानी नहीं आती थी और मैं बहुत डरती थी तब मेरे भाई विशाल ने मुझे गाड़ी सिखाने का संकल्प लिया और उसने दिल से पूरा किया।मैं इतना डरती थी कि कोई भी मुझे स्कूटी नहीं सीखा सकता था,लेकिन विशाल ने मुझे हिम्मत दी,मेरे अंदर के हौसले को जगाया और मुझे विश्वास दिलाया कि कोई भी काम असंभव नहीं होता।उसके विश्वास ने ऐसा चमत्कार दिखाया कि मात्र 9 दिन मै उसने मुझे ट्राफिक मे गाड़ी ले जाना सीखा दिया।
पहली बार जब मैंने खुद गाड़ी चलाई तो मै विशाल को पीछे बैठाकर अम्बा माँ के दर्शन के लिए गई।जब मैं वापस घर आई तो भगवान के सामने इतना रोई और भगवान को धन्यवाद दिया कि इतना बड़ा चमत्कार करके आपने मुझ पर बहुत उपकार किया है।मुझे ऐसा लगा मानो ईश्वर ने विशाल को मुझे गाड़ी सिखाने के लिए भेजा हो।
विशाल का ये उपहार मैं जीवन भर नहीं भूल सकती,जिसने मेरे अंदर के डर को मारकर मेरी शक्ति को जगाया।विशाल और कुणाल मेरे जीवन के वो गुरु है जिन्होंने मेरा बार बार मार्गदर्शन किया।मैं उनके इस अहसान को भूल न जाऊ,यही सोचकर मैं हर गुरु पूर्णिमा को अपने गुरु भाई विशाल से मिलने जरूर जाती हूँ।
इसके अलावा ये दोनों बहुत ही संस्कारी और दरियादिल है।हर किसी की मदद के लिए ये हमेशा तैयार खड़े रहते है।अपने माता पिता का बहुत ही आदर करते है और दोनो भाई एक दूसरे से इतना प्रेम करते है कि जिसकी व्याख्या मैं अपने शब्दों से नहीं कर सकती,बल्कि यो कहा जाए कि आज के जमाने मे भाई भाई का ऐसा प्रेम बहुत ही दुर्लभ है।
मेरे जीवन मे इन राम लक्ष्मण जैसे भाइयों का आना किसी ईश्वर के चमत्कार से कम नहीं है।
जितना अच्छा इन दोनों भाइयों का व्यवहार है उतनी ही अच्छी इनको पत्निया मिली जो मेरी धर्म की भाभियाँ है।बड़ी भाभी का नाम अंकिता है और छोटी भाभी का नाम आरती है।दोनो ही बहुत समझदार और सुशील है।अंकिता दिन भर अपने सुसराल वालो की हर तरह से सेवा करके उन्हें हर सम्भव खुश करने का प्रयास करती रहती है।सास की हर आज्ञा को मानती है ,जिससे वो उनके पूरे परिवार मे एक अच्छी बहु मानी गई है।उसी तरह आरती भी अपने घर के हर सदस्य की खुशी का ध्यान रखती है और आरती की सबसे बड़ी बात ये है कि इसने कभी किसी को पलट कर जवाब नहीं दिया।हर बात को सहज ही स्वीकार करके ये भी सबका मन मोह लेती है।
पहली बार जब मैंने खुद गाड़ी चलाई तो मै विशाल को पीछे बैठाकर अम्बा माँ के दर्शन के लिए गई।जब मैं वापस घर आई तो भगवान के सामने इतना रोई और भगवान को धन्यवाद दिया कि इतना बड़ा चमत्कार करके आपने मुझ पर बहुत उपकार किया है।मुझे ऐसा लगा मानो ईश्वर ने विशाल को मुझे गाड़ी सिखाने के लिए भेजा हो।
विशाल का ये उपहार मैं जीवन भर नहीं भूल सकती,जिसने मेरे अंदर के डर को मारकर मेरी शक्ति को जगाया।विशाल और कुणाल मेरे जीवन के वो गुरु है जिन्होंने मेरा बार बार मार्गदर्शन किया।मैं उनके इस अहसान को भूल न जाऊ,यही सोचकर मैं हर गुरु पूर्णिमा को अपने गुरु भाई विशाल से मिलने जरूर जाती हूँ।
इसके अलावा ये दोनों बहुत ही संस्कारी और दरियादिल है।हर किसी की मदद के लिए ये हमेशा तैयार खड़े रहते है।अपने माता पिता का बहुत ही आदर करते है और दोनो भाई एक दूसरे से इतना प्रेम करते है कि जिसकी व्याख्या मैं अपने शब्दों से नहीं कर सकती,बल्कि यो कहा जाए कि आज के जमाने मे भाई भाई का ऐसा प्रेम बहुत ही दुर्लभ है।
मेरे जीवन मे इन राम लक्ष्मण जैसे भाइयों का आना किसी ईश्वर के चमत्कार से कम नहीं है।
जितना अच्छा इन दोनों भाइयों का व्यवहार है उतनी ही अच्छी इनको पत्निया मिली जो मेरी धर्म की भाभियाँ है।बड़ी भाभी का नाम अंकिता है और छोटी भाभी का नाम आरती है।दोनो ही बहुत समझदार और सुशील है।अंकिता दिन भर अपने सुसराल वालो की हर तरह से सेवा करके उन्हें हर सम्भव खुश करने का प्रयास करती रहती है।सास की हर आज्ञा को मानती है ,जिससे वो उनके पूरे परिवार मे एक अच्छी बहु मानी गई है।उसी तरह आरती भी अपने घर के हर सदस्य की खुशी का ध्यान रखती है और आरती की सबसे बड़ी बात ये है कि इसने कभी किसी को पलट कर जवाब नहीं दिया।हर बात को सहज ही स्वीकार करके ये भी सबका मन मोह लेती है।
हर औरत की तरह इनके भी कुछ सपने है जो ये कभी किसी के सामने प्रकट नहीं करती पर पता नहीं ईश्वर की कृपा से मैंने इनके अंदर के उन सपनों को महसूस किया है।ये पढ़ी लिखी है और जीवन मे कुछ करना चाहती है,पर अपनी इच्छाओं और सपनों को ये सुसराल और पति की खुशी मे न्योछावर करने मे ही अपनी महानता समझती है और इस कारण ये कभी अपने मन की बात किसी से नही कहती।ऐसी बहुये आज के युग मे मिलना बहुत ही किस्मत की बात है जो मेरी सहेली कैलाश दीदी को मिली है।ये दोनों भाभियाँ मेरा बहुत सम्मान करती है।जब भी मैं इनके घर जाती हूं, दरवाजे पर ही आ जाती है और मेरे हाथ से मेरा सामान उठा कर अंदर ले जाती है और मेरा खूब आवभगत करती है।मैं कभी जब दीदी के यहाँ रुकती हु तो ये मेरे खाने से लेकर सोने तक का पूरा ध्यान रखती है।यहाँ तक कि जब मैं बाथरूम मे नहाने जाती हूं तो टॉवेल लेकर खड़ी हो जाती है।जब मैं सोती हु तो मेरा बिस्तर ठीक से हुआ कि नही,इस बात का भी पूरा ध्यान रखती है।मुझे कई बार तो समझ नहीं आता कि ये परिवार जो मेरा अपना नहीं था,केवल मित्रता से बना था,वो मुझे किस पुण्य से मिला है,जहाँ का इतना सम्मान पाकर मैं इस जन्म मे धन्य हो गई।ये भी ईश्वर के किसी चमत्कार से कम नहीं था।
