कृष्ण और सुदामा की मित्रता
कृष्ण और सुदामा की मित्रता- माता पिता के बाद जो रिश्ता सच्चा होता है वो मित्रता का ही होता है।श्री कृष्ण ने मित्रता को ही सच्चा रिश्ता बताया है जो मोह और स्वार्थ से परे होता है।जब जब मित्रता की बात होती है तब तब श्री कृष्ण और सुदामा का उदाहरण दिया जाता है क्योंकि ऐसी मित्रता संसार मे किसी की नहीं हुई।ज्यादातर मित्रता बराबरी वालो मे होती है।एक गरीब और एक धनवान की सच्ची मित्रता बहुत ही दुर्लभ है। कहाँ श्री कृष्ण जैसे तीनो लोको के स्वामी और कहाँ एक निर्धन ब्राह्मण।फिर भी इतनी गहरी मित्रता । सुदामा के निर्धन होने के पीछे दो कारण बताए है।एक तो किसी निर्धन ब्राह्मणी का श्राप दूसरा श्री कृष्ण के हिस्से के चने का सुदामा द्वारा खाना। एक बार एक ब्राह्मणी थी।वो भिक्षा मांग कर खाती थी और हरी भजन किया करती थी।एक दिन वो पूरा दिन भिक्षा मांगती रही पर उसे कुछ न मिला।शाम होते होते उसको किसी ने एक पोटली मे बांधकर चने दिए।वो पोटली लेकर घर आई तब तक रात हो चुकी थी।उसने सोचा कि अब तो रात हो गई है,इसलिए सुबह भगवान को भोग लगाकर ही चने ग्रहण करूँगी और वो सो गई।उसी रात को ब्राह्मणी के घर मे चोर घुस गए।चोरों ने ...