गौतम बुद्ध का सच

गौतम बुद्ध का सच

गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के लुम्बिनी वन मे हुआ था।लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र मे स्थित है।गौतम बुद्ध इक्षवाकु वंश के थे।उनके पिता महाराजा शुद्धोधन कपिलवस्तु के राजा थे,और उनकी माता का नाम महामाया देवी था जो बुद्ध के जन्म के सात दिन मे ही स्वर्ग सिधार गई थी,इसलिए गौतम बुद्ध का लालन पालन उनकी मौसी गौतमी ने किया जो महाराजा शुद्धोधन की दूसरी रानी भी थी।गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था ,जैसा उनका नाम था वैसे ही वो जीवन मे कई सिद्धियां पाने वाले महापुरुष बने।वो एक राजा के पुत्र थे इसलिए उनके पास किसी संसाधनों की कमी नहीं थी,फिर भी बचपन से ही वो गंभीर प्रवति के थे।उनको किसी वैभव मे कोई रुचि नहीं थी।उनके पिता उनकी इस प्रवत्ति से बहुत  चिंतित रहते थे,इसलिए उन्होंने जल्दी ही उनका विवाह कर दिया।उनकी पत्नी का नाम यशोधरा था।फिर भी गौतम बुद्ध का मन गृहस्थी मे नहीं लगता था।उनके पिता ने  उनको गृहस्थ की तरफ आकर्षित करने के लिए कई प्रयास किये,पर विधाता की रचना को कोई नहीं बदल सकता था।
एक दिन गौतम बुद्ध नगर भ्रमण के लिए निकले तो रास्ते मे उन्होंने एक शव यात्रा देखी तो उन्होंने अपने साथियों से पूछा कि ये क्या है?

तब उनके साथियों ने बताया कि ये आदमी मर गया है और इसको शमसान मे जलाने ले जा रहे है।
अगले दिन फिर जब वो नगर भ्रमण के लिए निकले तो उन्होंने एक रोगी को देखा जो बहुत पीड़ा मे था।गौतम बुद्ध ने फिर अपने साथियों से पूछा कि ये कौन है।तब उनके साथियों ने बताया कि ये एक वृद्ध है और वृद्धवस्था के कारण इसका शरीर रोगग्रस्त हो गया है।
इन दोनों घटनाओं ने गौतम बुद्ध के जीवन को ही बदल दिया।वो घर आकर सोचने लगे कि अगर हर इंसान एक दिन वृद्ध होकर मर जाता है तो फिर इन सब सुख साधनों का और मोह का क्या अर्थ,जो मृत्यु के साथ खत्म हो जाती है।इंसान की असली सम्पति तो ज्ञान और आध्यत्मिक विकास है जो उसकी मृत्यु के बाद भी उसके साथ रहते है।उनके इसी विचारों ने उनको इतना बेचैन कर दिया कि एक रात को वो अपने पत्नी यशोधरा और अपने नवजात बच्चे को सोते हुए छोड़कर रात को ही घर त्याग दिया और घने जंगल मे जाकर तपस्या करने लगे।

उनकी पत्नी यशोधरा को इस बात का बहुत धक्का लगा,लेकिन वो स्वाभिमानी थी,इसलिए अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए वो अपने पति को ढूंढने कभी नहीं गई ।यशोधरा की विरह की पीड़ा इतनी मार्मिक है जिसका वर्णन हमारे कई कवियों ने और लेखकों ने अपने अपने तरीको से करी है ताकि जन जन तक यधोधरा के त्याग की कहानी पहुंचे  जिसने बिना किसी अपराध के अपने पति की विरह वेदना को झेला।
गौतम बुद्ध ने कई वर्षों तक कठिन तपस्या करी और फिर एक दिन बोध गया नामक जगह पर बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।

उन्होंने  सबसे पहले अपने पांच शिष्यों को वो ज्ञान प्रदान किया और फिर धीरे धीरे कई देशों मे उनके ज्ञान की कीर्ति फैल गई।
उन्होंने कई उपदेश दिए जो मानव जीवन के कल्याण के लिए उपयोगी सिद्ध हुए।
वो कहते थे कि किसी भी कार्य को आलस करके कल पर मत डालो,क्योंकि गुजरा हुआ समय वापस नहीं आता।समय की गति ऐसी है कि एक दिन मे भी बहुत कुछ बदल जाता है।
उन्होंने कहा कि इंसान को भूत और भविष्य की कल्पनाओं मे विचार करके अपना समय खराब नहीं करना चाहिये क्योंकि वर्तमान ही सत्य है और सत्य के साथ चलने मे ही इंसान का कल्याण है।

गौतम बुद्ध ने आध्यात्मिक उन्नति को मानव का प्रथम धर्म बताया,उन्होंने कहा है कि जीवन की हर परिस्थिति मे अध्यात्म ही हमारा रक्षक होता है,इसलिए बिना आध्यात्मिक ज्ञान के इंसान का कोई अस्तित्व नहीं है।

उन्होंने ये भी कहा है कि इंसान को अनावश्यक नहीं बोलना चाहिये,जितना हो सके मौन रहकर कार्य किये जायें।मौन हमें शांति देता है।उन्होंने निंदा चुगली से हमेशा बचे रहने का संदेश दिया है।निंदा को उन्होंने पाप बताया है।
उन्होंने कहा है कि इंसान को हर प्राणी से दया भाव रखनी चाहिए।करुणा और दया ही इंसान के मानव होने के लक्षण है।

इस प्रकार गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों से सारे संसार को जीत लिया और आज पूरे  विश्व मे उनके नाम की चर्चा है।

हर साल वैशाखी पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है।
      सत्यम शिवम सुंदरम

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