मेरा सच -चरण 24 -कड़ी परीक्षा


जुलाई 2001 मे जब मेरा बेटा ढाई साल का हुआ ,उसे मेरे मम्मी के घर के पास ही एक प्राइवेट स्कूल मे एडमिशन कराया।

अब तो शुभम को रोज अपने साथ नही रख पाती थी।केवल शनिवार को अपने पास लेकर आती और रविवार शाम को वापस मम्मी के घर भेज देती।मेरी दोनो बहनो ने मेरे बच्चे को बहुत अच्छे से संभाला उसे  तैयार करके स्कूल भेजना,उसका टिफिन बनाना,उसे होम वर्क कराना, सब काम बहुत अच्छे से करती थी।
इसी तरह कठिन संघर्ष के साथ दिन बीत रहे थे। फरवरी 2002 मे मेरे छोटे भाई की शादी तय हो गई और मेरे दुःखी जीवन मे खुशी  के कुछ पल आये | अब तो मैं अपने भाई की शादी की तैयारी मे लग गई|  अपने भाई बहनो मे सबसे बड़ी होने के कारण मेरी उस परिवार मे पूरी ज़िमेदारी थी, इसलिये मैने  घर के काम से लेकर बाजार  के सारे कामो मे अपने मम्मी पापा का पूरा हाथ बढ़ाया लेकिन ये बात मेरे पति को बर्दास्त नहीं हुई और   कई बार शादी के माहौल मे भी  कुछ उल्टा सीधा बोल कर मुजे रुला देते थे| खुशी के माहौल मे कोई ग़म की छाया न पड़े इसलिए पति के कटु वचन सुनकर कही छुप कर रो लेती और फिर वापस सबके सामने हंसती रहती|
बड़ी धूमधाम से 15 फरवरी 2002 को मेरे भाई की शादी हो गई और 17 फरवरी को रिसेप्शन हुआ | 19 फरवरी के दिन मैं घर  के बिखरे काम को समेटने मे अपनी मम्मी की मदद कर रही थी  कि मेरे पति गुस्से मे, ऊँची आवाज मे मुझसे बोले कि - '' क्या जीवन भर इनके ही काम करने है.सारे मेहमान चले गए और तू अभी तक अपना समय खराब कर रही है |

'इस बात को लेकर हम दोनो  मे बहुत बहस हो गई , बुझे मन से शाम  को अपना सामान पेक किया और पति के साथ घर चली गईं।खुशी के माहौल मे सबके साथ रहने के बाद जब घर जा रही थी तो ऐसा लग रहा था मानो आज ही मेरी विदाई हुई है| शुभम के स्कूल था तो उसे भी साथ मे नही ले जा पाई| रास्ते मे मेरे पति ने बहुत झगड़ा किया,और गुस्से मे आकर मेरे पति ने चलती साईकल पर पीछे मुड़कर मुझे थप्पड़ मार दी

और मैं चलती साईकल से गिर गई।
सड़क पर लोग देखने लग गए,मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ।पति के साथ घर जाने की इच्छा नहीं थी ,एक मन कह रहा था कि वापस अपने मम्मी के घर चली जाऊ, लेकिन भाई की नई नई शादी हई थी और वहां जाती तो सबको चिंता हो जाती,यहीं सोचकर थोड़ी देर सड़क पर बैठी रही और फिर अपनी गलती न होते हुए  भी पति से सॉरी बोला ताकि पति का मूड शांत हो जाये,उसके बाद दोनों बिना बातचीत किये चुपचाप अपने उसी छोटे से किराये के कमरे पर पहुंचे। कुछ दिन हम दोनों की बातचीत बंद रही और वापस अपने रोज के काम पर लग गई।रह रह कर भाई की शादी के वो खुशियो के पल,जो सबके साथ बिताए थे याद आ रहे थे।

कुछ दिनो बाद अपने भाई और नई भाभी को अपने कमरे पर खाने के लिए आमंत्रित किया,तब जाकर थोड़ा मेरा उदास मन शांत हुआ।
 थोड़े दिन बाद दशामाता  पूजने का त्यौहार आया और एक बार फिर मैंं पुरानी बातों को भूलकर अपने सुसराल वालों से मिलने गई।सास ससुर से आशीर्वाद लिया और साथ मे खाना बना कर खाया।सभी अच्छे से बोले  तो मेरा मन पिघल गया और थोड़े दिन बाद  वापस अपना कमरा खाली करके सुसराल रहने  चली गई।
थोड़े दिन बाद मेरे देवर की शादी भी तय हो गई ,इसी बहाने मुझे फिर से अपने सास ससुर और देवर के साथ संयुक्त परिवार मे रहने का सुनहरा अवसर मिला।जिस तरह मैंने अपने भाई की शादी की तैयारी करी वैसे ही मैं अपने देवर की शादी  की तैयारी मे लग गई।दिन भर आफिस की नोकरी करने के बाद शाम को सबका खाना बनाती