- ओशी ( अद्धभुत भाई )
ओशी,वैसे तो एक कुत्ता था लेकिन वो किसी इंसान से कम नहीं था।ओशी मेरे कैलाश दीदी का पालतू कुत्ता था।वैसे तो मुझे कुत्तों से बहुत डर लगता था।मैंने आज तक किसी कुत्ते को हाथ से सहलाया नहीं क्योंकि मैं बहुत डरती हु।लेकिन जब पहली बार मैं ओशी से मिली तो मुझे पहले तो बहुत डर लगा लेकिन दीदी ने हिम्मत करके उससे मेरी दोस्ती करवाई।एक बार उससे दोस्ती हो गई तो वो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं सोचने लग गई कि क्या एक कुत्ता भी इतना समझदार हो सकता है।
वो इतना समझदार था कि केवल इंसान के चेहरे के हाव भाव से इंसान का मन पढ़ लेता था।उसके हर काम का एक निश्चित समय होता था फिर चाहे वो खाने का हो,नहाने का हो या पोटी जाने का हो।जब भी मेरे दीदी के husband जिन्हें मैं अंकल जी बुलाती हु,वो हाथ मे शेम्पू लेकर ओशी को बताते थे वो नहाने की जगह पर जाकर खड़ा हो जाता था।जब उसके नाखून काटते थे तब बिना भोंके चुपचाप अपने पैर सामने कर देता था।जब भी घर मे कोई टेंशन होती तो वो खाना नही खाता था।जब भी घर के सब सदस्य कहीं बाहर निकलते और उसको पता चल जाता कि उसे अकेला छोड़ कर सब जा रहे है तो वो नाराज होकर टेबल के नीचे मुँह नीचा करके उदास बैठ जाता था।
मैं राखी पर जब भी विशाल और कुणाल के राखी बांधती थी,ओशी इन दोनों भाइयों के बीच मे आकर अपना पैर ऊपर कर देता और मुझसे राखी बंधवाता था।जब तक ओशी था,मैं हमेशा उसके पहले राखी बांधती थी।
मैंने कभी सोचा नहीं था कि जीवन मे इतने वफादार भाई के राखी बांधने का अवसर मिलेगा ।जहाँ मे कुत्तों के आवाजों से ही डरती थी वहीं ओशी जैसे प्राणी के साथ भाई का रिश्ता बनना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
ओशी अब इस दुनिया मे नहीं है,लेकिन उसके साथ बिताए हर पल जीवन भर याद रहेंगे।
वो इतना समझदार था कि केवल इंसान के चेहरे के हाव भाव से इंसान का मन पढ़ लेता था।उसके हर काम का एक निश्चित समय होता था फिर चाहे वो खाने का हो,नहाने का हो या पोटी जाने का हो।जब भी मेरे दीदी के husband जिन्हें मैं अंकल जी बुलाती हु,वो हाथ मे शेम्पू लेकर ओशी को बताते थे वो नहाने की जगह पर जाकर खड़ा हो जाता था।जब उसके नाखून काटते थे तब बिना भोंके चुपचाप अपने पैर सामने कर देता था।जब भी घर मे कोई टेंशन होती तो वो खाना नही खाता था।जब भी घर के सब सदस्य कहीं बाहर निकलते और उसको पता चल जाता कि उसे अकेला छोड़ कर सब जा रहे है तो वो नाराज होकर टेबल के नीचे मुँह नीचा करके उदास बैठ जाता था।
मैं राखी पर जब भी विशाल और कुणाल के राखी बांधती थी,ओशी इन दोनों भाइयों के बीच मे आकर अपना पैर ऊपर कर देता और मुझसे राखी बंधवाता था।जब तक ओशी था,मैं हमेशा उसके पहले राखी बांधती थी।
मैंने कभी सोचा नहीं था कि जीवन मे इतने वफादार भाई के राखी बांधने का अवसर मिलेगा ।जहाँ मे कुत्तों के आवाजों से ही डरती थी वहीं ओशी जैसे प्राणी के साथ भाई का रिश्ता बनना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
ओशी अब इस दुनिया मे नहीं है,लेकिन उसके साथ बिताए हर पल जीवन भर याद रहेंगे।
- सविता ( एक सच्ची मित्र )
2009 में जब मैने ब्यूटी पार्लर खोला तो मुझे साथ में मदद के लिए एक लड़की की जरूरत थी ।मैने हमेशा की तरह फिर ईश्वर से प्रार्थना करी कि आप ही कोई अच्छी लड़की से मेरी पहचान करा देना जिसको अपने साथ में काम सिखाकर मिलकर पार्लर चला ले।ईश्वर ने हर बार की तरह मेरी प्रार्थना स्वीकार करी और पार्लर खोलते ही अगले ही दिन एक अनजान लड़की मेरे पार्लर पर आई और काम सीखने की इच्छा जताई।मैने एक ही नजर में उसे पहचान लिया कि वो लड़की कोई और नहीं साक्षात माता जी ही है जो मेरी मदद के लिए आए थे।।मैने अगले दिन से उसे पार्लर में रख लिया और उसे काम सिखाने लग गई।उसका नाम सविता है।जैसा नाम वैसा ही उसका व्यवहार।पूरी सत्य से भरी हुई।कोई मेल,छल कपट नही,एकदम निर्मल।पानी की तरह साफ उसका दिल था।कभी गलती से भी वो झूठ नही बोलती थी फिर चाहे सत्य बोलने पर कितनी भी कठिनाई ही क्यों न हो।जितना मैं सत्य के करीब थी,सत्य भी किसी न किसी रूप में मेरे साथ चलता रहता था।सविता बहुत ईमानदारी से ब्यूटी पार्लर का काम सिख रही थी और बहुत जल्दी ही वो मेरी बहुत अच्छी मित्र बन गई।उसके बच्चे का नाम भी शुभम था और मेरे बच्चे का नाम भी शुभम।दोनो के बच्चे हम दोनो को मासी कहने लगे और रिश्ता बहन जैसा हो गया।लेकिन मुश्किल से डेढ़ साल ही हम पार्लर चला पाए।पार्लर न चल पाने के कारण मैने पार्लर बंद कर दिया था,जिसके कारण सविता से मेरा मिलना छूट गया।लेकिन कहते है कि सत्य कभी नही छूटता,सच्चा प्रेम एक दिन वापस मिल ही जाता है।करीबन 5 साल बाद एक दिन अचानक रास्ते में सविता से मुलाकात हुई। 5 साल बाद दोनो के पास स्कूटी थी और हम दोनो ही काफी कुछ सीख चुकी थी।दोनो एक दूसरे को स्कूटी पर देखकर बहुत खुश हुए क्योंकि हम दोनो ही ऐसी डरपोक थी कि सड़क पर ट्रैफिक को देखकर ही घबरा जाती थी,गाड़ी चलाना तो बहुत दूर की बात थी।