भक्त नरसी मेहता - अटूट विश्वास
नानी बाई को मायरो
बाल्यावस्था मे ही नरसी जी के माता पिता का देहांत हो गया था इसलिए वो अपने बड़े भाई और भाभी के संरक्षण मे बड़े हुए।उनकी भाभी का व्यवहार उनके साथ अच्छा नहीं था।वो नित्यप्रति नरसी जी को ताने देती थी।एक दिन भाभी के तानो से परेशान होकर नरसी जी घर से निकल गए।कुछ दूरी पर एक महादेव जी का स्थान आया।उन्होंने वहां तीन दिन बिना कुछ खाये महादेव जी को याद किया और उनकी शरण मे पड़े रहे तब स्वयं महादेव जी प्रकट हुए और नरसी जी को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा।नरसी जी ने केवल विष्णु जी के दर्शन करने की चाह प्रकट की।भोलेनाथ बहुत प्रसन्न हुए और वो नरसी जी को अपने साथ वैकुंठ ले गए जहाँ उन्होंने विष्णु जी के दर्शन किये।विष्णु जी के दर्शन से नरसी जी पूरी तरह भक्तिमय हो गए और उन्होंने उस दिन से ही कृष्ण जी के भजन गाने शुरू कर दिए।
वो वैकुंठ से वापस आकर अपनी भाभी से मिले और उनके चरण स्पर्श करके उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि आप ही के कारण आज मुझे शिव और विष्णु दोनो के दर्शन प्राप्त हुए।
यहाँ एक बात स्पष्ठ करती हूं कि जीवन की सही राह पर ले जाने वाले हमारे विरोधी और निन्दापात्र व्यक्ति ही होते है क्योंकि वो अपने तीखे वचन रूपी बाणों से हमे घायल करते है जिसकी पीड़ा से छटपटाकर हम अपने रास्ते की ओर निकल पड़ते है और तभी शुरू होती है हमारी मंजिल की चढ़ाई
उस दिन से ही नरसी जी अपने कृष्ण जी के भजन गाते हुए अपना जीवन चलाने लगे।श्री कृष्ण जी की असीम कृपा से नरसी जी को आगे से आगे रास्ते मिले और एक दिन उनके पास अपार धन और वैभव भी हो गया।उनकी शादी भी हो गई और उनके दो बच्चे हुए।लड़के का नाम सदानंद और लड़की का नाम नानी बाई था।समय की गति के साथ नानी बाई बड़ी हुई और नरसी जी ने उनका विवाह अनजान नगर के किसी सेठ के यहाँ कर दिया।कुछ समय बाद उनकी पत्नी का भी देहांत हो गया।फिर भी वो विचलित नहीं हुए और अपनी कृष्ण भक्ति मे लीन रहते थे।उनका पुत्र भी अपने पिता के साथ कृष्ण जी के भजन गाता और अपना व्यापार चलाता था।नरसी जी बहुत दान पुण्य भी करते थे,गरीबो की सहायता भी करते थे और अपना धन लोगो मे बाँटते रहते थे।उनकी उदारता और भक्ति के गुणों को देखकर वैकुंठ मे बैठे भगवान विष्णु उनके गुण गा रहे थे।लेकिन तभी रुक्मणि जी ने नरसी भक्त पर शंका प्रकट करी और भगवान विष्णु को कहा कि,इतने गुण एक साथ एक भक्त मे कभी नहीं हो सकते।असल मे रुक्मणि जी नरसी की भक्ति की परीक्षा लेना चाह रहे थे।भगवान विष्णु को भी अपने भक्त को सच्चा सिद्ध करना था,इसलिए वो तुरंत धरती पर एक भिखारी का वेश करके आये और नरसी जी के घर पर गए जहाँ नरसी जी लोगो को वस्त्र और धन बांट रहे थे ।भिखारी के वेश मे गए भगवान ने कहा कि,मैं बहुत दुःखी हु
जैसे ही भिखारी बने भगवान ने ये बात कही कि नरसी जी के ह्रदय पर ऐसा घाव हुआ और उसी क्षण उन्होंने अपना सर्वस्व दान देने का संकल्प ले लिया।
