भक्ति और ज्ञान
ज्ञान और भक्ति
ईश्वर को पाने के दो मार्ग है ,ज्ञान और भक्ति।इन दोनों में से भक्ति को सबसे सरल और सबसे ऊपर रखा है।ज्ञानियों को बहुत तपस्या करने के बाद कई हजारो वर्षो बाद भगवान मिले परंतु भक्तो को बहुत ही कम समय मे भगवान मिल जाते है।प्रह्लाद और ध्रुव ऐसे भक्त थे जिन्हें अपने बाल्यकाल मे ही भगवान मिल गए।
इसलिए भक्ति का स्थान ज्ञान से भी ऊंचा है,पर भक्ति की विडंबना रही है कि ज्ञान ने हमेशा भक्ति का उपहास किया है।एक भक्त ज्ञानी को समझ सकता है लेकिन एक ज्ञानी भक्त को नहीं समझ पाता।
महाभारत मे जब अक्रूर जी गोपियों को समझाने जाते है तो वो गोपियों की भक्ति और प्रेम का उपहास करते है।अपने ज्ञान से गोपियों के प्रेम को छलनी करने की कोशिश करते है।लेकिन गोपियों का प्रेम अक्रूर जी जैसे ज्ञानी पर भारी पड़ा।गोपियों ने अपने प्रेम की भाषा से अक्रूर जी के ज्ञान के हर तर्क को हरा दिया।
ज्ञान को अंहकार हो सकता है,भक्ति को अहंकार नहीं होता है।ज्ञान अपने ज्ञानी होने का प्रमाण दे सकता है पर एक भक्त अपनी भक्ति का प्रमाण नहीं दे सकता क्योकि भक्त का प्रमाण स्वयं उसका भगवान होता है।
एक बार किसी ज्ञानी ने भक्त से कहा कि क्या तुम अपने भगवान को दिखा सकते हो।भक्त ने ज्ञानी से कहा कि ,अगर तुम अपने सपने को मुझे दिखा सकोगे तो मैं भी अपने भगवान को तुम्हे दिखा दूंगा।ज्ञानी को गुस्सा आया और भक्त से बोला कि,ये कैसी बात कह रहे हो ।भला अपना सपना कोई किसी को कैसे दिखा सकता है,सपना तो सुनाया जा सकता है,दिखाया नहीं जाता।तब भक्त ने कहा कि जिस तरह सपने की बात को हम केवल सुना सकते है,दिखा नहीं सकते उसी प्रकार भक्त के जीवन मे भगवान की उपस्थिति को केवल सुना सकते है उसे दिखा नहीं सकते।
भक्त की बाते एक ज्ञानी की समझ से परे होती है।भक्त सब कुछ जानते हुए भी ज्ञानी की बातें सुनता रहता है,क्योंकि वो हर समय जिज्ञासु रहता है कि किसी बात मे उसे फिर से ईश्वर के दर्शन प्राप्त हो जाये,इसलिए भक्त अपने को हमेशा अपूर्ण मानकर अपने भगवान को बार बार देखने के लिए हरसंभव प्रयासरत ही रहता है।
हर ज्ञानी का ज्ञान अलग अलग हो सकता है,पर हर भक्त की भक्ति केवल एक ही चीज पर टिकी होती है वो है प्रेम
भक्त की भाषा प्रेम ही होती है।
उसके लिए प्रेम से बढ़कर और कुछ नहीं होता है।प्रेम ही उनका संसार है,प्रेम ही उनका ज्ञान है।एक ज्ञानी भक्त बनने की इच्छा रख सकता है लेकिन एक भक्त कभी ज्ञानी बनने की इच्छा नहीं रखता, उसे तो केवल भक्त बनना ही अच्छा लगता है।
भक्तों को इस संसार मे हमेशा से ही पागल की उपाधि दी है,इसीलिए भक्त को इस संसार का साथ कभी नहीं मिलता है।एक ज्ञानी की बातों पर संसार भरोसा कर लेता है,पर एक भक्त की बातों पर कोई भरोसा नहीं करता और यही कारण होता है कि भक्तो को अपनी भक्ति की राह पर अकेले ही चलना पड़ता है।
मीराबाई,नरसजी,रसखान,सूरदास,तुलसीदास,और ऐसे अनेक भक्तो के उदाहरण है जिसमे भक्तो को इस संसार का साथ नहीं मिला।
ज्ञान कठिन होते हुए भी लोगो को समझ मे आ जाता है,पर भक्ति सरल होते हुए भी किसी को समझ मे नहीं आती।यही भक्ति की कसौटी रही है।लेकिन ईश्वर ने भक्ति को सबसे ऊंचा स्थान दिया है।भक्त के प्रेम की विशालता के आगे ज्ञान बहुत छोटा है।
इसी संदर्भ मे एक प्रसिद्ध घटना जो शायद करीब करीब सबने सुनी है,मैं उसी घटना को फिर से सुनाती हु-
एक औरत बचपन से कृष्ण जी की भक्ति करती थी।बचपन से वो वृदावन धाम के लिए जाती रहती थी।बड़ी होने के बाद जब उसकी शादी हो गई तो भी वृन्दावन जरूर जाती थी।फिर बच्चे हो गए तो भी वृदांवन धाम जाना नहीं छोड़ा।उसके बाद जब उसके बच्चो की शादिया हो गई तो भी कुछ समय तक वो जाती रही,लेकिन फिर धीरे धीरे शरीर कमजोर पड़ गया तो उसको जाने आने मे बहुत तकलीफ होती थी।एक दिन वो वृन्दावन धाम गई और वहाँ से लड्डू गोपाल की एक पीतल की मूर्ति अपने घर ले आई।