इसलिए हम दोनों की इस उपलब्धि को देखकर हम दोनो एक दूसरे के लिए बहुत खुश हुए।उसके बाद फिर से सविता के साथ मेरा मिलना जुलना हुआ।वो भी एक बहन की भांति मेरे यहां आती और मैं भी बड़ी बहन की तरह उसके घर आती जाती।कभी ये महसूस नहीं हुआ कि वो मुझसे अलग है,क्योंकि ईश्वर की इतनी सच्ची भक्त थी कि वो मुझे भी ईश्वर के रूप में महसूस करती थी,मैं भी उसे ईश्वर का रूप ही समझती थी,इसलिए आज तक मेरा उसके साथ रिश्ता है और हमेशा रहेगा।उसका बच्चा मोनू तो मुझे सगी मासी की तरह व्यवहार करता है और मेरी बाते उसे अच्छी लगती है क्योंकि वो बच्चा भी ईश्वर और भक्ति की बातों को बहुत ध्यान से,रुचि से सुनता है।और जो भक्ति से जुड़े होते है,वो तो मेरे दिल के बहुत करीब होते है।
ईश्वर ने ऐसे सच्चे रिश्तों से मेरा मिलन करवाकर मेरी भक्ति को अमर कर दिया।यही मेरे और सविता की मित्रता का सच है जो मरने के बाद भी मेरे साथ अमर रहेगा।
सत्यमेव जयते
- सुशीला और गणेश भैया ( अनोखा प्रेम )
सुशीला और गणेश भैया
2014 में जब पहली बार मैं और शुभम एक कॉम्प्लेक्स में रहने गए ,तब हमारी मुलाकात सुशीला और गणेश भैया से हुई ।ये दोनो पति पत्नी उस कॉम्प्लेक्स में वॉचमैन का काम करते थे।शुरू शुरू में आते जाते इनसे बातचीत कर लेते थे,लेकिन धीरे धीरे हमारा इनसे घर जैसा व्यवहार हो गया।सुशीला कभी कभी मेरे कुछ घर के काम में मदद भी कर देती थी।मैं पार्लर के काम से बाहर रहती थी तो वो कई बार शुभम को ऊपर जाकर दूध ,खाना इत्यादि पूछकर आती थी।कई बार मैं सीजन में लेट हो जाती तो गणेश भैया शुभम का ध्यान भी रखते थे।मैं भी जब फ्री होती,इनको ऊपर बुलाकर साथ में ही खाना खाते ,बाते करते थे।गणेश भैया की बेटी मोनिका मुझे मासी कहकर पुकारती थी।मैं भी मासी की तरह ही उसे प्यार करती थी।सुशीला बहुत हंसमुख स्वभाव की थी। हर हाल में वो प्रसन्न रहती थी।उसका ये स्वभाव मुझे अच्छा लगता था।
लेकिन गणेश भैया का व्यवहार सुशीला के साथ अच्छा नही था।गणेश भैया में आदमी नाम का अभिमान था,इसलिए वो सुशीला को बहुत दबाकर रखते थे।उसके पीहर वालो से बातचीत नही करने देते थे।कई बार गणेश भैया सुशीला पर हाथ उठाते थे।मुझे ये बात बिल्कुल बर्दाश्त नही होती थी,इसलिए मेरा कई बार गणेश भैया से झगड़ा हो जाता था,क्योंकि मेरा स्वभाव था कि,मैं किसी के साथ भी गलत बर्दाश्त नहीं कर पाती थी।एक बार गणेश भैया ने सुशीला को मारा तो वो अपने पीहर चली गई।गणेश भैया ने सुशीला से अपनी बच्ची भी छीन ली।कई महीनो तक गणेश भैया अपनी बच्ची के साथ अकेले ही रहे और सुशीला मजबूरीवश अपने माता पिता के घर रही।सुशीला अपनी बच्ची के लिए तड़पती थी और मुझे फोन करके अपनी बच्ची का हाल चाल पूछती थी।मैं सुशीला के दुःख से इतनी परेशान थी कि,मैं चलते फिरते,उठते बैठते,बस ईश्वर से यही कहती कि,है भगवान।सुशीला की मदद करना और गणेश भैया को सद्बुद्धि देना।एक दिन मुझसे रहा नही गया।मैने गणेश भैया को ऊपर बुलाकर बहुत डांटा।शुभम ने भी गणेश भैया पर बहुत गुस्सा किया और समझाया कि,अपना अभिमान एक तरफ रखकर जीवन को अच्छे से जियो।प्रेम सबसे बड़ा है,अभिमान नही।
पर उस समय गणेश भैया का अभिमान इतना चढ़ा हुआ था कि,वो अपने अभिमान को ही श्रेष्ठ समझ रहे थे।हमारी बातें उन्हें बिल्कुल समझ में नही आ रही थी।बल्कि हमारी बातों से गणेश भैया इतना गुस्सा हो गए कि,अपनी बेटी मोनिका को भी हमारे पास नहीं आने देते थे।उस छोटी सी फूल सी बच्ची के मन में भी वो नफरत घोल रहे थे।मैं रोज भगवान के सामने यही कहती कि,सत्य का साथ दो और अज्ञानी को राह दिखाओ।हमेशा की तरह एक दिन ईश्वर ने मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया।एक दिन अचानक गणेश भैया की तबीयत खराब हो गई क्योंकि वो खाना अच्छे से नही बनाते थे।कुछ भी खा लेते थे जिससे उनके पेट की कुछ प्रॉब्लम हो गई।फिर एक दिन वो मेरे पास आए और मुझे बोला कि,मैं सुशीला को लेने जा रहा हु।मुझे सुनकर अच्छा लगा।मैने उन्हे प्रेम से समझाया कि,अब सारी पुरानी बाते मन से निकालकर सुशीला को प्रेम से लेकर आना और प्रेम से रहना।इस बार उन्हें मेरी बात थोड़ी समझ आई।
वो सुशीला को उसके पीहर से ले आए और उस दिन हम सबने साथ में ही खाना बनाया और साथ में ही बैठकर खाया।फिर मैंने और शुभम ने उन दोनो को प्रेम का महत्व समझाया और उनसे प्रोमिस लिया कि,अब वो कभी न झगड़े।
गणेश भैया और सुशीला ने हमारी बात को समझा और वो दोनो अपनी बच्ची के साथ प्रेम से रहने लगे।धीरे धीरे गणेश भैया का अभिमान भी कम होने लगा और उनका जीवन खुशी और प्रेम से चलने लगा।कुछ समय बाद हमने वहां से फ्लैट खाली कर दिया तो गणेश भैया और हम बहुत रोए।जिस दिन फ्लैट खाली करके गए,उस दिन सुशीला ने खाना भी नहीं खाया और वो बहुत रोई।मुझे भी उनका साथ छूट जाने का बहुत दुःख था।पर विधाता की यही लीला है कि,एक न एक दिन हर चीज छूटती ही है।पर हमारा प्रेम कभी नही टूटा।गणेश भैया ने नए फ्लैट में सामान जमाने में हमारी बहुत मदद करी और आज तक भी वो लोग मुझसे मिलने आते है और मैं भी उनसे मिलने जाती हु।अभी ईश्वर की कृपा से उनके तीन बच्चे है और सब खुशी से जीवन जी रहे है।
