मेरा सच-चरण 26 -श्री कृष्ण जी साथ आई फ्लैट मे ,यहाँ मिले कुछ अलौकिक ईश्वरीय संकेत

                   मई 2014
श्री कृष्ण का इशारा पाते ही मुझे हिम्मत आ गई और एक अच्छा समय देखकर मैं श्री कृष्ण की मूर्ति लेकर नए फ्लैट मे शिफ्ट हो गई।सारा सामान खाली नहीं किया,क्योंकि पति ने बिल्कुल साथ नहीं दिया।इसलिए मैं और मेरे बेटे ने मिलकर कुछ जरूरी जरूरी सामान,जैसे कि,गैस की टंकी,बच्चे के पढ़ाई की कुछ चीजें,स्कूटी पर ही रखकर ले आये थे।
मैंने अपने पति को फ़ोन करके हमारे साथ रहने के लिए बुलाया लेकिन वो नहीं आये।दस दिन तक मैं और मेरा बेटा अकेले ही फ्लैट में रहे,उसके बाद एक दिन मेरे पति खुद ही हमारे साथ रहने आ गए।मैं खुश हो गई कि कोई बात नहीं देर से ही सही पर आ गए।कुछ महीने मेरे पति शांति से हमारे साथ रहे,लेकिन यहां भी ख़र्चे को लेकर वो बेपरवाह ही रहे,उन्हें कोई मतलब नहीं था कि किराया कितना है,लाइट बिल कितना आ रहा है,या घर के खर्चे क्या हो रहे हैं, लेकिन घर की शांति बनी रहे,इसलिए मैं चुपचाप खुद ही सारे खर्चे उठा रही थी।
दिसम्बर 2014 मे मेरा बेटा शुभम बहुत बीमार  हो गया।एक दिन अचानक उसको ठंड लगकर बुखार आया तो मैंने अपने  पति से कहा कि,-चलो इसको किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा देते है,लेकिन पति ने डांट कर कह दिया कि,फालतू पैसे खर्च करने की जरूरत नही है,हल्का बुखार है,डिस्पेंसरी पर दिखा देते है।मैंने भी उनकी बात मानकर डिस्पेन्सरी पर दिखा दिया।उन्होंने 5 दिन की दवाई दी।लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और हालात खराब हो गई।मेरा बेटा बिस्तर से उठ ही नहीं रहा था

औऱ खाना न खाने के कारण कमजोर हो गया था।मैं उसकी हालत देखकर डर गई औऱ तुरंत मेरी सहेली कैलाश दीदी को फोन किया और उनके साथ तुरंत शुभम को हॉस्पिटल बताया।डॉक्टर ने जांच लिखी।जांच से पता चला कि शुभम को तो बहुत high पीलिया हो गया था ,डॉक्टर ने  भी डाँटा  कि अगर और देर हो जाती तो इलाज भी मुश्किल था।मुझे बड़ा अफसोस हुआ कि पहले ही पति को न पूछती और बच्चे को ले आती तो उसका ये हाल नहीं होता।डॉक्टर ने जो भी दवाई लिखी,उसको समय से देती रही और साथ ही ईश्वर से  प्रार्थना   करती   रही ! कि तेरे सिवा मेरा कोई नहीं है,

और तुझे ही मेरे बेटे को ठीक करना है।मैं रोज घंटो ईश्वर के सामने बैठ कर उनसे बाते करती रहती।जो कोई भी मेरे बेटे को देखता वो यही कहता कि,ये पीलिया तो ठीक होने मे साल भर लग जायेगा।लेकिन कहते हैं कि विश्वास मे बहुत ताकत होती है।मुझे उस ईश्वर पर विश्वास था,और चमत्कार ये हुआ कि केवल एक महीने मे मेरे बेटे को एकदम से ठीक कर दिया।मैंने कई मंदिरों मे जाकर ईश्वर को धन्यवाद दिया।
फरवरी 2015 की बात है,एक रात को मुझे सपना आया कि मैं किसी मेले मे शनिदेव सहित 9 ग्रह देवता की तस्वीर खरीद रही थी,और अचानक सपना टूट जाता है।लेकिन उसके एक सप्ताह बाद फिर यही सपना वापस आता है।मैं कुछ समझ नहीं पाई।मार्च 2015 मे मैं और मेरे दीदी कैलाश दीदी के परिवार के साथ आवरी माता के दर्शन के लिए गए।वहां से लौटते वक्त हम सब शनिदेव के दर्शन के लिए गए।जैसे ही मैंने शनिदेव के दर्शन किये और मंदिर से बाहर निकलते ही एक दुकान पर लटक रही तस्वीरों पर मेरी नजर गई और मुझे सपने वाली नव ग्रह देवता की तस्वीर वाली बात याद आ गई।मैंने उस दुकान से वो ही नवग्रह देवता वाली तस्वीर खरीदी।रास्ते मे आते समय गाड़ी मे  अचानक मुझे बचपन की एक घटना ऐसे याद आई मानो किसी शक्ति ने मुझे आकर याद दिलाई हो।वो घटना ये थी कि,कक्षा 8वी मे मेरे हाथ से   एक नवग्रह देवता की तस्वीर फुट गई थी ,जिसमे जिस स्थान पर शनिदेव की फ़ोटो थी उसी जगह तस्वीर पर क्रेक आया था।ये घटना याद आते ही मैं समझ गई कि उस सपने का संकेत मुझे शनिदेव की परीक्षा की याद दिला रहा था।ये सब संजोग मुझे समझ आ रहे थे पर मैं किसी को एक्सप्लेन नही कर पा रही थी।उस तस्वीर को लेकर मैं घर आई और अभी तो उसका पैकेट भी नही खोला था और भगवान के  मंदिर मे रखा  ही था कि अचानक दरवाजे की घंटी बजी।मैंने दरवाजा खोला तो एक भैया थे जो अक्सर पार्लर के सामान की होम डिलीवरी के लिए घर पर आते थे और  उनसेे हमारी अच्छी जान पहचान थी।इत्तफाक ऐसा था कि उस दिन उन्होंने अपना पूरा ड्रेस काले कलर का पहन रखा था।शर्ट भी काला और पैंट भी वैसी ही काली।वो आये मैंने उनके लिए चाय बनाई,उन्होंने हमें पूछा कि,क्या बात है ,बहुत थके हुए लग रहे हो कहीं बाहर सेे आए हो क्या?मैंने कहा, हाँ भैया, आवरी माता और शनिदेव जी दर्शन के लिए गए थे।जैसे ही मैंने उनको शनिदेव के दर्शन के लिए कहा और उन्होंने  मुझसे कहा कि,अरे भाभी जी,मुझे भी शनिदेव के दर्शन की बहुत साल से इच्छा है

