एक सत्य कहानी-बापकर्मी या आपकर्मी
बाप कर्मी या आप कर्मी?
बहुत वर्षो पहले बीसलदेव नाम के एक राजा थे।उनकी 7 बेटियां थी।राजा ने अपनी 6 बेटियों की शादियां कर दी थी और 6 बेटियों के दामाद को घर जमाई बनाकर अपने ही महल मे रहने के लिए स्थान दे दिया था।राजा के पास अपार धन और वैभव था। उनकी कीर्ति चारों तरफ फैली हुई थी।धीरे धीरे राजा को अभिमान आ गया था।राजा को लगने लगा कि इस राज्य मे सभी लोग उसी के भाग्य का खाते है।एक दिन राजा ने अपने सभी मंत्रियों और दास दासियों को बुलाकर पूछा कि,तुम सब लोग किसके भाग्य का खाते होसभी ने उत्तर दिया कि,है राजन!हम तो आपका दिया हुआ ही खाते है,इसलिए हमारा भाग्य ही आपसे जुड़ा है।इस तरह राजा ने अपनी रानियों से भी यही प्रश्न किया।रानियों ने भी यही कहा कि,हम तो राजा के भाग्य का ही खाते है।फिर राजा ने अपनी 6 बेटियों और दामाद को भी बुलाकर यही पूछा तो सभी ने यही कहा कि,हम सब राजा के भाग्य का ही खाते है।अंत मे राजा ने अपनी सबसे छोटी बेटी जो कुँवारी थी,जिसका नाम पदमा था,उससे पूछा कि ,बताओ बेटी तुम बाप कर्मी हो या आप कर्मी।पदमा सत्यवादी थी और बहुत ही धर्म कर्म के मर्म को जानने वाली थी।उसने अपने पिता से कहा कि,पिताजी हर इंसान अपने कर्म का ही खाता है।मैं तो आप कर्मी ही हु और मैं अपने ही भाग्य का खा रही हु,आप तो केवल एक निमित्त मात्र ही हो।ये सुनकर राजा को क्रोध आ गया और उसने अपनी बेटी से कहा कि,तुम मेरा खाती हो और अपने आप को आपकर्मी बता रही हो।तुम जानती नहीं कि तुम मेरा कितना अपमान कर रही हो।मैं इसके लिए तुम्हे दंड भी दे सकता हु।इसलिए अपने शब्द वापस ले लो और कह दो कि, तुम भी मेरे ही भाग्य का खाती हो।पदमा अपनी बात पर अडिग रही और कहा कि,पिताजी मैं तो यही मानती हूं कि हर इंसान भगवत के सहारे ही इस संसार मे रहता है और वो अपना भाग्य स्वयं बनाता है।इसलिए इंसान आप कर्मी ही होता है।अब तो राजा का क्रोध और बढ़ गया।उन्होंने अपने दरबारियों को आदेश दिया कि,कल सुबह भोर होते ही जंगल की तरफ जाना।तुम्हे रास्ते मे जो भी पहला प्राणी मिले, उसे उठाकर ले आना।महल के सभी लोग और रानियों को पता ही नहीं चल रहा था कि आखिर राजा क्या कर रहे है।अपने राजा का आदेश पाकर दरबारी सुबह उठते ही जंगल की तरफ गए तो उनको सबसे पहले एक मोर दिखा।उन्होंने मोर को पकड़ लिया और राजा के सामने ले आये।राजा ने ऐलान किया कि,मेरी सबसे छोटी बेटी पदमा का विवाह इस मोर के साथ कर दिया जाए और बिना कुछ दिए इस लड़की को मोर के साथ विदा कर दिया जाए।आखिर मैं भी देखना चाहता हु की,ये किसके भाग्य का खाती है।
पदमा की माँ राजा के इस फैसले से बहुत रोइ और उसने राजा को समझाया कि,अपनी बेटी के साथ इतना बड़ा अन्याय मत करो।परंतु राजा तो अपने अभिमान मे इतना डूब चुका था कि उसको अपनी पुत्री पर दया नहीं आई और उन्होंने उस मोर के साथ पदमा का विवाह कर दिया।पदमा ने बिना कुछ कहे ईश्वर की मर्जी समझकर उस मोर के साथ विवाह किया और मोर के साथ जंगल की तरफ चली गई।काफी दूर तक चलने के बाद एक जगह पेड़ के नीचे अपने मोर के साथ विश्राम के लिए रुकी।मोर भी एक जगह बैठ गया और पदमा को वहीं पर नींद आ गई।रात को अचानक तेज आंधी आई और एक चट्टान के पत्थर के प्रहार से मोर घायल हो गया और कुछ ही देर मे उसकी मृत्यु हो गई।अचानक पदमा की नींद खुली तो उसने अपने आस पास मोर को ढूंढा तो मोर दिखाई नहीं दिया।उसने इधर उधर देखा तो पाया कि उसका मोर पति तो खून से लथपथ था और मर चुका था।पदमा जोर जोर से विलाप करने लगी और ईश्वर को पुकारने लगी कि,है ईश्वर अब इस भयानक जंगल मे मेरी पुकार आपके सिवा कौन सुनेगा।जिस मोर पति से मेरा विवाह हुआ,वो भी अब मर गया तो अब मैं कहाँ जाऊं ,मैंने तो तेरे भरोसे ही इस सत्य का पालन किया है कि,मैं आप कर्मी हु।अब मैं कहाँ जाऊं।