गणेश भैया और सुशीला ने सत्य और प्रेम के महत्व को समझकर,अपने जीवन में उतारकर मेरा मान रखा।इन्हे मैं कभी नही भूल सकती।
धन्य है वो लोग जो अपनी गलतियों से सबक सीखकर अपने जीवन का सुधार करते है और प्रेम को अपना लेते है।सत्यमेव जयते
- ईश्वर ( एक सरल मित्र )
ईश्वर मेरी एक और मित्र है जिससे मेरी मुलाकात 2018 में पेनारामिक अपार्टमेंट में हुई थी जहां मैं रहती थी।ईश्वर और उसकी मम्मी दोनो ही एक दिन मेरे फ्लैट में मुझसे आईब्रो बनवाने आई थी।एक ही बार में इन दोनो मां बेटियों का व्यवहार मुझे इतना समझ में आया कि,मेरा इनके साथ भी मित्रता का व्यवहार हो गया।ईश्वर और उसकी मम्मी,दोनो बहुत सरल और शांत स्वभाव के थे।।इनकी वाणी में ही मधुरता और प्रेम बरसता था।
न कोई निंदा,न कोई छल कपट,एकदम निर्मल और शांत थे।जब मैने पेनारामीक अपार्टमेंट से फ्लैट खाली किया तो ईश्वर और मैं भी बहुत रोई।मेरे फ्लैट खाली करने के कुछ समय बाद ही ईश्वर की मम्मी ने भी वहां से घर खाली करके प्रताप नगर में ले लिया था।लेकिन हमारा रिश्ता भी भगवान ने ही जोड़ा था।इसीलिए इतना दूर चले जाने के बाद भी हम एक दूसरे के घर आते जाते रहे और प्रेम आज तक बरकरार रहा।
एक दिन ईश्वर की मम्मी मेरे लिए अपने हाथो से एक राजपूती ड्रेस सिलकर मेरे घर लेकर आए।ईश्वर का पूरा परिवार उस दिन मेरे घर आया और हमने साथ में ही खाना खाया।मैं बहुत खुश हो गई ,मुझे ऐसा लगा कि जैसे कोई देवी देवता मेरे घर आए है और मैने उस दिन लापसी चावल बनाए।
ऐसा इतफाक हुआ कि जिस रात को वो मेरे यहां ड्रेस लेकर आए थे,उसके अगले दिन ही मैं देवी देवता का गहना लोहे की सांकल लेने जाने वाली थी।जिस सांकल को लाने के लिए स्वयं देवताओं ने मुझे संकेत दिया था,पर ये नही पता था कि,उस सांकल को लाने के लिए केसरिया ड्रेस पहनकर जाऊंगी।मैं ईश्वर की मम्मी का सिला हुआ वो ही ड्रेस पहनकर देवताओं का गहना लेने गई और उसी ड्रेस को पहनकर ही उस सांकल को अपने घर में भगवान के स्थान पर स्थापित किया।
सच्चे लोगो के साथ भगवान ने मेरी कई लीलाएं जोड़ रखी थी,ये अनुभव हो रहा था मुझे।
मैं जब भी ईश्वर के घर जाती तो ईश्वर के घर के सभी लोग मुझे देखकर बहुत खुश हो जाते और मेरा बहुत मान सम्मान करते ।इनकी आवभगत और इनका दिया हुआ सम्मान मैं जीवन भर याद रखूंगी।इनका प्रेम भी मेरे साथ अमर रहेगा।ये भी ईश्वर की लीला है।
सत्यम शिवम सुंदरम
मंजू ( मित्र )
जितना मैं सत्य के निकट थी, हर जगह मुझे कोई न कोई एक सच्चा इंसान मित्र रूप में मिल रहा था।मंजू से मेरी मुलाकात 2020 में हुई जब मैं पेनारामिक अपार्टमेंट से फ्लैट खाली करके हातिम अपार्टमेंट में आई थी।मंजू और उसके पति उसी फ्लैट में वॉचमैन थे।मंजू के पति भी हंसमुख स्वभाव के और व्यवहारी थे।इसलिए मेरा मंजू और उसके पति से भी अच्छा व्यवहार हो गया था।पर कुछ समय बाद मुझे पता चला कि मंजू ने एक ऐसे आदमी से रिश्ता जोड़ा था जिसके पहले से तीन बच्चे थे और उनकी दो पत्नियों का पहले देहांत हो चुका था।
मंजू की शादी बचपन में कर दी थी जहां पर उसका रिश्ता चल नही पाया।इस कारण वो कई वर्षो तक अपने पिता के घर ही रही। मंजू की मम्मी का बहुत सालों पहले ही देहांत हो चुका था।इसलिए अपने पिता की चिंता दूर करने के लिए उसने तीन बच्चों के पिता से नाता कर लिया।मैने उसकी बात सुनी तो मुझे मंजू से और अधिक सहानुभूति और प्रेम हो गया।मैं मंजू को अपनी छोटी बहन समझती थी।
मैने शिवरात्रि के दिन उन दोनो पति पत्नी को अपने फ्लैट में बुलाया और दोनो को श्री कृष्ण के सामने फिर से विवाह बंधन में बांधा।दोनो ने एक दूसरे के गले में वरमाला डाली।मैने उन दोनो से प्रेम से रहने का वचन लिया और मंजू को भी समझाया कि,अपने पति के इन बच्चों को सगी मां का प्रेम देना।
मंजू ने मेरी बात स्वीकार करी और वो अपने पति के बच्चो को प्रेम देने लगी।लेकिन कुछ समय बाद मुझे पता चला कि,मंजू का पति शकी स्वभाव का था।जब उसने देखा कि,मंजू उसके बच्चों से बहुत प्रेम कर रही है और बच्चे भी अपनी सौतेली मां को अपना मान रहे है तो उसके मन में ईर्ष्या का बीज उत्पन हो गया।वो आए दिन मंजू से बुरा बर्ताव करने लगा।कई बार मैने भी समझाया लेकिन उसके मन में बहुत ईर्ष्या थी,इसलिए वो मंजू से केवल अपना स्वार्थ पूरा करता था।उसे केवल अपने बच्चो को रखने के लिए और दुनिया को दिखाने के लिए एक औरत चाहिए थी।प्रेम शब्द से वो बहुत दूर था।मंजू एक मजबूर पिता की वो बेटी थी जो अपने दुःख को बताकर अपने पिता को परेशान नहीं करना चाहती थी।इसलिए अकेली ही अपना कष्ट झेल रही थी।दिल की नेक,सच्ची और ईमानदार थी।कष्ट झेलकर भी हमेशा मुस्कुराती रहती थी।मैं जब भी काम से आती और जैसे ही स्कूटी खड़ी करती,मंजू खुश हो जाती।उसके बच्चे भी मुझे देखकर खुश होते और वो भी मुझे मासी कह कर पुकारते थे।
एक दिन मंजू को उसके पति ने मारा।मंजू रोते हुए मेरे पास आई।जब भी कोई आदमी किसी स्त्री पर हाथ उठाता है तो मेरा खून खोल जाता है।मुझे इतना तेज गुस्सा आया कि,मैं शुभम को लेकर नीचे गई और उसके पति को बहुत डांट लगाई।शुभम ने भी उस आदमी पर बहुत गुस्सा किया।पर वो अपनी गलती मानने को तैयार नहीं।मंजू डर के मारे एक कोने में सुसक सूसक कर रो रही थी।मैने उस आदमी को चैलेंज किया कि,आज के बाद मंजू पर हाथ उठाया तो पुलिस को खबर कर दूंगी।उस रात तो मंजू ने जैसे तैसे निकाली,लेकिन उसका मन बिल्कुल नही लगता था।
