गणेश जी की बुद्धिमानी की परीक्षा

क्यों माना गया गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता-
      एक बार शंकर भगवान और पार्वती माता ने अपने दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश की परीक्षा लेनी चाही।उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को बुलाकर कहा कि,तुम दोनों में से जो भी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले लौटेगा,उसे सबसे बुद्धिमान माना जायेगा।अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करते हुए कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े।गणेश जी ने सोचा कि इतनी बड़ी पृथ्वी की परिक्रमा करने मे तो बहुत समय लग जायेगा,इसलिए क्यों न मैं अपने माता पिता की ही परिक्रमा कर लूं।क्योंकि माता पिता से बढ़कर कोई पूजनीय नहीं होता।अपने माता पिता की परिक्रमा ही सम्पूर्ण सृष्टि की परिक्रमा है,ये सोचकर गणेश जी ने तुरंत अपने माता पिता के चारों तरफ चक्कर काट लिए और अपने माता पिता से बोले कि मैंने तो पृथ्वी की परिक्रमा कर ली है।जब कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे तो उन्होंने देखा कि उनसे पहले ही गणेश जी अपना कार्य करके बैठे हुए थे।उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक छोटे से चूहे पर सवारी करने वाला गणेश उनसे पहले कैसे पहुंच सकता है।कार्तिकेय ने सोचा कि गणेश अपने बड़े पेट के कारण पूरी परिक्रमा कर ही नहीं पाए और बिना परिक्रमा कर वापस लौट गए है।लेकिन तभी वहाँ शंकर भगवान और पार्वती माता ने सभी देवी देवताओं के समक्ष ये परिणाम सुनाया कि ,गणेश ने सबसे पहले परिक्रमा पूरी करी है,इसलिए गणेश ही सर्वश्रेष्ठ है।तब सभी को आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है।एक धीमी चाल वाला,भरपेट खाने वाला,लंबी सूंड वाला और जिसका वाहन एक छोटा सा चूहा है,वो कैसे इतनी जल्दी पृथ्वी की परिक्रमा कर सकता है।तब भगवान शंकर ने कहा कि माता पिता  की परिक्रमा ही पृथ्वी की परिक्रमा के समान है।इसलिए गणेश जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करके  अपने माता पिता के चारों तरफ चक्कर लगा लिए और इस परीक्षा मे सफल हुए।शंकर भगवान ने अपने पुत्र गणेश को वरदान दिया कि संसार के लोग किसी भी शुभ कार्य मे सर्वप्रथम तुम्हारी ही पूजा करेंगे और तुम्हें सबसे पहले भोजन अर्पित करके ही अपना कार्य आरंभ करेंगे।तुम संसार मे बुद्धि के देवता कहलाओगे और इस संसार के कष्टों का निवारण करोगे,जिसके कारण तुम्हें विध्न हरता भी कहा जायेगा।शंकर भगवान के इस न्याय को सभी देवता ने माना और सभी गणेश जी की जय जयकार करने लगे।
      उसी दिन से संसार मे गणेश जी को हर कार्य मे सबसे पहले विराजित किया जाता है।
विशेष-गणेश जी ने इस संसार को ये सीख दी है कि माता पिता ईश्वर से भी बड़े होते है,इसलिए जो भी  संतान अपने माता पिता की सेवा करता है,वो अपने आप मे एक भक्त है,क्योंकि माता पिता की भक्ति करने वाले को ईश्वर की भक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।अपने माता पिता का आदर करने वाली  संतान पर ईश्वर की विशेष कृपा रहती है।

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