पदमा की करुण पुकार से पूरा देवलोक हिलने लगा ,इंद्र का सिंहासन भी डोलने लगा ,यहाँ तक कि शिवजी का कैलाश पर्वत भी डोलने लगा।ये देखकर पार्वती जी ने भोलेनाथ से प्रार्थना करी कि, हमे शीघ्र पृथ्वी लोक पर जाना चाहिए,पता नहीं किस भक्त पर संकट आया है।शंकर भगवान ने पार्वतीजी को समझाया कि,पृथ्वी पर लाखों लोग दुःखी है।हम किस किस का दुःख दूर करेंगे।लेकिन पार्वती जी ने ज़िद करी और शंकर भगवान से कहा कि,जब कोई सच्चा व्यक्ति दुःखी होता है,तभी देवलोक डोलता है और एक सच्चे इंसान की सहायता ईश्वर ही कर सकते है।पार्वती की बात सुनकर शंकर भगवान अपनी पत्नी के साथ पृथ्वी लोक पर गए जहाँ पदमा अकेली जंगल मे रो रही थी।पार्वती माता ने पदमा के सिर पर दुलार भरा हाथ रखा और कहा कि,बेटी तुम क्यों दुःखी हो।पदमा ने अपनी पूरी बात कही।भगवान तो अंतर्यामी थे,फिर भी उन्होंने पदमा से उसके दुःख का कारण जाना और पदमा की सच्चाई से खुश होकर बोले कि,बेटी पदमा, तुमने जो कुछ भी अपने पिताजी से कहा था वो सत्य है।।हर इंसान अपने कर्म का ही खाता है।तुम धन्य हो,तुमने निर्भीक होकर सत्य का पालन किया।जिस मोर के साथ तुमने विवाह किया वो एक श्राप के कारण मोर बना ।ये मोर पति तो एक राजा था।तुमसे विवाह के बाद ही ये श्राप से मुक्त हो सकता था,इसलिए ये विधि का विधान था ।ये कहकर भोलेनाथ जी ने उस मोर को जिंदा कर दिया और एक पुरुष बना दिया।मोर उसी समय एक सुंदर राजकुमार बन गया।ये देखकर पदमा और ज्यादा दुःखी हो गई ।उसने शंकर भगवान से कहा कि,है प्रभु,यदि मैं इस राजकुमार पुरष के साथ रहने लगी और मेरे पिताजी ने देख लिया तो वो मुझे कुल्टा कहेंगे।सारी दुनिया जानती है कि मैने मोर के साथ विवाह किया है।फिर मैं कैसे लोगो को समझा पाउंगी कि, ये मेरे पति है।पदमा ने कहा कि,है ईश्वर,मुझे तो मेरा मोर पति ही चाहिए।पदमा की बात सुनकर शंकर भगवान ने उस पुरुष के सिर पर एक मोर कलंगी लगा दी ताकि संसार ये जान सके कि,एक मोर कैसे पुरुष बना और कैसे पदमा ने अपने कर्मो से एक मोर को पुरुष बनाया।शंकर भगवान ने पदमा के पति को मोरध्वज राजा का नाम दिया और एक नगर का निर्माण किया जहाँ का राजा मोरध्वज कहलाया।उसी समय शंकर पार्वती ने उन्हें आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए।अब दोनों पति पत्नी आनंदपूर्वक रहने लगे।
उधर पदमा के पिताजी अपना सम्पूर्ण राज्य एक युद्ध मे हार गए और वो रास्ते के भिखारी बन गए।एक दिन भीख मांगते हुए वो उसी नगर मे आये जहाँ राजा मोरध्वज अपनी पत्नी पदमा के साथ रहता था।पदमा ने अपने पिताजी को देखते ही पहचान लिया और अपने पिताजी के चरण स्पर्श किये।पदमा के साथ उसके पति मोरध्वज ने भी पदमा के पिताजी को प्रणाम किया।पदमा के पिताजी ने पदमा को जब मोरध्वज के साथ देखा तो वो पदमा पर नाराज हो गए।उन्होंने पदमा से कहा कि,मैंने तो तुम्हे मोर पति के साथ विदा किया था और तुमने किसी और पुरुष से विवाह कर लिया।इस पर पदमा ने अपने पिताजी को पूरी बात बताई की ,किस तरह भगवान ने मोर को एक पुरुष बना दिया।पदमा ने अपने पिताजी से कहा कि,पिताजी मैं आपकर्मी ही हु,और अपने भाग्य का ही खाया है।आपने तो मुझे मोर के साथ विदा किया,पर मेरे भाग्य मे मोरध्वज राजा के साथ रहना लिखा था।इसलिए इस दुनिया मे हर इंसान अपने कर्मो से ही अपने सुख दुःख का निर्माण करता है।अपनी बेटी पदमा की बात सुनकर पदमा के पिताजी को अपनी भूल का पश्चताप हुआ और उन्होंने अपनी पुत्री से क्षमा मांगी।अपनी पुत्री पदमा के सहयोग से उन्होंने अपना राज्य वापस प्राप्त किया।
विशेष- हर इंसान अपने जीवन मे जो कुछ भी पाता है या खोता है,वो उसके अपने ही कर्म होते है।माता पिता अपनी संतान के पालन पोषण के एक निमित पात्र होते है,पर भाग्य निर्माता नहीं हो सकते।
इसलिए इंसान आपकर्मी होता है,बापकर्मी नहीं।
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