गवरी

गवरी

‌राजस्थान का पारंपरिक लोक नृत्य गवरी भील जाती का मुख्य  नृत्य है जिसे वो बड़े उल्लास के साथ खेलते है।ये नृत्य मेवाड़ का प्रसिद्ध लोक नृत्य है,जो हर साल सावन और भादवे महीने मे खेला जाता है।गवरी शिव पार्वती के अटूट रिश्ते की याद दिलाता है,इसमें माता गोरी  की पूजा की जाती है जिसे भील जाती के लोग गोरचिया माता के नाम से बुलाते है।गवरी खेलने वाले सवा महीने तक अपना घर परिवार त्याग कर घर से बाहर रहते है।ये लोग सवा महीने तक कोई भी हरी सब्जी का प्रयोग नहीं करते और कई लोग तो पांवों मे चप्पल भी नहीं पहनते है।गवरी मे केवल पुरुष वर्ग ही  अभिनय करते है।ये पुरुष ही स्त्रियों के कपड़े पहनकर स्त्री का अभिनय भी कर लेते है।गवरी मे तरह तरह की भगवान की लीलाओं का वर्णन ये अपने गीतों और नाटकों के माद्यम से प्रस्तुत करते है।गोरचिया माता जी को  बीच मे स्थापित करके उनके चारों तरफ ये गवरी खेलते है।ये लोग पैरों मे घुंघरू भी पहनते है।इनकी लीलाओं मे गणेश जी,शंकर पार्वती,कृष्ण राधा,नतड़िया,हवलदार,कानजी, मीणा चोर,राजा रानी,वडलियो, बिनजारो और इसके अतिरिक्त भी कई तरह की प्रस्तुतिया देकर ये दर्शकों का मनोरंजन करते है।इनके ये नृत्य केवल मेवाड़ मे ही नहीं बल्कि विदेशों मे भी पसंद किए जाते है।कई जगहों पर इन्हें अपनी प्रस्तुतिया दिखाने के लिए आमंत्रित किया जाता है।इनके इस प्रकार के नृत्य न केवल मनोरंजन कराते है बल्कि इनके नृत्य मे इतनी भावविभूरता होती है कि कई लोगो के अंदर तो वाइब्रेशन भी होने लगती है जिसे मेवाड़ी मे भाव कहा जाता है।जब देवी देवताओं की लीलाओं का वर्णन आता है तब ये ऊर्जा वहाँ बैठे कई लोगो को महसूस होती है।
‌वास्तव मे हमारे मेवाड़ क्षेत्र मे भक्ति का विशेष बोलबाला है ।यहाँ मीरा बाई जैसी भक्त हुई जो एक स्त्री जाति की होते हुए ऐसी भक्ति की चरम सीमा पर पहुंची जैसी आज तक इतिहास मे कोई दूसरी नारी नहीं हुई।शायद ये उसी भक्ति का कम्पन्न है जो आज तक जीवित है।शायद इसीलिए गवरी मे उस कम्पन्न को लोग भाव के रूप मे महसूस करते है।ये कम्पन्न भी उन्ही को महसूस हो सकता है जो भक्ति मे पागलों की तरह डूब जाता है।भक्ति पागलपन का ही दूसरा नाम है।जब ये भील जाती के लोग गवरी मे पागलों की तरह अभिनय करते है तो वो गोरचिया माता की शक्ति वहाँ प्रकट हो जाती है।
‌गवरी मे एक विशेष खेल जो रात को ही खेला जाता है जिसका नाम वडलियो है,बहुत ही भाव से इस नाटक को खेला जाता है।कहा जाता है कि इस वडलियो नाटक मे साक्षात 33 करोड़ देवी देवता प्रकट होते है।
‌आइए मैं आपको वडलियो की कहानी को अपने शब्दों के माध्यम से प्रकट करती हूं।
‌         एक सत्यवादी राजा थे।जो अपनी प्रजा के सुख दुःख का पूरा ध्यान रखते थे।वे बहुत दानवीर भी थे,द्वार पर आए हुए को कभी खाली नहीं भेजते थे।लेकिन इतिहास इस बात का गवाह है कि जब जब इंसान सत्य और धर्म के मार्ग पर चलता है,नियति उससे कठिन परीक्षा मांगती है और वही इस राजा के साथ भी हुआ।