न वो अपने पिता के घर जा सकती थी और न ही उसके अंदर अकेले काम करके जीवन जीने की हिम्मत थी।
उसके पति को मेरी बातों का इतना बुरा लगा कि,दो चार दिन बाद ही उसने अचानक घर खाली कर दिया और मंजू और बच्चो को लेकर कहीं और शिफ्ट हो गया।
मंजू को भी इस बात का पता न लगने दिया कि,घर खाली करना है।अचानक मंजू के जाने की बात सुनकर मेरा मन बहुत विचलित हुआ,लेकिन ईश्वर को यही मंजूर था।मेरा और उसका साथ शायद इतना ही लिखा था।मैने उसे एक मोरपंख दिया और आशीर्वाद दिया कि,ईश्वर उसका मार्गदर्शन करे।
कुछ दिन मेरा भी मन नहीं लगा।मैं जब भी काम से आती थी,नीचे उनको न पाकर बहुत निराश होती थी।लेकिन धीरे धीरे ईश्वर भूलने की शक्ति दे ही देता है।
कुछ महीनो बाद एक दिन मंजू मुझसे मिलने आई तो मैंने उसके अंदर एक परिवर्तन देखा।उसका डर अब जा चुका था ,और उसने हालात के साथ समझोता करना सीख लिया था।उसके इस परिवर्तन से मैं भी बहुत खुश हुई।
वो अक्सर मुझे फोन किया करती है और आज भी उसके साथ मेरा दिल का रिश्ता है और हमेशा रहेगा।
जय श्री कृष्ण
- अरुण की शादी 19 अप्रेल 2019 ( सबसे छोटा भाई )
9 जनवरी 2019 का दिन था।उस दिन मेरे दूसरे नंबर वाले भाई पप्पू के घर का ग्रह प्रवेश था।
पप्पू ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से एक बहुत ही सुंदर घर बनाया जिसका नाम हमारी पिपलाज माता के नाम पर रखा गया
हम सब भाई बहन उसकी इस खुशी मे बहुत खुश थे।सब जनो ने मिलकर तैयारिया करी,हालांकि इस प्रोग्राम मे हमने बहुत लोगो को नही बुलाया था।हम केवल घर के ही कुछ लोग थे।यहाँ तक कि हमने किसी पंडित जी को भी नहीं बुलाया ।सब कुछ इतना साधरण सोच कर किया था परंतु ईश्वर की कृपा से वो साधारण प्रोग्राम इतना असाधारण हो गया जिसको हम ईश्वर की कृपा समझे,तो कोई शक नही ।अचानक हमारे गावँ के मंदिर के पुजारी भी आ गए जिनके आने का कोई प्लान नही था।मेरी बहन इंद्रा जो हर कार्य मे बहुत ही होशियार है,उसने अचानक पंडित जी के कपड़े पहन लिए
और सबको हंसा रही थी।अचानक कोई अनजान पड़ोसी हवन की सामग्री ले आये।मेरी बहन ने ईटो का हवन कुंड बना दिया।मेरा भाई तो इन सब चीजों से अनजान था।उसको तो समझ मे भी नही आ रहा था कि हो क्या रहा है।फिर वो गावँ के पुजारी हवन मे बैठकर हवन करने लगे,मेरी बहन पंडित का वेश पहनकर मंत्र उच्चारण करने लगी
और धीरे धीरे जो भी घर के थोड़े बहुत मेहमान थे,वो सब उस हवन यज्ञ के आस पास बैठ गए।सभी लोग ॐ का उच्चारण करके हवन मे घी डालने लगे।सबकी आंखे इस दृश्य को देखकर आश्चर्य से भर रही थी कि इस छोटे से प्रोग्राम को किसने इतना बड़ा कर दिया।बिना पंडित को बुलाये भी हवन हो गया,ये ईश्वर का चमत्कार ही था।हम सभी देवी माँ की इस कृपा को देख रहे थे
और सोच रहे थे कि ईश्वर जो करता है,वो ही होता है।
पप्पू ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से एक बहुत ही सुंदर घर बनाया जिसका नाम हमारी पिपलाज माता के नाम पर रखा गया
हम सब भाई बहन उसकी इस खुशी मे बहुत खुश थे।सब जनो ने मिलकर तैयारिया करी,हालांकि इस प्रोग्राम मे हमने बहुत लोगो को नही बुलाया था।हम केवल घर के ही कुछ लोग थे।यहाँ तक कि हमने किसी पंडित जी को भी नहीं बुलाया ।सब कुछ इतना साधरण सोच कर किया था परंतु ईश्वर की कृपा से वो साधारण प्रोग्राम इतना असाधारण हो गया जिसको हम ईश्वर की कृपा समझे,तो कोई शक नही ।अचानक हमारे गावँ के मंदिर के पुजारी भी आ गए जिनके आने का कोई प्लान नही था।मेरी बहन इंद्रा जो हर कार्य मे बहुत ही होशियार है,उसने अचानक पंडित जी के कपड़े पहन लिए
और सबको हंसा रही थी।अचानक कोई अनजान पड़ोसी हवन की सामग्री ले आये।मेरी बहन ने ईटो का हवन कुंड बना दिया।मेरा भाई तो इन सब चीजों से अनजान था।उसको तो समझ मे भी नही आ रहा था कि हो क्या रहा है।फिर वो गावँ के पुजारी हवन मे बैठकर हवन करने लगे,मेरी बहन पंडित का वेश पहनकर मंत्र उच्चारण करने लगी
और धीरे धीरे जो भी घर के थोड़े बहुत मेहमान थे,वो सब उस हवन यज्ञ के आस पास बैठ गए।सभी लोग ॐ का उच्चारण करके हवन मे घी डालने लगे।सबकी आंखे इस दृश्य को देखकर आश्चर्य से भर रही थी कि इस छोटे से प्रोग्राम को किसने इतना बड़ा कर दिया।बिना पंडित को बुलाये भी हवन हो गया,ये ईश्वर का चमत्कार ही था।हम सभी देवी माँ की इस कृपा को देख रहे थे
और सोच रहे थे कि ईश्वर जो करता है,वो ही होता है।
और उस दिन की खुशियां यही खत्म नहीं होती।आगे और एक चमत्कार होता है।जिस समय हवन चल रहा था तभी मेरे सबसे छोटे भाई अरुण को देखने उसी समय लड़की वाले भी आ जाते है।वो भी इस दृश्य को देखकर आश्चर्य हो जाते है कि एक लड़की पंडित बनकर हवन करवा रही है।
वो लड़की वाले शाम तक हमारे घर ही रुके।जब सारा कार्यक्रम निपट गया तो लड़की वालों ने अरुण के लिए रिश्ते की बात छेड़ी।मेरी मम्मी और पप्पू ने उनसे कहा कि थोड़े दिन एक दूसरे को समझ ले,आपकी लड़की और हमारा लड़का भी एक दूसरे को पसंद कर ले,फिर समझ मे आ गया तो सगाई कर देंगे।पर आश्चर्य की बात ये थी कि लड़की वाले तो उसी समय मिठाई का डिब्बा और नारियल ले आये और तुरंत सगाई के लिए तैयार हो गए।हमारे बार बार मना करने पर भी वो न माने और अरुण को सगाई का तिलक कर दिया
