गणेश जी के जन्म की कथा
एक बार की बात है।माता पार्वती स्नान कर रही थी।उन्होंने अपने पूरे शरीर पर हल्दी उबटन लगाया ।उस उबटन को सूखने के बाद उसको अपने शरीर से जब निकाला तो माता पार्वती ने उस उबटन रूपी मेल से एक पुतला बनाया और उसमें अपनी शक्ति से जान डाल दी।वो पुतला एक नन्हा सा बालक बनकर बोलने लगा।तब पार्वती माता ने उससे कहा कि आज से तुम मेरे पुत्र हो और तुम्हारा नाम गणेश होगा।बालक गणेश ने अपनी माता पार्वती को प्रणाम किया ।माता पार्वती ने अपने पुत्र को आज्ञा दी कि ,तुम द्वार पर जाकर पहरा दो और जब तक मैं नहाकर न निकलू तुम किसी को भी अंदर मत आने देना।पुत्र गणेश ने अपने माता की आज्ञा का पालन किया और द्वार पर पहरेदार बनकर खड़े हो गए।तभी शंकर भगवान वहाँ आये और अंदर जाने लगे।गणेश जी ने शंकर भगवान को रोका और कहा कि आप अंदर नहीं जा सकते,ये मेरी माँ की आज्ञा है कि जब तक वो न बोले मैं किसी को अंदर नहीं जाने दे सकता।शंकर भगवान ने कहा कि मुझे रोकने का साहस करने वाले तुम कौन हो?लेकिन गणेशजी अपनी ज़िद पर अड़े रहे और अपने आपको केवल अपनी माता का पुत्र ही कहते रहे।इस पर शंकर भगवान को क्रोध आया और उन्होंने गुस्से मे आकर बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया।बालक गणेश अपनी माता को पुकारते हुए जमीन पर गिर पड़े।तभी अपने पुत्र की आवाज सुनकर पार्वती माता दौड़ती हुई आती हैं और शंकर भगवान से कहती है कि,है नाथ!ये आपने क्या किया?ये हमारा पुत्र गणेश है।तब पार्वती माता ने गणेश के जन्म की सारी बात बताई।ये सुनकर शंकर भगवान को बहुत दुःख हुआ,लेकिन बालक गणेश तो मर चुके थे।पार्वती माता ने शंकर भगवान से हट करी और विलाप करके कहने लगी कि आपको मेरे पुत्र को जीवित करना ही होगा।शंकर भगवान ने पार्वती से कहा कि मैं इसको पुनः उसी रूप मे तो नहीं ला सकता लेकिन पुत्र गणेश को किसी दूसरे प्राणी का सिर लगा दे तो वो जीवित हो सकता है।भगवान ने गरूड़ देवता को आज्ञा दी और कहा कि ,जहाँ भी तुम्हे कोई माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सोई हुई मिले, उसके बच्चे का सिर काटकर ले आना।गरुड़ देवता जंगल की तरफ गए तो उन्हें सभी प्राणी की माँ अपने बच्चे की तरफ सिर करते हुए ही मिली।जब वो बहुत तलाश करते है तो उन्हें एक हाथी का बच्चा दिखता है जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सोई हुई थी।गरुड़ देवता ने तुरंत उस हाथी के बच्चे का सिर काट दिया और उसको लेकर शंकर भगवान के पास गए।शंकर भगवान ने उस हाथी के बच्चे का सिर गणेश जी के धड़ से जोड़ा और तभी गणेश जी मे प्राण आ गए।माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को गले से लगा लिया।तब माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनके पिता शंकर भगवान से मिलाया।पुत्र गणेश ने अपने पिता के साथ साथ सभी देवी देवता को भी प्रणाम किया।सभी देवताओं ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया ।शंकर भगवान ने भी गणेश जी को आश्रीवाद दिया और कहा कि, हैं गोरी पुत्र गणेश!हम तुम्हारी मात्र भक्ति से अति प्रसन्न हुए ,इसलिए तुम्हे आशीर्वाद देते है कि संसार मे लोग तुम्हें सबसे पहले पूजेंगे और किसी भी शुभकार्य मे पहले तुम्हें आसन पर बैठाएंगे ,उसके बाद कार्य की शुरआत करेंगे और हाथी का मुख मिलने के कारण लोग तुम्हे गजानंद भी कहकर पुकारेंगे।पूरी सृष्टि मे तुमसे ज्यादा बुद्धिमान कोई दूसरा नहीं होगा उसी समय से गणेश जी को बुद्धि का दाता माना जाता है।।
गणेशजी के त्याग और मातृ भक्ति ने उन्हें संसार का सर्वोच्च बुद्धिमान देवता घोषित कर दिया।
विशेष-अपने कर्तव्य पथ पर चलने वाले का त्याग कभी बेकार नहीं जाता।माता पिता की आज्ञा का पालन करने वाले इस संसार मे अमर हो जाते है,वैसे ही जैसे गणेश जी भगवान हुए।
ॐ गण गणपते नमो नमः
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