मेरा सच-चरण 19 -मेरे बेटे का जन्म और बी ए सेकंड ईयर की परीक्षा


सुसराल के मानसिक  तनावों को को झेलते हुए ,लड़ते झगड़ते 8 महीने तक पार्लर पर काम किया और प्रेगनेंसी का 9 वा महीना लगा था कि मैंने उस पार्लर की नोकरी भी छोड़ दी । 22 फरवरी 1999 की डॉक्टर ने मेरी डिलेवरी date दी। 15 फरवरी की रात को मेरा दर्द शुरू हो गया।अगले दिन 16 फरवरी को दर्द की हालत मे मेरे सासु जी मुझे पीहर  लेकर चले गए और ये कहकर कि अगर डेलिवरी यहाँ हो गई तो खर्चा कौन करेगा,आखिर पहली डिलेवरी कराने का हक़ तो पीहर वालो का होता है।मै 16 फरवरी को  पुरे दिन और पूरी रात दर्द से परेशान हो गई,सासु जी नर्स थे इसलिए मम्मी ने उन्हें रोक लिया ताकि डिलेवरी घर पर ही हो जाये।मैं नहीं चाहती थी कि मेरी डिलेवरी घर पर हो।भगवान् ने मेरी सुनी,खूब कोशिश करने के बाद भी बच्चा घर पर न हो सका।17 फरवरी को शाम की 6 बजे तक बराबर दर्द था,सब परेशान हो गए और अंततः मुझे हॉस्पिटल ले जाना ही पड़ा। 6 बजे पापा ऑटो लेकर आये और मम्मी,मैं और मेरी सासुमां हम तीनों ऑटो मे  हॉस्पिटल जा रहे थे कि रास्ते मे मेरी सास ने  मम्मी को कहा कि ऑटो के पैसे तो आपको ही देने पड़ेंगे,मैं नहीं दूंगी।ऐसी परिस्थिति मे भी सास ने ऑटो किराया जैसी तुच्छ बात कर दी।सुनकर गुस्सा तो मुझे बहुत आया पर दर्द के मारे कुछ कह नहीं पाई।हॉस्पिटल मे भर्ती होते ही करीबन 7:40 पर बच्चा हो गया।

तीन दिन के लगातार दर्द के बाद अब सुकून मिला था।मैं तो इतनी घबरा गई कि मैंने तो कई घंटों तक बच्चे को देखा तक नहीं,दर्द से राहत मिलते ही गहरी नींद मे सो गई।तीन चार घंटे बाद मम्मी ने मुझे जगाया और तब मैंने अपने बच्चे की शक्ल देखी फिर भी किसी प्रकार की कोई ख़ुशी मेरे  चेहरे पर नहीं थी।मम्मी और सासुजी दोनों ही रात को मेरे साथ हॉस्पिटल मे ही थे।सुबह जब डॉक्टर राउंड पर आये तो उनके साथ की कुछ नर्सो ने मेरी सासुजी को बधाई दी और कहा कि पोता होने की ख़ुशी मे मिठाई के पैसे तो हमारे बनते है।

जैसे ही नर्स की बात सुनी और सासु जी ने उस नर्स को कहा कि कौनसे मिठाई के पैसे,अगर मिठाई लेनी है तो बच्चे की नानी से मांगो,पहली डिलेवरी का सब खर्चा करने का फर्ज तो इनका है।उनकी बात सुनकर मैं अंदर ही अंदर परेशान हो गई और विचार मे पड़ गई कि एक मिठाई के लिए जो इतना सोच रहे है  वो क्या मेरे बच्चे को पालेंगे।मुझे अपना भविष्य आँखों के सामने नजर आ रहा था।
    4 दिन बाद हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हुई और मम्मी के घर गई।। 9 वे दिन मेरे बेटे का सूरज पूजा और श पर नाम  आया तो मेरी छोटी बहन  इंद्रा ने मेरे बेटे का नाम शुभम रखा।  17 फरवरी को बेटा हुआ और 1 मार्च को सेकंड ईयर के exam शुरू होने थे,सब ने मना कर दिया कि इस बार के exam नहीं देगी परन्तु मैं अपना एक भी साल व्यर्थ नहीं जाने देना चाहती थी,इसलिए मैंने एग्जाम देने का निश्चय किया।मेरे बच्चे की  और मेरी देखरेख के लिए कुछ महीने मेरी नानीजी मेरे पास आई।

मैं रात को पढ़ाई करती और नानी पूरी रात मेरे बच्चे को देखती रहती।कई बार तो वो रात को बहुत रोता था,कभी मैं उसको गोदी मे लेकर पढ़ती तो कभी झूला देते हुए।
       1 मार्च को मेरा पहला पेपर था,शुभम 15 दिन का ही था मैं exam देने गई।हालात ऐसी थी कि exam मे तीन घंटे बैठना भारी हो रहा था फिर भी जैसे तैसे जल्दी से पेपर ख़त्म किया और घर गई।घर पर  शुभम भूख के मारे इतना रो रहा था कि मेरी मम्मी और नानी परेशान हो गए। घर आते ही मैंने जैसे ही उसे गोदी मे लिया कि बिल्कुल चुप हो गया,उस दिन अहसास हुआ कि एक माँ और बच्चे का रिश्ता क्या होता है,

कितना अनमोल बनाया है भगवान् ने इस रिश्ते को । 15 दिन के बच्चे को छूते ही माँ का अहसास हो गया।
अदभूत है लीला भगवान् की।
          "सत्यम।  शिवम। सुंदरम ।"

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