नरसी जी ने अपना सब कुछ दान कर दिया और अपने तान तंबूरे लेकर अपने पुत्र के साथ जंगल की ओर निकल पड़े।कुछ समय बाद पुत्र की भी अकाल से मृत्यु हो गई।इतने पर भी उनका होंसला नहीं टूटा क्योंकि वो इन सब मोह माया को अपनी भक्ति मे बाधा मानते थे जो स्वतः ही छुटती जा रही थी।अब तो नरसी जी अकेले ही अपनी धुन मे कृष्ण भजन करते और आगे बढ़ते रहते थे।
नरसी की नैया नटनागर, अब तो पार लगाओ ना
दिन दयालु दया का सागर,करुणा रस बरसाओ ना
श्याम राधे श्याम,श्याम राधे श्याम
ना किसी का लेना रे देना,अब तो साथ निभाओ ना।
प्रेम भक्ति को लियो आसरो,और कोई सहारो ना
भक्तो की नैया नटनागर ,अब तो पार लगाओ ना
हाथ पकड़कर नाथ उबारो,आकर दरस दिखाओ ना
श्याम राधे श्याम,श्याम घनश्याम
इस तरह उनके भजन मे इतना समर्पण और प्रेम था कि जब भी वो भजन गाते थे,हमेशा मूर्ति से फूल गिरते थे ,लेकिन उनकी भक्ति और ईश्वर के प्रति प्रेम को देखकर कई पांखडी संत उनसे ईर्ष्या करने लगे और उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास करने लगे।एक दिन आधी रात को नरसी जी के दरवाजे पर एक औरत सहायता लेने आई और नरसी जी को कहने लगी कि मेरा पति बहुत बीमार है और मुझे रुपयों की जरूरत है।नरसी मेहता के पास कुछ भी नहीं था,फिर भी शरण मे आये हुए की सहायता करना वो अपना धर्म समझते थे,इसलिए उन्होंने उस औरत से कहा कि ,अभी तो तुम घर जाओ और अपने पति की सेवा करो,कल तक मैं तुम्हारे लिए रुपयों का प्रबंध करता हु।
नरसी जी अगले दिन सुबह साहूकार के पास गए और रुपये मांगे।इस पर साहूकार ने कहा कि,रुपये तो मैं दे दूंगा पर इसके बदले कोई चीज आपको गिरवी रखनी पड़ेगी।
नरसी जी रुपये लेकर अपनी कुटिया में गए और पूरे दिन उस औरत का इंतजार करते रहे और रात होते ही वो अपने प्रभु के चरणों मे शीश रखकर सो गए तभी अचानक वो औरत आई।नरसी जी कहने लगे कि,लो बहन,मैंने तुम्हारे लिए रुपयों का प्रबंध कर लिया है।वो औरत जोर जोर से हंसने लगी और नरसी जी के पास आकर उसे अपनी वासना रूपी मोह जाल मे बांधने लगी।नरसी जी ने उससे कहा कि,वासना तो नर्क का द्वार है,तुम ऐसा विचार करके क्यों अपना जन्म खराब करना चाहती हो और तुमने इस प्रकार मेरे साथ छल क्यों किया।
वो औरत बोली कि, मैं तुम्हारी प्रभु भक्ति को खत्म करना चाहती हु।इस पर नरसी जी ने फिर उस औरत को समझाया कि प्रभु भक्ति को समाप्त करना किसी के हाथ मे नहीं है,इसलिए तुम भी श्री कृष्ण की शरण मे जाओ और ये वासना का विचार मन से निकाल दो,वो दीनानाथ तुम्हे अवश्य क्षमा कर देगा।जब बार बार नरसी जी ने उसके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार किया तो उस औरत ने अपनी दूसरी चाल चली और तुरंत उसने अपने हाथ से ही अपने कपड़े फाड़ दिए और जोर जोर से चिल्लाने लगी।जब आस पास के लोग इकट्ठे हुए तो उस औरत ने नरसी जी के चरित्र पर उंगली उठाई ।नरसी जी कुछ समझ नहीं पाए कि उनके साथ हो क्या रहा है? वो चुपचाप खड़े ईश्वर की लीला को देख रहे थे।तभी आस पास के लोग नरसी जी को ढोंगी समझकर उन पर चरित्र हीन का आरोप लगाकर उन्हें पकड़ कर राजा के पास ले गए।
