मेरा सच-चरण 22 -सासु माँ ने किया परेशान,आधी रात को गई मायके
सत्र 2000 की बात है, जब मेरा बेटा शुभम एक साल का था।
एक रात को मैं, मेरे पति और मेरा बेटा अपने कमरे मे सो रहे थे कि अचानक करीब 12 या साढ़े बारह बजे मेरे सासु जी ने दरवाजा खटखटाया।मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझे कहा कि-मेरे कमरे मे मैं जब चाहू तब कुछ भी लेने आ सकती हूं,इसलिए दरवाजा अंदर से बंद करने की जरूरत नही हैं।इस पर मेरे पति बोल पड़े कि मम्मी आपको कुछ चाहिए था तो पहले ही ले लेते।इस बात से दोनों माँ बेटो मे झगड़ा हो गया और झगड़ा इतना बढ़ गया कि मेरे सासु जी जोर जोर से चिल्लाने लगे और मुझे भला बुरा कहने लगे।कहने लगे कि-अगर कमरा बंद करने का इतना ही शौक है तो अपने बाप को कहती कि मकान साथ मे दे देते।
मुझे भी गुस्सा आया और मैंने भी कह दिया कि -अगर मेरे पापा मकान बना कर देते तो आपके यहाँ क्या लेने आती,वही रह जाती।।मेरी बात से उनका गुस्सा और बढ़ गया और उन्होंने गुस्से गुस्से मे मेरे पलंग पर बिछा हुआ गद्दा छीन कर ले लिया और बोला कि अपने बाप के दिये हुए बिस्तर को बिछा कर सोना,ये मेरे गद्दे है,इस पर सोने की जरूरत नही है।झगड़ा इतना बढ़ गया कि आधी रात को मेरे पति अपने एक मामा को बुला कर लेकर आये।मेरे मामा ससुर ने मेरे सासुजी को इतना समझाया कि तू इन बच्चो के साथ गलत कर रही है,पर वो नही माने बल्कि उनके सामने मुझे बहुत भला बुरा बोला और उतने मे मेरे ससुर जी भी बीच मे आ गए और कहने लगे कि घर का खर्चा तो तुम करते नही और सामने बोल रहे हो।खर्चा तो पति नही करते थे और उनका इशारा मेरी तरफ था।उन्होंने भी गुस्से मे कहा कि - "गेट आउट",उनकी इस अपमानजनक बात को मैं सहन नही कर पा रही थी।मैं रोने लगी और अपने पति से कहने लगी कि इसी समय मुझे अपने मम्मी के घर छोड़ कर आओ वर्ना मैं अकेली कहीं चली जाउंगी ।
मेरे पति ने मेरी जिद को माना और रात को 1 बजे मैं अपने एक साल के बच्चे को लेकर अपने पति के साथ साईकल पर बैठ कर मम्मी के वहा गई।जैसे ही वहाँ पहुंची ,मेरे चेहरे को देखकर मेरे पीहर वाले सारी बात समझ गए।पापा को इतना गुस्सा आया कि वो रात को ही मेरे सुसराल जाने के लिए आतुर हो गए पर मम्मी ने रोक लिया कि बाद मे कल परसो आराम से बात करेंगे।मेरे पति ने सोचा कि बात ठंडी पड़ जाएगी तब मुझे वापस ले जाएंगे और वो मुझे अपने पीहर ही छोड़ कर घर चले गए।
उसके बाद अगले दिन से मेरे पापा ने घर की एक एक बात मुझसे पूँछी। हालांकि मेरी मम्मी ने मुझे मना किया कि-पापा को सुसराल की हर बात मत बताना क्योकि उनका गुस्सा बहुत खराब है।लेकिन पापा ने जब मुझसे पूछा तो मैं झूठ नही बोल पाई और हर बात बता दी
अब क्या था पापा ने साफ मना कर दिया कि जब तक मै न बोलू वापस अपने सुसराल नही जाएगी।
