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सत्य क्या है?  क्या सत्य बोलना ही असली सत्य है?नही!सत्य वही है जो शरीर और आत्मा दोनो मे समान हो।आत्मा जो बोले वो ही अगर शरीर बोले तो वो ही सत्य कहलाता है।जब आत्मा के विपरीत जाकर हम बोलते है तो वो झूठ कहलाता है,क्योंकि शरीर ही झूठ बोलता है,आत्मा कभी झूठ नहीं बोलती।जब हमारे जीवन मे जैसा चल रहा होता है,वैसा ही हम दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करते है तो वो ही सत्य कहलाता है,लेकिन इस दुनिया मे लोगो के जीवन मे असल मे कुछ चलता है और दुनिया को कुछ और दिखाते है।अंदर से दुःखी इंसान भी दुनिया के सामने हंसता है।कई गरीब होते हुए भी अपने आप को दुनिया के सामने अमीर बताते है और कई अमीर होते हुए भी दुनिया के सामने अपने आप को गरीब बताते है।कई लोग जीवन भर जिससे दुश्मनी रखते है,मनमुटाव रखते है,उसी के मरने पर दुनिया के सामने जोर शोर से रोते है।सत्य कभी दिखावा नहीं करता,सत्य जैसा है ,वैसा ही दिखता है।सत्य को कभी साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती,वो समय आने पर खुद ही साबित हो जाता है।सत्य की भाषा कभी लड़खड़ाती या लंगड़ी नहीं होती,इसके विपरीत झूठ की भाषा लंगड़ाती हुई होती है।सत्य को याद करने की जरूरत नहीं होती,झूठ...

कोरोना एक सीख

कोरोना एक सीख कहते है जीवन मे जो कुछ भी होता है ,अच्छे के लिए होता है।फिर चाहे उस अच्छे के कारण कुछ नुकसान भी क्यों न उठाना पड़े।प्रकृति परिवर्तन शील है।बदलना उसका स्वभाव है।जो आज है वो कल नहीं था और जो कल था वो आज नहीं है।नित्यप्रति समय बदलता है।जिस प्रकार इंसान कपड़े बदलता है तो पुराने कपड़े उतारने पड़ते है,उसी प्रकार जब नया समय आता है पुरानी चीज़ों को छोड़नी पड़ती है।जब नाली साफ की जाती है तो उसमें एसिड डाला जाता है और जब एसिड डाला जाता है तो सबसे पहले पुरानी गंदगी,पुराना कचरा बाहर आता है,उसके बाद ही उसकी अच्छे से सफाई होती है।उस एसिड के कारण कई बार छोटे छोटे जीव जंतु भी मर जाते है,पर फिर भी इंसान अपने घर की सफाई करता ही है,ठीक उसी प्रकार इस प्रकृति की सफाई करने के लिए भगवान कोई न कोई रचना करता है ताकि सृष्टि मे बदलाव आ सके।जब ईश्वर रचना करता है तो अति को पहले खत्म करता है।अति वृद्धि प्रकृति मे भीड़ और अव्यवस्था फैलाता है,इसलिए भगवान सृष्टि को पहले सम करता है।जैसे कई बार हम अपनी अलमारी जमाते है तो बहुत सारे कपड़े हम किसी को दे देते है,क्योंकि उन अति कपड़ो से हमारी अलमारी अव्यवस्थित हो जाती ह...

कलयुग की महत्ता

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ईश्वर ने बहुत ही विधि से सृष्टि की रचना की है।सृष्टि को चार युगों मे बांटा है।सत युग,त्रेता युग ,द्वापर युग और कल युग। सत युग मे राजा हरिश्चन्द्र जैसे सत्यवादी राजा हुए जिन्होंने अपने सत्य की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।सत युग अपनी कठोर सत्यता के लिए प्रसिद्ध हुआ।त्रेता युग मे राम जैसे मर्यादापुरुष हुए जिन्होंने अपनी मर्यादा की रक्षा के लिए और कर्तव्य पालन के लिए अपना पूरा जीवन घोर संघर्षों मे बिताया।द्वापर युग मे श्री कृष्ण का जन्म हुआ जिन्होंने कर्म का सिद्धांत समझाया और अपनी अनेक लीलाओं के द्वारा संसार को प्रेम का पाठ पढ़ाया।श्री कृष्ण ने अर्जुन को धर्म और नीति का मार्ग बताया।इन तीनो युगों मे सत्य,धर्म, कर्तव्य,मर्यादा ही युग की मांग थी।सतयुग मे एक करोड़ो वर्षो की तपस्या के बाद तप का फल मिलता था वो भी कई जन्मों के बाद ।त्रेता युग मे लाखो वर्षो की तपस्या के बाद फल मिलता था और द्वापर युग मे हजारों वर्षों की तपस्या के बाद फल मिलता था। चौथा और अंतिम युग कलयुग आया।कलयुग मे पहले के तीनों युगों की विशेषता का नाश हो जाता है।कलयुग का अर्थ है,सत्य और धर्म का नाश।कलयुग...

