मेरा सच-चरण 11 ब्यूटी पार्लर क्षेत्र मे मेरा पहला कदम

अब तो रोज ब्यूटी पार्लर चली जाती और ब्यूटी पार्लर के काम का नॉलेज लेने लगी।लेकिन एक दिन उन भाभी ने बातो बातो मे मुझे indirect ये कह दिया कि ब्यूटी पार्लर का कोर्स करने मे इतने  रुपये लगते है तो उनकी इस बात ने फिर से मेरे स्वाभिमान को जगा दिया। फ्री मे किसी से कुछ लेना पसंद नहीं था।मैंने घर जाकर पापा से इस बारे मे बात करी कि मुझे ब्यूटी पार्लर का कोर्स करने के लिए रुपये चाहिए,परन्तु पापा ने साफ़ इंकार कर दिया कि अगर सीखना ही है तो सिलाई सीखो।।इस कोर्स मे क्या रखा है पर मुझे तो ब्यूटी पार्लर वाले काम मे ही intrest आ रहा था।मैंने ठान लिया कि कैसे भी करके ये काम मैं सीखूंगी।गर्मी की छुट्टियां खत्म होने पर भी मैं रोज स्कूल से आने के बाद 2 से 6 तक भाभी के पार्लर जाती थी।पार्लर की साफ़ सफाई,कांच,पानी भरना,नेपकिन धोना ,इत्यादि बहुत से कार्य मैं ही करती थी।यहाँ तक कि उन भाभी के बच्चो को स्कूल लेने जाना,उनके बच्चो को रखना,शाम को उनके घर जाकर उनके काम मे मदद करना ये सब  मेरे रोज का क्रम बन गया था।।रोज शाम को 7 बजे घर आती और उसके बाद थोड़ा घर का काम,फिर अपनी पढ़ाई करती थी।सुबह कब होती और शाम कब होती,पता ही नहीं चलता।उस समय मैं कक्षा 10 वी मे आ गई थी।एक तरफ बोर्ड की पढाई और दूसरी तरफ  पार्लर का काम। पार्लर पर भी साथ मे किताबे ले जाती और जब मौका मिलता पढ़ लेती।

 एक दिन  मैं मेरी सहेली के घर  कोई किताब लेने गई तो वहां मेरी सहेली को कोई sir  टयूशन पढ़ा रहे थे।उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा और मेरी सहेली ने मेरा परिचय उनसे करवाया।उन sir ने मेरे सिर पर हाथ रखा और बोला कि तुम्हे पढाई मे कुछ भी दिक्कत हो तो मुझसे बेहिचक पूछने आ सकती हो और अगर रोज मुझसे पढ़ना चाहो तो भी यहाँ आकर पढ़ सकती हो,मैं कोई फ़ीस नहीं लूंगा।इन sir का नाम अजय जी था ये नाम भी एक सत्य से ही जुड़ा  है ये sir केवल मेरी सहेली गायत्री के ट्यूशन sir थे,लेकिन फिर भी एक एक करके हमारे सब पड़ोसी के बच्चे इनसे पढ़ने लगे,लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि कोई बच्चे फीस नहीं देते थे।और ये sir भी इतने दयालु थे कि कभी किसी से फीस की बात नहीं करते थे,बस एक सच्चे गुरु की तरह सबको शिक्षा देते रहते थे।आज के जमाने मे कोई शिक्षक बिना फीस के चार दिन की क्लास नहीं लेते और लाखों रुपये कोचिंग मे देने के बाद भी बच्चा केवल किताबी कीड़ा ही बनकर रह जाता है,इसके विपरीत उस जमाने के शिक्षक गागर मे सागर भरते थे,मतलब थोड़े मे भी बहुत कुछ पढ़ा देते थे जिसे स्टूडेंट अपनी पूरी लाइफ मे नहीं भूल पाते थे।इन sir ने पूरे दिल से सबको पढ़ाया और जिसको भी पढ़ाया,उसने अपने को अव्वल ही पाया।ये सत्यनाराण जी अंकल के बहुत करीबी मित्र थे,जिन्हें मैं अपने जीवन के एक सच्चे गुरु के रूप मे मानती हूं।एक बार मिलते ही गुरु  शिष्य जैसी अनुभूति किसी ईश्वर के चमत्कार से कम नहीं थी।।

गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु,गुरुदेवो महेश्वरः
गुरु साक्षात परब्रह्म,तस्मे श्री गुरवे नमः
       

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