एक पतिव्रता नारी की शक्ति- सावित्री
एक पतिव्रता नारी का सत्य
किसी समय मद्र देश के राजा अश्वपति राज्य किया करते थे।उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम सावित्री था।सावित्री बहुत ही गुणवान थी।जब वो युवा हो गई तो उनके पिता ने सावित्री को ही अपना वर चुनने के लिए बोला।सावित्री अपने वर की तलाश मे निकल गई।आखिरकार उसने अपना वर तलाश कर लिया जिसका नाम सत्यवान था।सावित्री ने अपने पिता से सत्यवान से विवाह करने की इच्छा बताई।तब सावित्री के पिता भी अपनी पुत्री से सहमत हो गए और विवाह के लिए राजी हो गए।उन्होंने सत्यवान के पिता के पास संदेश भिजवाया कि, वो अपनी पुत्री का विवाह सत्यवान से करवाना चाहते हैं।सत्यवान के पिता भी इस प्रस्ताव से खुश हो गए।लेकिन नारद मुनि ये जानते थे कि सत्यवान की आयु बहुत कम है,इसलिए वो सावित्री के सामने प्रकट हुए और बोले कि,जिस व्यक्ति से तुम विवाह करने जा रही हो,वो एक वर्ष के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।इस पर सावित्री बोली कि,है नारद मुनि!मैंने तो सत्यवान को अपने पति रूप मे मान लिया,अब चाहे वो मुझे एक वर्ष के लिए ही क्यों न मिले।मैं तो उन्हीं की पत्नी बनूंगी,पर आप मुझे कुछ ऐसा उपाय बताओ जिससे मैं अपने पति की आयु बढ़ा सकू।तब नारद मुनि ने कहा कि,वैसे तो हर इंसान की आयु पहले ही निश्चित हो जाती है,जो अटल है,फिर भी तुम्हारी पति भक्ति की भावना से खुश होकर मैं तुम्हे एक उपाय बताता हूं।नारद मुनि ने कहा कि,तुम अपने पति के लिए व्रत करना और वट वृक्ष की पूजा करना,शायद तुम्हारा कष्ट दूर हो जाये।
सावित्री की ज़िद को मानते हुए विधि विधान से उनके पिता ने सत्यवान के साथ उनका विवाह कर दिया।सावित्री विवाह के बाद अपने पति की बहुत सेवा करने लगी।वो भूखी रहकर कठिन तपस्या करके वट वृक्ष की पूजा करने लगी।करीब एक वर्ष के पश्चात जब सत्यवान की आयु पूरी हो गई और उनकी मृत्यु का समय निकट आ गया तो सावित्री अपने पति के आस पास ही रहती थी।एक दिन सत्यवान जंगल मे लकड़ी काटने गया तो सावित्री भी उसके साथ गई।तभी अचानक सत्यवान मूर्छित होकर गिर गया ,सावित्री ने अपने पति का सिर अपनी गोद मे ले लिया।तभी उसने यमराज को अपने पति के प्राण ले जाते हुए देखा।अपने तप के प्रभाव से उसने यमराज के साक्षात दर्शन किये।सावित्री ने यमराज को प्रणाम किया और अपने पति के प्राण वापस मांगे।तब यमराज ने कहा कि,है देवी!तुम एक पतिव्रता नारी हो,इसलिए मैंने तुमको प्रत्यक्ष दर्शन दिए हैं, लेकिन मैं सत्यवान के प्राण वापस नहीं दे सकता,ये विधि के खिलाफ है।तुम कोई दूसरा वरदान मांग लो,मैं तुम्हे दे दूंगा।सावित्री बहुत चतुर और बुद्धिमान थी।उसने यमराज से अपने ससुर का खोया हुआ राज्य और आंखे मांग ली।यमराज ने तथास्तु कहा और चलने लगे।लेकिन वरदान पाकर भी सावित्री संतुष्ट नहीं हुई और वो यमराज के पीछे पीछे चलने लगी।यमराज ने बार बार सावित्री को समझाया कि ,तुम वापस लौट जाओ और मेरा पीछा मत करो।लेकिन सावित्री नहीं मानी और यमराज के पीछे पीछे दूर तक चलती रही।रास्ते मे अनेक कठिनाइयां आई,लेकिन अपने सत्यबल के कारण हर कठिनाई को उसने पार कर लिया और स्वयं भी यमराज के साथ यमलोक पहुंच गई।तब परेशान होकर यमराज ने सावित्री को एक और वर मांगने को कहा।सावित्री ने इस बार यमराज से कहा कि मुझे अपने पति सत्यवान से सौ पुत्रों की प्राप्ति हो।यमराज ने तुरंत तथास्तु बोल दिया।फिर क्या था?यमराज को सावित्री की तपस्या और पति भक्ति के समक्ष झुकना पड़ा और उसके पति के प्राण वापस करने पड़े।इस प्रकार अपने विश्वास और पतिव्रत धर्म से उसने यमराज को भी जीत लिया।
इतिहास मे सावित्री जैसा दूसरा कोई नहीं हुआ जो किसी की मृत्यु को जीत के उसको जीवन दान दे सके।सावित्री का नाम इतिहास मे अमर हो गया।
विशेष-सच्ची लगन,सच्चा प्रेम,विश्वास,तप और भक्ति से इंसान असम्भव को भी सम्भव कर सकता है।
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