मेरा सच चरण 4- दादाजी ने किया पढ़ाई का विरोध
हम लोग दिवाली की छुट्टी पर दादा दादी के गाँव जाते थे क्योंकि वो महीना कार्तिक का महीना होता था जिस समय खेतो मे फसलो को काटा जाता था।मम्मी पापा भी दादा दादी की मदद के लिए फसल कटाने गाँव जाते थे।हम लोगो को अकेले उदयपुर छोड़ नहीं सकते थे इसलिए हम भी साथ जाते थे।मेरी पढ़ाई का क्रम न टूटे इसलिए मैं गाँव मे भी अपने साथ अपनी किताबे और कॉपीए साथ ले जाती थी।एक बार की बात है,हमेशा की तरह हम गाँव गए।पापा मम्मी सुबह जल्दी उठकर खेत चले गए ।मै और मेरे भाई बहन दादा जी के साथ घर पर ही रुके।पापा मम्मी और दादी जी के खेत जाने के बाद मैंने सब लोगो का चूल्हे पर खाना बनाया,हेण्डपम्प से लाकर पानी भरा उसके बाद पास के तालाब मे सबके कपडे धोये,भाई बहनों को निलाया।सब कामो से निवृत्त होकर बस पढ़ने ही बैठी कि दादा जी भाषण देने लगे कि लड़कियों को पढ़कर क्या करना है।तुझे तो खेत का कुछ काम ही नहीं आता।पढ़ लिखकर कौनसा चित्तोड़ का किला तोड़ लेगी।दादाजी के कर्कश शब्दों से मेरे स्वाभिमान को इतनी ठेस पहुंची कि मैं गुस्से से उठी और चारा काटने की दंतिनि ली और बिना किसी को बताए खेत के लिए रवाना हो गई।मैं जानती भी नहीं थी की हमारे खेत कहाँ है।गुस्से गुस्से मे चलती गई,रास्ते मे जो कोई मिलता उसे मेरे खेत का पता पूछती रही।रास्ता इतना सुनसान था लेकिन गुस्से की आग इतनी तेज थी की सुनसान रास्ते का कोई डर नहीं लगा।और आखिरकार मै पूछते पूछते अपने दादा जी के खेत पहुंच गई।वहां दूर एक पहाड़ी पर पापा मम्मी चारा काट रहे थे।जैसे ही उन्होंने मुझे देखा,अचंभित रह गए और पूछा कि तू यहाँ तक आई कैसे।मैं उनके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दे पाई और मम्मी को पास मे जाकर बोला कि मुझे चारा काटना है।मम्मी बिना कुछ कहे समझ गए कि जरूर दादाजी ने कुछ कहा है।मैं दंतिनि से चारा काटने की कोशिश करने लगी ,जैसे ही मैं चारा काटने लगी कि मेरी ऊँगली मे कट लग गया।इतना खून बहने लगा पर वहां कोई साधन नहीं था।मम्मी ने तुरंत वहां से एक जड़ी बूटी तोड़ कर मेरी ऊँगली पर लगाईं और खून रुक गए ।अब तो मम्मी पापा ने चारा काटने के लिए बिल्कुल मना कर दिया।पर अपने स्वाभिमान को गिरने नहीं देना चाहती थी जो दादा जी ने जगाया था।मैं कट लगी ऊँगली से फिर से चारा काटने लगी।और लगातार दिन भर चारा काटा।
शाम को घर जाकर दादा जी को बोला कि ये देखो दादा जी मैने इतना चारा अकेले काटा हैं फिर कभी मुझे कमजोर मत समझना और मेरी पढाई की अवहेलना मत करना। मेरी बात सुनकर दादा जी को भी अफ़सोस हुआ कि मेरी बात को ये लड़की इतना गंभीर ले लेगी कभी सोचा नहीं था।मैं खुद भी विश्वास नहीं कर पाई कि कैसे मै खेत पहुँच गई और कैसे चारा काट लिया।लेकिन जब स्वाभिमान जागता है तो इंसान कुछ भी कर सकता है।ईश्वर ने मेरे स्वाभिमान की रक्षा करके उनके साक्षात होने का सच्चा सबूत दिया।। सत्यम शिवम सुंदरम
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