मेरा सच चरण 32 - सत्य और शांति की प्राप्ति

इस तरह  मैंंनेे अपने अब तक  केे जीवन की कहानी को अभिव्यक्त किया।आगे और मेरे जीवन मे क्या क्या परिवर्तन होता है,जिसे मैं  लिखती रहूंगी।।मेरे जीवन का यही सच था कि जिससे प्रेम किया,वो ही गलत  निकला और उसी के विरुद्ध लड़ना पड़ा।पर ईश्वर की असीम कृपा से मैं अन्याय का विरोध करने मे सक्षम रही,गलत का सामना करने का सामर्थ्य प्राप्त हुआ।भले  ही मेरे जीवन मे मुझे कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ा यहाँ तक कि विवाह के 20 साल बाद पति भी मुझे छोड़ कर चले गए,फिर भी मुझे मेरे सत्य की राह पर चलने का कोई गम नहीं है,क्योंकि मैंने सत्य और उसूलो पर चलते हुए भी अपनो का साथ नहीं छोड़ा।बार बार अपमानित होने के बावजूद भी बार बार सुसराल जाती रही,इसी विश्वास के साथ कि कभी तो ये लोग बदलेंगे।पति के अत्याचार सहते हुए भी मैंने 19 साल उनके साथ इसी विश्वास के साथ गुजारे कि कभी तो मेरे पति सही रास्ता अपना लेंगे।लेकिन स्वार्थ और प्रेम का मेल कहाँ हो पाता है।स्वार्थ हर हाल मे पाना जानता है और प्रेम अपने हिस्से का भी छोड़ देना जानता है।स्वार्थ केवल लेने का नाम है और प्रेम केवल देने का नाम है।मैंने अपने जीवन मे अपने सभी रिश्तेदारों के साथ अच्छा समय बिताया,सबको समय दिया।अपने माता पिता और भाई बहनों के साथ भी भरपूर समय  बिताया भगवान के तीर्थ दर्शन भी खूब किये,भगवान के भजन भी खूब किये और जीवन के इन 40 सालो मे किसी न किसी माध्यम से मैंने ईश्वर का हमेशा साथ पाया।।मैं अब पूरी तरह से इस बात से संतुष्ट हु कि मैंने जो भी किया,अच्छा किया।सच का रास्ता अपनाकर जो संतुष्टि रूपी धन मुझे मिला,वो दुनिया के किसी भी धन से कहीं ऊपर है।
लोग जीवन भर धन कमाते है,घर बनाते है,पर आज की तारीख मे मेरे पास सच के अलावा कुछ भी नही है।मेरे बैंक बैलेंस मे हजारो आशीर्वाद है,हजारो की दुआएं है,ईश्वर का साथ है।और सबसे बड़ा ईश्वर ने जो मुझे उपहार दिया वो मेरा पुत्र शुभम है,जो जीती जागती गीता है,जिसने हमेशा मेरे सच मे मेरा साथ  दिया और जब जब मैं निराश होकर हारने लगती,तब तब इसने गीता का अध्याय बनकर मुझे सहारा दिया,और ये सहारा मुझे कृष्ण रूपी सारथी से कम नही लगा।भगवान ने जितनी तकलीफे मुझे दी,उसके फलस्वरूप कई अनमोल चीजे मुझे उपहार मे दी,जिसके कारण मैं  अब तक का अपना सफर कर पाई।इस जीवन का जो मुख्य उद्देश्य था ,ईश्वर का दर्शन,वो तो मुझे प्राप्त हो चुका था। 
           यही मेरा सबसे बड़ा सच था।
       अब तक मैंने अपने जीवन मे जो भी कदम उठाए वो न्याय की दृष्टि से सही थे। आज चाहे मैं पारिवारिक जीवन से बहुत दूर हु,पर मुझे अंदर से किसी बात का कोई पछतावा नहीं है क्योंकि मैंने जो कुछ भी किया,वो अपने और अपने बच्चे के लिए बहुत सही किया।अगर मैं एक अबला नारी बनकर सुसराल और पति के अन्याय का विरोध नहीं करती तो आज मैं सुसराल रूपी उस लोहे की जंजीर मे बंधी होती जो कभी मुझे ईश्वर के समीप नही आने देती।उस जंजीर को तोड़कर मैंने अपने बच्चे को एक इंसान बनाया,उसमे इंसानियत के वो सारे गुण भरे। सुसराल और पति की जंजीर टूटने के बाद  मैंने अपने जीवन मे जो शांति पाई,वो उस पारिवारिक सुख से कई ज्यादा अनमोल और सुखदायी है।उस लोहे रुपी जंजीर को तोड़कर मैंने ईश्वर का जितना ध्यान किया उतना शायद मैं उस जंजीर मे बंधकर कभी नहीं कर पाती।उसी प्रकार मैं अपने पियर रूपी सोने की जंजीर मे भी नहीं बंधी।क्योंकि अगर मैं हार मानकर उस लोहे की जंजीर से छूटकर सोने की जंजीर पकड़ लेती तो भी मैं अपने आत्मसम्मान की रक्षा कभी न कर पाती।इसलिए ईश्वर ने हर प्रकार से मेरी सहायता करके मुझे अकेले रहने की जो हिम्मत दी,वो एक अनमोल उपहार है मेरे लिए।
जहाँ सत्य है वहीं ईश्वर है।जहाँ ईश्वर है वहीं शांति है और जहाँ शांति है वहीं जीत है।
         सत्यमेव जयते।    

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