पप्पू
24 मई 1980 के दिन की बात है।पप्पू की मम्मी को दिन मे तीन चार बजे के करीब आम खाने का मन करा,क्योंकि वो गर्भवती थी तो उसकी इच्छा पूरी करने के लिए पप्पू के पापा बाजार से आम खरीदने गए और पीछे से साहब पप्पू जी इस दुनिया मे पधारे।पप्पू के पापा जब आम लेकर घर आये तो आस पड़ोस की औरते पप्पू के पापा को घेर कर खड़ी हो गई और बधाई देती हुई मिठाई की मांग करने लगी और कहने लगी कि लड़के का जन्म हुआ है।पप्पू के पापा आश्चर्य से भर गए कि अभी तो वो आम ख़रीदने गए और इतनी जल्दी कैसे बच्चा हो सकता है,लेकिन यही सत्य था।
पप्पू के आने की खुशी से पूरे परिवार का वातावरण आनंदमय हो गया था क्योंकि परिवार का पहला पुत्र जो था।वैसे भी उस जमाने मे पुत्र के होने पर बहुत ही खुशी होती थी।पप्पू के नाना नानी तो इतने खुश हुए जैसे उनकी बरसों की इच्छा पूरी हो गई हो क्योंकि उनके स्वयं के कोई पुत्र नहीं था और अपनी पुत्री के पुत्र होने पर उनकी भी इच्छा पूरी हो गई।
फिर क्या था,अब तो पप्पू पूरे परिवार का लाड़ला बन गया।पप्पू के पापा तो पप्पू को अपनी आंखों से ओझल ही नहीं होने देते थे यहाँ तक कि जब पप्पू की मम्मी पप्पू को उसकी नानी के यहाँ लेकर जाती तो भी वो चिंतित हो जाते।एक बार पप्पू की मम्मी उसके नाना नानी के गावँ पप्पू को लेकर गई लेकिन उसी दौरान अत्यधिक गर्मी के कारण पप्पू के सिर मे बहुत बड़ा फोड़ा हो गया और वो पक गया।जब पप्पू की मम्मी वापस अपने घर आई तो पप्पू के पापा ने पप्पू की मम्मी से बहुत लड़ाई करी जबकि इसमें पप्पू की मम्मी का कोई दोष नहीं था।दोष तो पप्पू के पापा का भी नहीं था,क्योंकि वो पप्पू को प्यार भी इतना करते थे कि उसकी छोटी सी तकलीफ भी वो बर्दास्त नहीं कर पाते थे।उसके बाद तो पप्पू की मम्मी इतना डर गई कि कई महीनों तक वो अपने पियर नहीं गई।
धीरे धीरे पप्पू 4 साल का हुआ और उसको बड़ी बहन राधा के साथ एक प्राइवेट स्कूल मे भर्ती करवाया।दोनो भाई बहन एक ही कक्षा मे पढ़ने लगे।राधा की पूरी ज़िमेदारी होती थी कि अगर पप्पू को किसी प्रकार की खरोंच भी आ जाती तो पापा की पिटाई उसी को पड़ती थी,इसलिए वो अपने भाई का कक्षा मे भी हाथ नहीं छोड़ती थी।दोनो भाई बहनों मे प्रेम भी इतना था कि टीचर जब हाजरी लेते थे तो केवल एक के नाम लेने पर बोलते ही नहीं थे।एक दिन टीचर ने राधा को डांटा कि तुम कक्षा मे उपस्थित हो,फिर भी हाजरी क्यों नही बोलती हो।राधा ने अत्यंत भोलेपन से कहा कि,मेरे भाई का नाम तो लिया ही नहीं तो मैं कैसे बोलू,और यही जवाब पप्पू का भी था कि मेरी बहन का नाम तो आया ही नहीं