और फिर रात को शादी के खाने के लिए गेंहू, चावल और दाले साफ करती थी।सासुजी  नोकरी से कभी कभी फ़ोन करते तो बड़े अच्छे से बात करते थे तो मैं प्रेम की दीवानी इतनी बावली हो जाती कि फिर चाहे मुझसे कितना ही काम करा लो मुजे कभी थकान नही  होती थी।
लेकिन मुझ जैसी पागल को ये बात उस समय कभी समझ नही आई कि ये उनका प्रेम नही,केवल कुछ ही दिनों का स्वार्थ था।
22 मई 2003 को मेरे भाई के लड़की हुई और अगले ही महीने 8 जून 2003 को मेरे देवर की शादी हुई।दोनो ही खुशी मेरे लिए बहुत बड़ी थी।अपने देवर की शादी मे पागलो की तरह अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखे बिना दिन रात दौड़ती रही,और खुशी से नाचते गाते अपने देवर की बारात को विदा किया।बारात विदा करके घर आई  और उसी रात  मुझे बहुत तेज बुखार आ गया।घर की कुछ औरतो को छोड़कर बाकी सब बारात मे गए हुए थे।मैं बुखार के कारण अपने बिस्तर से उठ ही नही पा रही थी लेकिन बड़े अफसोस  की बात थी कि मेरे सासुजी जो कल तक  मुझसे अच्छे से बात कर रहे थे आज मुझे  बुखार की हालत मे दवाई तक के लिए नही पूछा।बड़ी मुश्किल से हिम्मत करके उठी,और हाथ पैर धोकर अपने लिए चाय बनाई फिर एक बुखार की गोली ली।ईश्वर की कृपा से अगले दिन मेरी तबियत बिल्कुल अच्छी हो गई। नई देवरानी के आने की खुशी मे वापस सासुजी के गलत व्यवहार को भी भूल गई और खुशी खुशी उनका स्वागत किया ।नई देवरानी को आये अभी 5 या 6 दिन ही मुश्किल से हुए थे  और मैं खाना बना रही थी कि अचानक सासुजी ने मुझसे कहा कि,-अब तो अपना खाना अलग बनाओ,रोज रोज तुम्हारा खर्चा कौन उठाएगा?इस बात को लेकर मेरे पति और सास ससुर बहुत देर तक झगड़ते रहे,और मैं चुपचाप अपने कमरे मे गई और अपना वही नूतन स्टोव जलाया और अलग अपना खाना बनाया। मन मे अनेक प्रश्न उठ रहे थे कि आखिर ये लोग क्यो मेरे प्रेम को समझ नही पाते?,क्यो प्रेम की तुलना धन से करते है?लेकिन उन स्वार्थी लोगो के सामने मेरे मन के इन
प्रश्नों का कोई  मोल नही इसलिए ईश्वर की मर्जी समझ कर एक ही घर मे  पड़ोसी की तरह रहने लगे।
इस बात का बड़ा अफसोस था कि नई देवरानी के साथ 1 महीना भी साथ मे नहीं रह पाई।फिर भी मैं सबके साथ प्रेम से रहना चाहती थी तो अलग कमरे मे रहने के बावजूद भी जब मौका पड़ता,मैं उन सबके साथ उठने बैठने की कोशिश करती रहती थी। इस तरह दिन गुजरते गए,और  जुलाई 2004 को मेरी देवरानी को बेटी हुई।मैं उसे अपनी बेटी समझकर प्यार करती

,उसे गोद मे खेलाती,  लेकिन देवरानी कई बार मुझे देखकर उसे कमरे मे बंद रखती ताकि मैं उसे अपने पास न बुला सकू।
           2005 की बात है,एक दिन मैं नहा धोकर अपने कमरे के बाहर अखबार पढ़ रही थी कि मेरे सासुजी मुझे बिजली का बिल देते हुए बोले कि ये जमा करा देना।मैंने उनकी तरफ देखा और कहा कि-"मम्मीजी !ये बिल आप मुझे क्यो दे रहे हो,सीधे अपने बेटे को दो,मैं कहाँ से बिल के पैसे लाऊ।मैं तो पहले ही घर के खर्चे,बच्चे के फीस मे दे देती हूं।इस बात पर सासुजी ने मुझसे बोला कि"-बहु होकर जुबान  चलाती है,और गुस्से मे आकर मेरे बाल पकड़कर  मुझे दीवार पर धक्का दे दिया।

मैं जोर से चिल्लाई तो पड़ोसी इकट्ठे हो गए।मैं कुछ बोल पाऊ इससे पहले सासुजी मुझ पर सामने हाथ करने का इल्जाम लगा दिया।पड़ोसी हम दोनों को अपने अपने नजरिये से समझा कर चले गए।उसके बाद मेरे सासुजी ने मेरे कमरे को बाहर से बंद कर दिया और थोड़ी देर बाद घर के सभी सदय,ताले लगाकर कही चले गए।मैं वहीँ रोती रही,पति घर पर नही थे इसलिए उन्हें कुछ पता नही था।उस समय मेरे पास न कोई फ़ोन था न ही कोई मोबाइल।सुबह 10 बजे से दिन को 3 बजे तक मैं अकेली कमरे मे रोती रही।

3 बजे मेरे पति घर आये तो मैंने उन्हें बताया।लेकिन सासु जी तो वापस अपनी सर्विस पर चले गए।सासु जी की इस बात के लिए शाम को मेरे पति ने ससुरजी से लड़ाई कर दी।दोनो बाप बेटो मे भयंकर झगड़ा हो गया।मैं दोनो को छुड़ाने गई तो दोनों हो मुझे धक्का देने लगे और ससुरजी तो मुझे  ही भला बुरा कहने लगे। मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ।एक तरफ पति का घर पर खर्चा ,और बिजली बिल के पैसे न देने की बहुत बड़ी भूल थी तो दूसरी तरफ अपने पति से प्रेम होने के नाते कुछ भी कह नहीं पा रही थी।एक तराजू मे पति की गलतियां थी तो दूसरी तराजू मे मेरा पति के प्रति प्रेम। मैंने अपने प्रेम के पलड़े को ऊपर रखा और मन   ही मन निश्चय किया कि अब मैं जितना हो सकेगा,खुद ही खर्चा करूँगी पर घर मे लड़ाई नही होने दूँगी।
अब मैं धीरे धीरे हर खर्चा खुद ही करने लगी,दिन भर कड़ी मेहनत करती जहाँ कही भी कोई काम मिलता मैं मना नही करती थी एक एक eyebrow  और एक एक बॉडी मसाज के लिए घूमती रहती थी।
 पर जब जब जितनी बार मैंने कोई ज़िमेदारी ली,नियति मेरी परीक्षा लेने खड़ी हो जाती।
कुछ समय बाद ही मेरे आफिस के सर ने कहा कि-"अब ये आफिस बंद हो रहा है,तुम कहीं और नोकरी ढूंढ लेना।जैसे ही मैंने सुना,मैं चिन्तित हो गई कि अब एकदम से कहाँ काम मिलेगा।1200 रुपये की एक पूरी बंधी तन्ख्वाह बंद हो गई।अब तो छोटी  मोटी मसाज के ही काम रह गए पर उससे सारे खर्चे कैसे निकले।मेरे पति सब कुछ देखते रहते पर कभी भी एक तसल्ली नही दी कि-"तू चिंता मत कर मैं हु! मैं एक ऐसे इंसान से प्रेम करती थी जिसके दिल मे प्रेम नाम की कोई इज्जत नहीं थी।मैं न लड़ाई चाहती थी और न ही अपने पति से दूरी।आफिस की नोकरी छोड़ने के बाद 15 दिन मैं चिंता के कारण बीमार हो गई।अखबार मे रोज देखती रहती कि कही कुछ काम मिल जाये।उसके एक महीने बाद ही अखबार के थ्रू एक ब्यूटी पार्लर पर काम मिल गया।1500 रुपये पगार थी,मैंने एक ही बार मे हाँ कर दी और अगले ही दिन जोइंड कर लिया।पार्लर का नाम लावेला ब्यूटी पार्लर था।
11 से 5 पार्लर जाती और सुबह शाम अपने स्वयं के छोटे मोटे ग्राहक को निपटाती।
लेकिन ये नोकरी मुझे समझ नही आई,क्योकि पार्लर की मेडम बहुत ही उग्र स्वभाव की थी ,न किसी से बात करने देती,न फ्री बैठने देती।ग्राहक न होते तो भी कुछ न कुछ काम बराबर कराती रहती।बात बात पर डांटती रहती थी।उसके चिड़चिड़े स्वभाव के कारण मैंने एक महीने के अंदर ही काम छोड़ दिया।जल्दी काम छोड़ने के कारण वो मेडम मुझसे इतनी नाराज थी कि उसने उस एक महीने की तनखाह भी नही दी।अब वापस वही हालात हो गई कि कहाँ काम करू?क्योंकि पैसे के बिना मेरा उस घर मे मरण था,फिर वहीँ बिजली का बिल,लड़ाई झगड़े,सब आँखों मे घूमने लगते तो डर जाती थी।
मेरी प्रिय सहेली कैलाश दीदी को अपनी
, समस्या बताई ।वो भी मेरे लिए काम ढूंढने लग गए।जहाँ जो मिलता,सबको बोलती रहती।एक दिन पड़ोस मे  रहने वाली एक लड़की ने कहीं काम बताया,लेकिन वो काम झाड़ू पोछे, और बर्तन का था।मैं बिना कुछ सोचे उस लड़की के साथ काम की बात करने चली गई।और 1000 रुपये मे 5 कमरों का झाड़ू,पोछा,डस्टिंग,बाथरूम की सफाई और बर्तन करने थे।