‌एक बार राजा अपने सिपाहियों के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले।नगर के बाहर कुछ दूरी पर एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था,जिसकी जड़े राजा के महल तक फैली हुई थी।ये देखकर राजा ने सोचा कि क्यों न इस पेड़ को कटवा दे ।राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि इस पेड़ को काट दिया जाए।राजा के आदेश का पालन होते ही बरगद का पेड़ काट दिया जाता है।जैसे ही बरगद का पेड़ कटता है कि वहाँ से 33 करोड़ देवी देवता प्रकट होते है।पूरा भूमंडल और स्वर्गलोक थर्रा जाता है।राजा भी भय  से व्याकुल हो जाता है।तभी सभी देवी देवता राजा से कहते है कि है राजन!आपने घोर अपराध किया है।क्या आपको इतना  भी नहीं पता कि बरगद के पेड़ पर देवताओं का वास होता है।सभी देवी देवताओं ने राजा से कहा कि इस बरगद के पेड़  को काटने के कारण आपको इसके बदले अपना शीश देना पड़ेगा।राजा धर्म परायण थे,इसलिए उन्होंने देवताओं को वचन दिया कि मैं शीश देने को तैयार हूं,पर मुझे कुछ समय दे दो,जिससे मैं अपने राज्य के कर्तव्य पूरे करके वापस अपने आपको आपके चरणों मे समर्पित कर दूंगा।
‌राजा ने देवताओं को वचन दिया कि मैं शीघ्र वापस आपके पास लौट आऊंगा।देवी देवताओं ने राजा को कुछ समय की मोहलत दी।राजा देवताओं की आज्ञा लेकर वापस अपने राज्य चले गए,लेकिन कुछ समय बीतने के बाद राजा अपने राज्य कार्य मे इतना व्यस्त हो गए कि वो अपनी इस घटना को भूल गए।
‌एक दिन रानी को सपना आया कि राजा के ऊपर कोई विपदा आने वाली है।रानी ने राजा को महल से बाहर जाने के लिए सख्त मना कर दिया।
‌एक दिन की बात है।राजा के महल के बाहर कोई दो भिखारिन दान लेने के लिए राजा को पुकारती है।उनकी आवाज सुनकर राजा के मंत्री आते है और उन दोनो भिखारनो को अन्न और धन का दान प्रदान करते है तो वो दोनो लेने से इनकार कर देती है ।वो कहती है कि हमे तो केवल राजा के दर्शन करने है।जब मंत्री ये बात जाकर राजा को बताते है तो रानी को अपने सपने की बात याद आती है।वो समझ जाती है कि ये दान लेने वाली जरूर राजा के लिये कोई विपदा बनकर ही आई है,तभी राजा से मिलने की इतनी जिद कर रही है।इस बार रानी स्वयं बाहर जाती है और उन मांगने वाली से बोलती है कि राजा तो किसी कार्य से बाहर गए है,आप मेरे राज्य से जो चाहे,अन्न धन,हीरे जवारत कुछ भी ले लीजिए।इस पर वो दोनो भिखारन जिनका नाम वरजु कांजर था,कहती है कि हमे कोई भी दान नही चाहिए,हमे तो राजा से ही मिलना है।जब बार बार रानी बहाने बनाती रही तो वरजु कांजर को गुस्सा आया और अपनी तेज वाणी मे राजा को आवाज लगाई कि, है राजन!अपनी रानी से झूठ बुलवाकर तू अपने सत्य से भाग रहा है।अगर तो असली सत्यवादी है तो अपनी पत्नी के पल्लू से बाहर निकल।हम तेरे दर्शनों के लिए तेरे द्वार पर खड़ी है।जब वरजु कांजर की तीखी वाणी राजा के कान तक गई तो राजा के ह्रदय पर चोट लगी,और वो अपने महल से तुरंत बाहर आये।