सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कहानी
राजा हरिश्चन्द्र
जहाँ जहाँ सत्य की बात होती है वहाँ वहाँ राजा हरिश्चन्द्र का नाम अवश्य लिया जाता है।राजा हरिश्चन्द्र इक्षवाकु वंश के थे और श्री राम के पूर्वज थे।ये अयोध्या के बहुत ही सत्यवादी राजा थे जिनके सत्य की कीर्ति बहुत दूर तक फैली हुई थी।ये एक बार जो वचन कह देते थे उसका कठोरता से पालन करते थे ।ये बहुत ही न्यायप्रिय और धर्म का पालन करने वाले राजा थे।
लेकिन जहाँ सत्य हो और कठोर परीक्षा न हो ये तो हो ही नहीं सकता।राजा हरिश्चन्द्र के सत्य की परीक्षा लेने के लिए एक बार विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र के पास आकर दान स्वरूप उनका पूरा राज्य मांग लिया।राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए अपना पूरा राज्य विश्वामित्र को दे दिया।जब राजा अपना सबकुछ छोड़कर अपनी पत्नी तारा और रोहित के साथ अपना राज्य छोड़कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा मांगी।तब राजा हरिश्चन्द्र ने कहा कि,अब तो मैं आपको अपना पूरा राज्य सौंप चुका हूं तो उसमें से जो भी आपको चाहिए आप ले लो।इस पर विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से कहा कि,ये राज्य तो अब मेरा हो चुका है और आपके सबकुछ दान करने के बाद मैंने आपसे दक्षिणा मांगी है,इसलिए है राजन!आपको इस राज्य के अलावा अलग से आपको मुझे दक्षिणा देनी होगी।राजा हरिश्चन्द्र ने फिर से अपने सत्य पर अटल रहकर विश्वमित्र से कहा कि है मुनिवर!मुझे कुछ समय दीजिए,मैं आपकी दक्षिणा भेज दूंगा।विश्वमित्र को वचन देकर राजा हरिश्चन्द्र अपनी पत्नी और बच्चे के साथ काशी चले गए।काशी नगरी जाने के बाद उन्होंने अपने आप को बेचने का निश्चय किया ताकि विश्वामित्र की दक्षिणा भिजवा सके।उन्होंने काशी के लोगो को इकठ्ठा किया और अपने आप को बेचने की कीमत बताई।तब राजा हरिश्चन्द्र को एक शमशानघाट के मालिक ने खरीद लिया।उनकी पत्नी तारा और बालक रोहित को एक साहूकार ने खरीद लिया।अपने पूरे परिवार को बेचकर जो रकम मिली उसे उन्होंने विश्वामित्र तक पहुंचा दी।यहाँ से दोनो पति पत्नी बिछड़ गए।राजा हरिश्चन्द्र जो एक समय सिंहासन पर बैठकर राज्य करते थे,आज वो एक शमशान घाट पर कर वसूली का काम करने लगे।उधर पत्नी तारा जो इतने समय से महलों मे राज करती थी ,आज एक साहूकार के घर उनके झूठे बर्तन मांझने लगी और उनके घर का सारा कार्य करती थी।उस साहूकार की पत्नी बहुत ही तेज स्वभाव की थी,वो महारानी तारा के साथ अत्याचार करती थी।उसे दिन भर काम करवाती और शाम को बचा हुआ बासी खाना देती ।महारानी तारा न चाहते हुए भी अपने पुत्र रोहित को वो बासी खाना खिलाती,फिर भी धैर्य के साथ अपने सत्यवादी पति के सत्य धर्म का पालन कर रही थी।कई वर्षों तक उन्होंने इसी तरह दुसरो के घर गुलामी करी और अत्यंत दुःख सहे।लेकिन अभी भी परीक्षा खत्म होने वाली कहाँ थी।
एक दिन की बात है,रोहित को उस साहूकार की पत्नी ने जबरदस्ती जंगल मे लकड़ी लेने भेज दिया जहाँ पर एक साँप ने उसे डस लिया।वहाँ के लोगो ने आकर जब तारा देवी को खबर दी तो वो रोती बिलखती जंगल की ओर जाने लगी ।तब भी उस साहूकार की पत्नी का मन नहीं पिघला और तारा देवी को तब तक रोक कर रखा जब तक उसके घर का काम पूरा नहीं हुआ।जब दो घंटे बाद तारा देवी जंगल मे पहुंची तब तक रोहित के प्राण जा चुके थे। तारा देवी अपने पुत्र के शव पर रोती रही,लेकिन कोई उसकी सहायता के लिए नहीं आया और न ही किसी ने उसके पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए कोई सामग्री दी।वो अकेली अपने पुत्र को कंधे पर लेकर शमशान घाट गई।ये वो ही शमशान घाट था जहाँ पर राजा हरिश्चन्द्र कर वसूली का कार्य करते थे।उन्होंने अपनी पत्नी तारा को पहचान लिया।अपने पुत्र का शव देखकर उनको अत्यंत दुःख हुआ,लेकिन उस समय वो अपने मालिक की आज्ञा पालन को ही अपनी पहचान समझते थे,इसलिए दिल पर पत्थर रखकर अपनी पत्नी तारा से शमशान का कर मांगा।उनकी पत्नी तारा ने रोते हुए कहा कि,उसके पास कर देने के लिए कुछ भी नहीं है।सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र ने अपने आप को इतना कठोर कर दिया कि न उन्होंने अपनी पत्नी की विवशता देखी और न ही पुत्र का शोक ।अगर उस समय उनको कुछ नजर आ रहा था तो बस केवल उनका कर्तव्यपालन ।
तब उनकी पत्नी तारा ने अपनी साड़ी फाड़ कर उसे ही कर के रूप मे देने लगी तभी आकाश मे गर्जना हुई और विश्वामित्र प्रकट हो गए।विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र को कहा कि,धन्य हो राजा आपकी।आपके जैसा सत्यवादी धरती पर कोई दूसरा नहीं होगा और युगों युगों तक लोग आपके सत्य की चर्चा करेंगे और आप सत्यवादी राजा के नाम से इतिहास मे प्रसिद्ध होंगे।उसी समय आकाश से सभी देवी देवता फूल बरसाते है और राजा हरिश्चंद्र को आशीर्वाद देते है।विश्वामित्र ने उनका राज्य भी वापस दे दिया और सम्मान के साथ उनको अयोध्या के राजसिंहासन पर बैठाया।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की जय
विशेष-सत्य विवश हो सकता है,निराश हो सकता है,अत्यंत पीड़ित हो सकता है,पर कभी पराजित नहीं हो सकता।
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद ऑन्टी
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