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Showing posts from May, 2020

कृष्ण और सुदामा की मित्रता

कृष्ण और सुदामा की मित्रता- माता पिता के बाद जो रिश्ता सच्चा होता है वो मित्रता का ही होता है।श्री कृष्ण ने मित्रता को ही सच्चा रिश्ता बताया है जो मोह और स्वार्थ से परे होता है।जब जब मित्रता की बात होती है तब तब श्री कृष्ण और सुदामा का उदाहरण दिया जाता है क्योंकि ऐसी मित्रता संसार मे किसी की नहीं हुई।ज्यादातर मित्रता बराबरी वालो मे होती है।एक गरीब और एक धनवान की सच्ची मित्रता बहुत ही दुर्लभ है। कहाँ श्री कृष्ण जैसे तीनो लोको के स्वामी और कहाँ एक निर्धन ब्राह्मण।फिर भी इतनी गहरी मित्रता । सुदामा के निर्धन होने के पीछे दो कारण बताए है।एक तो किसी निर्धन ब्राह्मणी का श्राप दूसरा श्री कृष्ण के हिस्से के चने का सुदामा द्वारा खाना। एक बार एक ब्राह्मणी थी।वो भिक्षा मांग कर खाती थी और हरी भजन किया करती थी।एक दिन वो पूरा दिन भिक्षा मांगती रही पर उसे कुछ न मिला।शाम होते होते उसको किसी ने एक पोटली मे बांधकर चने दिए।वो पोटली लेकर घर आई तब तक रात हो चुकी थी।उसने सोचा कि अब तो रात हो गई है,इसलिए सुबह भगवान को भोग लगाकर ही चने ग्रहण करूँगी और वो सो गई।उसी रात को ब्राह्मणी के घर मे चोर घुस गए।चोरों ने ...

जीवन क्या है?

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जीवन क्या है?    जीवन एक कर्मभूमि है,जीवन एक ऐसा मंच है जहाँ हर एक को अपना किरदार निभाना पड़ता है।किसी को हीरो का तो किसी को विलियन का।        एक साधारण मंच पर जब इंसान अपना अभिनय करता है तो इंसान को ये पता होता है कि वो हीरो है या विलियन।लेकिन इस जीवन के रंगमंच पर हर किरदार अपने को हीरो ही समझता है।यहाँ बुरा करने वाला भी अपने को अच्छा साबित करने की कोशिश करता है और अच्छा करने वाला भी अपने को अच्छा ही साबित करता है।इसलिए साधारण रंगमंच का परिणाम तो उसी समय आ जाता है पर जीवन के रंगमंच का कोई परिणाम नहीं आता।क्योंकि इस जीवन के रणमंच का  जो जज होता है वो  बोलकर कभी कुछ कहता ही नहीं कि आखिर सही कौन है और गलत कौन है?इंसान इस जीवन के इसी चक्र मे जीवन भर उलझता ही रहता है। जीवन इन रिश्ते नातो का एक ताना बाना है,जिसके धागों की उलझनों को निकालने के लिए वो जीवन भर प्रयास ही करता रह जाता है।हर इंसान अपने आप को एक कचहरी मे ही खड़ा पाता है।जहाँ केस कभी खत्म नहीं होते।जीवन की अंतिम सांस तक ये फाइलें चलती रहती है। जीवन रिश्ते नातों का एक ऐसा...