करीबन 5 या 6 दिन बाद मेरे पति मुझे लेने आये तो मैंने मना कर दिया कि जब तक पापा नही भेजेंगे मैं नही आउंगी।मेरे पति भी मुझ पर गुस्सा हो गए और शादी के बाद पहली बार उस दिन हम दोनों के बीच झगड़ा हुआ।
मेरे पापा ने मेरे पति से कहा कि "अगर मेरी बेटी को ले जाना हो तो अपने पापा और अपने रिश्तेदारों को लेकर आना,सबके सामने बात करके ही भेजूंगा।"
मेरे पति नाराज होकर वापस चले गए और फिर 1 महीने तक वापस मेरी कोई खबर नही ली।इसी बीच किसी के थ्रू मुझे एक आफिस मे रिसेप्शनिष्ट की नोकरी मिल गई।मैं अपने बेटे को मम्मी ओर बहनो के संरक्षण मे रखकर रोज 11 से 7 तक की नोकरी करने लगी।मेरी मम्मी और बहनों ने मेरे बच्चे के पालन पोषण और प्यार मे कोई कमी नहीं रखी।मेरी दोनो बहने तो दिन भर उसी के पीछे घूमती रहती।कभी उसे तैयार करके स्कूल भेजना तो कभी उसे नहलाना,होमवर्क करवाना,उसके सारे कार्य बहुत प्रेम से करती।उनका ये प्यार और सहानुभूति मैं जीवन भर स्मरण रखूँगी।मम्मी के घर से आफिस बहुत दूर था।मैं वहां से सिटी बस मे बैठकर जाती थी।शाम को आते समय बहुत देर हो जाती थी,पापा बस स्टैंड पर रोज मेरा इंतजार करते थे क्योंकि उन्हें डर लगता था कि मेरी बेटी सुसराल की परेशानी की वजह से कुछ कर न बैठे,पर वो ये भूल रहे थे कि उनकी बेटी सच्चाई और स्वाभिमान की ऐसी परीक्षा दे रही थी जिसमे आत्महत्या जैसे पाप की कोई जगह नही थी।मैंने बचपन से ही ये प्रण लिया था कि चाहे जीवन मे कितनी ही कठिनाई आ जाये पर आत्महत्या जैसी बात का कभी सपने मे भी विचार नही करूँगी और हर समस्या का सामना करूँगी ।
अब तो रोज का यही क्रम हो गया था,11 बजे से 8 बजे तक ऑफिस ओर घर आकर अपने बच्चे को देखती,फिर रात को अपनी पढ़ाई करती ।उस समय नींद मुझे बहुत कम आती थी,
देर रात तक पढ़नाऔर फिर सोते सोते अपनी चिंता मे खो जाती और फिर कब नींद आती पता ही नही चलता था।
दिन गुजरते गए औऱ इस तरह पीहर मे रहते रहते भी तीन महीने बीत गए।एक दिन अचानक मेरे पति,मेरे ससुर जी और मेरे दो मामा ससुर जी घर आये और उन्होंने मेरे पापा से बात करी कि बहु को घर भेज दो।मेरे पापा ने मेरे पति और ससुरजी को खरी खोटी सुनाई ओर मुझे भेजने के लिये मना कर दिया।मेरे ससुर जी ने कहा कि,-"अब मै इन दोनों को अपने साथ मे नही रख सकता,अब ये अपनी रसोई अलग रखेंगे।इस बात को सुनकर पापा और भड़क गए और बोला कि अगर इतनी जल्दी अलग रखना था तो शादी ही मत कराते।इस तरह बहुत सारी बातों से झगड़ा हो गया।साथ मे आये मेरे पति के मामा ने मेरे पापा को समझाया कि इन बच्चो को अलग मत करो,देखो दूर रहकर दोनो ही टेंशन मे है,इसलिए इन बच्चो की तरफ देखकर आप इसी निर्णय पर भेज दो कि अब ये दोनों अपना खाना अलग बना कर खाएंगे।मामाजी ने मेरे पति को बोला कि तुम दोनों को अब अलग रहना हैं तो क्या तुम अपना खर्चा उठा लोगे।मेरे पति ने कहा कि हां ,मैं खर्चा उठा लूंगा।पापा ने कहा कि-क्या अब मुझ तक कोई शिकायत नही आएगी।मेरे पति ने हर चीज के लिए सबके सामने हर बात स्वीकार कर ली।