भक्ति की महिमा- सेनजी महाराज के जीवन का सच

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       सेन भक्त के जीवन का सच    बहुत समय पहले एक सेन जी महाराज नाम के व्यक्ति थे।सेन जी महाराज एक राजा के दरबार मे नोकरी करते थे।वो जाती के नाई थे,इसलिए राजा के बाल और नाखून काटते थे।उनका उबटन करके उन्हें नहलाने का काम करते थे।सेन जी महाराज श्री कृष्ण के भक्त थे।वो गृहस्थ जीवन मे रहकर भी नित्यप्रति अपने भगवान के भजन और सुमिरन किया करते थे।वो सुबह सूर्य उगने से पहले उठ जाते थे और अपने नित्य कार्य से  निवृत होकर श्री कृष्ण की पूजा आराधना करते थे।उसके बाद ही वो अपनी नोकरी पर निकल जाते थे। एक दिन की बात है,रोज की तरह ही सेन जी महाराज अपनी पूजा भक्ति के कार्य निपटा कर राजा के यहाँ जा रहे थे कि रास्ते मे एक साधु संतों की भजन मंडली मिल गई जो बहुत ही अच्छे भजन गा रहे थे।सेन जी महाराज उन भजनों को सुनकर अपने आप को रोक नहीं पाए और खुद भी उस मंडली मे शामिल होकर भजन गाने लगे।वो भजनों मे इतने मग्न हो गए कि,उन्हें ये भी याद नहीं रहा कि राजा के यहाँ  काम करने जाना है। अपने भक्त को इतना भक्ति मे डूबते हुए देखकर श्री कृष्ण स्वयं सेन जी महा...

पुरुषोत्तम मास 2020 का महत्व

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पुरुषोत्तम मास 2020 का महत्व   हर 3 साल मे एक बार अधिकमास आता है।ये माह सूर्य और चंद्रमा के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए आता है।हिन्दू पंचाग के अनुसार 12 महीनों के कोई न कोई देवता निर्धारित है,इसीलिए इन महीनों मे सभी मांगलिक कार्य सम्पन्न हो सकते है,लेकिन अधिक मास का कोई देवता नहीं होता है,इसलिए इसे मलिन मास भी कहा जाता है।कहा जाता है कि मलिन मास की लोग काफी निंदा करने लगे तो ये मास अपने आप को उपेक्षित और घ्रणित महसूस करने लगा।संसार से अपमानित होकर ये मास भगवान विष्णु की शरण मे गया और उनसे प्रार्थना करी की,दूसरे महीनों की तरह मेरा भी कोई स्थान निर्धारित करो।भगवान विष्णु तो दया के सागर है।जो कोई भी श्री हरि की शरण लेता है,,श्री हरि उसे पार लगाते है।भगवान श्री विष्णु ने इस अधिक मास को अपना नाम दिया जिसके कारण समस्त संसार मे इस अधिक मास को पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाने लगा।भगवान श्री हरि ने इस मास को वरदान दिया कि,जो कोई भी व्यक्ति इस महीने भगवान विष्णु की  आराधना करेगा उसे करोड़ो पुण्यों के बराबर फल प्राप्त होगा।जो कोई भी इस अधिक मास मे दान पुण्य करेगा उसे 1...