मैंने उन्हें हाँ कर दी।शाम को 3 से 7 का टाइम था तो ये फायदा हो गया कि 3 से पहले के टाइम पर अपना पार्लर का काम भी हो जाता था।कुछ समय बाद मैंने अपने पति का दुकान पर जाना छुड़वा दिया और समझा बुझाकर एक पुराना स्कूटर ले लिया।
 अब मेरे पति  ही मुझे सब जगह छोड़ने और लेने आने लगे ताकि ऑटो मे समय खराब न हो और कम समय मे मैं ज्यादा काम कर सकु।
जिनके यहां मै झाड़ू पोछे करने जाती थी,वो भी मेडम बहुत ही स्ट्रीक थी।बहुत ही बारीकी से वो सब जगह सफाई कराती,यहाँ तक कि एक एक सीढ़ी को भी सर्फ के कपड़े से साफ कराती।मैं वहाँ से जब घर जाती तो थक कर बुरा हाल हो जाता।मेरे और मेरे पति के अलावा किसी को भी ये पता नही था कि मैं झाड़ू पोछे करने जाती हु  ।  जब मैं अपने बेटे को लेने मम्मी के यहां जाती तो मेरी हालत देखकर पापा मम्मी अक्सर पूछते कि तेरी कौनसी नोकरी है जो तू इतनी कमजोर हो रही है।मैं छुपा कर कहती कि किसी आफिस मे छोटी मोटी लिखापढ़ी का काम है।
इस तरह कठिन संघर्ष के साथ दिन बीत रहे थे।थोड़े दिन बाद मेरी दोनो बहनो की शादी हो गई।बहनो की शादी के बाद मैं अपने बेटे को पीहर नहीं रखना चाहती थी,इसलिए उसे अपने पास बुला लिया और दूसरे स्कूल मे डाल दिया।


शुभम को मेरे पास लाने के बाद मैंने वो झाड़ू पोछे का काम छोड़ दिया और केवल ब्यूटी पार्लर की होम सर्विस ही करने लगी।
धीरे धीरे ईश्वर ने साथ दिया और क्लाइंट बढ़ते गए।मुझे इस बात की कोई शिकायत नहीं थी कि पति के स्थान पर मैं घर चला रही थी।मैं तो कैसे भी करके अपने परिवार मे शांति और प्रेम चाहती थी।लेकिन ये दुनिया किसी का प्रेम और शांति कहाँ बर्दास्त कर पाती थी।पहले लाइट बिल को लेकर घर के लोग शांति भंग करते थे और अब उन्हें इस बात की भी तकलीफ होने लगी कि औरत कमा रही है और आदमी  इसके पीछे पीछे छोड़ने लेने जाता है।कई बार सुसराल वाले इस बात का ताना देते रहते थे।मुझे समझ ही नही आता था कि आखिर ये लोग चाहते क्या है

?जब उनका बेटा लाइट बिल नहीं देता था तो घर मे रोज झगड़ा करते थे और आज मैंने अपनी  समझ से सुलझा दिया है,तब भी तकलीफ हो रही है।उस समय तक मुझे थोड़ा थोड़ा ये समझ आने लगा था कि ये लोग न तो खुद खुश रहना चाहते है न ही किसी को खुश देखना चाहते है।उस समय तक मैंने ये जान लिया कि मेरे सुसराल वाले अपने पैसो को कंजूसी करके बचाना,उन्हें न अपने लिए खर्च करना और न ही बच्चो के लिए खर्च करना यही उनकी बुरी आदत बन चुकी थी और यही कारण था कि उन्होंने अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा नहीं दी,अच्छा खिलाया नही,अच्छा पहनाया नही।
मैं समझ गई कि मेरे पति की परवरिश मे ही खोट है,इन्हें अच्छा वातावरण नही मिला,इसलिए वो ऐसे है।
मैंने ये सोचकर  भविष्य पर छोड़ दिया कि एक दिन मैं अपने प्रेम से अपने पति को बदल दूँगीऔर इसी कोशिश के साथ मेरा संघर्ष  चलता रहा।
जून 2006 की बात है,मेरे पापा को ब्रेन ऐमरेज हो गया था इसलिए राइट साइट से पैरालाइज हो गए थे।

