मेरा सच-चरण 17 -सुसराल के पहले दो महीने और जीवन की परीक्षा
लगभग 2 महीने ही बीते थे सुसराल मे कि इतना सब कुछ देख लिया उस घर मे जितना लोग बरसो मे देख पाते है।सुबह उठते ही सब लोग दूध तक के लिए लड़ाते थे।सास ससुर मेरे पति का इन्तजार करते और पति मेरे सास ससुर का।।मैं दोनों के बीच की लड़ाइयों को देखती और और सोचती कि कब दूध आये और चाय बने। कभी कभी तो सासुजी मुझे कहते कि जा तेरे पति को बोल कि दूध लाये,इतने जनो के लिए क्या हम ही दूध लाएंगे ।मुझे अच्छी तरह ये समझ आ गया कि वो इतने लोग का जो ताना दिया,वो इशारा मेरे लिए ही था।
मैं अपने पति को कहती कि आप बिना कहे ही दूध लाकर क्यों नहीं रख देते?पर वो भी नहीं सुनते थे और फिर जलते बुनते सास ससुर ही दूध लाते थे।ऐसी स्थिति मे उस घर मे चाय पीना भी मेरे लिए किसी जहर से कम नहीं था,फिर भी घर की बहू होने के नाते मै बड़ी मुश्किल से वहां चाय पी पाती थी।शाम होती और फिर सब्जी के लिए लड़ते थे,तो कभी घर के छोटे मोटे सामान के लिए लड़ते थे।मैं विचार मे पड़ गई कि दूर से सुहाने लगने वाले ढोल कितने फूटे निकले।करीबन 3 महीने ही निकले कि बिजली का बिल आया।
एक दिन सुबह ही सुबह मेरे ससुर जी ने इनको बिल दिया कि इसे जमा करा देना,बिजली का बिल शायद कोई 1000 के लगभग था।मेरे पति ने साफ़ मना कर दिया कि मेरे पास पैसे नहीं है।इस बात को लेकर झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों पिता पुत्र एक दूसरे को धक्का मुक्की करने लग गए
और साथ मे मुझे भी भला बुरा कहने लगे जबकि मेरी इसमें कोई गलती नहीं थी।पडोसी तक जमा हो गए।मैं घबरा कर कमरा बंद करके भगवान् के सामने बहुत रोई और कहने लगी कि हे भगवान् मै अब इस घर का दाना पानी भी कैसे लू जिस घऱ मे पैसों के इतने झगडे होते हो।हे ईश्वर मुझे रास्ता दिखा,अब अगर मै चाय भी पिऊ तो मेरे पैसो से । हे प्रभु मेरे स्वाभिमान की रक्षा करो।इस तरह पुरे दिन भगवान् से विनती करी और उस दिन तो खाना भी नहीं खाया।
मैं अपने पति को कहती कि आप बिना कहे ही दूध लाकर क्यों नहीं रख देते?पर वो भी नहीं सुनते थे और फिर जलते बुनते सास ससुर ही दूध लाते थे।ऐसी स्थिति मे उस घर मे चाय पीना भी मेरे लिए किसी जहर से कम नहीं था,फिर भी घर की बहू होने के नाते मै बड़ी मुश्किल से वहां चाय पी पाती थी।शाम होती और फिर सब्जी के लिए लड़ते थे,तो कभी घर के छोटे मोटे सामान के लिए लड़ते थे।मैं विचार मे पड़ गई कि दूर से सुहाने लगने वाले ढोल कितने फूटे निकले।करीबन 3 महीने ही निकले कि बिजली का बिल आया।
एक दो दिन बाद किसी रिश्तेदार ने एक ब्यूटी पार्लर पर काम की जरुरत है,ऐसा कहकर वहाँ का address दिया।मैं एक पल भी गवाए बिना वहां पहुँच गई और उन्होंने मुझे नोकरी दे दी।दो शर्त थी कि या तो महीने के 600 रूपये और या फिर दिन के रोज के रोज 20 रूपये ले जा सकती हो।मैंने सोचा कि रोज के 20 रूपये ले जाउंगी तो कम से कम चाय तो अपने पैसो की पी पाउंगी।इसलिए मैंने 20 रूपये parday के लिए हां कर दी।ब्यूटी पार्लर जाने का टाइम 11 से 6 था।मैं अपना सारा घर का काम निपटा कर 11 बजे नोकरी चली जाती।पहले तो मेरे पति ने मुझे मना कर दिया कि अभी काम नहीं करना पर मैंने जिद करी तो मान गए।20 रूपये दिन की नोकरी पर मेरे सास ससुर ने मेरी हंसी भी उड़ाई पर मेरे लिए उस समय वो 20 रूपये मेरे स्वाभिमान की कीमत थी।इसलिए बिना किसी की परवाह किये मैं रोज अपना काम नियम से करती और शाम को 20 रूपये लेकर घर आती।
उसी 20 रूपये का मैं दूध लाती और चाय पीती।।कई बार मैं 5 दिन के इकठ्ठे 100 रुपये लेती थी।
ईश्वर ने फिर मेरे स्वाभिमान की रक्षा करी और मुझे काम दिला दिया।आगे की कहानी के लिए देखिये मेरा ब्लॉग पोस्ट
ईश्वर ने फिर मेरे स्वाभिमान की रक्षा करी और मुझे काम दिला दिया।आगे की कहानी के लिए देखिये मेरा ब्लॉग पोस्ट
"सत्यम शिवम सुंदरम"।।
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