एक सत्य कहानी-बापकर्मी या आपकर्मी

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बाप कर्मी या आप कर्मी?    बहुत वर्षो पहले बीसलदेव नाम के एक राजा थे।उनकी 7 बेटियां थी।राजा ने अपनी 6 बेटियों की शादियां कर दी थी और 6 बेटियों के दामाद को घर जमाई बनाकर अपने ही महल मे रहने के लिए स्थान दे दिया था।राजा के पास अपार धन और वैभव था। उनकी कीर्ति चारों तरफ फैली हुई थी।धीरे धीरे राजा को अभिमान आ गया था।राजा को लगने लगा कि इस राज्य मे सभी लोग उसी के भाग्य का खाते है।एक दिन राजा ने अपने सभी मंत्रियों और दास दासियों को बुलाकर पूछा कि,तुम सब लोग किसके भाग्य का खाते होसभी ने उत्तर दिया कि,है राजन!हम तो आपका दिया हुआ ही खाते है,इसलिए हमारा भाग्य ही आपसे जुड़ा है।इस तरह राजा ने अपनी रानियों से भी यही प्रश्न किया।रानियों ने भी यही कहा कि,हम तो राजा के भाग्य का ही खाते है।फिर राजा ने अपनी 6 बेटियों और दामाद को भी बुलाकर यही पूछा तो सभी ने यही कहा कि,हम सब राजा के भाग्य का ही खाते है।अंत मे राजा ने अपनी सबसे छोटी बेटी जो कुँवारी थी,जिसका नाम पदमा था,उससे पूछा कि ,बताओ बेटी तुम बाप कर्मी हो या आप कर्मी। पदमा सत्यवादी थी और बहुत ही धर्म कर्म के मर्म को जानने वाली थी।उसन...

श्राद्ध की महत्ता

श्राद्ध क्या है?श्राद्ध का महत्व     श्राद्ध का अर्थ उसके शब्द मे ही निहित है यानी श्रद्धा।अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा से जो कुछ भी अर्पित किया जाता है उसे ही श्राद्ध कहा जाता है।हिन्दू धर्म मे श्राद्ध का विशेष महत्व है।ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के 15 दिन तक हमारे स्वर्गवासी पूर्वज धरती पर विचरण करते है और अपने परिवार की श्रद्धांजलि को स्वीकार करते है। जब भी कोई व्यक्ति इस संसार से जाता है तो वो बहुत मुश्किल से अपने परिवार को त्याग पाता है।उसके अंतिम क्षणों मे सबसे ज्यादा जो दुःख उसको होता है वो परिवार का बिछोह ही होता है।इस संसार को छोड़ कर जाने वाले कई व्यक्तियों की तो सारी इच्छाएं पूरी हो जाती है उसके बाद ही वो संसार को छोड़ कर जाते है,पर कुछ व्यक्ति ऐसे होते है,जिनके सपने अधूरे ही रह जाते है और वो संसार को छोड़ कर चले जाते है।ऐसे व्यक्ति की आत्मा संतुष्ट नहीं हो पाती।जब उसका परिवार मिलकर श्राद्ध करता है और परिवार के सब सदस्य मिलकर भोजन करते है तो उन पूर्वजो की आत्मा को अत्यंत सुख मिलता है।जो भी पूर्वज जिस तिथि को शरीर त्यागते है,उसी तिथि को वो धरती पर अदृश्य रूप मे आत...

स्वतंत्रता क्या है?

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स्वतंत्रता क्या है? एक समय था जब हमारा भारत देश अंग्रेजो की गुलामी से जकड़ा हुआ था।    गुलामी क्या है?     जब इंसान विवश होकर किसी के अधीन रहकर कार्य करता है,वो ही गुलामी है।गुलामी इंसान को वो सब कुछ करवाती है जो वो स्वयं नहीं चाहता।अंग्रेजो ने इसी तरह से हमारे भारतवासी से वो सब कुछ करवाया जो वो नहीं चाहते थे,लेकिन कई वर्षों तक किसी की हिम्मत नहीं हुई कि इन गुलामी की जंजीरों को तोड़ सके।जब बहुत समय तक हमारे देशवासी गुलामी का घूंट पीते रहे तब कुछ महान व्यक्तियों ने इस गुलामी से अपने देश को मुक्त करवाने का बीड़ा उठाया जबकि वो जानते थे कि ये लड़ाई बहुत लंबी है।अगर इस लड़ाई को जीत भी लिया तो उन्हें कोई लाभ मिलने वाला नहीं है।लेकिन ये वीर ऐसे महान व्यक्ति थे जिन्होंने अपना स्वार्थ त्यागकर अपने देश वासियों को आजाद करवाने के लिए युद्ध लड़ा ताकि ये भारत हमेशा के लिए आजाद हो सके।महात्मा गांधी,सुभाषचंद्र बोस,भगत सिंह,और ऐसे कई महान व्यक्ति हुए जिन्होंने अपने देश को आजाद करवाने मे अपना जीवन कुर्बान कर दिया।आज इन्हीं लोगों के कारण हमारा देश आजादी की खुशी मना रहा है।  ...