उस समय मेरी दोनो बहने और भाभी प्रेग्नेंट थे।मेरे पापा को उदयपुर के एक सरकारी अस्पताल मे एडमिट कराया। 15 दिन एडमिट होने के बाद पापा अच्छे भी हो गए थे लेकिन थोड़े दिन बाद वापस उनकी तबियत खराब होने की वजह से उन्हें अहमदाबाद एडमिट कराया।मेरी मम्मी और भाई पापा के साथ अहमदाबाद गए हुए थे।अब मेरी ज़िमेदारी दुगुनी हो गई थी।एक बार सुसराल आती,बच्चे को स्कूल भेजती,फिर काम जाती और रात को वापस मम्मी के यहां सोने जाती।
एक दिन मम्मी के यहां पापा की चिंता करते करते भगवान के सामने खड़ी थी और मन ही मन पापा को ठीक करने की  प्रार्थना कर ही रही थी कि जलता हुआ दीपक बुझ गया।

।अब तक तो केवल ऐसा फिल्मो मे ही देखा था पर पहली बार ऐसा सीन  देेख कर हैरान रह गई।मैंने दीपक के पास जाकर देखा तो उसमें घी भी पूरा था और बाती भी सही थी,और न ही पंखा चला ,और न ही कोई हवा चली।अब तो ये संकेत किसी अनहोनी घटना की सूचना था।मुझे समझ आ गया कि अब पापा नहीं बचेंगे।मेरी चिंता और बढ़ गई।एक तरफ पीहर मे माहौल ऐसा हो गया और दूसरी तरफ सुसराल वाले मुझे तंग करने से बाज नही आ रहे थे।सुसराल मे इस बार मैं बिल के पैसे नहीं दे पाई तो उन्होंने मेरे कमरे के बाहर से तार काट दिए और लाइट काट दी।मैं जब भी सुसराल जाती अंधरे मे ही काम करती।थोड़े दिन बाद पापा को अहमदाबाद से घर लेकर आ गए।लेकिन उनकी तबियत नाजुक ही थी।उनकी बोली भी चली गई थी।एक दिन मेरे सासुजी मेरे पापा से मिलने आये।उन्होंने ऐसे नाजुक समय मे भी पापा से घर के डिसकशन किये,वो मुँह से बोल नहीं पा रहे थे लेकिन उनका मन मेरे दुःखो से बहुत घबरा रहा था।
इस तरह तीन महीने बिना लाइटों के मैंने सुसराल मे निकाले लेकिन किसी का भी मन नहीं पिघला हमे अंधरे मे रखकर।अब मेरा सुसराल से मन हट गया था।मैं अपने आप को बहुत अपमानित महसूस कर रही थी।मैंने निश्चय कर लिया कि अब इस घर मे मैं नहीं रहूंगी।
मैंने अपने पति से कहा कि -"अब हम किराये का घर ढूंढते है,पर पति ने मना कर दिया।मेरे पति न तो अपने घर मे पैसा खर्च करना चाहते थे और न ही किराये रहना चाहते थे।मैं ठहरी स्वाभिमानी,इतना अपमान होने के बाद वहाँ रहना नहीं  चाहती थी।मैंने जिद करी की  मैं तो अब किराये पर ही रहूंगी तो पति ने जिद मानी और मेरे साथ किराये का घर ढूंढने साथ मे आ गए।किस्मत से थोड़ी दूरी पर,खारोल कॉलोनी मे एक घर के बाहर tolet लिखा हुआ था।मैंने अंदर जाकर पूछा तो  अंदर ग्राउंड मे 2 कमरे ,रसोई और साथ मैं टॉयलट बाथरूम भी थे।मुजे घर और लोग दोनों पसंद आ गए थे।1500 रुपये किराया बताया।मैंने हाँ कर दी और 500 रुपये एडवांस दे दिए।फिर मैंने जरूरी जरूरी सामान बांधा और स्कूटर पर ही थोड़ा थोड़ा लेकर गए।कुछ सामान सुसराल ही रहने दिया।ये  दूसरी बार  था कि मैं वापस सुसराल से  निकली । पापा की हालत के कारण उनसे ये बात छिपानी पड़ी।नया नया मोहल्ला था,थोड़े दिन तो मन ही नहीं लगता था।लेकिन फिर दिन भर काम की व्यस्तता के कारण समय निकल जाता था पता ही नहीं चलता था।करीबन एक महीना ही वहाँ रहते हुए हुआ था कि एक दिन मेरे पापा की तबियत बहुत खराब हो गई थी।मैं उस दिन पापा के घर ही थी।मुझे पार्लर के काम से जाना था पर जैसे ही पापा को देखती मेरे कदम फिर पीछे हो जाते और अचानक मेरे मन से ये आवाज आई कि अगर पापा की जगह मेरी हालत ऐसी होती तो क्या मेरे मम्मी पापा मुझे छोड़ कर जाते?तो फिर मैं ऐसी हालत मे कैसे जा सकती हूंये सोच कर अपना पार्लर का बैग  रख दिया  ओर उनके पास  ही बैठी रही और उसी दिन शाम को करीबन 6 बजे पापा की death हो गई मेरे पीहर मे दुःखो का पहाड़ टूट गया मम्मी की रो रो कर हालत खराब हो गई थी।उस समय मेरी एक बहन के 15 दिन का बेटा था,भाभी के 1 महीने का बेटा था और एक और बहन को मिसकैरेज हो गया था।अब तो वापस से मेरी ज़िमेदारी बढ़ गई थी।मेरा 6 महीने तक मम्मी के घर आना जाना लगा रहता था।6 महीने बाद जब सब  थोड़े नॉर्मल हुए तो मैं वापस अपने काम और बच्चे पर ध्यान देने लगी।
एक बार की बात है मेरे शादियों का  सीजन चल रहा था ।मैं देर तक कहीं काम कर रही थी।मेरे पति मुझे 8 बजे लेने आये। मेरा बच्चा शुभम उस समय 8 साल का था और घर पर अकेला था।मैं जब काम से घर पर आई तो देखा कि मेरा बेटा एक तरफ कोने में दुबक कर सोया हुआ था,ठंड से ठिठुर रहा था,और उसके चारों तरफ खिलोने बिखरे हुए थे।वो भूखा ही सो गया था

