सावन मास का महत्व और जानिए भगवान शिव के बारे मे कुछ विशेष बातें
सावन मास का महत्व और जानिए भगवान शिव के बारे मे कुछ विशेष बातें
हिन्दू धर्म मे सावन मास का विशेष महत्व बताया है।सावन महीने मे विशेष रूप से शिवजी की आराधना की जाती है,इसलिए शिव भक्तों के लिए ये महीना बहुत ही खास माना गया है।
कहा जाता है कि सावन मास मे ही समुन्द्र मंथन हुआ था।जब समुन्द्र मंथन मे सबसे पहले विष प्रकट हुआ तो देवताओं मे हाहाकर मच गया क्योंकि उस विष को झेलने वाला कोई नहीं था,तब सभी देवी देवता शिव जी के पास गए और उनसे प्रार्थना करी।शिव जी ने देवताओं की सहायता करी और उस विष को उन्होंने अपने कंठ मे धारण कर लिया,जिसके कारण शिव जी का गला नीला हो गया ।उसी दिन से शिवजी को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है।जब शिवजी का गला नीला हो गया और वो उस विष से जलने लगा तो सभी देवताओं ने शिवजी के ऊपर जल और दूध चढ़ाया जिससे उन पर विष की पीड़ा कम हो गई।तभी से आज तक शिवजी के ऊपर दूध और जल चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है।इसीलिए सावन महीने मे शिवजी के ऊपर जल और दूध का अभिषेक करने से शिवजी प्रसन्न हो जाते है।
शिव जी बहुत ही भोले और सरल देव है,जो शीघ्र प्रसन्न हो जाते है और अपने भक्तों को वरदान दे देते है।शिव मे ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है।शिव ही ऐसे देव है जो सारे संसार का विष पीकर भी संसार को बदले मे अमृत प्रदान करते हैं।उनकी महिमा इतनी अपार है कि जिसे अभिव्यक्त ही नहीं किया जा सकता।
एक बार स्वयं पार्वती माता ने शिवजी से सृष्टि की रचना के बारे मे जानने के लिए अमर कथा सुनने की ज़िद करी।शिव जी ने कहा कि,ये अमर कथा बहुत ही शांत भाव से और एकांत मे ही सुनी जा सकती है और इसको सुनते समय तुम्हे बीच बीच मे हुंकार भरनी पड़ेगी ताकि तुम्हें नींद न आये।पार्वती माता ने शिवजी की बात को स्वीकार कर लिया।शिवजी माता पार्वती को लेकर एक गुफा मे गए जहाँ उन दोनों के अलावा कोई तीसरा न हो।शिवजी ने अपने हाथों से तीन बार ताली बजाई ताकि आस पास के सभी छोटे बड़े जीव जंतु उस स्थान को छोड़ कर दूर चले जाएं।उनकी ताली की आवाज से सभी जीव जंतु और पक्षियों ने उस स्थान को छोड़ दिया परंतु एक तोता वहीं छुपकर बैठा रहा,क्योंकि वो भी अमर कथा सुनना चाहता था।शिवजी केवल पार्वती को ही अमर कथा सुनाना चाहते थे क्योंकि उस अमर कथा को सुनने पर कोई भी अमर हो जाता है।
जब शिवजी ने देखा कि अब चारों तरफ शिवजी और पार्वती के अलावा कोई नहीं है तो उन्होंने पार्वती जी को अमर कथा सुनाना शुरू किया।जब शिवजी अमरकथा सुना रहे थे तो पार्वती जी बीच बीच मे हुंकार भर रही थी और साथ साथ मे दूर बैठा वो तोता भी हुंकार भर रहा था।आधी कथा के बीच मे पार्वती माता को नींद आ गई और अब हुंकार की आवाज केवल तोते के मुँह से आ रही थी।शिवजी की नजर पार्वती पर पड़ी तो उन्होंने देखा कि पार्वती को तो नींद आ रही है तो फिर ये हुंकार की आवाज किसकी आ रही है।शिवजी ने उठकर चारों तरफ देखा तो अचानक उनकी नजर उस तोते पर पड़ी जो छुपकर कथा सुन रहा था,ये देखकर शिव जी को क्रोध आया और वो अपना त्रिशूल लेकर उस तोते के पास गए कि तोता वहाँ से उड़ गया।शिवजी भी उसके पीछे पीछे भागे और जहाँ जहाँ वो तोता जा रहा था,शिवजी भी उसके पीछे पीछे जाते रहे।तोते को कहीं छुपने की जगह नहीं मिल रही थी।तोता उड़ता उड़ता महर्षि व्यास जी के आश्रम मे पहुंच गया और महर्षि व्यास जी की पत्नी को उस समय उबासी आई और वो तोता उस उबासी के साथ व्यास जी की पत्नी के गर्भ मे चला गया।शिव जी ने व्यास जी की पत्नी के पास जाकर उस तोते को बहुत आवाज लगाई कि, बाहर आ जा,परंतु उस तोते को उस गर्भ के अलावा कोई सुरक्षित जगह नहीं दिखी जिससे वो शिवजी से अपनी रक्षा कर सके। शिवजी वापस अपने धाम चले गए।उधर व्यास जी की पत्नी को 9 महीने से ऊपर हो गए फिर भी बच्चा जन्म नहीं ले रहा था।व्यास जी की पत्नी अब दर्द से परेशान हो रही थी।व्यास जी और उनकी पत्नी बच्चे के होने का एक एक दिन इंतजार करने लगे।लेकिन 12 महीने हो गए फिर भी बच्चा नहीं हो रहा था तो व्यास जी बहुत परेशान हो गए तो उन्होंने श्री नारायण की स्तुति करी।श्री हरि ने गर्भ मे जाकर उस तोते को वचन दिया कि मैं तुम्हारे प्राणों की रक्षा करूंगा पर अब तुम बाहर आ जाओ।तोते ने भगवान से कहा कि,इस बाहर की दुनिया मे तुम्हारी माया मुझे परेशान करेगी,इसलिए मैं यहीं रहूंगा।तब भगवान ने उस तोते को वचन दिया कि,तुम इस गर्भ को छोड़कर बाहर आ जाओ,मैं तुम्हे वचन देता हूं कि मेरी माया तुम्हें नहीं सताएगी।तब उस तोते ने व्यास जी की पत्नी के गर्भ से एक सुंदर बालक के रूप मे जन्म लिया,लेकिन जन्म लेते ही वो बालक अपने माता पिता को छोड़कर जंगल की ओर तपस्या के लिए चल दिया।
क्योंकि उस पर हरि की विशेष कृपा हुई जिससे जन्म लेते ही वो चलने लगा और इस संसार की मोहमाया से दूर चला गया।ये बालक शुकदेव मुनि के नाम से संसार मे अमर हुआ।ये वही शुकदेव मुनि थे जिन्होंने राजा परीक्षित को भागवत कथा का रसपान करवाया और संसार के कई प्राणियों को इन्होंने मुक्ति का मार्ग दिखाया।
जिसके मन मे ईश्वर की कथा सुनने का सच्चा भाव होता है,वो इस संसार की मोहमाया से छूटकर भवसागर पार हो जाता है और जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।
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