मेरा सच-चरण 10 माँ ने जगाया मेरा स्वाभिमान

8वी कक्षा के बाद अब वापस समस्या हो गई कि कौनसे स्कूल मे एडमिशन लिया जाए।पहले तो सहेली के पापा ने फ्री मे अपने स्कूल मे पढ़ा दिया पर अब कहाँ पढ़े?पापा ज्यादा फ़ीस भरके प्राइवेट मे नहीं पढ़ा सकते थे।पापा आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे पर मुझे पढ़ने की इच्छा थी इसलिए मैंने मम्मी से जिद करी कि भले ही मुझे सरकारी मे पढ़ाओ पर मै पढ़ना चाहती हु।मम्मी ने पापा को समझाया और बड़ी मुश्किल से पापा माने।उसी सरकारी स्कूल मे मेरा एडमिशन कराया जहा 3 साल पहले मैंने एक दिन का स्कूल attend करके टीसी ले ली थी।
             9वी कक्षा मे आते ही पढाई भी कठिन हो गई।

इसलिए मैंने भी दृढ निश्यय कर लिया कि अब केवल अपनी पढाई पर ही ध्यान देना है।सब जगह जाना भी छोड़ दिया।अब तो  पापा मम्मी के साथ गाँव भी जाना छोड़ दिया।अपनी पढाई के लिए अकेले रहना मंजूर था,पर स्कूल की एक भी छुट्टी मंजूर नहीं थी।।लेकिन कहते है कि जब भी इंसान सही रास्ता चुनता है या कोई संकल्प लेता है तो नियति उसकी परीक्षा लेती ही है।                             
     उस स्कूल की व्यवस्था अच्छी नहीं थी।हर कक्षाओं की दीवारे, छत, फर्श सब टूटे हुए थे।जब भी बारिश आती हम इधर उधर शिफ्ट हो हो कर पढ़ते थे।सर्दी मे खुली छत पर तो गर्मी मे बाहर पेड़ के नीचे।।थोड़े दिन बाद स्कूल वालो ने स्कूल व्यवस्था की मांग को लेकर कलेक्टरी पर धरना देने का प्लान बनाया।।हम सब बच्चो को साथ मे लेकर रैली निकाली।

और पूरे शहर मे नारे लगाते लगाते जाते कि हमारी मांगे पूरी करो।मुझे बहुत शर्म आती थी ये सब करते हुए।मै लाइन मे पीछे पीछे मुँह छिपाते हुए चलती थी,पर क्योकि मेरी आवाज बहुत बुलंद थी इसलिए मुझे ही टीचर आगे आकर नारे लगाने के लिए बोलते थे।मुझे टीचर की बात को मानना पड़ता था।इसलिए सबसे आगे झंडा लेकर चलना पड़ता  था और नारे लगाने पड़ते थे।।बहुत बार हम इसी तरह आये दिन रैली निकालते थे।स्कूल की कई लडकिया मुझे लाउड स्पीकर कहकर चिढ़ाती थी।।9वी कक्षा का  सफर भी पूरा हुआ और गर्मी की छुट्टियां आ गई। हमेशा की तरह इस बार भी नानाजी को चिठ्ठी लिख रही थी कि उसी समय मम्मी ने एक ताना मार दिया कि तू इतनी बड़ी हो गई है पर तुजे कुछ नहीं आता।इस उम्र मे लडकिया कितना कुछ करती है।कोई सिलाई सीखती है तो कोई घरों मे काम करके पैसा कमाती है।तुजे तो बस पढाई और पढाई से छूटकर नाना जी के यहाँ जाना।इसके अलावा तू करती क्या है? मम्मी के ये कटु वचन सुनकर मैंने चिठ्ठी फाड़ दी और निश्यय किया कि अब मै छुट्टियों मे नाना नानी के  यहां नहीं जाउंगी और मम्मी को काम करके बताउंगी। 


अगले दिन से मम्मी के साथ साथ गोबर के कंडे बनाती,चूल्हा जलाने के लिए लकड़िया बिन कर लाती, पडोसी के घर पानी भरती और झाड़ू पोछे करती जहाँ मम्मी काम करते थे।।इतना करने के बाद भी मेरा मन शांत नहीं था।रह रह कर मम्मी का ताना दिमाग मे घूम रहा था और मन बार बार यही  कह  रहा  था कि मुझे कुछ सीखना है,पर क्या सीखू ये पता नहीं चल रहा था।सिलाई मे रूचि बिल्कुल नहीं थी  ,तो वो मैं करना नहीं चाहती थी।मम्मी ने तो गुस्से गुस्से मे मुझे डॉट दिया पर मेरे दिल  मे उनकी बात इतनी गहराई तक उतर गई कि रात को नींद ही नहीं आती थी।शायद ये मेरा स्वभाव ही था कि काम चाहे कितना भी करा लो पर गलत बात बर्दास्त नहीं होती थी।इसी स्वाभिमान ने मुझे जीवन मे वो सब कराया जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था।जब से मम्मी ने मुझे ताना दिया मैं रोज भगवान् के सामने खड़ी होकर प्रार्थना करती कि  आप ही मुझे रास्ता दिखाओ।
                 एक दिन की बात है मेरी एक दूर की भाभी जिसे मैं जानती भी नहीं थी,मेरे घर आई और मम्मी से कहा कि आपकी बेटी अगर फ्री हो तो मेरे ब्यूटी पार्लर भेजना।इसको काम भी सीखा दूंगी और मुझे भी मदद मिल जायेगी। मैं नहीं जानती थी कि ब्यूटी पार्लर क्या होता है पर मैं कुछ नया सीखना चाहती थी तो मैंने मम्मी से जिद करी कि मैं इनके ब्यूटी पार्लर जाना चाहती हु।मम्मी ने हां करी और मैं रोज वहां जाने लगी।उन भाभी से मेरा दोस्त जैसा व्यवहार हो गया और मुझे वो काम पसंद आ गया। अब तो मैं रोज टाइम से घर का काम करके ब्यूटी पार्लर जाने लगी।

    वो भाभी कोई ओर नही हो सकती वो    अवश्य मेरी पिपलाज माता  ही थी जो मुझे रास्ता दिखाने आई थी, ये मेरा पक्का विश्वास था ।सत्य पर चलने वालों को ईश्वर रास्ता जरूर दिखाता है पर परीक्षा लेना कभी नहीं छोड़ता। काम का रास्ता तो दिखा दिया पर इसके पीछे जो कठिन परीक्षा थी वो मैं आगे की कहानी मे बताउंगी।
               "सत्यम।  शिवम।   सुंदरम " ।।

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