सत्य क्या है?


सत्य क्या है? 

क्या सत्य बोलना ही असली सत्य है?नही!सत्य वही है जो शरीर और आत्मा दोनो मे समान हो।आत्मा जो बोले वो ही अगर शरीर बोले तो वो ही सत्य कहलाता है।जब आत्मा के विपरीत जाकर हम बोलते है तो वो झूठ कहलाता है,क्योंकि शरीर ही झूठ बोलता है,आत्मा कभी झूठ नहीं बोलती।जब हमारे जीवन मे जैसा चल रहा होता है,वैसा ही हम दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करते है तो वो ही सत्य कहलाता है,लेकिन इस दुनिया मे लोगो के जीवन मे असल मे कुछ चलता है और दुनिया को कुछ और दिखाते है।अंदर से दुःखी इंसान भी दुनिया के सामने हंसता है।कई गरीब होते हुए भी अपने आप को दुनिया के सामने अमीर बताते है और कई अमीर होते हुए भी दुनिया के सामने अपने आप को गरीब बताते है।कई लोग जीवन भर जिससे दुश्मनी रखते है,मनमुटाव रखते है,उसी के मरने पर दुनिया के सामने जोर शोर से रोते है।सत्य कभी दिखावा नहीं करता,सत्य जैसा है ,वैसा ही दिखता है।सत्य को कभी साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती,वो समय आने पर खुद ही साबित हो जाता है।सत्य की भाषा कभी लड़खड़ाती या लंगड़ी नहीं होती,इसके विपरीत झूठ की भाषा लंगड़ाती हुई होती है।सत्य को याद करने की जरूरत नहीं होती,झूठ को याद  रखना पड़ता है,वरना वो बदल भी जाता है।सत्य हमेशा एक रहता है,वो कभी बदलता नही है।इसके विपरीत झूठ के अनेक रूप होते है।झूठ उस आर्टिफिशियल ज़ेवर के बराबर होता है,जो कहीं भी आसानी से मिल जाता है और सत्य उस सोने के गहनों के समान होता है जो किसी को भी मुश्किल से मिल पाता है।सोना उसी को मिलता है,जो उस सोने को पहनने के लायक हो,उसी प्रकार सत्य भी उसी को मिलता है जो सत्य रूपी गहनों की हिफाजत कर सके।जिस प्रकार सोने की परख केवल सुनार ही कर सकता है,उसी प्रकार सत्य की परख भी वो ईश्वर रूपी सुनार ही कर सकता है।सत्य अनेक गुणों सर परिपूर्ण होता है।सत्य का पहला गुण प्रेम है।जो सच्चा होता है,वो प्रेमी होता है।उसका प्रेम इतना गहरा होता है कि उसकी गहराई को नाप पाना इस संसार के बस का तो है ही नहीं।वो प्रेम हनुमान जी ने राम से किया,शबरी ने राम से किया।राम ने सीता से तो सीता ने राम से किया।लक्ष्मण ने राम से किया तो भरत ने राम से किया।राधा ने कृष्ण से किया तो कृष्ण ने राधा से।मीरा ने कृष्ण से किया तो कृष्ण ने मीरा से।कृष्ण ने सुदामा से किया तो सुदामा ने कृष्ण से और इतिहास मे अनेको उदाहरण है,जिसमे सत्य के साथ प्रेम का सामंजस्य है।एक झूठा व्यक्ति कभी किसी से प्रेम नहीं कर सकता,एक सत्यवादी ही सच्चा प्रेमी होता है।लेकिन समय समय पर सत्य ने प्रेमियों की परीक्षा ली है।जहाँ प्रेम सच्चा होता है,वहाँ ये सत्य हमेशा कुछ न कुछ त्याग चाहता है।सीता ने अपने राम के लिए महल त्यागा तो राम ने अपनी सीता के प्रेम मे  महल के सुखों का त्याग करके जमीन पर घास पर लेटे।
हनुमान ने जीवन भर ब्रह्मचारी रहकर अपने  राम की सेवा की तो लक्ष्मण ने अपने भाई के प्रेम मे अपना वैवाहिक जीवन कुर्बान किया।इसलिए जहाँ जहाँ सत्य है,वहाँ वहाँ प्रेम की कुर्बानी हुई है।यही सत्य की कठोर परीक्षा रही है।
       लेकिन फिर भी आज तक कोई ऐसा युग नहीं आया कि सत्य और सच्चा प्रेम कभी पराजित हुआ हो।सत्य हर हाल मे जीतता ही है।अगर कोई सत्य की परीक्षा देते देते मर भी जाता है तो भी मरने के बाद भी उसका सत्य इतिहास मे अमर हो जाता है,पर हारता कभी नहीं है।
   सत्य ईश्वर का ही दूसरा रूप है।मैंने अपने जीवनकाल मे इसी सत्य के साक्षात दर्शन किये है,उस अनुभव को बताने के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है,इतना अद्धभुत है वो दृश्य।इसी दृश्य को मैंने अपने शब्दों मे ,अपने जीवन की कहानी के माध्यम से बताने की कोशिश करी है।मैं आशा करती हूं कि आपको मेरा सच ब्लॉग पसंद आये।इसलिए मेरी कहानी को पूरा पढ़े।
सत्यम शिवम सुंदरम

Comments

  1. बहुत सुन्दर शब्द. सत्य की ऐसी परिभाषा अद्भुत है 🙏

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  2. Very nice line Meera Ke Prabhu Girdhar Nagar

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  3. बहुत अच्छा Radha
    Keep writing

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    1. धन्यवाद जी,पर आप कौन?

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