यहाँ एक बात स्पष्ट करती हूं कि भक्तो के चरित्र पर उंगली उठाना इस संसार की पुरानी रीत है।जब भी कोई भक्त सत्य की राह पर अपने प्रभु को पाने अकेला निकल जाता है,तब तब इस संसार ने उनके ऊपर कलंक लगाने की पूरी कोशिश करी,लेकिन ये नादान संसार कभी ये नहीं समझ पाया कि ,जिस भक्ति पर वो कलंक लगा रहे है,उसको धोने वाला पहले ही आगे खड़ा होता है।अगर ये बात संसार समझ जाता तो आज मीरा बाई और सीता जैसी पवित्र नारियों को संसार के कष्ट नहीं झेलने पड़ते। ये ही इस संसार का दुर्भाग्य होता है कि वो सच्चे भक्तो पर कीचड़ उछालते है,और इसी कारण भक्तो को तो भगवान मिल जाते है पर संसार अधूरा ही रह जाता है।अगर इस संसार ने नरसी जी,मीरा बाई ,सीता और अनेक भक्तो की सच्चाई को समझा होता तो आज संसार को भी भगवान मिल चुके होते।क्योकी एक कठिन सत्य पर चलने वाले भक्तों मे इतनी ताकत होती है कि वो अपने साथ वालो का भी उद्धार कर देता है और यही कारण था कि जब नरसी जी को कृष्ण मिले तो उनके साथ मे रहने वाले सभी अंधे संतो को भी आंखे मिल गई।
मैं वापस अपनी कहानी की तरफ आती हु -
उसके बाद नरसी जी को राजा के सामने पेश किया और वहाँ उपस्थित नरसी जी के शत्रुओं ने राजा को कहा कि,यदि नरसी जी राग केदार गाकर भगवान के गले से माला निकालकर बता दे तो हम नरसी जी को सच्चा भक्त मान लेंगे।
"कान्हा रे गिरधारी,कान्हा रे गिरधारी
रूप मनोहर जाऊ बलिहारी
वाह रे वाह गिरधारी
थारे बिना अब कुन है मेरो
लियो नाथ मैं शरणों तेरो
आओ श्याम अब संकट टारो
कृष्ण कृष्ण अब नरसी पुकारो"
और जब वो आंखे बंद करके मग्न होकर कृष्ण जी का भजन गा रहे थे
वो सभी विरोधी लोग नरसी जी के पांवो में पड़कर माफी मांगने लगे।
भक्त की यही विशेषता है कि वो अपना बुरा चाहने वाले का भी कभी बुरा नहीं चाहता।
इसी तरह भगवान के भजन करते करते कई वर्ष बीत चुके थे।उधर नानी बाई की पुत्री बड़ी हो चुकी थी तो उसके विवाह की तैयारिया होने लगी।नानी बाई के सुसराल वाले शुरू से ही नरसी जी के संत होने पर बहुत नाराज थे और नानी बाई को बहुत परेशान किया करते थे और इसीलिये उसको इतने वर्ष तक अपने पिता से मिलने भी नहीं दिया।अब नानी बाई की लड़की की शादी तय हो गई तो नानी बाई के सुसराल वालों को ये चिंता होने लगी कि नानी बाई का मायरा कौन भरेगा।
मायरा बरसों से चली आ रही एक ऐसी परंपरा है जिसमे अपनी संतान की शादी पर भाई द्वारा बहन को और बहन के सुसराल वालो को गहने,कपड़े इत्यादि उपहार दिए जाते है।वैसे तो ये भाई बहन के प्रेम और आत्मसम्मान का प्रतीक है पर समाज के कई लालची लोगों ने इसे अनिवार्य मांग मान लिया और जिसके लिए अक्सर सुसराल वाले बहु को तंग किया करते है।
नानी बाई के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।नानी बाई के सुसराल वाले उनको ताने देने लगे कि तेरा बाप तो खुद मांग मांग कर पेट भरता है तो तेरा मायरा कैसे भरेगा।नानी बाई के भाई की मृत्यु के बाद नानी बाई का अपने पिता के सिवा मायके मे और कोई दूसरा नहीं था।
नानी बाई के सुसराल वालो ने नानी बाई के पिता को नीचा दिखाने के लिए एक मायरे की भारी लिस्ट बनाकर नरसी जी के पास भेजी।
देखिये सामान की लिस्ट
1 पीपल के पत्तो की गिनती के बराबर सोने की अशरफिया
2 दस सोने की ईंटे