समय की कीमत

समय की कीमत दुनिया मे समय को सबसे मूल्यवान बताया गया है।आदमी अपना गवांया हुआ पैसा अपनी मेहनत से वापस प्राप्त कर सकता है,पर अपना गवांया हुआ समय कभी प्राप्त नहीं कर सकता।ये समय ही इंसान को कभी बुरा बना देता है,कभी अच्छा बना देता है।समय अनुकूल होता है तो दुनिया की हर चीज अनुकूल हो जाती है और जब समय प्रतिकूल होता है तो दुनिया की हर चीज विरोधी हो जाती है। ये समय ही है जो एक इंसान को एक पल मे राजा बना देता है और समय ही एक पल मे राजा को रंक बना देता है।बड़े बड़े देवता भी इस समय की मार से नहीं बच सके है।राजा हरिश्चन्द्र अपने राज्य मे बहुत सुखी थे लेकिन समय का ऐसा पहाड़ टूटा कि पल भर मे ही राज्य का हर सुख त्याग कर दर दर भटकना पड़ा।यहाँ तक कि अपनी पत्नी और पुत्र को भी बेचने की नोबत आ गई।एक बार समय जब वार करता है तो वो क्या क्या खेल खेला देता है,कोई नहीं समझ पाता है।बुरा समय एक साथ अनेक चुनोतियों को लेकर आता है और अच्छा समय एक साथ अनेक अवसर भी लेकर आता है यही इस समय का स्वभाव है। राम भगवान का राज तिलक होने ही वाला था कि एक रात मे समय ने करवट ली कि सबकुछ उल्टा हो गया ।जहाँ राजा बनकर सिंहासन पर बैठना थ...

सच्ची शिक्षा

सच्ची शिक्षा- जब इस संसार मे मनुष्य जन्म लेता है तो उसका पहला संस्कार शिक्षा से चालू होता है।जन्म से 3 साल की उम्र तक की शिक्षा वो अपने माता पिता से ग्रहण करता है।उस दौरान माता पिता अपने बच्चे को शब्दों का उच्चारण करना सिखाते है।इसलिए कहते है कि इंसान को बोलने की शक्ति माता पिता से प्राप्त होती है।इसी दौरान अगर माता पिता ईश्वर से प्रेम करना सीखा दे तो वो बच्चे जीवन मे कभी भगवान को एक क्षण के लिए भी नहीं भूल सकते,क्योंकि यही समय बच्चे के निर्माण की पहली नींव होती है। उसके बाद दूसरी नींव शुरू होती है जो 3 साल की उम्र से प्रारंभ होती है जो गुरु के संरक्षण मे होती है। गुरु से प्रारंभ होने वाली नींव ही इंसान को एक सच्चा मानव बनाती है।तीसरी नींव होती है मित्र और हमारा जीवन साथी। जिस तरह पानी मे दो रंग के कपड़ो को एक साथ डालने पर दोनो पर एक दूसरे का रंग चढ़ जाता है,उसी प्रकार मित्र और जीवन साथी का हमारे जीवन मे बहुत फर्क पड़ता है।जैसा हमारा संग होगा,वैसा ही हमारा आगे से आगे निर्माण होगा। इन सबमें जो सबसे महत्वपूर्ण होता है,वो है हमारी अपनी बुद्धि जो हमें ईश्वर से स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।उस ब...

निंदा और तारीफ- कितना सही कितना गलत

निंदा और तारीफ-कितना सही कितना गलत ‌     जीवन के इस चक्र को जिसको स्वयं  ईश्वर ने रचा है,इसमें सही और गलत दोनो है।अच्छा है तो बुरा भी है,सुख है तो दुख भी है।सम्मान है तो अपमान भी है।वैसे तो जीवन मे तारीफ और निंदा दोनो है।अब ये हमारी अपनी बुद्धि है कि हम किसका कितना प्रयोग करते है। निंदा दो तरह की होती है।एक वो जो सामने की जाए और एक वो जो पीठ पीछे की जाए।सामने की जाने वाली निंदा  सामने वाले को जीवन के मार्ग बताती है  लेकिन पीठ पीछे करने वाली निंदा स्वयं का नुकसान करती है।पीठ पीछे वाली निंदा को पाप माना है।लेकिन कई बार सामने की जाने वाली निंदा भी स्वयं का नुकसान करती है।क्योंकि निंदा करने वाला जब अपमानजनक बात सामने वाले को कहता है तो वो सबसे पहले खुद का नुकसान करता है।इसलिए वैसे तो निंदा बहुत ही घ्रणित व्यवहार है जिस पर नियंत्रण करना ही चाहिये।जब पीठ पीछे कोई किसी की निंदा करता है तो वो खुद के पाप तो बढ़ा ही लेता है ,साथ मे सामने वाले के पाप भी अपने सिर पर चढ़ा लेता है। इंसान बहुत बढ़ा चढ़ाकर निंदा करके अपने आप को बहुत महान समझता है लेकिन वो ये नहीं जानता...