मैंने उसे लाख जगाने की कोशिश करी पर वो नहीं जागा।मैंने भी उस दिन बुझे मन से खाना बनाया,अपने पति को रखा पर मेरा मन अपने बच्चे को खिलाएं बिना कैसे खा सकता था।मैने भी खाना नहीं खाया।
इतना कठिन संघर्ष करने के बाद भी पति को कभी दया नहीं आई कि किसी दिन ये कह दे कि तू चिंता मत कर,मै तेरे साथ हु।मैं भी हार मानने वालों मे से नहीं थी।मुझसे जितनी मेहनत भगवान करवा रहे थे,जितनी परीक्षा ले रहे थे,साथ साथ मदद भी कर रहे थे।जितना खर्चा मेरे घर का था उतना ही बराबर भगवान मुझे दे रहे थे,न उससे कम और न ज्यादा।मेरे पति चाहे कोई फर्ज नहीं निभा रहे थे फिर भी मैंने अपने पति से कभी एक रुपया नहीं छिपाया।जितना खर्चा होता वो भी बता देती और जो बचता वो भी पति के खाते मे जमा कर देती।मुझे मेरे पीहर वाले बहुत डांटते कि कम से कम अपना खाता तो खुलवा और कुछ पैसे छुपा कर तो रख,क्यो ऐसे पति को हर चीज सही सही बताती है।पर मेरा उसूल था कि कोई मुझसे बेईमानी करे तो करे पर मुझे ईमानदारी ही रखनी है।एक दिन की बात हैं ,शीतला सप्तमी का त्योहार आया,मैंने अपने पति से कुछ सामान खरीद कर लाने के लिए बोला,इस बात पर इतना झगड़ा हो गया कि मेरे साथ पति ने मारपीट करी

।मैंने अपने भाई और अपनी मम्मी को ये बात बताई। मेरे भाई ने मेरा एक खाता खुलवाया और बोला कि आज के बाद अपने पति को अपनी कमाई मत देना।उस दिन से मैंने घर के खर्चे के बाद जो भी पैसा बचता उसे मैं अपने खाते मे जमा करती थी।
कुछ दिनों बाद हमारा स्कूटर खराब हो गया ,बार बार ठीक कराया लेकिन पेट्रोल भी ज्यादा जलने लगा।मैंने फिर अपने पति से कहा कि एक नई मोटरसाइकिल ले लेते है,कुछ पैसे आप दे दो कुछ मैं दे दूँगी,पर मेरे पति ने इंकार कर दिया कि मेरे पास तो पैसे नहीं है,ऐसा कर हर महीने 3000 रुपये अलग इक्कठे कर ले फिर ले आएंगे  गाड़ी।मुझे अच्छे से पता था कि ये काम भी मुझे ही करना है ,मैंने थोड़े थोड़े पैसे इक्कठे किये और फिर नई मोटरसाइकिल ली।अब मैं दिन भर काम करती और पति मुझे हर जगह लेने छोड़ने आते थे और इस तरह अपने जीवन का निर्वाह कर रही थी।
कुछ दिनों बाद राखी का त्योहार आया,मेरा मन नहीं माना और मैंने अपने पति से कहा कि,घर पर दीदी आये होंगे,हम आज घर चलते है,त्योहार मना कर वापस आ जायँगे।मेरे पति ने तो साफ मना कर दिया कि मुझे नहीं जाना आज।पर मैंने जिद करि  तो वो मान गए और   हम तीनों   ससुराल गए।वहां मेरे ननंदजी को देखकर सासुजी से मिलकर सब    पुरानी  बात भुल गई औऱ खुशी से सबके साथ राखी मनाई ।मैंने अपने मन मे ये संतोष कर लिया कि दूर रहने से अगर प्रेम रह रहा है तो मैं अब दूर रह कर ही रिश्ता निभाऊंगी। अब तो जब मन करता मै अपने देवर के बच्चो से मिलने जाती,सबसे प्रेम से बाते करती और वापस अपने किराये के घर पर आ जाती।
मार्च 2008 की बात है ,एक दिन मेरा बेटा शुभम अचानक स्कूल मे ही चक्कर खाकर गिर गया,स्कूल की मेडम ने फ़ोन किया और हम उसको स्कूल लेने गए।घर लेकर आये उसे निम्बू पानी पिलाया,पर उसने तो बोलना बंद कर दिया और धुजने लग गया,हम तुरंत उसको हॉस्पिटल लेकर गए और उसे एडमिट कर दिया।

सुबह 11 बजे उसे एडमिट कराया और उसी दिन दिन को 3 बजे उसी हॉस्पिटल मे मेरी एक और प्रेग्नेंट बहन  मंजू को एडमिट कराया।मेरा एक पाँव अपने बेटे के वार्ड मे तो दूसरा पाँव अपनी बहन के वार्ड मे।दिन रात एक वार्ड से दूसरे वार्ड तक चक्कर लगाते लगाते इतनी थक गई कि हॉस्पिटल की सीढ़ियों पर बैठ कर रोने लग गई और ईश्वर को याद करके कहने लगी कि-"है ईश्वर अब इस परीक्षा से मुक्ति दो।जैसे ही प्राथना करि कि मेरी बहन के वार्ड से सूचना आई कि बेटा हुआ है।

