मेरा सच चरण 7- भक्ति की शुरुआत

नाना जी के यहाँ 2 महीने की छुट्टियां कब निकल जाती थी पता ही नहीं चलता।रोज सुबह सूर्य उगने से पहले मैं नानाजी के साथ खेत चली जाती थी।



नाना जी के साथ खेत मे उनकी मदद कराती थी।हालांकि खेत मे काम करने की आदत नहीं थी पर नाना नानी का प्यार इतना था कि हमें कभी थकावट नहीं होती थी।पानी की बहुत किल्लत थी,



इसलिए सप्ताह मे एक दिन नहाने को मिलता वो भी नानी जी तालाब या किसी कुँए पर ले जाकर निलाती थी।नानाजी के बिल्कुल घर के सामने देवी माता जी का मंदिर था जिनका नाम पिपलाज माता जी था।बचपन से ही मम्मी के साथ रहकर माताजी की आराधना करते थे।हर शाम नाना नानी के साथ उस मंदिर मे बैठकर भजन गाते थे।भजन के साथ इतनी भावुक हो जाती थी कि वो माता की मूरत केवल मूरत नहीं थी बल्कि मेरे लिए वो एक साक्षात देवी 
ही थी जिसे मैंने अपने मन और मस्तिष्क मे बिठा दिया था और जिस तरह से मैने उस मूरत को अपने मन मे बिठाया था उसी तरह से वो मूरत भी मुझे हमेशा कोई न कोई साक्षात प्रमाण देती थी ,

ये वो ही पिपलाज माता जी है,जहाँ से मेरी भक्ति की शुरआत हुई और इन्ही माता जी ने मुझे आगे चलकर श्री कृष्ण के दर्शन कराए,जिसे मैं अपनी कहानी मे बताऊंगी।  इसलियें कहते है कि आस्था और विश्वास अगर सच्चा है तो पत्थर मे भी भगवान् नजर आते है।

                  "सत्यम शिवम सुंदरम"।।

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