मेरा सच-चरण 27 -कठिन परीक्षा के साथ हुए शनिदेव जी के साक्षात दर्शन और उनसे मिला आदेश सत्य की राह पर चलते रहने का

iमेरे पति की हरकतों और गलतियों के कारण अब हमारे बीच दूरियां बढ़ती जा रही थी।जहाँ हम लड़ झगड़ कर भी साथ खाना खाते थे,अब तीनो खाना भी अलग अलग खाने लगे।कई बार झगडो के बावजूद भी मैं खाना साथ लगाती और अपने पति को हमेशा समझाती कि ," छोटी सी जिंदगी है,इसे लड़ाइयों मे व्यर्थ खराब मत करो।आपसे पैसा खर्च न होता है तो मत करो,पर घर मे प्रेम से रहो।
लेकिन मेरे पति पर कोई असर नही हुआ।कुछ दिनों बाद मैंने 23 अप्रैल 2016 को घर मे शनिदेव की पूजा और कथा रखी।मैंने अपने पति को इस पूजा की तैयारी के लिए बोला,लेकिन उन्होंने इसके लिए भी कोई जवाब नहीं दिया।मैंने और मेरे बेटे ने सारी तैयारी अकेले करी।23 अप्रैल 2016 को मैंने पंडित जी को बुलवाकर कथा करवाई।बहुत ही अच्छे से पूरा कार्यक्रम हुआ।कुछ मिलने वालों को भी कथा मे आमंत्रित किया।सबने बहुत एन्जॉय किया ।
कुछ दिन बीते।एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे उसका पासपोर्ट बनवाने के लिए बोला,क्योंकि उसको कहीं जरूरत थी।मैंने अपनी बहन से इस बारे मे बात करी, क्योंकि उसने हाल ही मे पासपोर्ट बनवाया था।मेरी बहन ने किसी एजेंट के नंबर दिए।मैंने एजेंट से बात करी और उन्होंने सारे दस्तावेजों के साथ हमे उनके ऑफिस बुलाया।मेरे पति मुझसे और बच्चे से बात नहीं कर रहे थे फिर भी मैंने अपने बच्चे के खातिर उनसे पासपोर्ट के लिए बात करी।लेकिन वही हुआ जिसका डर था।जैसे ही पासपोर्ट के लिए बोला कि गुस्से से मेरी तरफ देखा और चिल्ला कर बोले कि-कोई पासपोर्ट बनवाने की जरूरत नहीं है।तुम दोनों माँ बेटे के बड़े ऊंचे ऊंचे ख्वाब है।पहले ही इतने मंहगे स्कूल मे पढ़ा रही है।बड़ी रहिसजादी है क्या?इस तरह बेबुनियादी बातें करते रहे जिसका जवाब ही नही था मेरे पास।
अगले दिन मैं और मेरा बेटा दोनो ,सारे कागज लेकर एजेंट के पास पहुंचे ।एजेंट ने सारे दस्तावेज लगा कर पासपोर्ट ऑफिस जाने की तारीख ले ली।15 दिन बाद हमे पासपोर्ट के लिए जोधपुर जाना था।कुछ दस्तावेजो पर पिता के signature चाहिए थे, बड़ी मुश्किल से अपने पति से साइन करवाये।उसके बाद मैंने अपनी बेस्ट फ्रेंड को जोधपुर जाने की बात करी तो उसने मुझे अकेले जाने के लिए मना कर दिया और कहा कि मैं आउंगी तेरे साथ।उन दिनों मेरी फ्रेंड की तबियत ठीक नहीं चल रही थी फिर भी उसने मुझे अकेले जोधपुर नही जाने दिया।ये बेस्ट फ्रेंड मेरी फ्रेंड ही नहीं बल्कि मेरी बहन और मेरी माँ भी है,ये मेरे से दस साल बड़ी है और इनके दोनो बेटो को मैं राखी बांधती हु,और ये पूरा परिवार मुझे god gift मिला है।
