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Showing posts from June, 2020

गणेश जी की बुद्धिमानी की परीक्षा

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क्यों माना गया गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता-       एक बार शंकर भगवान और पार्वती माता ने अपने दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश की परीक्षा लेनी चाही।उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को बुलाकर कहा कि,तुम दोनों में से जो भी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले लौटेगा,उसे सबसे बुद्धिमान माना जायेगा।अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करते हुए कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े।गणेश जी ने सोचा कि इतनी बड़ी पृथ्वी की परिक्रमा करने मे तो बहुत समय लग जायेगा,इसलिए क्यों न मैं अपने माता पिता की ही परिक्रमा कर लूं।क्योंकि माता पिता से बढ़कर कोई पूजनीय नहीं होता।अपने माता पिता की परिक्रमा ही सम्पूर्ण सृष्टि की परिक्रमा है,ये सोचकर गणेश जी ने तुरंत अपने माता पिता के चारों तरफ चक्कर काट लिए और अपने माता पिता से बोले कि मैंने तो पृथ्वी की परिक्रमा कर ली है।जब कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे तो उन्होंने देखा कि उनसे पहले ही गणेश जी अपना कार्य करके बैठे हुए थे।उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक छोटे से चूहे पर सवारी करने वाला गणेश उनसे पहले कैसे पहुंच...

गणेश जी के जन्म की कथा

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एक बार की बात है।माता पार्वती स्नान कर रही थी।उन्होंने अपने पूरे शरीर पर हल्दी उबटन लगाया ।उस उबटन को सूखने के बाद उसको अपने शरीर से जब निकाला तो माता पार्वती ने उस उबटन रूपी मेल से एक पुतला बनाया और उसमें अपनी शक्ति से जान डाल दी।वो पुतला एक नन्हा सा बालक बनकर बोलने लगा।तब पार्वती माता ने उससे कहा कि आज से तुम मेरे पुत्र हो और तुम्हारा नाम गणेश होगा।बालक गणेश ने अपनी माता पार्वती को प्रणाम किया ।माता पार्वती ने अपने पुत्र को आज्ञा दी कि ,तुम द्वार पर जाकर पहरा दो और जब तक मैं नहाकर न निकलू तुम किसी को भी अंदर मत आने देना।पुत्र गणेश ने अपने माता की आज्ञा का पालन किया और द्वार पर पहरेदार बनकर खड़े हो गए। तभी शंकर भगवान वहाँ आये और अंदर जाने लगे।गणेश जी ने शंकर भगवान को रोका और कहा कि आप अंदर नहीं जा सकते,ये मेरी माँ की आज्ञा है कि जब तक वो न बोले मैं किसी को अंदर नहीं जाने दे सकता।शंकर भगवान ने कहा कि मुझे रोकने का साहस करने वाले तुम कौन हो?लेकिन गणेशजी अपनी ज़िद पर अड़े रहे और अपने आपको केवल अपनी माता का पुत्र ही कहते रहे।इस पर शंकर भगवान को क्रोध आया और उन्होंने ग...

दिखावा

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दिखावा- वर्तमान युग जहाँ तकनीकी के दौर मे आगे बढ़ रहा है,वहीं दूसरी तरफ दिखावे की चरम सीमा पार कर रहा है।इंसान का विवेक इतना खो चुका है कि उसको ये भी नहीं पता कि क्या दिखाना चाहिए और क्या नहीं। आजकल शादी ब्याह मे लोग शादी को संस्कार नहीं मानकर एक खेल मान लिया है।जिस तरह खेल मे लोग अलग अलग रूप करके अपनी भूमिका निभाते है उसी  तरह शादी मे तरह तरह के दिखावे रूपी नाटक रचे जा रहे है।एक समय था जब शादी को एक पूजा समझकर उसको विधि विधान से,अनुशासन से,संस्कारो से सजाया जाता था,आज फैशन की इस चकाचोंध ने सभी संस्कारो का समूल नाश कर दिया है।एक समय मे पति पत्नी का रिश्ता केवल  चार दीवारी के अंदर रहता था,आज वो दिखावे की वस्तु बन गई है। जिसे देखो वो अपने इस सुंदर रिश्ते को दुनिया के सामने नग्न कर रहा है।पहले लोग जो चीजे केवल फिल्मो मे देखते थे आज हर इंसान एक फ़िल्म बन चुका है।     आजकल शादियों मे दूल्हे दुल्हन एक प्रदर्शनी की वस्तु बन चुकी है।न उन्हें बड़ो का कोई लिहाज रहा और न ही कोई जिझक रही।और ऊपर से एक नया ट्रेंड चल गया है जिसे आजकल प्री वेडिंग शूट कहते है जो शर्म को आत्म...