मैं दौड़ी दौड़ी अपनी बहन से मिलने गई, और बहन से मिलने के बाद अपने बच्चे के वार्ड मे आई तो पता चला कि मेरा बेटा एकदम सही  हो गया है और डॉक्टर ने भी छुट्टी दे दी है।एक बात मुझे अच्छे से समझ आ रही थी कि ये केवल मेरी परीक्षा ही थी  जो एक साथ आई और एक साथ निपटा भी ।ईश्वर को धन्यवाद दिया और  कहा कि परीक्षा चाहे कितनी भी ले लो पर साथ कभी मत छोड़ना।
कुछ दिनों बाद पति ने फिर झगड़ा किया,मारपीट की।मैं दो तीन दिन तक काम पर नही गई और अपने पति से बात भी नही करी।पर मेरे पति को किसी चीज का कोई फर्क नही पड़ता था,क्योकि घर चलाना, किराया देना,बच्चे की फीस भरना,सब मेरी चिंता थी।इसलिए न चाहते हुए भी अपने पति को कहना पड़ता था कि मुझे काम पर छोड़ दो।मझबूरिवश मुझे उनके साथ गाड़ी पर बैठकर जाना पड़ता था।
कुछ दिनों बाद मेरी मम्मी और भाई ने राय दी कि तू कहीं पार्लर खोल दे ताकि रोज रोज इनको छोड़ने लाने का टेंशन ही खत्म हो जाये।मेरी मम्मी ने कहा कि हमारी तरफ से तेरे कोई रकम या गहने नही है तो तू रकम की जगह हमसे पैसे ले ले और ब्यूटी पार्लर खोल दे।मुझे भी ये बात समझ आ गई और मैंने निश्चय कर लिया कि अब मैं ब्यूटी पार्लर खोल दु।मैंने एक जगह एक तीन कमरों का घर देखा और वहाँ पूरा घर ही किराये पर ले लिया ताकि रहने का भी हो जाय और पार्लर भी खुल जाए।4000  किराया  था और 1000 रुपये लाइट के थे।मैंने 2 साल तक वहाँ पार्लर  चलाया । भगवान के नाम को एक पल के लिए भी अपने से दूर न करते हुए,उनके नाम को याद करते हुए काम कर रही थी।।मेरे पति तब भी वैसे के वैसे थे।मैं दिन भर ब्यूटी पार्लर मे काम करती और मेरे पति दूसरे कमरे मे घंटो तक सोते रहते थे।

मेरे यहाँ जो भी ग्राहक आते ,वो मेरे पति के बारे मे पूछते और मुझे कुछ न कुछ बहाने से उस बात को टालना पड़ता था।2 साल तक मै अकेली पार्लर चलाती,पूरा खर्चा खुद उठाती पर पति ने कभी मेरे किसी चीज मे मेरा साथ नही दिया।फिर भी दुनिया के सामने अपने पति की इज्जत करती रही।2 साल पार्लर चलाने के बाद कुछ भी मुनाफा नहीं हुआ ।एक रात को मुझे सपना आया

कि मैं अपना पार्लर का बैग लेकर घर घर जाकर काम कर रही हु और सपने मे 8 ,10 औरते मुझसे कह रही है कि राधा,-"क्या अब तू वापस घर घर जाकर काम करेगी।और फिर सपना टूट जाता है।मुझे भगवान का संकेत मिल चुका था कि अब मुझे वापस ये पार्लर बंद करना पड़ेगा।थोड़े दिन बाद काम भी बंद हो गया और last मे तो किराया भी मुझे अपनी बचाई हुई saving से भरना पड़ा।मैंने भगवान को कहा कि शायद यही तेरी मर्जी है।मैंने ब्यूटी पार्लर बंद करने का निश्चय किया और वापस पुराने मकान मालिक को फ़ोन करके पूछा कि घर खाली है कि नही।किस्मत से घर खाली ही था।मैने धीरे धीरे सामान की पैकिंग करना शुरू किया कि एक  एक दिन घर मे कुछ चमत्कार दिख रहे थे।एक रात को ब्यूटी पार्लर का काउंटर अपने आप खुल कर नीचे आ जाता है,और दूसरी रात को पर्दे खुल कर   अपने आप नीचे गिर जाते है।  शायद ये सब ईश्वर की मरझी से ही हो रहा था।
मई 2009 मे हम वापस खारोल कॉलोनी मे किराये पर रहे।वापस वही घर  घर जा कर लोगो के पार्लर का काम करने लगी।
 लेकिन पति की तरफ से कोई शांति नहीं मिली,लड़ाई झगड़े कम नहीं हुए।कही भी छोड़ने आते तो रास्ते मे ही लड़ाई करने लग जाते,इसलिये कभी कभी पैदल ही आ जाती।एक दिन की बात है,मेरे पति ने मुझे मारा तो मुझे इतना गुस्सा आया और भगवान को कह दिया कि अब मैं आपका नाम लेकर पैदल आ जाउंगी,ऑटो मे आ जाउंगी पर पति को फ़ोन नहीं करूंगी।कई दिनों तक हाथ मे 20  किलो का बोझ उठाकर भगवान के भजन गाती गाती चलती गई।