शब्दों की महत्ता

एक शब्द सुख खानी है,एक शब्द दुख रासि एक शब्द बंधन काटे,एक शब्द गल फांसी  कबीरदास जी ने कहा है कि एक शब्द सुखों की खान बन जाता है और एक शब्द अत्यंत दुःख देता है।एक शब्द जन्म मरण के बंधन काट देता है तो एक शब्द गले मे फांसी का फंदा भी बन जाता है।इसलिए कबीरदास जी ने शब्दों की महत्ता पर बहुत जोर देकर अनेक दोहे लिखे है। इसी शब्द की महत्ता को मैं अपने शब्दों से,अपने अनुभव से बताने जा रही हु।           शब्दों की महत्ता  शब्द सुनने के लिए एक छोटा सा है, लेकिन इसकी महत्ता बहुत बड़ी है।जीवन के हर कदम पर शब्दों के साथ बहुत गहरा रिश्ता है।जिसने इसकी महत्ता को समझ लिया वो जीवन मे न कभी खुद को दुखी कर सकता है और न ही दूसरों को।क्योंकि शब्द को तोल मोल कर ही बोलना पड़ता है क्योंकि एक शब्द की मिस्टेक होने पर जब वाक्य बदल जाता है तो फिर एक शब्द से जीवन के मायने क्यों नहीं बदल सकते।जीवन मे एक समझदार इंसान की पहचान यही होती है कि वो अपने शब्दों का चुनाव कैसे करता है?घर हो,दफ्तर हो,या किसी अन्य जगह पर हो,कहाँ क्या बोलना चाहिए,उसकी पहचान करने वाला ही एक अच्छा वक्ता कहलाता है। ...

पप्पू

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पप्पू की कहानी 24 मई 1980 के दिन की बात है।पप्पू की मम्मी को दिन मे तीन चार बजे के करीब आम खाने का मन करा,क्योंकि वो गर्भवती थी तो उसकी इच्छा पूरी करने के लिए पप्पू के पापा बाजार से आम खरीदने गए और पीछे से साहब पप्पू जी इस दुनिया मे पधारे।पप्पू के पापा जब आम लेकर घर आये तो आस पड़ोस की औरते पप्पू के पापा को घेर कर खड़ी हो गई और  बधाई देती हुई मिठाई की मांग करने लगी और कहने लगी कि लड़के का जन्म हुआ है ।पप्पू के पापा आश्चर्य से भर गए कि अभी तो वो आम ख़रीदने गए और इतनी जल्दी कैसे बच्चा हो सकता है,लेकिन यही सत्य था। अपने पापा को दुनिया मे आने का इतना बड़ा सरप्राइज देने वाले महाशय का नाम ही पप्पू है। पप्पू के आने की खुशी से पूरे परिवार का वातावरण आनंदमय हो गया था क्योंकि परिवार का पहला पुत्र जो था।वैसे भी उस जमाने मे पुत्र के होने पर बहुत ही खुशी होती थी।पप्पू के नाना नानी तो इतने खुश हुए जैसे उनकी बरसों की इच्छा पूरी हो गई हो क्योंकि उनके स्वयं के कोई पुत्र नहीं था और अपनी पुत्री के पुत्र होने पर उनकी भी इच्छा पूरी हो गई। फिर क्या था,अब तो पप्पू पूरे परिवार का...

