शनिदेव जी से जुड़ी दो रोचक कथाएँ

शनिदेव और भगवान शिव की एक रोचक कहानी
     शनिदेव के बारे मे कौन नहीं जानता।शनिदेव सम्पूर्ण ब्रह्मांड के न्यायधीश है।उनका न्याय सबके लिए निष्पक्ष होता है,इसलिए वो अपनी दृष्टि से किसी को नहीं बचा पाए।शनिदेव का प्रभाव उनके पिता से लेकर उनके सभी अपनों के साथ भी पड़ा।
एक बार शनिदेव जी कैलाश पर्वत पर गए और भगवान शिव से बोले कि,कल मैं आपके ऊपर अपना प्रभाव डालने वाला हु।भगवान शंकर ने शनिदेव से कहा कि,तुम मेरे शिष्य हो,इसलिए मुझ पर ज्यादा देर का प्रभाव मत डालना।शानिदेवजी ने कहा कि,आपके ऊपर मैं केवल सवा घड़ी के लिए अपना प्रभाव डालूंगा।भगवान शंकर खुश हो गए कि,सवा घड़ी तो मैं इधर उधर छुपकर निकाल लूंगा।अगले दिन शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए भगवान शंकर ने अपने आप को हाथी बना दिया और मृत्यु लोक मे विचरण करने निकल गए।जब सवा घंटे का समय निकल गया तो शंकर भगवान अपने असली रूप मे वापस कैलाश पर्वत पर आ गए और शनि से मिलने गए।भगवान शंकर खुश होकर शनि देव से बोले कि,देख लो शनि,हम तुम्हारी दृष्टि से बच गए ।शनिदेव ने शिव जी से कहा कि,नहीं आप हमारी दृष्टि से नहीं बच पाए।मेरे ही कारण आपको सवा घंटे के लिए देवयोनि को छोड़कर पशुयोनि मे जाना पड़ा।भगवान शंकर ने शनि देव की बात सुनकर उन्हें गले से लगा लिया और शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि,तुम्हारा न्याय संसार मे लोकप्रिय होगा और ये संसार तुम्हारे न्याय के आगे नतमस्तक होगा।
विशेष- शनि की ढैया हो या साढ़े साती,इससे संसार का कोई भी व्यक्ति नहीं बच पाया।यहाँ तक कि स्वयं भगवान को भी शनि की दृष्टि का शिकार होना पड़ा और कई कष्टों का सामना करना पड़ा।वास्तव मे असल न्यायधीश वही होता है जो किसी के साथ पक्षपात नहीं करता और अपने नियम सबके लिए एक जैसे रखता है ,ऐसा निष्पक्ष न्याय करने वाला शनिदेव के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता।