पर मैंने भी पति को फ़ोन नही किया।एक दिन ऐसे ही भगवान के भजन गाती गाती चल रही थी कि रास्ते मे एक राडाजी बावजी का स्थान आया,मैंने वहाँ बेग रखा और उनको प्रणाम किया और कहा कि-"हे प्रभु मुझसे अब पैदल नही चला जाता।अब आप ही कुछ करना, अब तो मै इस रास्ते से तभी निकलूंगी जब मै गाड़ी चला सकु।ये कह कर तो मैं वहाँ से चली  गई। उसके बाद मेरी सहेली,जो मेरी धर्म की माता है,उन्होंने मुझे बताया कि कोई औरत हैं जो गाड़ी चलाना सिखाती है।मैंने एक बार तो उनको मना कर दिया कि मैं गाड़ी नहीं चला सकती,मुझे बहुत डर लगता है।लेकिन फिर मैं और मेरी सहेली हिम्मत करके उस औरत से बात करने गए।उसने हमसे कहा कि वो 8 दिन मे गाड़ी सीखा देगी पर 800 रुपये जो उसकी फीस थी वो एडवांस लेती है।हमने उसे 800 रुपये एडवांस दे दिए।अगले दिन उसके बताये स्थान पर ठीक समय पर गाड़ी सीखने चली गई।पहले दिन उसने बहुत अच्छे से बात करी और स्कूटी  चलाने के और ट्राफिक के नियम बताए। अगले दिन फिर उसी समय पर जब मैं वहाँ पहुंची तो वो औरत उस दिन नहीं आई।मैंने उसे फ़ोन किया तो उसका फ़ोन स्विच ऑफ था।मैंने सोचा शायद कोई एमरजेंसी आ गई होगी तो कहीं बाहर चली गई होगी।उसके बाद कम से कम 15 दिन तक मैं फ़ोन लगाती रही।कभी वो उठाती नहीं और कभी बंद आता था।एक दिन मैंने और मेरी सहेली ने उसका एड्रेस पता किया तो पता चला कि वो किसी शोरूम मे काम करती है।हम उसके शोरूम मे उससे बात करने गए तो वो बहाने बनाने लग गई।मैंने उससे 800 रुपये मांगे तो उसने देने से इंकार कर दिया।इस पर हमारी उससे बहुत बहस हो गई ओर फिर हम घर आ गए।घर आकर मैं इतना रोई और अपनी किस्मत को दोष देने लग गई कि अब मैं गाड़ी कभी नहीं सिख सकती।मुझे रोते हुए देखकर मेरे धर्म का भाई विशाल मुझसे बोला कि-"दीदी आप क्यों चिंता करते हो,मैं आपको 9 दिन मे  गाड़ी  सीखा दूंगा ।मैंने उससे कहा कि-'मुझे अब कोई गाड़ी नहीं सीखनी,तुम सब मुझे कहना बंद कर दो।
      थोड़े दिन बाद एक दिन मुझे सपना आता है,और सपने मे मैं गाड़ी चलाती हु और मेरे पीछे मेरी मासी बैठती है और कहती है कि-"राधा !तू डर मत और गाड़ी चला,मैं तेरे पीछे बैठी हु।सुबह जब उठी तो मैंने सोचा कि ये मेरा वहम है,लेकिन कुछ दिनों बाद फिर यहीं सपना आया।ऐसा सपना 3 बार मुझे आया तो मुझे लगा कि जरूर ये माँ जगदम्बा है जो मुझे गाड़ी सीखा रही है।लेकिन मैंने इस सपने की बात किसी से नहीं कही।
एक दिन नवरात्रि का पहला दिन था,और सुबह 5 बजे अचानक मेरा धर्म का भाई विशाल घर के बाहर आकर आवाज देता है,और कहता है दीदी!जल्दी उठो मैं आज आपको गाड़ी चलाना सिखाकर रहूंगा।मैं हैरान रह गई कि इतनी जल्दी अचानक ये कैसे आ गया।मैंने एक बार तो बहाने बनाये कि नवरात्रि के व्रत मे कहीं चोट लग गई तो क्या होगा?पर मेरा भाई विशाल नहीं माना, उसकी जिद के आगे मैं हार गई और उसके साथ गाड़ी सीखने चली गई।नवरात्रि  मे मैं पैरों मे चप्पल  नही पहनती थी,बिना चप्पल के उस दिन मैंने पहली बार गाड़ी को धीरे धीरे रेस दी,पीछे मेरा भाई विशाल बैठा था,जो हाथ पकड़ कर मुझे सीखा रहा था।इस तरह नवरात्रि के 9 दिनों तक रोज वो मुझे सुबह 5 बजे गाड़ी चलवाता।और भगवान का ऐसा चमत्कार हुआ कि 9 दिन मे मैं बिना गिरे गाड़ी चलाना सिख गई।मैंने अपने भाई को धन्यवाद दिया और उसे अपना गुरु माना जिसने एक डरपोक बहन को गाड़ी सिखाकर असंभव काम को संभव कर दिया।
जैसे ही मैं गाड़ी सिख गई और उसके अगले दिन ही मेरे भाई विशाल का होटल मैनजमेंट की पढ़ाई के लिए बाहर नम्बर आ गया और उसे  जाना पड़ा। कैसा अजीब इत्तफाक था कि जाते जाते वो मुझे बहुत कुछ दे गया,उसके बाद तो वो अपनी पढ़ाई मे इतना busy हो गया कि अब तो वो चाह कर भी मुझे गाड़ी नहीं सीखा पाता।सही समय पर अचानक हुए इस असंभव कार्य को मैं किसी चमत्कार से कम नहीं समझती।पग पग पर ईश्वर मेरी मदद कर रहे थे।
कुछ समय बाद मेरा भाई विशाल एक दो दिन की छुट्टी के लिए उदयपुर आया तो मैंने उससे कहा कि अब मुझे अपने लिए नई स्कूटी लेनी है,अगर मैं बराबर नहीं चलाऊंगी तो भूल जाउंगी।हम एक शोरूम मे स्कूटी देखने गए

तो 40000 की थी।मैं घर आ गई,एकदम से इतनी बड़ी रकम   ,सोचकर मन घबरा रहा था क्योंकि मेरे saving मे मात्र 50000 थे।फिर भी मन बनाया और  अगले दिन 40000 बैंक से निकलवाये और स्कूटी खरीदी।
दो दिन बाद मेरा भाई विशाल वापस बाहर चला गया।मेरी नई स्कूटी 15 दिन तक ऐसे ही पड़ी रही पर डर के मारे हाथ नहीं लगाया कि कहीं गिर गई तो।
एक दिन की बात है,मुझे पार्लर के काम से जाना था और पति ने अचानक किसी बात को लेकर झगड़ा किया और मुझ पर हाथ उठाया। इस बात पर मुझे इतना गुस्सा आया कि मैंने गुस्से गुस्से मे गाड़ी उठाई और गुस्से में ही अकेली निकल गई।उस दिन पूरा दिन मैंने अकेले गाड़ी चलाई,और शाम को घर आई तो मैंने विचार किया कि ये चमत्कार कैसे हो गया?वो गुस्सा मेरा ऐसा काम कर गया कि मेरा सारा डर निकाल दिया।मैंने ईश्वर को  धन्यवाद दिया कि है प्रभु!तेरी लीला अपरम्पार है।
उसके बाद अब मै रोज भजन गाती गाती गाड़ी चलाती और काम पर जाती थी।करीब एक वर्ष बाद मुझे सपना आया कि मैं किसी बरगद के पेड़ से नीचे गिर गई हुु।

सुबह उठी तो मन मे बड़ा डर लग रहा था,क्योकि मेरे सपने का हमेशा कुछ न कुछ अर्थ जरूर निकला है।पेड़ से नीचे गिरना मुझे कुछ अशुभ संकेत दे रहे थे,फिर भी मन को जैसे तैसे समझाया और सपने की बात को भुला दिया।इसके ठीक एक सप्ताह बाद एक दिन मैं पार्लर के काम से घर आ रही थी तो अचानक मेरी स्कूटी को पीछे से किसी बाइक ने टक्कर दे दी  ओर गाड़ी मेरे हाथ से छूट गई और मैं दूर जाकर गिर गई।

