श्राद्ध की महत्ता

श्राद्ध क्या है?श्राद्ध का महत्व
    श्राद्ध का अर्थ उसके शब्द मे ही निहित है यानी श्रद्धा।अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा से जो कुछ भी अर्पित किया जाता है उसे ही श्राद्ध कहा जाता है।हिन्दू धर्म मे श्राद्ध का विशेष महत्व है।ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के 15 दिन तक हमारे स्वर्गवासी पूर्वज धरती पर विचरण करते है और अपने परिवार की श्रद्धांजलि को स्वीकार करते है।
जब भी कोई व्यक्ति इस संसार से जाता है तो वो बहुत मुश्किल से अपने परिवार को त्याग पाता है।उसके अंतिम क्षणों मे सबसे ज्यादा जो दुःख उसको होता है वो परिवार का बिछोह ही होता है।इस संसार को छोड़ कर जाने वाले कई व्यक्तियों की तो सारी इच्छाएं पूरी हो जाती है उसके बाद ही वो संसार को छोड़ कर जाते है,पर कुछ व्यक्ति ऐसे होते है,जिनके सपने अधूरे ही रह जाते है और वो संसार को छोड़ कर चले जाते है।ऐसे व्यक्ति की आत्मा संतुष्ट नहीं हो पाती।जब उसका परिवार मिलकर श्राद्ध करता है और परिवार के सब सदस्य मिलकर भोजन करते है तो उन पूर्वजो की आत्मा को अत्यंत सुख मिलता है।जो भी पूर्वज जिस तिथि को शरीर त्यागते है,उसी तिथि को वो धरती पर अदृश्य रूप मे आते है।जब उनके परिवार में उस दिन कोई श्राद्ध नहीं करता है तो उनकी आत्मा असंतुष्ट होकर वापस चली जाती है।ऐसी मान्यता के कारण ही हिन्दू धर्म मे सभी व्यक्ति अपने अपने पूर्वजों की तिथि पर श्राद्ध करते है ,अपने घर की बहन बेटियों को,अपने घर के सब बच्चों को,ब्राह्मणों को,गाय,कुत्तों,कौवे को खाना खिलाते है ।जब लोग इस तरह श्रद्धा से श्राद्ध करते है तो उनके परिवार को पूर्वजो का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आज के जमाने के युवा लोग इन सब पुराने संस्कारो को छोड़ते जा रहे है।आज की युवा पीढ़ी जन्म दिन और विवाह की सालगिरह को बड़े शौक से मनाती है जबकि जन्म दिन और विवाह की साल गिरह को मनाने का हमारे शास्त्र मे कहीं कोई उल्लेख नहीं है,जबकि श्राद्ध का हमारे शास्त्र मे महत्व है।
एक पुत्र के द्वारा अपने माता पिता का श्राद्ध करने का सबसे बड़ा पुण्य बताया है।लेकिन सही मायने मे उसी पुत्र को अपने माता पिता का श्राद्ध करने का अधिकार है जिसने जीते जी अपने माता पिता के प्रति कर्तव्यों का पालन किया हो।जो संतान जीते जी अपने कर्तव्य न निभाये और उनके मरने के बाद उनका श्राद्ध करें,ऐसे श्राद्ध से पूर्वज कभी खुश नहीं होते है।इसलिए श्राद्ध का असली अर्थ ही श्रद्धा है जो पहले जीते जी अर्पण की जाती है,जीते जी अपने माता पिता  को सम्मान देना ही पहला असली श्राद्ध है।

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