गणेश लाल जी
गणेश लाल जी मेरे पापा है।ये 2006 मे स्वर्ग सिधार गए थे,लेकिन हमें दुनिया के अनुभव सीखा कर गए ।
ये स्वभाव से बहुत उग्र थे,छोटी छोटी बातों पर ये बहुत क्रोधित हो जाते थे।इनके उसूल बहुत कड़े थे जिसके कारण घर का वातावरण हमेशा व्यवस्थित रहता था।घर मे हमेशा अनुशासन रहता था पर जहाँ एक और घर अनुशाषित रहता था तो दूसरी तरफ उनके आने पर एक सन्नाटा छाया रहता था।इतना डर कि कोई बोल ही नहीं सकता था।हालांकि वो हम सबसे बहुत प्रेम करते थे पर अपने उग्र स्वभाव के कारण वो अपने प्रेम को कभी जाहिर नहीं कर पाते थे।उनके मुँह से प्यार के दो शब्द सुनने के लिए हमारे कान हमेशा तरसते ही रहते थे।
वो बहुत मेहनती थे और ईमानदार तो इतने कि कभी अपनी नोकरी से छुट्टी नहीं लेते थे।सरकारी नोकरी होने के बावजूद भी कभी गलत फायदा नहीं उठाया।अपने माता पिता और भाई बहनों के लिए बचपन से कर्तव्य बद्ध थे।लेकिन दुर्भाग्य की बात ये थी कि अपने परिवार के लिये जी जान देने वाले को इन्ही के परिवार ने सबसे ज्यादा तकलीफें दी।फिर भी अपने अंत समय तक इन्होंने परिवार का कर्तव्य निभाया।वो हमेशा हम बच्चों को अच्छी अच्छी शिक्षाएं देते रहते थे,वो कहते थे कि जीवन मे हमेशा इंसान को अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलना चाहिए और उसूलों का पक्का होना चाहिए
वो हम सब भाई बहनों को कक्षा मे हमेशा अव्वल देखना चाहते थे और उनके डर के कारण मैं और मेरा भाई पप्पू,हम दोनों बहुत पढ़ाई करते थे और कक्षा मे हमेशा अच्छे नंबर ही लाते थे,लेकिन फिर भी वो कभी तारीफ नहीं करते थे।वो हम सबका इतना ध्यान रखते थे कि कम आमदनी के होते हुए भी हमारी हर जरूरते पूरी करते थे।खुद दो ड्रेस मे ही कई साल निकाल देते थे लेकिन हमें हर चीज दिलाते थे।कोई त्यौहार हो या मेला,हर उत्सव पर मिठाइयां या खिलौने एडवांस मे लाकर रख देते थे।हर साल हरियाली अमावस के मेले मे लेकर जाते थे,उस दिन के लिए पापा अपनी नोकरी से जल्दी आ जाते थे।जब हम नानी के घर रहने जाते तो उतने दिन के लिए खाने के लिए टोस्ट,बिस्किट,हमारी दवाइयां सब साथ मे दे देते थे,क्योंकि उनको पता था कि वहाँ गावँ मे कुछ नहीं मिलेगा तो मेरे बच्चे परेशान न हो।एक तरफ वो हमारी हर आवश्यकता पूरी करते थे तो दूसरी तरफ हर काम सिखाकर हमें मजबूत भी बनाते थे।हर साल दिवाली की छुट्टियों पर गावँ लेकर जाते और साथ साथ मे खेत का काम भी सिखाते थे।किताबें भी साथ लेकर जाते ताकि पढ़ाई का भी नुकसान न हो।उनकी कुछ सिखाई हुई बाते हम इतने बरसो बाद भी नहीं भूल पाए।वो कहते थे कि जीवन मे इंसान को व्यवस्थित होना चाहिए।उसमे चाहे वो वस्तुओं की व्यवस्था हो,चाहे वो काम की व्यवस्था हो हो,चाहे वो समय की व्यवस्था हो।एक व्यवस्थित आदमी जीवन मे कभी धोखा नही खा सकता।अगर हम घर की हो या ऑफिस की,हर वस्तु को उसकी निश्चियत जगह पर रखेंगे तो समय बर्बाद नहीं होगा और समय बर्बाद नहीं होगा तो मन अशांत नहीं होगा।काम को जहाँ का जहाँ निपटा देंगे तो वो फैलेगा नहीं और फैलेगा नहीं तो हम थकेंगे नहीं और ज्यादा से ज्यादा काम कर सकेंगे।