मीराबाई- कैसे बनी कृष्ण भक्त

मीराबाई इतिहास की एक ऐसी महिला  भक्त थी जो संसार मे आज तक दूसरी कोई नहीं हुई।जहाँ जहाँ श्री कृष्ण का नाम लिया जाता है,वहाँ वहाँ मीराबाई का नाम जरूर लिया जाता है। मीरा बाई का जन्म जोधपुर के पास कुड़की मे हुआ था।इनके पिता का नाम राव रतनसिंह और माता का नाम वीर कुमारी थी।बचपन मे ही मीराबाई की माता का देहांत हो गया था,इसलिए उसका लालन पोषण उसके दादा राव दूदा ने किया था।राव दूदा ने मेड़ता राज्य को बसाया था।उनके दो पुत्र थे।एक का नाम वीरमदेव और दूसरा राव रतन सिंह थे।राव दूदा ने इन दोनों भाइयों को आस पास के कई नगर दे दिए। मीरा बाई के पिता ने कुड़की को अपना राज्य बनाया और वहीं बस गए।इसलिए मीरा का जन्म स्थान कुड़की बताया गया है लेकिन मीरा बाई की माँ के स्वर्ग सिधारने के बाद उनके दादा ने उनको अपने पास मेड़ता बुला लिया ,इसलिए कई लोग मेड़ता को भी मीरा बाई के जन्म से जोड़ते है।        मीरा बाई की भक्ति की शुरुआत उनके जन्म के कुछ वर्षों बाद ही शुरू हो गई थी।एक बार की बात है।मीराबाई करीब 7 या 8 साल की होगी तब उनके घर के बाहर किसी की बारात जा रही थी।सब लोग दूल्हे को देखने के लिए अपनी अप...

आखरी हँसी

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20 मई 2005 का वो दिन -                 जीवन मे सबसे पहली बार पापा को खुश देखा था उस दिन जब मेरी दोनो छोटी बहनों की शादी हुई थी।किसको पता था कि ये हंसी पापा की आखरी हंसी होगी।20 मई के दिन मेरी बहनों का लेडीज़ संगीत था।घर के बाहर ही टेंट लगाकर प्रोग्राम किया था लेकिन इतना बढ़िया प्रोग्राम आज तक हम कभी वापस नहीं देख पाए।मेरे पापा के मुंह पर हंसी आना बहुत ही असम्भव था,लेकिन उस दिन हमारे सभी पड़ोसियों ने पापा को कंधे पर उठाकर बहुत नचाया और बहुत हंसी मजाके करी।शायद समय को ये पता चल गया था कि ये उनके जीवन की आखरी हंसी होगी,इसलिए समय ने उस दिन उनको दिल खोलकर हंसाया मम्मी पापा पहली बार एक साथ मे इतने आनंदित होकर नाचे थे,फिर जीवन मे वो क्षण कभी नहीं आया। जो पापा अब तक हर एक चीज के लिए इतना कंट्रोल करते थे,आज मेरी बहनों की हर इच्छा ऐसे पूरी कर रहे थे जैसे वो जानते थे कि मैं अब कभी अपने बच्चो के लिए कुछ न कर पाऊंगा।शादी मे हर एक छोटी से छोटी चीज के लिए वो दिल खोलकर खर्च कर रहे थे। फ़ैशन के मामलों मे वो शुरू से ही गुस्सा कर...

भक्ति और ज्ञान

ज्ञान और भक्ति ईश्वर को पाने के दो मार्ग है ,ज्ञान और भक्ति।इन दोनों में से भक्ति को सबसे सरल और सबसे ऊपर रखा है।ज्ञानियों को बहुत तपस्या करने के बाद कई हजारो वर्षो बाद भगवान मिले परंतु भक्तो को बहुत ही कम समय मे भगवान मिल जाते है।प्रह्लाद और ध्रुव ऐसे भक्त थे जिन्हें अपने बाल्यकाल मे ही भगवान मिल गए। इसलिए भक्ति का स्थान ज्ञान से भी ऊंचा है,पर भक्ति की विडंबना रही है कि ज्ञान ने हमेशा भक्ति का उपहास किया है।एक भक्त ज्ञानी को समझ सकता है लेकिन एक ज्ञानी भक्त को नहीं समझ पाता।       महाभारत मे जब अक्रूर जी गोपियों को समझाने जाते है तो वो गोपियों की भक्ति और प्रेम का उपहास करते है।अपने ज्ञान से गोपियों के प्रेम को छलनी करने की कोशिश करते है।लेकिन गोपियों का प्रेम अक्रूर जी जैसे ज्ञानी पर भारी पड़ा।गोपियों ने अपने प्रेम की भाषा से अक्रूर जी के ज्ञान के हर तर्क को हरा दिया। ज्ञान को अंहकार हो सकता है,भक्ति को अहंकार नहीं होता है।ज्ञान अपने ज्ञानी होने का प्रमाण दे सकता है पर एक भक्त अपनी भक्ति का प्रमाण नहीं दे सकता क्योकि भक्त का प्रमाण स्वयं उसका भगवान होता है। एक बार क...