और मुझे वहाँ से एक नव ग्रह देवता की तस्वीर लानी है।उनकी ये बात सुनकर मुझे इतना आश्चर्य हुआ कि ,ये कैसे हो सकता है कि अभी अभी मैं नव ग्रह देवता की तस्वीर लाई और अभी अभी वो भैया भी वही बात कह रहे है।ये सारे संकेत मुझे शनिदेव के चमत्कार लग रहे थे।
करीब एक सप्ताह बाद मुझे फिर एक स्वप्न आया।सपने मे मेरे दरवाजे की घंटी बजती है,और मैं दरवाजा खोलती हु तो देखती हूं कि काले कपड़े पहने हुए अमिताभ बच्चन  जी

और उनके साथ आठ आदमी थे।।मैं उनको देखते ही उनके पाँव छूती हु और आश्चर्य से पूछती हु कि आप मेरे घर कैसे?अमिताभ जी ने कहा कि अंदर नहीं बुलाओगी।मैंने आदर से उन्हें अंदर बुलाया।वो हाथ मे लकड़ी लिए लंगड़ाते हुए अंदर आये।मैंने उनसे पूछा कि आपके पैर को क्या हुआ?उन्होंने कहा कि -"बरसो पहले मेरे पैर मे एक चोट लग गई थी,बहुत इलाज कराया पर ठीक नही हो पाया।किसी ने मुझे आपके घर का पता दिया और कहा कि उदयपुर मे एक राधा है जो आपके पैर को सरसों के तेल से मसाज करके ठीक कर देगी।इसीलिये मेरे ये आदमी मुझे यहाँ तक लाये है।क्या आप सरसो के तेल से मसाज करके मेरा पैर ठीक कर दोगी।मैंने कहा कि ये तो मेरा सौभाग्य है कि मैं आपकी सेवा कर सकु।उन्होंने मुझसे कहा कि मेरा कमरा कहाँ है?मैं उनको कमरे मे लेकर गई और बेड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि आप यहाँ लेट जाइए।उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे बेड पर काली चद्दर बिछा दो ,मै काली चादर पर ही सोता हु।और मैंने काली चादर बिछाई फिर सपना टूट जाता है।सुबह जब उठी तो पूरा सपना आखो के सामने घूम रहा था।मुझे पक्का विश्वास था कि वो अमिताभ बच्चन कोई और नही शनिदेव ही थे।

लेकिन जिस किसी को  भी सपना बताया,उन्होंने इसे अंधविश्वास बताया।दुसरो की नजर मे वो अंधविश्वास हो सकता है,पर मुझे साफ साफ लग रहा था कि सपने मे अमिताभ बच्चन जी ने बरसो पहले की जिस चोट की बात कही थी वो चोट बरसो पहले मेरे हाथ से फूटी  ,वो शनिदेव की तस्वीर ही थी। खेर जो भी हो ,पर ईश्वरीय चमत्कार तो कही न कही होता ही है।अब मैं हर शनिवार को शनिदेव के मंदिर दर्शन के लिए जाने लगी।
कुछ महीने बीते।एक दिन की बात है।मैं अपने ब्यूटी पार्लर के काम से बाहर थी।पीछे से मेरे पति ने मेरे बेटे को पीटा,जिससे उसके कान का पर्दा फट गया।

मैं उसको हॉस्पिटल लेकर गई तो डॉक्टर ने कहा कि,तुरंत ही ऑपरेशन करना पड़ेगा वर्ना बाद मे कान मे मुश्किल हो जाएगी।डॉक्टर ने ऑपरेशन किया।मैंने अपने पति से इलाज के पैसे देने के लिए कहा तो साफ मना कर दिया कि अभी मेरे पास पैसे नही हैं।उनकी गलती से बच्चे के कान का पर्दा फटा ,लेकिन अपनी गलती मानना तो दूर ऑपरेशन के पैसे देने से भी इंकार कर दिया।हमेशा की तरह यहां भी मैंने डॉक्टर की फीस भरी और फिर बच्चे को थोड़े दिन मेरे पीहर छोड़ दिया।वही मैं भी आती जाती उसकी देखरेख करती रही।लेकिन हमेशा कहाँ ऎसे चलता, उसका कान ठीक होते ही वापस अपने पास लेकर आई,आखिर स्कूल भी तो जाना था।लेकिन अब मेरे बेटे को अपने पिता से पूरी तरफ से नफरत हो चुकी थी।

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