आसपास के कई लोग मुझे उठाने आये ,पर मुझे आँखों से कुछ दिख नहीं रहा था।बड़ी मुश्किल से बेग मे से अपना फ़ोन निकालकर अपने भाई बहनों और पति को फ़ोन किया। सभी आकर मुझे मम्मी के यहाँ लेकर गए।मेरे घुटनो के ऊपरी हिस्से मे बहुत तेज सूजन थी,बाकी कहीं कोई चोट नहीं थी।मम्मी ने आयोडेक्स की मसाज कर दी,मैंने भी सोचा,मामुली चोट है ,ठीक हो जाएगी।मम्मी ने मुझे वहीं रोक लिया।अगले दिन सुबह मेरा पैर सूजकर बड़ा हो गया और पैर से चला ही नही जाए।उसी समय हॉस्पिटल गए,एक्सरा कराया तो डॉक्टर ने 21 दिन का पट्टा बांध दिया और rest दे दिया।मैंने 21 दिन  अपने घर पर ही rest किया ,लेकिन छोटा मोटा घर का काम धीरे धीरे खुद ही करती थी।21 दिन बाद जब वापस डॉक्टर को दिखाया तो पैर की सूजन और ज्यादा थी।डॉक्टर ने अब एम आर आई कराने के लिए बोला। एम आर आई कराई तो रिपोर्ट मे आया कि मेरे घुटने के लिगामेंट फट गए हैं।डॉक्टर ने कहा कि 40 दिन और rest करना पड़ेगा।अब मम्मी मुझे अपने घर ले गई।40 दिन तक एक एक दिन मैंने बड़ी मुश्किल से काटा।


।एक मिनिट ऐसा नहीं गया कि मैंने भगवान का नाम नहीं लिया हो।40 दिन बाद जब डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने कहा कि अब तो ऑपरेशन ही करना पड़ेगा। बिना ऑपरेशन ठीक नहीं होगा।मैं घर आकर भगवान के सामने,आवरा माता जी  से बोली कि आपने तो अच्छे अच्छे को ठीक किया है,फिर मुझे क्यो नहीं? मैं उनके सामने गिड़गिड़ा कर बोली कि मैं जीवन भर लंगड़ा कर चलूंगी पर ऑपरेशन नहीं कराउंगी। 
उसी रात को सपना आया कि आवरी माता जी मेरा हाथ पकड़कर मुझे चला रहे थे।मुझे अब थोड़ा विश्वास आ गया कि शायद अब मै ठीक हो जाउंगी।लेकिन मेरा पैर तो एकदम लकड़ी हो गया था,बिल्कुल हिल भी नहीं रहा था। एक दिन मेरी मौसी मुझसे मिलने आई, और उन्होंने मुझे डॉट कर कहा कि  -कब तक ऐसे ही पैर लेकर बैठी रहेगी?थोड़ा इस पैर को चलाने की कोशिश कर,इतनी जल्दी हिम्मत हार गई हैं क्या?उनकी बातें सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे कोई दैवीय शक्ति मुझे जगा रही है।उस दिन से मैं धीरे धीरे पैर को उठाने को कोशिश करने लगी,और कोशिश करते करते मेरा पैर कुछ दिनों मे काफी हद तक हिलने लगा था।उसके बाद रोज 3 महीने तक एक्सरसाइज करी और ऐसा चमत्कार हुआ कि मैं दीवार के सहारे सहारे चलने लगी।मैं समझ गई कि ये चमत्कार आवरा माताजी ने ही किया है।मैंने अपने घर वालो को बोला कि मुझे जल्दी से जल्दी आवरा माताजी के दर्शन करने हैं।मेरा पैर पूरी तरह से ठीक नही हुआ था,इसलिये मम्मी ने आवरा माता जी जाने के लिए मना कर दिया था,पर मैं जिद पर अड़ गई तो मुझे मेरी मम्मी और मेरी सहेली कैलाश दीदी आवरा माताजी लेकर गए।आवरा माताजी से वापस आने के बाद ऐसा चमत्कार हुआ कि मेरा पैर काफ़ी हद तक ठीक हो गया।
अक्टूबर 2011 मे मैं वापस अपने किराये के घर खारोल कॉलनी आ गई,हालांकि मम्मी अभी मुझे भेजना नहीं चाहते थे पर मेरे बेटे की पढ़ाई का loss हो रहा था ।वापस आई तो मकानमालिक को तीन महीने का   किराया देना पड़ा।मेरे पति  ने ऐसी परिस्थिति मे भी खर्चा नहीं  किया,पर क्या करती, रोज रोज लड़ाई करना मेरे वश मे नही था।मैंने अपने कुछ पैसे बचाये थे,उसी से किराया चुकाया।
नवंबर महीना था,दीवाली का त्योहार  आया ।मेरे मन मे सुसराल जाने की इच्छा हुई,हालांकि मेरे एक्सीडेंट होने पर कोई मुझसे मिलने नहीं आया फिर भी सबकुछ भूलकर मैं उन सबसे मिलना चाहती थी।मैं अपने पति और बच्चे के साथ सुसराल गई,वहाँ मेरे ननंद और ननंदोई जी भी  थे।हम सब ने इतने टाइम बाद खुशी से साथ मे खाना खाया।मेरे ननंदोई जी ने मेरे सास ससुर जी से बात करी कि पुरानी बातों को भूलकर सब साथ मे रहो और हमको वापस साथ मे रहने के लिए बोला।मैं तो सुनकर खुश हो गई,क्योकि मै तो अपने परिवार से शुरू से ही प्यार करती थी लेकिन पैसो के  झगड़ो के कारण दूर रह रही थी।सब लोग खुश थे तो मैंने सोचा कि,अब सब बदल गए है,मैं भी पुरानी बातें भूल जाती हूं और वापस अपने घर आ जाती हूं।
5 साल किराये रहने के बाद वापस अपने घर जा रही थी तो पहले मैंने पूरे घर मे color कराया,सफाइयां कराई,उसके बाद मैं वापस अपने सुसराल शिफ्ट हुई।इस बार मैंने अपने आप से प्रण किया कि मैं अपनी तरफ से इस घर के वातावरण को प्रेम से भरने की पूरी कोशिश करूँगी।मैंंने एक बार फिर से सुसराल मे सबके साथ रहने की कोशिश करी।
क्या मेरी ये कोशिश कामयाब होती है?या नहीं?मैं आपको अपनी आगे की कहानी मे बताउंगी।

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