3 सास ससुर के लिए 100 जड़ी के वेश
4 नणद के लिये नवलखा हार
5 देवर के लिए बहुत सारा धन
6 जेठ जेठानी के लिए कपड़ो के थान
7 पूरे गावँ के लिए कपड़े और अशरफिया
इस तरह और भी बहुत सारी चीजें मायरे की लिस्ट मे लिखकर लिस्ट नरसी जी तक पहुंचा दी।उधर जैसे ही नरसी जी को लिस्ट मिलती है,नरसी जी एक प्यारी सी मुस्कान के साथ वो लिस्ट ले जाकर श्री कृष्ण जी के चरणों मे रख देते है और नानी बाई के सुसराल ये खबर भेज देते है कि नरसी मायरा भरने अवश्य आएगा।
यहाँ नरसी जी के अटूट विश्वास को दर्शाया है कि इतनी बड़ी चेतावनी सुनकर भी वो तनिक भी विचलित नहीं हुए और अपने कृष्ण के भरोसे नानी बाई के सासरे मे आश्वासन भेज दिया,जबकि नरसी जी के पास कुछ भी नहीं था।विश्वास की इतनी मजबूती किसी विरले को ही आ सकती है जिस पर उस दीनानाथ की कृपा हो।
फिर क्या था, उधर नानी बाई के सुसराल वाले ये सुनकर अचंभित हो गए कि जिसके पास कुछ भी नहीं है ,वो मायरा कैसे भरेगा।वो नानी बाई को तंग करने लगे कि अपने बाप को कह दे कि मायरा भर सके तो ही यहाँ आना, वरना कहीं नाक डुबाकर मर जाना।अपने सुसराल वालो के तीखे व्यंग्य नानी बाई को सहन नहीं हो रहे थे लेकिन कुछ कह नहीं पा रही थी।
मैथिली शरण गुप्त ने नारी के विषय मे एक सटीक टिप्पणी करी थी कि-
" अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी
आँचल मे है दूध और आंखों मे है पानी।"
उधर नरसी जी अपने कृष्ण जी के भरोसे अपनी टूटी बैलगाड़ी लेकर साधु संतों के साथ नानी बाई के सुसराल अंजान नगरी की ओर निकल पड़े।
भजन की कुछ पंक्तिया-
हेलो सुनजो दीनदयाल,था बिन कुन मारी करे गुहार रे
हेलो सुनजो दीनदयाल
विपदा मा पर आन पड़ी है,बीच विचारी गाड़ी अड़ी है,माने थे ले जावो संभाल
कुन सी दिशा मे थे अटक गया मुरारी
सुन जो थे हेलो है कृष्ण मुरारी
गेला उगाओ अनजान
थे हो दुखिया का तारणहार हो
हेलो सुनजो थे दीन दयाल
इस प्रकार उनकी इस करुण पुकार को सुनकर एक सुथार का वेश बनाकर भगवान आये और उनकी गाड़ी को ठीक किया,
कितना मार्मिक ये दृश्य रहा होगा जहाँ एक ओर पुत्री न चाहते हुए भी अपने पिता पर कटाक्ष कस रही थी तो दूसरी तरफ एक धैर्यवान पिता अपनी पुत्री को ऐसे कठिन दौर मे भी ज्ञान दे रहा था।
नानी बाई अपने पिता से आशीर्वाद लेकर वापस अपने घर चली जाती है।
नरसी जी अब अपने भगवान कृष्ण जी के सामने रोकर उन्हें पुकारने लगते है कि है नाथ,है दीन दयाल,है कृष्ण मुरारी।अब तो आकर आस बंधा जा और नानी बाई को चुंदड़ी ओढ़ाने आ जा।नानी बाई की सासरिये मे लाज रख ले और मुझे कुछ नहीं चाहिए।
उनकी करुण पुकार के भजन की कुछ पंक्तिया इस प्रकार है-
कन्हैया प्यारा,दरस दिखा जा रे
भात भरण की वेला आई,नानी बाई रोवे रे
कन्हैया प्यारा धीर बंधा जा रे
कन्हैया प्यारा चूंदड़ ओढ़ा जा रे
जिस समय नरसी जी इस तरह अपने कृष्ण के आगे दीन हीन बनकर बैठे हुए थे,ये दिन नानी बाई के मायरा भरने से केवल एक दिन पहले की बात है।
अब तो नरसी जी को चिंता सताने लगी कि ,अगले दिन ही मायरा भरना है और अभी तक उनके सावरिये की तरफ से कोई समाचार नहीं आया है,फिर भी अपने विश्वास से विचलित नहीं हुए और अपने संत साथी से यही कह रह थे कि,मेरा साँवरा आएगा और मायरा भरेगा