गवरी

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गवरी ‌राजस्थान का पारंपरिक लोक नृत्य गवरी भील जाती का मुख्य  नृत्य है जिसे वो बड़े उल्लास के साथ खेलते है।ये नृत्य मेवाड़ का प्रसिद्ध लोक नृत्य है,जो हर साल सावन और भादवे महीने मे खेला जाता है।गवरी शिव पार्वती के अटूट रिश्ते की याद दिलाता है,इसमें माता गोरी  की पूजा की जाती है जिसे भील जाती के लोग गोरचिया माता के नाम से बुलाते है।गवरी खेलने वाले सवा महीने तक अपना घर परिवार त्याग कर घर से बाहर रहते है।ये लोग सवा महीने तक कोई भी हरी सब्जी का प्रयोग नहीं करते और कई लोग तो पांवों मे चप्पल भी नहीं पहनते है।गवरी मे केवल पुरुष वर्ग ही  अभिनय करते है।ये पुरुष ही स्त्रियों के कपड़े पहनकर स्त्री का अभिनय भी कर लेते है। गवरी मे तरह तरह की भगवान की लीलाओं का वर्णन ये अपने गीतों और नाटकों के माद्यम से प्रस्तुत करते है।गोरचिया माता जी को  बीच मे स्थापित करके उनके चारों तरफ ये गवरी खेलते है।ये लोग पैरों मे घुंघरू भी पहनते है।इनकी लीलाओं मे गणेश जी,शंकर पार्वती,कृष्ण राधा,नतड़िया,हवलदार,कानजी, मीणा चोर,राजा रानी,वडलियो, बिनजारो और इसके अतिरिक्त भी कई तरह की प्रस...

हनुमान जी के जीवन से जुड़ी कुछ रहस्यमय बातें

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हनुमान जी के जीवन से जुड़ी कुछ रहस्यमय बातें हनुमान जी वानरराज केसरी के पुत्र है।इनकी माता का नाम अंजना है जो पिछले जन्म मे एक अप्सरा थी।अंजना को बहुत समय तक कोई संतान नहीं हुई थी तो उन्होंने अन्न जल त्यागकर केवल वायु का ही भक्षण किया और शिवजी की घोर तपस्या की।शिवजी प्रसन्न हुए और उन्होंने वायु रूप मे जाकर अपने एक अंश को यज्ञ हवन मे प्रविष्ट किया ,इसी अंश से हनुमान जी का जन्म हुआ। इसी कारण हनुमान जी को पवन पुत्र भी कहा जाता है।हनुमान जी शिवजी के 11वें रौद्र अवतार थे।शिवजी ने एक बार भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा था कि ,उन्हें भगवान विष्णु की सेवा का अवसर मिले।भगवान विष्णु ने शिव जी को वरदान दिया और कहा कि जब मैं पृथ्वी पर राम अवतार के रूप मे जन्म लूंगा तब आपको मेरी सेवा का अवसर प्रदान करूंगा और यही कारण था कि शिवजी ने अपने 11वें रौद्र रूप मे हनुमान जी के अवतार रूप  मे जन्म लिया।    एक बार अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति की कामना के लिए एक यज्ञ करवाया ।यज्ञ की समाप्ति के बाद गुरुदेव ने राजा दशरथ को खीर का प्रसाद दिया और कहा कि ये तीनो रानियों ...

आज सोमवती अमावस्या है और जानिए उसका महत्व

आज सावन का तीसरा सोमवार है और साथ ही सोमवती अमावस्या के साथ हरियाली अमावस्या का विशेष संयोग बना है।सोमवती अमावस्या के दिन नदी पर स्नान करने का  विशेष  महत्व है।आज के दिन लोग नदी और कुंड मे स्नान करते है,और शिव जी को दूध और जल के साथ बिलपत्र चढ़ाते है।आज के दिन पीपल के पेड़ की भी पूजा की जाती है,क्योंकि पीपल के पेड़ पर ब्रह्म विष्णु और महेश का वास होता है।पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने से शनिदोष का भी निवारण होता है।सोमवती अमावस्या के दिन माता लक्ष्मी की भी आराधना करने से घर की दरिद्रता का नाश होता है।आज के दिन अपने अपने पितरों को भी याद किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है जिससे पितरों का आश्रीवाद भी बना रहता है।सोमवती अमावस्या के दिन बहुत से लोग दान पुण्य भी करते है।गरीबो को खाना खिलाया जाता है,गायों को चारा और पक्षियों को दाना डाला जाता है। हरियाली अमावस्या को प्रकति के संरक्षण के लिए जनता को जागरूक बनाने के लिए पूरे उत्तर भारत मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।कई जगहों पर मेलो का आयोजन भी होता है।इस दिन कई लोग अपने अपने घरों पर और सार्वजनिक स्थानों पर पेड़ लगाते है।इस दिन लोग प्रकति ...

