संतुलन और मेरा अनुभव

संतुलन क्या है?
 

  किसी भी चीज मे एक निष्चित सीमा तक नियंत्रण करने को ही संतुलन कहते है।ईश्वर ने संसार की रचना की और मानव के हाथों इसे सौप दिया।अब मानव ने अपनी बुद्धि से इस संसार मे वस्तुओं का निमार्ण किया,शब्दों का निर्माण किया, भाषाओं का निमार्ण किया,इस प्रकार कई आविष्कार किये और विकास किए।ईश्वर ने मानव को जो बुध्दि दी उसी का प्रयोग करके इंसान ने हर चीज का विकास किया,परंतु ईश्वर ने इस प्रकति को एक स्वभाव दिया,जिसको संतुलन कहते है,जिसके ना होने पर ये ही प्रकति इंसान को अवनति की ओर ले जाती है।
     जब शरीर का संतुलन बिगड़ने लगता है तो शरीर हिलने लग जाता है,लड़खड़ाने लगता है,उसी प्रकार संसार की हर वस्तुओं और व्यवहार मे भी संतुलन बिगड़ने लगता है तो संसार भी हिलने लगता है।
     अगर इंसान बहुत कम खाये तो वो कमजोर पड़ जायेगा और अगर बहुत ज्यादा खायेगा तो बीमार हो जाएगा।
अगर इंसान बहुत कम बोलेगा तो कोई उसके पास नहीं बैठेगा और अगर इंसान बहुत ज्यादा बोलेगा तो हर इंसान उससे दूर रहने की कोशिश करेगा।अगर इंसान किसी से बहुत ज्यादा व्यवहार रखेगा तो अपना सम्मान खो देगा और अगर बिल्कुल  नहीं रखेगा तो स्वार्थी कहलायेगा।अगर इंसान बहुत ज्यादा काम करेगा तो शरीर बिगड़ेगा और अगर बिल्कुल नही करेगा  तो आलसी हो जाएगा।अगर इंसान बहुत ज्यादा कमाएगा तो स्वार्थी और अभिमानी हो जाएगा और अगर बिल्कुल नहीं कमाएगा तो अपनी गृहस्थी बिगाड़ देगा।अगर इंसान बहुत ज्यादा खर्च करेगा तो अपनी आदतें बिगाड़ देगा और अगर इंसान बिल्कुल खर्च नहीं करेगा तो कंजूस बन जायेगा।
अगर इंसान बहुत ज्यादा बचाएगा तो लालच उसे खुश नहीं रहने देगा और अगर इंसान बिल्कुल नहीं बचाएगा तो बुरे समय मे परेशान हो जाएगा।
ऐसी तमाम बातें है जिनमें संतुलन न होने पर व्यवस्था बिगड़ जाती है।
जिस प्रकार सड़क पर व्यवस्था बिगड़ने पर पुलिस अपने दंड से उसे सुधारती है तो उसी प्रकार मानव जीवन के मूल्यों की व्यवस्था बिगड़ती है तब प्रकति पुलिस बनकर उस व्यवस्था को नियंत्रित करती है।
अगर हर इंसान स्वयं अपना जीवन नियंत्रित कर ले तो किसी पुलिस रूपी डंडे की जरूरत नहीं पड़ेगी।
   जिसका उदाहरण हम इस कोरोना के माध्य्म से देख सकते है।जिस गंगा नदी को स्वच्छ रखने के लिए बरसों से कई लोगो ने अनेक प्रयास किये,पर फिर भी उस पर कामयाबी नहीं मिली।आज गंगा नदी ने स्वयं अपने आप को स्वच्छ कर दिया

जहाँ चारो तरफ गाड़ियों के प्रदूषण ने वातावरण को अशुद्ध कर रखा था,आज प्रकति ने इंसान को घर मे बैठाकर अपने आप को शुद्ध कर दिया है।निरन्तर पेड़ो की कटाई और फेक्ट्रियो ने ऑक्सीजन को कम कर दिया था,आज ऑक्सीजन महसूस किया जा रहा है।
आये दिन गलत कार्य होते थे  चोर,शराबी ,जुआरी,बलात्कारी,हत्यारे इन सबको अब गलत करने का अवसर बहुत मुश्किल से मिल पायेगा क्योंकि अब चारो तरफ नियंत्रण का डंडा रहेगा।
जो बच्चे अपने माता पिता को परेशान करके अनाब शनाब खर्चे करते थे,होटलों मे पार्टीया करते थे,अपनी संस्कृति का विनाश करते थे,अब उन पर भी अंकुश लग जायेगा।