एक रात को मैं, मेरे पति और मेरा बेटा अपने कमरे मे सो रहे थे कि अचानक करीब 12 या साढ़े बारह बजे मेरे सासु जी ने दरवाजा खटखटाया।मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझे कहा कि-मेरे कमरे मे मैं जब चाहू तब कुछ भी लेने आ सकती हूं,इसलिए दरवाजा अंदर से बंद करने की जरूरत नही हैं।इस पर मेरे पति बोल पड़े कि मम्मी आपको कुछ चाहिए था तो पहले ही ले लेते।इस बात से दोनों माँ बेटो मे झगड़ा हो गया और झगड़ा इतना बढ़ गया कि मेरे सासु जी जोर जोर से चिल्लाने लगे और मुझे भला बुरा कहने लगे।कहने लगे कि-अगर कमरा बंद करने का इतना ही शौक है तो अपने बाप को कहती कि मकान साथ मे दे देते।
मेरे पति ने मेरी जिद को माना और रात को 1 बजे मैं अपने एक साल के बच्चे को लेकर अपने पति के साथ साईकल पर बैठ कर मम्मी के वहा गई।जैसे ही वहाँ पहुंची ,मेरे चेहरे को देखकर मेरे पीहर वाले सारी बात समझ गए।पापा को इतना गुस्सा आया कि वो रात को ही मेरे सुसराल जाने के लिए आतुर हो गए पर मम्मी ने रोक लिया कि बाद मे कल परसो आराम से बात करेंगे।मेरे पति ने सोचा कि बात ठंडी पड़ जाएगी तब मुझे वापस ले जाएंगे और वो मुझे अपने पीहर ही छोड़ कर घर चले गए।
उसके बाद अगले दिन से मेरे पापा ने घर की एक एक बात मुझसे पूँछी। हालांकि मेरी मम्मी ने मुझे मना किया कि-पापा को सुसराल की हर बात मत बताना क्योकि उनका गुस्सा बहुत खराब है।लेकिन पापा ने जब मुझसे पूछा तो मैं झूठ नही बोल पाई और हर बात बता दी
अब क्या था पापा ने साफ मना कर दिया कि जब तक मै न बोलू वापस अपने सुसराल नही जाएगी।
करीबन 5 या 6 दिन बाद मेरे पति मुझे लेने आये तो मैंने मना कर दिया कि जब तक पापा नही भेजेंगे मैं नही आउंगी।मेरे पति भी मुझ पर गुस्सा हो गए और शादी के बाद पहली बार उस दिन हम दोनों के बीच झगड़ा हुआ।
मेरे पति नाराज होकर वापस चले गए और फिर 1 महीने तक वापस मेरी कोई खबर नही ली।इसी बीच किसी के थ्रू मुझे एक आफिस मे रिसेप्शनिष्ट की नोकरी मिल गई।मैं अपने बेटे को मम्मी ओर बहनो के संरक्षण मे रखकर रोज 11 से 7 तक की नोकरी करने लगी।मेरी मम्मी और बहनों ने मेरे बच्चे के पालन पोषण और प्यार मे कोई कमी नहीं रखी।मेरी दोनो बहने तो दिन भर उसी के पीछे घूमती रहती।कभी उसे तैयार करके स्कूल भेजना तो कभी उसे नहलाना,होमवर्क करवाना,उसके सारे कार्य बहुत प्रेम से करती।उनका ये प्यार और सहानुभूति मैं जीवन भर स्मरण रखूँगी।मम्मी के घर से आफिस बहुत दूर था।मैं वहां से सिटी बस मे बैठकर जाती थी।शाम को आते समय बहुत देर हो जाती थी,पापा बस स्टैंड पर रोज मेरा इंतजार करते थे क्योंकि उन्हें डर लगता था कि मेरी बेटी सुसराल की परेशानी की वजह से कुछ कर न बैठे,पर वो ये भूल रहे थे कि उनकी बेटी सच्चाई और स्वाभिमान की ऐसी परीक्षा दे रही थी जिसमे आत्महत्या जैसे पाप की कोई जगह नही थी।मैंने बचपन से ही ये प्रण लिया था कि चाहे जीवन मे कितनी ही कठिनाई आ जाये पर आत्महत्या जैसी बात का कभी सपने मे भी विचार नही करूँगी और हर समस्या का सामना करूँगी ।