सावन मास का महत्व और जानिए भगवान शिव के बारे मे कुछ विशेष बातें

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सावन मास का महत्व और जानिए भगवान शिव के बारे मे कुछ विशेष बातें     हिन्दू धर्म मे  सावन मास का विशेष महत्व बताया है।सावन महीने मे विशेष रूप से शिवजी की आराधना की जाती है,इसलिए शिव भक्तों के लिए ये महीना बहुत ही खास माना गया है। कहा जाता है कि सावन मास मे ही समुन्द्र मंथन हुआ था।जब समुन्द्र मंथन मे सबसे पहले विष प्रकट हुआ तो देवताओं मे हाहाकर मच गया क्योंकि उस विष को झेलने वाला कोई नहीं था,तब सभी देवी देवता शिव जी के पास गए और उनसे प्रार्थना करी।शिव जी ने देवताओं की सहायता करी और उस विष को उन्होंने अपने कंठ मे धारण कर लिया,जिसके कारण शिव जी का गला नीला हो गया ।उसी दिन से शिवजी को नीलकंठ के नाम  से भी जाना जाता है।जब शिवजी का गला नीला हो गया और वो उस विष से जलने लगा तो सभी देवताओं ने शिवजी के ऊपर जल और दूध चढ़ाया जिससे उन पर विष की पीड़ा कम हो गई।तभी से आज तक शिवजी के ऊपर दूध और जल चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है।इसीलिए सावन महीने मे शिवजी के ऊपर जल और दूध का अभिषेक करने से शिवजी प्रसन्न हो जाते है। शिव जी बहुत ही भोले और सरल देव है,जो शीघ्र प्रसन्न हो जाते है ...

शनिदेव से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें

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शनिदेव से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें      शनिदेव बचपन से श्री कृष्ण के भक्त थे,और नौं ग्रहों मे बहुत शक्तिशाली देवता माने गए है,लेकिन दुर्भाग्यवश उनको अशुभग्रह बना दिया।इसके पीछे एक कारण था। शनिदेव का विवाह चित्ररथ की कन्या से  हुआ था जो बहुत ही संस्कारी और गुणवान थी।विवाह के बाद भी शनिदेव का मन गृहस्थी मे न होकर केवल अपने आराध्य कृष्ण मे ही लगा रहता था।एक दिन शनिदेव की पत्नी पुत्रप्राप्ति की इच्छा से शनिदेव के निकट गई,लेकिन शनिदेव अपनी तपस्या मे लीन थे।शनिदेव की पत्नी ने अपने पति का ध्यान अपनी ओर करने का बहुत प्रयास किया,परंतु शनिदेव श्री हरि के ध्यान मे इतने डूब चुके थे कि उनको अपनी पत्नी की उपस्थिति का आभास ही नहीं हुआ।इस कारण शनिदेव की पत्नी को क्रोध आ गया और क्रोध मे आकर उन्होंने शनिदेव को श्राप दे दिया कि,आज के बाद जिस पर भी आप अपनी दृष्टि डालोगे ,उसका जीवन कष्टदायी हो जाएगा ।अपनी पत्नी के द्वारा श्राप मिलने के बाद शनिदेव को अपनी गलती का पछतावा हुआ और उन्होंने अपनी पत्नी से क्षमा मांगी।उनकी पत्नी ने कहा कि,है नाथ!मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकती,लेकि...

जानिए ,कैसे हनुमान जी पर भी शनि की वक्र दृष्टि का प्रभाव पड़ा

वैसे तो जब जब  इंसान पर शनि की ढैया या साढ़े साती का प्रभाव होता है,तब तब उसको हनुमान जी की आराधना करने का उपाय बताया जाता है,क्योंकि ये माना गया है कि हनुमान जी की भक्ति करने वालो पर शनिदेव ज्यादा  कष्ट  नहीं पहुंचाते,लेकिन फिर भी  स्वयं हनुमान जी को भी कुछ समय के लिए शनि  के द्वारा कष्ट मिला। एक बार की बात है,हनुमान जी और शनिदेव दोनो भ्रमण के लिए निकले,तब रास्ते मे उनकी कुछ बातचीत हुई,जिसमे संसार के पाप पुण्य की कुछ बाते चली।शनिदेव ने हनुमान जी से कहा कि,मैं इस संसार के पाप और पुण्यों का हिसाब रखता हूं,इसलिए उसका फल मैं ही देता हूं।इस पर हनुमान जी ने कहा कि,मैंने तो इस संसार मे अपने प्रभु श्री राम की सेवा के अलावा कभी कोई कार्य किया ही नहीं है,इसलिए मुझसे तो जीवन मे कभी कोई अपराध नहीं हुआ है,इसलिए आप मुझे तो कभी कोई दंड नहीं दे सकते।लेकिन शनिदेव ने कहा कि,नहीं हनुमान जी,इस संसार मे कोई ऐसा नहीं है,जिससे कभी कोई अपराध नहीं हुआ हो।आपने भी एक अपराध किया है।हनुमान जी ने शनिदेव से पूछा कि,कृपया करके आप मुझे बताइए कि मुझसे ऐसा क्या अपराध हुआ है।तब शनिदेव ने कहा कि,जब...