लेकिन अब तो उनके संत साथी भी उनकी भक्ति पर शक करने लगे और नरसी जी से कहने लगे कि अगर तुम्हारे सावंरिया को आना होता तो अब तक आ चुका होता।उन्होंने फिर एक कटाक्ष नरसी जी पर किया कि,या तो नरसी की भक्ति सच्ची नहीं है या वो कृष्ण सच्चा नहीं है।ये बात सुनी कि नरसी जैसे घायल पंछी की तरह छटपटाने लगे,क्योंकि कोई भी भक्त अपने भगवान के लिए नहीं सुन सकता।वो दुःखी होकर अपना तंबूरा लेकर सुनसान जगह पर चले गए और एकांत मे जाकर अपने कृष्ण को पुकारने लगे और उन्हें उलाहना देने लगे कि है मेरे सांवरिया,तू सबके लिए आया और मेरे लिए इतनी देर क्यों लगा दी।इधर नरसी जी बार बार अपने भगवान से शिकायत कर रहे थे और उधर वैकुंठ मे बैठे भगवान मायरा भरने के लिए उतावले हो रहे थे,पर समय से पहले वो नहीं आ सकते थे ये उनकी मर्यादा है ।जब भगवान नानी बाई के मायरे मे जाने लिए तैयार बैठे थे तभी रुक्मणी जी बोली कि ,है नाथ,मैं भी आपके साथ नानी बाई के मायरे मे आउंगी।
देखिये,भगवान की उदारता। अपने भक्तों के घर एक साधारण मानव बनकर जाना चाहते है।
उधर नरसी जी को भगवान की तैयारी के बारे मे पता नहीं होता है और वो बार बार अपने भजन के द्वारा भगवान से प्रश्न करे जा रहे है-
ओ जी मारा नटवर नागर
नरसी से आया क्यू नी ओ
मीरा कई थारी मासी लागे
विष अमृत कर जायो रे
कर्मा कई थारी काकी लागे
जीन रो खीचड़ो खायो रे
शबरी कई थारी भुआ लागे
जिन रा झूठन खाया रे
आओ मारा नटवर नागर
पधारो मारा नटवर नागर
इस तरह आधी रात तक नरसी जी अपने भगवान को तरह तरह से भक्तो की याद दिलाकर बुला रहे थे,तंबूरा बजा बजा कर जब उनके हाथ से खून निकलने लगे तो वो बेसुध होकर एक जगह गिर पड़े।
तभी अचानक घोड़ो के हिनहिनाने की आवाज आती है
मारे सासरिये मे मान बढ़ायो रे
वीरो भात भरण ने आयो
वीरो चुंदड़ी ओढावन आयो
मारो सांवल वीरो आयो
संग रुक्मणी भावज लायो
वीरो भात भरण ने आयो
नरसी जी के जीवन की अब कोई इच्छा शेष नहीं रही,नानी बाई का मायरा भरकर भगवान ने उनकी संसार मे लाज रख ली। वो फिर से अपने वैरागी जीवन की ओर निकल पड़े।
उसी समय से भगवान कृष्ण को सांवरिया सेठ के नाम से भी जाना जाने लगा।
इतिहास मे ऐसा मायरा फिर कभी किसी के नहीं आया।
विशेष- नरसी जी की भक्ति विश्वास की चरम सीमा है,जिन्होंने अपने भगवान पर इतना विश्वास किया कि सब कुछ खोकर भी विश्वास नहीं टूटने दिया।
भक्त का विश्वास जब नरसी जी की तरह पक्का होता है तभी भगवान प्रकट होते है।यही सत्य है।
गोपाला हरि का प्यारा नाम है
जय सांवरिया सेठ की
This is a story ,I heard for the first time from Radha herself, few years ago,but be it now or any day in the past,each word is loaded with faith.Her story telling is superb,more because of her being present in it ,in each character, bringing life , colour and life .
ReplyDeleteRadha's faith makes her confident , moving beyond expectations , standing firmly on her truthfulness.
जय श्री कृष्ण
DeleteThankyou