जो शादियों और पार्टियों मे बेहिसाब दिखावा करते थे,अब काफी हद तक उन पर भी नियंत्रण हो जाएगा।इस दिखावे के चक्कर मे लोगो के हालात ऐसे हो गए थे कि जिनके पास पैसा नहीं होता था,वो भी प्रतिस्पर्धा के दौर मे इधर उधर से उधार लाकर भी दिखावा करने पर मजबूर हो जाते थे,अब शायद वो ऐसा नहीं करेंगे।
कई लोग प्रोपर्टी के लिए घर वालो से झगड़े करते थे,लड़ लड़ कर पूरा जीवन इस लेन देन के चक्कर मे निकाल देते है,आज उनको भी इस बात का सबक मिल गया है कि जीवन एक क्षण भंगुर है जो कभी भी जा सकता है।ये धन,ये हिस्से,ये अधिकार,ये प्रोपर्टी का लालच कुछ भी साथ नहीं आने वाला है,अगर कुछ साथ होगा तो हमारे जीवन के वो पल जो हमने प्रेम से किसी के साथ गुजारे।हमारा कर्म और हमारा धर्म ही हमारे साथ आएगा।
     जीवन की हर परिस्थिति मे हमारा धर्म ही हमारा साथ देता है।अगर धर्म है तो धन भी सहयोग करता है,वरना आज कई लोगो के पास अपार धन है,फिर भी आज इस कोरोना की लड़ाई मे उनकी नींद उड़ गई है।अगर जीवन मे कोई चीज खुश रखती है तो वो है सन्तुष्टता।एक संतुष्ट व्यक्ति ही हर स्थिति मे खुश रह सकता है,अर्थात संतुलन मे जीने वाले।इसलिए आज प्रकति हर इंसान को यही सीखा रही है कि अपने जीवन को संतुलित करके जीये।
संतुलन का मतलब ये भी नहीं है कि इंसान आगे न बढ़े,तरक्की न करे,विकास न करें।इंसान को हर समय निरंतर आगे बढ़ने के प्रयास जरूर करने चाहिए,लेकिन मर्यादा मे रहकर।यानी किस चीज की कितनी जरूरत है,और जो भी इंसान करता है,उसमे लोकहित कितना है।क्योंकि प्रकति उन्हीं लोगों के लिए अपना बलिदान देती है जो दुसरो के हित के लिए कार्य करें।
जैसे उदहारण के तौर पर अगर किसी पदार्थ की फैक्ट्री लगाते है तो उसमें जो भी उत्पादन होता है,उसका लाभ पूरी दुनिया को मिलता है,इसलिए वो नीति संगत है,और जहाँ तक नीति संगत है वहाँ तक प्रकति अपने ऊपर पीड़ा सहकर भी पूरा साथ देती है,लेकिन जब फेक्ट्री,उद्योग ,व्यापार चलाने वाले लालच मे आकर बेईमानियां करने लग जाते है,अधिक पैसा बटोरने के लिये नकली माल उपयोग मे लाने लग जाते है तब प्रकति दूर खड़ी रहकर क्रोधित हो जाती है लेकिन फिर भी उसकी उदारता होती है कि वो जहाँ तक हो सके इंसान को सुधरने के बहुत मौके देती है।जब इंसान उन मौकों को समझ नहीं पाते है तब फिर वो किसी न किसी माध्यम से ऐसे समझाती है,जैसे कोरोना ने समझाया है।अति हर चीज की बुरी होती है,जब जब अति होती है तब तब नियंत्रण का डंडा पड़ना स्वभाविक है।
वैसे प्रकति बहुत दयालु होती है,वो कभी किसी इंसान का नुकसान नहीं करती है,अगर कुछ हद तक जगत हित की बात सोचती है तो कुछ हद तक वो इंसान के फायदे की बात भी सोचती है।आज तक कोई ऐसा व्यापार नहीं जिसमें इंसान ने धन नहीं कमाया हो।प्रकति इंसान का स्वभाव जानती है कि वो बिना स्वार्थ कुछ नहीं कर सकता,इसलिए वो इंसान का स्वार्थ पहले ही सिद्ध कर देती है,पर जब इंसान के अंदर लालच जन्म लेने लगता है तो तब प्रकति साथ छोड़ देती है।
         हमारे प्राचीन समाज मे लोग भोजन को भगवान की पूजा के समान मानते थे,इसलिए वो जमीन पर चटाई बिछाकर हाथ जोड़कर फिर भोजन करने बैठते थे।

लेकिन फिर धीरे धीरे लोगो ने इसे आधुनिक युग का एक फैशन मान लिया और शादी समारोह मे खड़े खड़े खाना खाने लगे जो भोजन का अपमान है

।मेरे विचार से जिस किसी ने ये खड़े खड़े खाना खाने की इस प्रथा को शुरू किया होगा वो शायद कोई बहुत बड़ा बेवकूफ ही होगा।
मैं तो इन तमाम चीजो से बहुत परेशान रहती थी लेकिन जिस किसी को बोलती थी वो मेरा मजाक बनाते थे।मुझे पुराने ख्यालो वाली की उपाधि दी जाती थी।मेरे आस पास कोई भी सिगरेट तम्बाकू या मांसाहार करने वालों को जब मैं ये सब छोड़ने के लिए कहती तब भी सब इसे मजाक समझते थे।लेकिन एक बात की खुशी है कि अभी इन दो सालों के अंदर कई लोगो ने मेरी बात पर गौर किया और मांसाहार का सेवन बंद कर दिया था।आज इस कोरोना ने तमाम मांसाहारी को एक डर दे दिया जिससे वो अब शायद कई हद तक लोग नहीं खाएंगे।सरकार ने तम्बाकू ,सिगरेट बेचने वाले पर भी जुर्माना लगा दिया है,जो मेरी बरसो से इच्छा थी।
        हालांकि कोरोना संकट का सामना सबको करना पड़ रहा है,लेकिन जब इससे निजात पा लेंगे और जो भी इस संकट से बच जाएगा,उसके लिए बहुत कुछ नया होगा।इस संसार मे संतुलन बन चुका होगा।न बहुत ज्यादा,न बहुत कम होगा,जो भी होगा संतुलन मे होगा।

    सत्यमेव जयते
विशेष- लोकडाउन ने प्रकति को शुध्द कर दिया है।इसलिए समय समय पर हर चीज पर ब्रेक लगना चाहिए क्योंकि ब्रेक के बाद कुछ नया होता है।जिस तरह सप्ताह मे एक दिन छुट्टी होती है उसी तरह प्रकति को भी साल मे एक दो दिन ऐसी छुट्टी देनी चाहिए जिससे वो वापस शुध्द होकर हमारे काम आ सके।मंदिरों मे भी कुछ दिन ऐसे होने चाहिए जब वहां कोई लोग न जाये,क्योंकि तीर्थ स्थल भी शांति चाहता है।

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