जानिए क्यों चढ़ाया जाता है शनिदेव को तेल

जानिए क्यों चढ़ाया जाता है शनिदेव को तेल     एक बार शनिदेव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी ,तब भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और उन्होंने शनिदेव को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का न्यायधीश बना दिया।तब से  वो संसार का न्याय करने लगे।लेकिन न्याय करते करते एक बार उनको अपनी शक्ति का अभिमान हो गया था।जब उन्होंने हनुमान जी की शक्ति की चर्चा सुनी तो उनको हनुमान जी से युद्ध करने की इच्छा हुई। एक बार हनुमान जी अपने श्री राम के किसी कार्य मे व्यस्त थे,तब शनिदेव ने वहाँ जाकर हनुमान जी के कार्य मे विध्न डाला।इस पर हनुमान जी ने बहुत शांति से शनिदेव को समझाया कि,मैं अपने प्रभु श्री राम का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा हु।कृपया करके  ये बताने का कष्ट करें कि आप कौन हो और मुझे क्यों परेशान कर  रहे हो। इस पर शनिदेव अभिमान से बोले कि मैं कर्म फलदाता हु,और इंसान के जीवन मे विध्न डालने का मेरा काम है। हनुमान जी ने बार बार शनिदेव को समझाया,लेकिन शनिदेव नहीं माने और हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा।हनुमान जी ने शनिदेव को अपनी पूंछ मे लपेटकर चारो तरफ घुमाया और बहुत देर तक युद्ध लड़ा जिससे  शनिदेव के प...

शनिदेव जी से जुड़ी दो रोचक कथाएँ

शनिदेव और भगवान शिव की एक रोचक कहानी      शनिदेव के बारे मे कौन नहीं जानता।शनिदेव सम्पूर्ण ब्रह्मांड के न्यायधीश है।उनका न्याय सबके लिए निष्पक्ष होता है,इसलिए वो अपनी दृष्टि से किसी को नहीं बचा पाए।शनिदेव का प्रभाव उनके पिता से लेकर उनके सभी अपनों के साथ भी पड़ा। एक बार शनिदेव जी कैलाश पर्वत पर गए और भगवान शिव से बोले कि,कल मैं आपके ऊपर अपना प्रभाव डालने वाला हु।भगवान शंकर ने शनिदेव से कहा कि,तुम मेरे शिष्य हो,इसलिए मुझ पर ज्यादा देर का प्रभाव मत डालना।शानिदेवजी ने कहा कि,आपके ऊपर मैं केवल सवा घड़ी के लिए अपना प्रभाव डालूंगा।भगवान शंकर खुश हो गए कि,सवा घड़ी तो मैं इधर उधर छुपकर निकाल लूंगा।अगले दिन शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए भगवान शंकर ने अपने आप को हाथी बना दिया और मृत्यु लोक मे विचरण करने निकल गए।जब सवा घंटे का समय निकल गया तो शंकर भगवान अपने असली रूप मे वापस कैलाश पर्वत पर आ गए और शनि से मिलने गए।भगवान शंकर खुश होकर शनि देव से बोले कि,देख लो शनि,हम तुम्हारी दृष्टि से बच गए ।शनिदेव ने शिव जी से कहा कि,नहीं आप हमारी दृष्टि से नहीं बच पाए।मेरे ही कारण आपको सवा घंटे के ल...