कुछ दिन बाद टीचर स्वयं दोनो भाई बहनों का नाम एक साथ बोलकर हाजरी भरते थे तब जाकर दोनो अपनी हाजरी देते थे।दोनो भाई बहन पढ़ने मे बहुत होशियार थे,इसलिए धीरे धीरे वो स्कूल के हर टीचर के फेवरेट बनते जा रहे थे।स्कूल के हर छोटे से छोटे प्रोग्राम मे दोनो भाई बहन साथ साथ हिस्सा लेते थे।इस तरह 4 साल तक लगातार दोनो भाई बहन एक ही कक्षा में पढ़ते रहे और जब कक्षा 2 मे आये तब उनके पापा ने राधा को बड़ी होने के नाते प्रधानाध्यापक जी से बात करके एक कक्षा आगे बढ़ा दिया और यहाँ दोनो भाई बहन पढ़ाई मे एक दूसरे से दूर हो गए।कुछ दिन दोनो अपनी कक्षा मे एक दूसरे की कमी महसूस करने लगे ,फिर धीरे धीरे आदत हो गई।
लेकिन फिर भी दोनो स्कूल मे अपना नाम कमा रहे थे।संगीत,वादविवाद,भाषण,खेलकूद,निबंध प्रतियोगिता,और भी बहुत सी चीजो मे दोनो हिस्सा लेते रहे।एक बार एक वाद विवाद प्रतियोगिता मे दोनो ने पक्ष और विपक्ष मे खड़े होकर हिंदी और अंग्रेजी दोनो विषयो पर वाद विवाद किया।दोनो मे इतनी गहरी प्रतिस्पर्धा हुई कि एक विषय मे राधा ने प्रतियोगिता जीती तो दूसरे विषय मे पप्पू ने प्रतियोगिता जीती।पूरा स्कूल भी हैरान था कि ये दोनों भाई बहन हर जगह अपनी एक जगह बना लेते है,ये सब उनके पापा के संस्कारो का ही प्रभाव था।कक्षा 6 तक तो राधा अपने भाई पप्पू के साथ एक ही स्कूल मे पढ़ती रही लेकिन उसके बाद दोनों के स्कूल अलग हो गए।धीरे धीरे विचारधाराएं भी बदलती गई,पढ़ाई का तरीका भी बदलता गया,लेकिन फिर भी दोनो अपने अपने स्कूल की दिनचर्या को रोज आपस मे शेयर करते रहते थे।
नटखट इतना था कि रात को बिस्तर मे छुपाकर कुछ खाता रहता था,उसके दाँत की कड़कड़ाहट से राधा को पता चलता थालेकिन पूछने पर कहता कि कुछ नहीं है,ऐसे ही दाँत बजा रहा हु।
जैसे जैसे बड़ा होता गया,उसकी शैतानियां भी बढ़ती गई।पूरे दिन दोस्तो के साथ खेलना,मस्ती करना,अपनी मम्मी को तंग करना, ये सब उसके रोज का क्रम बन गया था।लेकिन जैसे ही शाम होती और उसके पापा के आने के समय मासूम बनकर बैठ जाता।अपनी मम्मी को तो इतना पटा कर रखता कि ,लाख तंग करने के बाद भी अपनी मीठी वाणी से मम्मी को भी जीत लेता।
लेकिन कई बार तो उसकी मम्मी उसकी शैतानियों से बहुत परेशान हो जाती थी।एक बार जब वो बहुत शैतानियां कर रहा था तो उसकी मम्मी ने उसको पीटने के लिए जैसे ही लकड़ी उठाई और वो घर के आंगन मे लगे नीम के पेड़ पर चढ़ गया।उसकी मम्मी के गुस्से की आग भी इतनी तेज थी कि मम्मी ने जोर से उस लकड़ी को पप्पू की और फेंका।पप्पू ने अपने आप को बचाने के लिए जैसे ही हाथ सामने की ओर किये कि उस लकड़ी का सीधा निशाना पप्पू के हाथ पर पड़ा और पप्पू रोता हुआ पेड़ से नीचे आ गिरा।उसकी मम्मी का गुस्सा पल मे ही पानी पानी हो गयाऔर अपने रोते हुए बच्चे को अपने गले से लगा लिया और हाथ पर बार बार तेल गरम कर करके लगाया और उसकी मम्मी ने अपनी अश्रु धारा से सारा प्रेम पप्पू पर उड़ेल दिया।
दिन गुजरते गए और पप्पू दसवीं मे आ गया और अब उसकी शैतानियों ने भी विराम ले लिया था।वो अपनी पढ़ाई के प्रति सिंसियर हो गया।अपनी पूरी मेहनत और लगन से 10 वी कक्षा बहुत ही अच्छे नंबर से पास हो गया और अपने पापा का सपना पूरा किया।