और साथ ही अप्रेल मे शादी करने का समय भी निश्चित कर दिया।सब कुछ ऐसे हो रहा था जैसे भगवान की फिल्मों मे होता हो।उस दिन का वातावरण देखने योग्य था।जिस किसी ने भी सुना,वो ईश्वर की कृपा का बखान किये बिना नहीं रह रहा था।
और साथ ही अप्रेल मे शादी करने का समय भी निश्चित कर दिया।सब कुछ ऐसे हो रहा था जैसे भगवान की फिल्मों मे होता हो।उस दिन का वातावरण देखने योग्य था।जिस किसी ने भी सुना,वो ईश्वर की कृपा का बखान किये बिना नहीं रह रहा था।
अब तो खुशी दुगुनी हो गई
।एक भाई के नए घर की और दूसरे की शादी की।अब तो हम सब उसकी शादी की तैयारी के सपने देखने लग गए।सबसे बड़ी खुशी मम्मी के चेहरे पर थी
क्योंकि वो अरुण की शादी करके अपने कर्तव्य से मुक्त होना चाहती थी।और उनकी ये प्रार्थना भगवान ने सुनी और क्यो नहीं सुनेगा,मेरी मम्मी ने कई लोगो के काम सुधारे।अपना काम बिगाड़कर लोगो को समय दिया।जो कोई भी मेरी मम्मी को कुछ काम कहता,कभी किसी को मना नहीं करती।अपने सेहत का ध्यान रखे बिना जो लोगो के लिए भागती रहती है,ऐसी दरियादिल औरत के कार्य करने मे भगवान कैसे पीछे रह सकते थे और
यही कारण था कि ईश्वर ने कुछ ही मिनटों मे उनकी बरसो की इच्छा पूरी कर दी।
।एक भाई के नए घर की और दूसरे की शादी की।अब तो हम सब उसकी शादी की तैयारी के सपने देखने लग गए।सबसे बड़ी खुशी मम्मी के चेहरे पर थी
क्योंकि वो अरुण की शादी करके अपने कर्तव्य से मुक्त होना चाहती थी।और उनकी ये प्रार्थना भगवान ने सुनी और क्यो नहीं सुनेगा,मेरी मम्मी ने कई लोगो के काम सुधारे।अपना काम बिगाड़कर लोगो को समय दिया।जो कोई भी मेरी मम्मी को कुछ काम कहता,कभी किसी को मना नहीं करती।अपने सेहत का ध्यान रखे बिना जो लोगो के लिए भागती रहती है,ऐसी दरियादिल औरत के कार्य करने मे भगवान कैसे पीछे रह सकते थे और
यही कारण था कि ईश्वर ने कुछ ही मिनटों मे उनकी बरसो की इच्छा पूरी कर दी।
अब तो हम अगले दिन से ही शादी के लिए योजना बनाने लग गए।
।मै तो इतनी खुश थी कि मारे खुशी के अगले दिन ही बाजार से अरुण के लिए खरीददारी करने चली गईI
।अब तो मेरे घर पर मेरा मन ही नहीं लगता था,बार बार मम्मी के आती जाती रहती और हर समय शादी की कुछ न कुछ योजना मन मे चलती रहती।मेरे भाई बहनों के प्रति बचपन से ही मुझे न जाने क्यों इतना स्नेह है कि इनके अच्छे बुरे के बारे मे सोचती ही रहती हूं।कई बार अपने आप को समझाने की कोशिश करती हूं कि अब ये सब बड़े हो गए है।अपना अच्छा बुरा सब स्वयं समझते है फिर भी मन वो ही बचपन वाला ही रहता है,
शायद यही कारण है कि पापा ने मुझे शुरू से ही इन भाई बहनों का ध्यान रखने की शिक्षा जो दी
और शिक्षा ऐसी दे दी कि जीवन के इतनो वर्षो बाद भी भूल नही पा रही हूं।
।मै तो इतनी खुश थी कि मारे खुशी के अगले दिन ही बाजार से अरुण के लिए खरीददारी करने चली गईI
।अब तो मेरे घर पर मेरा मन ही नहीं लगता था,बार बार मम्मी के आती जाती रहती और हर समय शादी की कुछ न कुछ योजना मन मे चलती रहती।मेरे भाई बहनों के प्रति बचपन से ही मुझे न जाने क्यों इतना स्नेह है कि इनके अच्छे बुरे के बारे मे सोचती ही रहती हूं।कई बार अपने आप को समझाने की कोशिश करती हूं कि अब ये सब बड़े हो गए है।अपना अच्छा बुरा सब स्वयं समझते है फिर भी मन वो ही बचपन वाला ही रहता है,
शायद यही कारण है कि पापा ने मुझे शुरू से ही इन भाई बहनों का ध्यान रखने की शिक्षा जो दी
और शिक्षा ऐसी दे दी कि जीवन के इतनो वर्षो बाद भी भूल नही पा रही हूं।
और अरुण तो मुझसे 15 साल छोटा है
तो उसके प्रति तो ज्यादा ही लगाव है।जब मेरी शादी हुई थी तब अरुण मात्र 4 साल का था।मम्मी तो काम मे बहुत व्यस्त रहते थे तो मैं दिन भर उसी को ले लेकर घूमती रहती थी।जब मेरी शादी के 1 वर्ष बाद मेरे बेटा हुआ तो मुझे ऐसा लगा कि मेरे दूसरा बेटा हुआ है,
क्योंकि अरुण मुझे बेटे की तरह ही प्रिय था
शायद इसीलिए उसकी शादी की इतनी खुशी हो रही थी मुझे।और मुझे ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को इसकी खुशी थी क्योंकि अरुण हम सब भाई बहनों के होने के बहुत समय बाद हुआ था।
तो उसके प्रति तो ज्यादा ही लगाव है।जब मेरी शादी हुई थी तब अरुण मात्र 4 साल का था।मम्मी तो काम मे बहुत व्यस्त रहते थे तो मैं दिन भर उसी को ले लेकर घूमती रहती थी।जब मेरी शादी के 1 वर्ष बाद मेरे बेटा हुआ तो मुझे ऐसा लगा कि मेरे दूसरा बेटा हुआ है,
क्योंकि अरुण मुझे बेटे की तरह ही प्रिय था
शायद इसीलिए उसकी शादी की इतनी खुशी हो रही थी मुझे।और मुझे ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को इसकी खुशी थी क्योंकि अरुण हम सब भाई बहनों के होने के बहुत समय बाद हुआ था।
फिर क्या था,हम सब भाई बहन अपने अपने तरीके से उसकी शादी की तैयारिया करने लगे।मेरा दूसरे नंबर का भाई पप्पू ने तो अरुण की शादी मे दिल खोलकर खर्चा किया।
और क्यों नहीं करेगा,आखिर उसने अरुण को अपने पुत्र की तरह जो रखा था।