विश्वास की ताकत- सच्ची श्रद्धा

विश्वास की ताकत-सच्ची श्रद्धा     एक बार की बात है,एक जंगल मे कछुवे का एक कपल जोड़ा रहता था।नर कछुवे की पत्नी रोज ईश्वर का स्मरण किया करती थी।वो रोज राम का नाम लेती रहती थी और उसे ईश्वर पर बहुत भरोसा था। एक दिन की बात है,एक शिकारी जंगल मे आया और उस कपल को अपने जाल मे फंसा दिया।शिकारी उस कछुवे के जोड़े को अपने कपड़े मे बांधकर घने जंगल मे ले गया।वहाँ ले जाकर कछुवे के ऊपर की खाल निकाल दी और उन्हें मारने की पूरी तैयारी कर दी थी।उस शिकारी ने कछुवे को पकाने के लिए जंगल मे ही एक पत्थर का चूल्हा बनाया और लकड़ियां इकठ्ठी करके आग जलाने की तैयारी भी कर ली थी।तभी कपड़े मे बंधा कछुवा का जोड़ा आपस मे बातचीत करने लगा।नर कछुवे ने मादा कछुवे से कहा कि,जिस राम का तू रोज नाम लिया करती थी,आज तेरे राम कहाँ गए।मैं कहता हूं कि कोई भगवान नहीं है,अगर तेरे भगवान सच्चे होते तो आज हमको मारने के लिए यहाँ नहीं लाया जाता।नर कछुवे की बात सुनकर मादा कछुवे ने कहा कि,है मेरे प्राणनाथ!तुम अपने मन पर थोड़ा धीरज रखो और ईश्वर पर भरोसा करो।मेरे भगवान अवश्य आएंगे।ऐसे अंतिम समय मे भी मादा कछुवे का विश्वास नहीं टूटा और वो तब ...

राजा दुष्यन्त और शकुन्तला की प्रेम कहानी

राजा दुष्यन्त और शकुंतला की प्रेम कहानी   एक समय हस्तिनापुर मे राजा दुष्यन्त राज किया करते थे।एक बार राजा दुष्यन्त शिकार खेलते हुए जंगल मे गए।उसी जंगल मे कण्व ऋषि का आश्रम था।शिकार से लौटते हुए राजा ने सोचा कि ,मैं कण्व ऋषि के दर्शन कर लूं।राजा ने कण्व ऋषि के आश्रम के पास जाकर आवाज लगाई तो आश्रम से एक सुंदर कन्या बाहर आई।राजा दुष्यन्त ने उस कन्या से पूछा कि,क्या मैं कण्व ऋषि के दर्शन कर सकता हु?इस पर उस कन्या ने अपनी मधुर वाणी से राजा को कहा कि,अभी तो मुनिवर कहीं बाहर गए हुए है।कुछ समय पश्चात लौटेंगे।राजा दुष्यन्त शकुंतला के रूप और वाणी से अत्यंत प्रसन्न हो गए।अब तो राजा वहीं जंगल मे डेरा डालकर रहने लगे और प्रतिदिन शकुंतला को देखते रहते।राजा दुष्यन्त को शकुंतला से प्रेम हो गया और शकुंतला भी राजा से प्रेम करने लगी।एक दिन राजा दुष्यन्त ने शकुंतला के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा।शकुंतला ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।विवाह से पहले शकुंतला ने अपना पूरा परिचय राजा दुष्यन्त को बताया। एक बार विश्वामित्र घोर तपस्या कर रहे थे।उनकी तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र ने अप्सरा मेनका को पृथ्वी प...

गुरु पूर्णिमा 2020- गुरु का महत्व

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गुरु पूर्णिमा 2020     हर वर्ष आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।इस बार गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को मनाई जा रही है।      गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।महर्षि वेदव्यास ने ही महाभारत की रचना की और वो ही चारों वेदों के ज्ञाता थे।उन्होंने वेदों की रचना की जिसके माध्यम से संसार को वेदों का ज्ञान मिला,इसलिए वो संसार के गुरु कहलाये।उनके जन्म दिन से ही आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का नाम दिया गया।इसी दिन हर व्यक्ति अपने अपने गुरु को स्मरण करता है और उनसे आशीष प्राप्त करता है।       हर व्यक्ति के जीवन मे गुरु का बहुत योगदान होता है।गुरु वो होता है जो हमे मार्ग दिखलाए।गुरु वो है जो हमारे जीवन के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके प्रकाश दिखलाए।जरूरी नहीं कि गुरु केवल मुनि और तपस्वी ही हो।गुरु कोई भी हो सकता है।एक छोटा सा बच्चा भी हमारा गुरु हो सकता है यदि उसने हमें कोई सही दिशा बताई हो।संसार मे कोई व्यक्ति ऐसा नहीं कि उसके जीवन मे कोई गुरु न रहा हो।व्यक्ति के जन्म से ही उसे गुरु का आश्रय मिल जाता है।हमारी प्रथम गुरु ...

