वामन अवतार की कथा
वामन अवतार कथा
जब जब पृथ्वी पर संकट आया तब तब भगवान ने अवतार लिया।उन्हीं अवतारों मे एक अवतार वामन अवतार भी है।
प्रहलाद के पौत्र राजा बलि बहुत ही शक्तिशाली दानव थे और देवगुरु शुक्राचार्य की कृपा से राजा बलि ने समस्त देवों पर अपना अधिकार जमा रखा था।जब राजा बलि अश्वमेघ यज्ञ करके इंद्र लोक पर अपना अधिकार जमाने का प्रयास कर रहे थे तब सभी देवताओं ने विष्णु भगवान की शरण ली।विष्णु भगवान ने देवताओं की रक्षा के लिए माता अदिति और कश्यप ऋषि के घर वामन अवतार के रूप मे पुत्र बनकर प्रकट हुए।
वामन रूप धरे भगवान विष्णु राजा बलि के अश्वमेघ यज्ञ मे गए और भिक्षा मांगी।राजा बलि बहुत ही दानवीर था।वामन भगवान ने राजा बलि से भिक्षा मांगी तो राजा बलि ने वचन दिया कि आप जो मांगोगे मैं अवश्य दूंगा।इस पर वामन भगवान ने कहा कि मुझे तो तीन पग भूमि चाहिए।वामन भगवान के बोने शरीर को देखकर राजा बलि ने हंसते हुए कहा कि ,तीन पग भूमि मांग कर तो आप मेरी दानवीरता का अपमान कर रहे है।आपके छोटे से पैरो के नाप की जमीन देना मेरे लिए बहुत छोटी बात है,इसलिए आप कृपा करके कुछ बड़ी चीज मांगिये।
राजा बलि की बात सुनकर वामन भगवान मुस्कराते हुए बोले कि मुझे तो तीन पग भूमि ही चाहिए।
राजा बलि को क्या पता कि ये तीन पग भूमि मांगने वाले त्रिलोकी नाथ है जो स्वयं उनकी परीक्षा लेने आये है।
लेकिन राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य को ये पता चल गया था कि ये वामन भगवान स्वयं विष्णु है और राजा बलि को छलने आये है।गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को आगाह कर दिया कि वो इस ब्राह्मण की बातों मे न आये।पर दैत्यराज बलि वचन के पक्के थे,इसलिए उन्होंने अपने वचन का मान रखते हुए उस ब्राह्मण को तीन पग भूमि नापने के लिए बोल दिया।भगवान ने तीन पग नापना शुरू किया कि उनका रूप विशाल हो गया और एक पग मे उन्होंने पूरी पृथ्वी को नाप लिया।दूसरे पग मे आकाश ,स्वर्ग और पाताल नाप लिया।अब तीसरे पग के लिए तो कुछ बचा ही नहीं था।वामन देव ने बलि को कहा कि ये तीसरा पग कहाँ रखु।दैत्यराज बलि ने अपना मस्तक आगे रखा और कहा कि ये तीसरा पग आप मेरे मस्तक पर ही रख दो,क्योंकि अब तो मेरे पास इसके अलावा कुछ बचा ही नहीं है।जैसे ही राजा बलि ने अपना मस्तक आगे किया और भगवान ने अपना तीसरा पग उसके मस्तक पर रखा और फिर भगवान विष्णु ने अपने असली रूप के दर्शन दिए , राजा बलि भगवान के दर्शन पाकर बहुत खुश हो गए और उन्होंने अपने अभिमान के लिए भगवान विष्णु से क्षमा मांगी।भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि को देवताओं के अधिकार वापस लौटाने के लिए बोला और स्वयं को पाताल मे रहने का आदेश दिया।भगवान विष्णु की बात दैत्यराज बलि ने सहर्ष स्वीकार कर ली ।इस पर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि से वर मांगने को कहा बलि ने कहा कि है भगवान विष्णु,आप हर समय मुझे मेरे समक्ष दिखाई दे।भगवान विष्णु ने दैत्यराज बलि का द्वारपाल होना स्वीकार किया ताकि बलि हर समय उनको देखता रहे।इस प्रकार भगवान ने राजा बलि के अभिमान को भी नष्ट कर दिया और देवताओं की रक्षा भी कर दी। और अंत मे उनकी शरण मे जाने वाले एक दैत्य बलि को वरदान भी दे दिया।
भगवान की लीला बहुत विचित्र है।उनके हर अवतारों मे कुछ विशेष रहस्य है।
Comments
Post a Comment