पढ़ाई के साथ साथ उसे घर के कई कार्यो मे भी दिलचस्पी थी।वो घर की सफाई भी करता था।घर की कुछ सजावट की चीजें भी बनाता था।
एक बार 10 वी के बाद उसे कुछ काम करने की इच्छा हुई तो उसने किसी अखबार वाले से बात करी और अखबार डालने का कार्य किया।जब मन पर कुछ करने का जुनून सवार होता है तो इंसान कुछ भी कर सकता है।जो पप्पू अब तक घंटो सोया करता था,वो सुबह 4 बजे उठकर अखबार डालने का कार्य करने लगा।साईकल तो उसने बहुत पहले ही सीख ली थी।पापा के ड्यूटी जाने के बाद पापा की साईकल चलाता था।शुरू मे जब उसके पैर साईकल पर पूरे नहीं आते थे तो वो कैंची मारके साईकल चलाता था।
उसके पापा रोज चाबी छुपाकर जाते और वो रोज चाबी ढूंढ लेता था।
इस तरह कुछ दिन अखबार डाले,पर फिर रोज रोज इतनी सुबह जाने के कारण पप्पू के पापा ने अखबार का काम बंद करवा दिया।लेकिन पप्पू को चेन नहीं था।उसके दिमाग मे हर पल एक नया सपना चलता रहता था।कुछ समय बाद उसने एक हेयर कटिंग की दुकान पर बाल काटने का भी कार्य सीखा।बाल काटने का कार्य सीखने के बाद एक एसटीडी की दुकान पर भी काम किया।पढ़ाई के साथ वो काम भी करता गया।क्रिकेट का भी बहुत शौक था तो कई बार अपने दोस्तों से साथ क्रिकेट भी खेलने जाता था,फिर भी इन सब चीजों का उसकी पढ़ाई पर कोई नुकसान नहीं हुआ।वो अपनी पढ़ाई भी अच्छे से करता था।कहते है कि जिसको गागर मे सागर भरना आ गया वो कुछ भी कर सकता है,पप्पू का दिमाग भी वैसा ही था,जो भी पढ़ता था पूरे मन से पढ़ता था।
इस तरह करते करते उसने 12 वी कक्षा भी उत्तीर्ण कर ली,और कॉलेज मे आ गया।अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ साथ वो कई बच्चो को ट्यूशन भी पढ़ाने जाता था।समय गुजरता गया।पप्पू की बहन राधा की भी शादी हो गई और कुछ साल बाद पप्पू की भी शादी हो गई।
शादी के बाद पप्पू ने एक बीएसएनल आफिस मे नोकरी करी और वहाँ अपनी पूरी ईमानदारी से अपने कर्तव्य का निर्वाह किया
सपनों के पूरा होने के साथ ही कुछ शक्तियां भी अपना कार्य करके संसार से प्रस्थान कर गई।यही विधाता की लीला है।यही जीवन का अटल सत्य है।
सब कुछ बदल जाता है,जीवन मे एक जगह आकर एक ठहराव सा आ जाता है।फिर भी समय कभी नहीं रुकताएक और नई सुबह होती है और फिर से जीवन के नए चक्र हमारे सामने खड़े होते है,और उसी समय के आधीन होकर इंसान फिर से चलने लगता है।
फिर से नई उम्मीद के साथ,नए सपनों के साथ,अविचल झरनों की तरह।
इस ब्लॉग के हर वाक्य में एक बहन का भाई के प्रति अटूट प्यार छिपा है । जो शब्दो मे उमड़ कर आया है । मैं इतना लायक तो नही लेकिन अपनी बड़ी जीजी के प्रेम शब्दो को शाश्वत स्वीकार करता हु । thanks jiji .
ReplyDeleteमेरे जन्मदिन पर इससे बड़ा तोहफा नही हो सकता