मई 2016 को मैं और मेरा बेटा मेरी best फ्रेंड,यानी मेरे दीदी के साथ जोधपुर गए।सुबह सात बजे की बस ली और करीब  साढ़े दस बजे हम जोधपुर पहुँच गए।हमारा अपोरमेंट 2 बजे का था।इसलिये हम किसी रेस्टोरेंट मे बैठे रहे ,वहीं खाना खाया और टाइम पास किया।उस दिन बहुत ही गर्मी थी,पासपोर्ट ऑफिस के बाहर कहीं कोई छाया वाली जगह नही थी।बड़ी मुश्किल से 2 बजे तक का समय निकाला।मेरी दीदी की तबियत बिल्कुल साथ नही दे रही थी,फिर भी उन्होंने अपनी दोस्ती का फर्ज निभाते हुए अपनी हालत को कंट्रोल किया।करीब 2 बजे मैं और मेरा बेटा अंदर गए,क्योकि साथ वाले को बाहर ही खड़ा रहना था तो दीदी अंदर तक नहीं आ सके।हम अंदर चार पांच जगह पर डॉक्यूमेंट चेक कराते रहे।लेकिन अफसोस,मेरे बेटे का फॉर्म कैंसिल हो गया।मेरा बेटा उस समय 17 साल का था,इसलिए पिता का साथ होना जरूरी था।पिता के साथ मे नही आने की वजह से उसका पासपोर्ट कैंसिल हो गया।मैंने वहाँ इतनी request करि कि मेरे पति गेर जिम्मेदार इंसान है तो इसमें हमारी क्या गलती है,जब मैं अपने बच्चे के लिए माता और पिता दोनो का फर्ज निभा रही हु तो मेरी उपस्थिति पर्याप्त क्यो नही है?लेकिन वहाँ किसी ने मेरी नहीं सुनी ।
बड़े बुझे दिल से वापस  वहाँ से रवाना हुए।पूरे रास्ते यही सोचती रही कि  इस दुनिया मे फॉलमेटी को तो सच माना जाता है और जो असल मे सच होता है वो अपनी सच्चाई की गुहार लगाता रहता है।
एक गैर जिम्मेदार पिता घर पर बैठा रहता है और एक जिम्मेदार माँ अकेली अपने बेटे का पासपोर्ट बनवाने इतनी दूर तक आती है,लेकिन वो गैरजिम्मेदार इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि उसके बिना एक बेटे का पासपोर्ट कैंसिल हो जाता है।
खेर ,ऐसे ही विचार करते करते उदयपुर आ जाते है।उस रात मेरी दीदी के यहां ही रुकी पर पूरी रात नींद नही आई।मेरी फ्रेंड दीदी ने मुझे समझाया कि चिंता मत कर,अगले साल बेटा 18 का हो जायेगा तो इसका पासपोर्ट बिना पिता की उपस्थिति के बन जायेगा।हम अगले दिन वापस दीदी के यहां से अपने घर आये तो एक दो दिन टेंशन मे ही रही।लेकिन मेरा बेटा शुभम बहुत पॉजिटिव है,उसने मुझे कहा कि मम्मी!मैं तो बहुत खुश हुआ कि मेरा पासपोर्ट नहीं बना।मैं तो ईश्वर को thanks बोलता हूं क्योंकि मेरे पिता तो साँवरिया सेठ है और वो ही मेरा पासपोर्ट बनवाएंगे।क्या आपको साँवरिया सेठ पर भरोसा नही है।उसकी बात सुनकर मन को ऐसा लगा जैसे ईश्वर खुद उसके माध्यम से मुझे समझा रहे हो।
अब मेरा मन शांत हुआ और मैं उस घटना को भूल गई और वापस अपने काम मे लग गई।
कुछ दिनों बाद एक दिन मेरे पति ने फिर घर मे झगड़ा किया,और हम दोनों  के साथ मारपीट करने लगे तो इस बार मेरे बेटे को गुस्सा आया और उसने अपने पापा के कपड़े एक बैग मे भरे और गुस्से से अपने दादा दादी के घर गया और अपने दादा दादी से बोला कि ये आपके बेटे का सामान,आज के बाद आपके बेटे को अपने पास ही रखना।मुझे और मेरी मम्मी को तंग करके रखा हुआ है।18 सालो से मेरी मम्मी झेल रही है।उसकी बात सुनकर उसको दिलासा देने की बजाय उसके दादा जी ने हम पर अधिकार लेने का इल्जाम लगा दिया और मेरे बेटे से कहा कि,लेजा अपने बाप का बैग,road पर फेंक दें, हमे भी जरूरत नही है इस बेटे की।और कहा कि तुम लोग वापस घर मे घुसने के लिए नाटक रच रहे हो।शुभम कुछ जवाब नही दे पाया और बैग छोड़ कर वापस घर आकर मुझे सारी बात बताई।
