सच्ची शिक्षा

सच्ची शिक्षा-

जब इस संसार मे मनुष्य जन्म लेता है तो उसका पहला संस्कार शिक्षा से चालू होता है।जन्म से 3 साल की उम्र तक की शिक्षा वो अपने माता पिता से ग्रहण करता है।उस दौरान माता पिता अपने बच्चे को शब्दों का उच्चारण करना सिखाते है।इसलिए कहते है कि इंसान को बोलने की शक्ति माता पिता से प्राप्त होती है।इसी दौरान अगर माता पिता ईश्वर से प्रेम करना सीखा दे तो वो बच्चे जीवन मे कभी भगवान को एक क्षण के लिए भी नहीं भूल सकते,क्योंकि यही समय बच्चे के निर्माण की पहली नींव होती है।
उसके बाद दूसरी नींव शुरू होती है जो 3 साल की उम्र से प्रारंभ होती है जो गुरु के संरक्षण मे होती है।

गुरु से प्रारंभ होने वाली नींव ही इंसान को एक सच्चा मानव बनाती है।तीसरी नींव होती है मित्र और हमारा जीवन साथी।

जिस तरह पानी मे दो रंग के कपड़ो को एक साथ डालने पर दोनो पर एक दूसरे का रंग चढ़ जाता है,उसी प्रकार मित्र और जीवन साथी का हमारे जीवन मे बहुत फर्क पड़ता है।जैसा हमारा संग होगा,वैसा ही हमारा आगे से आगे निर्माण होगा।
इन सबमें जो सबसे महत्वपूर्ण होता है,वो है हमारी अपनी बुद्धि जो हमें ईश्वर से स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।उस बुद्धि का उपयोग करके ये निर्णय ले कि क्या ग्रहण करने लायक है और क्या छोड़ने लायक है।क्योंकि जरूरी नहीं कि माता पिता के द्वारा दी हुई हर शिक्षा सही हो।कई बार माता पिता स्वयं अपनी बुरी आदतों के प्रभाव बच्चे पर डाल सकते है।जरूरी नहीं कि हर गुरु अच्छी शिक्षा ही दे।जैसे आजकल के गुरु बच्चे को वो बनने के लिए कहते है जिसमे उनका फायदा हो,उनका इंस्टिट्यूट चले।
जरूरी नहीं कि मित्र की सलाह अच्छी ही हो।अगर पता चल जाये कि जो कपड़ा रंग ज्यादा छोड़ रहा है और दूसरे कपड़े को नुकसान दे रहा है तो इलाज यही है कि उस कपड़े को अलग धोया जाए,उसी प्रकार अगर मित्र की कोई बुरी आदत हमारे ऊपर हावी हो रही है तो उस मित्र से दूरी बना ले।
जरूरी नहीं कि जीवन साथी हमारे विचारों का ही हो ,

इसलिए जीवनसाथी की अच्छी बातों को ग्रहण करे और बुरी बातों के जाल मे कभी न फंसे।
इस तरह ऐसे चार विकल्प होते है जो हमारे जीवन के निमार्ण मे महत्वपूर्ण भूमिका रखते है।
           इन सबमें जो हमारे जीवन की उन्नति और जीविका के लिए उपयोगी है वो है विद्यालय की शिक्षा।विद्यालय पर ही हमारे पूरे जीवन की आर्थिक और मानसिक स्थित्ति निर्भर करती है।
पुराने जमाने मे शिक्षा लेने के लिए साधारण मुनि वेश मे गुरुकुल भेजा जाता था जहाँ उन्हें कठिन श्रम के साथ शिक्षा दी जाती थी ताकि बच्चा पुरुषार्थ करना सीखें,फिर चाहे वो राजा का बेटा हो या किसी गरीब का।
आजकल शिक्षा के तरीके बदल गए,तकनीकी जमाना आ गया तो शिक्षा के मायने भी बदल गए और बदलने भी चाहिए क्योंकि परिवर्तन तो होना ही चाहिए।परंतु हर परिवर्तन मे शिक्षा का उद्देश्य एक ही होना चाहिए कि बच्चा स्वावलम्बी बने,आत्मनिर्भर बने।
     एक बार की बात है।मैं अपने ब्यूटी पार्लर के कार्य के दौरान किसी क्लाइंट से मिली और उस दिन एक बात से उन क्लाइंट से मेरी बहस हो गई।वो दीदी अपने बच्चे के स्कूल के लिए बहुत बढ़ा चढ़ा कर तारीफ कर रहे थे कि हमारे बच्चे तो एयर कंडीशनर वाले स्कूल मे पढ़ते है जहाँ कक्षाओं में एसी लगा हुआ है।मैंने उनकी बात का विरोध करते हुए कहा कि इसमें कोई अच्छी बात नहीं है।जो बच्चा अभी से ही एसी मे पढ़ेगा तो वो क्या मेहनत करना सीखेगा ।उसकी तो नींव अभी से ही कमजोर पड़ रही है।उन क्लाइंट को उस समय बहुत बुरा लगा ,लेकिन मैंने तो वही कहा जो सच था।
आजकल तो ऐसी हालत है कि किसी बच्चे को ये पूछा जाए कि प्रह्लाद कौन था,पन्नाधाय कौन थी,महाराणा प्रताप कौन थे,हम आजाद कैसे हो,कुछ भी पता नहीं है,क्योकी आजकल स्कूलों मे केवल एक ही चीज पर बल दिया जाता है वो है ऊंची डिग्रिया,ऊंचे ख्वाब।