श्रीमद भगवत गीता और भागवत महापुराण मे अंतर

 हिन्दू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ श्रीमद भगवत गीता  के बारे मे सभी लोग जानते है। कई लोग भगवत गीता और भागवत महापुराण दोनो को एक ही समझ लेते है,लेकिन भगवत गीता और भागवत महापुराण  मे अंतर है।महाभारत युध्द के दौरान श्री कृष्ण ने जो ज्ञान अर्जुन को दिया था वो ही भगवत गीता  है।      कल युग के आरंभ मे शुकदेव मुनि ने जो ज्ञान राजा परीक्षित को दिया था,वो भागवत पुराण है। भगवत गीता मे  ज्ञान का अध्भुत भंडार है,जिसे समझना कठिन है,परंतु भागवत महापुराण मे श्री कृष्ण की समस्त लीलाओं का वर्णन है,जो आसानी से इंसान समझ सकता है।भगवत गीता मे जहाँ ज्ञान,बुध्दि और मन के नियंत्रण पर जोर दिया है,वहीं भागवत  महापुराण मे श्री कृष्ण के प्रेम का रसपान करने  पर जोर दिया है।ज्ञान को समझने के लिए बुद्धि को विकसित करना पड़ता है,पर प्रेम को समझने के लिए बुध्दि की आवश्यकता नहीं होती।एक पागल भी प्रेम कर सकता है,पर एक पागल ज्ञान ग्रहण नहीं कर सकता।इसलिए इंसान को सरल तरीके से अपने जन्म मरण को सुधारना है तो भागवत महापुराण की कथाएँ सुननी चाहिए,क्योंकि इससे सरल ईश्वर तक पहुंचने...

संतुलन और मेरा अनुभव

संतुलन क्या है?     किसी भी चीज मे एक निष्चित सीमा तक नियंत्रण करने को ही संतुलन कहते है।ईश्वर ने संसार की रचना की और मानव के हाथों इसे सौप दिया।अब मानव ने अपनी बुद्धि से इस संसार मे वस्तुओं का निमार्ण किया,शब्दों का निर्माण किया, भाषाओं का निमार्ण किया,इस प्रकार कई आविष्कार किये और विकास किए।ईश्वर ने मानव को जो बुध्दि दी उसी का प्रयोग करके इंसान ने हर चीज का विकास किया,परंतु ईश्वर ने इस प्रकति को एक स्वभाव दिया,जिसको संतुलन कहते है,जिसके ना होने पर ये ही प्रकति इंसान को अवनति की ओर ले जाती है।      जब शरीर का संतुलन बिगड़ने लगता है तो शरीर हिलने लग जाता है,लड़खड़ाने लगता है,उसी प्रकार संसार की हर वस्तुओं और व्यवहार मे भी संतुलन बिगड़ने लगता है तो संसार भी हिलने लगता है।      अगर इंसान बहुत कम खाये तो वो कमजोर पड़ जायेगा और अगर बहुत ज्यादा खायेगा तो बीमार हो जाएगा। अगर इंसान बहुत कम बोलेगा तो कोई उसके पास नहीं बैठेगा और अगर इंसान बहुत ज्यादा बोलेगा तो हर इंसान उससे दूर रहने की कोशिश करेगा।अगर इंसान किसी से बहुत ज्यादा व्यवहार रखेगा तो अपना सम्मान ...