मुख्य भूमिका-हीरा बाई


हीरा बाई मेरी प्रथम गुरु मेरी माँ का नाम है।माँ की एक बच्चे के जीवन मे जितनी भूमिका होती है,उसे शब्दो मे व्यक्त करना मुश्किल है।जब से मैं इस दुनिया मे बोलना सीखी और समझने लगी तभी माँ ने मुझे भक्ति की राह दिखा दी।मेरी माँ को भगवान के भजन गाना,उन पर अटूट विश्वास करना,उन्हें महसूस करना,सब बहुत अच्छे से आता है।वो जहाँ भी सत्संग मे जाती,मुझे साथ लेकर जाती,इसलिए मुझे भगवान का सानिध्य बचपन से ही मिल गया।मेरी माँ बहुत मेहनती है,वो कभी खाली नही बैठती,अपने समय का भरपूर  उपयोग करती है।उन्ही से मैंने  मेहनत की प्रेरणा ली।जब हम  भाई बहन छोटे थे,तब मम्मी लोगो के घर पानी भरते थे,

घर का काम करने जाते थे।जहाँ हम रहते थे,वहाँ सबसे गरीब घर हमारा ही था।पर मम्मी की महानता थी कि कभी दुसरो को देखकर अपने मन पर ये शिकन न आने दिया कि हम दूसरों के मुकाबले छोटे है।वो सब का काम ईमानदारी से और खुश होकर करते थे।लोग उन पर बहुत भरोसा करते है।इसलिए ईमानदारी से काम करके कैसे लोगो के दिलो को जीतना है,ये शिक्षा भी मैंने उन्ही से ली।मम्मी का स्वभाव और ईमानदारी ने पूरे मौहल्ले के दूर दूर तक  उन्होंनेे अपनी एक जगह बना ली।मेरी माँ कभी किसी को किसी काम के लिए मना नही करती थी।वो लोगो के काम को उनकी मदद समझ कर करती थी।सबसे बड़ी बात ये थी कि जहाँ भी काम किया,आज तक कोई पगार फिक्स नही की।जोअपनी मरझी से कुछ भी देता,उसे ही पगार समझ कर ले लेती।काम इतना करती है,कि आज 65 के करीब हो गई है,फिर भी उतना ही काम करती है।एक समय था,जब उस मौहल्ले मे सबसे छोटा मकान हमारा था,आज मम्मी का मकान बहुत बड़ा है,लेकिन फिर भी वो  ही आदत है,,आज भी उन्ही लोगो के घर काम करती है।किसी को काम के लिए आज भी मना नही करती।उनके इसी बड़प्पन के कारण वो सबके दिलों पर राज करती है।मेरे पापा के सख्त स्वभाव के बावजूद भी वो अपने माता पिता का पूरा ध्यान रखती थी।समय समय पर गावँ जाकर अपने माता पिता  की देखभाल करने जाती थी और  इसके पीछे कई बार पापा की डांट और मार भी सहन कर लेती थी।जब कभी हम मम्मी के साथ नाना नानी के यहाँ जाते थे और वापस घर लौटते थे तो मम्मी के पास बहुत सा सामान होता था।क्योकि नाना नानी  अपने खेत की कुछ सब्जियां और मकई भेजते थे।उस समय हम चार भाई बहिन ही थे,और ननिहाल से दो बसे बदल कर हम उदयपुर चेतक बस स्टैंड उतरते थे।चेतक से भी हमारा घर बहुत दूर था और कुछ ही पैसे मम्मी के पास होते थे तो इसलिए ऑटो मे नहीं बैठ पाते थे।