वो कहते थे कि चीजों को घर मे इस तरह से रखो कि अंधेरे मे भी हाथ घुमाओ तो चीज मिल जाये।उनके इन तरीकों को अपनाकर हम सब भाई बहन इतने व्यवस्थित हो गए है कि आज भी हम सब भाई बहन अपनी हर वस्तु जहाँ की जहाँ रखते है।बाहर से आते ही गाड़ी की चाबी पहले उसकी जगह पर रखकर ही अगला काम करते है।घर से निकलने पर दो दो बार गेस की टंकी चेक करते है।हर कमरे के पंखे लाइट चेक करते है।नल चेक करते है कि कही से पानी तो नहीं टपक रहा है।सब चेक करने के बाद ही घर से निकलते है।अगर कहीं सफर मे जा रहे है तो अपने सामान का बार बार ध्यान रखते है,विशेषतौर से जो बहुत जरूरी हो।उनकी इसी सीख की वजह से मैं आज भी अपना पर्स हर जगह पर बार बार संभालती हु,चेक करती हूं कि कहीं कोई चाबी या मोबाइल छूट तो नहीं गया,यहाँ तक कि अपने पर्स को कभी गाड़ी की डिक्की मे भी छोड़ कर नहीं आती।मेरे पापा कहते थे एक लापरवाही कई नुकसान करा देती है,इसलिए ये सब जो नहीं करते है,वो लापरवाह इंसान होते है।आज भी उनके ये वाक्य मेरे दिमाग मे इस तरह घूमते है जैसे अभी भी पापा हमें वो ही बाते सीखा रहे है। उस समय उनका इस तरह का कठोरपन हमे बहुत अखरता था,पर आज हमें ये अहसास होता है कि अगर हमारे पापा ने हमे मजबूत न बनाया होता तो आज हम अपने जीवन मे इतनी मेहनत न कर पाते।उनकी कठोरता ने हमें एक चट्टान बना दिया जिसके कारण आज हम अपने जीवन मे हर मुसीबत से लड़ पा रहे है।आज पापा हमारे बीच नहीं है,लेकिन उनके आदेश और उनकी सीख आज भी जीवंत बनकर हमे उनके होने का अहसास कराते है।
धन्य है पापा आप
सत्यम शिवम सुंदरम
ये स्वभाव से बहुत उग्र थे,छोटी छोटी बातों पर ये बहुत क्रोधित हो जाते थे।इनके उसूल बहुत कड़े थे जिसके कारण घर का वातावरण हमेशा व्यवस्थित रहता था।घर मे हमेशा अनुशासन रहता था पर जहाँ एक और घर अनुशाषित रहता था तो दूसरी तरफ उनके आने पर एक सन्नाटा छाया रहता था।इतना डर कि कोई बोल ही नहीं सकता था।हालांकि वो हम सबसे बहुत प्रेम करते थे पर अपने उग्र स्वभाव के कारण वो अपने प्रेम को कभी जाहिर नहीं कर पाते थे।उनके मुँह से प्यार के दो शब्द सुनने के लिए हमारे कान हमेशा तरसते ही रहते थे।
वो बहुत मेहनती थे और ईमानदार तो इतने कि कभी अपनी नोकरी से छुट्टी नहीं लेते थे।सरकारी नोकरी होने के बावजूद भी कभी गलत फायदा नहीं उठाया।अपने माता पिता और भाई बहनों के लिए बचपन से कर्तव्य बद्ध थे।लेकिन दुर्भाग्य की बात ये थी कि अपने परिवार के लिये जी जान देने वाले को इन्ही के परिवार ने सबसे ज्यादा तकलीफें दी।फिर भी अपने अंत समय तक इन्होंने परिवार का कर्तव्य निभाया।वो हमेशा हम बच्चों को अच्छी अच्छी शिक्षाएं देते रहते थे,वो कहते थे कि जीवन मे हमेशा इंसान को अपना कर्तव्य कभी नहीं भूलना चाहिए और उसूलों का पक्का होना चाहिए