अब वो वृदांवन नहीं जाती थी और घर पर ही मूर्ति की पूजा करने लगी।वो उसे मूर्ति नहीं मानती थी बल्कि अपना पुत्र समझकर उसका हर कार्य करती थी।लड्डू गोपालजी को जगाना,नहलाना,वस्त्र बदलना,भोग लगाना,सुलाना,इत्यादि बहुत से कार्य करती थी ।वो दिन भर उन्ही के भजनों मे मस्त रहती थी।
एक दिन की बात है।उस दिन जन्माष्ठमी का त्यौहार था।उसी दिन उसकी तबियत खराब हो गई तो उसने अपनी बहु से कहा कि ,बेटा, आज मेरी तबियत सही नहीं है।तुम मेरे लड्डू गोपाल को नहला धुलाकर साफ वस्त्र पहना दो और भोग लगा दो ।आज उसका जन्म दिन है।
बहु कुछ अपना काम कर रही थी।वो बिना मन से उठी और गुस्सा करती हुई लड्डू गोपाल जी की मूर्ति को उठाया कि मूर्ति हाथ से छूट गई।जैसे ही मूर्ति हाथ से छुटी कि, उसकी सास बिस्तर से उठी और जोर जोर से रोने लगी कि मेरे लल्ला को चोट लग गई,मेरे लल्ला को चोट लग गई।
वो बार बार उस मूर्ति को चूमती रही और अपने बेटों को बुलाकर बोलती है कि जल्दी से डॉक्टर को बुलाओ।इस बात पर उसके बेटे बहु गुस्सा हो जाते है कि एक पीतल की मूर्ति को गिरने पर भला कौन डॉक्टर को बुलाता है।लेकिन भक्ति और पागलपन मे ज्यादा फर्क नहीं होता,जो दुनिया की नजर मे पागल है वो ही भक्त है।
घर के सारे सदस्य और आस पास के सब लोग उसे पागल कहने लगे।तब एक बुजुर्ग पड़ोसी ने उस औरत के बेटे को समझाया कि तुम किसी डॉक्टर को फीस देकर ले आओ ताकि तुम्हारी माँ को तसल्ली मिल जाएगी।उस औरत का बेटा एक डॉक्टर को बुलाकर लाया।डॉक्टर ने उस मूर्ति को ऐसे ही हाथ लगाकर उस औरत को समझा दिया कि तुम्हारा लल्ला ठीक है,इसको कुछ नहीं हुआ है।तब वो औरत डॉक्टर से बोली कि तुम पहले अपनी मशीन निकालो और मेरे लल्ला को चेक करो।डॉक्टर ने उस औरत की बात मानकर अपनी मशीन को उस मूर्ति के दिल पर रखी कि डॉक्टर को चक्कर आने लग गए।डॉक्टर को उस मूर्ति के अंदर से धड़कन की आवाज सुनाई दी।डॉक्टर बार बार मशीन लगाकर मूर्ति को चेक करता है और बार बार उसे धड़कन की आवाज सुनाई देती है।वो औरत डॉक्टर को पूछती है कि मेरा लल्ला ठीक तो है।डॉक्टर साहब उस औरत को बोलते है कि ,मैया तेरा लाल जुग
जुग जिये,तेरा लाल एकदम सही है।डॉक्टर उस औरत के बेटे को कहता है कि तेरी माँ पागल नहीं है,ये पूरा संसार पागल है जो तेरी माँ के प्रेम को नहीं समझ पाया।आज तेरी माँ की भक्ति के आगे मेरी पूरी साइंस फेल हो गई है।आज तक मैंने ऐसा केस कभी नहीं देखा कि पीतल की मूर्ति मे प्राण हो सकते है।मेरी तो आज तक की सारी पढ़ाई व्यर्थ है।
उस डॉक्टर ने अपना सबकुछ छोड़कर हमेशा के लिए वृदांवन जाकर अपना पूरा जीवन कृष्ण के नाम करने का निश्चय कर लिया।
ऐसी होती है भक्ति,जो ज्ञान के भी चक्षु खोल देती है।इसलिए ज्ञानी लोग भक्ति को न ही जाने तो अच्छा है,वरना एक बार जिसने भक्ति से प्रेम कर लिया वो फिर कभी किसी ज्ञान को पाने की लालसा ही नहीं रखेगा और ज्ञान के नहीं होने पर इस सृष्टि पर कोई विकास नहीं होगा।इसलिए ज्ञानी का होना इस संसार के लिए बहुत जरूरी है।भगवान की माया बड़ी विचित्र है।ज्ञानी व्यक्ति को वो कभी भक्ति प्रदान नहीं करते,अगर ऐसा करते तो संसार मे कहीं कोई ज्ञानी नहीं होता।
भक्ति और ज्ञान दोनो ही मानव कल्याण के लिए बहुत जरूरी है।एक भक्त प्रेम करना सिखाता है तो एक ज्ञानी अनुभव और रास्ता दिखाता है।
इसलिए संसार मे सब ज्ञानी नहीं हो सकते और संसार मे सब भक्त नहीं हो सकते।
विशेष-ज्ञान कभी अपने आप को बड़ा न समझे और भक्ति कभी अपने आप को छोटा न समझे। इस संसार मे ज्ञानियों का आदर होता है और भक्तो का अनादर हुआ करता है।लेकिन जब ज्ञान और भक्ति का आमना सामना होता है तो हमेशा से ही भक्ति जीता करती है।
भक्त और भगवान की जय हो
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