भगवती
ये मेरी मौसी की लड़की है,जो बचपन से मेरे साथ गर्मी की छुट्टियों मे नाना नानी के यहाँ रहने आती थी।इससे मैं बचपन से ही बहुत प्रेम करती हूं।
एक बार गर्मी की छुट्टियों मे भगवती किसी कारणवश नाना नानी के यहाँ रहने नहीं आई तो मेरा मन बहुत दुःखी हुआ।मैं रोज ननिहाल मे पिपलाज माता जी के मंदिर मे जाकर रोती और प्रार्थना करती कि मेरी भगवती को मेरे पास भेज दो।उस समय कोई फ़ोन के साधन नहीं थे कि उससे सूचना दे दी जाए।इसलिए एक दूसरे के साथ समाचार भेज देते थे।मेरे नानी जी ने मुझे दुःखी देखकर कई लोगो के साथ भगवती के गावँ समाचार भेजे पर उसके दादाजी ने उसे ननिहाल जाने के लिए मना कर दिया।मैं रोज उसकी याद मे रोती
।एक दिन की बात है।मैं नानी के साथ खेत पर जा रही थी कि रास्ते मे उसी गावँ की कोई औरत जो मेरी मौसी के गावँ मोड़ी जा रही थी।जैसे ही उसने नानी को कहा कि कोई समाचार कहना हो तो बताओ,मैं मोड़ी जा रही हु और मैने अपनी नानी से उस औरत के साथ जाने के लिए ज़िद पकड़ ली।नानी ने बहुत समझाया कि वो गावँ बहुत दूर है और ये पैदल जा रही है। कोई बस भी नहीं है,इसलिये हम वहाँ नहीं जा सकते,पर फिर भी मैं नहीं मानी और वहीं रास्ते मे ही रोने लग गई और उस औरत से हाथ जोड़कर विनती करने लगी कि मुझे भी अपने साथ ले चलो।मुझे मेरी भगवती को लेने जाना है।मुझे उससे मिलना है।उस औरत को मुझ पर दया आ गई और उसने मेरी नानी से कहा कि इसको मेरे साथ भेज दो।
मैं इसको भगवती से मिलाकर कल वापस साथ मे ले आउंगी।मेरी जिद के आगे नानी हार गई और उसने डरते डरते मुझे उस औरत के साथ भेज दिया।मैं उस औरत के साथ बिना किसी हिचक के,इतना दूर तक कैसे पैदल चल गई मुझे पता भी न चला।जबकि मेरी मौसी का गावँ मेरे ननिहाल से दूर था।वहाँ से हम सुबह से पैदल निकले तो शाम को भगवती के घर पहुंच पाएं।प्यार कितना शक्तिशाली होता है ,वो मुझे उस समय पता चला जब मैं भगवती से मिलने की धुन मे एक अनजान औरत के साथ बिना डर के चलती रही।न मुझे थकावट हुई और न ही किसी प्रकार का डर लगा।उस प्रेम की गहराई को मैं आज महसूस कर रही हूं और आज जब मैं इस विषय पर लिख रही हु तो मुझे ऐसा लग रहा है कि वो अनजान औरत कोई और नही हो सकती,
अवश्य वो मेरी पिपलाज माता ही थी जो मेरी करुण पुकार सुनकर मुझे मेरी बहन भगवती से मिलाने ले गई,शायद यही वजह थी कि मुझे उस औरत के साथ जाने मे तनिक भी डर नहीं लगा।
लेकिन अफसोस तो तब हुआ जब इतनी दूर आने के बाद भी मैं अपनी बहन भगवती को अपने साथ ननिहाल नहीं ला सकी
,क्योंकि भगवती के दादा जी ने उसे मेरे साथ भेजने से इंकार कर दिया।वो क्षण मेरे लिए कितना दुःखदायी था,ये तो एक सच्चा प्रेमी ही समझ सकता है,भगवती के दादाजी जैसे इंसान कहाँ समझ सकते थे।
अगले दिन बुझे मन से उसी औरत के साथ वापस अपने ननिहाल आ गई ।पूरे रास्ते रोती रही।जहाँ जाते समय तनिक भी थकान नहीं हुई,वहीं लौटते वक्त एक एक कदम बोझ सा लग रहा था।
आज भी उस समय को स्मरण करती हूं तो प्रेम के आंसू बह जाते है
।मेरा उसके प्रति जो प्रेम है,वो अटल है।कल भी था,आज भी है और हमेशा रहेगा।जिस बहन से मैंने इतना प्रेम किया,उसका नाम ही सत्य से जुड़ा है।भगवती अपने आप मे एक सत्य का ही नाम है।जितना प्यार भगवती और मेरा है उतना ही प्यार हम दोनों के बेटो को एक दूसरे से है,शायद ये प्यार की गहराई ही है जो हम दोनों के पुत्र मे नए रूप मे उभर कर आई है।तभी ये दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए वैसा ही तड़पते है जैसा हम दोनों बहनें बचपन मे एक दूसरे के लिए तड़पती थी।इन दोनों भाइयों का प्यार देखती हूं तो हमारा बचपन आंखों के सामने घूमने लगता है।दीपक और शुभम मे केवल 15 दिन का ही अंतर है।मेरा पुत्र शुभम 15 दिन बड़ा है,इसलिए ये दोनों इन 15 दिन के अंतर का इतना मजाक बनाते है और लड़ते रहते है।शुभम की मजाक करने की बहुत आदत है,इसलिए ये बार बार दीपक को कहता है,मैं तुझसे 15 दिन बड़ा हु,इसलिए मुझमे 15 दिन का एक्सपीरियंस तुझसे ज्यादा है।इस प्रकार ये दोनो जब मिलते है,रात रात भर सोते ही नहीं है और खूब मस्ती करते है।हम सब इन दोनों को देखकर आश्चर्य हो जाते है कि इन दोनों मे इतना प्यार किसी चमत्कार से कम नही है।शायद ये भगवती और मेरे सच्चे प्रेम की ही ताकत है ।
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