पापा के जाने के बाद अरुण की हर ज़िमेदारी को पप्पु ने बखूबी निभाया ।मैं तो 2 महीने पहले ही मम्मी के यही रहने लगी।मुझे अरुण के पास रहने का एक सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ।
मैं रोज उसी के कमरे मे सोती और उसको जीवन के नए पड़ाव के अनुभव सिखाती रहती।धीरे धीरे दूसरी बहने भी मम्मी के यहाँ रहने आ गई।हम सब इतने सालों बाद एक साथ रहने लगे।
हर दिन कुछ न कुछ नया बनाते,खाते ,नाच गाना करते और बहुत मस्ती करते
।मैं तो अरुण को रोज साफा बाँध बांध कर उसे दूल्हे के रूप मे देख देखकर खुश होती।
लेकिन मेरे अनुशासन की आदत ने यहाँ भी भाई बहनों का पीछा नहीं छोड़ा।सबके ऊपर अपनी पूरी धाक जमाने की कोशिश करती।मुझे हर कार्य समय से चाहिए होता ।मैं चाहती थी कि सब जने सुबह जल्दी उठे और काम को योजनाबद्ध तरीके से करे,पर आज के वर्तमान युग की जनरेशन के साथ ये आशा रखना व्यर्थ थी,क्योंकि आज के समय मे लोगो को देर तक सोना ही अच्छा लगता है।मेरे भाई बहन और उनके बच्चे भी जब इतनी देर से उठते थे तो मुझे अच्छा नही लगता था।मैं अपने अनुशासन रूपी डंडे से सबको डराती थी लेकिन किसी पर कोई असर नहीं होता था,यहाँ तक कि मेरा बेटा शुभम भी मेरी बात का अनुसरण नहीं करता था।मैं बहुत परेशान हो जाती तो मैंने अपने नियम और अनुशासन का डंडा अरुण पर चलाया।मैं अरुण के कमरे मे रहती तो मैं उसको समय से उठा देती,उसको काम के नियम समझाती।अरुण थोड़ा बहुत मुझसे डरता था तो उसने मेरी बात का अनुसरण किया और वो नियम से अपनी दिनचर्या करने लगा तो मुझे इतना सुकून मिला कि
ऐसा लगा मानो मेरा कोई प्रोजेक्ट सफल हो गया हो।मैं अपने आप को बहुत समझाती कि शादी के माहौल मे अनुशासन और नियम काम नहीं करते फिर भी अपनी आदत नहीं बदल पाई और इस कारण सभी भाई बहन शादी मे मुझसे नाराज ही रहते थे।फिर भी खुशियां कम नहीं हुई।
नाराजगी,रूठना,मनाना सब चलता रहा और 19 अप्रेल को बड़ी धूमधाम से अरुण की बारात लेकर गए।
वैसे आम तौर पर शादी ब्याह मे रिश्तेदार कुछ न कुछ समस्या खड़ी कर देते है,पर अरुण की शादी मे किसी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आई
और क्यों नहीं करेगा,आखिर उसने अरुण को अपने पुत्र की तरह जो रखा था।
पापा के जाने के बाद अरुण की हर ज़िमेदारी को पप्पु ने बखूबी निभाया ।मैं तो 2 महीने पहले ही मम्मी के यही रहने लगी।मुझे अरुण के पास रहने का एक सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ।
मैं रोज उसी के कमरे मे सोती और उसको जीवन के नए पड़ाव के अनुभव सिखाती रहती।धीरे धीरे दूसरी बहने भी मम्मी के यहाँ रहने आ गई।हम सब इतने सालों बाद एक साथ रहने लगे।
हर दिन कुछ न कुछ नया बनाते,खाते ,नाच गाना करते और बहुत मस्ती करते
।मैं तो अरुण को रोज साफा बाँध बांध कर उसे दूल्हे के रूप मे देख देखकर खुश होती।
लेकिन मेरे अनुशासन की आदत ने यहाँ भी भाई बहनों का पीछा नहीं छोड़ा।सबके ऊपर अपनी पूरी धाक जमाने की कोशिश करती।मुझे हर कार्य समय से चाहिए होता ।मैं चाहती थी कि सब जने सुबह जल्दी उठे और काम को योजनाबद्ध तरीके से करे,पर आज के वर्तमान युग की जनरेशन के साथ ये आशा रखना व्यर्थ थी,क्योंकि आज के समय मे लोगो को देर तक सोना ही अच्छा लगता है।मेरे भाई बहन और उनके बच्चे भी जब इतनी देर से उठते थे तो मुझे अच्छा नही लगता था।मैं अपने अनुशासन रूपी डंडे से सबको डराती थी लेकिन किसी पर कोई असर नहीं होता था,यहाँ तक कि मेरा बेटा शुभम भी मेरी बात का अनुसरण नहीं करता था।मैं बहुत परेशान हो जाती तो मैंने अपने नियम और अनुशासन का डंडा अरुण पर चलाया।मैं अरुण के कमरे मे रहती तो मैं उसको समय से उठा देती,उसको काम के नियम समझाती।अरुण थोड़ा बहुत मुझसे डरता था तो उसने मेरी बात का अनुसरण किया और वो नियम से अपनी दिनचर्या करने लगा तो मुझे इतना सुकून मिला कि
ऐसा लगा मानो मेरा कोई प्रोजेक्ट सफल हो गया हो।मैं अपने आप को बहुत समझाती कि शादी के माहौल मे अनुशासन और नियम काम नहीं करते फिर भी अपनी आदत नहीं बदल पाई और इस कारण सभी भाई बहन शादी मे मुझसे नाराज ही रहते थे।फिर भी खुशियां कम नहीं हुई।
नाराजगी,रूठना,मनाना सब चलता रहा और 19 अप्रेल को बड़ी धूमधाम से अरुण की बारात लेकर गए।
वैसे आम तौर पर शादी ब्याह मे रिश्तेदार कुछ न कुछ समस्या खड़ी कर देते है,पर अरुण की शादी मे किसी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आई
और बहुत ही अच्छे से उसकी शादी का सारा काम हुआ,शायद ये माता पिता के आशीर्वाद का ही फल था।
घर मे सबसे छोटा होने के नाते मेरे मम्मी पापा अरुण को बहुत प्यार करते थे।जब पापा इस दुनिया से गये थे तो उनको अरुण की ही चिंता थी।वैसे माता पिता का जिस संतान के प्रति विशेष प्रेम होता है,उन्हें उनके आशीर्वाद से उनके हिस्से की खुशियां भी सहज ही मिल जाती है।अरुण पर उस पिता के आशीर्वाद के साथ पूरे परिवार का प्यार है
और जिसके हिस्से मे प्यार आता है वो न तो कभी दुनिया मे अकेला होता है और न ही कभी निर्धन।
वो हमेशा खुश रहे,यही पूरे परिवार की दुआ है।जय साँवरिया सेठ की