        शनिदेव जी से जुड़ी दूसरी कहानी
   एक बार गुरु पिप्लादर्शी की राशि पर केवल ढाई घंटे के लिए शनि ने प्रवेश किया।उस ढाई घंटे मे गुरु की जो दशा शनि ने करी, उसकी कहानी सुनिए-
   उस समय गुरु पिप्लादर्शी शिव जी की पूजा करने के लिए जा रहे थे।रास्ते मे शनिदेव जी वेश बदलकर एक राहगीर के रूप मे खड़े थे।उन्होंने गुरु महाराज से पूछा कि है गुरु देव!आप कहाँ जा रहे हो गुरु जी ने कहा कि,मैं शिव जी की पूजा के लिए मंदिर जा रहा हु।तब उस राहगीर ने कहा कि,कृपया करके मेरी तरफ से ये दो खरबूजे भी शिव जी को चढ़ा देना और शिवजी को मेरा प्रणाम कहना।गुरु जी ने वो खरबूजे ले लिए और अपनी झोली मे डाल दिये।गुरु जी शिव मंदिर मे पहुंचकर अपने वस्त्र और झोली को एक स्थान पर रख दिये।उसके बाद स्नान करने के लिए कुंड मे गए।स्नान करने के बाद वो मंदिर मे जाकर आंखे बंद करके शिव के ध्यान मे बैठ गए।
उसी समय उस नगर के राजा के दो कुँवर आखेट खेलते हुए कहीं गायब हो गए थे,उन्हीं को ढूंढते हुए सिपाही उस स्थान पर पहुंचे जहाँ गुरु महाराज शिवजी के ध्यान मे लीन थे।उन सिपाहियों ने गुरु महाराज से पूछा कि,क्या आपने दो राजकुमारों को इधर आते देखा है।गुरु महाराज तपस्या मे लीन थे,इसलिए उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।सिपाहियों ने इधर उधर तलाश किया तो उनको एक  कुंड दिखाई दिया,लेकिन उस कुंड के आस पास खून भी दिखाई दिया।सिपाही को शक हो गया कि,गुरु महाराज के वेश मे जो शिव की आराधना कर रहा है,वो कोई छलिया है,कोई ढोंगी बाबा है।इसी ने राजकुमारों की हत्या करी है।उन्होंने तुरंत गुरुजी को पकड़ लिया और साथ मे उनके सामान और झोली को भी चेक किया।जब झोली खोलकर देखा तो उस झोली मे राजकुमारों के दो कटे हुए शीश थे।अब तो सिपाहियों को क्रोध आया और गुरुजी को पकड़कर राजा के दरबार मे पेश किया।गुरु जी कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि उनके साथ ये  क्या हो रहा है?राजा ने  कुँवरो की हत्या के आरोप मे गुरुदेव को फांसी की सजा सुनाई।
फांसी की तख्ते पर खड़ा करके गुरुदेव से उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई।उन्होंने कहा कि मेरी अंतिम इच्छा ये है कि,मैं मेरे एक चेले शनि से मिलना चाहता हु।दरबार मे शनि नाम की आवाज लगाई गई और कहा कि,शनि हाजिर हो।तीन बार आवाज लगाई की शनिदेव दरबार मे उपस्थित हुए और तेज स्वर मे कहा कि,मैं हाजिर हु,और किसने मेरे गुरुदेव को फांसी के तख्ते पर खड़ा किया है?तब राजा ने कहा कि,तुम्हारे गुरु महाराज ढोंगी और पाखंडी है,इन्होंने मेरे दोनो राज कुँवरो को मारा है।इस पर शनि बोले कि,नहीं राजा!मेरे गुरु महाराज बहुत भले आदमी है,ये कभी किसी को नहीं मार सकते।शनिदेव ने कहा कि,क्या प्रमाण है कि,मेरे गुरु महाराज ने ही आपके राजकुमारों को मारा है।राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि,वो झोली लेकर आओ जिसमे मेरे दोनो पुत्रों के शीश पड़े है।सिपाही झोली लेकर आता है और जैसे ही झोली मे हाथ डालता है कि झोली मे से दो खरबूजे निकलते है।उतने मे ही दरबार मे राजा के दोनों कुँवर भी उपस्थित हो जाते है।राजा के दरबार मे सभी  आश्चर्य हो जाते है कि ये सब क्या चमत्कार है।तब गुरु पिप्लादर्शी ने कहा कि,ये सब मेरे चेले शनि की लीला है।सभी शनिदेव की जय जयकार बोलते है।
इस तरह केवल ढाई घंटे मे शनिदेव ने अपने गुरु महाराज को फांसी के तख्ते पर खड़ा कर दिया तो आम आदमी तो शनिदेव की दृष्टि से बच ही नहीं सकता।
विशेष-शनिदेव कभी किसी का अहित नहीं करते,वो इंसान के अभिमान को तोड़कर उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं और अपने अपने कर्मो के अनुसार इंसान को उचित दंड देते है,यही उनकी न्याय व्यवस्था है।  
   शनि के न्याय मे कर्म की बहुत भूमिका है,जो कर्म एक बार इंसान से हो जाये,चाहे वो अच्छा हो या बुरा,उसका फल हर हाल मे इंसान को भुगतना ही पड़ता है।हाँ, इतना अवश्य है कि यदि किसी बुरे कर्म का इंसान को सच्चे दिल से पश्चाताप हो जाये और वो शनिदेव से क्षमा मांग ले तो शनिदेव उसके दंड को थोड़ा कम कर सकते है,पर माफ कभी नहीं हो सकता,यही उनकी कठोर न्याय व्यवस्था है।
ॐ श शनैश्चराय नमो नमः

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