वो हम सब भाई बहनों को कक्षा मे हमेशा अव्वल देखना चाहते थे और उनके डर के कारण मैं और मेरा भाई पप्पू,हम दोनों बहुत पढ़ाई करते थे और कक्षा मे हमेशा अच्छे नंबर ही लाते थे,लेकिन फिर भी वो कभी तारीफ नहीं करते थे।वो हम सबका इतना ध्यान रखते थे कि कम आमदनी के होते हुए भी हमारी हर जरूरते पूरी करते थे।खुद दो ड्रेस मे ही कई साल निकाल देते थे लेकिन हमें हर चीज दिलाते थे।कोई त्यौहार हो या मेला,हर उत्सव पर मिठाइयां या खिलौने एडवांस मे लाकर रख देते थे।हर साल हरियाली अमावस के मेले मे लेकर जाते थे,उस दिन के लिए पापा अपनी नोकरी से जल्दी आ जाते थे।जब हम नानी के घर रहने जाते तो उतने दिन के लिए खाने के लिए टोस्ट,बिस्किट,हमारी दवाइयां सब साथ मे दे देते थे,क्योंकि उनको पता था कि वहाँ गावँ मे कुछ नहीं मिलेगा तो मेरे बच्चे परेशान न हो।एक तरफ वो हमारी हर आवश्यकता पूरी करते थे तो दूसरी तरफ हर काम सिखाकर हमें मजबूत भी बनाते थे।हर साल दिवाली की छुट्टियों पर गावँ लेकर जाते और साथ साथ मे खेत का काम भी सिखाते थे।किताबें भी साथ लेकर जाते ताकि पढ़ाई का भी नुकसान न हो।उनकी कुछ सिखाई हुई बाते हम इतने बरसो बाद भी नहीं भूल पाए।वो कहते थे कि जीवन मे इंसान को व्यवस्थित होना चाहिए।उसमे चाहे वो वस्तुओं की व्यवस्था हो,चाहे वो काम की व्यवस्था हो हो,चाहे वो समय की व्यवस्था हो।एक व्यवस्थित आदमी जीवन मे कभी धोखा नही खा सकता।अगर हम घर की हो या ऑफिस की,हर वस्तु को उसकी निश्चियत जगह पर रखेंगे तो समय बर्बाद नहीं होगा और समय बर्बाद नहीं होगा तो मन अशांत नहीं होगा।काम को जहाँ का जहाँ निपटा देंगे तो वो फैलेगा नहीं और फैलेगा नहीं तो हम थकेंगे नहीं और ज्यादा से ज्यादा काम कर सकेंगे।वो कहते थे कि चीजों को घर मे इस तरह से रखो कि अंधेरे मे भी हाथ घुमाओ तो चीज मिल जाये।उनके इन तरीकों को अपनाकर हम सब भाई बहन इतने व्यवस्थित हो गए है कि आज भी हम सब भाई बहन अपनी हर वस्तु जहाँ की जहाँ रखते है।बाहर से आते ही गाड़ी की चाबी पहले उसकी जगह पर रखकर ही अगला काम करते है।घर से निकलने पर दो दो बार गेस की टंकी चेक करते है।हर कमरे के पंखे लाइट चेक करते है।नल चेक करते है कि कही से पानी तो नहीं टपक रहा है।सब चेक करने के बाद ही घर से निकलते है।अगर कहीं सफर मे जा रहे है तो अपने सामान का बार बार ध्यान रखते है,विशेषतौर से जो बहुत जरूरी हो।उनकी इसी सीख की वजह से मैं आज भी अपना पर्स हर जगह पर बार बार संभालती हु,चेक करती हूं कि कहीं कोई चाबी या मोबाइल छूट तो नहीं गया,यहाँ तक कि अपने पर्स को कभी गाड़ी की डिक्की मे भी छोड़ कर नहीं आती।मेरे पापा कहते थे एक लापरवाही कई नुकसान करा देती है,इसलिए ये सब जो नहीं करते है,वो लापरवाह इंसान होते है।आज भी उनके ये वाक्य मेरे दिमाग मे इस तरह घूमते है जैसे अभी भी पापा हमें वो ही बाते सीखा रहे है। उस समय उनका इस तरह का कठोरपन हमे बहुत अखरता था,पर आज हमें ये अहसास होता है कि अगर हमारे पापा ने हमे मजबूत न बनाया होता तो आज हम अपने जीवन मे इतनी मेहनत न कर पाते।उनकी कठोरता ने हमें एक चट्टान बना दिया जिसके कारण आज हम अपने जीवन मे हर मुसीबत से लड़ पा रहे है।आज पापा हमारे बीच नहीं है,लेकिन उनके आदेश और उनकी सीख आज भी जीवंत बनकर हमे उनके होने का अहसास कराते है।
धन्य है पापा आप
सत्यम शिवम सुंदरम
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