अब तो रोज का यही क्रम हो गया था,11 बजे से 8 बजे तक ऑफिस ओर घर आकर अपने बच्चे को देखती,फिर रात को अपनी पढ़ाई करती ।उस समय नींद मुझे बहुत कम आती थी,
दिन गुजरते गए औऱ इस तरह पीहर मे रहते रहते भी तीन महीने बीत गए।एक दिन अचानक मेरे पति,मेरे ससुर जी और मेरे दो मामा ससुर जी घर आये और उन्होंने मेरे पापा से बात करी कि बहु को घर भेज दो।मेरे पापा ने मेरे पति और ससुरजी को खरी खोटी सुनाई ओर मुझे भेजने के लिये मना कर दिया।मेरे ससुर जी ने कहा कि,-"अब मै इन दोनों को अपने साथ मे नही रख सकता,अब ये अपनी रसोई अलग रखेंगे।इस बात को सुनकर पापा और भड़क गए और बोला कि अगर इतनी जल्दी अलग रखना था तो शादी ही मत कराते।इस तरह बहुत सारी बातों से झगड़ा हो गया।साथ मे आये मेरे पति के मामा ने मेरे पापा को समझाया कि इन बच्चो को अलग मत करो,देखो दूर रहकर दोनो ही टेंशन मे है,इसलिए इन बच्चो की तरफ देखकर आप इसी निर्णय पर भेज दो कि अब ये दोनों अपना खाना अलग बना कर खाएंगे।मामाजी ने मेरे पति को बोला कि तुम दोनों को अब अलग रहना हैं तो क्या तुम अपना खर्चा उठा लोगे।मेरे पति ने कहा कि हां ,मैं खर्चा उठा लूंगा।पापा ने कहा कि-क्या अब मुझ तक कोई शिकायत नही आएगी।मेरे पति ने हर चीज के लिए सबके सामने हर बात स्वीकार कर ली।
मैंने भी सोचा कि इंसान को अपनी गलती सुधारने का मौका मिलना चाहिए,और दूसरी बात वो मुझे चाहते है तभी तो मुझे लेने आये है,इसलिए मैं अपने पति के साथ वापस जाउंगी।
मेरी इच्छा और मामा जी की बात का मान रखते हुए मेरे पापा ने मुझे अपने सुसराल भेज दिया।
लेकिन मेरी कहानी यहीं खत्म नही होती,आगे और बहुत कुछ घटा है मेरी जिंदगी मे जिसे स्वाभिमान की परीक्षा भी कहा जाए तो गलत नही होगा।जीवन का हर एक मोड़ मुझे किसी सीढ़ी से कम नही लग रहा था।जैसे जैसे एक एक सीढ़ी चढ़ रही थी ऐसा लग रहा था मानो हर सीढ़ी मेरी परीक्षा ले रही हो।
आगे क्या क्या मोड़ मेरी जिंदगी मे आते है,जानने के लिए देखते रहिये -मेरे ब्लॉग पोस्ट
"मेरा सच"
सत्यम शिवम। सुंदरम ।
मेरी इच्छा और मामा जी की बात का मान रखते हुए मेरे पापा ने मुझे अपने सुसराल भेज दिया।
लेकिन मेरी कहानी यहीं खत्म नही होती,आगे और बहुत कुछ घटा है मेरी जिंदगी मे जिसे स्वाभिमान की परीक्षा भी कहा जाए तो गलत नही होगा।जीवन का हर एक मोड़ मुझे किसी सीढ़ी से कम नही लग रहा था।जैसे जैसे एक एक सीढ़ी चढ़ रही थी ऐसा लग रहा था मानो हर सीढ़ी मेरी परीक्षा ले रही हो।
आगे क्या क्या मोड़ मेरी जिंदगी मे आते है,जानने के लिए देखते रहिये -मेरे ब्लॉग पोस्ट
"मेरा सच"
सत्यम शिवम। सुंदरम ।
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