मम्मी सिर पर मकई का कट्टा और  एक हाथ मे सब्जियों का थैला लिए और एक हाथ से हम भाई बहनों का हाथ पकड़े हुए पैदल पैदल घर तक लेकर आते थे।और इतने पर भी घर आकर सुकून नहीं था,पापा के उग्र स्वभाव की मार तो उनको तो भी झेलनी ही थी,लेकिन फिर भी इतनी धैर्यवान थी कि अपने पति की शिकायत किसी से नहीं करती थी।कई बार हम भाई बहन पापा की इस कठोरता के लिए उनसे गुस्सा भी हो जाते तो मम्मी हमे इतनी सहजता से ये कहकर समझा देती कि, बेटा, पापा बुरे नहीं है,ये थक जाते है और कठिन नोकरी के कारण ऐसे ही गुस्सा आ जाता है।उनकी ये सहजता आज भी मैं नहीं भूल पाई जो सबकुछ सहकर भी अपने पति की हमेशा इज्जत करती थी।
        बचपन मे जब हम  सब भाई बहन नवरात्रि का व्रत करते थे तो मम्मी इतनी चिंता करते थे कि व्रत के नो दिनों के लिए वो बहुत सारी तिल्ली और गुड़ को सेखकर हमारे लिए सेगार तैयार करके रख  देती थी।

।और शाम को 4 बजे ही चूल्हा लगाकर हम सब भाई बहनों को एक जैसी पंक्ति मे बैठाकर गर्म गर्म परांठे बनाकर खिलाती थी।

।भले ही मम्मी मुझ पर बहुत सख्ती बरतती थी पर नवरात्रि मे उनका सारा प्यार मुझे नजर आ जाता था।
        सख्त अनुशासन के साथ प्रेम के उस सामंजस्य का एक अलग ही मजा है।  वो भोली बहुत है,वो किसी से दुश्मनी  नही रखती यहाँ तक कि जो लोग उनके साथ गलत व्यवहार करते है,उनके घर भी वो खुशी खुशी चले जाते है।उनकी ये उदारता तो इतनी  अनमोल है कि ये गुण तो मैं भी उनका नही सीख पाई।
मेरी माँ जवाबदारी भी बहुत चतुराई से कर लेती है।दुनिया की परवाह किये बिना,अपने मन का करती है।दुनिया के गलत रीति रिवाजों के विरुद्ध भी बोल देती है।पापा के जाने के बाद भी दुनिया के गलत रीति रिवाजों को नकार कर एक सुहागिन की तरह ही रहती है,लोगो के कहने पर वो कड़ा जवाब भी दे देती है।पहले लोग बेटियों को आगे बढ़ने के लिए रोकते थे,लेकिन मेरी माँ ने हम बहनों को आगे बढ़ाने मे हमेशा साथ दिया।
एक बार की बात है,मेरी छोटी बहन जो हाथों की मेहंदी बनाने का काम करती है,एक बार वो किसी दुल्हन के मेहंदी बनाकर रात को 12 बजे घर आई थी,तो किसी पड़ोसी ने आकर मेरी माँ से कहा कि,आपकी बेटी इतनी देर तक बाहर रहती है,तो आप  कुछ कहते नही।मेरी माँ ने तुरंत जवाब दिया कि,ये मेरी बेटी है,इसकी परवाह आपसे ज्यादा मुझे है,आप चिंता मत करो।माँ के इस जवाब से उस पड़ोसी की बोलती बंद हो गई।अगर उस दिन मेरी माँ पड़ोसी की परवाह करती तो आज मेरी बहन अपने काम मे कभी उपलब्धि हासिल नही कर पाती।मेरी माँ के इसी सपोर्ट के कारण आज मेरी बहन ,मेहंदी के लिए विदेश तक जाकर आ गई।मेरी माँ के सद्व्यवहार का हम सब भाई बहनों के जीवन मे बहुत योगदान रहा विशेषतौर पर मुझे भक्ति की राह दिखाकर मेरा तो जीवन ही सफल कर दिया।
तू कितनी अच्छी है,तू कितनी भोली है
प्यारी प्यारी है ओ माँ ,ओ माँ

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