आवरी माता की कथा

आवरी माता की कथा
    चितौड़ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक आसावरा नामक गाँव है ।करीब एक हजार वर्ष पहले वहाँ जंगल था और उस जगह को आसाजी राठौड़ नाम के एक फौजदार ने बसाया थे,इसलिए उस गावँ का नाम आसावरा नाम पड़ा।
आसाजी राठौड़ के सात पुत्र और एक पुत्री थी।उनकी पुत्री का नाम कुँवर केसर था।जब कुँवर केसर बड़ी हुई तो आसाजी को अपनी पुत्री के विवाह की चिंता होने लगी।उन्होंने अपनी पुत्री के लिए कई जगह वर देखे पर कोई भी कुँवर केसर से विवाह के लिए तैयार नहीं हुआ।अब तो आसाजी की चिंता बढ़ने लगी।अपने पिता को चिंतित देखकर कुँवर केसर ने अपने पिताजी को समझाया कि,पिताजी आप चिंता मत करो।आपका दुःख माँ भवानी जरूर दूर करेंगे।आसाजी राठोड़ हर समय पूजा ध्यान मे लगे रहते और अपनी कुलदेवी से प्रार्थना करते रहते।एक दिन उन्होंने अपने सातों पुत्रो को अपने पास बुलाया और कहा कि ,तुम सातों जने जाओ और अपनी बहन के लिए रिश्ता ढूंढकर आओ।अपने पिता की आज्ञा पाकर कुँवर केसर के सातों भाई अलग अलग दिशा मे निकल गए।
लेकिन विधि का विधान ऐसा हुआ कि जो भी भाई जिस दिशा मे गया वहीं पर रिश्ता पक्का करके लग्न पत्रिका सौप दी।
जब सातों भाई अपने पिता के कार्य को पूरा करके आसावरा गावँ लौटे और अपने पिता को बताया कि हम सबने अपनी बहन के लिए रिश्ता ढूंढ लिया है और नियत समय पर बारात पहुंच जाएगी।अब तो आसाजी की चिंता और बढ़ गई।क्योंकि एक समय तो ऐसा था जब कोई भी कुँवर केसर के विवाह के लिए तैयार नहीं था और अबकी बार समय ऐसा आया कि सातों भाई सात ही दिशा मे अलग अलग लग्न पत्रिका देकर आ गए थे।आसाजी इसी सोच मे पड़ गए कि जब सात बाराते दरवाजे पर आएगी तो कुँवर केसर किसके साथ विवाह करेगी ।वो अपनी कुलदेवी के सामने रोने लगे और बहुत ही दुःखी हो गए।
अपने पिता की हालत देखकर कुँवर केसर सूर्य भगवान की आराधना करने लगी।वो नित्यप्रति भगवान के ध्यान मे रहने लगी।एक दिन कुँवर केसर ने अपने आप को सजधजकर तैयार किया और पांवो मे पायल बांधे।फिर वो हाथ मे जल का पात्र लेकर घर से जंगल की ओर निकल गई,वहीं पर सूर्य की पूजा करी ।तभी धरती फट जाती है और कुँवर केसर धरती मे समाने लगती है।उधर आसाजी राठौड़ कुँवर केसर को ढूंढते हुए वहाँ पहुंच जाते है लेकिन तब तक कुँवर केसर धरती मे समा ही चुके होते है और आसाजी ने तुरंत जाकर उनकी ओढ़नी को पकड़ ली ।तब कुँवर केसर अपने पिताजी को ओढ़नी छोड़ने के लिए बोलते है लेकिन वो नहीं छोड़ते है,तो कुँवर केसर अपने पिताजी को श्राप देती है कि,पिताजी आपने मेरी ओढ़नी पकड़कर मेरा मार्ग रोका है,इसलिए मैं श्राप देती हूं कि आपका वंश आगे नहीं चलेगा।आसाजी विनती करते है कि ,मैं आपकी ओढ़नी छोड़ रहा हु,आप अपना श्राप वापस ले लीजिए।लेकिन कुँवर केसर कहती है कि,मैं श्राप तो वापस नहीं ले सकती,लेकिन एक वरदान देती हूं कि आपका नाम मेरे साथ मे अमर हो जाएगा और इतिहास बन जायेगा।
कुँवर केसर अपने पिताजी को कहती है कि,आप इस गावँ मे मेरे नाम का मंदिर बनवाना।जो कोई भी दुःखी और पीड़ित व्यक्ति मेरी शरण मे आएगा,मैं उसके दुःख दूर करूँगी और उसे रोग मुक्त करूँगी।मेरा नाम इतिहास मे आवरी माता के नाम से प्रसिद्ध होगा।ये कहकर कुँवर केसर धरती मे विलीन हो जाते है।
उसी समय से आज भी आसावरा गावँ मे आवरी माता का मंदिर है।कई लोग उन्हें आज भी केसर बाई के नाम से बुलाते है।
आवरी माता की शरण मे जाने पर असाध्य रोग भी ठीक हो जाते है।जिस किसी को भी केंसर या लकवा जैसी बीमारी हो जाती है,वो आवरी माता के यहाँ आने पर ठीक हो जाते है।
आज भी दूर दूर से लोग शनिवार और रविवार को यहाँ आते है और माता की प्रतिमा के सामने बैठते है।
इनके चमत्कारों की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है।
          मैंने भी अपने जीवन मे इनके चमत्कार देखे है।2011 मे जब मेरा एक्सीडेंट हो गया था और मेरे पैर के लिगामेंट फट गए थे।डॉक्टर ने ऑपेरशन के लिए बोला था।उस समय मुझे 21 दिन का पट्टा बांधकर जब रेस्ट के लिए बोला था ।मैं उस समय बिस्तर पर थी।पर ऑपरेशन की चिंता सताए जा रही थी।एक रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैंने आवरी माता को याद किया और उनसे ठीक होने की विनती की।उसके बाद मुझे नींद आई तो सपने मे मैं आवरी माता जी मंदिर मे थी और कई लड़कियां मेरा हाथ पकड़कर मुझे चला रही थी।
सुबह जब नींद खुली तो एक शक्ति सी महसूस हो रही थी।उसके बाद धीरे धीरे मेरे पैर मे रिकवरी होने लगी और बिना ऑपरेशन के मेरा पैर ठीक हो गया।मैं आवरी माता को धन्यवाद देने के लिए आवरी माता जी गई।उसके बाद से तो मुझे इनके प्रति विश्वास बढ़ता गया।जीवन मे इनके इस उपकार को मैं कभी नहीं भूल सकती।
    जय आवरी माता की
विशेष-   दुनिया मे चमत्कार होते है,बस उन्हें देखने के लिए विश्वास की ताकत चाहिए।माँ जगदम्बा के अनेक रूप है और हर रूप मे एक विशेष चमत्कारिक शक्ति होती है।

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