घर मे सबसे छोटा होने के नाते मेरे मम्मी पापा अरुण को बहुत प्यार करते थे।जब पापा इस दुनिया से गये थे तो उनको अरुण की ही चिंता थी।वैसे माता पिता का जिस संतान के प्रति विशेष प्रेम होता है,उन्हें उनके आशीर्वाद से उनके हिस्से की खुशियां भी सहज ही मिल जाती है।अरुण पर उस पिता के आशीर्वाद के साथ पूरे परिवार का प्यार है
और जिसके हिस्से मे प्यार आता है वो न तो कभी दुनिया मे अकेला होता है और न ही कभी निर्धन।
वो हमेशा खुश रहे,यही पूरे परिवार की दुआ है।जय साँवरिया सेठ की
जिंदगी की ना टूटे लड़ी ,प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी
लंबी लंबी उमरिया को छोड़ो
प्यार की एक घड़ी बड़ी
उन आंखों का हंसना भी क्या जिन आंखों मे पानी न हो,और वो जिंदगानी भी क्या,जिसकी कोई कहानी न हो
मेरे जन्म दिन का वो अविस्मरणीय दिन
23 अप्रेल 2019 का दिन था।मैं उस दिन अपनी मम्मी के यहाँ ही थी क्योंकि उस समय हाल ही मे 19 अप्रेल की मेरे भाई की शादी हुई थी।इसलिए मैं घर नहीं गई थी।करीबन 10 बजे शुभम ने कहा कि मम्मी मैं घर जा रहा हु,मुझे जरूरी काम है।वो 10 बजे मेरी मम्मी के यहाँ से घर के लिए निकल गया।घर पहुँच कर 1 घंटे बाद उसने मुझे फोन किया और कहा कि मम्मी कुछ जरूरी काम है,
आप तुरंत घर आ जाओ।मैं चिंतित हो गई कि अभी तो वो यहाँ से निकला है और क्या काम हो सकता है।पर मेरे पूछने पर भी उसने नही बताया ।मुझे भी चिंता हुई तो मैं जल्दी से मम्मी के यहाँ से निकल गई और घर पहुंच गई।घर जाकर देखा तो मेरा पूरा घर गुलाब की खुशबू से महक रहा था।
मैंने देखा कि चारो तरफ गुलाब के फूल बिछे हुए थे और
शुभम की एक दोस्त ने ये सब किया था।टेबल पर गुलाब के फूलो के बीचों बीच लड्डू गोपाल जी बैठे हुए थे।और दीपक जल रहे थे।मेरी आँखें इस दृश्य को देखती ही रह गई कि
मेरे जन्म दिन पर लड्डू गोपाल जी मेरे जीवन मे आये,
इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता था मेरे जन्म दिन का।
मैंने शुभम की दोस्त आरू को और शुभम को ऐसे अदभुत sarprize के लिए धन्यवाद दिया।
फिर मेरा केक काटा और हम कृष्ण जी के गाने पर खूब नाचे।मुझे मेरा बरसो का सपना पूरा होता नजर आया।आज से 10 साल से ही मैं लड्डू गोपाल जी की छवि को अपने मन मे बैठा रखा था।इन 10 सालो मे मैं जिस किसी के घर लड्डू गोपालजी को देखती तो उन पर मुग्ध हो जाती
और कितने ही जनों से मैं उनके बारे मे ये पूछती रहती की इनकी सेवा कैसे की जाती है।जब कई लोग ये बता कर डरा देते थे कि लड्डू गोपाल की समय समय पर नियमपूर्वक पूजा की जाती है।इनकी पूजा मे एक दिन का भी व्यवधान नही चलता है।जब मैं ये सोचती तो उदास हो जाती,ये सोचकर कि मेरे व्यस्त जीवन मे मैं विधिविधान से इनकी सेवा कैसे कर सकती हूं?और इसी कारण कई बार नाथद्वारा से लड्डू गोपाल जी को लाते लाते रुक गई कि इनकी सेवा मैं नहीं कर पाउंगी।लेकिन इनको देखते ही मेरी दृष्टि इनकी और ललचाती रहती।
आप तुरंत घर आ जाओ।मैं चिंतित हो गई कि अभी तो वो यहाँ से निकला है और क्या काम हो सकता है।पर मेरे पूछने पर भी उसने नही बताया ।मुझे भी चिंता हुई तो मैं जल्दी से मम्मी के यहाँ से निकल गई और घर पहुंच गई।घर जाकर देखा तो मेरा पूरा घर गुलाब की खुशबू से महक रहा था।
मैंने देखा कि चारो तरफ गुलाब के फूल बिछे हुए थे और
शुभम की एक दोस्त ने ये सब किया था।टेबल पर गुलाब के फूलो के बीचों बीच लड्डू गोपाल जी बैठे हुए थे।और दीपक जल रहे थे।मेरी आँखें इस दृश्य को देखती ही रह गई कि
मेरे जन्म दिन पर लड्डू गोपाल जी मेरे जीवन मे आये,
इससे बड़ा तोहफा और क्या हो सकता था मेरे जन्म दिन का।
मैंने शुभम की दोस्त आरू को और शुभम को ऐसे अदभुत sarprize के लिए धन्यवाद दिया।
फिर मेरा केक काटा और हम कृष्ण जी के गाने पर खूब नाचे।मुझे मेरा बरसो का सपना पूरा होता नजर आया।आज से 10 साल से ही मैं लड्डू गोपाल जी की छवि को अपने मन मे बैठा रखा था।इन 10 सालो मे मैं जिस किसी के घर लड्डू गोपालजी को देखती तो उन पर मुग्ध हो जाती
और कितने ही जनों से मैं उनके बारे मे ये पूछती रहती की इनकी सेवा कैसे की जाती है।जब कई लोग ये बता कर डरा देते थे कि लड्डू गोपाल की समय समय पर नियमपूर्वक पूजा की जाती है।इनकी पूजा मे एक दिन का भी व्यवधान नही चलता है।जब मैं ये सोचती तो उदास हो जाती,ये सोचकर कि मेरे व्यस्त जीवन मे मैं विधिविधान से इनकी सेवा कैसे कर सकती हूं?और इसी कारण कई बार नाथद्वारा से लड्डू गोपाल जी को लाते लाते रुक गई कि इनकी सेवा मैं नहीं कर पाउंगी।लेकिन इनको देखते ही मेरी दृष्टि इनकी और ललचाती रहती।
मुझे क्या पता कि ये दीनानाथ,ये कृपा निधान,ये अंतर्यामी,ये जगत पति मेरे मन की इच्छा को इस तरह पूरा करेंगे कि ईश्वर की किसी नेक बंदी के द्वारा ये मेरे घर पधारेंगे
।ईश्वर के इतने चमत्कारों को मैं महसूस कर रही थी जिसको अभिव्यक्त भी नहीं कर सकती।वाह रे प्रभु,तेरी लीला।जन्म दिन के इस अनमोल तोहफे को जन्म जन्म तक नहीं भूल पाउंगी।
।ईश्वर के इतने चमत्कारों को मैं महसूस कर रही थी जिसको अभिव्यक्त भी नहीं कर सकती।वाह रे प्रभु,तेरी लीला।जन्म दिन के इस अनमोल तोहफे को जन्म जन्म तक नहीं भूल पाउंगी।
जय सावरिया सेठ की जय हो।
।। सत्यमेव जयते।।
DATE : 7 मार्च 2021
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