ओशी
ओशी,वैसे तो एक कुत्ता था लेकिन वो किसी इंसान से कम नहीं था।ओशी मेरे कैलाश दीदी का पालतू कुत्ता था।वैसे तो मुझे कुत्तों से बहुत डर लगता था।मैंने आज तक किसी कुत्ते को हाथ से सहलाया नहीं क्योंकि मैं बहुत डरती हु।लेकिन जब पहली बार मैं ओशी से मिली तो मुझे पहले तो बहुत डर लगा लेकिन दीदी ने हिम्मत करके उससे मेरी दोस्ती करवाई।एक बार उससे दोस्ती हो गई तो वो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं सोचने लग गई कि क्या एक कुत्ता भी इतना समझदार हो सकता है।
वो इतना समझदार था कि केवल इंसान के चेहरे के हाव भाव से इंसान का मन पढ़ लेता था।उसके हर काम का एक निश्चित समय होता था फिर चाहे वो खाने का हो,नहाने का हो या पोटी जाने का हो।जब भी मेरे दीदी के husband जिन्हें मैं अंकल जी बुलाती हु,वो हाथ मे शेम्पू लेकर ओशी को बताते थे वो नहाने की जगह पर जाकर खड़ा हो जाता था।जब उसके नाखून काटते थे तब बिना भोंके चुपचाप अपने पैर सामने कर देता था।जब भी घर मे कोई टेंशन होती तो वो खाना नही खाता था।जब भी घर के सब सदस्य कहीं बाहर निकलते और उसको पता चल जाता कि उसे अकेला छोड़ कर सब जा रहे है तो वो नाराज होकर टेबल के नीचे मुँह नीचा करके उदास बैठ जाता था।
मैं राखी पर जब भी विशाल और कुणाल के राखी बांधती थी,ओशी इन दोनों भाइयों के बीच मे आकर अपना पैर ऊपर कर देता और मुझसे राखी बंधवाता था।जब तक ओशी था,मैं हमेशा उसके पहले राखी बांधती थी।
मैंने कभी सोचा नहीं था कि जीवन मे इतने वफादार भाई के राखी बांधने का अवसर मिलेगा ।जहाँ मे कुत्तों के आवाजों से ही डरती थी वहीं ओशी जैसे प्राणी के साथ भाई का रिश्ता बनना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
ओशी अब इस दुनिया मे नहीं है,लेकिन उसके साथ बिताए हर पल जीवन भर याद रहेंगे।
वो इतना समझदार था कि केवल इंसान के चेहरे के हाव भाव से इंसान का मन पढ़ लेता था।उसके हर काम का एक निश्चित समय होता था फिर चाहे वो खाने का हो,नहाने का हो या पोटी जाने का हो।जब भी मेरे दीदी के husband जिन्हें मैं अंकल जी बुलाती हु,वो हाथ मे शेम्पू लेकर ओशी को बताते थे वो नहाने की जगह पर जाकर खड़ा हो जाता था।जब उसके नाखून काटते थे तब बिना भोंके चुपचाप अपने पैर सामने कर देता था।जब भी घर मे कोई टेंशन होती तो वो खाना नही खाता था।जब भी घर के सब सदस्य कहीं बाहर निकलते और उसको पता चल जाता कि उसे अकेला छोड़ कर सब जा रहे है तो वो नाराज होकर टेबल के नीचे मुँह नीचा करके उदास बैठ जाता था।
मैं राखी पर जब भी विशाल और कुणाल के राखी बांधती थी,ओशी इन दोनों भाइयों के बीच मे आकर अपना पैर ऊपर कर देता और मुझसे राखी बंधवाता था।जब तक ओशी था,मैं हमेशा उसके पहले राखी बांधती थी।
मैंने कभी सोचा नहीं था कि जीवन मे इतने वफादार भाई के राखी बांधने का अवसर मिलेगा ।जहाँ मे कुत्तों के आवाजों से ही डरती थी वहीं ओशी जैसे प्राणी के साथ भाई का रिश्ता बनना किसी चमत्कार से कम नहीं था।
ओशी अब इस दुनिया मे नहीं है,लेकिन उसके साथ बिताए हर पल जीवन भर याद रहेंगे।
Bahut acha likha didi...
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण
DeleteThankyou
Nice. Oshi nice personalty
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