एक पतिव्रता नारी की शक्ति- सावित्री

एक पतिव्रता नारी का सत्य      किसी समय मद्र देश के राजा अश्वपति राज्य किया करते थे।उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम सावित्री था।सावित्री बहुत ही गुणवान थी।जब वो युवा हो गई तो उनके पिता ने सावित्री को ही अपना वर चुनने के लिए बोला।सावित्री अपने वर की तलाश मे निकल गई।आखिरकार उसने अपना वर तलाश कर लिया जिसका नाम सत्यवान था।सावित्री ने अपने पिता से सत्यवान से विवाह करने की इच्छा  बताई।तब सावित्री के पिता भी अपनी पुत्री से सहमत हो गए और विवाह के लिए राजी हो गए।उन्होंने सत्यवान के पिता के पास संदेश भिजवाया कि, वो अपनी पुत्री का विवाह सत्यवान से करवाना चाहते हैं।सत्यवान के पिता भी इस प्रस्ताव से खुश हो गए।लेकिन नारद मुनि ये जानते थे कि सत्यवान की आयु बहुत कम है,इसलिए वो सावित्री के सामने प्रकट हुए और बोले कि,जिस व्यक्ति से तुम विवाह करने जा रही हो,वो एक वर्ष के भीतर ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।इस पर सावित्री बोली कि,है नारद मुनि!मैंने तो सत्यवान को अपने पति रूप मे मान लिया,अब चाहे वो मुझे एक वर्ष के लिए ही क्यों न मिले।मैं तो उन्हीं की पत्नी बनूंगी,पर आप मुझे कुछ ऐसा उपाय बताओ ज...

गणेश जी और कुबेर जी की कहानी

गणेश जी और कुबेर जी की कहानी     कुबेर जी धन और वैभव के देवता है।जहाँ धन और वैभव होता है वहाँ अभिमान प्रवेश कर ही जाता है और जब अभिमान प्रवेश करता है तो इंसान को अपने वैभव को प्रदर्शित करने की अभिलाषा जाग्रत हो जाती है।धन के देवता कुबेर जी के साथ भी यही हुआ।उनको अपने वैभव और धन को दिखाने की इच्छा जागी, इसलिए उन्होंने अपने महल मे एक दावत रखी जिसमें उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया।कुबेर जी कैलाश पर्वत पर गए और शिव जी को भी दावत का निमंत्रण दिया।शिव जी तो अंतर्यामी थे ,वो समझ गए कि कुबेर जी मे अहंकार आ गया है,इसीलिए वो ये दावत रख रहे है।शिव जी ने कुबेर जी को कहा कि,हम तो नहीं आ पाएंगे,लेकिन हमारी जगह हम अपने पुत्र गणेश को जरूर भेजेंगे।कुबेर जी शिव जी की बात से सहमत हो गए और निमंत्रण देकर चले गए।     गणेश जी समय से कुबेर जी के घर दावत के लिए पहुंच गए।कुबेर जी ने अनेक तरह के पकवान बनवाये।सभी देवी देवता भोजन कर करके अपने अपने निवास स्थान चले गए,लेकिन गणेश जी का पेट नहीं भर रहा था।कुबेर जी बारी बारी से थाल के थाल मंगवाये जा रहे थे ,गणेश जी एक पल मे ही खाकर खत्म क...

गणेश जी की बुद्धिमानी की परीक्षा

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क्यों माना गया गणेश जी को प्रथम पूजनीय देवता-       एक बार शंकर भगवान और पार्वती माता ने अपने दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश की परीक्षा लेनी चाही।उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को बुलाकर कहा कि,तुम दोनों में से जो भी पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले लौटेगा,उसे सबसे बुद्धिमान माना जायेगा।अपने माता पिता की आज्ञा का पालन करते हुए कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े।गणेश जी ने सोचा कि इतनी बड़ी पृथ्वी की परिक्रमा करने मे तो बहुत समय लग जायेगा,इसलिए क्यों न मैं अपने माता पिता की ही परिक्रमा कर लूं।क्योंकि माता पिता से बढ़कर कोई पूजनीय नहीं होता।अपने माता पिता की परिक्रमा ही सम्पूर्ण सृष्टि की परिक्रमा है,ये सोचकर गणेश जी ने तुरंत अपने माता पिता के चारों तरफ चक्कर काट लिए और अपने माता पिता से बोले कि मैंने तो पृथ्वी की परिक्रमा कर ली है।जब कार्तिकेय सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे तो उन्होंने देखा कि उनसे पहले ही गणेश जी अपना कार्य करके बैठे हुए थे।उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक छोटे से चूहे पर सवारी करने वाला गणेश उनसे पहले कैसे पहुंच...