अच्छे और सच्चे लोग

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इतने अच्छे लोग भी होते हैं दुनिया मे     ये दुनिया बहुत बड़ी है,यहाँ भांति भांति के लोग रहते है।जीवन के इस सफर मे मेरा कई लोगो से परिचय हुआ।     कुछ अपने होते हुए भी पराए बन गए और कुछ पराए होते हुए भी अपनेपन का अहसास जगा गए।         अभी 2019 मे मेरा एक ऑन्टी और उनकी बेटी से संपर्क हुआ।लगभग दो या तीन बार ही मैं इनके घर ब्यूटी पार्लर के कार्य से गई थी कि इनका स्वभाव मुझे इतना अच्छा लगा जितना आज तक मैंने किसी का नहीं देखा।इन दोनों माँ बेटियों की वाणी मे इतनी मधुरता और सहजता थी कि देखकर ऐसा लगता था मानो कोई देवियां अपनी मधुर मुस्कान रूपी फूलों की बारिश कर रही हो। मैं जब इनके घर ब्यूटी पार्लर की होम सर्विस के लिए गई तो चिरमी दीदी ने मेरे पार्लर के सामान का बैग अपने कंधे पर उठा लिया और सीढ़िया चढ़कर अपने रूम तक ले गए।मैं देखती ही रह गई कि मेरे इस कार्य के सफर मे आज तक कोई ऐसा न मिला जो मेरा वजन उठा ले पहली बार किसी की ऐसी उदारता देखी  तो मन द्रवित होकर बोल उठा कि क्या इतने अच्छे लोग भी होते है दुनिया मे।      मैं...

आवरी माता की कथा

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आवरी माता की कथा     चितौड़ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक आसावरा नामक गाँव है ।करीब एक हजार वर्ष पहले वहाँ जंगल था और उस जगह को आसाजी राठौड़ नाम के एक फौजदार ने बसाया थे,इसलिए उस गावँ का नाम आसावरा नाम पड़ा। आसाजी राठौड़ के सात पुत्र और एक पुत्री थी।उनकी पुत्री का नाम कुँवर केसर था।जब कुँवर केसर बड़ी हुई तो आसाजी को अपनी पुत्री के विवाह की चिंता होने लगी।उन्होंने अपनी पुत्री के लिए कई जगह वर देखे पर कोई भी कुँवर केसर से विवाह के लिए तैयार नहीं हुआ।अब तो आसाजी की चिंता बढ़ने लगी।अपने पिता को चिंतित देखकर कुँवर केसर ने अपने पिताजी को समझाया कि,पिताजी आप चिंता मत करो।आपका दुःख माँ भवानी जरूर दूर करेंगे।आसाजी राठोड़ हर समय पूजा ध्यान मे लगे रहते और अपनी कुलदेवी से प्रार्थना करते रहते।एक दिन उन्होंने अपने सातों पुत्रो को अपने पास बुलाया और कहा कि ,तुम सातों जने जाओ और अपनी बहन के लिए रिश्ता ढूंढकर आओ।अपने पिता की आज्ञा पाकर कुँवर केसर के सातों भाई अलग अलग दिशा मे निकल गए। लेकिन विधि का विधान ऐसा हुआ कि जो भी भाई जिस दिशा मे गया वहीं पर रिश्ता पक्का करके लग्न पत्रिका सौप दी। ज...

सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कहानी

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राजा हरिश्चन्द्र  जहाँ जहाँ सत्य की बात होती है वहाँ वहाँ राजा हरिश्चन्द्र का नाम अवश्य लिया जाता है।राजा हरिश्चन्द्र इक्षवाकु वंश के थे और श्री राम के पूर्वज थे।ये अयोध्या के बहुत ही सत्यवादी राजा थे जिनके सत्य की कीर्ति बहुत दूर तक फैली हुई थी।ये एक बार जो वचन कह देते थे उसका कठोरता से पालन करते थे ।ये बहुत ही न्यायप्रिय और धर्म का पालन करने वाले राजा थे। लेकिन जहाँ सत्य हो और कठोर परीक्षा न हो ये तो हो ही नहीं सकता।राजा हरिश्चन्द्र के सत्य की परीक्षा लेने के लिए एक बार विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र के पास आकर दान स्वरूप उनका पूरा राज्य मांग लिया।राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए अपना पूरा राज्य विश्वामित्र को दे दिया।जब राजा अपना सबकुछ छोड़कर अपनी पत्नी तारा और रोहित के साथ अपना राज्य छोड़कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा मांगी।तब राजा हरिश्चन्द्र ने कहा कि,अब तो मैं आपको अपना पूरा राज्य सौंप चुका हूं तो उसमें से जो भी आपको चाहिए आप ले लो।इस पर विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से कहा कि,ये राज्य तो अब मेरा हो चुका है और आपके सबकुछ ...

वामन अवतार की कथा

वामन अवतार कथा जब जब पृथ्वी पर संकट आया तब तब भगवान ने अवतार लिया।उन्हीं अवतारों मे एक अवतार वामन अवतार भी है।      प्रहलाद के पौत्र राजा बलि बहुत ही शक्तिशाली दानव थे और देवगुरु शुक्राचार्य की कृपा से राजा बलि ने समस्त देवों पर अपना अधिकार जमा रखा था।जब राजा बलि अश्वमेघ यज्ञ करके इंद्र लोक पर अपना अधिकार जमाने का प्रयास कर रहे थे तब सभी देवताओं ने विष्णु भगवान की शरण ली।विष्णु भगवान ने देवताओं की रक्षा के लिए माता अदिति और कश्यप ऋषि के घर वामन अवतार के रूप मे पुत्र बनकर प्रकट हुए।    वामन रूप धरे भगवान विष्णु राजा बलि के अश्वमेघ यज्ञ मे गए और भिक्षा मांगी।राजा बलि बहुत ही दानवीर था।वामन भगवान ने राजा बलि से भिक्षा मांगी तो राजा बलि ने वचन दिया कि आप जो मांगोगे मैं अवश्य दूंगा।इस पर वामन भगवान ने कहा कि मुझे तो तीन पग भूमि चाहिए।वामन भगवान के बोने शरीर को देखकर राजा बलि ने हंसते हुए कहा कि ,तीन पग भूमि मांग कर तो आप मेरी दानवीरता का अपमान कर रहे है।आपके छोटे से पैरो के नाप की जमीन देना मेरे लिए बहुत छोटी बात है,इसलिए आप कृपा करके कुछ बड़ी चीज मांगिये। राजा बलि की...

भक्त कर्मा बाई की भक्ति

कर्मा बाई की भक्ति- मीराबाई की तरह ही कर्माबाई की भक्ति की चर्चा भी बहुत सुनने को मिलती है।जहां कहीं भी भजन सत्संग होते है वहाँ कर्मा बाई का भजन अवश्य  गाया जाता है। कर्मा बाई का जन्म एक साहू परिवार मे हुआ था।उनके पिता भगवान की बहुत आराधना किया करते थे और नित्यप्रति भगवान को भोग लगाकर ही भोजन ग्रहण किया करते थे।कर्मा बाई अपने पिता को ये सब करते हुए देखती थी तो उनके अंदर भगवान के प्रति बहुत रुचि होने लगी।कर्माबाई को भगवान की कहानियां सुनने का बहुत शौक था।वो बचपन मे ही चलते फिरते भगवान के भजन गुनगुनाती रहती थी।एक बार कर्माबाई के माता पिता किसी काम से बाहर गए तो वो कर्माबाई को अपना दायित्व सौप कर गए कि वो समय पर भगवान को भोग लगा दे।कर्माबाई रोज  खिचड़ी बनाकर भगवान के सामने रख देती और उन्हें भोग लगाने के लिए बुलाती थी।कर्माबाई को यही लगता था कि भगवान असली मे आते है और भोग लगाते है,इसलिए वो तब तक भगवान के सामने बैठी रहती जब तक भगवान उसकी खिचड़ी स्वीकार नहीं कर लेते।वो तरह तरह से भगवान को अपने भजनों से रिझाती और उन्हें आमंत्रित करती थी।भगवान अपने भक्त के प्रेम को कैसे ठुकरा सकते थे,वो...