दिखावा
दिखावा-
वर्तमान युग जहाँ तकनीकी के दौर मे आगे बढ़ रहा है,वहीं दूसरी तरफ दिखावे की चरम सीमा पार कर रहा है।इंसान का विवेक इतना खो चुका है कि उसको ये भी नहीं पता कि क्या दिखाना चाहिए और क्या नहीं।
आजकल शादी ब्याह मे लोग शादी को संस्कार नहीं मानकर एक खेल मान लिया है।जिस तरह खेल मे लोग अलग अलग रूप करके अपनी भूमिका निभाते है उसी तरह शादी मे तरह तरह के दिखावे रूपी नाटक रचे जा रहे है।एक समय था जब शादी को एक पूजा समझकर उसको विधि विधान से,अनुशासन से,संस्कारो से सजाया जाता था,आज फैशन की इस चकाचोंध ने सभी संस्कारो का समूल नाश कर दिया है।एक समय मे पति पत्नी का रिश्ता केवल चार दीवारी के अंदर रहता था,आज वो दिखावे की वस्तु बन गई है।
जिसे देखो वो अपने इस सुंदर रिश्ते को दुनिया के सामने नग्न कर रहा है।पहले लोग जो चीजे केवल फिल्मो मे देखते थे आज हर इंसान एक फ़िल्म बन चुका है।
आजकल शादियों मे दूल्हे दुल्हन एक प्रदर्शनी की वस्तु बन चुकी है।न उन्हें बड़ो का कोई लिहाज रहा और न ही कोई जिझक रही।और ऊपर से एक नया ट्रेंड चल गया है जिसे आजकल प्री वेडिंग शूट कहते है जो शर्म को आत्मसात कर देती है।सबसे ज्यादा बेशर्मी की हद तब होती है जब उसी प्री वेडिंग शूट को अपने रिसेप्शन मे एक बड़ी टीवी पर चलाकर आने वाले मेहमानों को दिखाया जाता है।
इससे बड़ी शर्म की बात और क्या होगी कि आज की युवा पीढ़ी ने मर्यादा की सीमा ही लांघ दी।उसके बाद उन्हीं फ़ोटो को कई महीनों तक अपने स्टेटस पर लगा कर दिखावा करते है।आज की इस युवा पीढ़ी ने खुद को तो शर्मसात किया ही है साथ ही अपनी पुरानी जनरेशन को भी ये सब करने के लिए विवश कर दिया है।क्योंकि आज की युवा पीढ़ी अपने माता पिता को ये सब करने और करवाने के लिए परेशान कर देती है,जिससे परेशान होकर माता पिता को अपने बच्चों की वो इच्छा भी पूरी करनी पड़ जाती है जो वो स्वयं नहीं चाहते।फैशन ने आज की युवा पीढ़ी को इतना अंधा कर दिया है कि वो ये जानना ही नहीं चाहते कि उनके माता पिता ने किन कठिन परिस्थितियों का सामना करके उनकी हर इच्छा को पूरा किया है।नए जमाने के हिसाब से चलना बुरी बात नहीं है,लेकिन अति बहुत बुरी बात है।हर चीज की अपनी मर्यादा होती है,उसी मे रहकर इंसान कार्य करे तो ही वो खुबसूरती लाता है,वरना सिवाय फूहड़पन के और कुछ नहीं लगता।
आज के इस दिखावे के जाल मे हर इंसान फंसता जा रहा है।जब से व्हाट्सअप का युग आया है,इंसान की कोई बात गुप्त नहीं रह गई।इंसान क्या खाता है,क्या पहनता है,क्या बना रहा है,घर पर कौन मेहमान आ रहे है,उनके लिए क्या बनाया है,कहाँ घूमने गए है,किसका जन्म दिन कैसे मनाया है,कितने खुश है,कितनी तरक्की है,हर एक छोटी से छोटी बातों के बारे मे स्टेटस बता देता है।पति पत्नी का प्यार जहाँ चार दीवारी मे रहता था,आज वो दुनिया के सामने प्रकट हो रहा है और इसका दुष्परिणाम यही हो रहा है कि आगे से आगे युवा पीढ़ी अपनी शर्म को खोती जा रही है।
आजकल जो महिला संगीत होता है,उसमें कपल डांस करते है।डांस तक तो ठीक है,लेकिन जब वो अपने डांस मे अभद्र एक्शन करते है तो जिसे देखकर कई पुरानी पीढ़ी शर्म महसूस करने लग जाती है, फिर भी विवश होकर उन्हें वो सब देखना पड़ जाता है।उस पुरानी पीढ़ी की तरफ बहुत कम लोगो का ध्यान जा पाता है,क्योंकि सभी अपने दिखावे मे इतना डूब चुके होते हैं कि उन्हें उस पीढ़ी के अंदर का दर्द महसूस नहीं हो पाता।
पुरानी पीढ़ी को अपने संस्कारो का हनन होते देख बहुत पीड़ा होती है,लेकिन वो कुछ कर नहीं पाते।
कुछ हद तक नए रिवाज अच्छे लगते है,लेकिन जब वहीं रिवाज सभ्यता का विनाश करते है तो वो रिवाज जीवन मे कभी लंबी खुशी नहीं दे पाते।क्योंकि किसी भी चीज का दिखावा कुछ समय के लिए ही खुशी देता है,बाद मे उसका कुछ न कुछ दुष्परिणाम सामने आ ही जाता है।
असली चीज स्थायी रहती है जिसका कई वर्षों तक नाम रहता है और दिखावा एक क्षणिक है जिसका कभी कोई नाम नहीं रहता।दिखावे की चमक जितनी तेज होती है उतनी ही जल्दी उसका प्रकाश फीका पड़ जाता है जबकि असली चीज पर्दे के पीछे रहती है इसलिए उसका कोई प्रकाश नहीं होता फिर भी असली चीज लंबे समय के लिए अस्तित्व मे रहती है।
सोना और हीरा हमेशा गुप्त ही रहते है इसकी कीमत कभी कम नहीं होती इसके विपरीत नकली गहने ऊपर से चमक दमक दिखते है और दुकानों पर खुले आम बिकते है,लेकिन इसका मूल्य कुछ ही दिनों का ही होता है,उसके बाद उसकी कोई कीमत नहीं होती,उसी प्रकार दिखावे की भी कोई कीमत नहीं होती।
अगर इंसान को दिखावा ही करना है तो उस सत्य रूपी ईश्वर का दिखावा करें जो अटल है,जिसका अस्तित्व कभी खत्म नहीं होता,या उन महान व्यक्तियों का दिखावा करें, जो प्रेरणा देते हो।
महान लोगों की अच्छी बातों का दिखावा करने से वातावरण मे एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है जिससे खुद के साथ दूसरों का भी हित होता है।अपने रहन सहन का दिखावा करने से इंसान को अहंकार के सिवा कुछ हासिल नहीं होता ,ऐसे दिखावे से इंसान खुद का ही नुकसान करता है।
विशेष-साधारण रहकर असाधारण कार्य करें वो ही असली इंसान है और ऐसे इंसान को किसी चीज का दिखावा करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती क्योंकि उसके खुद के कार्य उसे अपने आप दुनिया के सामने प्रस्तुत करते है।
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