इतिहास जानने का किसी को कोई शौक नहीं है।वो शिक्षा ही क्या जो हमारे इतिहास के महान लोगो की कहानी नहीं जान पाए,वो शिक्षा ही क्या जो हमारे पूर्वजों का संघर्ष न जान पाए।
वास्तव मे सच्ची शिक्षा वो है जो बच्चे को आत्मनिर्भर बनाये न कि निर्भर।जो बच्चा सुख सुविधाओं मे पढ़ेगा वो आत्मनिर्भर बन ही नहीं सकता।

जब तक शरीर पर पसीना नहीं आएगा तब तक इंसान के अंदर मजबूती कैसे आ सकती है।
आजकल हर टीचर बच्चे को यही कहते है कि तुम्हें इंजीनियर बनना है,डॉक्टर बनना है और भी न जाने क्या क्या ऊंचे ऊंचे सपने दिखाते है और उसके बल पर लाखों रुपये का पैकेज बताते है पर कोई ये नहीं कहता कि तुमको एक अच्छा इंसान बनना है,तुमको आत्मनिर्भर बनना है।तुम्हे ऐसा बनना है कि भविष्य मे तुम अपने माता पिता का सहारा बन सको बल्कि आज की शिक्षा ने बच्चो को माता पिता से ही दूर कर दिया है।हर बच्चा बड़ी बड़ी डिग्रिया हासिल करना चाहता है और फिर अच्छी से अच्छी नोकरी चाहता है और जब उसे अच्छी नोकरी नहीं मिलती है तो वो हीन भावना का शिकार हो जाता है।
   अक्सर हम देखते है कि ऊंची से ऊंची पढ़ाई करने वाला नोकरी के लिए भटकता है और एक कम पढ़ा लिखा अपनी मेहनत से अच्छा कमा लेता है।
कहने का मतलब ये नहीं है कि इंसान  ऊंची पढ़ाई न करें।शिक्षा का कोई end नहीं है जितनी चाहे कर सकता है पर माता पिता और शिक्षक का ये कर्तव्य है कि वो बच्चे की क्षमता और रुचि को पहचान कर ही उसे सलाह दे कि आखिर बच्चे के अंदर कौनसा टेलेंट है,न कि बच्चे के अंदर प्रतिस्पर्धा पैदा करे।क्योंकि प्रतिस्पर्धा आदमी को अपनी नजर से गिरा देती है

।जो बच्चा अपनी प्रतिभा को पहचान कर उसी को अपना लक्ष्य बनाए तो वो हमेशा अपनी नजर मे ऊंचा रहेगा।
शिक्षा वो नहीं जो केवल धन कमाने के उद्देश्य से की जाए,शिक्षा वो है जो इंसान के आत्मविश्वास को मजबूत करें।शिक्षा वो है जो इंसान को इंसान से प्यार करना सिखाये,शिक्षा वो है जो अपने देश और संस्कृति से प्यार करना सिखाये।
      यों तो महात्मा गांधी ने भी विदेश से शिक्षा प्राप्त करी थी,फिर भी वो विदेशी नहीं बने।अपने देश के कपड़े पहनकर ही पूरा जीवन निकाल दिया।इसलिए शिक्षा वो है जो अपनी संस्कृति को कभी भूलने न दे।
   शिक्षा वो है जो संकट के समय काम आए ।बच्चो को साधन उसकी सही उम्र मे ही प्रदान किये जायें तो वो उसकी कीमत को समझ सकते है,आजकल बच्चो को अपनी सही उम्र से पहले ही साधन मिल जाते है तो वो मेहनत क्यों करेगा।
      चाहे इंसान बहुत ज्यादा शिक्षित हो चाहे कम हो,चाहे अमीर हो चाहे गरीब हो,चाहे साधन संपन्न हो चाहे अभावग्रस्त हो,हर हाल मे इंसान को एक न एक दिन पुरुषार्थ का सहारा लेना ही पड़ता है।
      इसलिए हर गुरु और माता पिता का ये कर्तव्य है कि वो अपने बच्चो को सही रास्ता दिखाए न कि चमकीले सपने।
     खरगोश और कछुवे की कहानी हम सबने सुनी है।

उसमें कछुवे ने अपनी आत्म शक्ति को पहचाना और उसी आत्मशक्ति के बल पर उसने इतनी तेज चाल चलने वाले को हरा दिया।अगर वो खरगोश की तेज चाल के साथ प्रतिस्पर्धा करता और तेज चलने की कोशिश करता तो वो खरगोश की तेज चाल का मुकाबला तो नहीं कर सकता , बल्कि कुछ ही दूरी पर दौड़ कर थक जाता और अपने आप को जीवन भर कमजोर समझने लगता,इसलिए उसके पास जो शक्ति थी,उसने उसी का उपयोग किया और वो ऐसा जीता कि उसकी एक प्रसिद्ध कहानी बन गई जो इतिहास मे एक उदाहरण बन गया।
       इसलिए सही शिक्षा वो ही है जो अपनी शक्ति स्वयं पहचाने और अपने मार्ग का चयन करें।हर इंसान के अंदर भगवान ने अनंत शक्तियां भरी है,किसी के साथ पक्षपात नहीं किया है।अपनी शक्तियों को पहचान कर ही अपने जीवन के लक्ष्य को पार करे।  यही सच्ची शिक्षा है।
            विधा ददाति विनयम
          विन्या धाती पात्रताम  
          पात्रता धन मापनोति 
           धनाधम तत सुखम
     

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