मेरा सच चरण 9- ईश्वर के प्रति मेरी नारजगी का अनोखा दृश्य

इस तरह दिन बीतते गए और मै कक्षा 8वी मे आ गई। कक्षा 8वी उस स्कूल मे अंतिम साल था।मुझे पुरे स्कूल मे फर्स्ट आना था इसलिए बहुत मेहनत करनी थी।उस साल मैं कही नहीं गई यहाँ तक कि ननिहाल भी नहीं।पुरे जोर शोर से पढाई चल रही थी।मेरी कक्षा मे 4 लडकिया पढ़ती थी जो मेरे मौहल्ले मे ही रहती थी।

वो सब लडकिया पढ़ने के लिए रात को मेरे घर सोने आती थी। मेरे घर मे जगह नहीं थी,केवल एक कमरा और एक रसोई ही थी।हम 4 लडकिया उस छोटी सी रसोई मे पढ़ती थी।रसोई इतनी छोटी थी कि हमारे पैर भी लंबे नहीं होते थे इसलिए हम लोग पूरी रात सोते नहीं थे।रात भर maths के सवाल करते थे जिससे हमें  नींद ही नहीं आती थी। पापा अक्सर मुझे इस बात पर डांटते थे कि कि तूने क्या घर मे स्कूल खोल रखा है? पापा की रोज डॉट सुनती थी पर सहेलियों को घर आने के लिए मना नहीं कर पाती थी



          अप्रैल मे वार्षिक परीक्षा शुरू हो गई।मैने school top करने के उद्देश्य से पूरी मेहनत करी थी,परन्तु रिजल्ट आया तो पाया कि एक लड़का मुझसे 13 नंबर से आगे हो गया और मै स्कूल टॉप से वंचित रह गई।पर पूरे स्कूल मे मेरा  दूसरा स्थान था।सभी टीचर मेरी प्रशंसा कर रहे थे पर मुझे बिल्कुल ख़ुशी नहीं हुई क्योकि मेरा सपना स्कूल टॉप का था। उसी दिन स्कूल मे हमारा विदाई का दिन था।एक तरफ स्कूल टॉप न करने का गम था तो दूसरी तरफ स्कूल से विदाई लेने का गम था। सभी टीचर से इतना लगाव और प्रेम हो गया था क़ि उनसे विदा होना भारी लग रहा था।  पर सच तो यही था कि आगे की पढाई के लिए स्कूल तो छोड़ना ही था।सबसे आशीर्वाद लिया और विदाई  ली। घर जाकर  भगवान की तस्वीर के आगे हाथ जोड़े और नाराजगी जताई कि मुझे स्कूल टॉप क्यों नहीं कराया? नाराजगी इतनी गहरी थी कि नासमझी मे आकर भगवान् की सब तस्वीरे नीचे पटक दी।।उस समय मुझे नहीं पता था कि तस्वीरे किन किन देवता की थी।।बाद मे जब गुस्सा ठंडा हुआ तो पता चला कि केवल 9 ग्रह देवता यानि कि शनिदेव की तस्वीर ही  फूटी बाकी सारी सही सलामत थी।


वो मेरे जीवन संघर्ष की एक रचना थी जिसे स्वयं ईश्वर ने बड़ी विधि से रचा था। उसी समय से मेरे जीवन की परीक्षा शुरू हो गई थी।शनि का क्रोध ही मेरे सत्य की असली कसौटी थी  जिसे मैंने अपने जीवन के अब तक के सफर मे कई बार दी है।लेकिन शनिदेव की इसी रचना ने मुझे 20 साल बाद साक्षात शानिदेवजी के दर्शन कराए जो मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है और उस स्वप्न दृश्य को मैं कई जन्मों तक नहीं भूल सकती।किस तरह शनिदेव जी के दर्शन मुझे प्राप्त हुए,उसकी झांकी का अनुभव मैं आपके साथ अपनी कहानी मे करूँगी।
               बस फिर क्या था आये दिन पापा की डांट और ताने मिलते थे। शरारत चाहे भाई बहिन करे पर डॉट हमेशा मैं ही झेलती थी।मैं जितना पापा को खुश करने की कोशिश करती पापा उतना ही क्रोधित होते थे। कितना भी अच्छा खाना बना लु पर पापा को कभी पसंद नहीं आता था।लेकिन भगवान् के प्रति इतनी आस्था थी कि हर छोटी छोटी बात के लिए भगवान् के सामने खड़ी हो जाती


और उनसे इस तरह बात करती जैसे घर के सदस्यों से। जब भी पापा डांटते ,जाकर भगवान् के सामने ही रोती थी ।एक तरफ भगवान मुझे रुलाते तो दूसरी तरफ मेरे खुश होने का कोई न कोई मार्ग भी मेरे सामने ले आते।पापा केवल डांटते ही नही थे बल्कि पिटाई भी करते थे जो मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता था ,लेकिन आश्चर्य की बात ये होती थी कि जिस दिन भी पापा मुझे मारते थे,उसी दिन शाम को कही न कही से सत्संग या रात्रि जागरण का न्योता आ जाता था।हालांकि पापा हम बच्चो को कही जाने नही देते थे,पर फिर भी मै मम्मी से ज़िद करके उनके साथ भजन मे चली जाती थी।मुझे भजन मे नाचना और गाना बहुत अच्छा लगता था।उन भजनों मे इतना मग्न हो जाती कि पापा की करी हुई पिटाई भी भूल जाती थी।

जहाँ एक तरफ पापा की सख्ती के कारण परेशान हो जाती तो दूसरी तरफ भजन रूपी शीतल जल से मै वापस शीतल हो जाती ।इतनी छोटी उम्र मे भजन के प्रति जो लगाव जागा, वो किसी ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं था। 
एक दिन की बात है।हम सब शाम को खाना खा रहे थे और पापा ने मुझसे एक प्रश्न किया कि बेटा राधा,बता,तू बाप कर्मी है कि आप कर्मी ।मुझे प्रश्न समझ मे नहीं आया।

पापा ने फिर पूछा कि तुम इतने अच्छे  स्कूल मे  पढ़ते हो और एक सवाल का जवाब भी नही दे पाए।मैंने बिना सोचे समझे,तुक्के से ही बोल दिया कि मैं आप कर्मी हु।पापा ने कहा कि जवाब तो तैने सही दिया है,पर कैसे होता है आप कर्मी ।मुझे इसका कोई जवाब नही आता था,क्योंकि मैंने तो बिना उस प्रश्न को समझे ही उत्तर दे दिया था।पर पापा ने मुझे एक राजा की कहानी बताई थी,जिसमे बाप कर्मी और आप कर्मी का पूरा अर्थ था।वो कहानी मैं भूल चुकी थी,पर उसका अर्थ मुझे आज अपने जीवन की कहानी से पूरी तरह से मिल गया था।ये भी एक सत्य का चमत्कार ही था कि मैंने बिना प्रश्न को समझे जो उत्तर दिया वो ही सच था और उसी के आधार पर ही मेरे जीवन की रचना थी जिसे आज जाकर मुझे समझ मे आया। और जब आप लोग मेरे सभी ब्लॉग देखेंगे तो आप भी समझ जाएंगे कि मेरा सच क्या है।
         "सत्यम   शिवम।  सुंदरम"।।

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