मेरा सच-चरण -21- दो महान विभूतियों से हुआ मेरा परिचय और मुझे मिली एक सच्ची मित्र

एक दिन उन्ही  ब्यूटी पार्लर के मेडम ने मुझे बुलाया और कहा कि-"राधा, मेरे किसी मिलने वाले को गठिया की प्रॉब्लम है,और वो चल फिर नही सकते हैं, क्या तुम सप्ताह मे 2 बार उनकी मसाज कर सकती हो?मैंने कहा कि,एक बार आप मुझे उनसे मिलवा दो,अगर जम गया तो कर दूँगी। मैं उन मेडम के साथ उन ऑन्टी के यहां गई तो मैंने देखा कि उन ऑन्टी के हाथ पैर बिल्कुल मुड़े हुए थे।वो बिल्कुल बिस्तर पर थे।

उन्होंने मुझसे बहुत अच्छे से बात करी, और अगले ही दिन मसाज के लिए आने को बोल दिया।मैंने उनको हाँ तो कर दी पर घर आकर ये सोच सोच कर डर रही थी कि उनकी मसाज करते समय,या उनके कपड़े चेंज करते समय कही मैंने उनको गिरा दिया तो क्या होगा?
इसी डर के कारण मै उनके यहां मसाज के लिए नही गई।उस समय कोई फ़ोन या मोबाइल नही था कि जिससे मैं उनको नही आने की सूचना दे सकू।थोड़े दिन बाद एक दिन फिर मै उस पार्लर पर ऐसे ही मेडम से मिलने गईं तो उन्होंने मुझे डांटा कि तुम वहां मसाज के लिए क्यो नही गई?मैंने उनको साफ कह दिया कि उनके मुड़े हुए हाथ पैरों से मुझे डर लगता है तो मै उनकी मसाज नही कर सकती।उन मेडम ने मुझे समझाया कि तुम एक बार डर निकाल कर उनकी मसाज चालू कर दो,तुम्हे उनकी बहुत दुआए लगेगी,तुम मना मत करो।वहां तुम अपने बच्चे को भी साथ मे ले जा सकती हो।उनके बार बार फ़ोर्स करने पर मैं ईश्वर की इच्छा  समझकर उन ऑन्टी के यहां गई।पहली बार खुद अपने हाथ से उनके कपडे चेंज करे और धीरे धीरे हल्के हाथ से उनकी मसाज करी।पहली बार मे ही उनको मेरा काम पसंद आ गया और उन्होंने सप्ताह मे दो दिन मसाज के लिये बांध दिए।25 रुपये एक मसाज पर तय  किये । कुछ ही दिनों मे उन ऑन्टी से मेरा दिल का रिश्ता हो गया।

उन ऑन्टी का नाम नाहिद था।नाहिद ऑन्टी दिल के बहुत अच्छे थे,अपने मुड़े हुए हाथो से वो पेंटिंग बनाते थे और उस पैंटिंग को बाजार मे बिकने के लिए भेजते थे।उस पेंटिंग के पैसों से वो अनाथ आश्रम मे बच्चो के लिए कपड़े,किताबे इत्यादि भेजते थे।उनकी इस परोपकारी भावना को देखकर मुझे अपने आप पर शर्म आने लगी कि मैंने इतने अच्छे इंसान की मसाज करने के लिए कैसे मना कर दिया।अब तो मैं नाहिद ऑन्टी के दिल के बहुत करीब हो गई।वो मुझसे बहुत प्यार करने लगी थी।मैं अपने दुख सुख की बात उनसे करती थी।नाहिद ऑन्टी ने उनके सभी रिश्तेदारों को फ़ोन करके बताया कि,"मेरे यहाँ जो राधा मसाज के लिए आती है वो बहुत अच्छी लड़की है और बहुत अच्छी मसाज करती है,इसलिए आप सभी मेरी राधा से एक बार मसाज जरूर कराना।"
इस तरह मेरे काम की पब्लिसिटी करने लगे।थोड़े दिन बाद मुझे और लोग भी मसाज करवाने के लिए बुलाने लगे।

एक मसाज के 25 रुपये लेती थी और eyebrow के 5 रुपये लेती थी।
अब धीरे धीरे मुझे लोगो से बात करना आने लगा और मैं कई बार अपने घर के बाहर खड़ी होकर आने जाने वाले लोगो को अपने ब्यूटी पार्लर के काम के बारे मे बताती जिससे धीरे धीरे आस पास के लोग मुझसे eyebrow, सिर की मेहंदी  करवाने लगे थे,जिससे मेरे बच्चे के दूध और थोड़ा बहुत ख़र्चा निकल जाता था।
एक दिन मेरे घर से थोड़ी दूरी पर एक दीदी के सिर मे मेहंदी लगाने गई,और उन दीदी से भी एक ही बार मे दोस्ती हो गई।अब तो उनके यहां भी हर संडे को मेहंदी लगाने जाती,साथ मे शुभम को भो लेकर जाती थी।उस समय शुभम एक साल का था।उन दीदी के दो लड़के थे जिनको शुभम अपने आप ही मामा कहने लगा।थोड़े समय बाद उन दीदी से इतना गहरा रिश्ता हो गया कि उनके दोनों बच्चो को मैं राखी बांधने लगीऔर देखते देखते कब वहां एक रिश्ता जुड़ गया पता ही नही चला।
एक तरफ सुसराल का तनाव भरा वातावरण था तो दूसरी तरफ अनजान लोगो से दिल के  रिश्ते जुड़ रहे थे जहाँ जाकर मै सुकून पाती थी।एक नाहिद ऑन्टी का रिश्ता और दूसरा उन दीदी का जिनका नाम कैलाश है  जो मेरी बहुत अच्छी सहेली बन गई ।उनके बेटो को राखी बांधकर कर ईश्वर ने एक अनमोल  रिश्ता जोड़ दिया ।कैलाश दीदी ने न केवल मुझे अपनी सहेली माना बल्कि एक माँ की तरह मेरा ध्यान रखा।कैलाश दीदी का मेरे जीवन मे आना ईश्वर का बहुत बड़ा उपहार था।ईश्वर की लीला अपरम्पार है।दुःखो के अथाह सागर मे  भी छोटी छोटी खुशियां आये दिन स्वागत करती रहती है,बस हम इंसान ही इन खुशियो को पहचान नहीं पाते है।
एक तरफ अभाव होता है तो दूसरी तरफ उस अभाव को भरने के लिए ईश्वर किसी न किसी को माध्यम बनाकर भेज देता है।लेकिन संघर्ष फिर भी जारी रहता है।
           ये ही तो सच है।

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