उस दिन से हमने अपना अधिकार हमेशा के लिए छोड़ने का फैसला कर लिया क्योंकि हमारी सच्चाई किसी ने समझी ही नहीं।हमने केवल प्रेम को ही सच्चा धन समझा लेकिन हमारे प्रेम को समझने वाला ईश्वर के अलावा कोई नहीं था।
उसी दिन फिर मेरे पति ने मेरे बेटे से झगड़ा करा और वापस अपने मां बाप के यहाँ जाकर बैग लेकर आ गए और फिर कई महीनों तक हमें परेशान करते रहें।
वो अपने कमरे मे अकेले घंटो सोते रहते।

उन्हें कोई मतलब नहीं था कि घर मे सामान कैसे आ रहा है,घर कैसे चल रहा है,बच्चे की जरूरतें क्या है,किसी चीज से कोई लेना देना नहीं था।बस एक खाने के समय रसोई मे आते,जो बना होता वो लेकर खा लेते और वापस अपने कमरे मे बैठे रहते।कोई इमोशन,कोई फीलिंग उनमे  नही बची।कई सालों तक तो समझा बुझा कर कोम्प्रोमाईज़ करती रही पर अब मैंने भी समझाना बंद कर दिया और मौन रहने लगी।
अब मैं भी फालतू की बहस को छोड़ कर अपने बेटे पर ध्यान देने लगी।शुभम you tube पर वीडियो बनाता है ,तो कुछ दिनों बाद एक कैमरा खरीदा।शुरू मे मोबाइल कैमरे से बनाता था,फिर डी ऐस एल आर कैमरा लिया जिससे उसकी वीडियो क्लियर आने लगी और उसके subcriber भी बढ़ने लगे।
जून 2016 मे एक रात मुझे फिर एक सपना आया।सपने मे कोई काला बुरखा पहने हुए आया और मेरे हाथ पर कोई लोहे की चीज जोर जोर  से घिस रहा था।मैं जोर जोर से चिल्ला रही थी लेकिन उसने मुझे कसकर पकड़ा
 हुआ था।जैसे जैसे वो लोहा घिस रहा था वैसे वैसे मेरी हथेली मे आग निकल रही थी।उसके बाद काले बुरखे वाले ने मुझसे कहा कि,"जो सच की आग मैंने तेरे अंदर लगाई है वो किसी भी परिस्थिति में कम नहीं पड़नी चाहिए।"मैंने उस बुरखे वाले से पूछा कि ,"आप कौन हो?"मुझे अपनी शक्ल तो बताओ।लेकिन उसने अपने घूंघट वाले हिस्से को कस कर पकड़ लिया और कहा कि,मैं तुझे अपनी शक्ल नहीं बता सकता।लेकिन मैं बार बार उनसे जबरदस्ती करके घूंघट हटाने के लिए कहती रही तो उन्होंने अपना घूंघट उठाया तो देखा कि काले कोयले जैसा उनका मुँह था और खून जैसी लाल उनकी आँखें थी।जैसे ही मैंने ये दृश्य देखा कि मेरा स्वप्न टूट गया और मेरी नींद खुली तो रात की साढ़े 3 बज रहे थे।मुझे बड़ा डर लग रहा था।उसी दिन शनिवार था,मुझे पक्का विश्वास हो गया कि वो कोई और नही साक्षात शनिदेव थे। शनिदेव के दर्शन पाकर मैं  धन्य हो गई।
        "    ॐ शं शनैश्चराय नमः"।

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