उन्होंने उन दोनों भिखारणो को पूछा कि,तुम कौन हो और मुझसे क्या चाहती हो?क्यों बार बार मुझे उलाहने दे रही हो।वो दोनो बोली कि है राजन!हम दोनों का नाम वरजु और कांजर है।हम दोनों अम्बा और कालका देवी है।तुम भूल गए कि तुमने हम देवी देवताओं का वृक्ष बरगद को काटा है।तुमने वचन दिया था कि तुम हमे अपना शीश दोगे।ये सुनकर राजा को अपनी भूल का अहसास हुआ।राजा ने कहा कि,रघुकुल रीति सदा चली आई,प्राण जाए पर वचन नहीं जाए।
‌ये कहकर जैसे ही राजा उन देवियों के साथ जाने लगे,रानी विलाप करने लगी और राजा से कहने लगी कि इस तरह मुझे छोड़कर मत जाइए।आपके जाने के बाद मैं कैसे अपने दिन काटूंगी।आपके बिना न मुझे खाना अच्छा लगेगा न  श्रृंगार अच्छा लगेगा।
‌तब राजा अपनी रानी को समझाते है कि,है रानी!तुम एक राजा की पत्नी होकर विलाप करती हो,ये तुम्हें शोभा नहीं देता है।तुम्हारा और मेरा केवल इतने ही दिनों का साथ था।ईश्वर हमे मिलाएगा तो फिर मिलेंगे ,नहीं तो आप अच्छे से रहना और मेरा राज्य संभालना।राजा ने वरजु और कांजर बनकर आई अम्बा देवी और कालिका देवी से अपनी अंतिम इच्छा बताई कि, एक बार अंतिम बार मैं अपनी बहन से भी मिलना चाहता हु।उसी समय राजा ने अपनी बहन को संदेश भिजवाया ।अपने भाई का संदेश पाकर राजा की बहन भी राजा से मिलने आई।राजा ने अपने जाने की बात बहन से कही और बहन को अपनी अंतिम भेंट के रूप मे चूंदड़ ओढाई ।राजा ने अपनी बहन से कहा कि,ये मेरी तरफ से मेरी बहन को अंतिम भेंट है,जिसे स्वीकार करो,क्योंकि अब हम दोनों भाई बहन का फिर से मिलन नहीं हो पाएगा।तब बहन भी जोर जोर से विलाप करने लगती है।अपने भाई के ऊपर आई विपदा को हटाने के लिए वो सभी देवी देवताओं का आह्वान करती है।वो हर देवी देवता को उनके नाम से स्मरण करती है और हाथ जोड़कर देवी अम्बा और देवी कालिका से अपने भाई को वापस पाने की प्रार्थना करती है।एक बहन के बार बार अनुनय विनय करने से सभी देवी देवता प्रकट हो जाते है और राजा को अपने वचन से मुक्त कर देते है।सभी देवी देवता राजा के अटल सत्य की जय जयकार करते है।
               इस प्रकार गवरी मे इस वडलियो खेल को बहुत ही भावुकता के साथ प्रस्तुत किया जाता है।इस खेल मे रानी के विलाप को इतना मार्मिकता के साथ  गाकर प्रदर्शित किया जाता है कि कोई भी इस दृश्य को देखकर आंसू बहाए बिना नहीं रहता।इसी तरह एक बहन का अपने भाई के प्रति प्रेम को भी इतना गहराई से बताया है कि उसके प्रेम की शक्ति के आगे देवता भी नतमस्तक हो जाते है।
इस दृश्य मे हर उस इंसान का शरीर कम्पन्न होने लगता है जो ईश्वर मे पूर्ण आस्था रखता है।
     इस तरह गवरी न केवल एक नृत्य है बल्कि आस्था और विश्वास का ही एक रूप है जो गवरी देखने और सुनने वालों को स्वतः ही नजर आती है।

Comments

  1. Very beautifully worded story, which is part of the soul and soil, spirit and strength of valourful Rajasthan.Keep it up Radha.

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